16-11-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

मीठे बच्चे - कोई भी देहधारी को याद करने से मुक्ति-जीवनमुक्ति नहीं मिल सकती, बाप ही तुम्हें डायरेक्ट यह वर्सा देते हैं

 

प्रश्नः-

बाप का बनने के बाद भी माया किन बच्चों को अपनी ओर घसीट लेती है?

 

उत्तर:-

जिनका बुद्धियोग पुराने सम्बन्धियों में भटकता है, पूरा ज्ञान नहीं है या कोई पुरानी आदत है, ऐसे बच्चों को माया अपनी ओर घसीट लेती है।

बाहर का संग भी बहुत खराब है, जो खत्म कर देता है।

संग का असर बहुत जल्दी लगता है, इसलिए बाबा कहते बच्चे एक बाप के साथ बुद्धियोग रखो।

बाप को ही फालो करो।

कोई भी देहधारी में प्यार नहीं रखो।

 

गीत:- तुम्हें पाके हमने...

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    • ओम् शान्ति।
    • मीठे-मीठे बच्चे जानते हैं कि अभी बेहद के बाप से हमें वर्सा मिल रहा है।
    • यह बहुत समझने की बात है।
    • कहावत है परमपिता परमात्मा सभी धर्म स्थापकों को भेज देते हैं - अपना-अपना धर्म स्थापन करने के लिए।
    • तो वह आकर धर्म स्थापन करते हैं।
    • ऐसे नहीं कि वह कोई को वर्सा देते हैं। नहीं।
    • वर्से की बात ही नहीं निकलती।
    • वर्सा देने वाला एक बाप है।
    • क्राइस्ट की आत्मा कोई सभी का बाप थोड़ेही है, जो वर्सा देगी।
    • वह तो क्रिश्चियन का भी बाप नहीं जो वर्सा देवे।
    • भला वह कौनसा वर्सा देंगे?
    • प्रश्न उठता है।
    • और वर्सा किसको देंगे?
    • वह तो धर्म स्थापन करने आते हैं।
    • उनके पीछे दूसरे क्रिश्चियन धर्म की आत्मायें आती जाती हैं।
    • वर्से की बात ही नहीं।
    • बाप से वर्सा लेना होता है।
    • समझो इब्राहम, बुद्ध, क्राइस्ट आदि आये।
    • उन्होंने क्या किया?
    • किसको वर्सा दिया? नहीं।
    • वर्सा देना बाप का ही काम है।
    • वह तो खुद आते हैं।
    • आत्मायें आती जाती, वृद्धि को पाती रहती हैं।
    • वर्सा हमेशा क्रियेटर से मिलता है।
    • क्रियेटर एक है लौकिक बाप, दूसरा है पारलौकिक बाप।
    • यह धारण करने की बातें हैं।
    • धारणा भी उन्हों को होगी जो औरों को दान करते होंगे।
    • अभी बेहद का बाप सब बच्चों को वर्सा देने आये हैं।
    • बेहद का बाप ही बच्चों को बेहद का वर्सा देते हैं।
    • क्रिश्चियन, इस्लामी, बौद्धी आदि सबका बाप एक है।
    • सब गॉड फादर कहते हैं।
    • क्राइस्ट ने भी कहा है गॉड फादर।
    • फादर को कभी भूलते नहीं हैं।
    • गॉड फादर एक ही निराकार को कहा जाता है।
    • सब निराकार आत्माओं का बाप एक ही है।
    • धर्म स्थापकों का भी वह निराकार एक बाप है, उनसे ही वर्सा मिलता है।
    • सब गॉड फादर कहकर पुकारते हैं।
    • एक भारत ही है जिसमें कहते हैं- ईश्वर सर्वव्यापी है।
    • भारत से ही और सभी सर्वव्यापी कहना सीखे हैं।
    • अगर ईश्वर सर्वव्यापी है फिर ईश्वर को याद क्यों करते हो?
    • साधू लोग साधना वा प्रार्थना किसकी करते हैं?
    • बाप तो पूछेंगे ना।
    • क्रियेटर सबका एक है, वही पतित-पावन है।
    • सतयुग में सभी पावन ही होते हैं, फिर पतित कैसे बनते हैं?
    • लिखा हुआ है - देवतायें ही वाम मार्ग में जाते हैं।
    • अब फिर पावन दुनिया बन रही है।
    • द्वापर आदि से पतित दुनिया शुरू होती है।
    • ईश्वरीय राज्य और आसुरी राज्य आधा-आधा है।
    • भारत की ही बात है।
    • रावण को भारत में ही जलाते हैं।
    • तो बाबा ने समझाया है और धर्म स्थापक किसको भी वर्सा नहीं देते हैं।
    • बाकी धर्म स्थापन करते हैं, इसलिए उनको याद करते हैं।
    • बाकी क्राइस्ट को, ब्रह्मा को, विष्णु को वा शंकर को याद करने अथवा उनकी प्रार्थना करने से वह कुछ भी नहीं दे सकते।
    • देने वाला बाप ही है।
    • उनको सम्मुख आना पड़ता है।
    • श्रीकृष्ण में परमात्मा आते हैं - ऐसा कोई भी मानते नहीं हैं।
    • बाप कहते हैं मैं तुम आत्माओं को वर्सा देने एक ही टाइम पर आता हूँ।
    • वर्सा बाप बच्चों को देते हैं।
    • बाबा दो को ही कहा जाता है - एक शरीर का बाबा, दूसरा आत्माओं का बाबा, और कोई बाबा हो नहीं सकता।
    • तुमको इस बाबा अर्थात् प्रजापिता ब्रह्मा से वर्सा मिल नहीं सकता।
    • वर्सा एक शिवबाबा से मिलता है, ब्रह्मा भी वर्सा उनसे लेते हैं।
    • वह सर्व के सद्गति दाता हैं।
    • सर्व के मुक्ति-जीवनमुक्ति दाता हैं इसलिए पहले-पहले कोई को भी बाप का परिचय देना पड़े।
    • भल कोई बुजुर्ग को भी बाबा वा पिता जी कह देते हैं।
    • परन्तु बाप है नहीं।
    • बाप एक लौकिक, दूसरा पारलौकिक ही होता है।
    • यह ब्रह्मा भी जिस्मानी बाप है।
    • तुम बच्चों को एडाप्ट करते हैं।
    • भल तुम ब्रह्मा को बाबा कहते हो परन्तु वर्सा तो उनसे मिलता है ना।
    • कौन सा वर्सा?
    • सद्गति का।
    • दुर्गति वा जीवनबंध से तो सब छूटते हैं।
    • इस समय भारत खास, सारी दुनिया आम रावण के बंधन में है।
    • आत्मायें जो पहले-पहले आती हैं तो पहले जीवनमुक्त फिर जीवनबंध बनती हैं।
    • पहले सुख फिर दु:ख भोगना है।
    • यह बुद्धि में बिठाना चाहिए।
    • कोई भी देहधारी को याद करने से मुक्ति-जीवन-मुक्ति मिल नहीं सकती।
    • मैसेन्जर लोग भी किसको वर्सा देते नहीं हैं।
    • मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा बाप ही आकर देते हैं।
    • परन्तु किनको डायरेक्ट, किनको इनडायरेक्ट।
    • तुम बच्चों के सम्मुख ही बाप होता है।
    • दिन-प्रतिदिन तुम देखेंगे - बाबा मधुबन से बाहर कहाँ जायेंगे नहीं।
    • इस पुरानी दुनिया में रखा ही क्या है।
    • शिवबाबा कहते हैं हमको स्वर्ग में जाने अथवा स्वर्ग को देखने की भी खुशी नहीं है तो बाकी इस दुनिया में कहाँ जायेंगे।
    • मेरा पार्ट ही ऐसा है, पतित दुनिया में आता हूँ।
    • 7 वन्डर्स ऑफ वर्ल्ड कहते हैं, परन्तु उनमें कोई स्वर्ग बताते नहीं।
    • स्वर्ग तो पीछे आता है।
    • मुझे पतित दुनिया, पतित शरीर में पराये राज्य में आना पड़ता है।
    • गाते भी हैं दूरदेश के रहने वाला... इसका अर्थ तुम बच्चे ही समझ सकते हो।
    • अभी हम पुरूषार्थ करते हैं फिर अपने देश में आयेंगे।
    • अच्छा द्वापर के बाद जो आत्मायें आयेंगी, वह तो पराये राज्य अर्थात् रावण राज्य में आयेंगी।
    • पावन राज्य में तो नहीं आयेंगी।
    • उन्हों का थोड़ा सुख, थोड़ा दु:ख का पार्ट है।
    • तुम सतयुग से लेकर फुल सुख देखते हो।
    • हर एक को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है।
    • बाप तुम बच्चों को बैठ राज़ समझाते हैं कि मैं कैसे देवी-देवता धर्म स्थापन करता हूँ, इसमें सुख ही सुख है और उसके लिए तुमको लायक बनाता हूँ।
    • तुम समझते हो हम स्वर्ग के मालिक थे फिर माया ने पूरा ना लायक बनाया है।
    • बाप कहते हैं अभी तुम कितने बेसमझ बन पड़े हो, नारद की कहानी है ना।
    • तुम समझ सकते हो - भगत झांझ बजाने वाला लक्ष्मी को कैसे वरेगा?
    • जब तक राजयोग सीख पवित्र न बने।
    • भल शरीर तो सबके भ्रष्टाचारी हैं क्योंकि भ्रष्टाचार से पैदा होते हैं।
    • तुम तो मुख वंशावली हो।
    • यह बड़ी समझने की बातें हैं।
    • यह रचता और रचना की नॉलेज बाप खुद ही आकर देते हैं।
    • सब प्वाइंट्स कोई समझ भी नहीं सकेंगे।
    • यहाँ से बाहर गये - कोई का संग मिला और खत्म।
    • कहा भी जाता है संग तारे कुसंग बोरे... भल यहाँ भी बैठे हैं परन्तु पूरा बुद्धियोग नहीं है।
    • ज्ञान नहीं है तो संगदोष में गिर पड़ते हैं।
    • कोई भी किसी में आदत है तो उनका संग करने से वह असर झट पड़ जाता है।
    • यहाँ है बाबा का संग।
    • फिर जो बाप को फालो कर औरों का भी उद्धार करते हैं, वही ऊंच पद पाते हैं।
    • कई नये-नये बच्चे कहते हैं बाबा हम नौकरी आदि छोड़ इस सर्विस में लग जायें?
    • बाबा कहते हैं - आगे चल माया नाक से ऐसे पकड़ेगी जो बात मत पूछो।
    • अनुभव कहता है - ऐसे बहुतों ने छोड़ा फिर चले गये।
    • ईश्वरीय जन्म तो लिया फिर माया ने घसीट लिया।
    • बड़े अच्छे-अच्छे बच्चों को माया एक घूसा लगाए बेहोश कर देती है, जिनका बुद्धियोग बाहर भटकता रहता है, पुराने सम्बन्धियों आदि में इसलिए बाबा कहते हैं देहधारियों से बुद्धियोग जास्ती मत रखो।
    • इस बाबा से भी भल तुम्हारा कितना भी प्यार है तो भी इनसे बुद्धियोग मत लगाओ।
    • बाप को याद नहीं करेंगे तो विकर्म विनाश नहीं होंगे।
    • कोई भी शरीरधारी में प्यार मत रखो।
    • सतसंगों में सब शरीरधारी ही सुनाते हैं।
    • कोई महात्मा का नाम लेते हैं।
    • ऐसे थोड़ेही कहते हैं कि परमपिता परमात्मा शिव हमको पढ़ाते हैं।
    • बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं - इस रचना का चैतन्य बीज मैं हूँ।
    • मुझे सारे झाड़ की नॉलेज है।
    • वह तो जड़ बीज है। चैतन्य होता तो सुनाता।
    • मुझ बीज में जरूर झाड़ के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज होगी।
    • यह है बेहद की बात।
    • इस समय तमोप्रधान राज्य है, तो उसका भभका जरूर होगा।
    • कितने बड़े-बड़े नाम रखाते हैं - ज्ञानेश्वर, गंगेश्वरानंद... लेकिन आनंद तो कोई को मिल नहीं सकता।
    • संन्यासी खुद कहते हैं सुख काग विष्टा समान है।
    • लेकिन स्वर्ग का नाम भूलते नहीं हैं।
    • कहते हैं फलाना स्वर्ग पधारा फिर पित्रों को बुलाते हैं।
    • आत्मा कोई में प्रवेश कर बोलती है।
    • परन्तु आत्मा कैसे आती है, कोई नहीं जानते।
    • शरीर दूसरे का है, खायेगी भी उनकी आत्मा।
    • उनके पेट में पड़ेगा।
    • हाँ बाकी वासना वह लेती है।
    • शिवबाबा तो है ही अभोक्ता।
    • कुछ खाते नहीं।
    • मम्मा की आत्मा आती है तो खाती है।
    • पित्र भी आते हैं तो खाते हैं, यह बातें समझने की हैं।
    • तो सिवाए एक के किसको बाबा नहीं कहा जाता, इनसे क्या वर्सा मिल सकता?
    • कुछ नहीं मिल सकेगा।
    • क्राइस्ट ने वर्सा दिया है क्या?
    • उन्होंने तो लड़ाई कर राजाई स्थापन की है।
    • क्रिश्चियन लोगों ने लड़ाई की।
    • जब धन की वृद्धि हो, धन इकट्ठा हो तब राजाई चल सके।
    • ऐसे थोड़ेही है कि क्रिश्चियन ने राजाई दी।
    • राजाई अपने पुरूषार्थ से ड्रामा प्लैन अनुसार मिलती है ऐसे कहेंगे, बाकी मनुष्य किसको कुछ दे नहीं सकते।
    • अगर देते हैं तो अल्पकाल का सुख।
    • अभी तो तमोप्रधान हैं।
    • माया का बहुत ज़ोर है, अब माया से युद्ध करना है।
    • माया जीते जगतजीत, मनुष्य शान्ति में रहने के लिए कितना माथा मारते हैं।
    • मन ऐसे थोड़ेही शान्त हो सकता है।
    • यह तो कुछ सीखते हैं जो हिप्नोटाइज़ आदि कर अनकानसेस कर देते हैं।
    • मेहनत लगती है, किसकी तो ब्रेन ही खराब हो जाती है।
    • बाप कहते हैं अगर कोई कर्मबन्धन में अथवा मित्र सम्बन्धी आदि में बुद्धि जाती रहेगी तो विकर्म विनाश नहीं होंगे।
    • देहधारी से बुद्धि को हटाना है।
    • सबको भूल जाओ, आप मुये मर गई दुनिया।
    • दुनिया को याद करते हो तो तुमको दण्ड पड़ता है।
    • तुम कहते हो कि बाबा हम मर चुके हैं।
    • हम आपके हैं तो फिर मित्र सम्बन्धी आदि तरफ बुद्धि क्यों जाती है?
    • गोया तुम मरे नहीं हो!
    • बाप के बने नहीं हो!
    • बहुत हैं जिनको रात-दिन कर्मबन्धन का ही चिंतन रहता है।
    • याद में बैठते भी वही संकल्प आते रहते हैं।
    • यहाँ बाबा की गोद में रहते तो मर चुके ना।
    • तो बुद्धियोग कहाँ जाना नहीं चाहिए।
    • संन्यासी तो घरबार छोड़ते हैं, गोया मर गये।
    • अगर याद पड़ता रहेगा तो योग में कैसे रहेंगे।
    • कोई फिर घर में लौट भी आते हैं।
    • कोई पक्के होते हैं, बिल्कुल याद भी नहीं करते।
    • तुम बच्चों की भी बुद्धि अगर बाहर जाती रहती है तो ऊंच पद पा न सकें।
    • बच्चे बने हो तो फालो फादर पूरा करना चाहिए।
    • कुछ भी मोह नहीं जाना चाहिए।
    • परन्तु तकदीर में नहीं है तो मरकर भी उस तरफ चले जाते हैं।
    • 5 प्रतिशत बुद्धि यहाँ है, 95 प्रतिशत बुद्धि बाहर है, भटकती रहती है ना।
    • न इधर के, न उधर के।
    • बाप के बने फिर बुद्धि ही खत्म। मर गये।
    • इस बेहद के संन्यास में विरला ही कोई आ सकता है।
    • माला का दाना भी वही बन सकता है।
    • यह तो तकदीर है।
    • यहाँ जो आकर रहते हैं - उन्हों को मेहनत नहीं लगनी चाहिए।
    • परन्तु देखा जाता है कि यहाँ वालों को जास्ती मेहनत लगती है।
    • बाहर में रहने वाले बड़े तीखे चले जाते हैं।
    • किसी में मोह नहीं जाता।
    • समझते हैं कहाँ यह बन्धन छूटे तो सर्विस में लग जायें।
    • वह भी देखना पड़ता है - ज्ञान में पक्के हैं?
    • अगर कच्चे होंगे और पति मर गया तो जैसे जख्म पर नमक पड़ जाता है।
    • जब तक अच्छी रीति नहीं मरे हैं तो जैसे जख्म पर नमक पड़ता रहता है।
    • यहाँ तो बाबा कहा, बस।
    • बाबा के बन गये।
    • पुराना सम्बन्ध छूटा।
    • वह जानें उसके कर्म जानें।
    • हम क्या जानें।
    • इतनी उछल होनी चाहिए।
    • ऐसे बहुत थोड़े हैं। बाप मिला बस और किसकी परवाह नहीं, इतनी हिम्मत चाहिए।
    • सच्ची दिल हो, श्रीमत पर चलता रहे तो कोई भी रोक नहीं सकते हैं।
    • पवित्र बनने में कोई विघ्न डाल नहीं सकते।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।


  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) कर्मबन्धनों के चिन्तन में नहीं रहना है। बुद्धि को देह-धारियों से हटाना है। बेहद का संन्यास करना है।

    2) बन्धनों से छूटने के लिए पूरा-पूरा नष्टोमोहा बनना है। सच्ची दिल रखनी है। ज्ञान में मजबूत (पक्का) और हिम्मतवान बनना है।



  • ( All Blessings of 2021-22)
  • बाप के साथ का अनुभव कर मेहनत को मोहब्बत में बदलने वाले परमात्म स्नेही भव

    बापदादा बच्चों को अपने स्नेह और सहयोग की गोदी में बिठाकर मंजिल पर ले जा रहे हैं। आप बच्चे सिर्फ परमात्म स्नेही बन गोद में समाये रहो तो मेहनत, मोहब्बत में बदल जायेगी। लवलीन हो हर कार्य करो। बापदादा हर समय सर्व संबंधों से आपके साथ हैं। सेवा में साथी है और स्थिति में साथ हैं। सर्व संबंधों से साथ निभाने की आफर करते हैं, आप सिर्फ परमात्म स्नेही बनो और जैसा समय वैसे सम्बन्ध से साथ रहो तो अकेलापन फील नहीं होगा।

     



  • (All Slogans of 2021-22)
    • स्व-उन्नति और सेवा का बैलेन्स ही सफलता का साधन है।
BK Naresh Bhai's present residence cum workplace