27-12-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

मीठे बच्चे - तुम्हें अभी ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है, तुम जानते हो हर 5 हजार वर्ष बाद भोलानाथ बाप द्वारा हम यह ज्ञान सुनकर मनुष्य से देवता बनते हैं''

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प्रश्नः-

ज्ञान की धारणा न होने का मुख्य कारण क्या है?

 

उत्तर:-

बुद्धि भटकती है, एक के साथ पूरा योग नहीं है।

देही-अभिमानी नहीं बने हैं इसलिए धारणा नहीं होती है।

बाबा कहते बच्चे, फैमिलियरटी में नहीं आओ।

एक दो के नाम-रूप को मत याद करो।

एक बाप दूसरा न कोई - यह पाठ पक्का कर लो, दूसरों के पिछाड़ी न पड़ो।

बाप से राय लेते रहो, इससे तुम दु:ख से लिबरेट हो जायेंगे।

धारणा भी अच्छी होगी।

 

  • ओम् शान्ति।
  • भोलानाथ है देने वाला।
  • भोलानाथ शिवबाबा को तो कहते ही हैं।
  • भोलानाथ होकर गया है और बरोबर बिगड़ी बनाकर गया है।
  • आदि-मध्य-अन्त का राज़ बताकर गया है, इसलिए भगत गाते हैं।
  • तुम बच्चे जानते हो जिस भोलानाथ का गायन है, जो बिगड़ी को बनाने वाला है, वह हमारे सम्मुख बैठा है।
  • भगत भगवान को याद करते हैं, उनकी महिमा गाते हैं और बाप अपना पार्ट बजा रहे हैं।
  • बाप ने ही आकर अपना परिचय दिया है, बच्चों को।
  • बच्चों की बुद्धि में बैठा है कि बाबा जो समझाते हैं वह बरोबर कल्प-कल्प समझाते हैं।
  • कल्प-कल्प आकर पतित दुनिया को पावन दुनिया बनाते हैं।
  • अभी बना रहे हैं।
  • बहुतों को अभी पता पड़ा है।
  • अभी बहुत हैं जिन्हों को पता नहीं है - वर्सा लेने वाले होंगे तो कल्प पहले मुआफिक आकर वर्सा लेंगे।
  • तुमको पहले थोड़ेही यह मालूम था कि बाबा आकर वर्सा देंगे।
  • अभी मालूम पड़ा है।
  • बरोबर भक्तों का रक्षक है।
  • आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सुनाते हैं।
  • उनको ज्ञान का सागर कहा जाता है।
  • दिल से लगता है बरोबर यह वही हैं जो भारत में आकर जन्म लेते हैं।
  • इनका अलौकिक जन्म गाया हुआ है।
  • भारतवासियों को आकर पतित से पावन बनाते हैं।
  • पतित मनुष्य जो बुलाते हैं वह जरूर समझते होंगे हम पावन थे, अब पतित बने हैं, फिर पावन बनना है।
  • अभी बाप द्वारा तीसरा नेत्र मिलने से तुमने यह सब कुछ समझा है।
  • तुम बच्चों का सारा दिन विचार सागर मंथन चलता रहेगा।
  • सतयुग में पावन कौन थे?
  • बरोबर देवी-देवता ही थे।
  • उस समय और कोई धर्म नहीं था।
  • देवताओं के चित्र भी हैं और कोई नाम नहीं लेंगे।
  • ऐसे नहीं कहेंगे चित्र हैं।
  • श्री लक्ष्मी देवी, श्री नारायण देवता।
  • अभी वह नहीं हैं।
  • जब वह थे तो और कोई धर्म नहीं था।
  • तुम बच्चों की बुद्धि में है कि बाबा हमको सत्य कथा सुनाते हैं।
  • तो लोग कहते हैं यह ज्ञान तो हमने सुना नहीं है क्योंकि उनको ड्रामा के राज़ का तो पता नहीं हैं।
  • तुम कहेंगे यह तो कल्प-कल्प तुम सुनते आये हो।
  • क्या 5 हजार वर्ष पहले नहीं सुनाया था?
  • फिर यह क्यों कहते हो आगे कभी नहीं सुना है।
  • कल्प पहले जिसने सुनाया था उस द्वारा तुम अभी भी सुन रहे हो।
  • अच्छी रीति समझाना चाहिए।
  • तुमने तो 5 हजार वर्ष पहले भी यह ज्ञान सुना था।
  • देवताओं को 5 हजार वर्ष हुए हैं।
  • उन्हों को मनुष्य से देवता किसने बनाया?
  • अभी भी वही बाप फिर से बनायेगा।
  • 5 हजार वर्ष बाद फिर से बाप को आना पड़ता है।
  • रावण द्वारा पतित बने हुए को पावन बनाने।
  • हिस्ट्री-जॉग्राफी मस्ट रिपीट।
  • यह भी समझ में आता है हिस्ट्री रिपीट होती है।
  • सतयुग के बाद त्रेता... चक्र लगाते हैं।
  • अभी कलियुग का अन्त है।
  • एक तरफ विनाश ज्वाला खड़ी है - दूसरी तरफ बाबा यहाँ आये हैं, नई दुनिया स्थापन करने अर्थ।
  • यह वही महाभारत लड़ाई है।
  • समझते हैं इससे विनाश हो जायेगा - मनुष्यों की दुनिया का।
  • यह सबको समझ में आता है।
  • पुरानी दुनिया का विनाश देखने में आता है।
  • यह महाभारी महाभारत लड़ाई 5 हज़ार वर्ष पहले भी लगी थी।
  • कोई लाखों वर्ष की बात नहीं है।
  • यह भारत ही स्वर्ग था।
  • इन देवताओं का राज्य था।
  • यह सतयुग के मालिक थे।
  • चित्रों पर भी अच्छी रीति समझाना पड़ता है इसलिए ही यह लक्ष्मी-नारायण आदि के चित्र बनाये हैं।
  • यूँ लक्ष्मी-नारायण के चित्र तो भारत में ढेर हैं, फिर हम बनाते हैं, क्यों?
  • हम अर्थ सहित बनाते हैं।
  • इनमें पूरा ज्ञान है।
  • मनुष्य तो मूँझे हुए हैं इसलिए समझाया जाता है - सतयुग में इन्हों का राज्य था।
  • बहुत थोड़े मनुष्य थे जो होकर गये हैं वही फिर पुनर्जन्म ले पावन से पतित बनेंगे।
  • यह दुनिया ही तमोप्रधान है फिर पावन बनना है।
  • समझानी तो बहुत सहज है।
  • बाप कहते हैं मैं तुमको 5 हजार वर्ष पहले की कहानी सुनाता हूँ।
  • लाँग-लाँग एगो... यहाँ इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था अथवा क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले सतयुग था।
  • हेविनली गॉड फादर ने हेविन स्थापन किया था।
  • भारत को कहते भी हैं प्राचीन देश है, इसमें गॉड गॉडेज राज्य करते थे।
  • गॉड कृष्ण, गॉडेज राधे कहते हैं।
  • राधे-कृष्ण, लक्ष्मी नारायण सतयुग में थे, फिर राम-सीता त्रेता में 5 हजार वर्ष का हिसाब-किताब क्लीयर है।
  • जब उन्हों का राज्य था तो बाकी सब आत्मायें मुक्ति-धाम में थी।
  • आत्मा तो अविनाशी है।
  • आत्मा का कभी विनाश नहीं होता।
  • ड्रामा भी अविनाशी है।
  • आत्मा को 84 जन्मों का अविनाशी पार्ट मिला हुआ है।
  • इतनी छोटी सी आत्मा में सारा पार्ट भरा हुआ है।
  • यह कितनी वन्डरफुल बात है, इसको ही कुदरत कहा जाता है।
  • इतनी छोटी बिन्दी कितना 84 जन्मों का पार्ट, 5 हजार वर्ष का पार्ट उसमें भरा हुआ है। वह भी अविनाशी, जो रिपीट जरूर करना है।
  • यह बड़े ते बड़ी कुदरत है।
  • परमात्मा भी बिन्दी, आत्मा भी बिन्दी।
  • परन्तु परमात्मा सुप्रीम है।
  • आत्मायें तो सब एक जैसी नहीं हैं, नम्बरवार हैं।
  • पहले सुप्रीम शिवबाबा फिर कहेंगे लक्ष्मी-नारायण।
  • ब्रह्मा-सरस्वती को सुप्रीम नहीं कहेंगे।
  • सम्पूर्ण तो लक्ष्मी-नारायण है फिर नम्बरवार एक दो के पिछाड़ी आते हैं।
  • मुख्य गायन है देवताओं का।
  • सबसे सुप्रीम आत्मा शिवबाबा की है फिर सूक्ष्मवतन में ब्रह्मा-विष्णु-शंकर फिर लक्ष्मी-नारायण, राम-सीता सब नम्बरवार हैं।
  • नाटक में भी एक्टर नम्बरवार होते हैं।
  • सब एक जैसे नहीं होते हैं।
  • कहेंगे इनकी आत्मा सुप्रीम एक्टर है, यह पाई पैसे का एक्टर है।
  • सबसे फर्स्टक्लास क्रियेटर, डायरेक्टर कौन है?
  • करनक-रावनहार एक ही परमपिता परमात्मा है।
  • अब तुमको सारे ड्रामा का पता पड़ा है।
  • यह है बेहद का ड्रामा, नटशेल में तुमको बताया जाता है।
  • झाड़ का यह देवी-देवता धर्म है फ़ाउन्डेशन।
  • फिर उनसे टालियाँ इस्लामी, बौद्धी, क्रिश्चियन निकले हैं।
  • यह फ्लावरवाज़ होगा।
  • झाड़ शोभता है ना।
  • बाकी एक-एक धर्म के पत्ते बैठ गिनती करो तो कितने होंगे।
  • इस्लामी, बौद्धी सबके मठ पंथ गिने जाते हैं।
  • शिव भोलानाथ यह ज्ञान सुनाते हैं।
  • बाकी कोई डमरू आदि बजाने की बात नहीं है।
  • शास्त्रों में जो आया सो लिख दिया है।
  • वास्तव में है ज्ञान की डमरू, इनको शंखध्वनि भी कहा जाता है।
  • शंखध्वनि मुख से की जाती है।
  • यह है ज्ञान की मुरली।
  • ड्रामा के आदि-मध्य अन्त का राज़ बैठ सुनाते हैं।
  • आत्मा बिन्दी मिसल है, जिसमें सारा पार्ट नूँधा हुआ है। वह क्रियेटर है।
  • वो एक्ट भी करते हैं।
  • अच्छा पार्ट वह लेते हैं।
  • नम्बरवार तो होते हैं ना।
  • यह है ही एक बाप क्रियेटर और सब पुनर्जन्म में आने वाले हैं।
  • यह कभी पुनर्जन्म नहीं लेते हैं, इनका अलौकिक जन्म है।
  • तुम जानते हो कैसे आकर प्रवेश किया है।
  • दूसरी आत्मायें भी प्रवेश करती हैं ना।
  • समझो किसके स्त्री की आत्मा आती है।
  • बोल सकेगी कि मैं सुखी हूँ।
  • बाकी उनके शरीर को भाकी नहीं पहन सकेंगे क्योंकि शरीर तो दूसरा है ना।
  • भावना है कि यह हमारे स्त्री की आत्मा है, इनको बुलाया गया है।
  • ऐसे बहुतों को बुलाते हैं।
  • अभी तमोगुणी हो गये हैं इसलिए एक्यूरेट बताते नहीं हैं।
  • आत्मा क्या चीज़ है, कैसे आती-जाती है।
  • यह ड्रामा में पहले से ही नूँध है।
  • ऐसे नहीं आत्मा निकलकर यहाँ आती है।
  • वह मर जाती है, नहीं।
  • बाप कहते हैं यह मनोकामना पूर्ण करने के लिए साक्षात्कार कराता हूँ, जो ड्रामा में नूँध है।
  • सो होता है।
  • सेकण्ड पास हुआ, ड्रामा में नूँध है।
  • यह बेहद का नाटक है।
  • बाप बिन्दी है।
  • बिन्दी को भोलानाथ कहते हैं।
  • कितना वन्डर है।
  • बाप भी कहते हैं मुझ बिन्दी में कितना पार्ट है।
  • यह बातें नये कोई की बुद्धि में बैठ न सकें।
  • पुरानों से भी कितनों की समझ में नहीं आता है।
  • तो किसको समझाने में मूँझते हैं, जैसे रेडियों में कोई बात करने में मूँझते हैं।
  • इसमें मुरली बड़ी फुर्ती से चलानी है।
  • वह पढ़कर सुनाते हैं।
  • यह है ओरली।
  • बाबा भी सब कुछ ओरली सुनाते हैं।
  • तुम्हारी बुद्धि में धारणा हो रही है।
  • कल्प पहले भी तुमने धारणा कर बहुतों को सुनाया है।
  • फिर वह ज्ञान खत्म हो गया।
  • अब फिर रिपीट होना है।
  • यह ज्ञान कोई साधू-सन्त की बुद्धि में नहीं है।
  • वह परमात्मा को नहीं जानते।
  • वह कह देते हैं - आत्मा परमात्मा में मिल जायेगी।
  • मिलेगी फिर कैसे?
  • अभी तुम्हारी आत्मा जानती है कि हमारा बाप आया है।
  • हमको नॉलेज दे रहा है।
  • फिर हम बाबा के साथ घर जायेंगे।
  • यह तुम बच्चों को रूहानी नशा है।
  • यह है तुम्हारा प्रवृत्ति मार्ग।
  • बहुत तुमको कहते हैं कि तुम तो कुमार अथवा कुमारी हो।
  • तुमको विकारों का अनुभव ही नहीं।
  • हम तो विकारी गृहस्थ में रहने वाले हैं।
  • तुम हमको यह ज्ञान कैसे दे सकते हो?
  • हम हैं युगल, हमको बैचलर कैसे समझा सकेगा?
  • हमको तो युगल समझाये, जो अनुभवी हो?
  • विकार में गया हुआ हो, वही हमको समझा सकते हैं कि हमने ऐसे जीत पाई।
  • ऐसे-ऐसे बाबा के पास पत्र आते हैं।
  • बात तो ठीक है, अब ऐसे अनुभवी से पत्र लिखाना चाहिए, जिसने भल शादी की हो परन्तु पवित्र हो।
  • कोई को बाल-बच्चे थे, फिर पवित्र बने हैं।
  • ऐसे-ऐसे हमको समझायें।
  • ज्ञान तो बहुत अच्छा है।
  • परन्तु कोई तीखा समझाने वाला नहीं है तो मैं मूँझ जाता हूँ।
  • बहुत बातें सामने आती हैं।
  • तो अनुभवी समझाने वाला हो।
  • अब पत्रों द्वारा तो किसको इतना समझा नहीं सकते।
  • सम्मुख आकर मिलें तो बाबा भी समझाये।
  • ऐसे-ऐसे बहुत युगल हैं जो अपना अनुभव सुना सकते हैं कि हम ऐसे प्रवृत्ति में रह श्रीमत का पूरा-पूरा पालन कर रहे हैं।
  • खान-पान की भी पूरी परहेज रखते हैं।
  • कोई समझाने वाला ठीक नहीं है तो मूँझ पड़ते हैं।
  • सर्विस के लिए बुद्धि चलनी चाहिए।
  • देही-अभिमानी भी बनना है।
  • कोई भी फैमिलियरटी में नहीं आना चाहिए।
  • मेहनत लगती है।
  • माया घड़ी-घड़ी फँसा लेती है।
  • कर्मातीत अवस्था अभी हो नहीं सकती।
  • बहुत एक दो के नाम-रूप में फँस पड़ते हैं।
  • फिर बाबा को लिखते भी नहीं कि बाबा यह-यह तूफान आते हैं।
  • सच नहीं बताते हैं।
  • बाबा को लिखें तो बाबा युक्ति भी बतायें।
  • कोई-कोई सच लिखते हैं।
  • शिवबाबा तो सब कुछ जानते हैं।
  • समझाते हैं अगर ऐसी कोई चलन चली तो धर्मराज द्वारा बहुत दण्ड भोगना पड़ेगा।
  • सारा दिन ख्यालात चलते रहते हैं।
  • सेन्टर पर आते हैं।
  • कहते हैं फलानी बहुत अच्छा समझाती है।
  • परन्तु अन्दर शैतानी भरी पड़ी होगी।
  • यहाँ तो एक के साथ योग चाहिए।
  • बाप के सिवाए दूसरा न कोई।
  • क्यों दूसरे के पीछे पड़े।
  • धारणा नहीं होती है तो जरूर कहाँ बुद्धि भटकती है फिर राय भी नहीं पूछते हैं।
  • डरते हैं।
  • बाप कहते हैं मामेकम् याद करो।
  • इस याद से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे।
  • दु:ख से तुम लिबरेट हो जायेंगे।
  • मुक्ति तो सब माँगते हैं।
  • मुक्त होते हैं दु:ख से फिर सुख में आयेंगे।
  • जीवनमुक्ति सबके लिए है।
  • परन्तु पहले मुक्ति में जाकर फिर जीवनमुक्ति में आना है।
  • अच्छा!
  • मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) बाप समान ज्ञान की शंख ध्वनि करनी है।

    सिर्फ पढ़ करके नहीं सुनाना है।

    धारणा करके फिर समझाना है।

    2) खान-पान की बहुत परहेज रखनी है।

    श्रीमत का पालन कर प्रवृत्ति में रहते हुए कैसे पवित्र रहते हैं, यह अनुभव दूसरों को सुनाना है।


  • ( All Blessings of 2021-22)
  • साधन वा सैलवेशन के प्रभाव में आने के बजाए प्रकृति को दासी बनाने वाले विजयी भव

    कभी भी योगी पुरूष वा पुरूषोत्तम आत्मायें प्रकृति के प्रभाव में नहीं आ सकती।

    आप ब्राह्मण आत्मायें पुरूषोत्तम और योगी आत्मायें हो, प्रकृति आप मालिकों की दासी है इसलिए प्रकृति के कोई भी साधन वा सैलवेशन आपको अपने प्रभाव में प्रभावित न कर लें।

    साधन, साधना का आधार न हों लेकिन साधना, साधनों को आधार बनाये तब कहेंगे प्रकृतिजीत, विजयी आत्मा।



  • (All Slogans of 2021-22)
    • एवररेडी वह हैं जो हर घड़ी को अन्तिम घड़ी समझकर चलते हैं।
    BK Naresh Bhai's present residence cum workplace