02-11-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - अब श्रीमत पर मन और बुद्धि को भटकाना बंद करो, एक बाप से सम्बन्ध जोड़ बुद्धियोग लगाओ तो सब बंधन समाप्त हो जायेंगे''
प्रश्नः-
बाप संगम पर तुम्हें कौन सा पुरुषार्थ कराते हैं, जो सारे कल्प में नहीं होता है?
उत्तर:-
बंधनों से बुद्धियोग निकाल सम्बन्ध से बुद्धियोग जोड़ने का पुरुषार्थ अभी बाप तुम्हें कराते हैं।
इस समय ही एक तरफ तुम्हें सम्बन्ध खींचता तो दूसरे तरफ बंधन। यह युद्व चलती रहती है।
आसुरी बंधन से ईश्वरीय सम्बन्ध में आने का यही समय है क्योंकि ईश्वर को यथार्थ रूप से तुम अभी जानते हो।
ईश्वर को सर्वव्यापी कहने से सम्बन्ध ज़ुड़ने के बजाए टूट जाता है, बुद्धि विपरीत हो जाती है इसलिए जब यथार्थ पहचान मिली तो सम्बन्ध में आने का पुरुषार्थ करो।
गीत:- धीरज धर मनुआ ...
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ओम् शान्ति।
मनुष्य मात्र का मन और बुद्धि अर्थात् आत्मा का जो मन और बुद्धि है वह अनेक प्रकारों के भ्रमों में भटकता रहता है।
यहाँ तुम बच्चे अनेक प्रकार के भटकने से छूटने का पुरुषार्थ कर रहे हो।
आत्मा कहती है मेरा मन भटकता है।
अब बाप कहते हैं तुमको भटकने की दरकार नहीं है।
आधाकल्प तुम्हारा मन बुद्धि भटकते-भटकते हैरान हो गया।
अब श्रीमत पर मन बुद्धि को भटकाना बन्द करो।
एक तरफ बुद्धि का योग लगाओ, देह-अभिमान में आकर बहुत भटके हो।
अनेक प्रकार के मित्र सम्बन्धियों आदि का बंधन रहता है।
बाप कहते हैं - उन सबको छोड़ो, एक के साथ सम्बन्ध जोड़ो।
कहते हैं हमारा मन बहुत भटकता है।
एक के सम्बन्ध में जुट नहीं सकता।
हम चाहते भी हैं ऐसे मीठे-मीठे बेहद का सुख देने वाले बाप के साथ योग पक्का रखें, कहाँ भी बुद्धि भटके नहीं।
बाप कहते हैं आधाकल्प से आसुरी मत पर भटकते-भटकते तुम हैरान हो गये हो।
अब यह भटकना छोड़ दो।
मैं आत्मा हूँ - यह भूलने से समझते हैं मैं देह हूँ।
तो देहों के साथ सम्बन्ध हो जाता है।
बाबा ऐसे नहीं कहते हैं कि तोड़ दो लेकिन तुम इस मृत्युलोक के बंधन में रहते हुए ईश्वरीय सम्बन्ध को याद करो।
यह है बंधन, वह है सम्बन्ध।
बंधन होता है दु:ख का।
सम्बन्ध होता है सुख का।
बंधन और सम्बन्ध दोनों अलग-अलग हैं।
बंधन अक्षर पुरानी दुनिया से, सम्बन्ध अक्षर नई दुनिया से लगता है।
अब तुम नई दुनिया के मालिक बनने वाले हो तो नई दुनिया के साथ सम्बन्ध जोड़ो।
इस बंधन में रहते हुए सम्बन्ध के लिए पुरुषार्थ करना है।
सम्बन्ध किसके साथ रखना है?
ऐसा तो कोई है नहीं जो कहे मनमनाभव, मध्याजी भव और कहे कि बेहद के बाप से और बेहद सुख के वर्से से सम्बन्ध रखो।
बाप ही यह सम्बन्ध जुड़ाते हैं।
जब तुम बंधन में हो तो तुमको पुरुषार्थ कराने वाला कोई मनुष्य नहीं है।
एक ही बाप है जो बंधन से छुड़ाकर सम्बन्ध में ले जाते हैं।
बंधन है मायावी राज्य में, सम्बन्ध है रामराज्य में वा ईश्वरीय राज्य में, उनको ईश्वरीय राज्य और इनको आसुरी राज्य कहा जाता है क्योंकि सतयुग ईश्वर स्थापन करते हैं।
उसमें ऊंच पद पाने के लिए तुम बच्चों को पुरुषार्थ कराते रहते हैं।
अब तुम संगमयुग पर हो।
सिर्फ संगम पर ही सम्बन्ध का पुरुषार्थ होता है और कोई युग में यह पुरुषार्थ नहीं होता।
बाप कहते हैं मैं आकर बंधन से छुड़ाए सम्बन्ध में बुद्धियोग लगवाता हूँ।
सतयुग में नये सम्बन्ध की प्रालब्ध अभी के पुरुषार्थ से मिलती है।
जो सम्बन्ध को जानते ही नहीं तो पुरुषार्थ कैसे करेंगे।
यह तो जरूर होगा, एक तरफ सम्बन्ध खींचेगा दूसरे तरफ बंधन खींचेगा।
यह लड़ाई होती है।
सतयुग, त्रेता में सम्बन्ध की बात ही नहीं।
द्वापर, कलियुग में भी सम्बन्ध की बात नहीं।
संगम पर ही सम्बन्ध और बंधन का ध्यान रहता है।
अब तुम जानते हो आसुरी बंधन से ईश्वरीय सम्बन्ध में जा रहे हैं।
संगम है ही पुरुषार्थ का युग।
तुमको ही बंधन और सम्बन्ध का पता है।
आसुरी बंधन में रावण ने लाया।
ईश्वर फिर ईश्वरीय सम्बन्ध में ले जाते हैं।
बाप तुम्हारा बुद्धियोग अपने साथ जोड़ते हैं, जिससे तुम स्वर्ग के मालिक बनते हो।
भक्ति में जो पुरुषार्थ करते हैं वह है अयथार्थ।
यथार्थ पुरुषार्थ परमपिता ही कराते हैं।
सर्वव्यापी के ज्ञान से परमात्मा से सम्बन्ध नहीं हो सकता और ही टूट पड़ता है।
अब तुमने एक बाप के साथ बुद्धियोग जोड़ा है और स्वर्ग वैकुण्ठ की राजाई के लिए तुम पुरुषार्थ कर रहे हो।
शास्त्रों में तो भगवानुवाच अर्जुन के प्रति लिख दिया है।
सिर्फ एक अर्जुन थोड़ेही होगा।
भगवान ने राजयोग तो बहुतों को सिखाया होगा ना।
नहीं तो स्वर्ग की राजधानी कैसे स्थापन हो।
दुनिया में ऐसा कोई मनुष्य नहीं जो कहे कि हम भविष्य जन्म-जन्मान्तर के लिए पुरुषार्थ करते है।
यह सिर्फ तुम ब्राह्मण ही कर सकते हो।
यह निश्चय है कि हमारी दैवी राजधानी ड्रामा अनुसार जरूर स्थापन होनी ही है।
हम न चाहें तो भी जरूर होगी।
इम्पासिबुल है जो स्थापना न हो।
ड्रामा जरूर स्थापन करायेगा।
ड्रामा हमको जरूर पुरुषार्थ करायेगा, कल्प पहले मुआफिक।
परन्तु चलना है श्रीमत पर।
ड्रामा कहकर अपनी मत नहीं चलानी है।
जानते हैं ड्रामा अनुसार भारत को स्वर्ग जरूर बनना है, फिर भी ऊंच मर्तबे के लिए श्रीमत पर पुरुषार्थ कराते हैं।
टाइम भी बतलाते हैं।
ड्रामा प्लेन अनुसार बाप आया है।
वह कहते हैं यह संगमयुग पुरुषार्थ करने का है।
पतित से पावन बनना है।
संगम की बहुत महिमा है।
वह है नदियों और सागर का संगम, यह संगम तो तुम्हारा अभी होता है।
बाप कहते हैं मैं इस संगम युगे युगे आता हूँ।
सारी दुनिया पतित जरूर बनने की है।
फिर पतित से पावन दुनिया जरूर बननी है।
जो भी मनुष्य मात्र हैं सबको हिसाब-किताब चुक्तू कर जरूर पावन बनना है।
यह कयामत का समय है, बिगर पावन बने कोई भी सज़नी परमपिता परमात्मा साज़न के पिछाड़ी जा नहीं सकती।
तुमने देखा है, मक्कड़ (टिड़ियाँ) जब उड़ती हैं तो उनका एक लीडर होता है, उनके पिछाड़ी ही सारा झुण्ड उड़ता है।
यह भी ऐसे है।
साज़न आया है गुल-गुल बनाने।
तुम सभी पावन बन जायेंगे फिर जब मैं जाऊंगा तो तुम सभी आत्मायें सज़नियाँ ढेर के ढेर मेरे पिछाड़ी भागेंगी।
तुम सजनियाँ भी जानती हो कि हम यह शरीर छोड़कर भागेंगे - साज़न के पिछाड़ी।
भगवान है एक, भक्तियाँ हैं अनेक।
कोई किसको मानते, कोई किसको मानते।
कोई कहते हैं संसार बना ही नहीं है।
जिसने जो कहा सो मान लिया, अपनी मत अथवा मनुष्य मत को भ्रम कहा जाता है।
बाप आकर सभी भ्रमों से छुड़ा देते हैं।
यह है ही दु:खधाम।
अब सुखधाम जाने के लिए श्रीमत मिल रही है।
निराकार बाप की मत मिल रही है।
साकार मनुष्य से कभी श्रीमत नहीं मिल सकती है।
रावण राज्य में आसुरी सम्प्रदाय को सिवाए परमपिता परमात्मा के श्रीमत कोई दे नहीं सकते, जिससे वह श्रेष्ठ बनें।
दिन प्रतिदिन मनुष्य और ही भ्रष्ट होते जाते हैं।
उन सबकी उतरती कला है, तुम्हारी अब चढ़ती कला है।
तुम ब्राह्मण से देवता बनते हो फिर उतरती कला शुरू होती है।
देवता से क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनेंगे।
अब चढ़ती कला है।
चढ़ती कला तेरे भाने सर्व का भला।
सब मुक्तिधाम में चले जायेंगे और तुम जीवनमुक्ति में चले जायेंगे।
भारत कभी खाली नहीं होता।
स्वर्ग जब होता है तब और खण्ड नहीं रहता।
इस्लामी, बौद्धी आदि तो बाद में आते हैं।
उनके पहले चन्द्रवंशी रामराज्य था।
उनके पहले सूर्यवंशी लक्ष्मी-नारायण का राज्य था।
क्राइस्ट नहीं था तो बौद्धी थे, बौद्धी नहीं थे तो इस्लामी थे।
इस्लामी नहीं थे तो रामराज्य था।
उनके पहले सूर्यवंशी थे।
अब सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी दोनों घराने नहीं हैं।
बाप आकर 3 धर्म स्थापन करते हैं।
तुम ब्रह्मा मुख वंशावली सच्चे ब्राह्मण देवता बनने लिए पुरुषार्थ कर रहे हो।
शूद्र पुरुषार्थ नहीं करते, ब्राह्मणों को ही ब्रह्मा द्वारा श्रीमत मिलती है, जिससे तुम श्रेष्ठ देवता बनते हो।
बाकी थोड़ा समय है - विनाश आया कि आया।
हालतें बिगड़ती रहती हैं।
बिगड़ने में टाइम नहीं लगता।
अगर एक ने बाम्ब चलाया तो दूसरे भी चलाने लग पड़ते।
तुम सूक्ष्मवतन, मूलवतन, वैकुण्ठ देखकर आते हो।
साक्षात्कार होता है।
कृष्णपुरी का भी साक्षात्कार होता है, बाकी वहाँ जा नहीं सकते हैं।
जाने का समय तो तब होगा जब शिवबाबा साथ में ले जायेंगे, बाकी साक्षात्कार होता है।
अब तुम्हारा मुझ ईश्वर के साथ सम्बन्ध जुटा है।
तुम्हारी रावणराज्य तरफ पीठ है।
मुँह है रामराज्य तरफ।
अभी तुम ब्राह्मण वर्ण में हो।
वर्ण अविनाशी हैं।
प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे ब्राह्मण जरूर चाहिए।
तुम ब्राह्मणों को वर्सा दादे से मिलता है।
स्वर्ग की स्थापना करने वाला, राजयोग सिखलाने वाला शिवबाबा है।
यह ईश्वरीय वर्सा आधाकल्प चलता है, फिर मिलता है आसुरी वर्सा।
चढ़ती कला 21 जन्मों के बाद पूरी होगी।
फिर आसुरी राज्य शुरू होगा, असुर यह रावण है।
परमपिता परमात्मा को कहा जाता है बिन्दी मिसल।
दुनिया यह नहीं जानती कि शिव का रूप क्या है।
वह समझते हैं इतना बड़ा लिंग है।
बाबा कहते हैं जैसे तुम आत्मा का रूप बिन्दी मिसल है।
वैसे मुझ परमात्मा का भी रूप बिन्दी मिसल है।
जैसा तुम चमकता हुआ सितारा हो, वैसे मैं भी चमकता हुआ सितारा हूँ।
मैं सदैव परमधाम में रहता हूँ, जन्म-मरण में नहीं आता हूँ।
तुम जन्म-मरण में आते हो।
मैं पतित-पावन हूँ तो जरूर मुझे परमधाम में रहना पड़े।
अभी तुमको मैं पावन बना रहा हूँ।
बड़ी भारी भीती है। (प्राप्ति बहुत है)
21 जन्मों के लिए तुम विश्व के मालिक बनते हो।
पुरानी दुनिया को सिर्फ बुद्धियोग से भूलना होता है।
कहते भी हैं यह बच्चा अथवा यह धन ईश्वर ने दिया है।
अब बाप कहते हैं कि यह सब तो अब खत्म हो जाना है।
यह तो कुछ नहीं है, इससे ममत्व तोड़ दो।
भगवान तुमसे लेकर क्या करेंगे?
सिर्फ तुम ममत्व निकाल दो।
यह तो बहुत थोड़ा है।
हम तो रिटर्न में तुमको स्वर्ग का वर्सा देते हैं।
जैसे बाप नया मकान बनाते हैं तो पुराने से ममत्व निकल नये से जुट जाता है।
तुम बच्चे जानते हो यह पुरानी दुनिया भस्म होनी ही है।
अभी हमको नई दुनिया में जाना है इसलिए ममत्व मिटाए नये में जोड़ना है।
कलियुग के बाद सतयुग आना है।
जैसे रात के बाद दिन और दिन के बाद रात आती है।
यह फिर बेहद के दिन और रात की बात है।
आधाकल्प है ज्ञान की प्रालब्ध।
आधाकल्प है भक्ति।
जब तमोप्रधान, जड़जड़ीभूत हो जाते हैं तब मैं आता हूँ।
अभी तो भक्ति भी व्यभिचारी है।
मुझे कण-कण में ठिक्कर भित्तर में कह देते हैं।
पत्थर को पूजा के लिए रखते हैं।
पत्थर को ही शिव कहते हैं।
पूजा के लिए यह पत्थर की प्रतिमायें बनाई हैं।
यह भक्ति मार्ग की सामग्री बहुत है।
जन्म-जन्मान्तर यज्ञ तप तीर्थ आदि करते, शास्त्र पढ़ते आये हैं।
बाप कहते हैं कि इन सबसे तुम मुझे प्राप्त नहीं कर सकते हो।
तुम खुद ही कहते हो कि हे पतित-पावन आओ।
पतित आत्मायें तो जा नहीं सकती।
समझाते तो बहुत अच्छी तरह से हैं।
गीत भी है कि अब थोड़ा धीरज धरो।
श्रीमत पर चलते चलो तो तुम्हारे सब दु:ख दूर हो जायेंगे।
21 जन्मों के लिए तुम फिर विश्व के मालिक बन जायेंगे।
एक ही पारलौकिक बाप स्वर्ग का वर्सा देते हैं।
वहाँ दु:ख की कोई बात नहीं।
तुम 5 हजार वर्ष बाद बाप से वर्सा लेने आये हो।
जो आकर थोड़ा बहुत सुनते हैं वह भी स्वर्ग में आयेंगे, परन्तु ऊंच पद नहीं पा सकेंगे।
जितना योग में रहेंगे उतना पवित्र होते जायेंगे और ऊंच पद पायेंगे।
शिवबाबा की याद में रहना है और सृष्टि चक्र को फिराना है, दूसरों को भी समझाना है इससे बहुत ऊंच पद मिलेगा।
बाप कहते हैं अजामिल जैसे पापियों का भी उद्धार हो जाता है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) मृत्युलोक के बंधनों में रहते सुख के सम्बन्ध को याद करना है।
अपने को आत्मा समझ मन-बुद्धि को भटकाने से छुड़ाना है।
2) पुरानी दुनिया खत्म होनी है इसलिए इससे ममत्व मिटा देना है।
सब भ्रमों से बुद्धियोग निकालने के लिए श्रीमत पर चलना है।
( All Blessings of 2021-22)
किसी भी बात को फुलस्टाप की बिन्दी लगाकर समाप्त करने वाले सहजयोगी भव
सभी पाइंटस का सार है - प्वाइंट बनना।
प्वाइंट रूप में स्थित रहो तो क्वेश्चन मार्क की क्यू समाप्त हो जायेगी।
जब किसी भी बात में क्वेश्चन आये तो बिन्दी (फुलस्टाप) लगा दो।
फुलस्टाप लगाने का सहज स्लोगन है -जो हुआ, जो हो रहा है, जो होगा वह अच्छा होगा, क्योंकि संगमयुग है ही अच्छे से अच्छा।
अच्छा कहने से अच्छा हो ही जाता है, इससे सहजयोगी जीवन का अनुभव करते रहेंगे।
(All Slogans of 2021-22)
- स्नेह ही सहज याद का साधन है, स्नेह में समा जाना अर्थात् सहजयोगी बनना।
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