26-11-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम रूहानी यात्रा पर हो, तुम्हें वापिस इस मृत्युलोक में नहीं आना है, तुम्हारा उद्देश्य है मनुष्य से देवता बनना और बनाना''
प्रश्नः-
16 कला सम्पूर्ण बनने वालों की निशानी क्या होगी?
उत्तर:-
वह अपनी झोली ज्ञान रत्नों से अच्छी तरह से भरकर दूसरों की भी भरेंगे।
ज्ञान रत्नों का दान कर अपना मर्तबा ऊंच बनायेंगे।
2- वह पक्के महावीर होंगे, उन्हें माया जरा भी हिला नहीं सकती।
वह अखण्ड-अचल शुरू से अन्त तक चलते रहेंगे ।
प्रश्नः-
पापों से मुक्त हो पुण्य आत्मा बनने की युक्ति क्या है?
उत्तर:-
इस अन्तिम जन्म की कहानी बाप को सुनाकर राय लो।
साथ-साथ बाप को याद करते ज्ञान रत्नों का दान करते रहो तो पुण्य आत्मा बन जायेंगे।
गीत:- भोलेनाथ से निराला...
|
- ओम् शान्ति।
- बाबा ने ओम् का अर्थ समझाया है।
- बाप भी कहते हैं - ओम् शान्ति। ओम् शान्ति।
- आत्मा का अपना स्वरूप वा लक्ष्य शान्ति है।
- आत्मा का धर्म शान्त है।
- बाबा भी अपना परिचय देते हैं।
- जैसे परमपिता परमात्मा का परिचय वैसे आत्माओं का।
- मनुष्य ओम् का अर्थ कितना लम्बा करते हैं। ओम् अर्थात् भगवान भी कह देते हैं।
- भोलानाथ की भी महिमा है।
- भोलानाथ शंकर को नहीं कहेंगे क्योकि शंकर आदि-मध्य-अन्त का राज़ नहीं समझाते हैं।
- वह तो भोलानाथ ही बताते हैं।
- भोलानाथ वर्सा देते हैं - शंकर वर्सा नहीं देते।
- ऐसे भी नहीं शंकर कोई शान्ति देते हैं। नहीं।
- शान्ति देने लिए भी साकार में आकर समझाना पड़े।
- शंकर तो साकार में आते नहीं।
- भोलानाथ ही शान्ति, सुख, सम्पत्ति, बड़ी आयु भी देते हैं।
- हर चीज़ अविनाशी देते हैं क्योंकि अविनाशी बाप है, वर्सा भी अविनाशी देते हैं।
- ड्रामा को भी अविनाशी कहा जाता है।
- हद के ड्रामा वा नाटक तो अभी बने हैं।
- यह तो अनादि ड्रामा है।
- यह बेहद का नाटक है।
- स्थूल नाटक मनुष्यों के होते हैं।
- वह रिपीट होते हैं।
- जैसे कंस वध का खेल बनाया है फिर वही खेल दिखायेंगे।
- यह बेहद का ड्रामा सतयुग से शुरू होता है।
- कलियुग अन्त तक खलास हो फिर रिपीट होता है।
- वर्ल्ड रिपीट कहा जाता है।
- कौन सी वर्ल्ड?
- बरोबर सतयुगी वर्ल्ड जो थी वह अब रिपीट होनी है।
- आधाकल्प के बाद पुरानी वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है।
- नई को दिन, पुरानी को रात कहा जाता है।
- यह सब बातें बाप समझाते हैं।
- वह है ज्ञान सागर।
- शुरू से लेकर अन्त तक ज्ञान लेना है। पढ़ना है।
- वह पढ़ाई 15-20 वर्ष चलती है।
- यह बड़ा भारी इम्तहान है, इनका उद्देश्य है मनुष्य से देवता बनना।
- जो भी सिर पर पाप हैं उनको जलाना है।
- इसके लिए बाबा ने रूहानी यात्रा सिखलाई है।
- जहाँ से वापिस इस मृत्युलोक में नहीं आना है।
- जिस्मानी यात्रा तो जन्म-जन्मान्तर बहुत की, तुम बच्चों ने आदि को भी जाना है, मध्य को भी जाना है।
- मध्य में कितनी बड़ी-बड़ी बातें होती हैं।
- रावण राज्य शुरू होता है।
- भक्ति मार्ग शुरू होता है।
- मनुष्य भ्रष्टाचारी बनने शुरू होते हैं।
- सम्पूर्ण भ्रष्टाचारी बनने में आधाकल्प लगता है।
- माया का राज्य द्वापर से शुरू होता है।
- तो भक्ति और रावण राज्य दोनों नाम गिरने के हैं।
- भक्ति के बाद भगवान मिलेगा।
- बाप कहते हैं तुम सबसे जास्ती भक्ति करते हो।
- फिर ज्ञान भी तुम ही लेते हो।
- ज्ञान और भक्ति के संगम पर तुमको वैराग्य चाहिए।
- तुम संन्यास करते हो 5 विकारों का।
- उनको सिखलाने वाला शंकराचार्य है, उनका है हठ योग।
- अनेक प्रकार के योग सीखते हैं।
- घरबार छोड़ ब्रह्म के साथ योग रखते हैं।
- उनको तत्व ज्ञानी, तत्व योगी कहते हैं।
- ज्ञान देते भी हैं तत्व का।
- समझते हैं चक्र फिरना है, हमको पार्ट बजाना है।
- यह बातें उनके आगे ऐसे हैं जैसे बन्दर के आगे डमरू बजायें।
- अब बन्दर मिसल मनुष्यों को मन्दिर लायक बनाने के लिए यह ज्ञान डांस करते हैं, ज्ञान डांस को उन्होंने डमरू नाम रख दिया है।
- और कहते हैं राम ने बन्दर सेना ली।
- बाबा समझाते हैं तुम सब बन्दर थे।
- शिवबाबा ज्ञान डमरू बजाए बन्दर से मन्दिर बनाते हैं।
- वह समझते हैं लंका में रावण का राज्य था।
- बाप कहते हैं सारी दुनिया सागर के बीच खड़ी है।
- इस समय सारी दुनिया में रावण राज्य है।
- वह हद की बातें सुनाते हैं।
- बाप तो बेहद का राज़ समझाते हैं।
- सारी दुनिया रावण की जंजीरों में फॅसी हुई है।
- सारी दुनिया को विकारों के कारण पतित कहा जाता है।
- पतित पुकारते हैं कि हे पतित-पावन आओ, आकर हमको पावन बनाओ।
- आत्मा को ही पावन बन वापिस घर जाना है।
- तुम जानते हो एक बाप के बच्चे हम भाई बहन ठहरे।
- तो जरूर प्रजापिता ब्रह्मा भी चाहिए।
- शिवबाबा कहते हैं कि तुम निराकार आत्मायें शिव वंशी हो फिर साकार में भाई बहन बनते हो।
- निराकार में सब भाई-भाई हो।
- फिर प्रजापिता ब्रह्मा साकार में आते हैं तो तुमको भाई बहन बनाते हैं।
- रूहानी रीति से भाई-भाई जिस्मानी रीति से भाई बहन हो।
- तो यह निश्चय रखना है कि हम शिववंशी प्रजापिता ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हैं।
- वर्सा पाना है बाप से।
- बाप को अविनाशी सर्जन भी कहा जाता है।
- हर एक का कर्मबन्धन अलग-अलग है।
- बाप आकर कर्म, अकर्म और विकर्म की गति समझाते हैं।
- हर एक को अपनी-अपनी जीवन कहानी सुनानी होती है।
- यह तो जानते हो द्वापर से लेकर तुम पतित बनते हो।
- अब यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है, जो कुछ पाप किये हैं वह सब कुछ जमा होते आये हैं।
- अब हमको पुण्य जमा करने हैं।
- इतने जन्म के पाप कैसे कटें और हम पुण्य आत्मा कैसे बनें?
- बाप कहते हैं - मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और ज्ञान रत्नों का दान करना है।
- जो बहुत दान करेंगे वह ऊंच मर्तबा पायेंगे।
- भारत जैसा दान कोई करता नहीं।
- अब उनको मिलता कहाँ से है?
- बेहद का बाप सबसे बड़ा फ्लैन्थ्रोफिस्ट है।
- बाप आकर जीयदान देते हैं।
- झोली भरकर तृप्त कर देते हैं।
- अपनी झोली कम वा जास्ती भरना वह तो बच्चों के ऊपर है।
- नम्बरवार झोली भरते हैं।
- कितने ब्राह्मण ब्राह्मणियाँ हैं।
- कितने सेन्टर्स हैं। वृद्धि को पाते जायेंगे।
- शिवबाबा का सिज़रा है अविनाशी।
- यह फिर साकार सिजरा बनता है।
- ड्रामा अनुसार शूद्र से ब्राह्मण बनना ही है।
- तुम नहीं बनो - यह नहीं हो सकता।
- ड्रामा अनुसार इतने बनने हैं जितने ड्रामा अनुसार बने थे, वही सतयुग के देवता बनते हैं।
- झाड वृद्धि को पाता रहता है।
- कितने झड़ भी जाते हैं।
- कोई तो ऐसे पक्के महावीर बनते हैं जो माया उनको हिला न सके।
- वह अखण्ड अचल रहते हैं।
- अखण्ड अर्थात् शुरू से लेकर चलते आते हैं।
- महावीर भी तुम बच्चों को कहा जाता है।
- अचल स्थिर बनना है, ऐसा कोई कह न सके कि हम 16 कला बन गये हैं। नहीं।
- बनना जरूर है।
- 16 कला सम्पूर्ण बनने की निशानी क्या है?
- जो अच्छी रीति अपनी झोली भरकर औरों की भरते हैं।
- ड्रामा अनुसार कल्प पहले जिसने ज्ञान की धारणा की है, सो करेंगे।
- हम साक्षी होकर देखते हैं।
- पुरुषार्थ तो जरूर करना पड़े।
- पुरुषार्थ के बिगर प्रालब्ध नहीं मिल सकती।
- वह सब मनुष्य, मनुष्य के द्वारा पुरुषार्थ करते हैं।
- शास्त्र भी मनुष्यों ने बनाये हैं।
- अब तुमको परमपिता परमात्मा की श्रीमत मिलती है।
- ऊंचे ते ऊंचा है भगवान।
- ऊंचे ते ऊंचा उनका ठाँव है।
- बाप आया है सुखधाम, शान्तिधाम का मालिक बनाने।
- सबको शान्तिधाम ले जाते हैं।
- कितना बड़ा बेहद का पण्डा है।
- वह एक है, बाकी जिस्मानी यात्रा पर ले जाने वाले तो अनेक पण्डे हैं।
- कुम्भ के मेले पर ढेर पण्डे होते हैं।
- यह सच्चा-सच्चा कुम्भ का मेला है।
- परन्तु पण्डा एक ही है।
- तुम हो पाण्डव सेना।
- उन्होने तो 5 पाण्डव दिखाये हैं।
- वास्तव में गायन इनका है।
- यह है शक्ति सेना, वन्दे मातरम्।
- मुख्य है भारत।
- यह सबका माता-पिता है, सबको पावन बनाते हैं।
- श्रीकृष्ण को तो सब नहीं मानते।
- श्रीकृष्ण का नाम गीता में डालने के कारण भारत को इतना ऊंच तीर्थ समझते नहीं हैं।
- बाप कहते हैं गीता पढ़ते-पढ़ते मनुष्यों की क्या हालत हो गई है।
- बाप तो सबको वर्सा देते हैं।
- ज्ञान तो अथाह है। सागर को स्याही बनाओ तो भी बेअन्त, अन्त नहीं पाया जाता।
- गीता में शिवबाबा के बदले श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है।
- अब तुमको अन्धों की लाठी बनना है।
- बाप का परिचय देना है कि ऊंचे ते ऊंच कौन है?
- परमपिता परमात्मा।
- वर्सा किससे मिलेगा? उनसे।
- कल्प पहले भी ब्रह्मा द्वारा वर्सा लिया था।
- स्थापना हुई थी।
- वर्णों को जरूर फिरना है।
- तुम शूद्र से ब्राह्मण बनते हो।
- ब्राह्मणों द्वारा यज्ञ रचा जाता है।
- तुम हो सच्चे ब्राह्मण, वह हैं झूठे ब्राह्मण।
- भगवानुवाच - मैं तुम बच्चों को राजयोग सिखलाता हूँ।
- यहाँ तुमको भगवान पढ़ाते हैं।
- वहाँ मनुष्य, मनुष्य को पढ़ाते हैं।
- सबको पहले बाप का परिचय देना है।
- परमपिता परमात्मा से आपका क्या सम्बन्ध है?
- कितना भी समझाओ फिर भी कह देते हैं परमात्मा सर्वव्यापी है।
- पत्थरबुद्धि हैं।
- अरे हम सम्बन्ध पूछते हैं, सर्वव्यापी का सम्बन्ध होता है क्या?
- प्रदर्शनी करते जाओ तो वृद्धि होती जायेगी।
- तुमको बहुत वोट्स मिलती जायेंगी।
- बाबा लिखते रहते हैं - धर्म के नेताओं आदि को निमंत्रण देना है।
- फिर पहरा भी पूरा रखना है।
- अगर तुमने यह दो तीन बातें सिद्ध कर दी तो उन सबका धन्धा ही ठण्डा हो जायेगा।
- तो बच्चों को सर्विस जोर-शोर से बढ़ानी है।
- बहुत समझते भी हैं।
- परन्तु बाहर निकले और खलास।
- सृष्टि चक्र को समझ ले वह मुश्किल हैं।
- ऐसे-ऐसे जो सही कर जाते हैं उनको फिर चिट्ठी लिखनी चाहिए कि तुम फार्म भरकर फिर सो गये क्यों?
- मेहनत चाहिए परन्तु ड्रामा अनुसार जो बच्चों ने मेहनत की है वह ठीक है।
- ड्रामा में जो था सो रिपीट हुआ।
- जितनी सर्विस बढ़नी थी, जितने ब्राह्मण बनने थे उतने बने हैं।
- वृद्धि होती जायेगी।
- कोई सेकेण्ड में बाप को पहचानेंगे।
- कोई 7 दिन में, कोई एक मास में, कोई चलते-चलते ठण्डे हो पड़ते हैं।
- फिर संजीवनी बूटी से खड़े हो जाते हैं।
- बच्चे जानते हैं - श्रीमत पर हम भारत को स्वर्ग बनाने के रेसपान्सिबुल बने हुऐ हैं।
- श्रीमत से स्वर्गवासी बनाना है।
- यह खेल है।
- अब तुम शिवालय में चलते हो।
- पहले तुम स्वर्गवासी थे फिर इतने जन्मों के बाद रावण ने नर्कवासी बनाना शुरू किया।
- अब पूरे नर्कवासी, कंगाल बन गये हैं।
- बाबा कहते हैं तुम बच्चे स्वदर्शन चक्रधारी बनते हो।
- रावण का सिर काटते हो।
- रावण दुश्मन पर जीत पाते हो।
- रावण फारेनर है।
- हमारा रामराज्य था।
- अब सारी दुनिया ने रावण से हराया है।
- यह शोक वाटिका है।
- सतयुग अशोक वाटिका है।
- यहां अशोका होटल नाम रखा है।
- जैसे संन्यासियों ने शिव नाम रखा है।
- शिव और विष्णु की माला मशहूर है।
- ब्राह्मणों की माला बन न सके।
- यह है रुद्र माला।
- विष्णु की माला प्रवृत्ति मार्ग की है।
- मनुष्य कहेंगे इन जैसा पावन बनाओ।
- एम आबॅजेक्ट सामने खड़ा है।
- तुम श्याम से सुन्दर बन रहे हो।
- पुरानी दुनिया को लात मारते हो।
- श्रीकृष्ण की आत्मा गौरी थी, इसलिए स्वर्ग का गोला उनके हाथ में दे दिया है।
- कृष्ण, नारायण, शिव सबको काला बना दिया है।
- जो शिव परमात्मा सर्व का रचयिता है, उसे भी जानते नहीं।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप समान मनुष्य आत्माओं को जीयदान देना है।
बेहद के बाप से दान लेकर दूसरों को देना है। महादानी जरूर बनना है।
2) स्वदर्शन चक्रधारी बन रावण का सिर काटना है।
बेहद का वैरागी बन विकारों का संन्यास करना है।
( All Blessings of 2021-22)
संगमयुग पर सदा प्रत्यक्ष वा ताजा फल खाने वाले शक्तिशाली वा तन्दरूस्त भव
संगमयुग की ही विशेषता है जो एक की पदमगुणा प्राप्ति होती है और प्रत्यक्षफल भी मिलता है।
अभी-अभी सेवा की और अभी-अभी खुशी रूपी फल मिला।
तो जो प्रत्यक्षफल अर्थात् ताजा फ्रूट खाने वाले हैं वह शक्तिशाली वा तन्दरूस्त होते हैं।
कोई कमजोरी उनके पास आ नहीं सकती।
कमजोरी तब आती है जब अलबेले होकर कुम्भकरण की नींद में सो जाते हो।
अलर्ट रहो तो सर्व शक्तियां साथ रहेंगी और सदा तन्दरूस्त रहेंगे।
(All Slogans of 2021-22)
- फालो एक ब्रह्मा बाप को करो बाकी सबसे गुण ग्रहण करो।
|