19-11-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - पतित-पावन बाप आये हैं पावन बनाकर पावन दुनिया का वर्सा देने, पावन बनने वालों को ही सद्गति प्राप्त होगी''
प्रश्नः-
भोगी जीवन, योगी जीवन में परिवर्तन होने का मुख्य आधार क्या है?
उत्तर:-
निश्चय।
जब तक निश्चय नहीं कि हमको पढ़ाने वाला स्वयं बेहद का बाप है तब तक न योग लगेगा, न पढ़ाई ही पढ़ सकेंगे।
भोगी के भोगी ही रह जायेंगे।
कई बच्चे क्लास में आते हैं लेकिन पढ़ाने वाले में निश्चय नहीं।
समझते हैं हाँ कोई शक्ति है लेकिन निराकार शिवबाबा पढ़ाते हैं - यह कैसे हो सकता?
यह तो नई बात है।
ऐसे पत्थरबुद्धि बच्चे परिवर्तन नहीं हो सकते।
गीत:- ओम् नमो शिवाए.....
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- ओम् शान्ति।
- बच्चे यह तो समझ गये हैं कि शिवबाबा हमको समझाते हैं।
- घड़ी-घड़ी तो नहीं कहेंगे भगवानुवाच।
- यह तो कायदा नहीं कि घड़ी-घड़ी अपनी महिमा करनी है।
- शिवबाबा जो सबका बाप है, वह हम बच्चों को बैठ समझाते हैं।
- भविष्य 21 जन्मों के लिए अटल अखण्ड दैवी स्वराज्य प्राप्त कराते हैं।
- जैसे स्कूल अथवा कॉलेज में बच्चे जानते हैं कि टीचर हमें आप समान बैरिस्टर बना रहे हैं, एम आब्जेक्ट है।
- बाकी सतसंगों में जो जाते हैं वेद शास्त्र आदि सुनने के लिए, उससे तो कुछ मिलता नहीं है इसलिए टीचर फिर भी अच्छे होते हैं जो शरीर निर्वाह अर्थ कोई जिस्मानी विद्या सिखलाते हैं, जिससे आजीविका होती है।
- बाकी सब दुर्गति ही करते हैं, बच्चे शादी न करना चाहें तो बाप कहेगा कि वर्सा भी नहीं मिलेगा।
- जहाँ चाहे वहाँ चले जाओ।
- यहाँ तो बाप अमृत भी पिलाते हैं और वर्सा भी देते हैं कहते हैं कि पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे।
- कितना फ़र्क है - हद के बाप में और बेहद के बाप में।
- वह रात में ले जाते हैं, यह दिन में ले जाते हैं।
- यह है ही पतित-पावन।
- कहते भी हैं कि सद्गति दाता एक है - जो आकर सबकी सद्गति करते हैं, फिर दुर्गति किसने की?
- यह नहीं जानते।
- बाप समझाते हैं - सब आसुरी मत वाले हैं।
- यहाँ आते हैं असुरों से देवता बनने।
- यह इन्द्रप्रस्थ है।
- कई असुर भी छिपकर आए बैठते हैं।
- सब सेन्टर्स पर ऐसे छिपे असुर (विकारी) बहुत आते हैं, फिर घर में जाकर विष पीते हैं।
- दो काम तो चल न सकें।
- वह पत्थरबुद्धि बन पड़ते हैं।
- बाप को पहचानते ही नहीं।
- निश्चय बिल्कुल ही नहीं कि हमको बेहद का बाप पढ़ाते हैं।
- ऐसे ही आकर बैठ जाते हैं।
- तो न योग लगेगा, न पढ़ाई ही पढ़ सकते।
- भोगी के भोगी ही होंगे।
- बहुत समझते हैं कि कोई शक्ति है बस।
- निराकार शिव-बाबा कैसे आ सकता!
- कोई शास्त्र में भी लिखा हुआ नहीं है।
- यह हैं नई बातें।
- गाते भी हैं शिव जयन्ति.. परन्तु पत्थरबुद्धि होने के कारण समझते नहीं हैं।
- शिव है तब तो सब भक्त याद करते हैं।
- कहते भी हैं शिवाए नम:, समझते हैं वह परमधाम में रहते हैं।
- हमारा बाप भी है परमपिता, तो वह सबका फादर हो गया ना।
- भारत में ऐसे भी हैं जो फादर को नही मानते।
- मनुष्यों को समझाना बहुत मुश्किल है।
- मनुष्य तो यह भी नहीं समझते कि अभी दुर्गति का समय चल रहा है।
- भक्ति मार्ग में पहले अव्यभिचारी भक्ति थी अब व्यभिचारी बन गई है।
- व्यभिचारी और अव्यभिचारी में कितना अन्तर है।
- वह पाप आत्मा, वह पुण्य आत्मा।
- अव्यभिचारी भक्ति है ही सच्ची भक्ति।
- उस समय यानी द्वापर में मनुष्य सुखी भी रहते हैं।
- धन-दौलत आदि सब रहता है।
- कलियुग में जास्ती दुर्गति को पाते हैं।
- जब व्यभिचारी भक्ति में आते हैं तब विकारी भी बहुत बनते जाते हैं।
- दिन-प्रतिदिन विकार भी जोर भरते जाते हैं।
- पहले सतोप्रधान विकार थे, अभी तमोप्रधान विकार हैं।
- सब बिल्कुल ही तमोप्रधान हैं।
- घर-घर में कितने झगड़े हैं।
- शिवबाबा बैठ बच्चों को समझाते हैं।
- श्रीकृष्ण तो बाप नहीं ठहरा।
- कोई की भी बायोग्राफी नहीं जानते हैं।
- यह है पतित-पावन।
- परमपिता परमात्मा को मानते हैं कि वह ज्ञान का सागर है, पानी का सागर थोड़ेही पतित-पावन, नॉलेजफुल है।
- मनुष्य तो पानी के सागर से निकली हुई पानी की नदियों को पतित-पावनी समझ लेते हैं।
- उनसे पूछना चाहिए कि जैसे गीता के भगवान का आक्यूपेशन पूछा जाता है - निराकार परमपिता परमात्मा है रचयिता और श्रीकृष्ण है रचना, अब बताओ गीता का भगवान कौन?
- भगवान तो एक को ही कहेंगे।
- फिर व्यास को भगवान कैसे कह सकते।
- तो ऐसे-ऐसे प्रश्न पूछना चाहिए - पतित-पावन, परमपिता परमात्मा ज्ञान का सागर है, उनसे यह ज्ञान गंगायें कैसे निकलती हैं?
- परमपिता परमात्मा ब्रह्मा मुख कमल द्वारा ब्राह्मण मुख वंशावली रचते हैं।
- उन्हों को ब्रह्मा मुख से ज्ञान मिल रहा है, जिससे सद्गति को पाते हैं।
- अब पानी के सागर से पावन बनते हैं वा ज्ञान सागर से।
- पानी से मनुष्य तो पावन हो न सकें।
- तो यह पहेली भी पूछनी पड़े, इनको पूछने से पावन दुनिया का मालिक बन सकते हैं।
- बुलाते तो उनको ही हैं कि हे पतित-पावन सीताराम।
- फिर गंगा में स्नान आदि करते हैं, तो यह पहेली भी एड करनी चाहिए। समय पर हर एक चीज़ शोभती है। जैसे वो गीता के भगवान वाली पहेली है, वैसे यह भी पहेली है।
- ख्याल चलते तो हैं ना - क्या ऐसी चीज़ें बनायें जो मनुष्य सदैव अपने पास यादगार रखें।
- अच्छी चीज़ होगी तो अपने पास रखेंगे।
- कागज आदि तो फेंक देते हैं।
- देवताओं की अच्छी चीज़ होगी तो वह फाड़ेंगे नहीं।
- सर्विस की प्रैक्टिस वालों का सारा दिन विचार सागर मंथन चलता रहेगा और काम करके दिखायेंगे।
- सिर्फ कहना नहीं है कि ऐसा करना चाहिए।
- यह किसको कहते हो?
- बाबा करेगा वा बच्चे करेंगे?
- बोलो कौन?
- बाप तो डायरेक्शन देते हैं।
- ऐसे अच्छे चित्र, कैलेन्डर छपाओ, त्रिमूर्ति शिव के कैलेन्डर्स निकलने चाहिए।
- त्रिमूर्ति शिव जयन्ती कहना राइट है।
- सिर्फ शिव जयन्ति कहना रांग है।
- एक बच्चे की दिल है त्रिमूर्ति शिव जयन्ती का कैलेन्डर बनावें सो भी रंगीन।
- त्रिमूर्ति से समझानी अच्छी मिलती है।
- बाबा लॉकेट भी इसलिए बनवाते हैं कि उनसे अच्छा समझा सकते हैं।
- ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा सद्गति करते हैं।
- तो जो मेहनत करता है वही विष्णुपुरी का मालिक बनता है।
- बाकी जो ज्ञान नहीं लेते उनका विनाश हो जाता है।
- वह सज़ायें भी खाते हैं, पद भी नहीं पाते।
- भगत भगवान को याद करते हैं परन्तु जब भगवान आते हैं तब कितने थोड़े उन्हें पहचानकर उनका बनते हैं।
- कोटों में कोई।
- जो मुक्ति के लिए पुरुषार्थ करते हैं वह पद अच्छा पा नहीं सकेंगे।
- विकर्म विनाश नहीं होंगे इसलिए साक्षात्कार कराया था - धर्म स्थापक भी आते हैं दृष्टि लेने।
- याद करते-करते विकर्म विनाश करते जायें तो पद ऊंचा पा सकते हैं, और धर्म वाले भी आयेंगे सो भी पिछाड़ी में, जो बड़े होंगे।
- ऐसे नहीं कि अभी का पोप आयेगा, ना ना .... पहले नम्बर का पोप, जो अभी अन्तिम जन्म में है, वह आयेगा।
- हिसाब है बड़ा भारी।
- अब यह कुम्भ का मेला है।
- यह सब भक्ति मार्ग की सामग्री है।
- जब दुर्गति को पाने का पूरा ग्रहण लग जाता है, तब बाप आकर 16 कला सम्पूर्ण बनाते हैं।
- ग्रहण को स्वदर्शन चक्र से निकाला जाता है।
- यह जो अपना गोला है, उसमें नीचे लिखना चाहिए यह है स्वदर्शन चक्र।
- यह बहुत अच्छी चीज़ है।
- यह ईश्वरीय कोट आफ आर्मस है।
- यह तो ईश्वरीय बातें हैं।
- स्लाइड्स जो बना रहे हैं उनके लिए भी बाबा समझानी देते रहते हैं।
- अगर समझो वो मुरली न सुनें तो डायरेक्शन अमल में ला न सकें।
- मुरली तो रोज़ पढ़नी चाहिए।
- सर्विस में जो हैं उनको एक्ट में आना चाहिए।
- त्रिमूर्ति का भी स्लाईड्स बनाते हैं, उनमें अक्षर बहुत अच्छे हैं।
- स्थापना और विनाश - दो गोले भी चाहिए।
- यह नर्क, यह स्वर्ग।
- यह आज का भारत और कल का भारत।
- बाप सेकण्ड में जीवनमुक्ति देने वाला बैठा है।
- बाबा को पहचाना, निश्चय हुआ बस।
- जीवनमुक्ति पाने का पुरुषार्थ चल पड़ता है।
- जन्म तो लिया ना।
- बाप से पूरा वर्सा लेना है।
- फिर विकार की मांग नहीं कर सकते।
- बाप कहते हैं भ्रष्टाचारी को वर्सा मिल न सके।
- प्रैक्टिकल में इनका (ब्रह्मा का) ही मिसाल देखा ना।
- ऐसे बहुत मुश्किल निकलते हैं।
- अपनी इज्ज़त आदि भी बहुत देखते हैं ना।
- क्रियेटर बाप है, सबको उनकी आज्ञा पर चलना है।
- तुम भी श्रीमत पर नहीं चलते हो तो पद भ्रष्ट हो जाता है।
- बाप कहते हैं - इस ज्ञान मार्ग में नष्टोमोहा अच्छा चाहिए।
- बाबा की आज्ञा मिली हुई है, जो बच्चे आज्ञाकारी नहीं, वह कपूत ठहरे।
- वह बच्चा, बच्चा नहीं।
- पवित्रता की आज्ञा तो अच्छी है ना।
- राजयोग तो बाप अभी सिखलाते हैं।
- मनुष्य तो बिचारे समझते नहीं।
- बच्चों में भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार समझते हैं।
- बाप इतना डायरेक्शन देते हैं, कोई बच्चे मुश्किल करके दिखाते हैं।
- बाप कहते हैं - त्रिमूर्ति का कैलेन्डर बनाना है।
- सारा मदार है त्रिमूर्ति शिव के चित्र पर।
- लिखा हुआ है ब्रह्मा द्वारा स्थापना। जरूर शिवबाबा स्वर्ग की स्थापना करेंगे ना।
- कलियुग आसुरी राज्य का विनाश होगा।
- आसुरी राज्य में कितने ढेर हैं।
- दैवी राज्य में कितने थोड़े हैं।
- लिखा हुआ भी है कि अनेक धर्मों का विनाश, एक सत धर्म की स्थापना।
- बाप कहते हैं - मैं कितना श्रृंगारता हूँ फिर भी सुधरते नहीं हैं, उल्टा सुल्टा बोलते रहते हैं।
- यहाँ बाबा कहते हैं देह सहित जो कुछ है सब कुछ भूल मामेकम् याद करो।
- अपनी देह में भी न फंसो।
- किसकी देह में फंसने से गिर पड़ते हैं।
- जैसे मम्मा की देह से प्यार था तो मम्मा के जाने के बाद कितने मर गये क्योंकि नाम रूप में फंसे हुए थे।
- बाप कितना कहते हैं कि देह-अभिमानी मत बनो, मामेकम् याद करो।
- तुम इस ब्रह्मा के शरीर को भी याद नहीं करो।
- शरीर को याद करने से पूरा ज्ञान उठा नहीं सकते।
- देही-अभिमानी बनने में बहुत मेहनत है।
- बाप की याद में रहना - यह बहुत डिफीकल्ट है।
- ज्ञान तो बहुत अच्छा-अच्छा सुनाते हैं।
- योग में मुश्किल रहते हैं।
- जितना रूसतम, उतना माया के तूफान आयेंगे।
- किसी न किसी के नामरूप में फंस धोखा खा लेते हैं, इसमें बड़ी खबरदारी चाहिए।
- योग में ही बड़ी मेहनत है।
- नॉलेज तो सहज है।
- योग में ही घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं इसलिए बाप कहते हैं विकर्माजीत कैसे बनेंगे।
- योग में रहो तो पाप भी नहीं होंगे।
- नहीं तो सौगुणा हो जाता है।
- यहाँ तो खुद धर्मराज और बाप दोनों साथ हैं इसलिए खुद कहते हैं कि बाप के आगे कोई पाप नहीं करना, नहीं तो सौगुणा दण्ड पड़ जायेगा।
- योग से ही विकर्माजीत बनना है।
- स्वदर्शन चक्र को तो जानना सहज है।
- इस गोले के नीचे लिखना है चक्र, न कि चर्खा।
- बाबा युक्तियाँ तो बहुत बतलाते हैं।
- बच्चों को एक्ट में आना है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी भी देहधारी के नाम रूप में अटकना नहीं है।
अपनी देह में भी नहीं फंसना है, इसमें बहुत खबरदारी रखनी है।
2) ज्ञान मार्ग में नष्टोमोहा जरूर बनना है।
पवित्रता की आज्ञा माननी है और दूसरों को भी पवित्र बनाने की युक्ति रचनी है।
( All Blessings of 2021-22)
सर्व विकारों के अंश का भी त्याग कर सम्पूर्ण पवित्र बनने वाले नम्बरवन विजयी भव
सम्पूर्ण पवित्र वह है जिसमें अपवित्रता का अंश-मात्र भी न हो।
पवित्रता ही ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी है।
यह पर्सनैलिटी ही सेवा में सहज सफलता दिलाती है।
लेकिन यदि एक भी विकार का अंश है तो दूसरे साथी भी उसके साथ जरूर होंगे।
जैसे पवित्रता के साथ सुख-शान्ति है, ऐसे अपवित्रता के साथ पांचों विकारों का गहरा संबंध है, इसलिए एक भी विकार का अंश न रहे तब नम्बरवन विजयी बनेंगे।
(All Slogans of 2021-22)
- हिम्मत का एक कदम रखो तो हजार गुणा मदद मिल जायेगी।
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