27-10-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - तुम्हें इस पतित दुनिया से अपना बुद्धियोग निकाल बेहद का संन्यासी बनना है, संन्यासी माना पूरे पवित्र और पक्के योगी''

 

प्रश्नः-

कौन सी अवस्था आते ही माया के तूफान समाप्त हो जाते हैं?

 

उत्तर:-

जब मेरा पति, मेरा बच्चा.... इस मेरे-मेरे से बुद्धियोग टूट जायेगा।

मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई - यह बुद्धि में पक्का होगा।

एक बाप से ही पूरा बुद्धियोग लगा होगा तब माया के तूफान समाप्त हो जायेंगे।

गीत:- कौन आया मेरे मन के द्वारे....

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  • ओम् शान्ति।
  • भगवानुवाच - यह तो बच्चे समझ गये हैं कि आत्माओं का बाप, उसे कहा जाता है परमपिता परम आत्मा।
    1. बाप खुद समझाते हैं - मेरा कोई आकार में बड़ा रूप नहीं है।
      1. जैसे आत्मा के लिए कहते हैं स्टार है, भ्रकुटी के बीच में रहती है।
      2. वैसे मैं भी परम आत्मा हूँ, उसकी महिमा बड़ी है।
      3. ज्ञान सागर है।
      4. बाकी इतना बड़ा चित्र जैसे नहीं है।
        1. इतना बड़ा होता तो इस शरीर में घुस नहीं सकता।
        2. यह तो शिवलिंग की पूजा करते हैं तो बड़ा बनाते हैं।
        3. अंगूठे सदृश्य कहते हैं।
    2. आत्मा माना आत्मा सिर्फ उनको परम कहते हैं, जो परमधाम में रहते हैं।
  • तुम जानते हो इस समय है डेविल वर्ल्ड, आसुरी सम्प्रदाय।
    1. सतयुग में इस भारत पर देवताओं का राज्य था, अब तो आसुरी राज्य है।
      1. देखो, क्या-क्या खा जाते हैं!
      2. मास मदिरा यह राक्षसी आहार है, इस बात को भी नहीं समझते हैं।
  • स्कूल में भी कोई के अच्छे ख्यालात, कोई के रजोगुणी, कोई के तमोगुणी होते हैं।
    1. जो दूसरों को समझा नहीं सकते उनको बुद्धू कहेंगे।
      1. ब्रह्माकुमार कुमारियों में भी नम्बरवार महारथी, घोड़ेसवार, प्यादे बहुत हैं जो अच्छी रीति समझा नहीं सकते हैं।
        1. ज्ञान पूरा न होने कारण डिससर्विस करते हैं।
      2. जितना जिसमें ज्ञान है, उतना समझायेंगे।
      3. नम्बरवार तो हैं।
      4. कहाँ भूलें भी करते हैं।
      5. बच्चों को नशा होना चाहिए कि हम तो देवता बन रहे हैं।
  • बाप खुद कहते हैं मैं पतितों की दुनिया में आता हूँ।
    1. सतयुग में यही नारायण था - अब फिर इनके तन में आया हूँ, इनको ही नर से नारायण बनाता हूँ।
      1. नम्बरवन पूज्य भी यह था, अब नम्बरवन पुजारी भी यह बना है।
      2. फिर इनका ही आलराउन्ड पार्ट है।
      3. यह मेरा मुकरर तन है।
        1. यह चेन्ज नहीं हो सकता।
        2. ऐसे नहीं कब दूसरे को चांस दूँ।
        3. यह ड्रामा बना बनाया है।
        4. इसमें चेन्ज नहीं हो सकती।
  • बाबा कहते हैं मैं आता हूँ पतितों की दुनिया में, परन्तु कोई को पतित कहो तो बिगड़ पड़ेंगे।
    1. परन्तु जब भगवानुवाच है कि सब आसुरी सम्प्रदाय हैं तो मानना पड़ेगा।
      1. भगवान माना भगवान निराकार, न ब्रह्मा, न विष्णु, न शंकर, न कृष्ण... कहते हैं मैं परमात्मा भी तुम्हारे जैसा हूँ।
      2. भगवानुवाच मैं तुमको राजयोग सिखाने आया हूँ।
  • योग की कितनी महिमा है।
    1. बहुत योग आश्रम खुले हैं।
      1. उसमें हठयोग आदि सिखलाते हैं।
    2. परन्तु तुम योगबल से सारे विश्व को स्वर्ग बनाते हो।
    3. विश्व को परिवर्तन करते हो।
  • सारी दुनिया तो योग में नहीं रहती, योग की कितनी महिमा है, जिससे खास भारत स्वर्ग बनता है।
    1. परन्तु कोई को पता नहीं तो इसको स्वर्ग किसने बनाया है?
      1. जरूर ऐसा कोई स्वर्ग बनाने वाला होगा।
      2. बाप कहते हैं मैं ही आकर देवता बनने का कर्म सिखलाता हूँ।
        1. यह तो बड़ा सहज है।
  • वह बहुत यज्ञ करते हैं।
    1. यहाँ तुम कोई यज्ञ हवन करते हो क्या?
    2. धूप भी खुशबू के लिए जलाते।
    3. बाकी यहाँ कर्मकाण्ड की कोई बात नहीं।
  • तो बाप अपना परिचय देते हैं कि मैं आत्मा हूँ जैसे तुम हो।
    1. परन्तु मैं पुनर्जन्म नहीं लेता हूँ, जन्म लेता हूँ परन्तु मरण में नहीं आता, मेरी जयन्ती मनाते हैं।
      1. मैं इस तन में पढ़ाने के लिए आता जाता रहता हूँ तो इसको मृत्यु नहीं कहेंगे।
      2. मैं आता हूँ देवता बनाने।
        1. अब जो आकर पढ़ेंगे..., पढ़ेंगे भी वही जिन्होंने कल्प पहले पढ़ा होगा।
  • बहुतकाल से बिछुड़े हुए वही सिकीलधे बच्चे हैं, दूसरे थोड़ेही 84 जन्मों में आते हैं, हम ही सारा 84 का चक्र लगाते हैं।
    1. मनुष्य तो बहुत जन्म लेने से तंग होते हैं, तुमको कहेंगे हम 84 के चक्र में नहीं आने चाहते हैं।
      1. परन्तु हम कितने पहलवान हैं जो और ही खुश होते हैं।
      2. हम इस 84 के चक्र को याद करते-करते चक्रवर्ती राजा बन जाते हैं।
  • उन्हों के झण्डे में भी चक्र है, फिर उन्होंने चर्खा बना दिया है।
    1. उनके सामने तुम्हारा कोट आफ आर्मस ठीक है।
      1. ऊपर में शिवबाबा, नीचे त्रिमूर्ति और चक्र बिल्कुल ठीक लगा है।
      2. यह तुम्हारा शिव का झण्डा बिल्कुल ठीक है।
  • तुमको समझाया है संन्यास दो प्रकार का है।
    1. एक है निवृत्ति मार्ग का संन्यास जो जंगल में जाते हैं, वह है हाफ संन्यास।
  • तुम्हारा है फुल संन्यास। किसका?
      1. सारी आसुरी दुनिया का संन्यास करते हो मेरा पति, मेरा बच्चा, मेरा गुरू... उन सब मेरे-मेरे से बुद्धि-योग तोड़ते हो।
      2. मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई।
        1. जब तक यह अवस्था नहीं आयेगी तब तक तूफान आते रहेंगे।
        2. झोके खाते रहेंगे।
        3. बाप सारी आसुरी दुनिया का संन्यास कराते हैं क्योंकि यह सब भस्म होना है।
          1. वह ऐसे नहीं कहते सब भस्म होना है।
  • तुम रहते सम्बन्धियों के बीच में हो परन्तु उनको देखते बुद्धि वहाँ लगी हुई है।
    1. मेरा कुछ है नहीं।
      1. तो काम क्रोध किससे होगा!
      2. यह युक्ति बहुत अच्छी है, परन्तु जब बुद्धि में बैठे।
        1. इसको राजयोग कहा जाता है।
          1. तुम योग लगाते हो, राजाई लेते हो।
            1. वह है हठयोग।
              1. यह गुह्य प्वाइंट्स हैं।
  • योगी तो दुनिया में बहुत हैं।
    1. परन्तु बाबा कहते हैं एक का भी मेरे से योग नहीं है।
    2. मेरे बदले मेरे निवास स्थान ब्रह्म तत्व से योग है।
      1. जैसे भारतवासी अपने निवास स्थान, हिन्दुस्तान को अपना धर्म समझ बैठे हैं।
  • वैसे वह भी अपने को ब्रह्म का बच्चा समझते हैं।
    1. बच्चे भी नहीं कहते।
      1. बच्चा कहें तो फिर वर्सा चाहिए।
      2. वह तो कहते कि तत्व में लीन होंगे।
  • बाबा को तो अनुभव है।
    1. बहुत संन्यासियों, गुरूओं से अनुभव किया।
      1. अर्जुन को भी दिखाते हैं बहुत गुरू थे।
        1. तुम सब अर्जुन हो।
  • इस समय सारी दुनिया पर रावण का राज्य है, सारी दुनिया लंका है।
    1. एक सीलान का बेट (द्विप) लंका नहीं।
    2. वह हद की लंका है।
      1. परन्तु बेहद की लंका तो सारी दुनिया है।
    3. अब सारी दुनिया पर रावण का राज्य है।
  • राम के राज्य में इतने मनुष्य नहीं थे।
    1. जब रामराज्य है तो रावणराज्य नहीं।
      1. कहाँ चला जाता है?
      2. नीचे पाताल में चला जाता है।
  • फिर रावण राज्य आता है तो रामराज्य नीचे चला जाता है।
    1. यह ड्रामा है ना।
    2. जब चक्र फिरता है तब सतयुग ऊपर आ जाता है।
    3. द्वापर, कलियुग नीचे चला जायेगा तो सतयुग त्रेता नीचे से ऊपर आ जायेगा।
    4. है चक्र की बात, उन्होंने ऐसे लिख दिया है।
      1. बाकी कोई सागर में नहीं चला जाता है वा सागर से निकल नहीं आता है।
      2. बाप समझाते हैं यह बड़ी गुह्य समझने की बातें हैं।
  • इसमें पवित्रता है फर्स्ट और योग पक्का चाहिए।
    1. इसको कहा जाता है कम्पलीट संन्यास।
      1. इस दुनिया से बुद्धियोग खलास।
      2. यह बातें तुम्हारे में भी कोई समझते होंगे।
  • सब समझें तो ज्ञान गंगा बन जायें।
    1. छोटी नदी बनें, कैनाल्स बनें।
    2. अच्छा टुबका बन घर में सुनायें तो भी समझें कि कुछ समझा है।
    3. परन्तु घर में भी नहीं बता सकते।
  • बाप कहते हैं कि कैसा भी गरीब हो परन्तु घर में गीता पाठशाला खोल सकते हैं।
    1. भल एक ही कमरा हो उसमें खाते पीते सोते हो।
    2. अच्छा काम उतार सफाई कर फिर यह क्लास लगाओ।
    3. तीन पैर पृथ्वी में इतनी बड़ी हॉस्पिटल खोल सकते हो।
  • साहूकार की बातें छोड़ो।
    1. बाप तो गरीब निवाज़ है ना।
    2. साहूकार तो बोलते कि हमें तो यहाँ ही स्वर्ग है।
      1. तो बाबा कहते हैं अच्छा तुम अपने स्वर्ग में ही खुश रहो।
      2. मैं तुमको क्यों दूँ।
      3. दान भी गरीब को दिया जाता है।
    3. बड़ा आदमी तो यहाँ जमीन में बैठने से चमकेंगे।
    4. तो बाबा कहते हैं कि भल अपने महलों में रहो।
    5. मेरे पास तो गरीब आयें जो अच्छी तरह पढ़ें।
    6. अगर दूसरे को नहीं सुना सकते तो छोटा तालाब भी नहीं ठहरे।
    7. तुमको तो बड़ी नदी बनना है।
      1. मम्मा बाबा को फालो करना है।
      2. परन्तु घर में भी नहीं सुना सकते तो चुल्लू पानी (हथेली में पानी) की तरह भी नहीं ठहरे।
      3. बाबा को तो मजा आयेगा ज्ञान गंगाओं के सामने।
  • कई बाबा के सम्मुख सुनते हैं तो खुश होते हैं।
      1. परन्तु यहाँ से उठे सीढ़ी नीचे उतरे तो नशा भी उतरता जाता है।
      2. फिर घर पहुँचे तो फिर वही झरमुई झगमुई (परचिंतन) चालू।
        1. बाबा तो चलन से समझ जाते हैं।
  • आते हैं मिलने।
    1. कहते हैं मेरा पति, मेरा बच्चा है।
      1. अरे तुमको पति कहाँ से आया?
      2. आती हो स्वर्ग में चलने फिर भी मेरे-मेरे में फंसी हो।
    2. अच्छा इतना डोज़ काफी है।
    3. देना इतना चाहिए जितना हज़म कर सकें।
  • बाबा ने नटशेल में बताया है।
    1. योग से तुम स्वर्ग की स्थापना कर रहे हो।
    2. बाकी बादशाही के लिए नॉलेज चाहिए।
      1. दो सब्जेक्ट हैं।
    3. बाबा भी योग में रहने का पुरुषार्थ करते हैं तब कहते हैं - न बिसरो न याद रहो।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।



  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) इस पुरानी दुनिया का कम्पलीट संन्यास करना है।

    पवित्रता और योग की सब्जेक्ट में फर्स्ट नम्बर लेना है।

    2) ज्ञान गंगा बन पतितों को पावन बनाने की सेवा करनी है।

    मम्मा बाबा को फालो कर बड़ी नदी बनो।



  • ( All Blessings of 2021-22)
  • ब्राह्मण जीवन में कम खर्च बालानशीन करने वाले अलौकिकता सम्पन्न भव

    इस अलौकिक ब्राह्मण जीवन का विशेष स्लोगन है “कम खर्च बालानशीन''।

    खर्चा कम हो लेकिन प्राप्ति शानदार हो अर्थात् रिजल्ट अच्छे से अच्छी हो।

    अलौकिकता सम्पन्न जीवन तब कहेंगे जब बोल में, कर्म में खर्च कम हो।

    कम समय में काम ज्यादा हो, कम बोल में स्पष्टीकरण ज्यादा हो, संकल्प कम हो लेंकिन शक्तिशाली हों-इसको कहा जाता है कम खर्च बालानशीन।

    जो सर्व खजाने कम खर्च करते हैं उनके भण्डारे भरपूर हो जाते हैं।



  • (All Slogans of 2021-22)
    • बाप और सेवा से सच्चा प्यार है तो परिवार का प्यार स्वत: मिलता है।

    • मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य
    • अब यह जो शिरोमणी गीता में भगवानुवाच है बच्चे, जहाँ जीत है वहाँ मैं हूँ, यह भी परमात्मा के महावाक्य हैं। पहाड़ों में जो हिमालय पहाड़ है उसमें मैं हूँ और सांपों में काली नाग मैं हूँ इसलिए पर्वत में ऊंचा पर्वत कैलाश पर्वत दिखाते हैं और सांपों में काली नाग, तो इससे सिद्ध है कि परमात्मा अगर सर्व सांपों में केवल काले नाग में है, तो सर्व सांपों में उसका वास नहीं हुआ ना। अगर परमात्मा ऊंचे ते ऊंचे पहाड़ में है गोया नीचे पहाड़ों में नहीं है और फिर कहते हैं जहाँ जीत वहाँ मेरा जन्म, गोया हार में नहीं हूँ। अब यह बातें सिद्ध करती हैं कि परमात्मा सर्वव्यापी नहीं है। एक तरफ ऐसे भी कहते हैं और दूसरे तरफ ऐसे भी कहते हैं कि परमात्मा अनेक रूप में आते हैं, जैसे परमात्मा को 24 अवतारों में दिखाया है, कहते हैं कच्छ मच्छ आदि सब रूप परमात्मा के हैं। अब यह है उन्हों का मिथ्या ज्ञान, ऐसे ही परमात्मा को सर्वत्र समझ बैठे हैं जबकि इस समय कलियुग में सर्वत्र माया ही व्यापक है तो फिर परमात्मा व्यापक कैसे ठहरा? गीता में भी कहते हैं कि मैं फिर माया में व्यापक नहीं हूँ, इससे सिद्ध है कि परमात्मा सर्वत्र नहीं है। 2) अब यह तो हम जानते हैं कि जब हम निराकारी दुनिया कहते हैं तो निराकार का अर्थ यह नहीं कि उनका कोई आकार नहीं है, जैसे हम निराकारी दुनिया कहते हैं तो इसका मतलब है जरूर कोई दुनिया है, परन्तु उसका स्थूल सृष्टि मुआफिक आकार नहीं है, ऐसे परमात्मा निराकार है लेकिन उनका अपना सूक्ष्म रूप अवश्य है। तो हम आत्मा और परमात्मा का धाम निराकारी दुनिया है। जब हम दुनिया अक्षर कहते हैं, तो इससे सिद्ध है वो दुनिया है और वहाँ रहते हैं तभी तो दुनिया नाम पड़ा, अब दुनियावी लोग तो समझते हैं परमात्मा का रूप भी अखण्ड ज्योति तत्व है, वो हुआ परमात्मा के रहने का ठिकाना, जिसको रिटायर्ड होम कहते हैं। तो हम परमात्मा के घर को परमात्मा नहीं कह सकते हैं। अब दूसरी है आकारी दुनिया, जहाँ ब्रह्मा विष्णु शंकर देवतायें आकारी रूप में रहते हैं और यह है साकारी दुनिया, जिनके दो भाग है - एक है निर्विकारी स्वर्ग की दुनिया जहाँ आधा-कल्प सर्वदा सुख है, पवित्रता और शान्ति है। दूसरी है विकारी कलियुगी दु:ख और अशान्ति की दुनिया। अब वो दो दुनियायें क्यों कहते हैं? क्योंकि यह जो मनुष्य कहते हैं स्वर्ग और नर्क दोनों परमात्मा की रची हुई दुनिया है, इस पर परमात्मा के महावाक्य है बच्चे, मैंने कोई दु:ख की दुनिया नहीं रची जो मैंने दुनिया रची है वो सुख की रची है। अब यह जो दु:ख और अशान्ति की दुनिया है वो मनुष्य आत्मायें अपने आपको और मुझ परमात्मा को भूलने के कारण यह हिसाब किताब भोग रहे हैं। बाकी ऐसे नहीं जिस समय सुख और पुण्य की दुनिया है वहाँ कोई सृष्टि नहीं चलती। हाँ, अवश्य जब हम कहते हैं कि वहाँ देवताओं का निवास स्थान था, तो वहाँ सब प्रवृत्ति चलती थी परन्तु इतना जरूर था वहाँ विकारी पैदाइस नहीं थी, जिस कारण इतना कर्मबन्धन नहीं था। उस दुनिया को कर्मबन्धन रहित स्वर्ग की दुनिया कहते हैं। तो एक है निराकारी दुनिया, दूसरी है आकारी दुनिया, तीसरी है साकारी दुनिया। अच्छा - ओम् शान्ति।
    BK Naresh Bhai's present residence cum workplace