13-11-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 10.12.92 "बापदादा" मधुबन

पूर्वज और पूज्य की स्मृति में रहकर सर्व की अलौकिक पालना करो

 

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  • आज विश्व-रचता बाप अपनी श्रेष्ठ रचना को देख रहे हैं।
  • सर्व रचना में से श्रेष्ठ रचना आप ब्राह्मण आत्मायें हो क्योंकि आप ही विश्व की पूर्वज आत्मायें हो।
  • एक तरफ पूर्वज हो, साथ-साथ पूज्य आत्मायें भी हो।
  • इस कल्प-वृक्ष की फाउण्डेशन अर्थात् जड़ आप ब्राह्मण आत्मायें हो।
  • इस वृक्ष के मूल आधार ‘तना' भी आप हो इसलिए आप सर्व आत्माओं के लिए पूर्वज हो।
  • सृष्टि-चक्र के अन्दर जो विशेष धर्म-पिता कहलाये जाते हैं उन धर्म-पिताओं को भी आप पूर्वज आत्माओं द्वारा ही बाप का सन्देश प्राप्त होता है, जिस आधार से ही समय प्रमाण वो धर्म-पितायें अपने धर्म की आत्माओं प्रति सन्देश देने के निमित्त बनते हैं।
  • जैसे ब्रह्मा बाप ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर है, तो ब्रह्मा के साथ आप ब्राह्मण आत्मायें भी साथी हो इसलिए आप पूर्वज आत्मायें गाई हुई हो।
  • पूर्वज आत्माओं का, डायरेक्ट चाहे इन्डायरेक्ट, सर्व आत्माओं से कनेक्शन है।
  • जैसे वृक्ष की सर्व टाल-टालियों का सम्बन्ध जड़ से वा तना से जरूर होता है।
  • चाहे किसी भी धर्म की छोटी वा बड़ी टाल-टालियाँ हों लेकिन सम्बन्ध स्वत: ही होता है।
  • तो पूर्वज हुए ना।
  • आधा कल्प राज्य-अधिकारी बनने के बाद फिर पूज्य आत्मायें बनते हो।
  • पूज्य बनने में भी आप आत्माओं जैसी पूजा और किसी भी धर्म के आत्माओं की नहीं होती।
  • जैसे आप पूज्य आत्माओं की विधिपूर्वक पूजा होती है, ऐसे कोई धर्म-पिता की भी पूजा नहीं होती।
  • बाप के कार्य में जो आप ब्राह्मण साथी बनते हो, उन्हों की भी देवता वा देवी के रूप में विधिपूर्वक पूजा होती है।
  • और कोई भी धर्म-पिता के साथी धर्म की पालना करने वाली आत्माओं की विधिपूर्वक पूजा नहीं होती, गायन होता है।
  • स्टैच्यू (मूर्ति) बनाते हैं लेकिन आप जैसे पूज्य नहीं बनते।
  • आपका गायन भी होता है तो पूजा भी होती है।
  • गायन की विधि भी आप ब्राह्मण आत्माओं की सबसे न्यारी है।
  • जैसे आप देवात्माओं का गायन बहुत सुन्दर रूप से कीर्तन के रूप में होता है, आरती के रूप में होता है, ऐसे अन्य आत्माओं का गायन इसी प्रकार से नहीं होता।
  • ऐसे क्यों होता?
  • क्योंकि आप श्रेष्ठ रचना पूर्वज और पूज्य हो।
  • आदि आत्मायें आप ब्राह्मण आत्मायें हो क्योंकि आदि देव ब्रह्मा के सहयोगी श्रेष्ठ कार्य के निमित्त बने हो।
  • अनादि रूप में भी परम आत्मा के अति समीप रहने वाले हो।
  • आत्माओं का जो चित्र दिखाते हो उसमें सबसे समीप आत्मायें कौनसी दिखाते हो?
  • उसमें आप हो।
  • तो अनादि रूप में भी अति समीप हो जिसको डबल विदेशी कहते हैं नियरेस्ट और डियरेस्ट।
  • ऐसे अपने को समझते हो?
  • पूर्वज का क्या काम होता है?
  • पूर्वज सभी की पालना करते हैं।
  • बड़ों की पालना ही प्रसिद्ध होती है।
  • तो आप सभी पूर्वज आत्मायें सर्व आत्माओं की पालना कर रहे हो?
  • या सिर्फ अपने आने वाले स्टूडेन्ट्स की पालना करते हो?
  • वा सम्बन्ध-सम्पर्क वाली आत्माओं की पालना करते हो?
  • सारे विश्व की आत्माओं के पूर्वज हो वा सिर्फ ब्राह्मण आत्माओं के पूर्वज हो?
  • जो जड़ वा तना होता है वह सारे वृक्ष के लिए होता है।
  • वा सिर्फ अपने तना के लिए ही होता है?
  • सब टाल-टालियों के लिए होता है ना।
  • जड़ अथवा तना द्वारा सारे वृक्ष के पत्तों को पानी मिलता है।
  • वा सिर्फ थोड़ी टाल-टालियों को पानी मिलता है?
  • सबको मिलता है ना।
  • लास्ट वाले पत्तों को भी मिलता है।
  • इतना बेहद का नशा है?
  • वा बेहद से हद में भी आ जाते हो?
  • कितनी सेवा करनी है!
  • हर एक पत्ते को पानी देना है अर्थात् सर्व आत्माओं की पालना करने के निमित्त हो।
  • किसी भी धर्म की आत्माओं को मिलते हो वा देखते भी हो तो “हे पूर्वज आत्मायें!
  • ऐसे अनुभव करती हो कि यह सब आत्मायें हमारे ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर की वंशावली है, हम ब्राह्मण आत्मायें भी मास्टर ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर हैं अर्थात् पूर्वज हैं, यह सब हमारे हैं?'' वा सिर्फ ब्राह्मण आत्मायें हमारी हैं?
  • जब भाई-भाई कहते हैं तो आप पूर्वज आत्मायें बड़े भाई अर्थात् बाप समान हो।
  • इस स्मृति को ही प्रैक्टिकल लाइफ में अनुभव करना है और कराना है।
  • आप सभी पूर्वज आत्माओं की पालना का स्वरूप क्या है?
  • लौकिक जीवन में भी पालना का आधार क्या होता है?
  • पालना करना अर्थात् किसी को भी शक्तिशाली बनाना।
  • किसी भी विधि से, साधन से पालना द्वारा शक्तिशाली बनाते - चाहे भोजन द्वारा, चाहे पढ़ाई द्वारा।
  • लेकिन पालना का प्रत्यक्ष स्वरूप आत्मा में शक्ति, शरीर में शक्ति आती है।
  • तो पालना का प्रत्यक्ष स्वरूप हुआ शक्तिशाली बनाना।
  • आप पूर्वज आत्माओं के पालना की विधि क्या है?
  • अलौकिक पालना का स्वरूप है स्वयं में बाप द्वारा प्राप्त हुई सर्व शक्तियां अन्य आत्माओं में भरना।
  • जिस आत्मा को जिस शक्ति की आवश्यकता है, उसकी उस समय उस शक्ति द्वारा पालना करना - ऐसी पालना करनी आती है?
  • पूर्वज तो हो ना। सभी पूर्वज आत्मायें हो कि छोटे हो?
  • सभी पूर्वज हैं या कोई-कोई विशेष आत्मायें हैं?
  • तो पूर्वजों को पालना करनी आती है ना।
  • सिर्फ सेन्टर की पालना करते हो या सारे विश्व के आत्माओं की पालना करते हो?
  • सिर्फ प्रवृत्ति की पालना करते हो या विश्व की पालना करते हो?
  • वर्तमान समय आप पूर्वज आत्माओं के पालना की सर्व आत्माओं को आवश्यकता है।
  • समाचार तो सब इन्ट्रेस्ट से सुनते हो कि क्या-क्या हो रहा है।
  • (अयोध्या की घटना के बाद कई स्थानों से हिंसा के समाचार मिल रहे हैं)
  • लेकिन पूर्वज आत्माओं ने समाचार सुनने के बाद सर्व की पालना की?
  • अशान्ति के समय आप पूर्वज आत्माओं का और विशेष कार्य स्वत: ही हो जाता है।
  • तो हे पूर्वज! अपने पालना की सेवा में लग जाओ।
  • जैसे अशान्ति के समय विशेष पुलिस वा मिलेट्री समझती है कि यह हमारा कार्य है अशान्ति को शान्त करना।
  • ऑर्डर द्वारा पहुँच जाते हैं और ऐसे टाइम पर विशेष अटेन्शन से अपनी सेवा के लिए अलर्ट हो जाते हैं।
  • आप सबने हलचल का समाचार तो सुना, लेकिन सेवा में अलर्ट हुए वा सुनने का ही आनन्द लिया?
  • अपना पूर्वजपन स्मृति में आया?
  • सभी आत्माओं की शान्ति की शक्ति से पालना की?
  • या यही सोचते रहे यहाँ यह हुआ, वहाँ यह हुआ?
  • विशेष आत्माओं की ऐसे समय पर सेवा की अति आवश्यकता है।
  • अपनी वृत्ति द्वारा, मन्सा-शक्ति द्वारा विशेष सेवा की?
  • वा जैसे विधिपूर्वक याद में रहते हो, सेवा करते हो, उसी रीति ही किया?
  • आप रूहानी सोशल वर्कर भी हो।
  • तो रूहानी सोशल वर्कर ने अपनी विशेष एक्स्ट्रा सोशल सेवा की?
  • इतनी अपनी जिम्मेवारी समझी?
  • या प्रोग्राम मिलेगा तो करेंगे? ऐसे समय पर सेकेण्ड में अपनी सेवा पर अलर्ट हो जाना चाहिए।
  • यही आप पूर्वज आत्माओं की जिम्मेवारी है।
  • अभी भी विश्व में हलचल है और यह हलचल तो समय प्रति समय बढ़नी ही है।
  • आप आत्माओं का फर्ज है ऐसे समय पर आत्माओं में विशेष शान्ति की, सहन शक्ति की हिम्मत भरना, लाइट-हाउस बन सर्व को शान्ति की लाइट देना।
  • समझा, क्या करना है?
  • अभी अपनी जिम्मेवारी वा फर्ज-अदाई और तीव्र गति से पालन करो जिससे आत्माओं को रूहानी शक्ति की राहत मिले, जलते हुए दु:ख की अग्नि में शीतल जल भरने का अनुभव करें।
  • यह फर्ज-अदाई कर सकते हो?
  • दूर से भी कर सकते या जब सामने आयेंगे तब करेंगे?
  • कर तो रहे हो लेकिन अभी और जैसे हलचल तेज होती जाती है, तो आपकी सेवा भी और तेज हो। समझा, पूर्वजों की पालना क्या है?
  • ऐसे नहीं कि पूर्वज हैं लेकिन पालना नहीं कर सकते।
  • पूर्वज का काम ही है पालना द्वारा शक्ति देना।
  • श्रेष्ठ शक्तिशाली स्थिति द्वारा परिस्थिति को पार करने की शक्ति अनुभव कराओ।
  • अच्छा! चारों ओर के सर्व आदि देव ब्रह्मा के मददगार आदि आत्माओं को, सर्व आत्माओं के फाउण्डेशन पूर्वज आत्माओं को, सदा सर्व आत्माओं प्रति बेहद सेवा की श्रेष्ठ वृत्ति रखने वाली आत्माओं को, सर्व रूहानी सोशल सेवाधारी आत्माओं को बाप-दादा का याद, प्यार और नमस्ते।
  • दादियों से मुलाकात:-
  • वर्तमान समय अशान्त आत्माओं को शान्ति देना - यही सभी का विशेष कार्य है।
  • रहमदिल बाप के बच्चों को सर्व आत्माओं के प्रति रहम आता है ना।
  • रहमदिल क्या करता है?
  • रहम का अर्थ ही है किसी भी प्रकार की हिम्मत देना, निर्बल आत्मा को बल देना।
  • तो आत्माओं के दु:ख का संकल्प तो मास्टर सुखदाता आत्माओं के पास पहुँचता ही है।
  • जैसे वहाँ दु:ख की लहर है, ऐसे ही विशेष आत्माओं में सेवा की विशेष लहर चले - देना है, कुछ करना है।
  • क्या किया वो हर एक को सेवा का एक्स्ट्रा चार्ट चेक करना चाहिए।
  • जैसे साधारण सेवा चलती है, वो तो चलती है।
  • लेकिन वर्तमान समय वायुमण्डल द्वारा, वृत्ति द्वारा सेवा का विशेष अटेन्शन रखो। इसी से स्व की स्थिति भी स्वत: ही शक्तिशाली हो जायेगी। ऐसी लहर फैलाई है?
  • विश्व के राजे बनते हैं तो सर्व आत्माओं के प्रति लहर होनी है ना।
  • वंचित कोई आत्मा न रह जाये। चाहे अन्य धर्म की आत्मायें हों लेकिन हैं तो अपनी वंशावली। चाहे कोई भी धर्म की आत्मायें हैं लेकिन जड़ तो एक ही है।
  • यह लहर है? (नहीं है) अटेन्शन प्लीज़!
  • अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात -
  • व्यर्थ के प्रभाव में आने वाले नहीं, अपना श्रेष्ठ प्रभाव डालने वाले बनो सदा अपने को पुरुषार्थ में आगे बढ़ने वाली आत्मा हूँ - ऐसे अनुभव करते हो?
  • पुरुषार्थ में कभी भी कभी ठहरती कला, कभी उतरती कला ऐसा नहीं होना चाहिए।
  • कभी बहुत अच्छा, कभी अच्छा, कभी थोड़ा अच्छा ऐसा नहीं।
  • सदा बहुत अच्छा क्योंकि समय कम है और सम्पूर्ण बनने की मंजिल श्रेष्ठ है।
  • तो अपने भी पुरुषार्थ की गति तीव्र करनी पड़े।
  • पुरुषार्थ के तीव्र गति की निशानी है कि वह सदा डबल लाइट होगा, किसी भी प्रकार का बोझ नहीं अनुभव करेगा।
  • चाहे प्रकृति द्वारा कोई परिस्थिति आये, चाहे व्यक्तियों द्वारा कोई परिस्थिति आये लेकिन हर परिस्थिति, स्व-स्थिति के आगे कुछ भी अनुभव नहीं होगी।
  • स्व-स्थिति की शक्ति पर-स्थिति से बहुत ऊंची है, क्यों? यह स्व है, वह पर है।
  • अपनी शक्ति भूल जाते हो तब ही पर-स्थिति बड़ी लगती है।
  • सदा डबल लाइट का अर्थ ही है कि लाइट अर्थात् ऊंचे रहने वाले।
  • हल्का सदा ऊंचा जाता है, बोझ वाला सदा नीचे जाता है।
  • आधा कल्प तो नीचे ही आते रहे ना
  • लेकिन अभी समय है ऊंचा जाने का।
  • तो क्या करना है?
  • सदा ऊपर। शरीर में भी देखो तो आत्मा का निवास-स्थान ऊपर है, ऊंचा है।
  • पांव में तो नहीं है ना।
  • जैसे शरीर में आत्मा का स्थान ऊंचा है, ऐसे स्थिति भी सदा ऊंची रहे।
  • ब्राह्मण की निशानी भी ऊंची चोटी दिखाते हैं ना।
  • चोटी का अर्थ है ऊंचा।
  • तो स्थूल निशानी इसीलिए दिखाई है कि स्थिति ऊंची है।
  • शूद्र को नीचे दिखाते हैं, ब्राह्मण को ऊंचा दिखाते हैं।
  • तो ब्राह्मणों का स्थान और स्थिति दोनों ऊंची।
  • अगर स्थान की याद होगी तो स्थिति स्वत: ऊंची हो जायेगी।
  • ब्राह्मणों की दृष्टि भी सदा ऊपर रहती है क्योंकि आत्मा, आत्माओं को देखती है, आत्मा ऊपर है तो दृष्टि भी ऊपर जायेगी।
  • कभी भी किससे मिलते हो या बात करते हो तो आत्मा को देखकर बात करते हो, आत्मा से बात करते हो।
  • आपकी दृष्टि आत्मा की तरफ जाती है।
  • आत्मा मस्तक में है ना।
  • तो ऊंची स्थिति में स्थित रहना सहज है।
  • जब ऐसी स्थिति हो जाती है तो नीचे की बातों से, नीचे के वायुमण्डल से सदा ही दूर रहेंगे, उसके प्रभाव में नहीं आयेंगे।
  • अच्छा प्रभाव पड़ता है या खराब भी पड़ जाता है?
  • अगर प्रवृत्ति में खराब वायुमण्डल हो, फिर क्या करते हो?
  • प्रभावित होते हैं?
  • खराब को अच्छा बनाने वाले हो या प्रभाव में आने वाले हो?
  • क्योंकि माया भी देखती है कि अच्छा, अंगुली तो पकड़ ली है।
  • अंगुली के बाद हाथ पकड़ेगी, हाथ के बाद पांव पकड़ लेगी इसलिए प्रभाव में नहीं आना।
  • प्रभाव में आने वाले नहीं, श्रेष्ठ प्रभाव डालने वाले।
  • तो ब्राह्मण आत्मा अर्थात् सदा डबल लाइट, ऊंचे रहने वाले।
  • इसी स्मृति से आगे उड़ते चलो।
  • अच्छा! सभी खुश रहते हो ना।
  • दु:ख की लहर तो नहीं आती?
  • क्योंकि जो दु:खधाम छोड़ चले उनके पास दु:ख की लहर कैसे आ सकती।
  • संगम पर दु:खधाम और सुखधाम दोनों का ज्ञान है।
  • दोनों के नॉलेजफुल शक्तिशाली आत्मायें हैं।
  • गलती से भी दु:खधाम में जा नहीं सकते।
  • सदा खुश रहने वालों के पास दु:ख की लहर कभी आ नहीं सकती।
  • अच्छा! सेवा और स्व-उन्नति दोनों का बैलेन्स रखो।
  • ऐसे नहीं सेवा में मस्त हो गये तो स्व-उन्नति भूल गये। सेवा का शौक ज्यादा है।
  • लेकिन दोनों का बैलेन्स। समझा?
  • अच्छे चल रहे हैं लेकिन सिर्फ अच्छे तक नहीं रहना, और अच्छे ते अच्छे।
अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।




  • ( All Blessings of 2021-22)
  • अपनी जीवन को हीरे समान वैल्युबुल बनाने वाले स्मृति और विस्मृति के चक्कर से मुक्त भव यह संगमयुग स्मृति का युग है और कलियुग विस्मृति का युग है। अगर अपने श्रेष्ठ पार्ट, श्रेष्ठ भाग्य की सदा स्मृति है तो हीरे समान वैल्युबुल हो और अगर विस्मृति है तो पत्थर हो। यह स्मृति और विस्मृति का खेल है। संगमयुग के रहवासी कभी कलियुग में चक्कर लगाने जा नहीं सकते। अगर थोड़ा भी बुद्धि गई तो चक्कर में फंस जायेंगे क्योंकि कलियुग में बहुत रौनक है लेकिन वह रौनक धोखा देने वाली है।



  • (All Slogans of 2021-22)
    • अपनी कर्मन्द्रियों को लॉ और आर्डर प्रमाण चलाने वाले ही सच्चे राजयोगी हैं।
    BK Naresh Bhai's present residence cum workplace