09-12-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

मीठे बच्चे - तुम कर्मक्षेत्र पर आये हो पार्ट बजाने, तुम्हें कर्म जरूर करने हैं, आत्मा का स्वधर्म शान्ति है, इसलिए शान्ति नहीं मांगनी है, स्वधर्म में टिकना है''

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प्रश्नः-

बने बनाये ड्रामा को जानते हुए भी बाप तुम्हें कौन सी बात नहीं बतलाते? कारण क्या?

 

उत्तर:-

बाप जानते हैं - कल क्या होने वाला है तो भी बतायेंगे नहीं।

ऐसे नहीं कल अर्थक्वेक होगी - यह आज ही बता दें।

अगर बतला दें तो ड्रामा रीयल न रहे।

तुम्हें सब कुछ साक्षी होकर देखना है।

अगर पहले से ही पता हो तो उस समय तुम्हें बाप की याद भी भूल जायेगी।

पिछाड़ी की सीन देखने के लिए तुम्हें महावीर बनना है।

अचल-अडोल रहना है।

बाप की याद में शरीर छोड़ें, इसके लिए परिपक्व अवस्था बनानी है।

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  • ओम् शान्ति।
  • ओम् शान्ति का अर्थ बच्चों को समझाया है।
  • मनुष्य कहते हैं मन की शान्ति चाहिए, वह कैसे मिले?
  • इस पर शायद एक किताब छपी हुई है।
  • बाप ने बच्चों को समझाया है, तुम भी कहते हो ओम् शान्ति।
  • अब इसका अर्थ क्या है?
  • कोई तो ओम् का अर्थ भगवान समझते हैं।
  • बाप भी कहते हैं ओम् शान्ति।
  • ओम् अर्थात् अहम् (मैं आत्मा)।
  • पीछे फिर कहते हैं मेरा शरीर।
  • तो आत्मा खुद ही कहती है ओम् शान्ति।
  • मेरा स्वधर्म है ही शान्त और रहने का स्थान भी निर्वाणधाम, शान्तिधाम है।
  • आत्मा खुद अपना परिचय देती है कि मैं शान्त स्वरूप हूँ फिर पूछने की दरकार ही नहीं रहती कि मन की शान्ति कैसे मिले?
  • बाप भी कहते हैं - ओम् शान्ति।
  • मैं भी परम आत्मा हूँ, तुम सब बच्चों का बाप हूँ।
  • शान्तिधाम में रहने वाला हूँ।
  • तुम आत्माओं ने यहाँ शरीर धारण किया है पार्ट बजाने।
  • फिर मन की शान्ति का तो प्रश्न ही नहीं उठ सकता।
  • ओम् का अर्थ भी कोई नहीं जानता, इसलिए धक्के खाते रहते हैं - मन की शान्ति के लिए।
  • आत्मा जब अशरीरी है तो है ही शान्त।
  • शरीर में आने से कर्मेन्द्रियाँ जरूर काम करेंगी।
  • कर्मक्षेत्र पर जरूर काम करना पड़ता है तो शान्ति पर कोई किताब बनाने की दरकार नहीं।
  • यह तो सेकण्ड की बात है समझने की।
  • आत्मा खुद ही कहती है ओम् शान्ति।
  • बाकी क्या चाहिए?
  • कहाँ से शान्ति आयेगी?
  • आत्मा का देश शान्तिधाम है।
  • अभी तो वहाँ जाकर बैठेंगे नहीं।
  • पार्ट जरूर बजाना है।
  • वैसे ही परमपिता परमात्मा से जीवनमुक्ति पाने के लिए कोई किताब आदि की दरकार नहीं।
  • यह तो सेकण्ड की बात है।
  • किताब भक्ति मार्ग में बनाते हैं, न कि ज्ञान मार्ग में।
  • फिर भी बाहर वालों को समझाने के लिए रीयल्टी की जो समझानी है - सच्चे मन की शान्ति पर, सच्ची गीता पर लिखना पड़ता है।
  • नहीं तो बुद्धि कहती है - अपने को आत्मा निश्चय करो, सुखधाम और शान्तिधाम को याद करो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी।
  • बाकी यहाँ थोड़ेही मन की शान्ति हो सकती है।
  • शान्तिधाम तो है निर्वाणधाम, जहाँ बाप भी रहते हैं और हम आत्मायें भी रहती हैं।
  • रूद्र माला भी कहते हैं तो रूद्र ज्ञान यज्ञ भी एक ही है।
  • ज्ञान सागर बाप ही यह ज्ञान सुना सकते हैं।
  • बाकी ज्ञान तो बहुत प्रकार का है।
  • साइन्स का भी ज्ञान, कारीगरी का भी ज्ञान होता है।
  • परन्तु वह है व्यवहार की बातें।
  • ज्ञान से मनुष्य बहुत अक्लमंद बनते हैं।
  • अभी तुम बच्चों को सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज मिली है।
  • यह पाठशाला है, यहाँ पढ़ाया जाता है।
  • बाप है ज्ञान का सागर, उनको सब नॉलेज है।
  • सब वेद-शास्त्र आदि को जानते हैं।
  • रांग-राइट, झूठ-सच क्या है, वह मैं समझाता हूँ।
  • अब बताओ सच क्या है?
  • सर्वव्यापी कहना यह सच है?
  • मैं तो तुम्हारा बाप हूँ।
  • सर्वव्यापी से तो कोई ज्ञान मिल न सके।
  • पुरुषार्थ हो न सके।
  • सर्वव्यापी होकर क्या करे?
  • खुद मालिक है, भगवान तो कभी पतित होता नहीं।
  • वह तो जब चाहे तो वापिस चला जाए।
  • यहाँ तो पतित हैं इसलिए वापिस कोई जा न सके।
  • पतित बनने से सारा ज्ञान उड़ जाता है, बुद्धि मलीन हो जाती है।
  • योग नहीं लगता, याद में विघ्न पड़ जाते हैं इसलिए कोई भी पाप कर्म नहीं करना चाहिए।
  • याद भी जरूर करना है।
  • बाप के बिगर पुराने पाप कट नहीं सकते।
  • ऐसे नहीं हरिद्वार में रहने से कोई पाप कट सकते हैं, नहीं।
  • पाप तो करते रहते हैं।
  • साधू-सन्तों को अगर पता होता कि हमारा घर शान्तिधाम है तो वहाँ से होकर आते।
  • बाबा तुमको सब साक्षात्कार कराते हैं।
  • गोया तुम होकर आये हो।
  • भक्ति मार्ग में भी साक्षात्कार होता है - दिव्य दृष्टि से।
  • तुम जब सतयुग में हो तो इन आंखों से लक्ष्मी-नारायण को देखेंगे।
  • वह भी तुमको देखेंगे।
  • अभी साक्षात्कार में देखते हो।
  • बाबा के पास दिव्यदृष्टि की चाबी है, वह और किसको मिल न सके।
  • बाबा ने समझाया है यह चाबी मैं किसको भी नहीं देता हूँ।
  • इनकी एवज में मैं फिर स्वर्ग की राजाई नहीं करता हूँ।
  • तराजू इक्वल रखते हैं।
  • तुम विश्व के मालिक बनते हो, मैं नहीं बनता हूँ।
  • भक्ति मार्ग में जो साक्षात्कार करते हैं वह भी मूर्ति में थोड़ेही ताकत है।
  • बाबा कहते हैं - मैं मनोकामना पूर्ण करने के लिए साक्षात्कार कराता हूँ।
  • गणेश, हनूमान आदि जिसकी पूजा करते हैं तो साक्षात्कार मैं कराता हूँ।
  • परन्तु वो लोग समझते हैं परमात्मा सबमें हैं इसलिए मुझे सर्वव्यापी कह दिया, उल्टा ज्ञान ले लिया।
  • वास्तव में सब ब्रदर्स हैं।
  • सबमें आत्मा है।
  • सब फादर तो हो न सकें।
  • सभी आत्मायें पुकारती हैं हे गाड फादर रहम करो, तो सब बच्चे हो गये।
  • बच्चे बाप से वर्सा लेते हैं तो देह का अभिमान छोड़ना पड़े।
  • बस मैं आत्मा बाप से वर्सा ले रही हूँ।
  • आत्मा को मेल वा फीमेल नहीं कहते।
  • भल चोला फीमेल का है परन्तु यह कहना ठीक है कि वर्सा ले रहा हूँ।
  • बाप से वर्सा लेने का सबको हक है।
  • मैं क्रिश्चियन हूँ, मैं फलाना हूँ।
  • यह सब शरीर के धर्म हैं।
  • आत्मा एक ही है।
  • शरीर बदलता है, तब कहते हैं यह मुसलमान है, यह हिन्दू है।
  • आत्मा का नाम नहीं बदलता, शरीर का बदलता है।
  • बाप तो है ही पतित-पावन, ज्ञान का सागर।
  • बाप की महिमा अलग हो जाती है।
  • वह शान्ति का सागर, ज्ञान का सागर है।
  • उनके साथ योग लगाने से हम शान्तिधाम चले जायेंगे, सो भी अभी।
  • ऐसा योग कभी कोई लगा नहीं सकते।
  • तुम शान्तिधाम को जानते हो।
  • बाकी याद शिवबाबा को करते हो।
  • संन्यासी कहते हैं हम ब्रह्म ज्ञानी हैं।
  • ब्रह्म से योग लगाते हैं परन्तु उनसे विकर्म विनाश नहीं हो सकते।
  • वो योग ही रांग है।
  • ब्रह्म अर्थात् रहने का स्थान।
  • ब्रह्म ज्ञानी अथवा तत्व ज्ञानी बात एक ही है।
  • बाप कहते हैं यह इन्हों का भ्रम है।
  • पतित-पावन ब्रह्म नहीं हो सकता।
  • आत्माओं का बाप शिव है, उनको ही पतित-पावन कहा जाता है।
  • बाकी वापिस तो कोई जा नहीं सकते।
  • सभी को सतोप्रधान से तमोप्रधान बनना ही है।
  • जबकि पहला नम्बर श्री नारायण ही बनता है तो और सभी भी जरूर तमोप्रधान बनेंगे।
  • पुनर्जन्म लेते आयेंगे।
  • यह भी बुद्धि में रखा जाता है।
  • तुम जानते हो हर एक धर्म वाले कितने जन्म लेते होंगे?
  • देवताओं को कहेंगे पूरे 84 जन्म लेते हैं।
  • औरों के जन्म एक्यूरेट नहीं बता सकते।
  • कोई हिसाब करे तो निकाल सकते हैं।
  • परन्तु जरूरत नहीं है।
  • हमारा अपने पुरुषार्थ से काम है और जास्ती बातों में नहीं जाना है।
  • तुमको मुक्ति, जीवनमुक्ति चाहिए तो मनमनाभव।
  • मैं हूँ ही पतित-पावन, आकर राजयोग सिखलाता हूँ।
  • पतित-पावन जरूर कलियुग अन्त में आयेगा, ना कि द्वापर में।
  • सिर्फ शिवरात्रि लिखने से अर्थ नहीं निकलता है।
  • त्रिमूर्ति शिवरात्रि लिखना चाहिए।
  • भक्ति में घोर अन्धियारा है तब कहते हैं ज्ञान सूर्य प्रगटा... जरूर कलियुग का अन्त होगा।
  • रोशनी है सतयुग में।
  • बाप जरूर संगम पर आयेगा।
  • सब पतित बनें तब तो बाप आकर पावन बनाये क्योंकि सबका कनेक्शन है ना।
  • बहुत संन्यासी लोग भी कहते हैं मन की शान्ति कैसे होगी।
  • आत्मा का स्वधर्म ही शान्त है।
  • जैसे भारतवासी देवी-देवताओं को भूले हुए हैं, वैसे आत्मा भी अपने स्वधर्म को भूली हुई है।
  • आत्मा ही जानती है - मुझे रावण ने अशान्त किया है।
  • यह ज्ञान अभी मिला है।
  • यहाँ तो शान्ति कभी मिल नहीं सकती।
  • शान्ति-धाम में ही शान्ति मिल सकती है।
  • वहाँ तो सबको जाना है।
  • हम शान्तिधाम में जायेंगे फिर आयेंगे सुखधाम में।
  • दूसरे धर्म वालों को शान्ति अधिक मिलती है, हमको सुख अधिक मिलता है।
  • उन्हों को न इतना सुख, न दु:ख मिलेगा।
  • यह हैं डीटेल की बातें।
  • कोई ने लक्ष्य को अच्छी रीति पकड़ लिया है, वह भी काफी है।
  • घर में रहते बाप और वर्से को याद करते रहो।
  • परन्तु प्रजा नहीं बना सकेंगे।
  • जो प्रजा बनायेंगे वही राजा-रानी, मालिक बनेंगे।
  • मेहनत है ना।
  • प्रोजेक्टर पर समझाना सहज है।
  • बड़े-बड़े आदमियों को निमंत्रण दे उन्हों को समझाना चाहिए।
  • तुम बच्चे बहुतों का कल्याण कर सकते हो।
  • यह भी नये तरीके निकल रहे हैं।
  • अंग्रेजी में भी प्रोजेक्टर स्लाईड्स विलायत में जाकर दिखला सकते हो।
  • यह गोला आदि जब देखेंगे तो समझेंगे कि यह है भारत की फिलॉसाफी।
  • यह नॉलेज बाप ही दे सकते हैं।
  • यह है रूहानी ज्ञान।
  • रूह से ही रूहानी ज्ञान मिलता है।
  • सच्चे डॉक्टर आफ फिलॉसाफी भी तुम हो।
  • बाप है रूहानी सर्जन।
  • रूहों को इन्जेक्शन लगाते हैं।
  • तुम्हारा है सब गुप्त।
  • वो लोग तो बैठ शास्त्र आदि पढ़ते हैं तो उन्हों का बहुत मान होता है।
  • वह रूहों को पतित समझते नहीं, निर्लेप कह देते हैं।
  • तो सच्ची-सच्ची नॉलेज तुम ही दे सकते हो।
  • यह भी समझाया है वह है हद का संन्यास, तुम्हारा है बेहद का संन्यास, जो बेहद का बाप ही सिखलाते हैं।
  • वह है हठयोग, यह है राजयोग।
  • वो हठयोग से कर्मेन्द्रियों को वश करने चाहते हैं।
  • तुम राजयोग से कर्मेन्द्रियों को वश करते हो।
  • बहुत फ़र्क है।
  • अब बाप द्वारा तुम नॉलेजफुल बनते जा रहे हो।
  • परन्तु बनेंगे नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार।
  • ऐसे बाप के साथ कितना लव रहना चाहिए।
  • यह है गुप्त लव।
  • आत्मा भी गुप्त है।
  • आत्मा जानती है कि हमको बाबा मिला है।
  • दु:ख से छुड़ा रहे हैं।
  • बाबा आपने तो कमाल की है।
  • कल्प-कल्प आप हमको ज्ञान देते हो फिर हम भूल जाते हैं।
  • बाप कहते हैं - हाँ बच्चे, हमने तो कहा था यह ज्ञान प्राय:लोप हो जायेगा।
  • सतयुग में यह नॉलेज नहीं रहेगी।
  • यह सब ड्रामा बना हुआ है।
  • ज़रा भी फर्क नहीं पड़ सकता।
  • बना बनाया ड्रामा है, जो कुछ होता है साक्षी होकर देखते चलो।
  • विनाश होना है, स्थापना होनी है, साक्षी होकर देखना है।
  • समझो कल अर्थक्वेक होती है तो ऐसे नहीं मैं बताऊंगा कि यह होना है।
  • फिर तो सब प्रबन्ध कर लें।
  • साक्षी होकर देखते चलो।
  • मूल बात है मुझे याद करो।
  • नहीं तो मुझे भी भूल जायेंगे।
  • तुम बच्चों को महावीर बनना है।
  • महावीर-महावीरनी को गॉड आफ नॉलेज, गॉडेज ऑफ नॉलेज कहा जाता है।
  • गॉड ही योग सिखलाए महावीर बनाते हैं।
  • पिछाड़ी में जब अर्थक्वेक आदि होंगी उस समय महावीरपना चाहिए।
  • अभी तो तुम पुरुषार्थी हो।
  • अचल-अडोल रहना पड़े और साथ-साथ बाबा की याद में मरें तो बहुत अच्छा।
  • जो ज्ञान में अचल-अडोल होंगे वह बैठे-बैठे शरीर छोड़ेंगे।
  • फिर कर्मातीत अवस्था में जाकर सर्विस करेंगे।
  • बच्चों को परिपक्व अवस्था में शरीर छोड़ सूक्ष्मवतन में जाकर फिर नई दुनिया में आना है।
  • अच्छा! बच्चों को सदैव अपना चार्ट देखना है जो हम बाबा से पूरा वर्सा पायें।
  • कोई भी बात के संशय में आकर पढ़ाई कभी नहीं छोड़नी चाहिए।
  • बाबा बार-बार कहते हैं - मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे।
  • अच्छा!
  • मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) किसी भी बात में संशयबुद्धि बन पढ़ाई नहीं छोड़नी है। अपनी स्थिति अचल, अडोल बनानी है। एक बाप से सच्चा लव रखना है।

    2) अपना टाइम विस्तार की बातों में वेस्ट नहीं करना है। बुद्धि किसी भी कर्म में मलीन न हो, इसका पूरा ध्यान रखना है।


  • ( All Blessings of 2021-22)
  • मन्सा-वाचा-कर्मणा और सम्बन्ध-सम्पर्क में पवित्रता की धारणा द्वारा परमपूज्य आत्मा भव

    पवित्रता सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं लेकिन मन्सा संकल्प में भी किसी के प्रति निगेटिव संकल्प नहीं हो, बोल में भी कोई ऐसे शब्द न निकलें, सम्बन्ध-सम्पर्क भी सबसे अच्छा हो, किसी में जरा भी अपवित्रता खण्डित न हो तब कहेंगे पूज्य आत्मा।

    तो पवित्रता के फाउण्डेशन को चेक करो।

    सदा स्मृति में रहे कि मैं परम पवित्र पूज्य आत्मा इस शरीर रूपी मन्दिर में विराजमान हूँ, कोई भी व्यर्थ संकल्प मन्दिर में प्रवेश कर नहीं सकता।



  • (All Slogans of 2021-22)
    • अपने भविष्य को स्पष्ट देखने वा जानने के लिए सम्पूर्णता की स्थिति में स्थित रहो।
    BK Naresh Bhai's present residence cum workplace