- ओम् शान्ति।
- आत्मायें अर्थात् बच्चे जान गये हैं कि हम आत्मा बिन्दी मिसल हैं।
- एक स्टॉर मुआफिक हैं।
- लेकिन जो आत्मा है वह सेल्फ के बाप को कैसे रियलाइज़ करे।
- दुनिया में कोई भी न अपने को, न बाप को जानते हैं।
- तुम जानते हो हम आत्मा बिन्दी हैं।
- कितनी छोटी हैं, बाप भी इतना छोटा है।
- आत्मा से परमात्मा बाप कोई बड़ा नहीं है।
- शरीर तो छोटा बड़ा होता है।
- अब तुम शिवबाबा की याद में बैठे हो।
- भल कोई यह जान भी जाये कि आत्मा छोटी बिन्दी है, परन्तु उसमें 84 जन्मों का पार्ट है, वन्डर है ना।
- जब तक आत्मा शरीर का आधार न लेवे तब तक पार्ट बजा न सके।
- वैसे परमात्मा भी हम आत्मा के मुआफिक छोटा है परन्तु बाप क्यों कहा जाता है?
- क्योंकि वह सदा पावन है।
- वह परमात्मा को न जानते भी उनको बाप कहते हैं।
- जैसे तुम समझ से याद करते हो वैसे वह भी याद करते हैं।
- इतने जो भगत हैं, सबका भगवान एक है, जिसको पतित-पावन कहा जाता है।
- तो पतित हैं अनेक और पतित-पावन है एक।
- साधू सन्त महात्मा भी बुलाते हैं, उनको गॉड फादर कहते हैं।
- तो सबका फादर ठहरा ना।
- फादर को पतित से पावन बनाने आना पड़ता है।
- पावन बनने का उपाय वही बताते हैं क्योंकि आत्मा पर पापों का बोझा चढ़ा हुआ है।
- हम सिर्फ लिख दें कि बी होली, परन्तु ऐसे स्लोगन लगाने से कोई फायदा नहीं क्योंकि बाहर वाले तो समझ न सकें।
- बाकी तुमको तो समझाया हुआ है, तुमको स्लोगन की क्या दरकार है।
- इसका अर्थ है पवित्र बनो, बाबा को याद करो।
- जब तक किसको समझाया नहीं जाये तब तक कुछ समझ न सकें।
- योग में रहने से पवित्र बन सकते हैं।
- कहते हैं हिज-होलीनेस।
- यह पवित्रता का टाइटिल है।
- संन्यासियों को होली कहते हैं क्योंकि विकार में नहीं जाते हैं।
- भल वह पवित्र रहते हैं, ब्रह्म को याद करते हैं परन्तु जन्म विकारियों के पास लेना पड़ता है।
- तुमको तो कहा जाता है पवित्र रहो और शिवबाबा को याद करो।
- संन्यासी अपने को कर्म संन्यासी कहलाते हैं परन्तु कर्म का संन्यास होता नहीं।
- कर्म संन्यास तब हो जब देह न हो।
- देह बिगर तो घर में (परमधाम में) रहते हैं।
- यहाँ कर्म का संन्यास कैसे हो सकता है?
- यह कहना भी झूठ है।
- वह कहते जो गृहस्थी कर्म करते वह हम नहीं करते।
- गृहस्थियों का कर्म तो बहुत है - यज्ञ, तप, तीर्थ आदि करते हैं।
- वह संन्यासी भी करते हैं।
- बाकी फ़र्क सिर्फ यह है कि वह कमाई कर खाना घर में पकाते हैं, संन्यासी यह नहीं करते हैं।
- वह मांगकर खाते हैं क्योंकि उनका हठयोग है।
- हठयोग से परमात्मा से मिल नहीं सकते।
- जब बाप आये तब तो उनसे कोई मिल सके और जब तक बाप न आये तब तक पावन दुनिया की स्थापना भी हो न सके।
- कितना समझाते हैं फिर भी समझते नहीं हैं।
- बच्चे समाचार लिखते हैं - इतने-इतने आये।
- अब देखें कौन-कौन अपना सौभाग्य लेते हैं।
- आते बहुत हैं परन्तु बुद्धि में यह नहीं बैठता कि इन्हें पढ़ाने वाला परमपिता परमात्मा है, हमको उनसे सौभाग्य लेना है।
- बाप रजिस्टर भी देखते हैं।
- कोई मास में 8-10 दिन भी आते हैं, कोई नहीं भी आते हैं तो वह नहीं लिखते।
- अगर कोई नहीं आता है तो वह मुरली पढ़ता है वा नहीं।
- किसी भी हालत में रोज़ पढ़ना पड़े।
- जैसे जप साहेब, सुखमनी छोटे-छोटे बनाते हैं, समझते हैं कैसे भी पढ़ सकें।
- तुम समझते हो, उस पढ़ने से क्या प्राप्ति होगी।
- कुछ नहीं।
- करके थोड़े समय के लिए बुद्धि ठीक होगी परन्तु बाप से कोई मिल न सके।
- और फिर विकारों में फँस जाते हैं तो फिर उनसे कोई प्राप्ति नहीं।
- कहते हैं विनाश काले विपरीत बुद्धि, बरोबर अब विनाश का समय है और कोई भी परमात्मा को नहीं जानते।
- कहते भी हैं हम रचता और रचना के आदि मध्य अन्त को नहीं जानते हैं परन्तु ड्रामा के आदि मध्य अन्त को जानना चाहिए ना।
- बाप समझाते हैं सतयुग है आदि, कलियुग है अन्त।
- तो तीनों काल, तीनों लोकों को समझना है।
- तीन लोक हैं स्थूल वतन, सूक्ष्म वतन... कहते हैं - शास्त्र अनादि हैं परन्तु बाप समझाते हैं जब से रावण राज्य शुरू होता है तब से शास्त्र भी शुरू होते हैं, तो द्वापर युग मध्य हो गया।
- आधाकल्प सतयुग, आधाकल्प कलियुग।
- आधा का हिसाब है।
- वह मध्य को नहीं जान सकते क्योंकि कल्प की आयु लाखों वर्ष कह देते हैं।
- कहना चाहिए कि बाप को जानो, ब्रह्माकुमार कुमारी बनो तब वर्सा मिलेगा।
- पहले कोई आते हैं तो पूछो - कहाँ आये हो?
- कहते हैं बी.के. के पास।
- तुम कहो विचार करो - इतने ब्रह्माकुमार कुमारियां हैं, तो ब्रह्मा बाप भी होगा!
- कितने सेन्टर्स हैं, ढेरों के ढेर ब्रह्माकुमार कुमारियां हैं।
- भला इतने बच्चे एक बाप को कैसे हो सकते!
- लिखा है प्रजापिता तो इतने ब्रह्माकुमार कुमारियां हैं।
- ऐसे-ऐसे समझाकर खड़ा करना चाहिए।
- फिर भला ख्याल करो प्रजापिता ब्रह्मा किसका बच्चा?
- इतने बच्चे रचना तो परमात्मा का काम है ना।
- तो परमात्मा आता होगा ना।
- गाया हुआ है तुम मात-पिता... तो बाप ब्रह्मा हो गया ना।
- तो परमात्मा ब्रह्मा द्वारा रचते हैं, कनवर्ट करते हैं।
- एडाप्ट करते हैं, वर्सा देने।
- पावन बनाते हैं कैसे? याद से।
- कहते हैं सब धर्मो को भूल मामेकम् याद करो।
- सभी बुलाते हैं मैं नॉलेजफुल, ब्लिसफुल, लिबरेटर, गाइड हूँ।
- तो सुखधाम में ले जाता हूँ।
- सुख कहाँ है?
- सुखधाम में।
- अभी बाप ले जाता है शान्तिधाम में, फिर आते हैं सुखधाम में।
- यह बातें कैसे याद करें।
- रोज़-रोज़ बोलते रहें, औरों को समझाते रहें तो प्वाइंट्स बुद्धि में आती रहती हैं।
- जब किसको समझाओ तो उनसे लिखा लेना चाहिए।
- परमात्मा जो आत्माओं का पिता है - उनकी एड्रेस लिखानी चाहिए कि बाप शिव है तो बाप से वर्सा लेंगे।
- तो मेहनत करनी चाहिए परन्तु मेहनत करे कौन?
- इसलिए बच्चों को खुद खड़ा होकर फिर औरों को भी खड़ा करना चाहिए और सर्विस के लिए प्लैन्स बना देने चाहिए।
- जैसे मिलेट्री के बड़े कमान्डर्स आपस में मिलते हैं ना।
- तो यहाँ भी बच्चों को मिलना चाहिए परन्तु क्या करें आपस में मिलते नहीं हैं।
- वास्तव में तुम ब्राह्मणों का आपस में बहुत प्यार होना चाहिए।
- कोई राय निकालनी चाहिए - कैसे किसको समझायें।
- देखो, लक्ष्मी-नारायण के कितने मन्दिर हैं।
- तो मन्दिर बनाने वालों को मिलना चाहिए कि आपने यह मन्दिर बनाया है परन्तु जानते हो कि इन्होंने राज्य कैसे पाया?
- फिर राज्य कैसे गंवाया?
- श्रीकृष्ण का चित्र बहुत अच्छा है, इसमें 84 जन्मों की कहानी बड़ी अच्छी है।
- सिर्फ यह चित्र बड़ा बनाना चाहिए।
- बाबा कहते हैं कोई आये तो युक्ति से पूछना चाहिए कि आपने गीता पढ़ी है?
- फिर भला बताओ गीता का भगवान कौन है?
- तो ऐसे युक्ति से समझाना चाहिए।
- कहते हैं ना तुम मात-पिता....तो यह ब्रह्मा माता हो गई तो उनके साथ सम्बन्ध रखना चाहिए।
- अगर उनसे प्यार गया तो खेल खलास, बाप से वर्सा कैसे पायेंगे। तुम्हारी लड़ाई पुराने दुश्मन से है।
- कोई को मालूम नहीं है कि रावण से भी कोई युद्ध होती है।
- कहते हैं सच की नांव डोलेगी लेकिन डूबेगी नहीं।
- तो हिलती कितनी है।
- दूसरे सतसंगों में तो हिलने की बात ही नहीं है।
- यहाँ तो माया से युद्ध है।
- जब तक बाप को नहीं समझा है तब तक भल लिखकर दें, परन्तु तोता कण्ठी वाला नहीं बना है।
- जंगली तोता आया और गया।
- अल्फ को समझना है।
- ऐसे प्रजा तो ढेर है, बाकी राजाई के लिए कोई खड़ा नहीं होता है।
- बत्ती पर फिदा हो जाए सो बड़ा मुश्किल होता है।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- रात्रि-क्लास:-
- तुम बच्चों को बाप का डायरेक्शन मिला हुआ है कि बच्चे बाप को याद करो।
- बच्चे कहते हैं बाबा फुर्सत नहीं मिलती है।
- अब फुर्सत कहाँ चली जाती है?
- जरूर माया तुम्हारा समय ले लेती है।
- माया भी जबरदस्त तीखी है, जो तुमको बाप को याद करने की फुर्सत नहीं देती, तब तो कहते हो बाबा सारे दिन में आधा घण्टा, 20 मिनट याद में रहे, कोई मुश्किल ही सारे दिन में दो घण्टा बाप को याद करते होंगे।
- जो समझते हैं हम 2 घण्टा याद करते हैं, वह हाथ उठाओ।
- वह स्थूल याद, पुरानी याद तो चलती आती है।
- यह तो है इनकारपोरियल, इनको अपना ऑख, कान तो है नहीं।
- बच्चों को कहते हैं मामेकम् याद करो।
- अपने को आत्मा समझो।
- तो बाबा पूछ रहे हैं कि कितना घण्टा याद में रहते हो?
- बच्चे खेलने जाते हैं तो टीचर को याद करते हैं।
- घर में पढ़ते हैं तो भी टीचर याद रहता है।
- तो वह है स्थूल याद।
- इसमें है थोड़ी डिफीकल्टी, तो बाबा पूछते हैं कि अपने को आत्मा समझ बाप को 2 घण्टा जो याद कर सकते हैं, वह हाथ उठाओ।
- लज्जा नहीं करो, एक्यूरेट बताओ।
- तुम यहाँ बैठते हो, बाबा मुरली चलाते हैं तो बुद्धि दूसरे तरफ चली जाती है ना!
- इतना बुद्धि में धारण भी नहीं होता है।
- जैसे यहाँ सुबह में एक घण्टा बाबा समझाते हैं, तो क्या वह एक घण्टा बाबा को याद करते हो या बुद्धि बाहर में चली जाती है?
- बरोबर नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार बुद्धि कहाँ न कहाँ चली जाती है।
- सारा नहीं सुनते हैं।
- अगर सारा बैठ करके सुनें और नोट करते रहें तो बाबा कहेगा हाँ, इनका योग ठीक है।
- तो सुनते समय अटेन्शन देना है और प्वाइन्ट्स पूरा लिखना है।
- अगर लिंक टूटेगी तो प्वाइन्ट भूल जायेगी।
- बाप समझाते हैं बच्चे, हार्ट फेल का मौत बहुत मीठा मौत है।
- इसमें तेरा मेरा फेरा कुछ भी नहीं है।
- बैठे-बैठे यह गिरा, बेहोश हुआ, खलास। बस।
- फिर होश में आये ही नहीं।
- यह बहुत अच्छा मौत है।
- बाकी मनुष्य तो रोते पीटते हैं और तुम तो खुश होंगे अरे वाह!
- इनका मौत बड़ा सहज हुआ, इनको कोई दु:ख नहीं हुआ।
- अगर मौत हो तो ऐसा हो, नहीं तो दवा, नर्स यह वह बहुत होते हैं ना इसलिए जो बैठे-बैठे अपनी इस पुरानी जुत्ती को छोड़ दे, कर्मातीत अवस्था हो, ऐसे ही शरीर छोड़े, तो वो सबसे अच्छा है।
- तुम आगे चल करके देखेंगे, अनायास बाम्बस छूटेंगे और सब बैठे-बैठे चले जायेंगे।
- चेहरा भी हर्षित होगा।
- जैसे कभी-कभी अच्छे मौत होते हैं तो देखने वाले कहते हैं कि यह तो जैसे जागता है, यह तो हर्षित है, ऐसे तो कोई कह नहीं सकेंगे कि यह मर गया है।
- आत्मा हर्षित होके जाती है ना, तो आत्मा में अगर हर्षितपना होगा तो चेहरे पर बाहर से दिखाई तो पड़ेगा ना!
- आत्मा कोई खत्म तो नहीं होती है, आत्मा शरीर छोड़ती है।
- तो बड़ी खुशी से यह शरीर हंसते हुए छोड़ देगी, इसको कहा जाता है - कर्मातीत अवस्था।
- वही इतना ऊंच गाये जाते हैं।
- तुम बच्चों को ऐसे ही जाना है, शरीर की कोई परवाह ही नहीं है, और दूसरी कोई चीज़ याद नहीं आवे, इसको कहेंगे सबसे मीठा, आपेही शरीर छोड़ना इसलिए सर्प का मिसाल भी देते हैं।
- सतयुग में ऐसे होता है जो खुशी से शरीर छोड़ते हैं।
- तो प्रैक्टिस यहाँ से होगी, पीछे वह प्रैक्टिस चलती रहेगी।
- तुम बच्चे बाप को कितना प्यार से याद करते हो।
- अंग्रेजी में कहा जाता है मोस्ट बील्वेड, परम प्रिय, बहुत मीठा।
- लोगों को तो परमप्रिय, मोस्ट बील्वेड कह नहीं सकते।
- बाप कहते हैं बच्चे मैं तुम्हारा बाप भी हूँ, टीचर भी हूँ, गुरू भी हूँ।
- तुम कभी टीचर को भूलो तो बाप को याद कर सकते हो।
- बाबा गाइड है, गाइड को पण्डा भी कहा जाता है।
- वह दु:ख से लिबरेट करने वाला, शान्तिधाम में ले जाने वाला है, उसके पीछे है सुखधाम।
- तो तुमको यह ज्ञान घास मिलता है फिर इसको विचार सागर मंथन करते रहो।
- जैसे गाय का मुख चलता रहता है।
- तुम्हारा मुख तो चलने की दरकार नहीं है, बाकी अन्दर में सबकुछ याद करना है।
- जैसे तुम हो, ऐसे हम हैं।
- हमको तो और भी कम घण्टे मिलते हैं, क्योंकि हमारा बुद्धियोग बाहर में बहुत जाता है, कभी कोई की चिट्ठी आई, फलाने की खिटपिट है, यह है, वह है.. तो सारा दिन उस तरफ बुद्धि जाती है परन्तु शायद बच्चों से जास्ती बाबा को सहज है क्योंकि बगल में (साथ में) रहता है।
- जब बाबा भोजन खाने के लिए बैठते हैं तो सोचते हैं, अच्छा मैं बाबा को याद करता हूँ, 2-3 मिनट याद रहती है फिर भूल जाता हूँ।
- याद हवा मुआफिक उड़ जाती है, बच्चे ट्राय करके देखो।
- सहज होते भी याद में टाइम तो लगता है ना।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप व दादा का दिल व जान, सिक व प्रेम से यादप्यार और गुडनाइट। मीठे मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप की नमस्ते।
1) आपस में बहुत प्यार से रहना है, मिलकर राय निकालनी है कि किस युक्ति से हर एक तक बाप का सन्देश पहुंचायें।
2) यह विनाश का समय है इसलिए एक बाप से सच्ची प्रीत रखनी है।
योग से आत्मा को पावन बनाना है।
( All Blessings of 2021-22)
स्वराज्य के साथ बेहद की वैराग्य वृत्ति को धारण करने वाले सच्चे-सच्चे राजऋषि भव
एक तरफ राज्य और दूसरे तरफ ऋषि अर्थात् बेहद के वैरागी।
ऐसे राजऋषि का कहाँ भी - चाहे अपने में, चाहे व्यक्ति में, चाहे वस्तु में..... लगाव नहीं हो सकता क्योंकि स्वराज्य है तो मन-बुद्धि-संस्कार सब अपने वश में हैं और वैराग्य है तो पुरानी दुनिया में संकल्प मात्र भी लगाव जा नहीं सकता, इसलिए स्वयं को राजऋषि समझना अर्थात् राजा के साथ-साथ बेहद के वैरागी बनना।
(All Slogans of 2021-22)
- समझदार वह है जो सब आधार टूटने के पहले एक बाप को अपना आधार बना ले।
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