18-10-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

" मीठे बच्चे - कछुये मिसल सब कुछ समेटकर चुप बैठ स्वदर्शन चक्र फिराओ, बाप जो सर्व सम्बन्धों की सैक्रीन है, उसे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे''

 

प्रश्नः-

ईश्वरीय कुल के बच्चों प्रति बाप की श्रीमत क्या है?

 

उत्तर:-

तुम जब ईश्वर के बच्चे बने, उनके सम्मुख बैठे हो तो प्यार से उसे याद करो।

उनकी श्रीमत पर चलो। जितना उसे याद करेंगे उतना नशा रहेगा।

परन्तु माया रावण देखता है कि मेरे ग्राहक छिनते हैं तो वह भी युद्ध करता है।

बाबा कहते हैं बच्चे कमजोर मत बनो।

मैं तुम्हें शक्ति देने लिए बैठा हूँ।

गीत:- धीरज धर मनुआ ....

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  • ओम् शान्ति।
  • यह कौन कहते हैं बच्चों को कि हे बच्चे, क्योंकि मनुआ कहा जाता है आत्मा को।
  • आत्मा में ही मन-बुद्धि हैं।
  • तो यह भी नाम रख दिया है।
  • नाम तो बहुत चीज़ों के बहुत रखे हैं जैसे परमपिता परमात्मा, बाबा, कोई फिर फादर कहते हैं।
  • तो बाबा है सबसे सिम्पुल।
  • बाबा कहते हैं तुम किसकी सन्तान हो, वह याद आता है?
  • अब तुम बच्चे बैठे हो, सामने कौन है?
  • आत्मायें कहेंगी बाबा बैठा है।
  • कितनी सिम्पुल बात है।
  • बच्चे जानते हैं हम आत्माओं का परमपिता परम आत्मा पिता है।
  • मनुष्य तो छोटे, बड़े सबको बाबा कह देते हैं और यह फिर आत्मा अपने बाबा को बाबा कहती है।
  • ओ गॉड फादर कहते हैं।
  • अब शरीर के फादर को तो गॉड फादर नहीं कहेंगे।
  • तुम जानते हो हम उस बाबा के सामने बैठे हैं, यह आत्मा की बात है शिवबाबा समझाते हैं तो मैं कौन हूँ!
  • मैं परम आत्मा हूँ।
  • मैं तुम सभी आत्माओं का परमधाम में रहने वाला पिता हूँ, इसलिए मुझे परम आत्मा कहते हैं।
  • इकट्ठा करने से हो जाता है परमात्मा।
  • कितना सहज है।
  • यह कौन बैठा है?
  • शिवबाबा, वह न होता तो यह ब्रह्मा भी नहीं होता।
  • तुम बच्चों की दिल में हमेशा उनकी याद रहती है।
  • है वह भी आत्मा, कोई फ़र्क नहीं है।
  • जैसे आत्मा स्टार है, उस स्टार का साक्षात्कार होता है।
  • वैसे बाप का भी स्टार रूप में साक्षात्कार होगा।
  • बाकी यह जो कहते हैं कि बहुत तेज है, सहन नहीं कर सकते।
  • यह मन की भावना है।
  • बाकी तो बाप यथार्थ करके समझाते हैं कि जैसे तुम आत्मा हो वैसे मैं भी आत्मा हूँ।
  • मुझे भी इस तन में इस आत्मा के बाजू में भ्रकुटी में बैठना है।
  • तो वह बैठ समझाते हैं कि तुम आत्माओं में 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है।
  • सो भी हर एक में अपना-अपना पार्ट है।
  • कहते हैं आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल.... अब परम आत्मा अक्षर क्लीयर है।
  • उनको परमात्मा कहने से मूँझ गये हैं।
  • है तो आत्मा परन्तु सदा परमधाम में रहने वाली परम आत्मा है।
  • ब्रह्मा को परम आत्मा नहीं कहेंगे।
  • यह सब हैं जीव आत्मायें।
  • इनमें कोई पाप आत्मा, कोई पुण्य आत्मा है।
  • बाप कहते हैं मुझे पाप वा पुण्य आत्मा नहीं कहा जाता है।
  • मुझे परमात्मा ही कहा जाता है।
  • मेरा भी पार्ट है।
  • एक बार आकर पतित दुनिया को पावन बनाता हूँ।
  • याद भी करते हैं कि पतित-पावन आओ।
  • परन्तु कोई समझते थोड़ेही हैं कि हम पतित, रावण सम्प्रदाय हैं।
  • कहते हैं रामराज्य चाहिए।
  • रावण को जलाते भी हैं परन्तु यह नहीं जानते कि हम ही रावण सम्प्रदाय हैं।
  • जरूर पतित हैं तब तो बुलाते हैं।
  • कृष्ण को तो नहीं बुलाते।
  • उनको तो परम आत्मा नहीं कहते।
  • हम सबका बाप जो परमधाम से आया है, उसको ही परम आत्मा कहा जाता है।
  • ईश्वर वा भगवान कहने से रोला पड़ जाता है।
  • बाप इस जीव आत्मा द्वारा समझाते हैं।
  • तुमको कहते हैं बच्चे अशरीरी भव।
  • तुम मेरे बच्चे थे, जब तुमको भेजा था।
  • स्वर्ग में शरीर धारण कर आये, चक्र लगाते-लगाते अब तुमने 84 का चक्र पूरा किया।
  • इस समय सब रावण की सन्तान हैं।
  • रावण ने ही पतित बनाया है।
  • अब तुम बने हो ईश्वरीय सन्तान।
  • अब बाबा आया है।
  • कहते हैं मेरा पार्ट है आसुरी सम्प्रदाय को दैवी सम्प्रदाय बनाना।
  • मैं भी ड्रामा अनुसार अपने टाइम पर आता हूँ - कल्प के संगमयुगे।
  • कलियुग है पतित पुरानी तमोप्रधान दुनिया, तब मैं आता हूँ सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी कुल का राज्य स्थापन करने।
  • न हो तब तो स्थापन करूं।
  • फिर जब सूर्यवंशी चन्द्रवंशी होंगे तो वैश्य, शूद्र वंशी नहीं होंगे।
  • अब तुम ईश्वरीय सन्तान बने हो, दैवी सन्तान बनने के लिए।
  • तो बाप के साथ योग चाहिए जिससे विकर्म विनाश हों।
  • एवरहेल्दी, एवरवेल्दी बनने के लिए स्वदर्शन चक्र फिराना पड़े।
  • बाबा को याद करना है, इसमें ही मेहनत है।
  • यह चार्ट रखो कि कितना समय बाबा को याद करते हैं?
  • जितना याद में रहेंगे तो अतीन्द्रिय सुख की भासना आयेगी।
  • तब कहा जाता है अतीन्द्रिय सुख पूछना हो तो गोपी वल्लभ के गोप गोपियों से पूछो।
  • वल्लभ कहा जाता है बाप को।
  • बाप का रूप भी बेटे जैसा ही होता है।
  • वैसे आत्माओं का बाप भी आत्मा ही है परन्तु परमधाम में रहने वाला है।
  • अगर वह बीज नीचे चक्र में चला आये तो झाड़ ऊपर चला जाये।
  • जैसे वह झाड़ होता है, उनका बीज नीचे झाड़ ऊपर।
  • परन्तु यह उल्टा झाड़ है, जिसका बीजरूप परम आत्मा परमधाम में निवास करते हैं।
  • आत्मायें भी पार्ट बजाने ऊपर से नीचे आती हैं।
  • टाल टालियां निकलती जाती हैं, अब बाप कहते हैं तुमको रावण ने काला कर दिया है।
  • अब तुमको गोरा बनना है।
  • कृष्ण और नारायण दोनों को काला कर दिया है।
  • लक्ष्मी को गोरा बनाते हैं, क्यों?
  • काम चिता पर तो दोनों बैठे होंगे।
  • कृष्ण के लिए कहते उनको तक्षक सर्प ने डसा, नारायण को फिर किसने डसा?
  • कुछ भी समझते नहीं हैं।
  • चित्र आदि भी सब रावण की मत पर बनाये हैं।
  • अब बाबा आया है श्रीमत देकर रावण से लिबरेट करने के लिए।
  • मैं सबका सद्गति दाता हूँ, श्री श्री 108 जगतगुरू का टाइटल भी इनका है, जगत की सद्गति करते हैं।
  • ग्रंथ में इनकी महिमा बहुत लिखी है।
  • सद्गुरू सच्चा पातशाह, सचखण्ड स्थापन करने वाला।
  • बाबा को यह सब कण्ठ था।
  • परतु अर्थ का पता नहीं था।
  • अपने को बहुत रिलीजस माइन्डेड समझते थे।
  • परन्तु थे रावण के कुल के।
  • अब तुम ईश्वर के कुल के बने हो तो कितना प्यार से उनको याद करना चाहिए।
  • बाबा आप कितने मीठे हो।
  • हमको स्वर्ग में ले चलते हो, हेविनली गॉड फादर को जितना याद करेंगे तो नशा चढ़ेगा।
  • अब किसके सामने बैठे हो?
  • बाप कहते हैं हे लाडले बच्चे मैं तेरा परमपिता, तुम आत्माओं से बात कर रहा हूँ।
  • अब मेरी श्रीमत पर क्यों नहीं चलते।
  • परन्तु काम रूपी भूत गिरा देता है।
  • बाप कहते हैं कमजोर क्यों बनते हो?
  • श्रीमत मिल रही है फिर आसुरी मत पर क्यों चलते हो?
  • यह युद्ध तो करनी है।
  • माया समझती है मेरे ग्राहक छिनते हैं तो लड़ती है।
  • तुमको बाप शक्ति दे रहा है।
  • इतना पाठ पढ़ाते हैं, सब वेद शास्त्रों का सार समझाते हैं।
  • सूक्ष्मवतन में तो नहीं सुनायेंगे।
  • दिखाया है विष्णु की नाभी से ब्रह्मा निकला।
  • सूक्ष्मवतन में नाभी कहाँ से आई?
  • क्या-क्या बैठ लिखा है।
  • अभी तुमको जो नॉलेज मिल रही है यह परम्परा नहीं चलती, यहाँ ही खलास हो जाती है।
  • पीछे जो शास्त्र आदि बनाते हैं वह परम्परा से चलते हैं, यह ज्ञान तो प्राय:लोप हो जाता है।
  • अब बाप कहते हैं मेरी मत पर चलो, देही अभिमानी बनो, इसमें दौड़ी लगाकर मेरे गले का हार बनो।
  • यह बुद्धि की दौड़ी है, संन्यासी नहीं कह सकते कि अशरीरी भव, मामेकम् याद करो।
  • परमात्मा सभी को कहते हैं क्योंकि सभी मेरी सन्तान हैं, सबको वापिस ले जाने लिए आया हूँ।
  • परन्तु सम्मुख तो बच्चे सुनते हैं, सारी दुनिया नहीं सुनती।
  • शिवरात्रि मनाते हैं, शिव का मन्दिर भी है।
  • जरूर आया है परन्तु शिव का इतना बड़ा चित्र नहीं है।
  • वह तो स्टार है।
  • अगर कहो तो कहेंगे कि क्या मन्दिर में चित्र रांग हैं?
  • इसलिए बाप समझाते हैं बच्चे मैं भी आत्मा हूँ सिर्फ तुम जन्म-मरण में आते हो, मैं नहीं आता हूँ, तब तो तुमको लिबरेट कर सकूँ।
  • मैं पतित-पावन हूँ तो जरूर पतित दुनिया में आना पड़े ना।
  • अगर पतित-पावन न कहें तो समझेंगे नई दुनिया बनाते हैं।
  • प्रलय हो जाती है फिर नई सृष्टि क्रियेट करते हैं।
  • परन्तु उनको पतित-पावन कहा जाता है, तो इससे सिद्ध होता है कि यह सृष्टि तो अनादि है, इसकी प्रलय नहीं होती है।
  • सिर्फ पतित होती है, उनको पावन बनाता हूँ इसलिए मैं नंदीगण पर वा भाग्यशाली रथ पर आता हूँ - तुम्हें नर से नारायण बनाने।
  • सब चाहते भी हैं हम सूर्यवंशी बनें।
  • कथा भी है - एक भक्त ने कहा कि मैं लक्ष्मी को वर सकता हूँ!
  • नारद भक्त था ना।
  • तो कहा तुम अपनी शक्ल तो देखो, पहले बन्दर से मन्दिर तो बनो तब तो लक्ष्मी को वर सकेंगे।
  • अभी तुम मन्दिर लायक बन रहे हो।
  • यह इस समय की ही सारी बात है।
  • यह सब तुमको कौन बता रहे हैं?
  • शिवबाबा ब्रह्मा दादा की भ्रकुटी के बीच में बैठ तुमको समझा रहे हैं।
  • जैसे इनकी आत्मा भ्रकुटी में बैठी है तो जरूर उनके बाजू में बैठा होगा ना।
  • यह नॉलेजफुल बाप तुमको सारा राज़ आदि मध्य अन्त का समझा रहे हैं, जिससे तुमको स्वदर्शन चक्र फिराना सहज हो।
  • स्वदर्शन चक्र फिराने से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे, नहीं तो सजायें खायेंगे।
  • विजय माला में भी नहीं आयेंगे।
  • कछुए मिसल जब फ्री हो तो चुप बैठकर चक्र को फिराओ।
  • अब तुमको घर वापिस जाना है।
  • यह अन्तिम जन्म पवित्र रहो।
  • इसको कहा जाता है लोकलाज, पतित बनने की मर्यादायें तोड़ो और कोई को याद नहीं करो।
  • आप मुये मर गई दुनिया।
  • अशरीरी बन मेरा बनो तो विकर्म विनाश हो जायेंगे।
  • सबको मरना तो है ही फिर कौन किसके लिए रोयेगा।
  • हिरोशिमा में सब मर गये, कोई रोने वाला बचा ही नहीं इसलिए अब रोने वाली दुनिया से वापिस जाना है।
  • इस गन्दी दुनिया में तो हर एक के अंग-अंग में कीड़े पड़े हैं, उसको याद क्यों करें।
  • स्वर्ग में थोड़ेही ऐसे शरीर होंगे।
  • वहाँ तो अंग-अंग में खुशबू होती है।
  • बाबा कैसे गन्दे बांसी को गुल-गुल (फूल) बनाते हैं, तो उनको आना भी ऐसे पुराने लांग बूट में पड़ता है।
  • बाबा कहते हैं कि भल घर में रहो परन्तु श्रीमत पर चलो।
  • विकार में मत जाओ।
  • तुम्हारे सामने शिवबाबा बैठा है, उनको भूलो मत।
  • अच्छा! गीत - धरती को आकाश पुकारे.. धरती पर रहने वालों को आकाश में रहने वाला बाप पुकारते हैं।
  • अब मेरे पास आना है इसलिए नष्टोमोहा बनो।
  • मैं तुम्हें स्वर्ग के अथाह सुख दूँगा।
  • बाप है सभी सुखों का पीन।
  • मामा, चाचा यह सब तुमको दु:ख देने वाले हैं।
  • तुम्हारा है सारी आसुरी दुनिया नर्क का संन्यास।
  • संन्यासियों का है सिर्फ घर का संन्यास।
  • तुमको इस डर्टी दुनिया नर्क को भूलना है।
  • इस समय मनुष्यों को थोड़ा भी धन मिलता है तो समझते हैं हम तो स्वर्ग में हैं।
  • परन्तु इस दुनिया में कोई कितना भी साहूकार हो, देवाला निकला, एरोप्लेन आदि गिरा तो सब खलास, फिर रोने पीटने लग पड़ते हैं।
  • वहाँ तो एक्सीडेंट की बात नहीं।
  • कोई रोता पीटता नहीं।
  • बाबा कहते हैं अच्छा तुम स्वर्ग में हो तो खुश रहो।
  • मैं आया हूँ गरीबों के लिए, जो नर्क में हैं।
  • दान भी गरीबों को दिया जाता है।
  • साहूकार, साहूकार को दान करते हैं क्या?
  • मैं तो सबसे साहूकार हूँ, मैं गरीबों को दान देता हूँ।
  • इस समय के साहूकार तो अपने धन के, फैशन के नशे में ही चूर हैं।
  • अच्छा - बाबा समझानी देते हैं यह है इन्द्रप्रस्थ, यहाँ हंस मोती चुगेंगे।
  • बाकी जो बगुले होंगे वह तो पत्थर ही उठायेंगे इसलिए बाबा कहते हैं यहाँ हंस (गुणग्राही) ही आने चाहिए, बगुले (अवगुण देखने वाले) नहीं।
  • ...अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुड़मार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।


  • 1) बाप की श्रीमत पर चल, देही-अभिमानी बन बाप के गले का हार बनना है।

    बाप की याद में रह अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करना है।

    2) इस दुनिया से पूरा नष्टोमोहा बनना है।

    किसी के भी छी-छी शरीरों को याद नहीं करना है।



  • ( All Blessings of 2021-22)
  • सेवा के बंधन द्वारा कर्म-बन्धनों को समाप्त करने वाले विश्व सेवाधारी भव

    प्रवृत्ति में रहते हुए कभी यह नहीं समझो कि हिसाब-किताब है, कर्मबन्धन है...लेकिन यह भी सेवा है। सेवा के बन्धन में बंधने से कर्मबन्धन खत्म हो जाता है।

    जब तक सेवा भाव नहीं होता तो कर्मबन्धन खींचता है।

    कर्मबन्धन होगा तो दुख की लहर आयेगी और सेवा का बन्धन होगा तो खुशी होगी इसलिए कर्मबन्धन को सेवा के बंधन से समाप्त करो।

    विश्व सेवाधारी विश्व में जहाँ भी हैं विश्व सेवा अर्थ हैं।



  • (All Slogans of 2021-22)
    • अपने दैवी स्वरूप की स्मृति में रहो तो आप पर किसी की व्यर्थ नज़र नहीं जा सकती।