26-09-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - रूहानी बाप ने यह रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा है, इस यज्ञ के रक्षक तुम ब्राह्मण हो, तुम गायन लायक बनते हो, लेकिन अपनी पूजा नहीं करा सकते हो''
प्रश्नः-
तुम बच्चों में जब ज्ञान की पराकाष्ठा हो जायेगी, तो उस समय की स्थिति क्या होगी?
उत्तर:-
उस समय तुम्हारी स्थिति अचल, अडोल होगी।
किसी भी प्रकार के माया के तूफान हिला नहीं सकेंगे।
तुम्हारी कर्मातीत अवस्था हो जायेगी।
अभी तक ज्ञान की पूरी पराकाष्ठा न होने के कारण माया के तूफान, स्वप्न आदि आते हैं।
यह युद्ध का मैदान है, नई-नई आशायें प्रगट हो जायेंगी।
परन्तु तुम्हें इनसे डरना नहीं है। बाप से श्रीमत ले आगे बढ़ते रहना है।
गीत:- तुम्हें पाके हमने जहाँ ...
|
- ओम् शान्ति।
- गीत तो बच्चों ने बहुत बार सुने हैं, अब उनके अर्थ में टिकना है।
- लक्ष्य को पकड़ लिया है कि अभी हम बेहद के बाप से बेहद का वर्सा ले रहे हैं, जिसको आधाकल्प से याद किया है।
- रावण वर्सा छीनते हैं।
- दुनिया वाले इस बात को नहीं जानते, तुम बच्चे जानते हो।
- यह रूद्र ज्ञान यज्ञ है,
- कोई मनुष्य का नहीं, प्रजापिता ने यह यज्ञ नहीं रचा है।
- यह रूद्र यज्ञ है।
- ज्ञान सागर अथवा शिव ने यह यज्ञ रचा है।
- यज्ञ तो अनेक प्रकार के रचते हैं ना।
- जैसे दक्ष प्रजापति कहते हैं।
- अब दक्ष प्रजापति तो है नहीं।
- ब्रह्मा है प्रजापिता, दक्ष प्रजापति अक्षर नाम कहाँ से आया?
- बाप बैठ समझाते हैं - यह रांग बनाया हुआ है।
- शास्त्रों में भी लम्बी चौड़ी कथायें लिख दी हैं।
- अब बाप कहते हैं जो भी सुनते आये हो - सब भूलो।
- मैं जो तुमको सुनाता हूँ वह सुनो।
- प्रजापिता तो एक ही होगा ना।
- जो भी यज्ञ रचते हैं वह सब हैं मटेरियल यज्ञ।
- यह है रूहानी बाप का रूहानी यज्ञ, इसमें भी ब्राह्मण चाहिए।
- वह ब्राह्मण तो हैं कुख वंशावली।
- तुम हो मुख वंशावली।
- मुख वंशावली कब पुजारी हो न सकें।
- तुम पूज्य बनते हो, वह हैं पुजारी।
- तुम गायन लायक बनते हो।
- तुम्हारी पूजा अभी नहीं हो सकती।
- अगर देहधारी की पूजा करते हैं तो यह रांग है।
- पवित्र हैं ही सतयुग में देवतायें।
- हिन्दुओं की रसमरिवाज है जो स्त्री को कहा जाता है पति ही तुम्हारा गुरू ईश्वर सब कुछ है।
- तो पति के चरण धोकर पीती है।
- आजकल तो वह रिवाज नहीं है।
- सिविल मैरेज में यह अक्षर नहीं निकालते हैं कि पति तुम्हारा गुरु ईश्वर आदि है।
- यह सब है ठगी, इसलिए चित्र भी ऐसा बनाया है कि लक्ष्मी, नारायण के पाँव दबा रही है।
- समझते हैं वह भी यह सब करती थी।
- हिन्दू नारी को यह करना चाहिए।
- हाफ पार्टनर से यह धन्धा कराया जाता है क्या?
- किसम-किसम के होते हैं।
- तो जो रसम देखते हैं वह चित्र बना देते हैं।
- अब वहाँ ऐसे थोड़ेही हो सकता जो लक्ष्मी बैठ पांव दबाये।
- बाप कहते हैं - मैं द्रोपदी के आकर पांव दबाता हूँ।
- उन्होंने फिर श्रीकृष्ण का रूप दे दिया है।
- यह सब हैं व्यर्थ बातें।
- वहाँ राम को तो 4 भाई होते नहीं।
- वहाँ बच्चा भी तो एक होता है।
- चार बच्चे कहाँ से आये!
- बाप कहते हैं मैं तुमको इन सब शास्त्रों का सार बताता हूँ।
- यह बातें तुम बच्चों को समझाई जाती हैं।
- तुम समझा सकते हो, बाप कहते हैं तुम जो यह कसम उठवाते हो वह झूठा उठवाते हो।
- अब कहते हैं गीता श्रीकृष्ण ने गाई।
- हाथ में गीता उठाते हैं फिर कहते ईश्वर को हाज़िर-नाज़िर जान सच बोलना।
- श्रीकृष्ण भगवान को हाज़िर-नाज़िर जान, यह नहीं कहते।
- ईश्वर के लिए ही कहते हैं।
- तो श्रीकृष्ण गीता का भगवान है - यह अभी बुद्धि से निकाल दो।
- झूठा कसम होने के कारण उनमें ताकत नहीं रही है।
- एक्यूरेट है एक धर्मराज।
- सुप्रीम जज वही सच्चा है।
- सतयुग में तो जज आदि होते नहीं क्योंकि वहाँ कोई ऐसी बात नहीं होती।
- सब हिसाब-किताब चुक्तू कर वहाँ चले जायेंगे।
- फिर नये सिर सतोप्रधान सतो रजो तमो में आयेंगे।
- हर एक वस्तु जो तुम देखते हो नई से पुरानी जरूर होती है।
- दुनिया भी नई से पुरानी होती है।
- यह पुरानी दुनिया है।
- परन्तु कितने तक पुरानी है यह किसको पता नहीं है।
- सदैव चार भागों में बांटा जाता है।
- यह भी 4 युग हैं।
- पहले नया फिर चौथा पुराना फिर आधा पुराना फिर सारा पुराना हो जाता है।
- बिल्कुल ही टूटने के लायक हो जाता है।
- इस कल्प की आयु 5 हजार वर्ष है।
- अभी तुम हो अन्त में।
- अन्तिम जन्म में तुम बाप से वर्सा पाते हो - 21 जन्मों के लिए।
- सतयुग त्रेता में 21 जन्म, द्वापर कलियुग में 63 जन्म क्यों होते हैं?
- क्योंकि पतित बनने से आयु कम हो जाती है।
- आधाकल्प आयु बड़ी होती है।
- अभी तुम योग सीखते हो।
- तुम बच्चे यहाँ योग वा याद सीखने के लिए नहीं आये हो।
- यहाँ तुम आते हो सम्मुख मुरली सुनने।
- मुरली तो बहुत प्यारी लगती है।
- योग तो तुम कहाँ भी बैठकर कर सकते हो।
- स्टूडेन्ट के इम्तहान का जब टाइम होता है तो कहाँ भी होंगे बुद्धि में इम्तहान की ही बातें घूमती रहेंगी।
- यहाँ तुम्हारी पढ़ाई और योग इकट्ठे हैं।
- पढ़ाने वाले को भी याद करना पड़े।
- बाप कहते हैं मामेकम् याद करो।
- भूल से श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है।
- संन्यासी आदि तो श्रीकृष्ण को याद करते नहीं हैं।
- बाकी किसने कहा मनमना-भव?
- तत्व वा ब्रह्म तो नहीं कह सकता।
- बाप इस मुख का आधार लेकर कहते हैं - बच्चे मामेकम् याद करो।
- यह सब प्वाइंट्स बुद्धि में धारण करनी होती है, फिर समझाना होता है।
- कांग्रेसी लोग कितना आवाज से बोलते थे।
- उन्हों का लीडर था - बापू जी।
- वह था जिस्मानी बापू जी।
- यह है फिर रूहानी बाप।
- सभी का बाप तो गांधी जी हो न सके।
- शिवबाबा तो सबका बाप है ना।
- ब्रह्मा भी बाप है जरूर।
- परन्तु इस समय सिर्फ तुम जानते हो।
- सारी दुनिया तो नहीं मानेंगी क्योंकि समझते नहीं।
- यहाँ हम बापू निराकार शिवबाबा को कहते हैं।
- वह सभी का बाप है।
- बच्चों को कितनी प्वाइंट्स समझाते हैं।
- कभी आत्मा पर, कभी परमात्मा पर, कभी शास्त्रों पर।
- ढेर के ढेर भारत में शास्त्र हैं और धर्म वालों का तो एक ही शास्त्र होता है।
- यहाँ तो अनेक शास्त्र हैं।
- फालोअर्स भी जो कुछ सुनते सत-सत करते रहते हैं।
- एम-आबजेक्ट कुछ भी नहीं।
- जैसे राधा स्वामी पंथ है - अब नाम ता रखा है राधा-स्वामी।
- राधे का स्वामी तो भीकृष्ण है।
- वास्तव में जिस रूप से भारतवासी श्रीकृष्ण को समझते हैं, वैसे है नहीं।
- राधे तो कुमारी है।
- श्रीकृष्ण कुमार है।
- फिर कृष्ण का स्वामी कैसे कहेंगे!
- जब स्वयंवर बाद लक्ष्मी-नारायण बनें तब स्वामी कहा जाए।
- छोटेपन में तो आपस में खेलपाल करते हैं।
- तो वह कोई पक्का स्वामी थोड़ेही हुआ।
- बहुत हैं जो सगाई को भी तोड़ देते हैं।
- अब लक्ष्मी-नारायण तो दिखाते हैं, परन्तु नारायण के बाप का नाम क्या है?
- कभी बता न सकें।
- अब श्रीकृष्ण के मॉ बाप दिखाते हैं।
- राधे और श्रीकृष्ण दोनों के मॉ बाप अलग-अलग हैं।
- राधे और जगह की थी श्रीकृष्ण फिर और जगह का था।
- सतयुग की बातों का सारा अगड़ग-बगड़म कर दिया है।
- लक्ष्मी-नारायण के माँ बाप का नाम कहाँ।
- नारायण का बर्थ कहाँ।
- यह कोई भी नहीं जानते कि राधे-कृष्ण ही फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं।
- बाप कहते हैं भक्ति मार्ग की कितनी बड़ी सामग्री है।
- ज्ञान में तो सिर्फ बीज को जानना होता है।
- बीज के ज्ञान से सारा झाड़ बुद्धि में आ जाता है।
- तुम जानते हो ऊंच ते ऊंच भगवान है जो परमधाम में रहते हैं।
- वहाँ तो सभी आत्मायें रहती हैं।
- सूक्ष्मवतन में तो हैं सिर्फ ब्रह्मा-विष्णु-शंकर।
- ब्रह्मा और विष्णु तो पुनर्जन्म में आते हैं, बाकी शंकर नहीं आता।
- जैसे शिवबाबा सूक्ष्म है वैसे शंकर भी सूक्ष्म है तो उन्होंने फिर शिव शंकर को इकट्ठा कर दिया है।
- परन्तु हैं तो अलग-अलग ना।
- शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा स्थापना, विष्णु द्वारा पालना फिर शंकर द्वारा विनाश कराते हैं।
- ब्रह्मा सो विष्णु हो जाता है।
- ब्रह्मा-सरस्वती सो लक्ष्मी-नारायण बनते हैं।
- ततत्वम् तुम भी देवता घराने के हो ना।
- तो बाप तुम्हें सब राज़ समझाते रहते हैं।
- बाकी धारणा करने वाले नम्बरवार हैं, जिसने जो पद कल्प पहले पाया था - वही पुरुषार्थ चल रहा है।
- पुरूषार्थ बिगर प्रालब्ध बन न सके।
- पुरूषार्थ से समझा जाता है कल्प पहले भी इसने इतना किया था।
- अभी तुम्हारी पढ़ाई चल रही है।
- रुद्र माला विष्णु की माला गाई जाती है।
- बाकी ब्राह्मणों की माला है नहीं क्योंकि पुरुषार्थी हैं।
- आज अच्छा चलते हैं, कल माया का घूसा लग पड़ता है।
- रुद्र माला बनने से फिर ट्रांसफर हो जायेगी।
- ब्राह्मण तो पुरुषार्थी हैं।
- आज अच्छे चलते हैं तो कल गिर पड़ते हैं।
- तो माला बन न सके।
- आगे माला बनती थी फिर 3-4 नम्बर में आने वाले आज हैं नहीं।
- यह युद्ध का मैदान है ना।
- कुछ भी बात समझ में न आये तो पूछो क्योंकि तुमको औरों को भी समझाना है।
- कच्चे जो हैं वह मूँझ पड़ते हैं।
- ब्राह्मणों में भी नम्बरवार हैं।
- कोई-कोई तो पूछते भी हैं कि बाबा ने समझाया है - माया के तूफान बहुत आयेंगे, तो हम उन पर कैसे विजयी बनें?
- अनुभवी टीचर न हो तो कैसे समझा सकेगी?
- बाप समझाते हैं यह माया के तूफान, स्वप्न आदि सब आयेंगे।
- जब तक ज्ञान की पूरी प्राकाष्ठा आ जाए, कर्मातीत अवस्था हो - इस समय तो बहुत आयेंगे।
- बूढ़ों को और ही जवान बना देंगे।
- नई-नई आशायें प्रगट करेंगे।
- तुम कहेंगे आगे तो कभी ऐसे ख्याल भी नहीं आते थे।
- अरे युद्ध के मैदान में तो तुम अभी आये हो।
- वैद्य लोग कहते हैं कि इस दवाई से बीमारी सारी बाहर निकलेगी।
- तो बाबा अनुभवी है।
- सब कुछ बतलाते रहते हैं, इससे जरा भी डरना नहीं है।
- कहते हैं ज्ञान में आने से तो पता नहीं क्या हो गया है, इससे तो भक्ति अच्छी।
- बाबा तो कहते हैं भल जाओ भक्ति में।
- वहाँ तुमको यह तूफान नहीं आयेंगे।
- बाबा तो सब बातें समझाते हैं।
- रोज़ सुनने वालों की बुद्धि में पूरी धारणा होगी।
- मुख्य है ही नॉलेज से काम, फिर भल कहाँ भी जाओ।
- मुरली तुमको मिलती रहेगी, मुरली पढ़ने की मिलेट्री में भी मना नहीं हो सकती।
- मिलेट्री को ऐसे थोड़ेही कहेंगे कि बाइबल वा ग्रंथ आदि नहीं पढ़ो, सब पढ़ते हैं।
- उन्हों के मन्दिर भी होते हैं।
- तो मुरली कहाँ भी मिल सकती है।
- फिर भी तो लक्ष्य मिला हुआ है ना।
- मुख्य बात ही है बाप का परिचय देना।
- पहले तो निश्चय बैठे कि हमको पढ़ाने वाला नॉलेजफुल गॉड फादर है तब और बातों को समझ सकेंगे।
- गॉड फादर कैसे आकर पढ़ाते हैं, यह किसको पता नहीं है।
- लिखा हुआ भी है भगवानुवाच।
- उनका नाम शिव है।
- परम आत्मा है ना।
- परम अर्थात् सुप्रीम।
- परमधाम में तो सब रहते हैं।
- आत्माओं में भी सुप्रीम पार्ट तो किसका होगा ना।
- उनको क्रियेटर, डायरेक्टर, मुख्य एक्टर कहा जाता है।
- वह है रचयिता, करनकरावनहार, फिर पार्टधारी भी है।
- इसमें आकर कितना पार्ट बजाते हैं, जिससे भारत स्वर्ग बनता है।
- ऊंच ते ऊंच बाप शिवबाबा आया, क्या आकर किया?
- कुछ भी नहीं जानते।
- कल्प की आयु ही लम्बी कर दी है।
- बाप कहते हैं मुझे आना ही है कलियुग अन्त और सतयुग आदि में।
- सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, पावन दुनिया थी।
- हम सो पावन फिर हम सो पतित।
- चढ़ती कला उतरती कला कैसे होती है।
- अभी यह सब तुम्हारी बुद्धि में है।
- बाप कहते हैं बच्चे, सबको बाप का परिचय देते रहो।
- बाप जब स्वर्ग का रचयिता है तो जरूर हमको स्वर्ग की बादशाही मिलनी चाहिए।
- भारत को थी, अब नहीं है, इसलिए भगवान को आना ही पड़ता है।
- भारत ही शिवबाबा का बर्थप्लेस है।
- आकर तुमको स्वर्गवासी बनाया था।
- अब तुम भूल गये हो।
- भूल और अभुल का यह खेल है।
- इस नॉलेज को भूलने से फिर उतरती कला होती है।
- एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति चढ़ती कला।
- जीवनबंध में कितना समय लगा, यह बातें शास्त्रों में थोड़ेही हैं।
- जनक की बात है ना।
- बाप कहते हैं जो भी कुछ पढ़ा है सब भूल जाओ।
- बाप, टीचर, सतगुरू मैं ही हूँ - 21 जन्मों का तुमको वर्सा देता हूँ।
- फिर भी अहो मम माया तुम कब्रिस्तानी बना देती हो।
- शिवबाबा परिस्तानी बनाते हैं, माया बहुत बच्चों को धोखा देती है क्योंकि श्रीमत पर ठीक रीति नहीं चलते हैं।
...अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुड़मार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
1) मुरली रोज़ जरूर पढ़नी है।
माया के तूफानों से डरना नहीं है।
किसी भी प्रकार के धोखे से बचने के लिए श्रीमत लेते रहना है।
2) पढ़ाई और योग दोनों इकट्ठा हैं इसलिए पढ़ाने वाले बाप को याद करना है।
निश्चय बुद्धि बनना और बनाना है।
बाप का ही परिचय सबको देना है।
( All Blessings of 2021-22)
अकालतख्त पर बैठकर कर्मेन्द्रियों से सदा श्रेष्ठ कर्म कराने वाले कर्मयोगी भव
कर्मयोगी वह है जो अकाल तख्तनशीन अर्थात् स्वराज्य अधिकारी और बाप के वर्से के राज्य-भाग्य अधिकारी है।
जो सदा अकालतख्त पर बैठकर कर्म करते हैं, उनके कर्म श्रेष्ठ होते हैं क्योंकि सभी कर्मेन्द्रियां लॉ और ऑर्डर पर रहती हैं।
अगर कोई तख्त पर ठीक न हो तो लॉ और ऑर्डर चल नहीं सकता।
तो तख्तनशीन आत्मा सदा यथार्थ कर्म और यथार्थ कर्म का प्रत्यक्षफल खाने वाली होती है, उसे खुशी भी मिलती है तो शक्ति भी मिलती है।
(All Slogans of 2021-22)
- ब्रह्मा बाप के प्यारे वह हैं जिनका ब्राह्मण कल्चर से प्यार है।
|