27-08-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 16.11.95 "बापदादा" मधुबन


“बापदादा की चाहना - डायमण्ड जुबली वर्ष को लगाव मुक्त वर्ष के रूप में मनाओ''

  • आज बापदादा सदा दिल से बाप की याद में रहने वाले अपने स्नेही, सहयोगी बच्चों से मिलने आये हैं। जितना बच्चों का स्नेह है उतना बाप का भी स्नेह बच्चों से है। बाप सभी बच्चों को एक जैसा अति स्नेह देते हैं। लेकिन बच्चे अपने-अपने शक्ति अनुसार स्नेह को धारण करते हैं इसीलिए बाप को भी कहना पड़ता है नम्बरवार याद-प्यार। लेकिन बाप सभी बच्चों को नम्बरवन दिल का प्यार अमृतवेले से लेकर देते हैं इसलिए अमृतवेला विशेष बच्चों के लिए ही रखा हुआ है क्योंकि अमृत-वेला सारे दिन का आदि समय है। तो जो बच्चे आदि समय पर बाप का स्नेह दिल में धारण कर लेते हैं तो दिल में परमात्म स्नेह समाया हुआ होने के कारण और कोई स्नेह आकर्षित नहीं करता है। अगर अपने स्थिति अनुसार पूरा दिल भर करके दिल में स्नेह नहीं धारण करते, थोड़ा भी खाली है, अधूरा लिया है तो दिल में जगह होने के कारण माया भिन्न-भिन्न रूप से अनेक स्नेह, चाहे व्यक्ति, चाहे वैभव - दोनों रूप में उन स्नेहों में आकर्षित कर लेती है। कई बच्चे बापदादा से कहते हैं कि हमारे पास अभी तक भी माया क्यों आती है? जब मास्टर सर्वशक्तिमान् बन गये तो माया के आने का क्वेश्चन ही नहीं है। लेकिन कारण है कि आदिकाल अमृतवेले अपने दिल में परमात्म स्नेह सम्पूर्ण रूप से धारण नहीं करते। अगर कोई भी चीज़ अधूरी भरी हुई है, कहाँ भी खाली है तो हलचल तो होगी ना! बैठते भी हो, उठते भी हो, लक्ष्य भी है और कहते भी हो कि एक बाप, दूसरा न कोई... यह दिल से कहते हो या मुख से? तो फिर दिल में और आकर्षण का कारण क्या है? जरूर कहाँ और व्यक्ति या वैभव की तरफ स्नेह जाता है तब वो आकर्षित करती है। दिल में सम्पूर्ण परमात्म प्यार पूरा भरा हुआ नहीं होता है। आप सोचो - अगर एक हाथ में आपको कोई हीरा देवे और दूसरे हाथ में मिट्टी का गोला देवे तो आपकी आकर्षण कहाँ जायेगी? हीरे में जायेगी, मिट्टी में नहीं! मिट्टी से भी खेलना तो अच्छा होता है ना! तो व्यर्थ संकल्प ये भी क्या है? हीरा है या मिट्टी है? तो मिट्टी से खेलते तो हो ना! आदत पड़ी हुई है इसीलिए! व्यक्ति भी क्या है? मिट्टी है ना! मिट्टी मिट्टी में मिल जाती है। देखने में आपको बहुत सुन्दर आता है, चाहे सूरत से, चाहे कोई विशेषता से, चाहे कोई गुण से, तो कहते हैं कि और मुझे कोई लगाव नहीं है, स्नेह नहीं है लेकिन इनका ये गुण बहुत अच्छा है। तो गुण का प्रभाव थोड़ा पड़ जाता है या कहते हैं कि इसमें सेवा की विशेषता बहुत है तो सेवा की विशेषता के कारण थोड़ा सा स्नेह है, शब्द नहीं कहेंगे लेकिन अगर विशेष किसी भी व्यक्ति के तरफ या वैभव के तरफ बार-बार संकल्प भी जाता है - ये होता तो बहुत अच्छा... ये भी आकर्षण है। व्यक्ति के सेवा की विशेषता का दाता कौन? वो व्यक्ति या बाप देता है? कौन देता है? तो व्यक्ति बहुत अच्छा है, अच्छा है वो ठीक है लेकिन जब कोई भी विशेषता को देखते हैं, गुणों को देखते हैं, सेवा को देखते हैं तो दाता को नहीं भूलो। वह व्यक्ति भी लेवता है, दाता नहीं है। बिना बाप का बने उस व्यक्ति में ये सेवा का गुण या विशेषता आ सकती है? या वह विशेषता अज्ञान से ही ले आता है? ईश्वरीय सेवा की विशेषता अज्ञान में नहीं हो सकती। अगर अज्ञान में भी कोई विशेषता या गुण है भी लेकिन ज्ञान में आने के बाद उस गुण वा विशेषता में ज्ञान नहीं भरा तो वो विशेषता वा गुण ज्ञान मार्ग के बाद इतनी सेवा नहीं कर सकता। नेचरल गुण में भी ज्ञान भरना ही पड़ेगा। तो ज्ञान भरने वाला कौन? बाप। तो किसकी देन हुई, दाता कौन? तो आपको लेवता अच्छा लगता है या दाता अच्छा लगता है? तो लेवता के पीछे क्यों भागते हो? बाप के आगे या दादियों के आगे बहुत मीठा-मीठा बोलते हैं, कहेंगे दादी मेरा कुछ लगाव नहीं, बिल्कुल नहीं, सिर्फ सेवा के कारण थोड़ा सा है। थोड़ा सा कहकर अपने को छुड़ा लेते हैं। लेकिन ये लगाव चाहे गुण का हो, चाहे सेवा का हो लेकिन लगाव आज नहीं तो कल कहाँ ले जायेगा? कोई को तो लगाव पुरानी दुनिया तक भी ले जाता है लेकिन मैजारिटी पुरानी दुनिया तक नहीं जाते हैं, थोड़े जाते हैं। मैजारिटी को लगाव पुरुषार्थ में अलबेलेपन की तरफ ले जाता है। फिर सोचते हैं कि ये तो थोड़ा-बहुत होता ही है फिर बाप को भी समझाने लगते हैं - कहते हैं बाबा आप तो साकार में हो नहीं, ब्रह्मा बाबा भी अव्यक्त हो गया और आप तो हो ही बिन्दी, ज्योति। अभी हम तो साकार में हैं, इतना मोटा-ताजा शरीर है और शरीर से सब करना है, चलना है, तो हम हैं साकार और आप आकार और निराकार हो, अभी साकार में कोई तो चाहिए ना! अच्छा बहुत नहीं, एक तो चाहिए ना! एक भी नहीं चाहिए? देखना बापदादा तो कहते हैं एक चाहिए। नहीं चाहिए? (एक बाबा चाहिए) बाप तो है ही लेकिन कई बार मन में कई बातें आ जाती है और मन भारी हो जाता है, जब तक मन को हल्का नहीं करते हैं तो योग भी नहीं लगता। फिर क्या करें? बाप का भी क्वेश्चन है कि ऐसे टाइम पर क्या करें? मन भारी है और योग लगता नहीं है तो क्या करें? उल्टी नहीं करे, अन्दर ही मचलता रहे? डॉक्टर्स लोग क्या कहते हैं? अगर पेट भारी हो जाये तो उल्टी करके निकालनी चाहिए या अन्दर ही रखनी चाहिए? डॉक्टर्स क्या कहते हैं? उल्टी करनी चाहिए ना? तो डॉक्टर भी कहते हैं उल्टी करनी चाहिए। अच्छा। ये तो हुआ तन का डॉक्टर और आप सभी मन के डॉक्टर हो। तो तन वाले ने अपना जवाब दिया, अभी मन के डॉक्टर बताओ - अगर मन में कोई उलझन हो तो कहाँ उल्टी करें? बाबा के सामने उल्टी करेंगे! (बाबा के कमरे में जाकर करें) कमरे में उल्टियाँ करके आवे! सोचो! बाप के आगे उल्टी करेंगे? नहीं तो कहाँ करे? कोई स्थान तो बताओ ना? बापदादा तो बच्चों का तरफ लेता है कि उस समय तो कोई चाहिए जरूर। (बाबा को सुनायें) अगर बाप सुनता ही नहीं, तो क्या करें? कई बच्चों की कम्पलेन्ट है ना कि हमने तो बाबा को सुनाया, बाबा ने सुना ही नहीं, जवाब ही नहीं दिया। फिर क्या करें? वास्तव में अगर दिल में परमात्म प्यार, परमात्म शक्तियाँ, परमात्म ज्ञान फुल है, ज़रा भी खाली नहीं है तो कभी भी किसी भी तरफ लगाव या स्नेह जा नहीं सकता। कई कहते हैं लगाव नहीं है लेकिन सिर्फ अच्छा लगता है तो इसको कौन सी लाइन कहेंगे? लगाव नहीं है, अच्छा लगता है तो ये क्या है? इतनी छुट्टी दें कि अच्छा भले लगे, लगाव नहीं है, उनसे बैठना, उनसे बात करना, उनसे सेवा कराना वो अच्छा लगता है, तो ये छुट्टी दें? जो समझते हैं थोड़ी-थोड़ी देनी चाहिए, अभी सम्पूर्ण तो बने नहीं है, पुरुषार्थ कर रहे हैं, थोड़ी छुट्टी होनी चाहिए! वह हाथ उठायें। अभी हाथ तो उठायेंगे नहीं, क्योंकि शर्म आयेगी ना! लेकिन अगर आप समझते हो कि थोड़ी सी छुट्टी होनी चाहिए तो दादी को प्रायवेट चिटकी लिखकर दे देना। ऐसे नहीं कहना कि दादी पांच मिनट बात करना है, इसमें तो फिर टाइम चाहिए। चिटकी में लिख दो तो बापदादा उनका अच्छा संगठन करेंगे। और ही अच्छा हो जायेगा ना! अच्छा, अभी सब ना कर रहे हैं और सभी का वीडियो निकल रहा है। यदि ना करके फिर करेंगे तो वो कैसेट भेजेंगे कि आपने ना किया था फिर क्यों किया? भेजनी पड़ेगी या सेफ रहेंगे? पक्का या थोड़ा-थोड़ा कच्चा, थोड़ा-थोड़ा पक्का! उस दिन भी सुनाया कि ये सीज़न डायमण्ड जुबली का आरम्भ करने वाली है तो इस सीज़न में आप लोगों ने तो कॉन्फ्रेन्स का, भाषणों का, मेलों का बहुत प्रोग्राम बनाया है लेकिन बापदादा विशेष इस डायमण्ड जुबली में एक प्रोग्राम बनाना चाहते हैं, तैयार हो? बापदादा चाहते हैं कि डायमण्ड जुबली में जिस बच्चे को देखें - चाहे दो वर्ष का है, चाहे साठ वर्ष का है, चाहे दो मास का है, चाहे टीचर है, चाहे स्टूडेण्ट है, चाहे समर्पण है, चाहे प्रवृत्ति में है लेकिन डायमण्ड जुबली के वर्ष में, ये जो बाप के साथ आप सबने भी पान का बीड़ा उठाया है कि पवित्रता द्वारा हम प्रकृति को भी पावन करेंगे। तो ये संकल्प है या बाप को करना है? बाप के साथी हैं? थोड़ा सा हाथ ऐसे रख देते हैं, चतुराई करते हैं। ऐसे नहीं करना। तो बापदादा चाहते हैं कि सारे विश्व में हर एक बच्चा लगाव मुक्त बने - चाहे साधनों से, चाहे व्यक्ति से। साधनों से भी लगाव नहीं। यूज़ करना और चीज़ है और लगाव अलग चीज़ है। तो बापदादा लगाव-मुक्त वर्ष मनाने चाहते हैं। ये फंक्शन करना चाहते हैं। तो इस फंक्शन में आप लोग साथी बनेंगे? फिर ये तो नहीं कहेंगे कि यह कारण हो गया! कोई भी कारण हो, चाहे हिमालय का पहाड़ भी गिर जाये, लेकिन आप उस हिमालय के पहाड़ से भी किनारे निकल आओ। इतनी हिम्मत है? पहले टीचर्स बोलो। स्टूडेण्ट खुश होते हैं कि हमारी टीचर्स को बापदादा कहता है। और टीचर्स तो सहयोग के लिए सदा साथी हैं ही ना क्योंकि आगे चलकर आजकल की दुनिया में ये सभी जो भी अपने को धर्म आत्मा, महान आत्मा कहलाते हैं उन्हों की भी पवित्रता के फाउण्डेशन हिलेंगे। और ऐसे टाइम पर आदि में जब ब्रह्मा बाप निमित्त बने तो गाली किस बात के कारण खाई? पवित्रता के कारण ना। नहीं तो कोई बड़े आयु वाले की भी हिम्मत नहीं थी जो ब्रह्मा बाप के पास्ट लाइफ में भी कोई अंगुली उठाए। ऐसी पर्सनालिटी थी। लेकिन पवित्रता के कारण गाली खानी पड़ी। और इस परमात्म ज्ञान की नवीनता ही पवित्रता है। फलक से कहते हैं ना कि आग-कपूस इकट्ठा रहते भी आग नहीं लग सकती। चैलेन्ज है ना! जो युगल हैं वो हाथ उठाओ। तो आप सभी युगलों की ये चैलेन्ज है या थोड़ी-थोड़ी आग लगेगी फिर बुझा देंगे? वर्ल्ड को चैलेन्ज है ना! सारे विश्व को आप लोग भाषणों में कहते हो कि पवित्रता के बिना योगी तू आत्मा, ज्ञानी तू आत्मा बन ही नहीं सकते। ये आप सबकी चैलेन्ज है ना? जो युगल समझते हैं कि मेरी ये चैलेन्ज है वो हाथ उठाओ। अच्छा है - एक ही ग्रुप में साथी तो बहुत हैं। तो डायमण्ड जुबली में क्या करेंगे? लगाव मुक्त। क्रोधमुक्त का किया ना। थोड़ा-थोड़ा क्रोध तो बापदादा ने भी कइयों में देखा, लेकिन इस बारी थोड़ा का छोड़ दिया। फिर भी चाहे देश, चाहे विदेश में जिन्होंने अटेन्शन रखा और सम्पूर्ण रूप से क्रोध मुक्त जीवन का प्रैक्टिकल में अनुभव किया, करके दिखाया, उन सबको बापदादा पद्मगुणा से भी ज्यादा मुबारक देते हैं क्योंकि इस समय चाहे विदेश वाले, चाहे देश वाले, सबके बुद्धि रूपी टेलीफोन यहाँ मधुबन में लगे हुए हैं। अभी सबका कनेक्शन मधुबन में है। तो सभी ने यह अनुभव तो किया ही होगा कि जिन्हों ने अच्छी तरह से दृढ़ संकल्प किया - उन्हों को बापदादा की तरफ से विशेष एक्स्ट्रा मदद भी मिली है। तो ऐसे नहीं समझना कि एक साल तो क्रोध को खत्म किया, अभी तो फ्री हैं। नहीं। अगर सम्पूर्ण लगाव मुक्त अनुभव करेंगे तो क्रोध मुक्त ऑटोमेटिकली हो जायेंगे। क्यों? क्रोध भी क्यों होता है? जिस बात को, जिस चीज़ को आप चाहते हो और वो पूर्ण नहीं होता है या प्राप्त नहीं होता है तो क्रोध आता है ना! क्रोध का कारण - आपके जो संकल्प हैं वो चाहे उल्टे हों, चाहे सुल्टे हों लेकिन पूर्ण नहीं होंगे - तो क्रोध आयेगा। मानो आप चाहते हो कि कॉन्फ्रेन्स होती है, फंक्शन होते हैं तो उसमें हमारा भी पार्ट होना चाहिए। आखिर भी हम लोगों को कब चांस मिलेगा? आपकी इच्छा है और आप इशारा भी करते हैं लेकिन आपको चांस नहीं मिलता है तो उस समय चिड़चिड़ापन आता है कि नहीं आता है? चलो, महोध नहीं भी करो, लेकिन जिसने ना की उनके प्रति व्यर्थ संकल्प भी चलेंगे ना? तो वह पवित्रता तो नहीं हुई। ऑफर करना, विचार देना इसके लिए छुट्टी है लेकिन विचार के पीछे उस विचार को इच्छा के रूप में बदली नहीं करो। जब संकल्प इच्छा के रूप में बदलता है तब चिड़चिड़ापन भी आता है, मुख से भी क्रोध होता है वा हाथ पांव भी चलता है। हाथ पांव चलाना - वह हुआ महोध। लेकिन नि:स्वार्थ होकर विचार दो, स्वार्थ रखकर नहीं कि मैंने कहा तो होना ही चाहिए - ये नहीं सोचो। ऑफर भले करो, ये राँग नहीं है। लेकिन क्यों-क्या में नहीं जाओ। नहीं तो ईर्ष्या, घृणा - ये एक-एक साथी आता है इसलिए अगर पवित्रता का नियम पक्का किया, लगाव मुक्त हो गये तो यह भी लगाव नहीं रखेंगे कि होना ही चाहिए। होना ही चाहिए, नहीं। ऑफर किया ठीक, आपकी नि:स्वार्थ ऑफर जल्दी पहुँचेगी। स्वार्थ या ईर्ष्या के वश ऑफर और क्रोध पैदा करेगी। तो टीचर्स क्या करेंगी? 100 परसेन्ट लगाव मुक्त। बोलो हाँ या ना? फॉरेनर्स बोलो, हाँ जी। ऐसे ही डायमण्ड जुबली नहीं मनानी है। डायमण्ड जुबली में कुछ नवीनता दिखानी है। जो गवर्नमेंट की आंख खुले कि ये क्या है! किसी कार्य में वो ना कर नहीं सके। और ही ऑफर करें, जैसे यहाँ जब महामण्डलेश्वर आये थे तो उन्हों ने क्या ऑफर की? कि हमारे आश्रम ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारियाँ चलायें। ऐसे मांगनी की थी ना! तो सभी डिपार्टमेन्ट ऑफर करें कि हमारे डिपार्टमेन्ट में आप लोग ही कर सकते हैं। ऐसा प्रैक्टिकल स्वरूप करना - ये है डायमण्ड जुबली। लेकिन पहला वायदा याद है? क्या बनना है? (लगाव मुक्त) तभी ये सभी हो सकता है। अभी भी बच्चे को मारते रहेंगे तो बच्चा कैसे अच्छा होगा। और आपस में कमज़ोर होते रहेंगे तो महात्मा कैसे चरणों में आयेंगे। जितना-जितना पवित्रता के पिल्लर को पक्का करेंगे उतना-उतना ये पवित्रता का पिल्लर लाइट हाउस का काम करेगा। अच्छा। चारों ओर के दिल में समाये हुए बापदादा के सिकीलधे श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा बाप के हर एक फरमान मानने से, स्वयं का और औरों का भी अरमान समर्पित कराने वाले, सदा पवित्रता के पिल्लर को मज़बूत बनाने वाले और पवित्रता की लाइट, लाइट हाउस बन फैलाने वाले विशेष आत्माओं को, सदा स्वयं को लगाव-मुक्त बनाने वाले बाप के समीप आने वाले, रहने वाले सभी बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते। विदेश में रहने वाले चारों ओर के बच्चों को बापदादा का विशेष याद-प्यार क्योंकि वो यादप्यार के पत्र सदा ही भेजते रहते हैं। जिन्हों ने पत्र भेजा है उन्हों को भी विशेष याद और जिन्हों ने दिल से याद प्यार भेजा है उन्हों को भी विशेष याद-प्यार।

  • ( All Blessings of 2021-22)
  • निश्चयबुद्धि बन हलचल में भी अचल रहने वाले विजयी रत्न भव

    निश्चय और विजय - यह एक दो के पक्के साथी हैं। जहाँ निश्चय है वहाँ विजय जरूर है ही, क्योंकि निश्चय है कि बाप सर्वशक्तिमान है और मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ तो विजय कहाँ जायेगी? ऐसे निश्चयबुद्धि की कभी हार हो नहीं सकती। निश्चय का फाउण्डेशन पक्का है तो कोई तूफान हिला नहीं सकता। हलचल में भी अचल रहना - इसको कहा जाता है निश्चयबुद्धि विजयी रत्न। लेकिन सिर्फ बाप में निश्चय नहीं, स्वयं में और ड्रामा में भी निश्चय हो।


  • (All Slogans of 2021-22)
    • उड़ता पंछी वह है जो देह के सब रिश्तों से मुक्त रह फरिश्ता बनने का पुरुषार्थ करता है।

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