03-05-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - ज्ञान के ठण्डे छींटे डाल तुम्हें हरेक को शीतल बनाना है, तुम हो ज्ञान बरसात करने वाली शीतल देवियाँ''

प्रश्नः-

बाप ने तुम्हें ज्ञान का कलष क्यों दिया है?

 

उत्तर:-

ज्ञान का कलष मिला है पहले स्वयं को शीतल बनाकर फिर सर्व को शीतल बनाने के लिए। इस समय हरेक काम अग्नि में जल रहा है। उन्हें काम चिता से उतार ज्ञान चिता पर बिठाना है। आत्मा जब पवित्र शीतल बने तब देवता बन सके, इसलिए तुम्हें हर रूह को ज्ञान इन्जेक्शन लगाकर पवित्र बनाना है। तुम्हारी यह रूहानी सेवा है।

गीत:- जो पिया के साथ है....

  • ओम् शान्ति। जो बाप के साथ है उसके लिए बरसात है। अब बरसात और बाप। तो भला बाप की बरसात कैसे? वन्डर खायेंगे ना। दुनिया इन बातों को नहीं जानती। यह है ज्ञान बरसात। तुमको शीतल देवियाँ बनाने लिए ज्ञान चिता पर बिठाया जाता है। शीतल अक्षर के अगेन्स्ट है तपत (गर्म)। तुम्हारा नाम ही है शीतल देवी। एक तो नहीं होगी ना। जरूर बहुत होंगी, जिन्हों से भारत शीतल बनता है। इस समय सभी काम चिता पर जल रहे हैं। तुम्हारा नाम यहाँ शीतला देवियाँ है, शीतल करने वाली। ठण्डा छींटा डालने वाली देवियाँ। छींटा डालने जाते हैं ना। यह हैं ज्ञान के छींटे जो आत्मा के ऊपर डाले जाते हैं। आत्मा प्योर बनने से शीतल बन जाती है। इस समय सारी दुनिया काम चिता पर काली हो पड़ी है। अब कलष मिलता है तुम बच्चों को। कलष से तुम खुद भी शीतल बनते हो और औरों को भी बनाते हो। यह भी शीतल बनी है ना। दोनों इकट्ठे बैठे हैं ना। घरबार छोड़ने की बात नहीं। लेकिन गऊशाला बनी होगी तो जरूर कोई ने घरबार छोड़ा होगा। किसलिए? ज्ञान चिता पर बैठ शीतल बनने के लिए। जब तुम यहाँ शीतल बनेंगे तब ही तुम देवता बन सकेंगे। बाबा ने समझाया भी है जब तक तुम्हारे द्वारा कोई आस्तिक नहीं बना है तो गोया नास्तिक ही है। आस्तिक दुनिया वाले आपस में कभी लड़ते-झगड़ते नहीं। नास्तिक दुनिया वाले लड़ते-झगड़ते हैं। नास्तिक किसको कहा जाता है? जो मुझ अपने पारलौकिक परमप्रिय परमपिता परमात्मा को नहीं जानते हैं। सारी दुनिया में घर-घर में रोला है क्योंकि परमपिता परमात्मा को भूलने कारण नास्तिक बन पड़े हैं। बेहद के बाप और उनकी रचना के आदि-मध्य-अन्त को नहीं जानते। बेहद का बाप समझाते हैं तुम नास्तिक क्यों बने हो? बेहद का बाप जिसको गॉड फादर कहते हो, ऐसे फादर को क्यों भूले हो? फादर का तो आक्यूपेशन जानना चाहिए। वह है बीजरूप, सत-चित-आनंद, ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर... सब शिफ्तें (विशेषतायें) उनमें हैं। उनकी शिफ्तें अलग हैं। उनको ही कहा जाता है - तुम मात-पिता हम बालक तेरे... तो जरूर वह माँ-बाप होगा ना। जब तक अल्फ को नहीं जाना है तब तक सीधा हो नहीं सकते। यह तो जानते हो कि सतयुग में भारत में गॉड-गॉडेज का राज्य था। लक्ष्मी-नारायण को गॉड-गॉडेज कहते थे जो देवी-देवता धर्म वाले होंगे वह समझेंगे कि बरोबर लक्ष्मी-नारायण इस भारत के पहले-पहले मालिक थे। पांच हजार वर्ष की बात है। देखो, बाप-टीचर जब समझाते हैं तो चारों तऱफ देखते हैं कि बच्चे अच्छी तरह सुनते धारण करते हैं या बुद्धियोग और कहाँ भटकता है? जैसे भक्ति मार्ग में भल श्रीकृष्ण की मूर्ति के आगे बैठे होंगे परन्तु बुद्धि धन्धे आदि तऱफ धक्का खाती रहेगी। एकाग्रचित उस चित्र में भी नहीं रहेंगे। यहाँ भी पूरी पहचान नहीं है तो फिर धारणा भी नहीं होती है। शिव-बाबा यह माया को वश करने का वशीकरण मंत्र देते हैं। कहते हैं तुम अपने परमपिता परमात्मा शिव को याद करो। बुद्धि का योग उनके साथ लगाओ। अभी तुम्हारा बुद्धियोग पुराने घर की तरफ नहीं जाना चाहिए। बुद्धियोग बाप के साथ लटका रहना चाहिए क्योंकि तुम सबको मेरे पास आना है। मैं पण्डा बन आया हूँ तुमको ले चलने लिए। यह शिव शक्ति पाण्डव सेना है। तुम हो शिव से शक्ति लेने वाले। वह है सर्वशक्तिमान तो लोग समझते हैं परमात्मा तो मरे हुए को जिंदा कर सकते हैं। परन्तु बाप कहते हैं - लाडले बच्चे, इस ड्रामा में हर एक को अनादि पार्ट मिला हुआ है। मैं भी क्रियेटर, डायरेक्टर, प्रिन्सिपल एक्टर हूँ। ड्रामा के पार्ट को हम कुछ भी नहीं कर सकते। मनुष्य समझते हैं - पत्ता-पत्ता परमात्मा के हुक्म से चलता है। क्या परमात्मा बैठ पत्ते-पत्ते को हुक्म करेंगे? परमात्मा खुद कहते हैं - मैं भी ड्रामा के बंधन में बाँधा हुआ हूँ। ऐसे नहीं कि मेरे हुक्म से पत्ते हिलेंगे। सर्वव्यापी के ज्ञान ने भारतवासियों को बिल्कुल कंगाल बना दिया है। बाप के ज्ञान से भारत फिर सिरताज बनता है। तुम बच्चे जानते हो देलवाड़ा मन्दिर भी ठीक बना हुआ है। आदि देव दिलवाला है सारे सृष्टि की दिल लेने वाला। भक्तों की दिल लेने वाला एक भगवान कहेंगे ना। यह उन्हों के ही यादगार हैं। ऊपर में है देवताओं के चित्र और नीचे राजयोग की तपस्या कर रहे हैं। 108 बच्चे आसन लगाकर बैठे हैं शिवबाबा की याद में। उन्होंने ही भारत को स्वर्ग बनाया है। गाँधी जी भी कहते थे नई दुनिया रामराज्य चाहिए, परन्तु उस रामराज्य नई दुनिया में तो है पवित्रता। वह तो कर न सके। पतित सृष्टि को पावन बनाना, यह तो बाप का ही काम है। कोई मनुष्य यह कार्य कर न सके। इनके लिए भी कहते हैं बहुत जन्मों के अन्तिम जन्म के भी अन्त में मैं प्रवेश करता हूँ तो यह पतित ठहरा ना। जो पावन थे वही पतित बने हैं, फिर पावन बनते हैं। आपेही पूज्य आपेही पुजारी। जो पुजारी भक्त बने हैं, भगवान भक्तों को ही मिलते हैं। बाकी वह जो मुक्ति के लिए पुरुषार्थ करते हैं कि पार्ट बजाने से मुक्त हो जाऍ परन्तु मोक्ष किसको भी मिलता नहीं है। भगवान कहते हैं - मुझे भी मोक्ष नहीं मिलता। मुझे भी सर्विस पर आना पड़ता है। भक्तों को राज़ी करना पड़ता है, इस भारत को मालामाल बनाने, गँवाया हुआ स्वराज्य फिर से देने, सालवेन्ट बनाने मुझे भी पतित शरीर में पतित दुनिया में आना पड़ता है। अनेक बार आया हूँ और आता रहूँगा। भारत को गुल-गुल बनाऊंगा। यह है ही आसुरी दुनिया, उनको दैवी बनाता हूँ। जो जो मुझे पहचानेंगे वही वर्सा लेंगे। शिवबाबा कल्प-कल्प भारत को वर्सा देने आते हैं। उनकी जयन्ती आजकल मनाते नहीं। कैलेन्डर से हॉली डे भी निकाल दी है। वास्तव में तो एक ही शिव जयन्ती मनानी चाहिए और सबकी जयन्तियाँ मनाना वर्थ नाट पेनी है। एक परमपिता परमात्मा शिव की जयन्ती मनाना वर्थ पाउण्ड है क्योंकि वह भारत को सोने की चिड़िया बनाते हैं। महिमा उस एक की है। मनुष्य समझते हैं पतित-पावनी गंगा है फिर भी एक से राज़ी थोड़ेही होते हैं। सब जगह भटकते रहते हैं। सिद्ध करते हैं बरोबर हम पतित हैं। ज्ञान का सागर तो एक ही परमात्मा है जिससे तुम ज्ञान गंगायें निकली हो। तुम्हारे ही नाम हैं सरस्वती, गंगा, जमुना। गंगा नदी पर भी मन्दिर बना हुआ है। वास्तव में ज्ञान गंगायें तुम हो। तुम देवता नहीं हो। तुम ब्राह्मण हो। गंगा के नाम पर देवता का चित्र भी रख दिया है। उन्हों को तो पता नहीं है। ज्ञान गंगायें तुम शक्तियाँ हो। तुम अब मनुष्य से देवता बन रही हो इस राजयोग से। सच्चा योग यह है। बाकी तो सब अल्पकाल हेल्थ के लिए अनेक प्रकार के योग सिखलाते हैं। यह एक ही बाबा के साथ योग लगाने से हम एवर हेल्दी बनते हैं। अब बाप बैठ भारत को हेविन बनाते हैं। जब तक अपने को आत्मा, परमात्मा का बच्चा नहीं समझा है तब तक वर्सा मिल न सके, और सब हैं ब्रदर्स। भारतवासी फिर कह देते हम सब फादर्स हैं, ईश्वर के रूप हैं। शिवोहम् ततत्वम्। अब फादर्स जो सब दु:खी हैं, उनको सुख का वर्सा मिले कहाँ से। कितना घोर अंधकार है। यही है रात। ज्ञान है दिन। यह सब बातें समझने की हैं। बच्चे तुम हो रूहानी सोशल वर्कर। वह हैं जिस्मानी सोशल वर्कर्स। तुम रूह को इन्जेक्शन लगाते हो कि रूह प्योर बन जाये। बाकी तो सब जिस्मानी सेवा करते हैं। बाप बैठ समझाते हैं - कितना फ़र्क है! तुम गॉड को याद कर गॉड-गॉडेज बन रहे हो। भगवान खुद कहते हैं - लाडले बच्चे, मैं तुम्हारा गुलाम बनकर आया हूँ। अब मैं जो कहता हूँ सो मानो। उसको श्रीमत भगवत कहते हैं। ऊंचे ते ऊंच वह है। कोई कहे ब्रह्मा जयन्ती ऊंच है, बिल्कुल नहीं। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को बनाने वाला, उनसे कार्य कराने वाला शिवबाबा है ना। नहीं तो नई सृष्टि कैसे बने? सबसे ऊंच जयन्ती है ही त्रिमूर्ति शिव की। शिव आते ही हैं ब्रह्मा, विष्णु, शंकर के साथ। तो उनकी ही जयन्ती मनायी जा सकती है। आजकल तो कुत्ते-बिल्ली सबकी जयन्ती मनाते रहते हैं। कुत्तों को भी कितना प्यार करते हैं! आज-कल की दुनिया देखो क्या है! कहेंगे - सतयुग में यह शेर आदि नहीं होंगे। कायदा नहीं कहता। सतयुग में मनुष्य भी बहुत थोड़े होंगे, तो जानवर आदि भी थोड़े होते हैं। बीमारियाँ भी पहले इतनी थोड़ेही थी। अभी तो कितनी ढेर बीमारियाँ निकल पड़ी हैं, तो यह जानवर आदि पीछे वृद्धि को पाते हैं। सतयुग में गायें भी बड़ी अच्छी होती हैं। कहते हैं - श्रीकृष्ण ने गऊयें चराई। ऐसे नहीं कहते - सतयुग में ऐसी फर्स्टक्लास गायें थी। देवताओं के लिए वहाँ हीरे-जवाहरों के महल होते हैं और यहाँ हैं ठिक्कर-भित्तर के। यह सब समझने की बातें हैं। जो समझ जायेंगे वह कभी स्कूल छोड़ेंगे नहीं। एम ऑब्जेक्ट समझने बिगर कोई आकर बैठे तो भी समझ नहीं सकेंगे। जहाँ भी सतसंग में जाते हैं वहाँ एम आब्जेक्ट कुछ होती नहीं। यह तो पाठशाला है। पाठशाला में तो जरूर एम ऑब्जेक्ट चाहिए ना। तुम एम आब्जेक्ट को जानते हो, जिनकी तकदीर में नहीं होगा उनकी बुद्धि में ज्ञान कभी टपकेगा ही नहीं। जीवन-मुक्ति में भी थोड़ेही आयेंगे। पिछाड़ी वाले स्वर्ग में आ न सके।

  • अच्छा। मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) बुद्धियोग सदा एक बाप में लगा रहे। पुराने घर, पुरानी दुनिया में बुद्धि न जाए। ऐसी एकाग्रचित अवस्था बनानी है।

    2) बाप की सर्व शिफ्तें (गुण) स्वयं में धारण करना है। हर आत्मा पर ज्ञान के छींटे डाल उनकी तपत बुझाए शीतल बनाना है।

  • ( All Blessings of 2021-22)
  • हर आत्मा से आत्मिक अटूट प्यार रख स्नेह सम्पन्न व्यवहार करने वाले सफलतामूर्त भव

    जैसे बाप के प्रति अटूट, अखण्ड, अटल प्यार है, श्रेष्ठ भावना है, निश्चय है ऐसे ब्राह्मण आत्माओं से आत्मिक प्यार अटूट और अखण्ड हो। किसी के कैसे भी संस्कार हो, चलन हो लेकिन ब्राह्मण आत्माओं का सारे कल्प में अटूट संबंध है, ईश्वरीय परिवार है, बाप ने हर आत्मा को चुनकर ईश्वरीय परिवार में लाया है, यह स्मृति रहे तो आत्मिक प्यार अटूट होने से स्नेह सम्पन्न व्यवहार होगा और सहज सफलतामूर्त बन जायेंगे।


  • (All Slogans of 2021-22)
    • अन्तर्मुखी वह है जो जिस समय चाहे आवाज में आये और जिस समय चाहे आवाज से परे हो जाए।

    How many countries watching the Channel of BK Naresh Bhai?

    BK Naresh Bhai's present residence cum workplace