30-11-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
मीठे बच्चे - विशाल बुद्धि बन पूरे विश्व को दु:खधाम से सुखधाम, पतित से पावन बनाने की सेवा करनी है, अपना टाइम सेफ करना है, व्यर्थ नहीं गंवाना है''
प्रश्नः-
इस ज्ञान मार्ग में हेल्दी कौन हैं और अनहेल्दी कौन है?
उत्तर:-
हेल्दी वह है जो विचार सागर मंथन करते जीवन में रमणीकता का अनुभव करते है और अनहेल्दी वह है जिसका विचार सागर मंथन नहीं चलता। जैसे गऊ भोजन खाती है तो सारा दिन उगारती रहती है, मुख चलता रहता है। मुख न चले तो समझा जाता है बीमार है, यह भी ऐसे है।
|
- ओम् शान्ति। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे बेहद के बाप पास आते ही हैं रिफ्रेश होने लिए, क्योंकि बच्चे जानते हैं बेहद के बाप से बेहद विश्व की बादशाही मिलती है।
- यह कभी भूलना नहीं चाहिए। यह सदैव याद रहे तो भी बच्चों को अपार खुशी रहे।
- बाबा ने यह बैज जो बनवाये हैं, इसे चलते-फिरते घड़ी-घड़ी देखते रहो।
- ओहो! भगवान की श्रीमत से हम यह बन रहे हैं।
- बस बैज़ को देख बाबा, बाबा करते रहो।
- तो सदैव स्मृति रहेगी।
- हम बाप द्वारा यह (लक्ष्मी-नारायण) बनते हैं।
- तो बाप की श्रीमत पर चलना चाहिए ना।
- मीठे बच्चों की बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए।
- सारा दिन सर्विस के ही ख्यालात चलते रहें।
- बाबा को तो वह बच्चे चाहिए जो सर्विस बिगर रह न सकें।
- तुम बच्चों को सारे विश्व पर घेराव डालना है अर्थात् पतित दुनिया को पावन बनाना है।
- सारे विश्व को दु:खधाम से सुखधाम बनाना है।
- अच्छे स्टूडेन्ट्स को देख टीचर को भी पढ़ाने में मज़ा आता है।
- तुम तो अभी स्टूडेन्ट के साथ-साथ बहुत ऊंच टीचर बने हो।
- जितना अच्छा टीचर, उतना बहुतों को आपसमान बनायेंगे।
- कभी थकेंगे नहीं।
- ईश्वरीय सर्विस में बहुत खुशी रहती है।
- बाप की मदद मिलती है।
- यह बड़ा बेहद का व्यापार भी है - व्यापारी लोग ही धनवान बनते हैं।
- वह इस ज्ञान मार्ग में भी जास्ती उछलते हैं।
- बाप भी बेहद का व्यापारी है ना।
- सौदा बड़ा फर्स्टक्लास है, परन्तु इसमें बड़ा साहस धारण करना पड़ता है।
- नये-नये बच्चे पुरानों से भी पुरुषार्थ में आगे जा सकते हैं।
- हर एक की इन्डीविज्युअल (व्यक्तिगत) तकदीर है, तो पुरुषार्थ भी हर एक को इन्डीविज्युअल करना है।
- अपनी पूरी चेकिंग करनी चाहिए।
- ऐसी चेकिंग करने वाले एकदम रात दिन पुरुषार्थ में लग जायेंगे।
- कहेंगे हम अपना टाइम वेस्ट क्यों करें, जितना हो सके टाइम सेफ करें।
- अपने से पक्का प्रण कर देते हैं, हम बाप को कभी नहीं भूलेंगे।
- स्कालरशिप लेकर ही छोड़ेंगे।
- ऐसे बच्चों को फिर मदद भी मिलती है।
- ऐसे भी नये-नये पुरुषार्थी बच्चे तुम देखेंगे, साक्षात्कार करते रहेंगे।
- जैसे शुरू में हुआ वही फिर पिछाड़ी में देखेंगे।
- जितना नज़दीक होते जायेंगे उतना खुशी में नाचते रहेंगे।
- उधर खूने नाहेक खेल भी चलता रहेगा।
- तुम बच्चों की ईश्वरीय रेस चल रही है।
- जितना आगे दौड़ते जायेंगे उतना नई दुनिया के नज़ारे भी नज़दीक आते जायेंगे।
- खुशी बढ़ती जायेगी।
- जिनको नज़ारे नजदीक नहीं दिखाई पड़ते उनको खुशी भी नहीं होगी।
- अभी तो कलियुगी दुनिया से वैराग्य और सतयुगी नई दुनिया से बहुत प्यार होना चाहिए।
- शिवबाबा याद रहेगा तो स्वर्ग का वर्सा भी याद रहेगा।
- स्वर्ग का वर्सा याद रहेगा तो शिवबाबा भी याद रहेगा।
- तुम बच्चे जानते हो अभी हम स्वर्ग तरफ जा रहे हैं, पाँव नर्क तरफ हैं, सिर स्वर्ग तरफ है।
- अभी तो छोटे-बड़े सबकी वानप्रस्थ अवस्था है।
- बाबा को सदैव यह नशा रहता है ओहो! हम जाकर यह बाल (मिचनू) कृष्ण बनूँगा।
- जिसके लिए बच्चियां इनएडवान्स सौगातें भी भेजती रहती हैं।
- जिन्हों को पूरा निश्चय है वही गोपिकायें सौगातें भेजती हैं, उन्हें अतीन्द्रिय सुख की भासना आती है।
- हम ही अमरलोक में देवता बनेंगे।
- कल्प पहले भी हम ही बने थे फिर हमने 84 पुनर्जन्म लिए हैं।
- यह बाजोली याद रहे तो भी अहो सौभाग्य - सदैव अथाह खुशी में रहो।
- बड़ी लाटरी मिल रही है।
- 5000 वर्ष पहले भी हमने राज्यभाग्य पाया था फिर कल पायेंगे।
- ड्रामा में नूँध है।
- जैसे कल्प पहले जन्म लिया था वैसे ही लेंगे।
- वही हमारे माँ-बाप होंगे।
- जो कृष्ण का बाप था वही फिर बनेगा।
- ऐसे-ऐसे जो सारा दिन विचार सागर मंथन करते रहेंगे तो वो बहुत रमणीकता में रहेंगे।
- विचार सागर मंथन नहीं करते तो गोया अनहेल्दी हैं।
- गऊ भोजन खाती है तो सारा दिन उगारती रहती है, मुख चलता ही रहता है।
- मुख न चले तो समझा जाता है बीमार है, यह भी ऐसे है।
- बेहद के बाप और दादा दोनों का मीठे-मीठे बच्चों से बहुत लव है, कितना लव से पढ़ाते हैं।
- काले से गोरा बनाते हैं।
- तो बच्चों को भी खुशी का पारा चढ़ना चाहिए।
- पारा चढ़ेगा याद की यात्रा से।
- बाप कल्प-कल्प बहुत प्यार से लवली सर्विस करते हैं।
- 5 तत्वों सहित सबको पावन बनाते हैं।
- कितनी बड़ी बेहद की सेवा है।
- बाप बहुत प्यार से बच्चों को शिक्षा भी देते रहते क्योंकि बच्चों को सुधारना बाप वा टीचर का ही काम है।
- बाप की है श्रीमत, जिससे ही श्रेष्ठ बनेंगे।
- जितना प्यार से याद करेंगे उतना श्रेष्ठ बनेंगे।
- यह भी चार्ट में लिखना चाहिए हम श्रीमत पर चलते हैं वा अपनी मत पर चलते हैं।
- श्रीमत पर चलने से ही तुम एक्यूरेट बनेंगे।
- जितनी बाप से प्रीत बुद्धि होगी उतनी गुप्त खुशी रहेगी और ऊंच बनेंगे।
- अपनी दिल से पूछना है इतनी अपार खुशी हमको है!
- बाप को इतना प्यार करते हैं! प्यार करना माना ही याद करना है।
- याद से ही एवरहेल्दी, एवरवेल्दी बनेंगे।
- पुरुषार्थ करना होता है और किसी की भी याद न आये।
- एक शिवबाबा की ही याद हो, स्वदर्शन चक्र फिरता रहे तब प्राण तन से निकले।
- एक शिवबाबा दूसरा न कोई।
- यही अन्तिम मंत्र है अथवा वशीकरण मंत्र, रावण पर जीत पाने का मंत्र है।
- बाप समझाते हैं मीठे बच्चे इतना समय तुम देह-अभिमान में रहे हो अब देही-अभिमानी बनने की प्रैक्टिस करो।
- दृष्टि का परिवर्तन होना ही निश्चयबुद्धि की निशानी है।
- सब देह के सम्बन्धों को भूल अपने को गॉडली स्टूडेन्ट समझो, आत्मा भाई-भाई की दृष्टि हो जाए, तब ही ब्रह्माकुमार ब्रह्माकुमारी भाई-बहन की दृष्टि पक्की हो जायेगी।
- सवेरे-सवेरे उठकर बाप को याद करो - नींद आ गई तो कमाई में घाटा पड़ जायेगा।
- अमृतवेले उठकर बाबा से मीठी मीठी रुहरिहान करो।
- बाबा आपने हमको क्या से क्या बना दिया, बाबा कमाल है आपकी।
- बाबा आप हमें अथाह खजाना देते हो, विश्व का मालिक बनाते हो!
- बाबा हम आपको कभी भूल नहीं सकते।
- भोजन खाते, कामकाज करते बाबा आपको ही याद करेंगे।
- ऐसे-ऐसे प्रतिज्ञा करते-करते फिर याद पक्की हो जायेगी।
- मोस्ट बिलवेड बाबा नॉलेजफुल भी है, ब्लिसफुल भी है।
- नम्बरवन पतित से हमको नम्बरवन पावन बनाते हैं।
- बस मीठे-मीठे बाबा की याद में गदगद होना चाहिए।
- बाबा को यह सुमिरण कर बहुत अन्दर में खुशी होती है।
- ओहो! मैं ब्रह्मा सो विष्णु बनूँगा!
- फिर 84 जन्मों बाद ब्रह्मा बनूँगा!
- फिर बाबा हमको विष्णु बनायेगा।
- फिर आधाकल्प बाद रावण पतित बनायेगा!
- कितना वन्डरफुल ड्रामा है!
- यह सुमिरण कर सदैव हर्षित रहता हूँ!
- शिवबाबा कितना लायक बनाते हैं।
- वाह तकदीर वाह! ऐसे-ऐसे विचार करते एकदम मस्ताना हो जाना चाहिए।
- वाह! हम स्वर्ग के मालिक बनते हैं!
- बाकी हम बहुत अच्छी सर्विस करते हैं, इसमें ही सिर्फ खुश नहीं होना है।
- पहले गुप्त सर्विस अपनी यह (याद की) करते रहो।
- अशरीरी बनने का अभ्यास करना है, इससे ही तुम्हारा कल्याण होना है।
- अभ्यास पड़ जाने से फिर घड़ी-घड़ी तुम अशरीरी हो जायेंगे।
- आज बाबा खास इस पर ज़ोर दे रहे हैं, जो यह अभ्यास करेंगे वही कर्मातीत अवस्था को पा सकेंगे और ऊंच पद पायेंगे।
- इसी अवस्था में बैठे-बैठे बाप को याद करते घर चल जायें।
- दिन-प्रतिदिन याद का चार्ट बढ़ाना चाहिए।
- देखना है तमोप्रधान से सतोप्रधान कितने परसेन्ट बनें हैं?
- किसको दु:ख तो नहीं देते हैं? किसी देहधारी में बुद्धि फंसी हुई तो नहीं है?
- बाप का सन्देश कितनों को देते हैं?
- ऐसा चार्ट रखो तो बहुत उन्नति होती रहेगी। अच्छा।
- दूसरी मुरली :-
- आज तुम बच्चों को संकल्प, विकल्प नि:संकल्प अथवा कर्म, अकर्म और विकर्म पर समझाया जाता है।
- जब तक तुम यहाँ हो तब तक तुम्हारे संकल्प जरूर चलेंगे।
- संकल्प धारण किए बिना कोई मनुष्य एक क्षण भी रह नहीं सकता है।
- अब यह संकल्प यहाँ भी चलेंगे, सतयुग में भी चलेंगे और अज्ञानकाल में भी चलते हैं, परन्तु ज्ञान में आने से संकल्प संकल्प नहीं, क्योंकि तुम परमात्मा की सेवा अर्थ निमित्त बने हो, तो जो यज्ञ अर्थ संकल्प चलता वह संकल्प संकल्प नहीं, वह निरसंकल्प ही है।
- बाकी जो फालतू संकल्प चलते हैं अर्थात् कलियुगी संसार और कलियुगी मित्र सम्बन्धियों के प्रति चलते हैं वह विकल्प कहे जाते हैं जिससे ही विकर्म बनते हैं और विकर्मों से दु:ख प्राप्त होता है।
- बाकी जो यज्ञ प्रति अथवा ईश्वरीय सेवा प्रति संकल्प चलता है वो गोया निरसंकल्प हो गया।
- शुद्ध संकल्प सर्विस प्रति भले चले।
- देखो, बाबा यहाँ बैठा है तुम बच्चों को सम्भालने अर्थ।
- तो इस सर्विस करने अर्थ माँ बाप का संकल्प जरूर चलता है परन्तु यह संकल्प संकल्प नहीं, इससे विकर्म नहीं बनता है, परन्तु यदि किसी का विकारी सम्बन्ध प्रति संकल्प चलता है तो उनका विकर्म अवश्य ही बनता है।
- बाबा तुमको कहता है कि मित्र-सम्बन्धियों की सर्विस भले करो परन्तु अलौकिक ईश्वरीय दृष्टि से।
- वह मोह की रग नहीं आनी चाहिए।
- अनासक्त होकर अपनी फर्जअदाई निभाओ।
- परन्तु जो कोई यहाँ होते हुए, कर्म सम्बन्ध में होते हुए उनसे मुक्त नहीं हो सकता तो भी उसे बाप का हाथ नहीं छोड़ना चाहिए।
- हाथ पकड़ा होगा तो कुछ न कुछ पद प्राप्त कर लेंगे।
- अब यह तो हरेक अपने को जानते हैं कि मेरे में कौन-सा विकार है!
- अगर किसी में एक भी विकार है तो वह देह-अभिमानी जरूर ठहरा, जिसमें विकार नहीं वह ठहरा देही-अभिमानी।
- किसी में कोई भी विकार है तो वह सजायें जरूर खायेंगे और जो विकारों से रहित है वे सज़ाओं से मुक्त हो जायेंगे।
- जैसे देखो कोई-कोई बच्चे हैं जिनमें न काम है, न क्रोध है, न लोभ है, न मोह है वो सर्विस बहुत अच्छी कर सकते हैं।
- अब उन्हों की बहुत ज्ञान विज्ञानमय अवस्था है, वह तो तुम सब भी वोट देंगे।
- अब यह तो जैसे मैं जानता हूँ वैसे तुम सब जानते हो अच्छे को सब अच्छा वोट देंगे।
- अब यह निश्चय करना जिनमें कुछ विकार हैं वो सर्विस नहीं कर सकेंगे।
- जो विकार प्रूफ हैं वो सर्विस कर औरों को आप समान बना सकेंगे इसलिये अपने ऊपर बहुत ही सम्भाल चाहिए।
- विकारों पर पूर्ण जीत चाहिए।
- विकल्प पर पूर्ण जीत चाहिए।
- ईश्वर अर्थ संकल्प को निरसंकल्प रखा जायेगा।
- वास्तव में निरसंकल्पता उसी को कहा जाता है जो संकल्प चले ही नहीं, दु:ख सुख से न्यारा हो जाए वह तो अन्त में जब तुम हिसाब-किताब चुक्तू कर चले जाते हो, वहाँ दु:ख सुख से न्यारी अवस्था में तब कोई संकल्प नहीं चलता।
- उस समय कर्म अकर्म दोनों से परे अकर्मी अवस्था में रहते हो।
- यहाँ तुम्हारा संकल्प जरूर चलेगा क्योंकि तुम सारी दुनिया को शुद्ध बनाने अर्थ निमित्त बने हो।
- तो उसके लिये तुम्हारे शुद्ध संकल्प जरूर चलेंगे।
- सतयुग में शुद्ध संकल्प चलने कारण संकल्प संकल्प नहीं, कर्म करते, कर्म-बंधन नहीं बनता, उसे अकर्म कहा जाता है। समझा।
- अब यह कर्म, अकर्म और विकर्म की गति तो बाप ही समझाते हैं।
- विकर्मों से छुड़ाने वाला तो एक बाप ही है जो इस संगम पर तुमको पढ़ा रहे हैं इसलिये बच्चे अपने ऊपर बहुत ही सावधानी रखो।
- अपने हिसाब-किताब को भी देखते रहो।
- तुम यहाँ आये हो हिसाब-किताब चुक्तू करने।
- ऐसा तो नहीं यहाँ आए हिसाब-किताब बनाते जाओ जो सज़ा खानी पड़े।
- यह गर्भजेल की सज़ा कोई कम नहीं है।
- इस कारण बहुत ही पुरुषार्थ करना है।
- यह मंजिल बहुत भारी है इसलिये सावधानी से चलना चाहिए।
- विकल्पों के ऊपर जीत पानी है जरूर।
- अब कितने तक तुमने विकल्पों पर जीत पाई है, कितने तक इस निरसंकल्प अर्थात् दु:ख सुख से न्यारी अवस्था में रहते हो, यह तुम अपने को जान सकते हो।
- जो खुद को न समझ सकें वो बाबा से पूछ सकते हैं क्योंकि तुम तो उनके वारिस हो तो वह बता सकते हैं।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अमृतवेले उठ बाबा से मीठी -मीठी रूहरिहान करनी है, फिर भोजन खाते, कामकाज करते बाबा की याद में रहना है, देह के संबंधों को भूल आत्मा भाई-भाई हूँ, यह दृष्टि पक्की करनी है।
2) विकल्पों पर जीत प्राप्त कर दु:ख सुख से न्यारी निरसंकल्प अवस्था में रहना है।
कायदेसिर सभी विकारों की आहुति दे योगयुक्त बनना है।
( All Blessings of 2021-22)
श्रेष्ठ संस्कारों के आधार पर भविष्य संसार बनाने वाले धारणा स्वरूप भव
अभी के श्रेष्ठ संस्कारों से ही भविष्य संसार बनेगा।
एक राज्य, एक धर्म के संस्कार ही भविष्य संसार का फाउण्डेशन हैं।
स्वराज्य का धर्म वा धारणा है - मन-वचन-कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क में सब प्रकार की पवित्रता।
संकल्प वा स्वप्न मात्र भी अपवित्रता अर्थात् दूसरा धर्म न हो।
जहाँ पवित्रता है वहाँ अपवित्रता अर्थात् व्यर्थ वा विकल्प का नामनिशान नहीं रहता, उन्हें ही धारणा स्वरूप कहा जाता है।
(All Slogans of 2021-22)
- दृढ़ता की शक्ति कड़े संस्कारों को भी मोम की तरह पिघला देती है।
|