26-01-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - अमृतवेलेamritvele के शान्त, शुद्धsudh वायुमण्डल में तुम देहdeh सहित सब कुछ भूल मुझे यादyaad करो, उस समय याद बहुत अच्छी रहेगी''

 

प्रश्नः-

बाप की ताकतtaakat प्राप्त करने के लिए तुम बच्चे सबसे अच्छा कर्म कौन सा करते हो?

उत्तर:-

सबसे अच्छा कर्म है बाप पर अपना सब कुछ (तन-मन-धन सहित) अर्पणarpan करना।

जब तुम सब कुछ अर्पित करते हो तो

बाप तुम्हें रिटर्न में इतनी ताकत देता, जिससे तुम सारे विश्व पर सुख-शान्ति का अटल अखण्ड राज्य कर सको।

प्रश्नः-

बाप ने कौन सी सेवा बच्चों को सिखलाई है जो कोई मनुष्य नहीं सिखला सकता?

 

उत्तर:-

रूहानी सेवा।

तुम आत्माओं को विकारों की बीमारी से छुड़ाने के लिए ज्ञान का इंजेक्शन लगाते हो।

तुम हो रूहानी सोशल वर्कर।

मनुष्य जिस्मानी सेवा करते लेकिन ज्ञान इंजेक्शन देकर आत्मा को जागती-ज्योत नहीं बना सकते।

यह सेवा बाप ही बच्चों को सिखलाते हैं।

 

  • ओम् शान्ति।
  • भगवानुवाच - यह तो समझाया गया है कि मनुष्य को भगवान कभी भी नहीं कहा जा सकता।
  • यह है मनुष्य सृष्टि और ब्रह्मा विष्णु शंकर हैं सूक्ष्मवतन में।
  • शिवबाबा है आत्माओं का अविनाशी बाप।
  • विनाशी शरीर का बाप तो विनाशी है।
  • यह तो सब जानते हैं।
  • पूछा जाता है कि तुम्हारे इस विनाशी शरीर का बाप कौन है?
  • आत्मा का बाप कौन है?
  • आत्मा जानती है - वह परमधाम में रहते हैं।
  • अभी तुम बच्चों को देह-अभिमानी किसने बनाया?
  • देह को रचने वाले ने।
  • अब देही-अभिमानी कौन बनाता है?
  • जो आत्माओं का अविनाशी बाप है।
  • अविनाशीavinashi माना जिसका आदि-मध्य-अन्त नहीं है।
  • अगर आत्मा का और परम आत्मा का आदि मध्य अन्त कहें तो फिर रचना का भी सवाल उठ जाए।
  • उनको कहा जाता है अविनाशी आत्मा, अविनाशी परमात्मा।
  • आत्मा का नाम आत्मा है।
  • बरोबर आत्मा अपने को जानती है कि हम आत्मा हैं।
  • मेरी आत्मा को दु:खी मत करो।
  • मैं पापात्मा हूँ - यह आत्मा कहती है।
  • स्वर्ग में कभी भी यह अक्षर आत्मायें नहीं कहेंगी।
  • इस समय ही आत्मा पतित है, जो फिर पावन बनती है।
  • पतित आत्मा ही पावन आत्मा की महिमा करती है।
  • जो भी मनुष्यात्माएं हैं उनको पुनर्जन्म तो जरूर लेना ही है।
  • यह सब बातें हैं नई।
  • बाप फरमानfarmaan करते हैं - उठते बैठते मुझे याद करो।
  • आगे तुम पुजारी थे।
  • शिवाए नम: कहते थे।
  • अब बाप कहते हैं तुम पुजारियों ने नम: तो बहुत बारी किया।
  • अब तुमको मालिक, पूज्य बनाता हूँ।
  • पूज्य को कभी नम: नहीं करना पड़ता।
  • पुजारी नम: अथवा नमस्ते कहते हैं।
  • नमस्ते का अर्थ ही है नम: करना।
  • कांध थोड़ा नीचे जरूर करेंगे।
  • अब तुम बच्चों को नम: कहने की दरकार नहीं।
  • न लक्ष्मी-नारायण नम:, न विष्णु देवताए नम:, न शंकर देवताए नम:।
  • यह अक्षर ही पुजारीपन का है।
  • अब तो तुमको सारी सृष्टि का मालिक बनना है।
  • बाप को ही याद करना है।
  • कहते भी हैं वह सर्व समर्थ है।
  • कालों का काल, अकालमूर्त है।
  • सृष्टि का रचयिता है।
  • ज्योर्तिबिन्दु स्वरूप है।
  • आगे उनकी बहुत महिमा करते थे, फिर कह देते थे सर्वव्यापी, कुत्ते बिल्ली में भी है तो सभी महिमा खत्म हो जाती।
  • इस समय के सब मनुष्य ही पाप आत्मायें हैं तो फिर जानवरों की क्या महिमा होगी।
  • मनुष्य की ही सारी बात है।
  • आत्मा कहती है मैं आत्मा हूँ, यह मेरा शरीर है।
  • जैसे आत्मा बिन्दु है वैसे परमपिता परमात्मा भी बिन्दु है।
  • वह भी कहते मैं पतितों को पावन बनाने साधारण तन में आता हूँ।
  • आकर बच्चों का ओबीडियेन्ट सर्वेन्ट बन सर्विस करता हूँ।
  • मैं रूहानी सोशल वर्कर हूँ।
  • तुम बच्चों को भी रूहानी सेवा करना सिखलाता हूँ।
  • और सब जिस्मानी हद की सेवा करना सिखलाते हैं।
  • तुम्हारी है रूहानी सेवा, तब कहा जाता है ज्ञान अंजन सतगुरू दिया... सच्चा सतगुरू वह एक ही है।
  • वही अथॉरिटी है।
  • सभी आत्माओं को आकर इन्जेक्शन लगाते हैं।
  • आत्माओं में ही विकारों की बीमारी है।
  • यह ज्ञान का इन्जेक्शन और कोई के पास होता नहीं।
  • पतित आत्मा बनी है न कि शरीर, जिसको इन्जेक्शन लगायें।
  • पाँच विकारों की कड़ी बीमारी है।
  • इसके लिए इन्जेक्शन ज्ञान सागर बाप के सिवाए कोई के पास भी है नहीं।
  • बाप आकर आत्माओं से बात करते हैं कि हे आत्मायें तुम जागती ज्योति थी, फिर माया ने परछाया डाला।डालते-डालते तुमको धुन्धकारी बुद्धि बना दिया है।
  • बाकी कोई युद्धिष्ठिर व धृतराष्ट्र की बात नहीं है।
  • यह रावण की बात है।
  • बाप कहते हैं - मैं आता ही हूँ साधारण रीति।
  • मेरे को विरला ही कोई जान सकते हैं।
  • शिव जयन्ती अलग है, कृष्ण जयन्ती अलग है।
  • परमपिता परमात्मा शिव को श्रीकृष्ण से मिला नहीं सकते।
  • वह निराकार, वह साकार।
  • बाप कहते हैं मैं हूँ निराकार, मेरी महिमा भी गाते हैं - हे पतित-पावन आकर इस भारत को फिर से सतयुगी दैवी राजस्थान बनाओ।
  • कोई समय दैवी राजस्थान था।
  • अभी नहीं है। फिर कौन स्थापन करेगा?
  • परमपिता परमात्मा ही ब्रह्मा द्वारा नई दुनिया स्थापन करते हैं।
  • अभी है पतित प्रजा का प्रजा पर राज्य, इनका नाम ही है कब्रिस्तान।
  • माया ने खत्म कर दिया है।
  • अब तुमको देह सहित देह के सब सम्बन्धियों को भूल मुझ बाप को याद करना है।
  • शरीर निर्वाह अर्थ कर्म भी भल करो।
  • जो कुछ समय मिले तो मुझे याद करने का पुरुषार्थ करो।
  • यह एक ही तुमको युक्ति बताते हैं।
  • सबसे जास्ती मेरी याद तुमको अमृतवेले रहेगी
  • क्योंकि वह शान्त, शुद्ध समय होता है। उस समय न चोर चोरी करते, न कोई पाप करते, न कोई विकार में जाते। सोने के टाइम सब शुरू करते हैं। उसको कहा जाता है घोर तमोप्रधान रात।

  • अब बाप कहते हैं - बच्चे पास्ट इज़ पास्ट।

    भक्तिमार्ग का खेल पूरा हुआ, अब तुमको समझाया जाता है यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है।

    यह प्रश्न उठ नहीं सकता कि सृष्टि की वृद्धि कैसे होगी।

    वृद्धि तो होती ही रहती है।

    जो आत्मायें ऊपर हैं, उनको नीचे आना ही है।

    जब सभी आ जायेंगे तब विनाश शुरू होगा।

    फिर नम्बरवार सबको जाना ही है।

    गाइड सबसे आगे होता है ना।

  • बाप को कहा जाता है लिबरेटर, पतित-पावन।

  • पावन दुनिया है ही स्वर्ग।
  • उनको बाप के सिवाए कोई बना न सके।
  • अब तुम बाप की श्रीमत पर भारत की तन मन धन से सेवा करते हो।
  • गाँधी जी चाहते थे, परन्तु कर न सके।
  • ड्रामा की भावी ऐसी थी।
  • जो पास्ट हुआ।
  • पतित राजाओं का राज्य खत्म होना था तो उनका नाम-निशान खत्म हो गया।
  • उन्हों की प्रापर्टी का भी नाम निशान नहीं है।
  • खुद भी समझते थे लक्ष्मी-नारायण ही स्वर्ग के मालिक थे।
  • परन्तु यह कोई नहीं जानते कि उन्हों को ऐसा किसने बनाया?
  • जरूर स्वर्ग के रचयिता बाप से वर्सा मिला होगा और कोई इतना भारी वर्सा दे न सके।
  • यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं।
  • गीता में हैं परन्तु नाम बदल दिया है।
  • कौरव और पाण्डव दोनों को राजाई दिखाते हैं।
  • परन्तु यहाँ दोनों को राजाई नहीं है।
  • अब बाप फिर स्थापना करते हैं।
  • तुम बच्चों को खुशी का पारा चढ़ना चाहिए।
  • अब नाटक पूरा होता है।
  • हम अब जा रहे हैं।
  • हम स्वीट होम में रहने वाले हैं।
  • वो लोग कहते हैं फलाना पार निर्वाण गया वा ज्योति ज्योति में समाया अथवा मोक्ष को पाया।
  • भारतवासियों को स्वर्ग मीठा लगता है, वह कहते हैं स्वर्ग पधारा।
  • बाप समझाते हैं मोक्ष तो कोई पाता नहीं।
  • सभी का सद्गति दाता बाप ही है, वह जरूर सबको सुख ही देगा।
  • एक निर्वाणधाम में बैठे और एक दु:ख भोगे, यह बाप सहन कर नहीं सकते।
  • बाप है पतित-पावन।
  • एक है मुक्ति-धाम पावन, दूसरा है जीवन मुक्तिधाम पावन।
  • फिर द्वापर के बाद सभी पतित बन जाते हैं।
  • पाँच तत्व आदि सब तमोप्रधान बन जाते हैं फिर बाप आकर पावन बनाते हैं फिर वहाँ पवित्र तत्वों से तुम्हारा शरीर गोरा बनता है। नेचुरल ब्युटी रहती है।
  • उनमें कशिश रहती है।
  • श्रीकृष्ण में कितनी कशिश है।
  • नाम ही है स्वर्ग तो फिर क्या?
  • परमात्मा की महिमा बहुत करते हैं, अकालमूर्त.... फिर उनको ठिक्कर भित्तर में ठोक दिया है।
  • बाप को कोई भी जानते नहीं, जब बाप आये तब आकर समझाये।
  • लौकिक बाप भी जब बच्चे रचे तब तो बाप की बॉयोग्राफी का उनको पता पड़े।
  • बाप के बिगर बच्चों को बाप की बॉयोग्राफी का पता कैसे पड़े।
  • अब बाप कहते हैं लक्ष्मी-नारायण को वरना है तो मेहनत करनी पड़े।
  • जबरदस्त मंजिल है, बहुत भारी आमदनी है।
  • सतयुग में पवित्र प्रवृति मार्ग था।
  • पवित्र राजस्थान था सो अब अपवित्र हो गया है।
  • सब विकारी बन गये हैं।
  • यह है ही आसुरी दुनिया।
  • बहुत करप्शन लगी हुई है।
  • राजाई में तो ताकत चाहिए।
  • ईश्वरीय ताकत तो है नहीं।
  • प्रजा का प्रजा पर राज्य है, जो दान पुण्य अच्छे कर्म करते हैं उनको राजाई घर में जन्म मिलता है।
  • वह कर्म की ताकत रहती है।
  • अभी तुम तो बहुत ऊंचे कर्म करते हो।
  • तुम अपना सब कुछ (तन-मन-धन) शिवबाबा को अर्पण करते हो, तो शिवबाबा को भी बच्चों के सामने सब कुछ अर्पण करना पड़े।
  • तुम उनसे ताकत धारण कर सुख शान्ति का अखण्ड अटल राज्य करते हो।
  • प्रजा में तो कुछ भी ताकत नहीं है।
  • ऐसे नहीं कहेंगे कि धन दान किया तब एम.एल.ए. आदि बने।
  • धन दान करने से धनवान घर में जन्म मिलता है।
  • अभी तो राजाई कोई है नहीं।
  • अब बाबा तुमको कितनी ताकत देते हैं।
  • तुम कहते हो हम नारायण को वरेंगे।
  • हम मनुष्य से देवता बन रहे हैं।
  • यह हैं सब नई-नई बातें।
  • नारद की बात अभी की है।
  • रामायण आदि भी अभी के हैं।
  • सतयुग त्रेता में कोई शास्त्र होता नहीं।
  • सभी शास्त्रों का अभी से तैलुक है।
  • झाड़ को देखेंगे मठ पंथ सब बाद में आते हैं।
  • मुख्य है ब्राह्मण वर्ण, देवता वर्ण, क्षत्रिय वर्ण... ब्राह्मणों की चोटी मशहूर है।
  • यह ब्राह्मण वर्ण सबसे ऊंचा है जिसका फिर शास्त्रों में वर्णन नहीं है।
  • विराट रूप में भी ब्राह्मणों को उड़ा दिया है। ड्रामा में ऐसी नूँध है।
  • दुनिया के लोग यह नहीं समझते कि भक्ति से नीचे उतरते हैं।
  • कह देते हैं भक्ति से भगवान मिलता है।
  • बहुत पुकारते हैं, दु:ख में सिमरण करते हैं।
  • सो तो तुम अनुभवी हो।
  • वहाँ दु:ख की बात नहीं, यहाँ सबमें क्रोध है, एक दो को गाली देते रहते हैं।
  • अभी तुम शिवाए नम: नहीं कहेंगे।
  • शिव तो तुम्हारा बाप है ना।
  • बाप को सर्वव्यापी कहने से ब्रदरहुड उड़ जाता है।
  • भारत में कहते तो बहुत अच्छा हैं - हिन्दू चीनी भाई-भाई, चीनी मुस्लिम भाई-भाई।
  • भाई-भाई तो हैं ना।
  • एक बाप के बच्चे हैं।
  • इस समय तुम जानते हो हम एक बाप के बच्चे हैं।
  • यह ब्राह्मणों का सिजरा फिर से स्थापन हो रहा है।
  • इस ब्राह्मण धर्म से देवी-देवता धर्म निकलता है।
  • देवी-देवता धर्म से क्षत्रिय धर्म।
  • क्षत्रिय से फिर इस्लामी धर्म निकलेगा... सिजरा है ना।
  • फिर बौद्धी, क्रिश्चियन निकलेंगे।
  • ऐसे वृद्धि होते-होते इतना बड़ा झाड हो गया है।
  • यह है बेहद का सिजरा, वह होता है हद का।
  • यह डीटेल की बातें जिसको धारण नहीं हो सकती, उनके लिए बाप सहज युक्ति बताते हैं कि बाप और वर्से को याद करो, तो स्वर्ग में जरूर आयेंगे।
  • बाकी ऊंच पद प्राप्त करना है तो उसके लिए पुरुषार्थ करना है।
  • यह तो तुम बच्चे जानते हो शिवबाबा भी तुमको समझाते हैं, यह बाबा भी समझाते हैं।
  • वही हमारी तुम्हारी बुद्धि में है।
  • भल हम शास्त्र आदि पढ़े हुए हैं परन्तु जानते हैं इन सबसे कोई भगवान नहीं मिलता।
  • बाप समझाते हैं मीठे-मीठे बच्चे शिवबाबा को और वर्से को याद करते रहो।
  • बाबा आप बहुत मीठे हो, कमाल है आपकी, ऐसे-ऐसे महिमा करनी चाहिए बाबा की।
  • तुम बच्चों को ईश्वरीय लाटरी मिली है।
  • अब मेहनत करनी है ज्ञान और योग की।
  • इसमें जबरदस्त प्राइज़ मिलती है तो पुरुषार्थ करना चाहिए।
  • अच्छा!
  • मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) अब नाटक पूरा हो रहा है, हम अपने स्वीट होम में जा रहे हैं, इस स्मृति से खुशी का पारा सदा चढ़ा रहे।

    2) पास्ट सो पास्ट कर इस अन्तिम जन्म में बाप को पवित्रता की मदद करनी है।

    तन-मन-धन से भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा में लगना है।


  • ( All Blessings of 2021-22)
  • सर्व पुराने खातों को संकल्प और संस्कार रूप से भी समाप्त करने वाले अन्तर्मुखी भव

    बापदादा बच्चों के सभी चौपड़े अब साफ देखने चाहते हैं।

    थोड़ा भी पुराना खाता अर्थात् बाह्यमुखता का खाता संकल्प वा संस्कार रूप में भी रह न जाए।

    सदा सर्व बन्धनमुक्त और योगयुक्त - इसी को ही अन्तर्मुखी कहा जाता है इसलिए सेवा खूब करो लेकिन बाह्यमुखी से अन्तर्मुखी बनकर करो।

    अन्तर्मुखता की सूरत द्वारा बाप का नाम बाला करो, आत्मायें बाप का बन जाएं - ऐसा प्रसन्नचित बनाओ।



  • (All Slogans of 2021-22)
    • अपने परिवर्तन द्वारा संकल्प, बोल, सम्बन्ध, सम्पर्क में सफलता प्राप्त करना ही सफलतामूर्त बनना है।

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