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विश्व कल्याणकारी बापदादा अपने सर्व मास्टर विश्व कल्याणकारी बच्चों को देख रहे हैं।
- हर एक बच्चे का इस ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य अति श्रेष्ठ है।
- हर एक नम्बरवन पुरूषार्थ करने का लक्ष्य रखते हुए आगे उड़ते जा रहे हैं।
- लक्ष्य सभी का नम्बरवन का है लेकिन लक्षण नम्बरवार हैं।
- तो लक्ष्य और लक्षण दोनों में अन्तर क्यों है?
- ज्ञान दाता बाप भी एक है, योग की विधि भी एक है, दिव्य गुण धारण करने का सहज प्रत्यक्ष प्रमाण साकार ब्रह्मा बाप भी एक है, सेवा के साधन और सेवा की विधि सिखाने वाला भी एक है।
- मुख्य बात है - पढ़ाई और पालना - दोनों ही देने वाला एक और एक नम्बर है, फिर भी प्रत्यक्ष जीवन में लक्षण नम्बरवार क्यों?
- ये तो सभी स्वयं को अच्छी तरह से जानते ही हो कि लक्षण धारण करने में मैं किस नम्बर में हूँ?
- नम्बरवार होने का विशेष आधार है एक ही शब्द ‘प्वॉइन्ट'।
- प्वॉइन्ट स्वरूप को अनुभव करना।
- दूसरा, कोई भी संकल्प, बोल वा कर्म व्यर्थ है उसको पॉइन्ट लगाना अर्थात् बिन्दी लगाना।
- तीसरा, ज्ञान की वा धारणा की अनेक पॉइन्ट्स को मनन कर स्व प्रति वा सेवा प्रति समय पर कार्य में लगाना।
- तो शब्द एक ही पॉइन्ट है लेकिन तीनों स्वरूप की पॉइन्ट को समय पर स्मृति में, स्वरूप में लाना - इसमें अन्तर पड़ जाता है।
- स्मृति सबको रहती है लेकिन स्मृति को स्वरूप में लाना, इसमें नम्बरवार हो जाते हैं।
- कई बार बापदादा सभी बच्चों को देखते हैं कि स्मृति में बहुत होशियार होते हैं।
- ऐसा होना चाहिये - वह सोचते भी रहते हैं; यह राइट है, यह राँग है यह ज्ञान भी इमर्ज होता है।
- ज्ञान अर्थात् नॉलेज और नॉलेज इज़ लाइट, नॉलेज इज माइट कहा जाता है तो जहाँ लाइट भी है, माइट भी है वहाँ ये होना चाहिये, नहीं होता।
- क्या सोचते हैं कि बापदादा यह कहते तो हैं, बनना तो है, ज्ञान तो यह है, लेकिन उस समय मेरे में क्या है, वह चाहिये-चाहिये में ही रह जाता है।
- इसका अर्थ है कि ज्ञान को लाइट और माइट के रूप से समय प्रमाण कार्य में नहीं लगा सकते।
- इसको कहा जाता है स्मृति में है लेकिन स्वरूप में लाने की शक्ति कम है।
- जब लाइट अर्थात् रोशनी है कि ये राँग है, ये राइट है; ये अन्धकार है, ये प्रकाश है; ये व्यर्थ है, ये समर्थ है, तो अन्धकार समझते भी अन्धकार में रहना, इसको ज्ञानी वा समझदार कहेंगे?
- ज्ञानी नहीं तो क्या हुए?
- भक्त वा अधूरे ज्ञानी?
- राँग समझते भी राँग कर्मों के वा संकल्पों के वा स्वभाव-संस्कार के वशीभूत हो जाएं तो इसको क्या कहा जायेगा?
- उसका क्या टाइटल होना चाहिये?
- बापदादा समय की गति को देख सभी बच्चों को बार-बार अटेन्शन दिलाते हैं।
- ‘अटेन्शन' शब्द को भी डबल अन्डरलाइन करा रहे हैं कि ये प्रकृति की तमोगुणी शक्ति और माया की सूक्ष्म रॉयल समझदारी की शक्ति अपना कार्य तीव्र गति से कर रही है और करती रहेगी।
- प्रकृति के विकराल रूप को जानना सहज है लेकिन भिन्न-भिन्न विकराल हलचल में अचल रहना इसमें और अटेन्शन चाहिये।
- माया के अति सूक्ष्म स्वरूप को जानने में भी धोखा खा लेते हैं।
- माया ऐसा रॉयल रूप रखती है जो राँग को राइट अनुभव कराती है।
- है बिल्कुल राँग लेकिन बुद्धि को ऐसा परिवर्तित कर देती है जो रीयल समझ को, महसूसता की शक्ति को गायब कर देती है।
- जैसे कोई जादू मंत्र करते हैं ना तो परवश हो जाते हैं, ऐसी महसूसता शक्ति गायब करने की रॉयल माया रीयल को समझने नहीं देती है।
- होगा बिल्कुल राँग लेकिन माया की छाया के वशीभूत होने के कारण राँग को राइट समझते और सिद्ध करने में माया के सुप्रीम कोर्ट का वकील बन जाते हैं।
- तो वकील क्या करते हैं?
- झूठ को सच सिद्ध करने में होशियार होते हैं।
- सच को सच सिद्ध करने में भी होते हैं लेकिन झूठ को सच सिद्ध करने में होशियार होते हैं, दोनों में होशियार होते हैं, इसीलिये बापदादा ‘अटेन्शन' को डबल अन्डरलाइन करा रहे हैं।
- महसूसता शक्ति को परिवर्तित करने की सूक्ष्म स्वरूप की माया की छाया से सदा अपने को सेफ रखो क्योंकि विशेष माया का स्वरूप विशेष इस स्वरूप में अपना कार्य कर रहा है। समझा?
- अभी क्या करेंगे?
- केयरफुल रहना।
- अगर कोई भी विशेष आत्मायें इशारा देती हैं तो अच्छी तरह से माया की इस छाया से निकल बाप की छत्रछाया में अपने को, विशेष मन-बुद्धि को इस छत्रछाया के सहारे में लाओ क्योंकि मन में निगेटिव भाव और भावना पैदा करने का विशेष माया का प्रभाव चल रहा है और बुद्धि में यथार्थ महसूसता को समाप्त करने का विशेष माया का कार्य चल रहा है।
- जैसे कोई सीज़न होती है ना तो सीज़न से बचने के लिये उसी प्रमाण विशेष अटेन्शन रखा जाता है।
- जैसे बारिश आयेगी तो छाते, रैन कोट आदि का अटेन्शन रखेंगे, सर्दी आयेगी तो गरम कपड़े रखेंगे, अटेन्शन देंगे ना।
- तो मन और बुद्धि के ऊपर प्रभाव नहीं पड़े इसके लिये पहले ही सेफ्टी के साधन विशेष अपनाओ।
- वो विशेष साधन है बहुत सहज, पहले भी सुनाया है - एक ही ‘पॉइन्ट' शब्द।
- सहज है ना।
- लम्बा-चौड़ा तो नहीं सुनाया ना।
- कहते रहते हैं हाँ, मैं आत्मा बिन्दू हूँ, ज्योति रूप हूँ, लेकिन उसमें टिकते नहीं हैं।
- लगाना चाहते हैं पॉइन्ट लेकिन लग जाता है क्वेश्चन मार्क और आश्चर्य की निशानी।
- पॉइन्ट लगाना सहज या आश्चर्य की निशानी वा क्वेश्चन मार्क की निशानी?
- क्या सहज है?
- बिन्दी लगाना सहज है ना।
- फिर क्वेश्चन और आश्चर्य में क्यों चले जाते हैं?
- इस विधि को अपनाओ। सीज़न है - झूठ, सच सिद्ध होने का और झूठ, सत्य से भी स्पष्ट और आकर्षण वाला होगा।
- जैसे आजकल का फैशन है ना झूठी चीज़ कितनी आकर्षण वाली होती है, उसके आगे सच्चे की वैल्यु कम हो जाती है।
- रीयल सिल्वर देखो और व्हाइट सिल्वर देखो, क्या सुन्दर लगता है?
- रीयल सिल्वर काला हो जायेगा और व्हाइट सिल्वर सदा चमकता रहेगा।
- तो आकर्षण व्हाइट करेगा या रीयल करेगा?
- तो सीज़न को पहचानो, माया के स्वरूप को पहचानो, प्रकृति के तमोगुण के भिन्न-भिन्न रंगत को पहचानो।
- एक है जानना, दूसरा है पहचानना।
- जानते ज्यादा हो, पहचानने में कभी गलती कर देते हो, कभी राइट कर देते हो।
- अभी क्या करेंगे?
- सेफ रहेंगे ना।
- फिर ये नहीं कहना कि हमने तो समझा नहीं, ऐसा भी होता है क्या?
- यह क्या-क्या नहीं चलेगा।
- अभी तो फिर भी बाप थोड़ा-थोड़ा रहम करता, थोड़ा-थोड़ा कदम उठाता है।
- लेकिन फिर ‘क्या' और ‘क्यों' कोई नहीं सुनेगा।
- ऐसा नहीं, वैसा... ये वकालत नहीं चलेगी।
- जज बनो, माया का वकील नहीं बनो।
- मज़ा बहुत आता है जब वकालत करते हैं।
- अनुभवी तो सब हो ना, अनुभव होता है ना।
- सुन-सुनकर साक्षी हो हर्षित होते रहते हैं।
- अच्छी तरह से समझा?
- पाण्डवों ने, शक्तियों ने समझा, टीचर्स ने समझा?
- सभी हाँ-हाँ तो कर रहे हैं।
- फ़ोटो निकल रहा है हाँ का।
- तीसरी सीज़न है विशेष कमजोरी के स्वभाव-संस्कार, सम्बन्ध-सम्पर्क में आना, इसका विस्तार भी बहुत बड़ा है।
- वो आज नहीं सुनायेंगे।
- कई बच्चे कहते हैं क्या करें, पहले तो था ही नहीं, अभी पता नहीं क्या हो गया है।
- ये संस्कार मेरे में था ही नहीं, अभी आ गया है, इसका कारण और इसकी विधि का विस्तार फिर कभी सुनायेंगे।
- अच्छा!
चारों ओर के बापदादा के महावाक्य सुनने और धारण करने वाले चात्रक बच्चों को, सर्व सब्जेक्ट को स्मृति के साथ स्वरूप में लाने वाले समीप आत्माओं को, सदा ज्ञान के हर बात को लाइट और माइट के स्वरूप से कार्य में लगाने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा लक्ष्य और लक्षण समान करने वाले बाप के ज्ञानी तू आत्मा बच्चों को, सदा बाप की छत्रछाया में रहने वाले, माया की छाया से सेफ रहने वाले, जानना और पहचानना, दोनों की विशेषता को जीवन में लाने वाले ऐसे विशेष आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
- दादियों से मुलाकात -
- शक्ति सेना तीव्र गति से चल रही है ना। सेना को बापदादा के साथ-साथ आप निमित्त आत्मायें भी चलाने के निमित्त हो।
- बाप तो सदा साथ है और सदा ही रहेंगे। फिर भी बापदादा की श्रेष्ठ भुजायें तो हैं ना।
- बाप शक्ति देते हैं, बाप माइट रूप में है लेकिन निमित्त समझाने के लिये माइक तो आप निमित्त हो।
- कितनी मज़े की बातें सुनते हो।
- खेल लगता है ना। खेल है ना।
- खेल-खेल में विजयी बन सभी को मायाजीत विजयी बनाना ही है, ये तो गैरन्टी है ही।
- लेकिन बीच-बीच में ये खेल देखने पड़ते हैं। तो थकते तो नहीं हो ना?
- हंसते, खेलते, पार करते और कराते चलते। कोई भी ऐसी बात सुनते तो दिल से क्या निकलता?
- वाह ड्रामा वाह। हाय ड्रामा हाय नहीं निकलता।
- वाह ड्रामा। वाह-वाह करते हुए सभी को वाह-वाह बनना ही है।
- ये सब पार करना ही है।
- अच्छा!
अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात -
- विजय हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है इस निश्चय और नशे से निर्विघ्न स्थिति का अनुभव करो
जैसे ऊंचे से ऊंचा बाप है ऐसे हम आत्मायें भी ऊंचे से ऊंची श्रेष्ठ आत्मायें हैं - यह अनुभव करते हुए चलते हो?
- क्योंकि दुनिया वालों के लिये तो सबसे श्रेष्ठ, ऊंचे से ऊंचे हैं बाप के बाद देवतायें।
- लेकिन देवताओं से ऊंचे आप ब्राह्मण आत्मायें हो, फ़रिश्ते हो ये दुनिया वाले नहीं जानते।
- देवता पद को इस ब्राह्मण जीवन से ऊंचा नहीं कहेंगे।
- ऊंचा अभी का ब्राह्मण जीवन है।
- देवताओं से भी ऊंचे क्यों हो, उसको तो अच्छी तरह से जानते हो ना।
- देवता रूप में बाप का ज्ञान इमर्ज नहीं होगा।
- परमात्म मिलन का अनुभव इस ब्राह्मण जीवन में करते हो, देवताई जीवन में नहीं।
- ब्राह्मण ही देवता बनते हैं लेकिन इस समय देवताई जीवन से भी ऊंच हो, तो इतना नशा सदा रहे, कभी-कभी नहीं क्योंकि बाप अविनाशी है और अविनाशी बाप जो ज्ञान देते हैं वह भी अविनाशी है, जो स्मृति दिलाते हैं वह भी अविनाशी है, कभी-कभी नहीं। तो यह चेक करो कि सदा यह नशा रहता है वा कभी-कभी रहता है?
- मज़ा तो तब आयेगा जब सदा रहेगा। कभी रहा, कभी नहीं रहा तो कभी मज़े में होंगे, कभी मूँझे हुए रहेंगे।
- तो अभी-अभी मज़ा, अभी-अभी मूँझ नहीं, सदा रहे।
- जैसे यह श्वांस सदा ही चलता है ना।
- यदि एक सेकेण्ड भी श्वांस रुक जाये या कभी-कभी चले तो उसे जीवन कहेंगे?
- तो इस ब्राह्मण जीवन में निरन्तर मजे में हो?
- अगर मज़ा नहीं होगा तो मूँझेंगे ज़रूर। तो मातायें सदा मज़े में रहती हो?
- शक्तियां हो ना, साधारण तो नहीं हो या घर में जाती हो तो साधारण मातायें बन जाती हो?
- नहीं, सदा यह याद रहे कि हम शक्तियां है।
- हद के नहीं हैं, बेहद के विश्व कल्याणकारी हैं।
- शक्तियां अर्थात् असुरों के ऊपर विजय प्राप्त करने वाली।
- शक्तियों को कहते ही हैं असुर संहारनी अर्थात् आसुरी संस्कार को संहार करने वाली।
- तो सभी शक्तियां ऐसी बहादुर हो?
- और पाण्डव अर्थात् विजयी।
- पाण्डव कभी यह नहीं कह सकते कि चाहते नहीं हैं लेकिन हार हो जाती है क्योंकि आधा कल्प हार खाई, अभी विजय प्राप्त करने का समय है तो विजय के समय पर भी यदि हार खायेंगे तो विजयी कब बनेंगे?
- इसलिये इस समय सदा विजयी।
- विजय जन्म-सिद्ध अधिकार है।
- अधिकार को कोई छोड़ते नहीं, लड़ाई-झगड़ा करके भी लेते हैं और यहाँ तो सहज मिलता है।
- विजय अपना जन्म-सिद्ध अधिकार है।
- अधिकार का नशा वा खुशी रहती है ना?
- हद के अधिकार का भी कितना नशा रहता है!
- प्राइम मिनिस्टर को भूल जायेगा क्या कि मैं प्राइम मिनिस्टर हूँ?
- सोयेगा, खायेगा तो भूलेगा क्या कि मैं प्राइम मिनिस्टर हूँ?
- तो हद का अधिकार और बेहद का अधिकार कितना भी कोई भुलाये भूल नहीं सकता।
- माया का काम है भुलाना और आपका काम है विजयी बनना क्योंकि समझ है ना कि विजय और हार क्या है?
- हार के भी अनुभवी हैं और विजय के भी अनुभवी हैं।
- तो हार खाने से क्या हुआ और विजय प्राप्त करने से क्या हुआ - दोनों के अन्तर को जानते हो इसलिये सदा विजयी हैं और सदा रहेंगे क्योंकि अविनाशी बाप और अविनाशी प्राप्ति के अधिकारी हम आत्मायें हैं, यह सदा इमर्ज रूप में रहे। ऐसे नहीं हैं तो!
- बने तो हैं! जानते तो हैं!
- ऐसे नहीं। प्रैक्टिकल में हैं।
- जो जानते हैं वही निश्चय कर चलते हैं।
- तो हर कर्म में विजय का निश्चय और नशा हो।
- नशे का आधार है ही निश्चय। निश्चय कम तो नशा कम, इसीलिये कहते हैं निश्चयबुद्धि विजयी।
- तो फाउण्डेशन क्या हुआ? निश्चय।
- निश्चय में कभी-कभी वाले नहीं बनना।
- नहीं तो अन्त में रिजल्ट के समय भी प्राप्ति कभी-कभी की होगी फिर पश्चाताप् करना पड़ेगा।
- अभी प्राप्ति है, फिर पश्चाताप् होगा।
- तो प्राप्ति के समय प्राप्ति करो, पश्चाताप् के समय प्राप्ति नहीं कर सकेंगे।
- कर लेंगे, हो जायेगा!
- नहीं, करना ही है यह निश्चय हो।
- कर लेंगे... दिलासे पर नहीं चलो।
- कर तो रहे हैं ना... और क्या होगा... हो ही जायेंगे... नहीं, अभी होना है।
- गे-गे नहीं, हैं।
- जब दूसरों को चैलेन्ज करते हो कि श्वांस पर कोई भरोसा नहीं, औरों को ज्ञान देते हो ना तो पहले स्वयं को ज्ञान दो।
- कभी करने वाले हैं या अब करने वाले हैं?
- तो सदा विजय के अधिकारी आत्मायें हो।
- विजय जन्म-सिद्ध अधिकार है इस स्मृति से उड़ते चलो।
- कुछ भी हो जाये, ये स्मृति में लाओ कि मैं सदा विजयी हूँ।
- क्या भी हो जाये, निश्चय अटल है, कोई टाल नहीं सकता।
- अच्छा, अब सभी ऐसी कमाल करके दिखाओ जो हर स्थान विजयी अर्थात् निर्विघ्न हो।
- कोई भी विघ्न न आये।
- विघ्न आयेंगे लेकिन हार नहीं होनी चाहिये।
- तो जहाँ विजय है, विघ्न हट जायेगा तो निर्विघ्न बन जायेंगे।
- सदा निर्विघ्न ये कमाल करके दिखाओ।
- कोई भी गीता पाठशाला हो, उप सेवाकेन्द्र हो, केन्द्र हो लेकिन स्वयं निर्विघ्न बनो और औरों को भी निर्विघ्न बनाओ।
- ऐसी कमाल दिखाओ।
- करना ही है। करेंगे, देखेंगे! नहीं। गे गे कहेंगे माना निश्चय में परसेन्टेज है।
- सब ये खुशखबरी सुने कि सभी छोटे-बड़े सेन्टर्स निर्विघ्न हैं।
- किसी प्रकार का विघ्न आ ही नहीं सकता।
- दूसरे के विघ्न को भी मिटायेंगे, विजयी बनेंगे।
- ऐसा समाचार आये।
- कहाँ से भी, कोई विघ्न का समाचार न आये।
- ऐसे नहीं कहना कि हम तो ठीक हैं, ये करते हैं, हम क्या करें।
- तीन मास विजयी रह करके दिखाओ।
- तीन मास में ही पता पड़ जायेगा।
- सभी हाँ करते हो तो ये कमाल करके दिखाओ। ।
( All Blessings of 2021-22)
एक बाप के लव में लवलीन रह सर्व बातों से सेफ रहने वाले मायाप्रूफ भव
जो बच्चे एक बाप के लव में लवलीन रहते हैं वे सहज ही चारों ओर के वायब्रेशन से, वायुमण्डल से दूर रहते हैं क्योंकि लीन रहना अर्थात् बाप समान शक्तिशाली सर्व बातों से सेफ रहना।
लीन रहना अर्थात् समाया हुआ रहना, जो समाये हुए हैं वही मायाप्रूफ हैं।
यही है सहज पुरुषार्थ, लेकिन सहज पुरुषार्थ के नाम पर अलबेले नहीं बनना।
अलबेले पुरुषार्थी का मन अन्दर से खाता है और बाहर से वह अपनी महिमा के गीत गाता है।
(All Slogans of 2021-22)
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पूर्वज पन की पोजीशन पर स्थित रहो तो माया और प्रकृति के बन्धनों से मुक्त हो जायेंगे।
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