28-09-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - सबको बाप का परिचय दे सुखदाई बनाओ, देही-अभिमानी बनो तो टाइम सफल होता रहेगा, विकर्मों से बचे रहेंगे''

 

प्रश्नः-

जिन बच्चों की बुद्धि को माया ताला लगा देती है - उनके मुख से कौन से बोल निकलते हैं?

 

उत्तर:-

उनके मुख से यही बोल निकलते हैं कि हमारा तो डायरेक्ट शिवबाबा से कनेक्शन है।

संगदोष के कारण उनकी मूढ़बुद्धि हो जाती है।

सतगुरू का निंदक बन पड़ते हैं।

जब कोई कहते हमारा डायरेक्ट कनेक्शन है तो उन्हें मुरली भी प्रेरणा से सुननी चाहिए।

ऐसे निंदक बच्चे ठौर नहीं पाते।

उनकी बुद्धि को माया ताला लगा देती है।

...full possibilities...

 

  • ओम् शान्ति।
  • अभी तुम बच्चे आत्म-अभिमानी बने हो।
  • बाबा ने देही-अभिमानी बनाया है।
  • जितना देही-अभिमानी बनेंगे, बाप को अच्छी रीति याद करेंगे तो विकर्माजीत बनेंगे।
  • देह-अभिमानी बनने से विकर्म भस्म नहीं होंगे और ही जास्ती विकर्म होते रहेंगे फिर नतीज़ा क्या होगा?
  • एक तो सजा खानी पड़ेगी और पद भी भ्रष्ट हो जायेगा।
  • बाबा से कोई भी पूछ सकते हैं कि बाबा अगर इस समय हमारा शरीर छूट जाए तो भविष्य में हम किस गति को पायेंगे?
  • मौत तो सामने खड़ा है।
  • ब्राह्मण कुल भूषण को तो बिल्कुल ह्रास (दु:ख) नहीं आना चाहिए।
  • उनको कहा जाता है महावीर।
  • शास्त्रों में तो स्थूल रूप में बातें ले गये हैं।
  • यह तो ज्ञान की बातें हैं।
  • तुम बच्चे जानते हो - निराकार शिवबाबा ने आत्मा की भी पूरी पहचान दी है कि तुम्हारी आत्मा में क्या-क्या पार्ट नूँधा हुआ है।
  • बाप ही बैठ समझाते हैं - मनुष्य तो देही-अभिमानी हैं नहीं।
  • देही के बाप को ही नहीं जानते, यथार्थ रीति से, इसलिए इसको घोर अन्धियारा कहा जाता है।
  • कलियुग को घोर अन्धियारा, सतयुग को घोर सोझरा कहा जाता है।
  • आत्मायें सब काली हैं अर्थात् ब्लैक आउट है।
  • सतयुग में देवी-देवता धर्म की आत्मायें रोशनी में थी।
  • इस भारत में ही दीपमाला मनाई जाती है।
  • तुम जानते हो यहाँ हमारी आत्मा घोर अन्धियारे में है।
  • बाप घोर सोझरे में ले जाते हैं।
  • आत्माओं को कुछ पता नहीं कि हम कितने जन्म और कैसे लेते हैं।
  • अब तुम जान चुके हो - बाप द्वारा हमको सृष्टि के आदि मध्य अन्त का ज्ञान मिला है।
  • दुनिया में कोई भी तुमको सृष्टि के आदि मध्य अन्त की नॉलेज नहीं बता सकेंगे।
  • वह तो न आत्मा को, न परमात्मा को जानते हैं।
  • भल कहते हैं कि मैं आत्मा हूँ, परन्तु मैं क्या हूँ, यह कुछ भी पता नहीं।
  • भ्रकुटी के बीच सितारा चमकता है सो क्या!
  • उनमें क्या पार्ट भरा हुआ है, कितने जन्म लेते हैं?
  • यह ज्ञान कोई में भी नहीं है।
  • बाप आकर समझाते हैं, सेल्फ रियलाइजेशन कराते हैं।
  • कोई से पूछो कि आत्मा का बाप कौन है?
  • कोई कहेंगे श्रीकृष्ण, कोई कहेंगे महावीर।
  • हम आत्मा हैं, हमारा बाप निराकार शिव है।
  • एक भी ऐसे कह न सके।
  • न तो रचयिता, न रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं, इसलिए उनको नास्तिक कहा जाता है।
  • बाप कहते हैं तुम नास्तिक शूद्र थे।
  • अब ब्राह्मण आस्तिक बने हो।
  • बाप परिचय देते हैं कि मैं क्या पार्ट बजाता हूँ।
  • कोई भी बाप का परिचय दे न सके।
  • बाप का पार्ट क्या है, समझा न सके।
  • तुम भी नम्बरवार समझते हो।
  • देही-अभिमानी होने कारण अवस्था अच्छी रहती है।
  • देह-अभिमान में आकर फिर झरमुई-झगमुई करने लग पड़ते हैं, इसलिए ऊंच पद पा न सकें।
  • न विकर्म विनाश होते हैं।
  • बाप समझाते तो बहुत अच्छा हैं।
  • जीते जी मरने का अर्थ कितना सहज है।
  • तुम जीते जी मरे हुए हो।
  • अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते हो।
  • हमारी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट है, वह भी जानते हो, बाप को भी जानते हो कि वह कैसे ज्ञान का सागर, पतित-पावन है।
  • भारत ही पावन श्रेष्ठ था, अभी तो पतित है।
  • परन्तु पतित अपने को समझते थोड़ेही हैं।
  • अभी तुम बच्चे जानते हो पहले तो कोई भी काम के नहीं थे।
  • सब मरे पड़े थे, सब कब्रिस्तान बना हुआ है।
  • अब फिर परिस्तान के मालिक बन रहे हैं।
  • भारत परिस्तान था, अब कब्रिस्तान है।
  • सब एक दो को दु:ख देते ही रहते हैं।
  • बाप कहते हैं कि अभी तुम सबको बाप का परिचय दे सुखदाई बनाओ।
  • देही-अभिमानी न होने कारण टाइम वेस्ट करते रहते हैं।
  • घड़ी-घड़ी देह-अभिमान आ जाता है।
  • तुम बच्चों को कब ह्रास (दु:ख) नहीं होना चाहिए।
  • कोई-कोई तो ह्रास में आ जाते हैं।
  • कोई समझते हैं बाबा रामराज्य की स्थापना कर रहे हैं, रावण राज्य का विनाश होना है, इसमें कोई डरने की बात नहीं है।
  • हाँ, गवर्मेंट आदि मकान खाली कराती है तो करना पड़ता है।
  • बाबा की याद में शरीर भी छूट जाए तो अच्छा है।
  • सदैव तैयार रहना चाहिए।
  • माया का वार अच्छे-अच्छे बच्चों पर भी हो जाता है।
  • कोई तो ऐसे मूर्ख बन जाते हैं, कहते हैं कि हमारा तो डायरेक्ट शिव-बाबा से कनेक्शन है।
  • परन्तु ब्रह्मा के आगे तो जरूर आना पड़ेगा ना।
  • अच्छा घर में भी जाकर बैठ जाओ फिर मुरली कैसे सुनेंगे!
  • क्या करेंगे?
  • कहते यह ब्रह्मा भी पुरूषार्थी है, हम भी पुरूषार्थी हैं।
  • पढ़ते तो सब शिवबाबा से हैं, परन्तु ब्रह्मा पास आयेंगे तब तो सुनेंगे ना।
  • प्रेरणा से सुनकर दिखाओ तो मालूम पड़े।
  • फिर कभी-कभी बाबा मुरली बंद भी कर देते हैं।
  • ब्रह्मा से जन्म लिया और मर गया फिर खत्म।
  • वर्सा कैसे पायेंगे।
  • ऐसे भी मंद बुद्धि बहुत संगदोष में खराब हो जाते हैं।
  • फिर बताओ उनकी क्या गति होगी?
  • सतगुरू का निंदक बने तो ऊंच ठौर पा नहीं सकेंगे।
  • गुरू ब्रह्मा कहते हैं ना।
  • गुरू विष्णु, गुरू शंकर नहीं कहेंगे।
  • गुरू सिर्फ ब्रह्मा ही है।
  • तुम भी माता गुरू बनती हो।
  • सतगुरू द्वारा बनी हो न कि कलियुगी गुरूओं द्वारा।
  • तुम ब्राह्मण ब्राह्मणियां बनी हो।
  • तुम्हारी है रूहानी यात्रा।
  • मेहनत है, माया किसकी बुद्धि को ताला लगा देती है तो फिर उल्टा-सुल्टा बोलते रहते हैं।
  • वेस्ट आफ टाइम करते हैं।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • बापदादा के हस्त-लिखित पत्रों की कापी:
  • ज्ञान के सागर पतित-पावन निराकार शिव भगवानुवाच, अपने रथ प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण ब्रह्मा मुख वंशावली ब्रह्माकुमार कुमारियों प्रति- हे बच्चों, तुमको समझाया गया है कि पतित-पावन को पतित दुनिया में आकर पतित शरीर में प्रवेश करना पड़ता है, वह पतित शरीर कौन सा है?
  • जो पूरे 84 जन्मों का चक्र लगाकर अभी अन्तिम जन्म में है। पहला जन्म तो है पावन श्रीकृष्ण - श्रीराधे, स्वयंवर के बाद फिर श्री लक्ष्मी-नारायण बनते हैं।
  • अभी वह देवताओं का धर्म है नहीं।
  • अनेक अधर्म हैं।
  • अब फिर से बाप आकर वही सतयुगी देवी-देवताओं का धर्म स्थापन करते हैं।
  • प्रजापिता ब्रह्मा मुख वंशावली बच्चे जो ब्राह्मण ब्राह्मणी कहलाते हैं।
  • आत्मा रूप में आपस में भाई-भाई हैं।
  • फिर ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट हो भाई बहिन बनते हैं।
  • वर्सा पाना है ब्रह्माकुमार-कुमारियों को परमपिता परमात्मा से।
  • शिवबाबा अपने बच्चों (आत्माओं) को कहते हैं, अब देही-अभिमानी वा आत्म-अभिमानी भव और मुझ अपने बेहद के बाप याद करो, जो इस योग अग्नि वा याद द्वारा सिर पर विकर्मों का बोझा है जन्म-जन्मान्तर का, सो भस्म हो जायेगा।
  • देह का अभिमान छोड़ अपने को आत्मा निश्चय कर बेहद के बाप मुझ परमपिता को याद करो तो तुम फिर से पवित्र सतोप्रधान बन जायेंगे।
  • द्वापर में जब से रावणराज्य की स्थापना होती है तब से आत्मा जो सच्चे सोने समान है, जिसको सतोप्रधान गोल्डन एज कहा जाता है, सो अन्त में आइरन एजड तमोप्रधान कही जाती है अर्थात् सतयुग में जो पावन थे सो पतित बन जाते हैं कलियुग में।
  • अब फिर पावन बनने लिए खास भारतवासी पतित-पावन बाप को बहुत याद करते हैं क्योंकि मेरा अवतरण इस भाग्यशाली ब्रह्मा रथ में ही होता है।
  • इस भाग्यशाली रथ का नाम तो और ही होता है, उनको अपना बनाता हूँ।
  • इसमें प्रवेश कर प्रजापिता ब्रह्मा नाम रख देता हूँ।
  • कल्प पहले ड्रामा अनुसार प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण रच उन ब्रह्माकुमार/कुमारियों द्वारा पतित भारत को पावन भारत बनाया था फिर भी जबकि कल्प की अन्त में पतित बन आत्मा 84 का चक्र पूरा करती है तो फिर वही पतित दुनिया को पावन करने आना पड़ता है।
  • कल्प-कल्प अर्थात् हर 5 हजार वर्ष बाद मुझ सर्व के परमपिता परमात्मा को याद करते हैं, भक्ति मार्ग में।
  • और अन्त में जब भक्ति मार्ग पूरा होता है तो आता हूँ।
  • भक्ति मार्ग द्वापर से उतरता मार्ग है।
  • रावण अर्थात् 5 विकारों के कारण सबकी उतरती कला होती है और मनुष्य मात्र पतित बन दुर्गति को पाते हैं।
  • और मैं ब्राह्मण कुल भूषणों का बाप, टीचर, सतगुरू बनता हूँ।
  • मेरा तो कोई बाप, टीचर, गुरू नहीं है।
  • भारतवासी आसुरी सम्प्रदाय जो सतयुग में दैवी सम्प्रदाय थे उनका पिता तो हूँ परन्तु उनको फिर से सूर्य-वंशी देवी-देवता बनाने, जो प्रजापिता ब्रह्माकुमार/ब्रह्माकुमारी बनते हैं, कल्प पहले मिसल उनका शिक्षक बनता हूँ।
  • उनको सत्य ज्ञान देता हूँ।
  • सृष्टि चक्र के आदि मध्य अन्त का ज्ञान देकर उन्हें त्रिकालदर्शी बना रहा हूँ।
  • ताकि नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार कल्प पहले मिसल चक्रवर्ती सूर्यवंशी दैवी स्वराज्य फिर से स्थापन हो।
  • बच्चों को सिद्ध कर बताया जा रहा है कि तुम इस समय सर्वोत्तम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण कुल भूषण हो।
  • दैवी कुल से यह उत्तम कुल है क्योंकि तुम ईश्वरीय कुल में हो।
  • भारत 5 हजार वर्ष पहले स्वर्ग श्रेष्ठाचारी वैकुण्ठ दैवी स्वराज्य था, तब तुम सूर्यवंशी देवी-देवता थे फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र वंश में आये।
  • अब प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण बने हो।
  • इसे 84 जन्मों का चक्र कहा जाता है।
  • सब तो 84 जन्म नहीं लेते हैं, पीछे-पीछे अनेक धर्म द्वापर से मठ पंथ स्थापन होते आये हैं और सृष्टि वृद्धि को पाती आई है।
  • वास्तव में प्रजापिता ब्रह्मा मनुष्य सृष्टि झाड़ का फाउन्डेशन है, जिसको कल्प वृक्ष कहा जाता है।
  • गोया शिवबाबा मनुष्य मात्र का बाबा, पिता है और ब्रह्मा ग्रैन्ड फादर है।
  • मनुष्य सृष्टि झाड़ वा जीनालाजिकल ट्री का पहला मनुष्य, आदम वा एडम वा प्रजापिता ब्रह्मा है।
  • प्रजापिता ब्रह्मा और मुख वंशावली, परमपिता मुझ परमात्मा शिव से सहज राजयोग और ज्ञान सीख सुख घनेरे सोझरे में जाते हो।
  • गाया भी जाता है ज्ञान सूर्य प्रगटा... ज्ञान सूर्य भी पतित-पावन परमपिता परमात्मा को ही कहा जाता है।
  • तुम ज्ञान सोझरे में हो बाकी सब अज्ञान अन्धियारे में हैं।
  • 2- बच्चों ने ज्ञान सुना और बाबा कहा तो वर्सा मिलना ही है।
  • एक तो बाप को दूसरा सृष्टि चक्र को याद करना है और तो कोई तकलीफ नहीं।
  • बाप जानते हैं कि बच्चों ने भक्ति मार्ग में बहुत तकलीफ देखी है, अभी और क्या तकलीफ बच्चों को देवें।
  • जितना भक्ति में मेहनत उतना यहाँ चुप रहना है।
  • जितना योग में रहेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे।
  • कहते हैं ना - त्वमेव माताश्च पिता...दूसरे लौकिक माँ बाप, भाई, बन्धु इस समय सब दु:ख देते हैं।
  • यह फिर सबको सुख देते हैं, सदा सुखी बनाते हैं। अच्छा।
  • ...अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुड़मार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।


  • 1) हम ऊंचे ते ऊंच सर्वोत्तम ब्राह्मण कुल भूषण हैं - इस खुशी में रहना है।

    स्वयं भगवान बाप, टीचर, गुरू के रूप में हमें मिला है इस स्मृति में सदा हर्षित रहना है।

    2) किसी भी बात के दु:ख (ह्रास) में नहीं आना है।

    झरमुई झगमुई में समय बरबाद नहीं करना है।



  • ( All Blessings of 2021-22)
  • विश्व कल्याणकारी बन अशान्त आत्माओं को शान्ति का दान देने वाले मास्टर दाता भव

    दुनिया में हंगामा हो, झगड़े हो रहे हो, ऐसे अशान्ति के समय पर आप मास्टर शान्ति दाता बन औरों को भी शान्ति दो, घबराओ नहीं क्योंकि जानते हो जो हो रहा है वो भी अच्छा और जो होना है वह और अच्छा।

    विकारों के वशीभूत मनुष्य तो लड़ते ही रहेंगे।

    उनका काम ही यह है लेकिन आप विश्व कल्याणकारी आत्मायें सदा मास्टर दाता बन शान्ति का दान देते रहो।

    यही आपकी सेवा है।



  • (All Slogans of 2021-22)
    • अपनी सर्व प्राप्तियों को सामने रखो तो कमजोरियाँ सहज समाप्त हो जायेंगी।