02-10-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 03.10.92 "बापदादा" मधुबन

" ब्राह्मण अर्थात् सदा श्रेष्ठ भाग्य के अधिकारी

 

...full possibilities...

 

  • आज भाग्यविधाता बापदादा अपने सर्व बच्चों का श्रेष्ठ भाग्य देख हर्षित हो रहे हैं।
  • इतना श्रेष्ठ भाग्य और इतना सहज प्राप्त हो - ऐसा भाग्य सारे कल्प में सिवाए आप ब्राह्मण आत्माओं के और किसी का भी नहीं हैं।
  • सिर्फ आप ब्राह्मण आत्माएं इस भाग्य के अधिकारी हो।
  • यह ब्राह्मण जन्म मिला ही है कल्प पहले के भाग्य अनुसार।
  • जन्म ही श्रेष्ठ भाग्य के आधार पर है क्योंकि ब्राह्मण जन्म स्वयं भगवान् द्वारा होता है।
  • अनादि बाप और आदि ब्रह्मा द्वारा यह अलौकिक जन्म प्राप्त हुआ है।
  • जो जन्म ही भाग्यविधाता द्वारा हुआ है, वह जन्म कितना भाग्यवान हुआ!
  • अपने इस श्रेष्ठ भाग्य को सदा स्मृति में रख हर्षित रहते हो?
  • सदा स्मृति प्रत्यक्ष-स्वरूप में हो, सदा मन में इमर्ज करो।
  • सिर्फ दिमाग में समाया हुआ है, ऐसे नहीं।
  • लेकिन हर चलन और चेहरे में स्मृति-स्वरूप प्रत्यक्ष रूप में स्वयं को अनुभव हो और दूसरों को भी दिखाई दे कि इन्हों की चलन में, चेहरे में श्रेष्ठ भाग्य की लकीर स्पष्ट दिखाई देती है।
  • कितने प्रकार के भाग्य प्राप्त हैं, उसकी लिस्ट सदा मस्तक पर स्पष्ट हो।
  • सिर्फ डायरी में लिस्ट नहीं हो लेकिन मस्तक बीच भाग्य की लकीर चमकती हुई दिखाई दे।
  • पहला भाग्य - जन्म ही भाग्यविधाता द्वारा हुआ है।
  • दूसरी बात - ऐसा किसी भी आत्मा वा धर्मात्मा, महान् आत्मा का भाग्य नहीं जो स्वयं भगवान् एक ही बाप भी हो, शिक्षक भी हो और सतगुरु भी हो।
  • सारे कल्प में ऐसा कोई है?
  • एक ही द्वारा बाप के सम्बन्ध से वर्सा प्राप्त है, शिक्षक के रूप से श्रेष्ठ पढ़ाई और पद की प्राप्ति है, सतगुरु के रूप में महामंत्र और वरदान की प्राप्ति है।
  • वर्से में सर्व खजानों का अधिकार प्राप्त किया है।
  • सर्व खजाने हैं ना। कोई खजाने की कमी है?
  • टीचर्स को कोई कमी है?
  • मकान बड़ा होना चाहिए, जिज्ञासु अच्छे-अच्छे होने चाहिए, यह कमी है? नहीं है।
  • जितनी सेवा निर्विघ्न बढ़ती है तो सेवा के साथ सेवा के साधन सहज और स्वत: बढ़ते ही हैं।
  • बाप द्वारा वर्सा और श्रेष्ठ पालना मिल रही है।
  • परमात्म-पालना कितनी ऊंची बात है!
  • भक्ति में गाते हैं परमात्मा पालनहार है।
  • लेकिन आप भाग्यवान आत्माएं हर कदम परमात्म-पालना के द्वारा ही अनुभव करते हो।
  • परमात्म श्रीमत ही पालना है।
  • बिना श्रीमत अर्थात् परमात्म पालना के एक कदम भी नहीं उठा सकते।
  • ऐसी पालना सिर्फ अभी प्राप्त है, सतयुग में भी नहीं मिलेगी।
  • वह देव आत्माओं की पालना है और अभी परमात्म पालना में चल रहे हो।
  • अभी प्रत्यक्ष अनुभव से कह सकते हो कि हमारा पालनहार स्वयं भगवान् है।
  • चाहे देश में हो, चाहे विदेश में हो लेकिन हर ब्राह्मण आत्मा फलक से कहेगी कि हमारा पालनहार परम आत्मा है।
  • इतना नशा है!
  • कि कब मर्ज हो जाता है, कब इमर्ज होता है?
  • जन्मते ही बेहद के खजानों से भरपूर हो अविनाशी वर्से का अधिकार ले लिया।
  • साथ-साथ जन्मते ही त्रिकालदर्शी सत शिक्षक ने तीनों कालों की पढ़ाई कितनी सहज विधि से पढ़ाई!
  • कितनी श्रेष्ठ पढ़ाई है और पढ़ाने वाला भी कितना श्रेष्ठ है!
  • लेकिन पढ़ाया किन्हों को है?
  • जिन्हों में दुनिया की उम्मींद नहीं है उन्हों को उम्मीदवार बनाया।
  • न सिर्फ पढ़ाया लेकिन पढ़ाई पढ़ने का लक्ष्य ही है ऊंच ते ऊंच पद प्राप्त करना।
  • परमात्म पढ़ाई से जो श्रेष्ठ पद प्राप्त कर रहे हो, ऐसा पद सारे वर्ल्ड के ऊंचे ते ऊंचे पद के आगे कितना श्रेष्ठ है!
  • अनादि सृष्टि चक्र के अन्दर द्वापर से लेकर अभी तक जो भी विनाशी पद प्राप्त हुए हैं, उन्हों में सर्वश्रेष्ठ पद पहले राज्य-पद गाया हुआ है।
  • लेकिन आपके राज्य-पद के आगे वह राज्य-पद क्या है? श्रेष्ठ है?
  • आजकल का श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ पद प्रेजीडेन्ट, प्राइम-मिनिस्टर है।
  • बड़े ते बड़ी पढ़ाई द्वारा फिलॉसाफर बनेंगे, चेयरमेन, डायरेक्टर आदि बन जायेंगे, बड़े ते बड़े ऑफिसर बन जायेंगे।
  • लेकिन यह सब पद आपके आगे क्या हैं!
  • आपको एक जन्म में जन्म-जन्म के लिए श्रेष्ठ पद प्राप्त होने की परमात्म-गारन्टी है और उस एक जन्म की पढ़ाई द्वारा एक जन्म भी पद प्राप्त कराने की कोई गारन्टी नहीं।
  • आप कितने भाग्यवान हो जो पद भी सर्वश्रेष्ठ और एक जन्म की पढ़ाई और अनेक जन्म पद की प्राप्ति!
  • तो भाग्य है ना!
  • चेहरे से दिखाई देता है?
  • चलन से दिखाई देता है?
  • क्योंकि चाल से मनुष्य के हाल का पता लगता है।
  • ऐसी चाल है जो आपके इतने श्रेष्ठ भाग्य का हाल दिखाई देवे?
  • या अभी साधारण लगते हो? क्या है?
  • साधारणता में महानता दिखाई दे।
  • जब आपके जड़ चित्र अभी तक महानता का अनुभव कराते हैं।
  • अब भी कैसी भी आत्मा को लक्ष्मी-नारायण वा सीता-राम वा देवियां बना देते हैं तो साधारण व्यक्ति में भी महानता का अनुभव कर सिर झुकाते हैं ना।
  • जानते भी हैं कि यह वास्तव में नारायण वा राम आदि नहीं हैं, बनावटी हैं, फिर भी उस समय महानता को सिर झुकाते हैं, नमन-पूजन करते हैं।
  • लेकिन आप तो स्वयं चैतन्य देव-देवियों की आत्माएं हो।
  • आप चैतन्य आत्माओं से कितनी महानता की अनुभूति होनी चाहिए! होती है?
  • आपके श्रेष्ठ भाग्य को मन से नमस्कार करें, हाथ वा सिर से नहीं।
  • लेकिन मन से आपके भाग्य का अनुभव कर स्वयं भी खुशी में नाचें। इतनी श्रेष्ठ पढ़ाई की प्राप्ति श्रेष्ठ भाग्य है।
  • लोग पढ़ाई पढ़ते ही हैं इस जीवन के शरीर निर्वाह अर्थ कमाई के लिए जिसको सोर्स ऑफ इनकम कहा जाता है।
  • आपकी पढ़ाई द्वारा सोर्स ऑफ इनकम कितना है?
  • मालामाल हो ना।
  • आपकी इनकम का हिसाब क्या है?
  • उनका हिसाब होगा लाखों में, करोड़ों में।
  • लेकिन आपका हिसाब क्या है? आपकी कितनी इनकम है?
  • कदम में पद्म।
  • तो सारे दिन में कितने कदम उठाते हो और कितने पद्म जमा करते हो?
  • इतनी कमाई और किसकी है?
  • कितना बड़ा भाग्य है आपका!
  • तो ऐसे अपनी पढ़ाई के भाग्य को इमर्ज रूप में अनुभव करो।
  • किसी से पूछते हैं तो कहते हैं - ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी तो हैं, बन तो गये हैं।
  • लेकिन ब्रह्माकुमार वा ब्रह्माकुमारी अर्थात् श्रेष्ठ भाग्य की लकीर मस्तक में चमकती दिखाई दे।
  • ऐसे नहीं कि ब्रह्माकुमार वा ब्रह्माकुमारी तो हैं लेकिन मिल जायेगा, कुछ तो बन ही जायेंगे, चल तो रहे ही हैं, बन तो गये ही हैं...।
  • बन गये हैं या भाग्य को देखकर के उड़ रहे हैं?
  • इसमें बन तो गये हैं, बन ही रहे हैं, चल ही रहे हैं... ये बोल किसके हैं?
  • श्रेष्ठ भाग्यवान के ये बोल हैं?
  • ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी अर्थात् मौज से मोहब्बत की जीवन बिताने वाले। ऐसे नहीं कि कभी मजबूरी, कभी मोहब्बत।
  • जब कोई समस्या आती है तो क्या कहते हो?
  • चाहते नहीं हैं लेकिन मजबूर हो गये हैं।
  • भाग्यवान अर्थात् मजबूरी खत्म, मोहब्बत से चलने वाले।
  • चाहते तो हैं लेकिन... ऐसी भाषा भाग्यवान ब्राह्मण आत्माओं की नहीं है।
  • भाग्यवान आत्माएं मोहब्बत के झूले में मौज में उड़ती हैं।
  • उड़ती कला की मौज में रहती हैं।
  • मजबूरी उनके आगे आ नहीं सकती। समझा?
  • अपना श्रेष्ठ भाग्य मर्ज नहीं रखो, इमर्ज करो।
  • तीसरी बात - सतगुरू द्वारा क्या भाग्य प्राप्त हुआ?
  • पहले तो महामंत्र मिला।
  • सतगुरू का महामंत्र क्या मिला?
  • पवित्र बनो, योगी बनो।
  • जन्मते ही यह महामंत्र सतगुरू द्वारा प्राप्त हुआ और यही महामंत्र सर्व प्राप्तियों की चाबी सर्व बच्चों को मिली।
  • “योगी जीवन, पवित्र जीवन'' ही सर्व प्राप्तियों का आधार है इसलिए यह चाबी है।
  • अगर पवित्रता नहीं, योगी जीवन नहीं तो अधिकारी होते हुए भी अधिकार की अनुभूति नहीं कर सकेंगे इसलिए यह महामंत्र सर्व खजानों के अनुभूति की चाबी है।
  • ऐसी चाबी का महामंत्र सतगुरू द्वारा सभी को श्रेष्ठ भाग्य में मिला है और साथ-साथ सतगुरु द्वारा वरदान प्राप्त हुए हैं।
  • वरदानों की लिस्ट तो बहुत लम्बी है ना!
  • कितने वरदान मिले हैं?
  • इतने वरदानों का भाग्य प्राप्त है जो वरदानों से ही सारी ब्राह्मण जीवन बिता रहे हो और बिता सकते हो।
  • कितने वरदान हैं, लिस्ट का मालूम है?
  • तो वर्सा भी है, पढ़ाई भी है, महामंत्र की चाबी और वरदानों की खान भी है।
  • तो कितने भाग्यवान हो!
  • या छिपा कर रखा है, आगे चल अन्त में खोलेंगे?
  • बहुतकाल से भाग्य की अनुभूति करने वाले अन्त में भी पद्मापद्म भाग्यवान प्रत्यक्ष होंगे।
  • अब नहीं तो अन्त में भी नहीं।
  • अभी है तो अन्त में भी है।
  • ऐसे कभी नहीं सोचना कि सम्पूर्ण तो अन्त में बनना है।
  • सम्पूर्णता की जीवन का अनुभव अभी से आरम्भ होगा तब अन्त में प्रत्यक्ष रूप में आयेंगे।
  • अभी स्वयं को अनुभव हो, औरों को अनुभव हो, जो समीप सम्पर्क में आये हैं उन्हों को अनुभव हो और अन्त में विश्व में प्रत्यक्ष होगा। समझा?
  • बापदादा आज सर्व बच्चों के भाग्य की श्रेष्ठ लकीर को देख रहे थे।
  • जितना बाप ने भाग्य देखा उतना ही बच्चे सदा अनुभव कम करते हैं।
  • भाग्य की खान सभी को प्राप्त है।
  • लेकिन कोई को कार्य में लगाना आता है और कोई को कार्य में लगाना नहीं आता है।
  • जितना लगा सकते उतना नहीं लगाते हैं।
  • मिला सबको एक जैसा है लेकिन खजाने को कार्य में लगाकर बाप का खजाना सो अपना खजाना अनुभव करना - इसमें नम्बरवार हैं।
  • बाप ने नम्बरवार नहीं दिया, दिया सबको नम्बरवन है लेकिन कार्य में लगाना - इसमें अपने आप नम्बर बना दिये हैं।
  • समझा, नम्बर क्यों बने हैं?
  • जितना यूज़ करेंगे, कार्य में लगायेंगे, उतना बढ़ता जायेगा।
  • मर्ज करके रख देंगे तो बढ़ेगा नहीं और स्वयं भी अनुभव नहीं करेंगे तो दूसरों को भी अनुभव नहीं करा सकेंगे इसलिए चलन और चेहरे में लाओ।
  • समझा, क्या करना है? जो भी नम्बर आवे अच्छा है।
  • चलो, 108 नहीं तो 16000 में ही मिल जाये, कुछ तो बनेंगे।
  • लेकिन 16 हजार की माला सदा नहीं जपी जाती, कहाँ-कहाँ और कभी-कभी जपते हैं।
  • 108 की माला तो सदा जपते रहते हैं।
  • अब मैं कौन?
  • यह स्वयं जानो।
  • अगर बाप कहेंगे वा और कोई कहेंगे कि आप तो 16000 में आयेंगे तो क्या कहेंगे? मानेंगे?
  • क्वेश्चन मार्क शुरू हो जायेंगे इसलिए अपने आपको जानो मैं कौन?
  • अच्छा! चारों ओर के सर्वश्रेष्ठ भाग्यवान आत्माओं को, सर्व जन्म से प्राप्त परमात्म-जन्म अधिकारी आत्माओं को, सर्व बाप द्वारा श्रेष्ठ वर्सा और परमात्म-पालना लेने वाले, सत् शिक्षक द्वारा श्रेष्ठ पढ़ाई का श्रेष्ठ पद और श्रेष्ठ कमाई करने वाले, सतगुरु द्वारा महा-मंत्र और सर्व वरदान प्राप्त करने वाले - ऐसे अति श्रेष्ठ पद्मापद्म, हर कदम में पद्म जमा करने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद, प्यार और नमस्ते।
  • अव्यक्त बापदादा से पर्सनल मुलाकात
  • यथार्थ सेवा वा यथार्थ याद की निशानी है - निर्विघ्न रहना और निर्विघ्न बनाना सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य के गीत स्वत: ही मन में बजते रहते हैं?
  • यह अनादि अविनाशी गीत है।
  • इसको बजाना नहीं पड़ता लेकिन स्वत: ही बजता है।
  • सदा यह गीत बजना अर्थात् सदा ही अपने खुशी के खजाने को अनुभव करना।
  • सदा खुश रहते हो?
  • ब्राह्मणों का काम ही है खुश रहना और खुशी बांटना।
  • इसी सेवा में सदा बिज़ी रहते हो?
  • वा कभी भूल भी जाते हो?
  • जब माया आती है फिर क्या करते हो?
  • जितना समय माया रहती है उतना समय खुशी का गीत बन्द हो जाता है।
  • बाप का सदा साथ है तो माया आ नहीं सकती।
  • माया आने के पहले बाप का साथ अलग करके अकेला बनाती है, फिर वार करती है।
  • अगर बाप साथ है तो माया नमस्कार करेगी, वार नहीं करेगी।
  • तो माया को जब अच्छी तरह से जान गये हो कि यह दुश्मन है, तो फिर आने क्यों देते हो?
  • साथ छोड़ देते हो ना, इसलिए माया को आने का दरवाजा मिल जाता है।
  • दरवाजे को डबल लॉक लगाओ, एक लॉक नहीं।
  • आजकल एक लॉक नहीं चलता। तो डबल लॉक है - याद और सेवा।
  • सेवा भी नि:स्वार्थ सेवा यही लॉक है।
  • अगर नि:स्वार्थ सेवा नहीं तो वह लॉक ढीला लॉक हो जाता है, खुल जाता है। याद भी शक्तिशाली चाहिए।
  • साधारण याद है तो भी लॉक नहीं कहेंगे।
  • तो सदा चेक करो - याद तो है लेकिन साधारण याद है या शक्तिशाली याद है?
  • ऐसे ही, सेवा करते हो लेकिन नि:स्वार्थ सेवा है या कुछ न कुछ स्वार्थ भरा है?
  • सेवा करते हुए भी, याद में रहते हुए भी यदि माया आती है तो जरूर सेवा अथवा याद में कोई कमी है।
  • सदा खुशी के गीत गाने वाली श्रेष्ठ भाग्यवान आत्माएं हैं - इस स्मृति से आगे बढ़ो।
  • यथार्थ योग वा यथार्थ सेवा - यह निशानी है निर्विघ्न रहना और निर्विघ्न बनाना।
  • निर्विघ्न हो या कभी-कभी विघ्न आता है?
  • फिर कभी पास हो जाते हो, कभी थोड़ा फेल हो जाते हो।
  • कोई भी बात आती है, उसमें अगर किसी भी प्रकार की जरा भी फीलिंग आती है - यह क्यों, यह क्या... तो फीलिंग आना माना विघ्न।
  • सदैव यह सोचो कि व्यर्थ फीलिंग से परे, फीलिंग-प्रूफ आत्मा बन जायें।
  • तो मायाजीत बन जायेंगे।
  • फिर भी, देखो - बाप के बन गये, बाप का बनना यह कितनी खुशी की बात है!
  • कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा कि भगवान् के इतने समीप सम्बन्ध में आयेंगे!
  • लेकिन साकार में बन गये! तो क्या याद रखेंगे?
  • सदा खुशी के गीत गाने वाले।
  • यह खुशी के गीत कभी भी समाप्त नहीं हो सकते हैं।
  • टीचर्स का अर्थ ही है अपने फीचर्स से सबको फरिश्ते के फीचर्स अनुभव कराने वाली।
  • ऐसी टीचर्स हो?
  • साधारण रूप नहीं दिखाई दे, सदा फरिश्ता रूप दिखाई दे क्योंकि टीचर्स निमित्त हो ना।
  • तो जो निमित्त बनते हैं वो जो स्वयं अनुभव करते हैं वह औरों को कराते हैं।
  • यह भी भाग्य है जो निमित्त बने हो।
  • अभी इसी भाग्य को स्वयं अनुभव में बढ़ाओ और दूसरों को अनुभव कराओ।
  • सबसे विशेष बात अनुभवी-मूर्त बनो।


  • ( All Blessings of 2021-22)
  • जिम्मेवारी की स्मृति द्वारा सदा अलर्ट रहने वाले शुभभावना, शुभ कामना सम्पन्न भव

    आप बच्चे प्रकृति और मनुष्यात्माओं की वृत्ति को परिवर्तन करने के जिम्मेवार हो।

    लेकिन यह जिम्मेवारी तब ही निभा सकेंगे जब आपकी वृत्ति शुभ भावना, शुभ कामना से सम्पन्न, सतोप्रधान और शक्तिशाली होगी।

    जिम्मेवारी की स्मृति सदा अलर्ट बना देगी।

    हर आत्मा को मुक्ति-जीवनमुक्ति दिलाना, वर्से के अधिकारी बनाना यह बहुत बड़ी जिम्मेवारी है इसलिए कभी अलबेलापन न आये, वृत्ति साधारण न हो।



  • (All Slogans of 2021-22)
    • अपने हर कर्म द्वारा सहारेदाता बाप को प्रत्यक्ष करो तो अनेक आत्माओं को किनारा मिल जायेगा।