26-10-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - सदा इसी नशे में रहो कि हम शिव वंशी ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण हैं, हमारा ईश्वरीय कुल सबसे ऊंचा है''

 

प्रश्नः-

ऊपर घर में जाने की लिफ्ट कब मिलती है? उस लिफ्ट में कौन बैठ सकते हैं?

 

उत्तर:-

अभी संगमयुग पर ही घर जाने की लिफ्ट मिलती है।

जब तक कोई बाप का न बने, ब्राह्मण न बने तब तक लिफ्ट में बैठ नहीं सकते।

लिफ्ट में बैठने के लिए पवित्र बनो, दूसरा स्वदर्शन चक्र घुमाओ - यही जैसे पंख हैं, इन्हीं पंखों के आधार से घर जा सकते हो।

गीत:- धीरज धर मनुआ....

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  • ओम् शान्ति।
  • मीठे-मीठे संगमयुगी ब्राह्मण जिनको स्वदर्शन चक्रधारी कहा जाता है वह अभी गुप्त वेष में पढ़ रहे हैं।
  • तुमको कोई समझ न सके कि यह संगमयुगी ब्रह्मा मुख वंशावली हैं।
  • तुम बच्चे जानते हो हम शिव वंशी ब्रह्मा मुख वंशावली हैं।
  • तो कुल का भी नशा चढ़ता है क्योंकि तुम ही ईश्वरीय कुल के हो।
  • ईश्वर ने ही बैठ तुमको अपना बनाया है, अपने साथ ले जाने के लिए।
  • बच्चे जानते हैं तो बाप भी जानते हैं कि आत्मा पतित बन गई है, अब पावन बनना है।
  • अब बच्चों को निश्चय हो गया है कि हम शिव वंशी ब्रह्मा मुखवंशावली हैं।
  • तुम्हारा नाम भी है ब्रह्माकुमार कुमारी।
  • सारी दुनिया शिव वंशी है।
  • ब्राह्मण कुल भूषण भी बनें तब जब पहले शिवबाबा को पहचानें।
  • इस समय तुम साकार में बाबा के बने हो।
  • यूं तो जब निराकारी दुनिया में हो तो सर्वोत्तम शिव वंशी हो।
  • परन्तु जब बाबा साकार में आते हैं तो तुम ब्रह्मा मुख वंशावली बनते हो।
  • एक सेकेण्ड में बाबा क्या से क्या बनाते हैं।
  • बाबा कहा और बच्चे बन गये।
  • जैसे आत्मा मुख से बोलती है परन्तु देखने में नहीं आती।
  • वैसे मैं भी इस समय साकार में आया हूँ, बोल रहा हूँ।
  • जैसे तुमको जब तक शरीर न मिले तब तक पार्ट कैसे बजा सको।
  • तुम तो बाल, युवा और वृद्ध अवस्था में आते हो।
  • मैं इन अवस्थाओं में नहीं आता हूँ, तब तो कहा जाता है मेरा जन्म दिव्य और अलौकिक है।
  • तुम तो गर्भ में प्रवेश करते हो।
  • मैं खुद कहता हूँ कि मैं ब्रह्मा तन में, इनके बहुत जन्मों के अन्त के समय वानप्रस्थ अवस्था में प्रवेश करता हूँ और तुमको बैठ पढ़ाता हूँ।
  • तुमको कोई मनुष्य नहीं पढ़ाते क्योंकि किसी भी मनुष्य में ज्ञान नहीं है।
  • कहते हैं पतित-पावन आओ तो पतित-पावन कौन?
  • श्रीकृष्ण तो सतयुग का पहला प्रिन्स है।
  • वह पतित-पावन हो न सके।
  • जब मनुष्य मरते हैं तो कहते हैं राम-राम कहो, जब किसको फांसी पर चढ़ाते हैं तो भी पादरी लोग कहते हैं गॉड फादर को याद करो क्योंकि गॉड फादर ही सुख-दाता है।
  • बाप ही सब राज़ आकर समझाते हैं कि अब संगमयुग है और हमारे सुख के दिन आ रहे हैं।
  • 84 जन्म पूरे हुए।
  • अभी संगम का सुहावना समय है।
  • यही एक युग है ऊपर चढ़ने का।
  • जैसेकि ऊपर जाने की लिफ्ट मिलती है।
  • परन्तु जब तक पवित्र न बनें, स्वदर्शन चक्रधारी न बनें तब तक लिफ्ट पर बैठ न सकें।
  • इस समय जैसे पंख मिल रहे हैं क्योंकि माया ने पंख काट दिये हैं।
  • जब बाबा के बनते हैं, ब्राह्मण बनते हैं तब ही पंख मिलते हैं।
  • अब संगम पर ब्राह्मण हैं फिर देवता बनते हैं।
  • तो तुम अभी संगमयुगी हो और सतयुगी राजधानी में जाने का पुरुषार्थ कर रहे हो।
  • बाकी सुख के दिन सबके लिए आ रहे हैं।
  • तुमको धीरज मिल रहा है।
  • बाकी दुनिया तो घोर अन्धियारे में है।
  • तुमको बाप कहते हैं स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषण।
  • यह कोई नया सुने तो कहे यह कैसे स्वदर्शन चक्रधारी बन सकते हैं?
  • स्वदर्शन चक्रधारी तो विष्णु है तो कितना फ़र्क हो गया।
  • तुम्हारी बुद्धि में तो सारा चक्र है।
  • इस समय तुम हो ईश्वरीय सन्तान फिर बनते हो दैवी सन्तान फिर वैश्य, शूद्र सन्तान बनते हो।
  • इस समय सबसे ऊंचा है ईश्वरीय कुल।
  • वास्तव में महिमा सारी शिव की है।
  • फिर शिव शक्तियों की फिर देवताओं की क्योंकि तुम इस समय सेवा करते हो।
  • जो सेवा करते हैं उनको ही पद मिलता है।
  • तुम हो रूहानी सोशल वर्कर, जिस्मानी सोशल वर्कर बहुत हैं।
  • तुमको अब रूहानी नशा है कि हम अशरीरी आये थे, आकर अपना स्वराज्य लिया था।
  • तुमको अब बाप द्वारा नॉलेज मिली है।
  • स्मृति आई है - इसको कहा जाता है स्मृतिर्लब्धा।
  • अब बाप ही आकर स्मृति दिलाते हैं कि तुम ही देवता, क्षत्रिय बने हो।
  • अब 84 जन्मों के बाद आकर मिले हो।
  • यह है संगमयुगी कुम्भ मेला, आत्मा और परमात्मा का।
  • परमात्मा आकर पढ़ा रहे हैं अर्थात् सर्व शास्त्र मई शिरोमणी गीता ज्ञान दे रहे हैं।
  • उन्होंने गीता में श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है।
  • अगर श्रीकृष्ण हो तो सब उनको चटक जायें क्योंकि उनमें बहुत कशिश है।
  • सतयुग का फर्स्ट प्रिन्स है।
  • श्रीकृष्ण की आत्मा अब सुन रही है और जो भी कृष्णपुरी की आत्मायें हैं वह भी सुन रही हैं।
  • अब तुमको स्मृति आई है कि हम ही कृष्णपुरी अथवा लक्ष्मी-नारायणपुरी के हैं।
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  • बाप नॉलेजफुल है, बाप में जो नॉलेज है वह हमको दे रहे हैं।
  • कौन सी नॉलेज?
  • परमात्मा को बीजरूप कहा जाता है, तो सारे झाड़ की नॉलेज दे देते हैं।
  • ज्ञान सागर है तब ही पतित-पावन है।
  • जब लिखते हो तो समझ से लिखो।
  • पहले पतित-पावन कहें या ज्ञान सागर कहें?
  • जरूर ज्ञान है तब तो पतितों को पावन बनायेंगे।
  • तो पहले ज्ञान सागर फिर पतित-पावन लिखना चाहिए।
  • यह ज्ञान सागर बाप ही सुनाते हैं तो मनुष्य 84 जन्म कैसे लेते हैं।
  • एक का थोड़ेही बतायेंगे।
  • यह राजयोग की पाठशाला है।
  • पाठशाला में तो बहुत होंगे।
  • एक को थोड़ेही पढ़ायेंगे।
  • हम कहते हैं बाप है, टीचर है तो बहुतों को पढ़ाते हैं।
  • देखते हो बेहद के बच्चों को पढ़ाते हैं और वृद्धि होती जाती है।
  • झाड़ धीरे-धीरे बढ़ता है।
  • जब थोड़ा निकलता है तो चिड़ियायें खा जाती हैं।
  • तुम देखते हो इस झाड को माया का तूफान ऐसा आता है जो अच्छे-अच्छे बिखर जाते हैं।
  • बाबा शुरू में बच्चों की ऐसी चलन देखते थे तो कहते थे तुम्हारी चलन ऐसी है जो तुम ठहर नहीं सकेंगे, इसलिए श्रीमत पर चलो।
  • वह कहते थे कुछ भी हो जाये हम भाग नहीं सकते।
  • फिर भी वह भाग गये।
  • तब गाया हुआ है आश्चर्यवत सुनन्ती, कथन्ती, भागन्ती।
  • तो तुम प्रैक्टिकल में देख रहे हो।
  • ऐसे होता जा रहा है क्योंकि माया सामने खड़ी है, मल्लयुद्ध होती है।
  • दोनों तरफ से पहलवान होते हैं।
  • फिर कभी किसी की हार, कभी किसी की जीत।
  • तुम्हारी अब माया से युद्ध है।
  • माया से जीत पहन तुम राजाई स्थापन कर रहे हो।
  • बाप कहते हैं यह विनाश की निशानी है - बाम्ब्स।
  • शास्त्रों में लिखा हुआ है कि पेट से मूसल निकाल अपने कुल का विनाश किया।
  • तुम जानते हो कि बाबा आया है पावन दुनिया बनाने।
  • तो पुरानी दुनिया का विनाश जरूर चाहिए।
  • नहीं तो हम राजाई कहाँ करेंगे।
  • इस पढ़ाई की प्रालब्ध है भविष्य नई दुनिया के लिए।
  • और जो भी पुरुषार्थ करते हैं वह इस दुनिया के लिए है।
  • संन्यासी जो पुरुषार्थ करते हैं वह भी इस दुनिया के लिए है।
  • तुम कहते हो हम यहाँ आकर राजाई करेंगे।
  • परन्तु गुप्त रूप होने के कारण घड़ी-घड़ी बच्चे भूल जाते हैं।
  • नहीं तो बड़े आदमी कहाँ जाते हैं तो कितनी स्वागत करते हैं।
  • लण्डन से रानी आई तो कितने धूम-धाम से स्वागत की।
  • परन्तु बाप कितनी बड़ी अथॉरिटी है, लेकिन बच्चों बिगर कोई जानते नहीं।
  • हम शो भी नहीं कर सकते क्योंकि नई बात है।
  • मनुष्य मूँझते भी हैं कि यहाँ ब्रह्मा कहाँ से आया?
  • क्योंकि आजकल तो टाइटिल बहुत रख देते हैं।
  • बाबा कहते अन्धेर नगरी है... कुछ भी नहीं जानते हैं।
  • अगर समझो साधू सन्त, गुरूओं को मालूम पड़ जाए कि बाप आया है, जिसको हम सर्वव्यापी कहते थे, वह अब मुक्ति-जीवनमुक्ति आकर दे रहे हैं।
  • अच्छा जान जायें तो आकर लेने लग जायें, ऐसा पांव पकड़ लें, जो मैं छुड़ा भी न सकूं।
  • ऐसा हो तो सब कहें कि इनके पास जादू है और गुरू का माथा खराब हो गया है।
  • परन्तु अभी ऐसा होना नहीं है, यह पिछाड़ी में होना है।
  • कहते हैं ना कन्याओं ने भीष्मपितामह को बाण मारे।
  • यह भी दिखाते हैं - बाण मारने से गंगा निकल आई।
  • तो सिद्ध है पिछाड़ी में ज्ञान अमृत सबको पिलाया है।
  • मनुष्य तो कुछ भी जानते नहीं।
  • कह देते हैं परमात्मा तो सर्वव्यापी है।
  • बुद्ध को भी सर्वव्यापी कह देते हैं।
  • इसको कहा जाता है पत्थर बुद्धि।
  • हम भी पहले पत्थर बुद्धि थे।
  • तो बाप आकर समझाते हैं कि गॉड फादर को कभी भी साकारी वा आकारी नहीं कहेंगे, वह तो निराकार है।
  • उन्हें सुप्रीम सोल कहा जाता है।
  • आधाकल्प तुमने भक्ति की।
  • कहते हैं ना - भक्ति करते-करते भगवान मिलेगा तो जरूर है कि भक्ति करते-करते दुर्गति को पाया है फिर बाप आता है सद्गति करने।
  • कहते भी हैं ना - सर्व का सद्गति दाता।
  • तो मनुष्य थोड़ेही समझते हैं कि परमात्मा कब और किस रूप में आया, कह देते हैं द्वापर युग में श्रीकृष्ण रूप में आयेगा, इसको कहा जाता है घोर अन्धियारा।
  • कहते हैं ना - कुम्भकरण को नींद से जगाया तो जागे नहीं।
  • तो बाप ने अब डायरेक्शन निकाला है कि पवित्र बनो और भगवान से डायरेक्ट गीता सुनो।
  • 7 रोज़ क्वारनटाइन में बिठाओ।
  • दे दान तो छूटे ग्रहण।
  • अभी सबको 5 विकारों का ग्रहण लगा हुआ है इसलिए पतित बन गये हैं।
  • रावणराज्य है ना।
  • अब बाप कहते हैं बच्चे तुम मेरा बनो, दूसरा न कोई।
  • श्री-श्री 108 की श्रीमत पर चलने से तुम 108 विजयी माला का दाना बन जायेंगे।
  • मैं माला का दाना नहीं बनता हूँ।
  • मैं तो न्यारा हूँ जिसकी निशानी फूल है।
  • युगल दाना ब्रह्मा-सरस्वती बनते हैं।
  • प्रवृत्ति मार्ग है ना।
  • निवृत्ति मार्ग वाले माला के दाने में आ नहीं सकते।
  • हाँ, पवित्रता को धारण करते हैं तो फिर भी अच्छे हैं।
  • परन्तु यह गुरू सद्गति दे न सकें।
  • सद्गति दाता एक ही सतगुरू है।
  • सतगुरू अकाल कहते हैं, सद्गुरू तो एक परमात्मा को कहा जाता है।
  • साकार गुरू लोग अकालमूर्त थोड़ेही बन सकते हैं।
  • लौकिक बाप, टीचर, गुरू को तो काल खा जाता है।
  • मुझको तो काल खा न सके।
  • बाप कितनी अच्छी-अच्छी बातें समझाते हैं, जो इतनी सहज बातें नहीं समझ सकते तो बाबा उनको कहते अच्छा बाप को याद करो।
  • चक्र को भी याद करना पड़े।
  • बाप के साथ वर्से को भी याद करना पड़े।
  • बाप को याद करो तो विकर्म भस्म हो।
  • बाप तो सम्मुख आया हुआ है।
  • बाप को अशरीरी कहा जाता है।
  • ब्रह्मा विष्णु शंकर सबको अपना-अपना शरीर है।
  • मुझे तो अपना शरीर है नहीं।
  • तुम्हारे तो मामे, काके सब हैं।
  • मेरा मामा, चाचा तो कोई है नहीं।
  • आता भी हूँ।
  • परन्तु तुम कैसे आते हो, मैं कैसे आता हूँ।
  • बुलाते हैं गॉड फादर।
  • परन्तु कहाँ से आता हूँ?
  • परमधाम से।
  • जहाँ से तुम आते हो, जिसको ब्रह्माण्ड कहा जाता है।
  • इस समय तुम ब्रह्मा मुख वंशावली रूद्र यज्ञ के रक्षक हो।
  • राजयोग की शिक्षा देने वाले, राजयोग सिखलाने वाले तुम टीचर हो गये ना।अच्छा!
  • मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।


  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) माला का दाना बनने के लिए यह धारणा पक्की करनी है कि मेरा तो एक शिवबाबा, दूसरा न कोई।

    स्मृतिर्लब्धा बनना है।

    2) श्री श्री 108 शिवबाबा की श्रीमत पर पूरा-पूरा चलना है।

    मेरा-मेरा छोड़ ग्रहण से मुक्त होना है।



  • ( All Blessings of 2021-22)
  • ब्राह्मण जीवन में सदा सुख का अनुभव करने वाले मायाजीत, क्रोधमुक्त भव

    ब्राह्मण जीवन में यदि सुख का अनुभव करना है तो क्रोधजीत बनना अति आवश्यक है।

    भल कोई गाली भी दे, इनसल्ट करे लेकिन आपको क्रोध न आये।

    रोब दिखाना भी क्रोध का ही अंश है। ऐसे नहीं क्रोध तो करना ही पड़ता है, नहीं तो काम ही नहीं चलेगा।

    आजकल के समय प्रमाण क्रोध से काम बिगड़ता है और आत्मिक प्यार से, शान्ति से बिगड़ा हुआ कार्य भी ठीक हो जाता है इसलिए इस क्रोध को बहुत बड़ा विकार समझकर मायाजीत, क्रोध मुक्त बनो।



  • (All Slogans of 2021-22)
    • अपनी वृत्ति को ऐसा पावरफुल बनाओ जो अनेक आत्मायें आपकी वृत्ति से योग्य और योगी बन जायें।
BK Naresh Bhai's present residence cum workplace