23-12-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

मीठे बच्चे - याद में बैठते समय आंखे खोलकर बैठो क्योंकि तुम्हें खाते-पीते, चलते-फिरते बाप की याद में रहना है''

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प्रश्नः-

भगवान को ढूँढने के लिए मनुष्य दर-दर धक्के क्यों खाते हैं - कारण?

 

उत्तर:-

क्योंकि मनुष्यों ने भगवान को सर्वव्यापी कह बहुत धक्के खिलाये हैं।

सर्वव्यापी है तो कहाँ से मिलेगा?

फिर कह देते हैं परमात्मा तो नाम-रूप से न्यारा है।

जब नाम-रूप से ही न्यारा है तो मिलेगा फिर कैसे और ढूँढेंगे किसको?

इसलिए दर-दर धक्के खाते रहते हैं।

तुम बच्चों का भटकना अब छूट गया।

तुम निश्चय से कहते हो - बाबा परमधाम से आये हैं।

हम बच्चों से इन आरगन्स द्वारा बात कर रहे हैं।

बाकी नाम-रूप से न्यारी कोई चीज़ होती नहीं।

 

  • ओम् शान्ति।
  • मीठे-मीठे बच्चे बाप की याद में बैठे हैं।
  • यह किसने कहा और किसको?
  • सभी आत्माओं के बाप ने अपने बच्चों, आत्माओं से बोला।
  • आत्माओं ने आरगन्स से सुना कि बाबा ने क्या कहा?
  • बाप ने कहा, अपने बाप को याद करते हो?
  • बाप को याद करने के लिए क्या आंखें बन्द करनी होती हैं?
  • बच्चे जब बाप को याद करते हैं तो आंखे तो खुली हुई होती हैं।
  • उठते-बैठते, चलते-फिरते बच्चों को बाप की याद रहती है।
  • आंखे बन्द करने की दरकार नहीं।
  • आत्मा जानती है कि मेरा बाप इन आरगन्स से मेरे से बात करते हैं।
  • परमधाम से आये हैं, इस पतित पुरानी दुनिया को नई दुनिया बनाने।
  • यह बुद्धि में है, आंखे तो खुली हुई हैं।
  • बाबा बात करते हैं, तुम सुनते भी हो और याद में भी हो।
  • कौन सुनाते हैं?
  • परमपिता परमात्मा।
  • उनका नाम क्या है?
  • जैसे तुम्हारे शरीर का नाम है।
  • वह बदलता रहता है।
  • एक शरीर लिया, छोड़ा फिर दूसरा लिया तो नाम भी दूसरा पड़ेगा।
  • आत्मा का नाम बदलता नहीं है।
  • बाप कहते हैं मैं भी आत्मा हूँ, तुम भी आत्मा हो।
  • मैं परमधाम में रहने वाला परम आत्मा हूँ, इसलिए सुप्रीम आत्मा कहते हैं।
  • सुप्रीम ऊंचे ते ऊंच को कहा जाता है।
  • ऊंच आत्मायें भी हैं तो नीच आत्मायें भी हैं।
  • कोई पुण्य आत्मा, कोई पाप आत्मा।
  • बाप कहते हैं - मुझ आत्मा का नाम सदैव एक ही शिव है।
  • नाम तो जरूर चाहिए ना।
  • न जानने के कारण कह देते हैं नाम-रूप से न्यारा है।
  • परन्तु नाम-रूप से न्यारी कोई चीज़ हो न सके।
  • जैसे आकाश है, कोई चीज़ तो नहीं है ना।
  • पोलार ही पोलार है।
  • उनका भी नाम तो हैं ना आकाश।
  • बहुत सूक्ष्म तत्व है।
  • अच्छा उनसे भी ऊपर देवता रहते हैं।
  • वह भी पोलार है।
  • आकाश में बैठे हैं।
  • फिर उनसे भी ऊपर और आकाश, उसमें भी आत्माओं के बैठने की जगह है।
  • वह भी आकाश है, जिसको ब्रह्म तत्व कहते हैं।
  • यह तीन तत्व हैं - स्थूल, सूक्ष्म, मूल।
  • आत्मायें तो जरूर पोलार में रहेंगी ना। तो तीन आकाश हो गये।
  • इस आकाश में खेल होता है तो जरूर रोशनी चाहिए।
  • मूलवतन में खेल नहीं होता, उसको ब्रह्म तत्व कहते हैं।
  • वहाँ आत्मायें निवास करती हैं।
  • वह है ऊंच ते ऊंच तीन लोक अर्थात् तीन मंजिल हैं दुनिया की।
  • ऐसे नहीं सागर के नीचे कोई लोक है।
  • पानी के नीचे फिर भी धरती है, जिस पर पानी ठहरता है।
  • तो यह हैं तीन लोक। साइलेन्स, मूवी और टॉकी।
  • यह शिवबाबा बैठ समझाते हैं।
  • क्या शिवबाबा को आंखे बन्द कर याद करना है? नहीं।
  • दूसरे लोग आंखे क्यों बन्द करते हैं?
  • क्योंकि आंखे धोखा देती हैं।
  • मनुष्य खुद कह देते हैं परमात्मा नाम-रूप से न्यारा है।
  • फिर कहते हैं पत्थर भित्तर सबमें हैं।
  • 24 अवतार हैं।
  • कच्छ मच्छ अवतार है।
  • वास्तव में है सब झूठ ही झूठ।
  • ईश्वर को सर्वव्यापी कह कितना रोला कर दिया है।
  • भक्ति मार्ग है ही धक्का खाने का मार्ग।
  • मुझे भी पूरे धक्के खिलाते हैं।
  • अब भक्त भगवान को याद करते हैं कि हमको भक्ति से, धक्कों से बचाओ।
  • जब यहाँ आकर मिलते हैं तो कहते हैं बाबा हमने आपको बहुत ढूँढा।
  • बहुत धक्के खाये परन्तु आप मिले नहीं।
  • अरे कब से धक्के खाये? बाबा यह पता नहीं।
  • अब बाप समझाते हैं ज्ञान से ही सद्गति होती है।
  • मनुष्य कुम्भ के मेले पर धक्के खाने जाते हैं।
  • जहाँ भी पानी होगा वहाँ जाकर स्नान करेंगे। कुम्भ अर्थात् संगम।
  • असुल है आत्मा और परमात्मा का मेला।
  • परन्तु भक्ति में फिर वह सागर और पानी का मेला बना दिया है।
  • देश-देशान्तर मेला लगता है।
  • वह है पानी में स्नान करने का मेला।
  • कई इन बातों को मानते हैं।
  • कई नहीं भी मानते हैं। कई तो न भक्ति को, न ज्ञान को मानते हैं।
  • बस मनुष्य पैदा होता है फिर मरता है।
  • नेचर ही है। अनेक मतें हैं।
  • एक ही घर में स्त्री की मत और पुरुष की मत और हो जाती है।
  • एक पवित्रता को मानेंगे दूसरा नहीं मानेंगे।
  • अभी तुमको श्रीमत मिल रही है। गाया भी हुआ है - श्रीमत भगवानुवाच।
  • उनकी मत से ही मनुष्य से देवता बन जाते हैं।
  • देवता धर्म अभी है नहीं।
  • निशानियाँ चित्र हैं जिससे सिद्ध है कि आदि सनातन देवी-देवता धर्म था वह राज्य करके गये हैं।
  • पुराने से पुरानी चीज़ है देवी-देवताओं की।
  • लार्ड कृष्णा कहते हैं वा तो कहेंगे गॉड श्री नारायण।
  • तुम जानते हो लक्ष्मी-नारायण का राज्य था जिसको वैकुण्ठ कहा जाता है।
  • श्रीकृष्ण वैकुण्ठ का मालिक था, सतयुग का प्रिन्स था फिर वही कृष्ण द्वापर में कैसे गया?
  • उसी नाम-रूप से तो आ न सके।
  • वो जो चैतन्य था उनके जड़ चित्र यहाँ हैं। परन्तु वह आत्मा कहाँ गई?
  • यह कोई नहीं जानते।
  • बाप बतलाते हैं - आत्मा 84 जन्म लेते अभी यहाँ पार्ट बजा रही है।
  • भिन्न नाम-रूप, देश, काल का पार्ट बजाती आई है।
  • आत्मा ही कहती है हम एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं।
  • नाम-रूप, देश, काल, मित्र सम्बन्धी सब अलग-अलग हैं।
  • दूसरे जन्म में बदल जायेंगे।
  • तुम जानते हो अभी हम पढ़ रहे हैं।
  • फिर हम सो देवी-देवता बनेंगे।
  • सूर्यवंशी में 8 जन्म लेंगे।
  • एक शरीर छोड़ दूसरा लेंगे।
  • वह गर्भ जेल नहीं, गर्भ महल होगा।
  • यहाँ गर्भ जेल में बहुत सज़ा भोगते हैं।
  • दु:ख होता है तब कहते बस अभी बाहर निकालो।
  • हम फिर पाप नहीं करेंगे।
  • परन्तु बाहर माया का राज्य होने कारण फिर से पाप करने लग पड़ते हैं।
  • वहाँ गर्भ महल में आराम से रहते हैं।
  • तो बाप कहते हैं सब वेद-शास्त्र आदि का सार मैं तुमको ही समझाता हूँ।
  • अच्छा बाबा कुम्भ के मेले पर समझाते हैं बहुत स्नान करने जायेंगे।
  • बहुत भीड़ होगी।
  • इलाहाबाद में त्रिवेणी पर मेला लगता है।
  • अभी वह कोई संगम तो है नहीं।
  • संगम होना चाहिए सागर और नदियों का।
  • यह तो नदियों का संगम है।
  • दो नदियाँ मिलती हैं। वह फिर कह देते तीसरी नदी गुप्त है।
  • अब गुप्त नदी कोई होती नहीं।
  • हैं ही दो नदियां। देखने में भी दो आती हैं।
  • एक का पानी सफेद, एक का मैला दिखाई देता है और तो कोई है नहीं।
  • गंगा, जमुना हैं।
  • तीन नहीं हैं। यह भी झूठ हुआ ना।
  • संगम भी नहीं है।
  • कलकत्ते में सागर और ब्रह्म पुत्रा मिलती हैं।
  • नांव में बैठकर उस पार जाते हैं, वहाँ मेला लगता है।
  • कितनी मेहनत करते हैं।
  • अमरनाथ पर तीर्थ यात्रा करने जाते हैं, वहाँ भी शिवलिंग की मूर्ति है।
  • वह घर में भी रख सकते हैं।
  • फिर वहाँ जाने की दरकार नहीं, यह भी धक्का खाना ड्रामा में नूँध है।
  • त्रिवेणी में जाते हैं, समझते हैं वह पतित-पावनी है।
  • कोई-कोई को यह भी मालूम नहीं नदियाँ कहाँ से आती हैं।
  • पहाड़ से आती हैं।
  • परन्तु पानी तो सागर से आता है।
  • बादल बरसते हैं तो ऊंचे पहाड़ होने कारण बर्फ जम जाती है।
  • फिर धूप लगने के कारण जब बर्फ गलती है तो पानी इकट्ठा होकर नदियों में आता है।
  • अब विचार करो कि पतित-पावन परमपिता परमात्मा ज्ञान का सागर वा ज्ञान नदियाँ?
  • वा पानी का सागर और नदियाँ?
  • बहुत अन्धकार में धक्का खाते रहते हैं।
  • अब उनको कैसे बतायें कि यह पतित-पावनी नहीं है, यह तो बरसात का पानी है।
  • बादलों से पानी आता है, बादल फिर सागर से पानी खींचते हैं।
  • पानी तो पतित-पावन हो नहीं सकता।
  • गाते भी हैं पतित-पावन सीताराम, हे पतित-पावन आओ।
  • आत्मायें कहती हैं हे पतितों को पावन बनाने वाले बाबा रहम करो।
  • बाप समझाते हैं - यह भक्ति के धक्के खाने से कोई पावन बनते नहीं हैं।
  • यह नदियाँ तो अनादि हैं ही।
  • पानी है पीने और खेती करने के लिए।
  • वह कैसे पावन करेगा?
  • अभी यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है।
  • मैं आता हूँ तुमको पावन बनाने।
  • सतयुग पावन दुनिया थी। यह है पतित दुनिया।
  • जो पावन थे वही 84 जन्म ले पतित बने हैं इसलिए फिर पावन बनने के लिए बाप को बुलाते हैं।
  • आधाकल्प से उतरती कला होती आई है।
  • भारत सतयुग में बहुत सुखी था, पावन था।
  • अब दु:खी है क्योंकि पतित हैं इसलिए पुकारते हैं ओ गॉड फादर और फिर कह देते उनका नाम-रूप है नहीं।
  • तब पुकारते किसको हैं?
  • यह भी समझते नहीं जैसे कहते हैं आत्मा स्टॉर मिसल है।
  • चमकता है अजब सितारा।
  • आत्मा बिल्कुल छोटी बिन्दी मिसल है।
  • टीका भी यहाँ लगाते हैं और कहते हैं भ्रकुटी के बीच चमकता है अजब सितारा... तो इतनी छोटी सी बिन्दी आत्मा में 84 जन्मों का अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है।
  • वह कभी मिट नहीं सकता।
  • यह सारा नाटक इमार्टल है।
  • चक्र फिरता रहता है। ऐसे नहीं सृष्टि एक जगह खड़ी है।
  • आदि सनातन देवी-देवता धर्म जो पहले था, वह अब नहीं है।
  • जरूर जब ना हो तब तो मैं आऊं।
  • मैं आकर फिर से देवी-देवता धर्म की स्थापना करता हूँ।
  • तो चक्र फिरता है।
  • हिस्ट्री-जॉग्राफी फिर रिपीट होती है। सतयुग में सूर्यवंशी राज्य था।
  • त्रेता में चन्द्रवंशी अब फिर तुमको 84 जन्मों का पता पड़ा है ना।
  • कैसे हम चढ़ती कला में आते हैं।
  • बाप सभी बच्चों को पतित से पावन बनाने का रास्ता बताते हैं।
  • ऐसे नहीं कहते कि आंखे बन्द कर मुझे याद करो।
  • खाते-पीते चलते मुझे याद करना है।
  • आंखे बन्द कर खाना खायेंगे क्या?
  • मक्खी अन्दर चली जाए।
  • तुम बच्चों की आत्मा जानती है कि बाबा हमको पढ़ा रहे हैं।
  • वह कहते हैं- बच्चे मुझे याद करो तो तुम पावन बनेंगे।
  • जितना समय यात्रा में रहते हैं तो मनुष्य पवित्र रहते हैं।
  • लौटकर आते हैं तो घर में फिर पतित बन जाते हैं।
  • तुम्हारी है रूहानी यात्रा जो बाप कराते हैं।
  • बाप कहते हैं - तुमको अमरलोक में चलना है तो मुझे याद करो।
  • आत्मा पवित्र होने से ही तुम उड़ सकेंगे।
  • अन्त मती से गती होगी।
  • बाप की श्रीमत से ही सद्गति मिलती है।
  • श्रीमत कहती है हे आत्मायें मामेकम् याद करो तो खाद निकल जाए और तुम मुक्तिधाम में चले जायेंगे, फिर जीवनमुक्ति में आयेंगे।
  • इस चक्र को समझने से तुम चक्रवर्ती राजा बनेंगे।
  • सतयुग त्रेता में तुम पावन थे फिर बाप तो पूछेंगे ना कि तुमको पतित किसने बनाया?
  • यह भी अभी तुम बच्चे समझते हो कि जब से रावण राज्य शुरू होता है तो पतित बन पड़ते हैं।
  • आधाकल्प के बाद पुरानी दुनिया हो जाती है।
  • फिर तुमको सुख तो नई दुनिया में मिलना चाहिए।
  • वह मैं ही आकर देता हूँ।
  • हम तुमको पावन बनाते हैं, वह तुमको पतित बनाते हैं।
  • मैं वर्सा देता हूँ, रावण श्राप देते हैं।
  • यह है खेल।
  • रावण तुम्हारा बड़ा दुश्मन है।
  • उनका बुत बनाकर जलाते हैं।
  • कभी देखा शिव का चित्र उठाकर जलायें? नहीं।
  • शिव तो है निराकार।
  • राम सुख देने वाला उनको कैसे जलायेंगे।
  • दु:ख देने वाला है रावण, कहते हैं यह अनादि जलाते आते हैं।
  • तो क्या शुरू से ही रावण राज्य था?
  • रामराज्य हुआ ही नहीं?
  • यह सब समझाना पड़े।
  • रावण राज्य कब से शुरू हुआ, यह किसको पता नहीं।
  • आधाकल्प से शुरू होता है।
  • तुम सब द्रोपदियां पुकारती हो - बाबा हमारी रक्षा करो।
  • अरे तुम बोलो हमको पतित बनना ही नहीं है।
  • हिम्मत चाहिए, नष्टोमोहा बनना है।
  • मैं शरण तब दूंगा जब तुम नष्टोमोहा बनेंगी।
  • मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई।
  • पति, बाल बच्चे याद पड़ते रहेंगे तो वर्सा पा नहीं सकेंगी।
  • गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए बाप को याद करो।
  • अच्छा!
  • मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) श्रीमत पर सबको पावन बनाने का रास्ता बताना है।

    पतित-पावन बाप का परिचय देने की युक्ति रचनी है।

    2) बाप से वर्सा लेने के लिए वा बाप की शरण में आने के लिए पूरा-पूरा नष्टोमोहा बनना है।

    आंख खोलकर बाप को याद करने का अभ्यास करना है।


  • ( All Blessings of 2021-22)
  • सर्व शक्तियों को समय पर आर्डर प्रमाण कार्य में लगाने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् भव

    मास्टर का अर्थ है कि हर शक्ति जिस समय आह्वान करो वो शक्ति प्रैक्टिकल स्वरूप में अनुभव हो। जिस समय, जिस शक्ति की आवश्यकता हो, उस समय वो शक्ति सहयोगी बने।

    शक्ति को ऑर्डर किया और हाज़िर।

    ऐसे भी नहीं ऑर्डर करो सहनशक्ति को और आये सामना करने की शक्ति तो उसे मास्टर सर्वशक्तिमान् नहीं कहेंगे।

    जैसे शरीर की शक्तियां ऑर्डर में हैं ऐसे सूक्ष्म शक्तियां भी ऑर्डर प्रमाण कार्य करें, एक सेकण्ड का भी फर्क न पड़े।



  • (All Slogans of 2021-22)
    • प्रसन्नता का आधार सन्तुष्टता की शक्ति है।
    BK Naresh Bhai's present residence cum workplace