04-10-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - निश्चय करो कि हम आत्मा हैं, यह हमारा शरीर है, इसमें साक्षात्कार की कोई बात नहीं, आत्मा का साक्षात्कार भी हो तो समझ नहीं सकेंगे''
प्रश्नः-
बाप की किस श्रीमत पर चलने से गर्भजेल की सजाओं से छूट सकते हैं?
उत्तर:-
बाप की श्रीमत है - बच्चे नष्टोमोहा बनो, एक बाप दूसरा न कोई, तुम सिर्फ मुझे याद करो और कोई भी पाप कर्म न करो तो गर्भजेल की सजाओं से छूट जायेंगे। यहाँ तुम जन्म-जन्मान्तर जेल बर्ड बनते आये, अब बाप आये हैं उन सजाओं से बचाने। सतयुग में गर्भ जेल होता नहीं।
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ओम् शान्ति। - रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझाते हैं - आत्मा क्या है और उनका बाप परमात्मा कौन है?
- इसे फिर से समझाते हैं क्योंकि यह तो है पतित दुनिया।
- पतित हमेशा बेसमझ होते हैं।
- पावन दुनिया समझदार होती है।
- भारत पावन दुनिया अर्थात् देवी-देवताओं का राज्य था, इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था।
- बड़े धनवान, सुखी थे परन्तु भारतवासी इन बातों को समझते नहीं।
- बाप, परमपिता अथवा रचता को ही नहीं जानते।
- मनुष्य ही जान सकते हैं, जानवर तो नहीं जानेंगे ना।
- याद भी करते हैं - हे परमपिता परमात्मा।
- वह पारलौकिक फादर है।
- आत्मा याद करती है अपने परमपिता परमात्मा को।
- इस शरीर को जन्म देने वाला तो लौकिक फादर है और वह परमपिता परमात्मा है पारलौकिक फादर, आत्माओं का बाप।
- मनुष्य लक्ष्मी-नारायण की पूजा करते हैं, समझते भी हैं यह सतयुग में थे और राम-सीता त्रेता में थे।
- बाप आकर समझाते हैं - बच्चे, तुम मुझ पारलौकिक बाप को जन्म-जन्मान्तर याद करते आये हो।
- गॉड फादर तो जरूर निराकार हुआ ना।
- हमारी आत्मा भी निराकार है ना।
- यहाँ आकर साकार बनी है।
- यह थोड़ी-सी बात भी कोई की बुद्धि में नहीं आती।
- वह तुम्हारा बेहद का बाप रचयिता है।
- पुकारते हैं तुम मात-पिता........ आपके हम बनते हैं तो हम स्वर्ग के मालिक बनते हैं फिर आपको भूलने से नर्क के मालिक बन जाते हैं।
- अभी वह बाप इन द्वारा बैठ समझाते हैं - मैं रचयिता हूँ, यह मेरी रचना है, जिसका राज़ तुमको समझाता हूँ।
- यह भी समझ जाते हैं।
- आत्मा को किसी ने भी देखा नहीं है फिर क्यों कहते हैं अहम् आत्मा?
- यह तो समझते हैं ना - अहम् आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हूँ।
- महान् आत्मा, पुण्य आत्मा कहते हैं ना।
- निश्चय करते हैं - हम आत्मा हैं, यह हमारा शरीर है।
- शरीर विनाशी है, आत्मा अविनाशी है।
- उस परमपिता परमात्मा की सन्तान है।
- कितनी सहज बात है।
- परन्तु अच्छे-अच्छे बुद्धिवान समझ नहीं सकते।
- माया ने बुद्धि को ताला लगा दिया है।
- तुमको अपनी आत्मा का ही साक्षात्कार नहीं होता है।
- आत्मा ही अनेक जन्म लेती है ना।
- हर जन्म में बाप बदलता जाता है।
- तुम अपने को आत्मा निश्चय क्यों नहीं करते हो?
- कहते हैं आत्मा का साक्षात्कार हो।
- अरे, इतने जन्म कोई को बोला था क्या कि आत्मा का साक्षात्कार हो?
- कोई-कोई को आत्मा का साक्षात्कार होता भी है परन्तु समझ नहीं सकते।
- बाप को तुम जानते नहीं।
- बेहद के बाप बिगर आत्माओं को परमात्मा का साक्षात्कार भी कोई करा नहीं सकता।
- कहते हैं - हे भगवान्, तो बाप हुआ ना।
- तुमको दो बाप हैं - एक तो है विनाशी शरीर को जन्म देने वाला विनाशी बाप, दूसरा है अविनाशी आत्माओं का अविनाशी बाप।
- तुम गाते हो - तुम मात पिता........ उनको याद करते हो तो जरूर वह आया होगा ना।
- जगत अम्बा और जगत पिता बैठे हैं, राजयोग सीख रहे हैं।
- वैकुण्ठ में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, वह भी भारत में ही थे ना।
- मनुष्य समझते हैं ऊपर कहाँ स्वर्ग होगा।
- अरे, लक्ष्मी-नारायण का यहाँ यादगार है, जरूर यहाँ ही राज्य किया होगा।
- यह देलवाड़ा मन्दिर तुम्हारा अभी का यादगार बना हुआ है।
- तुम राजयोगी हो।
- अधरकुमार, कुमार कुमारियां सब यहाँ बैठे हो, उनका यादगार फिर भक्ति में बनता है।
- देलवाड़ा नाम का भी कोई अर्थ होगा ना।
- दिल लेने वाला कौन है?
- यह आदि देव और आदि देवी भी राजयोग सीख रहे हैं।
- यह भी याद करेंगे उस निराकार परमपिता परमात्मा को।
- वह है ऊंच ते ऊंच ज्ञान सागर।
- इस आदि देव के शरीर में बैठ सब बच्चों को समझाते हैं।
- यह मन्दिर कब बना, क्यों बना, किन्हों का यह यादगार है?
- कुछ भी जानते नहीं।
- देवियों आदि के कितने नाम लेते हैं।
- काली, दुर्गा, अन्नपूर्णा... अब सारे विश्व की अन्नपूर्णा कौन होगी?
- कौन-सी देवियाँ अन्न की पूर्ति करती हैं, तुम जानते हो?
- भारत स्वर्ग था, वहाँ तो अथाह वैभव रहते हैं
- जबकि अभी ही 80-90 वर्ष पहले 10-12 आने मण अनाज मिलता था तो उससे पहले कितनी सस्ताई होगी।
- सतयुग में तो अनाज आदि बहुत सस्ता अच्छा होता है।
- परन्तु यह भी कोई समझते नहीं।
- बाप आकर तुम आत्माओं को पढ़ाते हैं।
- आत्मा इन कर्मेन्द्रियों से सुनती है।
- आत्मा को यह आंखे मिली हैं देखने के लिए, कान मिले हैं सुनने के लिए।
- बाप कहते हैं मैं निराकार भी इस शरीर का आधार लेता हूँ।
- मुझे सदैव शिव ही कहते हैं।
- मनुष्यों ने बहुत नाम रखे हैं - रूद्र, शिव, सोमनाथ........ परन्तु मेरा एक ही नाम शिव है।
- शिवाए नम:, भक्त भगवान् को याद करते आये हैं।
- उनको 2500 वर्ष हुए हैं।
- भक्ति मार्ग में पहले अव्यभिचारी भक्ति थी।
- अभी तो तुमने ठिक्कर-भित्तर में डाल दिया है।
- अभी इस भक्ति का अन्त हैं।
- सबको वापिस ले जाने मैं आया हूँ।
- यह पुरानी दुनिया ख़त्म होनी है।
- बाम्ब्स बने हुए हैं तो कितने में सब ख़लास हो जायेंगे।
- सतयुग में कितने थोड़े सिर्फ 9 लाख होंगे।
- बाकी इतने सब कहाँ जायेंगे?
- यह लड़ाई अर्थक्वेक आदि होगी।
- विनाश तो जरूर होना है।
- यह है प्रजापिता, कितने ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं।
- ब्रह्मा का बाप कौन है?
- निराकार शिव।
- हम उनके पोत्रे-पोत्रियां हैं।
- शिव-बाबा से हम वर्सा लेते हैं।
- तो उनको ही याद करना है।
- याद से ही पापों का बोझा उतरेगा।
- तुम जानते हो यह है ही विशश, पतित दुनिया।
- सतयुग है वाइसलेस दुनिया।
- वहाँ विष (विकार) होता नहीं।
- कायदे अनुसार एक ही बच्चा होता है।
- कभी अकाले मृत्यु नहीं होती है।
- है ही सुखधाम।
- यहाँ तो कितना दु:ख है।
- परन्तु यह बातें कोई भी जानते नहीं।
- गीता सुनाते हैं, श्रीमत भगवत गीता, भगवानुवाच।
- अच्छा, भगवान् कौन है?
- कह देते श्रीकृष्ण।
- अरे, वह तो छोटा बच्चा है, वह कैसे राजयोग सिखलायेगा?
- उस समय पतित दुनिया थोड़ेही है।
- सद्गति के लिए राजयोग सिखलाने वाला तो यहाँ चाहिए।
- गीता में लिखा हुआ भी है रूद्र गीता ज्ञान यज्ञ।
- श्रीकृष्ण गीता ज्ञान यज्ञ तो है नहीं।
- यह ज्ञान यज्ञ कितने वर्षों से चलता आ रहा है, इनकी समाप्ति कब होगी?
- जब सारी सृष्टि इसमें स्वाहा होगी।
- यज्ञ जब समाप्त होता है तो उसमें सब कुछ स्वाहा करते हैं ना।
- यह यज्ञ भी अन्त तक चलता रहेगा।
- यह पुरानी दुनिया ख़त्म होने वाली है।
- बाप कहते हैं मैं कालों का काल हूँ, सबको लेने लिए आया हूँ।
- तुमको पढ़ा रहा हूँ कि तुम स्वर्ग के मालिक बनो।
- तुम जानते हो इस समय सभी मनुष्यमात्र हैं सदा दुर्भाग्य-शाली, सतयुग में थे सदा सौभाग्यशाली
- - यह फ़र्क सबको समझाना है।
- यहाँ आते हैं तो अच्छी रीति समझते हैं फिर घर जाते हैं तो सब ख़लास हो जाता।
- जैसे गर्भजेल में अंजाम (वायदा) कर आते हैं - हम पाप नहीं करेंगे।
- बाहर निकलते हैं तो फिर पाप करने लग पड़ते हैं।
- जेल बर्ड होते हैं ना।
- इस समय जो भी मनुष्य मात्र हैं सब जेल बर्ड हैं।
- घड़ी-घड़ी गर्भजेल में जाकर सजायें खाते हैं।
- बाप कहते हैं - अभी तुमको गर्भजेल बर्ड बनने से छुड़ाते हैं।
- सतयुग में गर्भ को जेल नहीं कहेंगे।
- तुमको इन सजाओं से बचाने आया हूँ।
- अब मुझे याद करो, कोई भी पाप नहीं करो, नष्टोमोहा बनो।
- गाते हैं मेरा तो एक दूसरा न कोई........ यह कोई श्रीकृष्ण की बात नहीं है।
- श्रीकृष्ण तो 84 जन्म ले अब आकर ब्रह्मा बना है फिर वही श्रीकृष्ण बनना है, इसलिए इस शरीर में ही प्रवेश किया है।
- यह बना बनाया ड्रामा है।
- अभी भगवान् यह सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी राजधानी स्थापन कर रहे हैं।
- तुम्हारी भविष्य के लिए प्रालब्ध बनाते हैं।
- अभी तुम पुरुषार्थ कर अनेक जन्मों की प्रालब्ध बना रहे हो बेहद के बाप द्वारा, जो बाप स्वर्ग का रचयिता है।
- यह बातें समझने की हैं।
- ड्रामा में हर एक एक्टर का अपना-अपना पार्ट है।
- इसमें हम क्यों रोयें पीटें?
- हम जीते जी उस एक बाप को याद करते हैं।
- इस शरीर की भी हमको परवाह नहीं है।
- यह पुराना शरीर छूटे और हम बाबा के पास जायें।
- इस समय तुम भारत की कितनी सेवा करते हो।
- तुम्हारे ही नाम गाये हुए हैं - अन्नपूर्णा, दुर्गा, काली आदि-आदि।
- बाकी काली कोई ऐसी भयानक शक्ल वाली वा गणेश सूँढ़ वाला थोड़ेही होता है।
- मनुष्य तो मनुष्य ही होते हैं।
- अब बाप समझाते हैं मैं तुम बच्चों को इन लक्ष्मी-नारायण जैसा बना रहा हूँ।
- तुम निश्चय करो हम बाबा से वर्सा ले रहे हैं फिर भविष्य में जाकर प्रिन्स-प्रिन्सेज बनेंगे।
- बाप जो स्वर्ग का रचयिता है, उनको कोई भी नहीं जानते।
- जगदम्बा को भी भूल गये हैं।
- जिसका मन्दिर बना हुआ है - अभी वह चैतन्य में बैठे हैं।
- कलियुग के बाद फिर सतयुग होना है।
- विनाश के लिए मनुष्य पूछते हैं।
- अरे, पहले तुम पढ़कर होशियार तो हो जाओ।
- महाभारत लड़ाई तो बरोबर हुई थी, जिसके बाद ही स्वर्ग के द्वार खुले थे।
- तो अब इन माताओं द्वारा स्वर्ग के द्वार खुल रहे हैं।
- वन्दे मातरम् गाते हैं ना।
- पावन की ही वन्दना की जाती है।
- मातायें दो प्रकार की हैं - एक हैं जिस्मानी सोशल वर्कर, दूसरी हैं रूहानी सोशल वर्कर।
- तुम्हारी है यह रूहानी यात्रा।
- तुम जानते हो हम यह शरीर छोड़ वापस जाने वाले हैं।
- भगवानुवाच - मनमनाभव।
- मुझ अपने बाप को याद करो।
- श्रीकृष्ण बच्चा तो ऐसे नहीं कहेंगे ना।
- उनको तो अपना बाप है।
- मनमनाभव का अर्थ कोई भी नहीं जानते।
- यह तो बाप कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और उड़ने के पंख मिल जायेंगे।
- अभी तुम पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बनते हो।
- रचता बाप तो सबका एक ही है।
- आदि देव और आदि देवी के मन्दिर भी हैं।
- तुम उनके बच्चे यहाँ राजयोग सीख रहे हो।
- यहाँ ही तुमने तपस्या की थी, तुम्हारा यादगार सामने खड़ा है।
- लक्ष्मी-नारायण आदि को राजाई कैसे मिली, उनका यह मन्दिर है।
- तुम हो राजऋषि।
- राजाई प्राप्त करने वा भारत का फिर से राज्य-भाग्य पाने लिए तुम पुरुषार्थ कर रहे हो।
- तुम भारत में स्वर्ग की राजाई स्थापन करते हो, अपने तन-मन-धन से सेवा करके।
- बाप की श्रीमत द्वारा तुम पतित रावण राज्य से सबको लिबरेट करते हो।
- बाप है लिबरेटर, दु:ख हर्ता, सुख कर्ता।
- तुम्हारे दु:ख हरने के लिए पुरानी दुनिया का विनाश कराते हैं।
- तुमको दुश्मन पर विजय पहनाते हैं, तो तुम मायाजीत-जगतजीत बनेंगे।
- तुम कल्प-कल्प राज्य लेते हो और फिर गवाँते हो।
- यह है रूद्र शिव का ज्ञान यज्ञ, जिससे यह विनाश ज्वाला निकली है।
- वह सब विनाश हो जायेंगे और तुम सदा सुखी बन जायेंगे।
- दु:ख शुरू होता है द्वापर से।
- बाप कहते हैं - मैं आकर नर्कवासियों को स्वर्गवासी बनाता हूँ।
- कलियुग है वेश्यालय, सतयुग है शिवालय।
- तुम बेहद के बाप से स्वर्ग के मालिक बनते हो तो यह खुशी का पारा चढ़ना चाहिए ना। अच्छा!
- मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
1) जीते जी बाप को याद कर वर्से का अधिकार लेना है, किसी भी बात की परवाह नहीं करनी है।
2) श्रीमत पर अपने तन-मन-धन से भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा करनी है और सबको रावण से लिबरेट होने की युक्ति बतानी है।
योग ज्वाला द्वारा विश्व के किचड़े को भस्म करने वाले विश्व परिवर्तक भव
योग ज्वाला अर्थात् श्रेष्ठ संकल्पों की शक्ति व लगन की अग्नि द्वारा ही अपवित्रता रूपी किचड़े को भस्म कर सकते हो। जैसे देवियों के यादगार में दिखाते हैं कि ज्वाला से आसुरी शक्तियों को खत्म कर दिया। यह यादगार अभी का है। तो पहले ज्वाला रूप बन आसुरी संस्कार, स्वभाव सब कुछ भस्म कर सम्पूर्ण पावन बनो तब योग और पवित्रता की ज्वाला से विश्व के किचड़े को भस्म कर विश्व परिवर्तन के निमित्त बनेंगे।
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