11.12.2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 18.01.93 "बापदादा" मधुबन

प्रत्यक्षता का आधार - दृढ़ प्रतिज्ञा

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  • आज समर्थ बाप अपने समर्थ बच्चों से मिलन मना रहे हैं।
  • समर्थ बाप ने हर एक बच्चे को सर्व समर्थियों का खजाना अर्थात् सर्व शक्तियों का खजाना ब्राह्मण जन्म होते ही जन्मसिद्ध अधिकार के रूप में दे दिया और हर एक ब्राह्मण आत्मा अपने इस अधिकार को प्राप्त कर स्वयं सम्पन्न बन औरों को भी सम्पन्न बना रही है।
  • यह सर्व समर्थियों का खजाना बापदादा ने हर एक बच्चे को अति सहज और सेकेण्ड में दिया।
  • कैसे दिया?
  • सेकेण्ड में स्मृति दिलाई।
  • तो स्मृति ही सर्व समर्थियों की चाबी बन गई।
  • स्मृति आई ‘मेरा बाबा' और बाप ने कहा ‘मेरे बच्चे'।
  • यही ‘रूहानी स्मृति' - सर्व खजानों की चाबी सेकेण्ड में दी।
  • मेरा माना और सर्व जन्मसिद्ध अधिकार प्राप्त हुआ!
  • तो सहज मिला ना।
  • अभी हर ब्राह्मण आत्मा निश्चय और नशे से कहती है कि बाप का खजाना सो मेरा खजाना।
  • बाप के खजाने को अपना बना दिया।
  • आज के दिन को भी विशेष स्मृति-दिवस कहते हो।
  • यह स्मृति-दिवस बच्चों को सर्व समर्थी देने का दिवस है।
  • वैसे तो ब्राह्मण जन्म का दिवस ही समर्थियां प्राप्त करने का दिन है लेकिन आज के स्मृति-दिवस का विशेष महत्व है।
  • वह क्या महत्व है?
  • आज के स्मृति-दिवस पर विशेष ब्रह्मा बाप ने अपने आपको अव्यक्त बनाए व्यक्त साकार रूप में विशेष बच्चों को विश्व के आगे प्रत्यक्ष करने की विशेष विल-पॉवर विल की।
  • जैसे आदि में अपने को, सर्व सम्बन्ध और सम्पत्ति को सेवा अर्थ शक्तियों के आगे विल किया, ऐसे आज के स्मृति दिवस पर ब्रह्मा बाप ने साकार दुनिया में साकार रूप द्वारा विश्व-सेवा के निमित्त शक्ति सेना को अपना साकार रूप का पार्ट बजाने की सर्व विल-पावर्स बच्चों को विल की।
  • स्वयं अव्यक्त गुप्त रूपधारी बने और बच्चों को व्यक्त रूप में विश्व-कल्याण के प्रति निमित्त बनाया अर्थात् साकार रूप में सेवा के विल-पावर्स की विल की इसलिए इस दिन को स्मृति-दिवस वा समर्थी-दिवस कहते हैं।
  • बापदादा देख रहे हैं कि उसी स्मृति के आधार पर देश-विदेश में चारों ओर बच्चे निमित्त बन सेवा में सदा आगे बढ़ते रहते हैं और बढ़ते ही रहेंगे क्योंकि विशेष त्रिमूर्ति वरदान बच्चों के साथ हैं।
  • शिवबाबा का तो है ही लेकिन साथ में भाग्य-विधाता ब्रह्मा बाप का भी वरदान है, साथ में जगत अम्बा सरस्वती माँ का भी मधुर वाणी का वरदान है इसलिए त्रिमूर्ति वरदानों से सहज सफलता का अधिकार अनुभव कर रहे हो।
  • आगे चल और भी सहज साधन और श्रेष्ठ सफलता के अनुभव होने ही हैं।
  • बापदादा को प्रत्यक्ष करने का उमंग-उत्साह चारों ओर है कि जल्दी से जल्दी प्रत्यक्षता हो जाए। सभी यही चाहते हैं ना!
  • कब हो जाये?
  • कल हो जाये ताकि यहाँ ही बैठे-बैठे प्रत्यक्षता के नगाड़े सुनो?
  • हुआ ही पड़ा है।
  • सिर्फ क्या करना है?
  • कर भी रहे हो और करना भी है।
  • सम्पूर्ण प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजाने के लिए सिर्फ एक बात करनी है।
  • प्रत्यक्षता का आधार आप बच्चे हैं और बच्चों में विशेष एक बात की अण्डर-लाइन करनी है।
  • प्रत्यक्षता और प्रतिज्ञा दोनों का बैलेन्स सर्व आत्माओं को बापदादा द्वारा ब्लैसिंग प्राप्त होने का आधार है।
  • प्रतिज्ञा तो रोज़ करते हो, फिर प्रत्यक्षता में देरी क्यों?
  • अभी-अभी हो जानी चाहिए ना।
  • बापदादा ने देखा - प्रतिज्ञा दिल से, प्यार से करते भी हो लेकिन एक होता है ‘प्रतिज्ञा', दूसरा होता है ‘दृढ़ प्रतिज्ञा'।
  • दृढ़ प्रतिज्ञा की निशानी क्या है?
  • जान चली जाये लेकिन प्रतिज्ञा नहीं जा सकती।
  • जब जान की बाज़ी की बात आ गई, तो छोटी-छोटी समस्यायें वा समय प्रति समय के कितने भी विकराल रूपधारी सर्कमस्टांश (हालात) हों... तो जान की बाज़ी के आगे यह क्या हैं!
  • तो दृढ़ प्रतिज्ञा इसको कहा जाता है जो कैसी भी परिस्थितियां हों लेकिन परस्थिति, स्व-स्थिति को हिला नहीं सकती।
  • कभी भी किसी भी हालत में हार नहीं खा सकते लेकिन गले का हार बनेंगे, विजयी रत्न बनेंगे, परमात्म-गले का श्रृंगार बनेंगे।
  • इसको कहा जाता है दृढ़ संकल्प अर्थात् दृढ़ प्रतिज्ञा।
  • तो ‘दृढ़ता' शब्द को अण्डरलाइन करना है।
  • प्रतिज्ञा करना अर्थात् प्रत्यक्ष सबूत देना।
  • लेकिन कभी-कभी कई बच्चे प्रतिज्ञा भी करते और साथ में एक खेल भी बहुत अच्छा करते हैं।
  • जब कोई समस्या वा सरकमस्टांश होता जो प्रतिज्ञा को कमजोर बनाने का कारण होता, उस कारण को निवारण करने के बजाए बहाने-बाज़ी का खेल बहुत करते हैं।
  • इसमें बहुत होशियार हैं।
  • बहानेबाजी की निशानी क्या होती?
  • कहेंगे ऐसे नहीं था, ऐसे था; ऐसा नहीं होता तो वैसा नहीं होता; इसने ऐसे किया, सरकमस्टांश ही ऐसा था, बात ही ऐसी थी।
  • तो ‘ऐसा' और ‘वैसा' यह भाषा बहाने-बाज़ी की है और दृढ़ प्रतिज्ञा की भाषा है ‘ऐसा' हो वा ‘वैसा' हो लेकिन मुझे ‘बाप जैसा' बनना है।
  • मुझे बनना है।
  • दूसरों को मेरे को नहीं बनाना है, मुझे बनना है।
  • दूसरे ऐसे करें तो मैं अच्छा रहूँ, दूसरा सहयोग दे तो मैं सम्पन्न वा सम्पूर्ण बनूँ, नहीं।
  • इस लेने के बजाए मास्टर दाता बन सहयोग, स्नेह, सहानुभूति देना ही लेना है।
  • याद रखना ब्राह्मण जीवन का अर्थ ही है ‘देना ही लेना है', ‘देने में ही लेना है' इसलिए दृढ़ प्रतिज्ञा का आधार है - स्व को देखना, स्व को बदलना, स्वमान में रहना।
  • स्वमान है ही मास्टर दाता-पन का।
  • इस अव्यक्त वर्ष में क्या करेंगे?
  • मधुबन में प्रतिज्ञा करके जायेंगे और वहाँ जाके बहाने-बाज़ी का खेल करेंगे?
  • प्रतिज्ञा दृढ़ होने के बजाए कमजोर होने का वा प्रतिज्ञा में लूज़ होने का एक ही मूल कारण है।
  • जैसे कितनी भी बड़ी मशीनरी हो लेकिन एक छोटा-सा स्क्रू (पेंच) भी लूज (ढीला) हो जाता तो सारी मशीन को बेकार कर देता है।
  • ऐस प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए प्लैन बहुत अच्छे-अच्छे बनाते हो, पुरुषार्थ भी बहुत करते रहते हो लेकिन पुरुषार्थ वा प्लैन को कमजोर करने का स्क्रू एक ही है ‘अलबेलापन'।
  • वह भिन्न-भिन्न रूप में आता है और सदा नये-नये रूप में आता है, पुराने रूप में नहीं आता।
  • तो इस ‘अलबेलेपन' के लूज़ स्क्रू को टाइट करो।
  • यह तो होता ही है, नहीं।
  • होना ही है।
  • चलता ही है, होता ही है यह है अलबेलापन।
  • हो जायेगा - देख लेना, विश्वास करो; दादी-दीदी मेरे ऊपर ऐतबार करो, हो जायेगा। नहीं।
  • बाप जैसा बनना ही है, अभी-अभी बनना है।
  • तीसरी बात प्रतिज्ञा को दृढ़ से कमजोर बनाने का आधार पहले भी हँसी की बात सुनाई थी कि कई बच्चों की नजदीक की नजर कमजोर है और दूर की नज़र बहुत-बहुत तेज है।
  • नजदीक की नज़र है स्व को देखना, स्व को बदलना और दूर की नज़र है दूसरों को देखना, उसमें भी कमजोरियों को देखना, विशेषता को नहीं इसलिए उमंग-उत्साह में अन्तर पड़ जाता है।
  • बड़े-बड़े भी ऐसे करते हैं, हम तो हैं ही छोटे।
  • तो दूर की कमजोरी देखने की नज़र धोखा दे देती है, इस कारण प्रतिज्ञा को प्रैक्टिकल में ला नहीं सकते। समझा, कारण क्या है?
  • तो अभी स्क्रू टाइट करना आयेगा वा नहीं?
  • ‘समझ' का स्क्रू-ड्राइवर (पेचकस) तो है ना, यत्र तो है ना।
  • इस वर्ष समझना, चाहना और करना - तीनों को समान बनाओ।
  • तीनों को समान करना अर्थात् बाप समान बनना।
  • अगर बापदादा कहेंगे कि सभी लिखकर दो तो सेकेण्ड में लिखेंगे!
  • चिटकी पर लिखना कोई बड़ी बात नहीं।
  • मस्तक पर दृढ़ संकल्प की स्याही से लिख दो।
  • लिखना आता है ना।
  • मस्तक पर लिखना आता है या सिर्फ चिटकी पर लिखना आता है?
  • सभी ने लिखा?
  • पक्का? कच्चा तो नहीं जो दो दिन में मिट जाये?
  • करना ही है, जान चली जाये लेकिन प्रतिज्ञा नहीं जाये ऐसा दृढ़ संकल्प ही ‘बाप समान' सहज बनायेगा।
  • नहीं तो कभी मेहनत, कभी मुहब्बत इसी खेल में चलते रहेंगे।
  • आज के दिन देश-विदेश के सभी बच्चे तन से वहाँ हैं लेकिन मन से मधुबन में हैं इसलिए सभी बच्चों के स्मृति-दिवस के अलौकिक अनुभव में बाप-दादा ने देखा, अच्छे-अच्छे अनुभव किये हैं, सेवा भी की है।
  • अलौकिक अनुभवों की और सेवा की हर एक बच्चे को मुबारक दे रहे हैं।
  • सबके शुद्ध संकल्प, मीठी-मीठी रूहरिहान और प्रेम के मोतियों की मालायें बापदादा के पास पहुँच गई हैं।
  • रिटर्न में बापदादा भी स्नेह की माला सभी बच्चों के गले में डाल रहे हैं।
  • हर एक बच्चा अपने-अपने नाम से विशेष याद, प्यार स्वीकार करना।
  • बापदादा के पास रूहानी वायरलेस-सेट इतना पॉवर-फुल है जो एक ही समय पर अनेक बच्चों के दिल का आवाज़ पहुँच जाता है।
  • न सिर्फ आवाज पहुँचता लेकिन सभी की स्नेही मूर्त भी इमर्ज हो जाती है इसलिए सभी को सम्मुख देख विशेष याद, प्यार दे रहे हैं।
  • अच्छा! सर्व समर्थ आत्माओं को, सर्व दृढ़ प्रतिज्ञा और प्रत्यक्षता का बैलेन्स रखने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा समझना, चाहना और करना तीनों को समान बनाने वाले बाप समान बच्चों को, सदा समस्याओं को हार खिलाने वाले, परमात्म-गले का हार बनने वाले विजयी रत्नों को समर्थ बापदादा का याद, प्यार और नमस्ते।
  • दादियों से मुलाकात
  • सभी दोनों ही विल के पात्र हो आदि की विल भी और साकार स्वरूप के अन्त की विल भी।
  • विल-पॉवर आ गई ना!
  • विलपॉवर की विल विलपॉवर द्वारा सदा ही स्व के पुरुषार्थ से एक्स्ट्रा कार्य कराती है।
  • ये हिम्मत के प्रत्यक्षफल में पद्मगुणा मदद के पात्र बने।
  • कई सोचते हैं ये आत्मायें ही निमित्त क्यों बनीं?
  • तो इसका रहस्य है कि विशेष समय पर विशेष हिम्मत रखने का प्रत्यक्षफल सदा का फल बन गया इसलिए गाया हुआ है एक कदम हिम्मत का और पद्म कदम बाप की मदद के, इसलिए सदा सब बातों को पार करने की विल-पॉवर विल के रूप में प्राप्त हुई।
  • ऐसे है ना!
  • आप सभी भी साथी हो।
  • अच्छा साथ निभा रही हो।
  • निभाने वालों को बाप भी अपना हर समय सहयोग का वायदा निभाते हैं।
  • तो ये सारा ग्रुप निभाने वालों का है।
  • (सभा से पूछते हुए) आप सभी भी निभाने वाले हो ना।
  • या सिर्फ प्रीत करने वाले हो?
  • करने वाले अनेक होते हैं और निभाने वाले कोई-कोई होते हैं।
  • तो आप सभी किसमें हो?
  • कोटों में कोई हो, कोई में भी कोई हो!
  • देखो, दुनिया में हंगामा हो रहा है और आप क्या कर रहे हो?
  • मौज मना रहे हो।
  • वा मूँझे हुए हो क्या करना है, क्या होना है? आप कहते हो कि सब अच्छा होना है।
  • तो कितना अन्तर है!
  • दुनिया में हर समय क्वेश्चन-मार्क है कि क्या होगा?
  • और आपके पास क्या है?
  • फुलस्टॉप।
  • जो हुआ सो अच्छा और जो होना है वो हमारे लिए अच्छा है।
  • दुनिया के लिए अकाले मृत्यु है और आपके लिए मौज है।
  • डर लगता है?
  • थोड़ा-थोड़ा खून देखकर के डर लगेगा?
  • आपके सामने 7-8 को गोली लग जाये तो डरेंगे?
  • नींद में दिखाई तो नहीं देंगे ना!
  • शक्ति सेना अर्थात् निर्भय।
  • न माया से भय है, न प्रकृति की हलचल से भय है।
  • ऐसे निर्भय हो या थोड़ा-थोड़ा कमजोरी है?
  • अच्छा!
  • अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात -
  • सर्व शक्तियां ऑर्डर में हों तो मायाजीत बन जायेंगे सभी अपने को सदा मायाजीत, प्रकृतिजीत अनुभव करते हो?
  • मायाजीत बन रहे हैं या अभी बनना है?
  • जितना-जितना सर्व शक्तियों को अपने ऑर्डर पर रखेंगे और समय पर कार्य में लगायेंगे तो सहज मायाजीत हो जायेंगे।
  • अगर सर्व शक्तियां अपने कन्ट्रोल में नहीं हैं तो कहाँ न कहाँ हार खानी पड़ेगी।
  • मास्टर सर्वशक्तिवान अर्थात् कन्ट्रोलिंग पॉवर हो।
  • जिस समय, जिस शक्ति को आह्वान करें वो हाजिर हो जाए, सहयोगी बने।
  • ऐसे ऑर्डर में हैं?
  • सर्व शक्तियां ऑर्डर में हैं या आगे-पीछे होती हैं?
  • ऑर्डर करो अभी और आये घण्टे के बाद तो उसको मास्टर सर्वशक्तिवान कहेंगे?
  • जब आप सभी का टाइटल है मास्टर सर्व शक्तिवान, तो जैसा टाइटल है वैसा ही कर्म होना चाहिए ना।
  • है मास्टर और शक्ति समय पर काम में नहीं आये, तो कमजोर कहेंगे या मास्टर कहेंगे?
  • तो सदा चेक करो और फिर चेन्ज (परिवर्तन) करो - कौन-कौनसी शक्ति समय पर कार्य में लग सकती है और कौनसी शक्ति समय पर धोखा देती है?
  • अगर सर्व शक्तियां अपने ऑर्डर पर नहीं चल सकतीं तो क्या विश्व-राज्य अधिकारी बनेंगे?
  • विश्व-राज्य अधिकारी वही बन सकता है जिसमें कन्ट्रोलिंग पॉवर, रूलिंग पॉवर हो।
  • पहले स्व पर राज्य, फिर विश्व पर राज्य।
  • स्वराज्य अधिकारी जब चाहें, जैसे चाहें वैसे कन्ट्रोल कर सकते हैं।
  • इस वर्ष में क्या नवीनता करेंगे?
  • जो कहते हैं वो करके दिखायेंगे।
  • कहना और करना दोनों समान हों।
  • जैसे कहते हैं मास्टर सर्वशक्तिवान और करने में कभी विजयी हैं, कभी कम हैं।
  • तो कहने और करने में फर्क हो गया ना!
  • तो अभी इस फर्क को समाप्त करो।
  • जो कहते हो वो प्रैक्टिकल जीवन में स्वयं भी अनुभव करो और दूसरे भी अनुभव करें।
  • दूसरे भी समझें कि यह आत्मायें कुछ न्यारी हैं।
  • चाहे हजारों लोग हों लेकिन हजारों में भी आप न्यारे दिखाई दो, साधारण नहीं क्योंकि ब्राह्मण अर्थात् अलौकिक।
  • यह अलौकिक जन्म है ना।
  • तो ब्राह्मण जीवन अर्थात् अलौकिक जीवन, साधारण जीवन नहीं।
  • ऐसे अनुभव करते हो?
  • लोग समझते हैं कि यह न्यारे हैं?
  • या समझते हैं जैसे हम हैं वैसे यह?
  • न्यारे बनने की निशानी है जितना न्यारे बनेंगे उतना सर्व के प्यारे बनेंगे।
  • जैसे बाप सबसे न्यारा है और सबका प्यारा है।
  • तो न्यारापन प्यारा बना देता है।
  • तो ऐसे न्यारे और आत्माओं के प्यारे कहाँ तक बने हैं यह चेक करो।
  • लौकिक जीवन में भी अलौकिकता का अनुभव कराओ।
  • न्यारे बनने की युक्ति तो आती है ना।
  • जितना अपने देह के भान से न्यारे होते जायेंगे उतना प्यारे लगेंगे।
  • देहभान से न्यारा।
  • तो अलौकिक हो गया ना!
  • तो सदैव अपने को देखो कि “देहभान से न्यारे रहते हैं?
  • बार-बार देह के भान में तो नहीं आते हैं?''
  • देहभान में आना अर्थात् लौकिक जीवन।
  • बीच-बीच में प्रैक्टिस करो देह में प्रवेश होकर कर्म किया और अभी-अभी न्यारे हो जायें।
  • तो न्यारी अवस्था में स्थित रहने से कर्म भी अच्छा होगा और बाप के वा सर्व के प्यारे भी बनेंगे।
  • डबल फायदा है ना।
  • परमात्म-प्यार का अधिकारी बनना ये कितना बड़ा फायदा है!
  • कभी सोचा था कि ऐसे अधिकारी बनेंगे?
  • स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा लेकिन ऐसे अधिकारी बन गये।
  • तो सदा यह स्मृति में लाओ कि परमात्म-प्यार के पात्र आत्मायें हैं!
  • दुनिया तो ढूँढती रहती है और आप पात्र बन गये।
  • तो सदा “वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य!'' यह गीत गाते रहो, उड़ते रहो।
  • उड़ती कला सर्व का भला।
  • आप उड़ते हो तो सभी का भला हो जाता है, विश्व का कल्याण हो जाता है।
  • अच्छा! सभी खुश रहते हो?
  • सदा ही खुश रहना और दूसरों को भी खुश करना।
  • कोई कैसा भी हो लेकिन खुश रहना है और खुश करना है। अच्छा!



  • ( All Blessings of 2021-22)
  • श्रेष्ठ कर्म और योगी जीवन द्वारा सन्तुष्टता के 3 सर्टीफिकेट लेने वाले सन्तुष्टमणि भव

    श्रेष्ठ कर्म की निशानी है - स्वयं भी सन्तुष्ट और दूसरे भी सन्तुष्ट।

    ऐसे नहीं मैं तो सन्तुष्ट हूँ, दूसरे हों या नहीं।

    योगी जीवन वाले का प्रभाव दूसरों पर स्वत: पड़ता है।

    अगर कोई स्वयं से असन्तुष्ट है या और उससे असन्तुष्ट रहते हैं तो समझना चाहिए कि योगयुक्त बनने में कोई कमी है।

    योगी जीवन के तीन सर्टीफिकेट हैं - एक स्व से सन्तुष्ट, दूसरा - बाप सन्तुष्ट और तीसरा - लौकिक अलौकिक परिवार सन्तुष्ट।

    जब यह तीन सर्टीफिकेट प्राप्त हों तब कहेंगे सन्तुष्टमणि।



  • (All Slogans of 2021-22)
    • याद और सेवा में सदा बिजी रहना - यह सबसे बड़ी खुशनसीबी है।
BK Naresh Bhai's present residence cum workplace