28-07-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - पावन बनने के लिए अपने स्वधर्म में रहो और अशरीरी बन एक बाप को याद करो''

प्रश्नः-

किस विधि से नये स्टूडेन्ट्स पर ज्ञान का रंग लग सकता है?

 

उत्तर:-

उन्हें पहले-पहले सात रोज़ की भट्ठी में बिठाओ। कायदा है - जब कोई भी आता है तो उनसे फार्म भराओ। पहले सात रोज़ भट्ठी में पड़े तब पूरा रंग लगे। तुम भ्रमरियां ज्ञान की भूँ-भूँ कर आप समान बनाती हो। तुम जानती हो - अभी देवता धर्म की सैपलिंग लग रही है। जो इस घराने की आत्मायें होंगी वह महारोगी से निरोगी बनने के पुरुषार्थ में लग जायेंगी।

गीत:-महफिल में जल उठी शमा...

  • ओम् शान्ति। बच्चों को ओम् शान्ति का अर्थ तो समझाया हुआ है। ओम् अर्थात् अहम्। अहम् कौन? आत्मा और मेरा शरीर कर्मेन्द्रियाँ। आत्मा का स्वधर्म है ही साइलेन्स। आत्मा किसकी सन्तान है? कहेंगे परमपिता परमात्मा की। वह भी साइलेन्स है। आत्मायें साइलेन्स वर्ल्ड शान्तिधाम में रहती हैं। फिर पार्ट बजाने टॉकी वर्ल्ड में आती हैं। अब बेहद का बाप कहते हैं - हे बच्चे, अपने स्वधर्म में रहो। अशरीरी होकर बैठो। बाप को याद करो। उस बाप को शमा भी कहते हैं। अब यह है महफिल पतित मनुष्यों की। इस समय यह पतित दुनिया है। मनुष्य मात्र पतित हैं। समझाया गया है - सतयुग में भारत पावन था। गृहस्थ धर्म कहा जाता है, जिसको सुखधाम कहते हैं। भारत पावन था, अभी पतित है। दु:खधाम है। यह चक्र फिरता रहता है। अभी यह है कल्याणकारी संगमयुग, जबकि पतित मनुष्य-सृष्टि पर बाप को आना पड़ता है - पतित मनुष्य सृष्टि को पावन बनाने। पुरानी दुनिया से नई दुनिया बाप रचता ही बनाते हैं, जिसको परमपिता परमात्मा कहा जाता है। सब भक्तों का भगवान् एक है। तो बाप कहते हैं - मुझे भी पतित दुनिया, पतित शरीर में आना पड़ता है। परमधाम से एक ही बार आता हूँ - भारत को पावन दैवी राज्य बनाने। इस वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी को कोई नहीं जानते क्योंकि सब नास्तिक हैं। एक भी आस्तिक मनुष्य नहीं। बाप को न जानने के कारण निधन के बन पड़े हैं। आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैं। घर-घर में कितनी अशान्ति है! सतयुग आदि में वन ऑलमाइटी अथॉरिटी देवी-देवता राज्य था, सुखधाम था फिर दु:खधाम कैसे बना - यह कोई नहीं जानते। ज्ञान है ब्रह्मा का दिन। भक्ति है ब्रह्मा की रात। संन्यासी लोग कहते हैं - ज्ञान, भक्ति और वैराग्य। अब वह तो घरबार छोड़ जंगलों में चले जाते हैं। वैराग्य आ जाता है। वह है रजोगुणी संन्यास, यह है सतोप्रधान संन्यास। इस पाप आत्माओं की दुनिया में एक भी पुण्य आत्मा नहीं। तो यह खेल सारा भारत पर है। भारत सोने की चिड़िया था। भारत में सोना और हीरे बहुत अथाह थे। सोने के महल बनते थे और हीरे-जवाहरों की जड़त होती थी। अभी तो भारत कौड़ी जैसा बना हुआ है। फिर उनको हीरे जैसा बाप ही बनाते हैं। तुम जानते हो - हम मनुष्य से देवता बन रहे हैं। अभी वह बाप पतितों की महफिल में आये हैं। मनुष्य समझते हैं - पतित-पावनी गंगा है, स्नान करने जाते हैं। फिर भी कोई पाप आत्मा से पुण्य आत्मा नहीं बनते। फिर साल बाई साल जाकर गंगा स्नान करते हैं। इस समय कोई भी पावन नहीं है। जब तक पावन बनाने वाला बाप न आये तब तक पावन बन न सकें। पावन बनाते हैं गीता का भगवान्। वह भगवान् तो सभी आत्माओं का बाप एक ही है। ऐसे नहीं कि सब भक्त भगवान् हैं वा सर्वव्यापी भगवान् है। यह तो भगवान् की ग्लानी करते हैं इसलिए यदा यदाहि........ यह भारत के लिए ही गाया हुआ है। जो बाप आकर भारत को हीरे जैसा बनाते हैं उनकी कितनी निंदा करते हैं। ऋषि-मुनि फिर कहते आये - रचता और रचना बेअन्त है अथवा नेती-नेती है, हम नहीं जानते। और आजकल के मनुष्य फिर कह देते सर्वव्यापी है। बाप कहते हैं - ऐसे जब बन जाते हैं तब मैं आकर पाप आत्मा से पुण्य आत्मा, देवता बनाता हूँ। सबका सद्गति दाता है ही एक। वही आकर पतित से पावन बनाए लायक बनाते हैं। बच्चों को वर्सा देते हैं। लौकिक बाप से मिला है अल्पकाल का वर्सा। बेहद का बाप कहते हैं - मैं तुमको 21 जन्मों लिए वर्सा देता हूँ पवित्रता, शान्ति और सुख का, जो लौकिक बाप दे न सके। वह बाप भी है, शिक्षक भी है, ज्ञान का सागर भी है। बाप की महिमा बड़ी ऊंच है, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप भी है। यह मनुष्य सृष्टि का वैरायटी धर्मों का झाड़ है। आदि सनातन देवी-देवता धर्म है सतयुग का। उनसे फिर और धर्म इमर्ज होते हैं। अभी तुम ब्राह्मण धर्म के बने हो। इनसे पहले शूद्र धर्म के थे। अभी ब्राह्मण से फिर सो देवता फिर सो क्षत्रिय बनेंगे। यह 84 का चक्र लगाना पड़ता है। सतयुग में भी पहले-पहले तुम आयेंगे। गाया भी जाता है - आत्मा परमात्मा अलग रहे........। गीत में भी सुना - चारों तरफ लगाये फेरे फिर भी हरदम दूर रहे अर्थात् बाप से मिल न सके। अभी है रावण राज्य। राम राज्य है डीटी राज्य। मनुष्य तो समझते हैं - स्वर्ग-नर्क यहाँ ही है। परन्तु ऐसे हो नहीं सकता। मनुष्य मरता है तो कहते हैं स्वर्गवासी हुआ तो जरूर नर्क में था। तो जरूर पुनर्जन्म नर्क में ही लेना पड़े। मनुष्यों की तो अनेक मतें हैं। एक न मिले दूसरे से। अनेक प्रकार की द्वेत मतें हैं। आधाकल्प भारत में होती है दैवी मत। अब है आसुरी मत। भारतवासी जिस भगवान् को याद करते हैं, उस पारलौकिक बाप को तो जानना चाहिए ना। अभी भारत कौड़ी मिसल है। उनको हीरे जैसा बनाना है। गांधी अथवा नेहरू भी चाहते थे - भारत में वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी रामराज्य हो। समझते हैं - कोई समय भारत में था, अभी नहीं है इसलिए रामराज्य की कोशिश करते हैं। परन्तु यह कोई मनुष्य के हाथ में नहीं है। तुम हो ब्राह्मण, प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान। निराकार आत्मायें हैं परमपिता परमात्मा की सन्तान। वर्सा है ब्रह्माकुमार कुमारियों को। ब्रह्मा को भी वर्सा शिवबाबा से मिलता है। यह भी भाई हो गया। बच्चे सब हैं भाई-भाई तो जरूर एक बाप है सब आत्माओं का। अभी तुम ब्रह्मा की मुख वंशावली ब्राह्मण आपस में भाई-बहन ठहरे। तुमको वर्सा मिलता है दादे से। दादे के वर्से पर सभी आत्माओं का हक है। चाहे स्त्री, चाहे पुरुष के चोले में हो। लौकिक दादे का वर्सा सिर्फ बच्चों को मिलता है। यह तो बेहद का बाप है ना। भारतवासियों को सतयुग-त्रेता में बेहद के बाप से 21 पीढ़ी का बहुत सुख मिला हुआ है। तुम 84 के चक्र को अभी समझ गये हो। बाप कहते हैं - मैं गाइड बनकर आया हूँ तुम सबको ले जाने। तुम ही पहले-पहले आये थे। अभी लास्ट में भी तुम हो। फिर पहले-पहले तुम ही मनुष्य से देवता बनने वाले हो। देवी-देवता धर्म वाले ही 84 जन्म लेते हैं। फिर नम्बरवार सबके कम जन्म होते जाते हैं। और धर्म वालों के जरूर कम जन्म होंगे। अभी वह आदि सनातन देवी-देवता धर्म नहीं है। फिर से स्थापन हो रहा है। तुम जानते हो इब्राहम फिर कब आयेगा? क्राइस्ट कितने समय बाद आयेगा? यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी मनुष्य ही तो जानेंगे ना। बाप सम-झाते हैं - जब सभी पाप आत्मा बन जाते हैं तब मैं आकर पुण्य आत्मा बनाता हूँ। जो कल्प पहले बने थे उनका सैपलिंग लगा रहा हूँ। सतयुग में था ही एक धर्म। अभी तो कलियुग में अनेक धर्म हैं। पतित आत्माओं की महफिल है। बाप आते हैं सबको पावन बनाने। सद्गति देने वाला वही एक है। माया रावण दुर्गति करती है इसलिए देवताओं के आगे जाकर गाते हैं - मैं निर्गुण हारे में कोई गुण नाहीं। बाप आकर पतित से पावन बनाए दैवी गुणों वाला बनाते हैं। अभी तुम दैवी गुण धारण करते जाते हो। फिर भारत में दैवी राज्य बन जायेगा। अभी यह दुनिया बदल रही है। तुम हो बेहद के संन्यासी। उन्हों का है हद का वैराग्य। यह है बेहद का वैराग्य। तुम सारी पुरानी सृष्टि को भूल अपने बाप को याद कर वर्सा लेते हो। बाप कहते हैं - मुझे याद करेंगे तो उस याद अथवा योग अग्नि से विकर्म विनाश होंगे। फिर तुम विकर्माजीत बनेंगे। बाबा ने समझाया है - जब कोई 4-5 इकट्ठे आते हैं तो फार्म अलग अलग भराओ। तो मालूम पड़े कि वह किस धर्म का है? अनेक धर्म, अनेक मतें हैं ना। देवी-देवता धर्म वालों को ही तीर लगेगा। कराची में हमेशा अलग-अलग समझाते थे। फार्म भराने का कायदा भी जरूरी है। 7 रोज़ भट्ठी में पड़ना पड़े क्योंकि महारोगी बन पड़े हैं। (भ्रमरी का मिसाल) तुम बच्चे भ्रमरियाँ हो। भूँ-भूँ कर आप समान बनाना पड़ता है। देवता धर्म वालों की ही सैपलिंग लगेगी। बच्चों को युक्तियाँ भी सीखनी है। बोलो - सात रोज़ जब समझो तब मुलाकात हो सकेगी और तुम पर रंग भी तब लगेगा। तुम सभी ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ हो। मनुष्य इतना भी नहीं पूछते इतने ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ क्या हैं? कौन हैं? अरे, प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान तो जरूर ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ कहेंगे ना। क्रिमिनल एसाल्ट हो न सके। यह है राजयोग, गॉड फादरली युनिवर्सिटी। भगवानुवाच - मैं तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ। अच्छा!
  • मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) विकर्माजीत बनने के लिए सारी पुरानी दुनिया से बेहद का वैराग्य कर, इसे भूल एक बाप की याद में रहना है।

    2) भ्रमरी मिसल ज्ञान रंग लगाने की सेवा करनी है। युक्ति से महारोगियों को निरोगी, नास्तिक को आस्तिक बनाना है।

  • ( All Blessings of 2021-22)
  • सदा साक्षी स्थिति में स्थित रह निर्लेप अवस्था का अनुभव करने वाले सहजयोगी भव

    जो देह के संबंध और देह से साक्षी अर्थात् न्यारे हैं वह इस पुरानी दुनिया से भी साक्षी हो जाते हैं। वे सम्पर्क में आते हुए, देखते हुए भी सदा न्यारे और प्यारे रहते हैं। यह स्टेज ही सहजयोगी का अनुभव कराती है। इसी को कहते हैं साथ में रहते हुए भी निर्लेप। आत्मा निर्लेप नहीं है लेकिन आत्म-अभिमानी स्टेज निर्लेप अर्थात् माया के लेप व आकर्षण से परे है। इस अवस्था में रहने वाले माया के वार से बच जाते हैं।

  • (All Slogans of 2021-22)
    • शुभ भावना और शुभ कामना द्वारा सूक्ष्म सेवा करने वाले ही महान आत्मा हैं। मातेश्वरी जी के महावाक्य “परमात्मा एक है बाकी सर्व मनुष्य आत्मायें हैं'' अब यह तो सारी दुनिया जानती है कि परमात्मा एक है वो सर्वशक्तिवान है, जानीजाननहार है, ऐसे तो सारी दुनिया खुद भी कहती है हम परमात्मा की सन्तान हैं। परमात्मा एक है, भल कोई धर्म वाला हो वो भी परमात्मा को ही मानते हैं। वो भी अपने को परमात्मा द्वारा भेजा हुआ सन्देशवाहक समझते हैं, ऐसे ही सन्देश लेकर अपने अपने धर्म की स्थापना करते हैं। जैसे गुरुनानक ने भी परमात्मा की इतनी बड़ाई की एकोंकार सत् नाम। एकोंकार का अर्थ है परमात्मा एक है। सत् नाम अर्थात् उसका नाम सत्य है तो गोया परमात्मा नाम रूप वाला भी है, अविनाशी है, अकालमूर्त भी है तो फिर कर्ता पुरुष भी है माना वो खुद अकर्ता होते हुए भी कैसे ब्रह्मा तन द्वारा कर्ता पुरुष भी बनता है। अब यह सारी महिमा एक परमात्मा की है, अब मनुष्य इतना समझते हुए फिर भी कहते हैं ईश्वर सर्वत्र है। अहम् आत्मा सो परमात्मा है, अगर सभी परमात्मा ठहरे फिर एकोंकार ....यह महिमा किस परमात्मा की करते हैं? यही सबूत है कि परमात्मा एक है। “डायरेक्ट ईश्वरीय ज्ञान से सफलता'' यह जो अपने को अविनाशी ज्ञान मिल रहा है वो डायरेक्ट ज्ञान सागर परमात्मा द्वारा मिल रहा है। इस ज्ञान को हम ईश्वरीय ज्ञान कहते हैं क्योंकि इस ज्ञान से मनुष्य आदि मध्य अन्त सुख पाते हैं अर्थात् जन्म-जन्मान्तर दु:ख के बंधन से छूट जाते हैं। कर्मबन्धन में नहीं आते इसीलिए ही इस ज्ञान को अविनाशी ज्ञान कहा जाता है। अब यह ज्ञान सिर्फ एक ही अविनाशी परमपिता परमात्मा द्वारा हमें प्राप्त होता है क्योंकि वो खुद अविनाशी है। बाकी तो सब मनुष्य आत्मायें जन्म मरण के चक्र में आने वाली हैं इसलिए उनसे मिला हुआ ज्ञान हमें कर्मबन्धन से छुटकारा देने वाला नहीं है। इस कारण उन्हों के ज्ञान को मिथ्या ज्ञान अथवा विनाशी ज्ञान कहेंगे। लेकिन यह देवतायें सदा अमर हैं क्योंकि इन्होंने अविनाशी परमात्मा द्वारा यह अविनाशी ज्ञान प्राप्त किया है, तो इससे साबित है कि परमात्मा भी एक है तो उसका ज्ञान भी एक है, इस ज्ञान में दो मुख्य बातें बुद्धि में रखनी हैं, एक तो इसमें विकारी कलियुगी संगदोष से दूर होना है और दूसरी बात कि मलेच्छ खान-पान आदि की परहेज़ रखनी है। इस परहेज रखने से ही जीवन सफल होती है। अच्छा। ओम् शान्ति।

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