16-08-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - दूरादेशी और विशालबुद्धि बनो, शिवबाबा के कार्य में कभी डिस्टर्ब नहीं करना, डिस्टर्ब करने वालों को ऊंच पद नहीं मिल सकता''

प्रश्नः-

इस दुनिया में मनुष्यों को कौन से ख्यालात रहते हैं जो सतयुगी देवताओं को कभी नहीं आयेंगे?

 

उत्तर:-

यहाँ मनुष्य समझते हैं कि हम कमायेंगे तो हमारे पुत्र और पोत्रे खायेंगे लेकिन यह ख्यालात देवताओं में नहीं होंगे क्योंकि उनके पुत्र और पोत्रे सब यहाँ से ही वर्सा लेकर जाते हैं। वह समझते हैं हमारी अविनाशी राजाई है। यहाँ ही हरेक अपना-अपना पुरुषार्थ कर रहे हैं।

गीत:-माता ओ माता...

  • ओम् शान्ति। बच्चों ने माताओं की महिमा सुनी। बच्चे जान चुके हैं किस-किस माता की महिमा होती है। माताओं की इतनी महिमा करते हैं, तो जरूर होकर गयी हैं। अभी तो वह है नहीं। जो जगत अम्बा होकर गई है उनकी भक्ति मार्ग में महिमा होती है। अब वह क्या करके गयी - यह तुम भी नहीं जानते थे। जगत अम्बा के मन्दिर में जाते हैं, जाकर उनसे कुछ न कुछ मांगते हैं। कोई को बच्चे की आश होगी, कोई आशीर्वाद मांगेंगे। अब जड़ चित्र तो कुछ कर नहीं सकते, न वह समझते हैं परन्तु यह है भक्ति। तुम जानते हो वह पास्ट हो गये हैं। जगत अम्बा की महिमा है। एक तो नहीं है, तुम सब ब्राह्मण कुल की पालना करते हो, फिर दैवी कुल की पालना करेंगे। तुम इस समय जैसे कि सारे जगत की पालना करते हो परन्तु कोई जानते नहीं। चण्डिका देवी का भी मेला लगता है। चण्डिका नाम देखो कितना छी-छी है! बाबा कहते हैं जो आश्चर्यवत् भागन्ती हो फ़ारकती देते हैं वह जाकर चण्डाल का जन्म पाते हैं। घर में चंचलता करते हैं तो उनको कहा जाता है ना - तुम तो चण्डी हो, चण्डाल हो। बरोबर तुम देखते हो शिवबाबा का बनकर फिर भी बहुत चंचलता करते हैं, चंचलता अर्थात् अवज्ञा करते हैं, शिवबाबा की सर्विस में डिस्टर्ब करते हैं तो अन्त में चले ही जाते हैं। कोई भी ब्रह्माकुमारी सेन्टर में होगी, कुछ चंचलता करेगी, किसको समझा नहीं सकेगी वा क्रोध करती होगी तो सब कहेंगे इनमें तो बहुत क्रोध है! अब चण्डिका एक तो नहीं, बहुत होती हैं। देवियों की महिमा भी है और फिर ऐसे जो चण्डिका आदि बनते हैं उनका भी गायन है। फिर भी ईश्वर के बने हैं। भल कोई चले जाते हैं फिर भी स्वर्ग में तो आयेंगे ना। मालिक तो बनेंगे ना। भल मालिक तो राजा-रानी ही बनते हैं लेकिन प्रजा भी कहेगी हम मालिक हैं। लोग कहते हैं ना हमारा भारत महान् है। आजकल तो गीत में भी गाते रहते हैं - भारत बहुत अच्छा था। अभी तुम बेहद के बाप के बच्चे बने हो। गोपी वल्लभ की गोप-गोपियां गाई हुई हैं। वल्लभ बाप को कहा जाता है। गाया भी जाता है एक गोपी वल्लभ की अनेक गोप-गोपियां। सतयुग में तो गोपिकाओं आदि की बात ही नहीं है। अभी तुम बच्चे विशाल दूरांदेशी बुद्धि बने हो। बुद्धि का ताला खुल गया है। इस जन्म की जीवन कहानी को तुम अच्छी रीति जानते हो। हर एक को नशा तो रहता है ना। अभी बिड़ला है, उनको अपने धन का नशा होगा। समझेंगे - मैं सबसे साहूकार हूँ। परन्तु तुम जानते हो - जो आज साहूकार हैं वह फिर गरीब बन जायेंगे। तुम्हारी और अन्य मनुष्यों की बुद्धि में रात-दिन का फ़र्क है। कोई को क्या नशा, कोई को क्या नशा रहता है - मैं फलाना हूँ, ऐसे हूँ.....। इनको (ब्रह्मा को) भी नशा था ना - मैं बड़ा जौहरी हूँ। अभी समझते हैं वह सभी नशे कौड़ी मिसल हैं। तुम बच्चों को कितना नशा चढ़ा हुआ है! वह समझते हैं हम कमा-येंगे फिर हमारे पुत्र-पोत्रे खायेंगे। यहाँ तो वह बात नहीं है। तुम जानते हो हम बेहद के बाप को जानकर उनसे वर्सा पा रहे हैं। जिसकी प्रालब्ध हम ही खुद जन्म बाई जन्म पद पायेंगे। पुत्र-पोत्रे आदि सब यहाँ पुरुषार्थ कर रहे हैं। ‘हमारे पौत्रे खायेंगे' - यह ख्यालात वहाँ नहीं रहती। समझते हैं अविनाशी राजाई है। यहाँ तो राजे लोग समझते हैं - पुत्र-पोत्रे खायेंगे। तुम अभी बाप से इतना वर्सा लेते हो, ऐसे कर्म करते हो जो 21 जन्म उसका फल मिलता रहता है, पुत्र-पौत्रों का ख्याल नहीं रहता। वे भी सब यहाँ ही वर्सा पाते हैं। तुमको कितना ज्ञान है, मनुष्य तो कुछ भी नहीं जानते। गॉड फादर, जिनको इतना याद करते हैं, जरूर उनसे इतना भारी सुख मिलता होगा। गाते हैं ना - हे परमपिता परमात्मा रहम करो। उनको परम आत्मा कहा जाता है, वह सुप्रीम है। जन्म-मरण रहित है इसलिए उनको परम आत्मा अर्थात् परमात्मा कहते हैं। सभी आत्माओं का रूप एक जैसा है। जैसा-जैसा पुरुषार्थ करते हैं वैसा पद पाते हैं। इनकी आत्मा अच्छा पढ़ती है तो नारायण बनती है। कोई फिर फेल होंगे तो राम बनेंगे। आत्मा ही बनती है ना। तुम्हारी आत्मा समझती है मैं परमपिता परमात्मा से राजयोग सीख रही हूँ। आत्मा फिर आकर नया चोला पहन पार्ट बजायेगी, नर से नारायण बनेगी। यह तुम बच्चों की बुद्धि में है नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। फिर यह ज्ञान प्राय: लोप हो जायेगा। वहाँ कोई पतित होगा नहीं। ज्ञान किसको देंगे? पतित-पावन को यहाँ याद करते हैं। अच्छा समझो गंगा पतित-पावनी है तो भी वह राजयोग तो नहीं सिखला सकती है, बाप तो राजयोग सिखलाते हैं ना। यह सारा ड्रामा का राज़ आदि से अन्त तक तुम बच्चों की बुद्धि में है। तुम सब पढ़ते तो एक ही क्लास में हो, लेकिन नम्बरवार हो। शुरू-शुरू में 300 की भट्ठी थी। गऊशाला में हजारों की अन्दाज़ में गऊयें हों तो कोई सम्भाल भी न सके। भट्ठी भी थोड़ों की बननी थी। उनमें से भी कई तो चल रहे हैं, कई टूट पड़े। कई बच्चे समझते हैं हम पहले से होते तो अच्छा था परन्तु ऐसे भी नहीं है। पुराने-पुराने कितने भागन्ती हो गये! 25-30 वर्ष वाले भी इतना नहीं याद रखते कि वह बेहद का बाप है, जिससे वर्सा पाते हैं। बाबा स्वर्ग का मालिक बनाते हैं, सेकेण्ड की बात है। बाप कहते हैं तुम मेरा बनने से स्वर्ग के मालिक बनेंगे। जीवनमुक्ति तो राजा-रानी भी पाते हैं, प्रजा भी पाती है। गाया हुआ है सेकेण्ड में जीवनमुक्ति। बच्चे जो पूरा पढ़ते नहीं हैं वह क्या करते होंगे? चंचलता। कोई-कोई बच्चे तो बड़े आज्ञाकारी होते हैं। बाप से भी अच्छा मर्तबा पा लेते हैं। बाप 100-200 कमाने वाला होगा, बच्चा लखपति बन जाता है। तो अलौकिक सम्बन्ध में भी ऐसे होता है - 7 रोज वाला बच्चा 25 वर्ष वाले से तीखा चला जाता है। नम्बरवार तो होते ही हैं। तुम वास्तव में सब सजनियां हो, एक साजन को याद करते हो। तुम जानते हो बाप आकर हमको सुखधाम का वर्सा देते हैं। लौकिक पति है फिर भी याद उनको करते हैं जो पतियों का पति है। पारलौकिक साज़न अमृत पिलाते हैं इसलिए उनको याद किया जाता है, फिर तुम स्वर्ग के मालिक बन जाते हो, फिर वहाँ कोई को याद नहीं करते। अभी के पुरुषार्थ से तुम 21 जन्म प्रालब्ध पाते हो। तुम्हारी बुद्धि कितनी खुली है! वह भी नम्बरवार, तो बादशाही भी नम्बरवार लेते हो। तुमको सब समझा दिया है। यहाँ अच्छी रीति पढ़ाई पढ़ने से तुम पद भी इतना ऊंच पायेंगे। नहीं तो अनपढ़े, पढ़े के आगे भरी ढोयेंगे। इसमें पुरुषार्थ बहुत अच्छी रीति करना है। अभी टाइम अच्छा है पुरुषार्थ के लिए। तुम जानते हो - जहाँ जीना है वहाँ ज्ञानामृत पीना है अथवा पढ़ते रहना है। सैपलिंग लगाते रहते हैं। कोई झट समझ जाते हैं तो समझा जाता है इनका पद तो अच्छा देखने में आता है, अच्छा नजदीक का फूल है, तन-मन-धन अर्पण कर बैठा है, सर्विस में अच्छा लग गया है। समझता है अपना समय जितना सर्विस में देंगे, उतना फायदा है। जैसे बाबा हम ज्ञान नेत्रहीन अंधों की लाठी बना है ऐसे हमें भी बनना है। तुम एक-दो की लाठी बनते जाते हो। अंधा बनाया है रावण ने। यह तुमको समझाया जाता है कि इस समय सारी दुनिया लंका है, सब शोक वाटिका में हैं। नाम रखा है अशोका होटल, वहाँ खूब मजे उड़ाते हैं। अभी तुम जानते हो बाबा आया हुआ है। महाभारत लड़ाई सामने खड़ी है। यह तो लगनी है जबकि घर के गेट्स खुलने हैं। द्वापर की तो बात ही नहीं। अभी तो घोर अन्धियारा है ना। ब्राह्मणों की रात अब पूरी हुई है, बाबा आया हुआ है। यह बातें तुम बच्चे ही जानते हो। स्कूल में पढ़ते हैं, कोई तो बहुत अच्छे मार्क्स लेते हैं, कोई फेल हो जाते हैं। फेल की निशानी है चन्द्रवंशी में चले जायेंगे। राम को क्षत्रिय की निशानी दी है। अर्थ नहीं समझते। लव-कुश की क्या-क्या बातें बैठ सुनाते हैं। कितने झूठे दोष बैठ लगाते हैं। गाते हैं - राम राजा, राम प्रजा, धर्म का उपकार है। फिर यह सब बातें कहाँ से आई? यह सब बातें समझने की हैं। तुम जानते हो यह नॉलेज नम्बरवार हमारी बुद्धि में है। स्टूडेन्ट को बहुत तीखा पुरुषार्थ करना चाहिए। हम गॉड फादरली स्टूडेन्ट हैं। टीचर को कौन नहीं याद करेंगे! हम हैं पतित-पावन गॉड फादरली स्टूडेन्ट, इसमें बाप, टीचर, सतगुरू तीनों ही आ जाते हैं। तुम सब सीतायें हो ना। रावण की शोक वाटिका में पड़े हो। इनकारपोरियल गॉड फादर इज़ ज्ञान सागर नॉलेजफुल। श्रीकृष्ण को अथवा लक्ष्मी-नारायण को ऐसे नहीं कहेंगे। उनकी महिमा ही न्यारी है। गीत में भी गाते हैं - उनकी महिमा अपरमअपार है, जो ऐसा बनाते हैं। तुम कहते हो - बाबा, हम आपसे पूरा वर्सा लेंगे। आप कितने मीठे हो, कितने प्यारे हो! लक्ष्मी-नारायण कितने मीठे, कितने प्यारे हैं! लक्ष्मी-नारायण के चित्र देखो, हमेशा मुस्कराहट वाले दिखाते हैं। तुम जानते हो देवतायें इस भारत में ही थे। अभी कहाँ है? तुम सबको बतला सकते हो कि यह उनका अन्तिम जन्म है। फिर से श्रीकृष्ण बनना है। अभी कृष्णपुरी स्थापन हो रही है। श्रीकृष्ण की आत्मा भी अभी राजयोग सीख रही है। तुम भी कृष्णपुरी में जाना चाहो तो राजयोग सीखो। लक्ष्मी-नारायण कहने से मनुष्य मूंझ जाते हैं। श्रीकृष्ण को झूले में झुलाते हैं। पूजा लक्ष्मी-नारायण की करते हैं। उन्हों का बाल चरित्र कुछ भी है नहीं। राधे-कृष्ण फिर कहाँ गये, क्या हुआ - कुछ भी पता नहीं है। राधे-कृष्ण कोई आपस में भाई-बहन नहीं थे। अभी राधे-कृष्ण का राज्य तो है नहीं। द्वापर में भी उन्हों की राजधानी का कुछ पता थोड़ेही है। तो यह सब बातें समझने के लिए बहुत अच्छी बुद्धि चाहिए। लिटरेचर बनाने में भी मेहनत लगती है। विष्णु के अलंकार दिखाते हैं परन्तु वास्तव में विष्णु के यह अलंकार होते नहीं। विष्णु वा लक्ष्मी-नारायण को शंख थोड़ेही है। तो हम क्या लिखें? मनुष्य तो कुछ भी समझ न सकें। शंख तो है तुम्हारे पास। तो अलंकार जरूर ब्राह्मणों को देना पड़े। कहेंगे यह ब्राह्मण फिर कहाँ से आये? समझ नहीं सकेंगे। तुम समझा सकते हो - हम ब्राह्मण स्वदर्शन चक्रधारी हैं। यह सब बातें समझाने में बड़ी ही विशाल बुद्धि चाहिए। प्रजा में जाने वाले मोटी बुद्धि समझ न सकें। समझाने में बड़ी ही डिफीकल्टी लगती है। बाबा लिखते भी हैं सिकीलधे स्वदर्शन चक्रधारी ब्रह्मा मुख वंशावली। परन्तु तुम्हारे पास अलंकार कहाँ हैं। चित्रों में देवियों को तीसरा नेत्र दिया है, लेकिन उनको तो तीसरा नेत्र है नहीं। तुम्हारी अब तीसरी आंख खुली है। तुम शक्तियों की महिमा है। जगत अम्बा है तो बच्चे भी साथ में होंगे। मैजारिटी माताओं की है। माताओं को ही ऊंच उठाते हैं। अच्छा!

  • मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) अपना समय सर्विस में सफल करना है। तन-मन-धन सब अर्पण कर जब तक जीना है पढ़ाई पढ़ते रहना है।

    2) आपस में एक-दो की ज्ञान से पालना करनी है। ऐसा कोई कार्य नहीं करना है जिससे बाप की अवज्ञा हो।

  • ( All Blessings of 2021-22)
  • अविनाशी अतीन्द्रिय सुख में रह सबको सुख देने और सुख लेने वाले मास्टर सुखदाता भव

    अतीन्द्रिय सुख अर्थात् आत्मिक सुख अविनाशी है। इन्द्रियां खुद ही विनाशी हैं तो उनसे प्राप्त सुख भी विनाशी होगा इसलिए सदा अतीन्द्रिय सुख में रहो तो दु:ख का नाम-निशान आ नहीं सकता। अगर दूसरा कोई आपको दु:ख देता है तो आप नहीं लो। आपका स्लोगन है - सुख दो, सुख लो। न दु:ख दो, न दु:ख लो। कोई दु:ख दे तो उसे परिवर्तन कर आप सुख दे दो, उसको भी सुखी बना दो तब कहेंगे मास्टर सुखदाता।

  • (All Slogans of 2021-22)
    • अधिक बोलकर एनर्जी गंवाने के बजाए अन्तर्मुखता के रस के अनुभवी बनो।

    How many countries watching the Channel of BK Naresh Bhai?

    Click to Know Brahma Kumaris Centre Near You

    BK Naresh Bhai's present residence cum workplace