27-01-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - पारसबुद्धि बनने के लिए बाप जो समझाते हैं उसे अच्छी तरह से समझना है, स्वयं में धारणा कर दूसरों को कराना है''
प्रश्नः-
कौन सा एक राज़ बहुत ही गुह्य, गोपनीय और समझने का है?
उत्तर:-
निराकार बाप सभी का मात-पिता कैसे बनते हैं, वह सृष्टि की रचना किस विधि से करते हैं, यह बहुत ही गुह्य और गोपनीय राज़ है।
निराकार बाप माता बिगर सृष्टि तो रच नहीं सकते।
कैसे वह शरीर धारण कर, उसमें प्रवेश कर उनके मुख से बच्चे एडाप्ट करते हैं, यह ब्रह्मा पिता भी है तो माता भी है - यह बात बहुत ही समझकर सिमरण करने वा स्मृति में रखने की है।
गीत:- तुम्हीं हो माता....
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ओम् शान्ति।
- जिसको मात-पिता कहते हो तो जरूर फरमान पिता ही करेंगे।
- यह तो माता पिता कम्बाइण्ड है।
- यह बात मनुष्यों के लिए समझना बड़ा डिफीकल्ट है और यही मुख्य बात है समझने की।
- निराकार परमपिता परमात्मा जिसको पिता कहा जाता है उनको माता भी कहते, यह वण्डरफुल बात है।
- परमपिता परमात्मा मनुष्य सृष्टि रचेगा, तो माता जरूर चाहिए।
- यह बात बड़ी गुह्य है और कोई की बुद्धि में कभी आ न सके।
- अब वह है सभी का बाप, माता भी जरूर चाहिए।
- वह पिता तो है निराकार, फिर माँ किसको रखें?
- शादी तो नहीं की होगी।
- यह हैं अति गुह्य गोपनीय समझने की बातें।
- नये-नये तो समझ न सकें।
- पुराने भी मुश्किल समझकर और उस स्मृति में रहते हैं।
- बच्चे ही मॉ बाप की स्मृति में रहेंगे ना।
- भारत में लक्ष्मी-नारायण को भी कह देते हैं तुम मात-पिता...तो राधे-कृष्ण के आगे भी जाकर कहते - तुम मात-पिता... अब वह तो हैं प्रिन्स प्रिन्सेज।
- उन्हों को मात-पिता कोई बेसमझ भी न कहे।
- मनुष्यों की तो कहने की टेव (आदत) पड़ गई है।
- परन्तु यह बात ही न्यारी है।
- लक्ष्मी-नारायण को तो उनके बच्चे ही कहेंगे तुम मात-पिता....
- मनुष्य समझते हैं जिसके पास बहुत धन है, महल-माड़ियॉ हैं वह स्वर्ग में हैं।
- उन्हों के बच्चे कहेंगे हमारे माँ बाप के पास बहुत सुख है।
- जरूर आगे जन्म में कुछ अच्छे कर्म किये हैं।
- अच्छा यह जो गाया जाता है तुम मात पिता... परमपिता परमात्मा रचयिता तो एक है, जिसके हम बच्चे हैं वह भी निराकार है।
- हम आत्मायें भी निराकार हैं।
- परन्तु निराकार फिर सृष्टि कैसे रचते हैं।
- माता बिगर तो सृष्टि रची नहीं जा सकती।
- वण्डर है सृष्टि रचने का।
- एक तो परमात्मा रचयिता है नई दुनिया का।
- पुरानी दुनिया में आकर नई दुनिया रचते हैं।
- परन्तु कैसे रचते हैं।
- यह बड़ी गुह्य बात है - जो निराकार को हम मात-पिता कहते हैं।
- बाप खुद समझाते हैं मैं बच्चों को एडाप्ट करता हूँ।
- पेट से बच्चे निकलने की बात ही नहीं।
- इतने ढेर बच्चे पेट से कैसे निकलेंगे।
- तो कहते हैं मैं इस शरीर को धारण कर इनके मुख द्वारा बच्चे एडाप्ट करता हूँ।
- यह ब्रह्मा पिता भी है, मनुष्य सृष्टि रचने वाला और माता भी है।
- जिसके मुख से बच्चे एडाप्ट करता हूँ।
- इस रीति बच्चों को एडाप्ट करना - यह सिर्फ बाप का काम है।
- संन्यासी तो कर न सकें।
- उन्हों के हैं जिज्ञासु, फालोअर्स, शिष्य।
- यहाँ तो हुई रचना की बात।
- तो बाबा इनमें प्रवेश करते, यह है मुख वंशावली जो कहते हैं तुम मात-पिता... तो माता यह सिद्ध हुई।
- वह बाप इसमें प्रवेश हो रचते हैं।
- यह बूढ़ा प्रजापिता भी ठहरा फिर माता भी बूढ़ी ठहरी।
- बूढ़ी ही चाहिए ना।
- अब बच्चों को मात-पिता को याद करना पड़े।
- इनकी तो प्रापर्टी है नहीं।
- तुम बनते हो वारिस, इसलिए इनको बापदादा कहते हैं।
- तुमको प्रजापिता ब्रह्मा से प्रापर्टी नहीं लेनी है।
- यह दादा (ब्रह्मा) भी उनसे लेते हैं।
- इनको दादा भी तो माता भी कहा जाता है।
- नहीं तो मात-पिता कैसे सिद्ध हो।
- मात-पिता बिगर बच्चे कैसे हों - यह बड़ी गुह्य समझने और सिमरण करने की बात है।
- बाबा आप पिता हो, इस माता द्वारा हमने जन्म लिया है।
- बरोबर वर्सा भी याद आता है।
- याद उस बाप को करना है।
- ज्ञान से तुम समझ भी सकते हो कि कैसे बाप पतित दुनिया में आते हैं।
- कहते हैं जिसमें प्रवेश करता हूँ, यह हमारा बच्चा भी है, तुम्हारा बाप भी है और फिर माता भी है।
- तुम हो गये बच्चे।
- तो बाप को याद करने से वर्सा मिलता है।
- माता को याद करने से वर्सा नहीं मिलेगा।
- निरन्तर उस बाप को याद करना है।
- बाकी इस शरीर को भूलना है।
- यह ज्ञान की बातें समझने की हैं।
- बाप पुरानी दुनिया में आकर नई दुनिया रचते हैं।
- पुरानी को खलास कर देते हैं।
- नहीं तो कौन खलास करे।
- गाया भी हुआ है शंकर द्वारा पुरानी दुनिया का विनाश - यह ड्रामा में नूँध है इसलिए गायन में भी आता है।
- तुम बच्चे जानते हो हमारे लिए नई राजधानी बन रही है।
- विनाश की फुल तैयारियाँ हैं।
- तुम इतने ढेर हो, सब राजाई पद पा रहे हो।
- ऐसे नहीं अन्धश्रद्धा से मान लिया है।
- कोई ने कहा राम की सीता चुराई गई। सत।
- कोई भी बात न समझो तो समझने की कोशिश करो।
- नहीं तो बेसमझ के बेसमझ ही रह जायेंगे।
- भक्तिमार्ग में तो अल्पकाल का सुख मिलता है।
- उसका फल उस ही जन्म में वा दूसरे जन्म में अल्पकाल के लिए मिल जाता है।
- तीर्थ यात्रा पर जाते हैं, कुछ समय तो पवित्र रहते हैं, पाप नहीं करते।
- दान पुण्य भी करते हैं, इसको काग विष्टा के समान सुख कहा जाता है।
- यह तुम बच्चे ही समझ सकते हो क्योंकि तुम बन्दर से बदल मन्दिर लायक बने हो।
- सतयुग में तुम पारसबुद्धि थे क्योंकि पारसनाथ, पारसनाथिनी का राज्य था।
- सोने के महल थे। अब तो पत्थर ही पत्थर हैं।
- पारसबुद्धि से पत्थरबुद्धि कौन बनाते हैं?
- 5 विकार रूपी रावण।
- जब सब पत्थरबुद्धि बन पड़ते हैं तब ही फिर पारसबुद्धि बनाने वाला बाप आते हैं।
- कितना सहज समझकर समझाते हैं।
- बीज और झाड़।
- बाकी डिटेल तो समझाते रहते हैं, समझाते रहेंगे।
- नटशेल में कहते हैं बाप को याद करो, जिससे वर्सा मिलता है।
- माता को याद करने की जरूरत नहीं।
- बाप कहते हैं बच्चे मुझे याद करो तो जरूर बच्चों ने माता से जन्म लिया होगा?
- जन्म लिया, बाप से वर्सा लेने के लिए।
- तो इस माता को भी छोड़ो, सब देहधारियों को छोड़ो क्योंकि अब वर्सा बाप से लेना है।
- अब बच्चे समझ गये हैं कि हम आत्मा रूहानी बाप के बच्चे हैं और फिर जिस्मानी मात-पिता के भी बच्चे बने हैं।
- वह बेहद का बाप नई सृष्टि रचते हैं।
- भारत स्वर्ग था ना।
- यह लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के मालिक थे, अब नहीं हैं।
- बेहद का बाप समझाते हैं - तुम हर जन्म में हद का वर्सा लेते आये हो।
- नर्क में तो है ही हद का वर्सा।
- स्वर्ग में हद का वर्सा नहीं कहेंगे।
- वह है बेहद का वर्सा क्योंकि बेहद के अर्थात् सारे सृष्टि के मालिक हैं और कोई धर्म नहीं है।
- हद का वर्सा शुरू होता है द्वापर से।
- सतयुग में है बेहद का।
- तुम प्रालब्ध भोगते हो।
- वहाँ तुमको बेहद की बादशाही है।
- यथा राजा रानी तथा प्रजा।
- प्रजा भी कहेगी हम सारे सृष्टि के मालिक हैं।
- अभी तो प्रजा ऐसे नहीं कहेगी कि हम सारे सृष्टि के मालिक हैं।
- अभी तो हदें लगी पड़ी हैं।
- वह कहते हैं हमारे पानी के अन्दर नहीं आ सकते, यह टुकड़ा हमारा है।
- वहाँ प्रजा भी कहेगी हम विश्व के मालिक हैं।
- हमारे महाराजा महारानी लक्ष्मी-नारायण भी विश्व के मालिक।
- यह अभी हम समझते हैं कि वहाँ एक ही राज्य रहता है।
- वह है बेहद की बादशाही।
- भारत क्या था, किसकी बुद्धि में भी नहीं है।
- तुम बच्चों को अब शिक्षा मिलती है कि बेहद के बाप से वर्सा लो।
- हम कहते हैं तो जरूर हम ले रहे हैं।
- बेहद का बाप है ही स्वर्ग का रचयिता।
- गाया भी जाता है 21 पीढ़ी राज्य-भाग्य।
- पीढ़ी क्यों कहते हैं?
- क्योंकि वहाँ बूढ़े होकर मरेंगे।
- वहाँ अकाले मृत्यु नहीं होगा।
- मातायें कभी विधवा नहीं बनेंगी।
- रोना पीटना नहीं होगा।
- यहाँ तो कितना रोते पीटते हैं।
- वहाँ बच्चों को भी रोने की दरकार नहीं।
- यहाँ तो बच्चों को रुलाते रहते हैं कि मुख बड़ा हो।
- वहाँ ऐसी बात नहीं।
- यह तो सब बच्चे समझते हैं कि हम अभी बेहद के बाप से कल्प पहले मिसल वर्सा ले रहे हैं।
- 84 जन्म पूरे हुए, अब जाना है।
- निरन्तर बाप और वर्से को याद करने से विकर्म विनाश होंगे।
- मन्मनाभव का अर्थ कितना सहज है।
- गीता भल झूठी है, परन्तु उसमें कुछ न कुछ तो सच है ना।
- मुझ अपने बाप को याद करो, श्रीकृष्ण तो ऐसे नहीं कहेंगे कि मुझे याद करो, तुमको मेरे पास आना है। परमात्मा अभी सर्व आत्माओं को कहते हैं कि तुम सभी आत्माओं को मच्छरों सदृश्य आना है।
- तो जरूर आत्मा, परमात्मा बाप को ही फालो करेगी।
- श्रीकृष्ण ऐसे नहीं कहेंगे कि मुझ आत्मा को याद करो।
- उनका नाम ही कृष्ण है।
- आत्मा कोई भी नहीं कह सकती, आत्मायें सभी भाई-भाई हैं।
- यह तो बाप कहते हैं मैं निराकार हूँ, मुझ परम आत्मा का नाम है शिव।
- तो श्रीकृष्ण कैसे कहेंगे, उनको तो शरीर है।
- शिवबाबा को तो अपना शरीर है नहीं।
- शिवबाबा कहते हैं बच्चे तुम्हें भी पहले अपना शरीर नहीं था।
- तुम आत्मा निराकार थी, फिर शरीर लिया है।
- अब तुमको ड्रामा के आदि मध्य अन्त की स्मृति आई है।
- बाप सृष्टि कैसे, कब और क्यों रचते हैं?
- सृष्टि तो है ना।
- गायन भी है ब्रह्मा द्वारा नई सृष्टि की रचना की।
- तो जरूर पुरानी सृष्टि से ही नई सृष्टि की रचना करते होंगे।
- कहते भी हैं मनुष्य से देवता बनाया।
- बाप कहते हैं मैं तुमको इस पढ़ाई से मनुष्य से देवता बनाता हूँ।
- पूज्य देवता थे, फिर पुजारी बन गये हो।
- मनुष्य तो समझते नहीं कि 84 जन्म कैसे लेते हैं।
- क्या सभी 84 जन्म लेंगे?
- सृष्टि वृद्धि को प्राप्त करती रहती है।
- तो सभी कैसे 84 जन्म लेंगे!
- जरूर जो पीछे आयेंगे उनके जन्म कम होंगे।
- 25-50 वर्ष के अन्दर 84 जन्म कैसे लेंगे?
- यह है स्वदर्शन चक्र।
- उन्होंने फिर स्वदर्शन चक्र को एक हथियार का रूप बना दिया है।
- अब तुम आत्माओं को यह स्मृति आई है कि हमने 84 जन्म ऐसे-ऐसे भोगे।
- अभी चक्र पूरा होता है, फिर से ड्रामा को रिपीट करना है।
- पहले-पहले आदि सनातन देवी-देवता धर्म जरूर चाहिए, जो प्राय:लोप हो गया है।
- मनुष्य कहते हैं हे गॉड फादर रहम करो।
- तो बाप कहते हैं - अच्छा तुमको दु:ख से लिब्रेट कर सुखी बनाता हूँ।
- बाप का काम ही है सबको सुखी बनाना, इसलिए मैं कल्प-कल्प आता हूँ, आकर भारत को हीरे जैसा बनाता हूँ।
- बहुत सुखी बनाता हूँ।
- बाकी सबको मुक्तिधाम भेज देता हूँ।
- भक्त चाहते भी हैं भगवान से मिलने क्योंकि सुख के लिए तो संन्यासियों ने कह दिया है कि यह काग विष्टा समान सुख है और दूसरा फिर कहते इस ड्रामा के खेल में फिर आयें ही नहीं।
- मोक्ष को पा लें।
- अब मोक्ष तो मिलना नहीं है।
- यह है बना बनाया ड्रामा।
- सारे सृष्टि की हिस्ट्री-जॉग्राफी को तुम बच्चे अभी जानते हो कि यह कैसे चक्र लगाती है।
- जिसको ही स्वदर्शन चक्र कहा जाता है।
- यह जो दिखाते हैं स्वदर्शन चक्र से सभी के सिर काटे।
- कंस बध का नाटक दिखाते हैं।
- ऐसे कुछ भी है नहीं।
- यहाँ हिंसा की बिल्कुल बात ही नहीं।
- यह तो पढ़ाई है।
- पढ़ना है, बाप से वर्सा लेना है।
- बाप से वर्सा लेने के लिए किसको कतल करते हैं क्या?
- वह होता है हद का वर्सा, यह है बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेना।
- गीता में लड़ाई आदि की कितनी बातें लिख दी हैं।
- वह तो कुछ भी हैं नहीं।
- पाण्डवों की लड़ाई वास्तव में कोई के साथ है नहीं।
- यह तो योगबल से बेहद के बाप से तुम बच्चे वर्सा ले रहे हो, नई दुनिया के लिए।
- इसमें लड़ाई की कोई बात नहीं।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप से 21 पीढ़ी का वर्सा लेने के लिए निरन्तर बाप और वर्से को याद करने का पुरुषार्थ करना है।
किसी भी देहधारी को याद नहीं करना है।
2) बुद्धि में स्वदर्शन चक्र फिराते रहना है।
हम पूज्य थे, फिर पुजारी बनें, 84 जन्मों का चक्र पूरा किया, फिर से ड्रामा रिपीट होना है, हमें पुजारी से पूज्य बनना है - यह स्मृति ही स्वदर्शन चक्र है।
( All Blessings of 2021-22)
समानता द्वारा समीपता की सीट ले फर्स्ट डिवीजन में आने वाले विजयी रत्न भव
समय की समीपता के साथ-साथ अब स्वयं को बाप के समान बनाओ।
संकल्प, बोल, कर्म, संस्कार और सेवा सबमें बाप जैसे समान बनना अर्थात् समीप आना।
हर संकल्प में बाप के साथ का, सहयोग का, स्नेह का अनुभव करो।
सदा बाप के साथ और हाथ में हाथ की अनुभूति करो तो फर्स्ट डिवीजन में आ जायेंगे।
निरन्तर याद और सम्पूर्ण स्नेह एक बाप से हो तो विजय माला के विजयी रत्न बन जायेंगे।
अभी भी चांस है, टूलेट का बोर्ड नहीं लगा है।
(All Slogans of 2021-22)
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सुखदाता बन अनेक आत्माओं को दु:ख अशान्ति से मुक्त करने की सेवा करना ही सुखदेव बनना है।
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