24-09-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - पहला निश्चय करो कि मैं आत्मा हूँ, प्रवृत्ति में रहते अपने को शिवबाबा का बच्चा और पौत्रा समझकर चलो, यही मेहनत है

 

प्रश्नः-

तुम सब पुरूषार्थी बच्चे किस एक गुह्य राज़ को अच्छी तरह जानते हो?

 

उत्तर:-

हम जानते हैं कि अभी तक 16 कला सम्पूर्ण कोई भी बना नहीं है, सब पुरूषार्थ कर रहे हैं।

मैं सम्पूर्ण बन गया हूँ - यह कहने की ताकत किसी में भी नहीं हो सकती, क्योंकि अगर सम्पूर्ण बन जायें तो यह शरीर ही छूट जाए।

शरीर छूटे तो सूक्ष्मवतन में बैठना पड़े।

मूलवतन में तो कोई जा नहीं सकता, क्योंकि जब तक ब्राइडग्रूम न जाये, तब तक ब्राइड्स कैसे जा सकेंगी।

यह भी गुह्य राज़ है।

गीत:- मुखड़ा देख ले प्राणी.....

...full possibilities...

 

  • ओम् शान्ति।
  • शिव भगवानुवाच - अब यह तो बच्चे समझ गये हैं कि इनका नाम शिव तो नहीं है।
  • वह तो है निराकार शिव भगवानुवाच, बच्चे समझते हैं कि निराकार तो शिवबाबा को ही कहा जाता है और कोई मनुष्य मात्र के लिए नहीं कहेंगे।
  • निराकार पतित-पावन शिवबाबा ही ज्ञान का सागर है।
  • वह इस तन द्वारा बैठ समझाते हैं।
  • उसे ही परमपिता परमात्मा कहते हैं।
  • पिता को और अपनी आत्मा को समझना है।
  • मनुष्यों को अपनी आत्मा का पता नहीं है कि आत्मा क्या चीज़ है।
  • अंग्रेजी में कहा जाता है सेल्फ रियलाइजेशन।
  • सेल्फ यानी आत्मा क्या वस्तु है।
  • भल कहते भी हैं भ्रकुटी के बीच में सितारा रहता है।
  • बस सिर्फ कहने मात्र कह देते हैं।
  • आत्मा स्टॉर है - निराकार है तो उनका बाप भी तो निराकार होगा।
  • छोटा बड़ा तो हो नहीं सकता।
  • जैसे आत्मा है वैसे परमात्मा है।
  • वह है सुप्रीम।
  • सबसे ऊंच ते ऊंच।
  • पहले तो आत्मा को समझना है कि आत्मा किसकी सन्तान है।
  • वह कैसे पतित से पावन बनती है।
  • वह कैसे पुनर्जन्म लेती है, कुछ भी जानते नहीं।
  • पहले तो यह नॉलेज चाहिए कि आत्मा क्या वस्तु है।
  • बाप ही आकर आत्माओं को बतलाते हैं कि आत्मा स्टॉर मिसल है। अति सूक्ष्म है।
  • इन आंखों से देखा नहीं जा सकता।
  • देखने के लिए दिव्य दृष्टि चाहिए।
  • भल हॉस्पिटल में कितना माथा मारें, आत्मा को देखने के लिए परन्तु आत्मा को देख नहीं सकते।
  • अति सूक्ष्म है।
  • पहले तो यह निश्चय चाहिए कि मैं आत्मा अति सूक्ष्म हूँ।
  • बाप उनको ही समझाते हैं, जिनकी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट नूँधा हुआ है।
  • फिर परमात्मा खुद ही रियलाइज़ कराते हैं, वो आत्मा थोड़ेही करा सकती है।
  • परमात्मा खुद ही रियलाइज़ कराते हैं कि मैं तुम्हारा बाप अति सूक्ष्म हूँ।
  • ड्रामा में सारी एक्ट नूँधी हुई है, इनके पार्ट में कुछ भी चेन्ज हो नहीं सकता।
  • बाप कहते हैं मैं किसको बीमारी आदि से कोई ठीक करने थोड़ेही आता हूँ।
  • यह जिस्मानी बीमारी आदि तो कर्मभोग है।
  • तुम तो मुझे कहते ही हो पतित-पावन, नॉलेजफुल ज्ञान का सागर आओ, हमको आकर पावन बनाओ।
  • राजयोग भी सिखाओ।
  • परमात्मा को ही बुलाते हैं फिर बीच में श्रीकृष्ण कहाँ से आया।
  • श्रीकृष्ण को सभी गॉड फादर थोड़ेही कहेंगे।
  • सभी आत्माओं का बाप निराकार है।
  • वह है दु:ख हर्ता सुख कर्ता।
  • वह कैसे आया, कैसे पार्ट बजाया - यह कुछ भी जानते नहीं।
  • शास्त्रों आदि में तो कुछ है नहीं।
  • गीता है सर्व शास्त्रमई शिरोमणी, जिस गीता से ही सतयुगी आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हुई।
  • पीछे फिर बाल बच्चे आये।
  • धर्मशास्त्र मुख्य कौनसे हैं?
  • उस पर बाप समझाते हैं।
  • मुख्य है गीता, जिससे ब्राह्मण, सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी धर्म की स्थापना हुई।
  • संगमयुग है ही ब्राह्मण धर्म।
  • तुम जानते हो बाबा हमको ज्ञान सुना रहे हैं, जिससे हम शुद्र से ब्राह्मण बनते हैं।
  • फिर सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी बनेंगे।
  • यह तो पक्का याद कर लेना चाहिए।
  • परमपिता परमात्मा ने ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय धर्म की स्थापना की।
  • बाबा ने आत्मा पर भी समझाया है।
  • कई बच्चे अपने को आत्मा समझ बाप को याद करने में मूँझते हैं।
  • अरे तुम आत्मा हो ना।
  • तुम्हारा बाप है शिव।
  • जैसे आत्मा आरगन्स बिना कुछ भी कर नहीं सकती वैसे निराकार बाप को भी तो आरगन्स चाहिए ना।
  • वह इनमें आकर समझाते हैं।
  • आत्मा का रूप क्या है, परमात्मा का रूप क्या है!
  • यह तो कहने मात्र कहते हैं - परमात्मा का रूप बिन्दी है।
  • परन्तु उनमें कैसे अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है, जो कब मिटने वाला नहीं है।
  • यह कोई नहीं जानते।
  • परन्तु पार्ट अनादि परम्परा से चले आते हैं, इनकी कब इन्ड नहीं होती।
  • पुरानी दुनिया की इन्ड हो तब नई दुनिया हो।
  • बाबा ही आकर पतित दुनिया को पावन बनाते हैं।
  • बाबा ने समझाया है - मुख्य धर्म शास्त्र हैं ही चार, जिससे 4 धर्मो की स्थापना होती है।
  • पहले है गीता फिर इस्लामी धर्म का शास्त्र, बौद्ध धर्म का शास्त्र, क्रिश्चियन धर्म का, फिर वृद्धि होती है।
  • यह सब गीता के पुत्र पोत्रे हो गये इसलिए गाया जाता है श्रीमत भगवत गीता।
  • जो बाप ने गाई है।
  • बाप कहते हैं - न मैं मनुष्य हूँ, न मैं देवता हूँ।
  • मैं तो ऊंच ते ऊंच निराकार परमात्मा हूँ।
  • मैं कल्प-कल्प इस साधारण तन में पढ़ाने आता हूँ।
  • तुम जानते हो कि अभी हम बरोबर ब्राह्मण बने हैं फिर सो देवता बनेंगे।
  • वृद्धि तो होती जाती है।
  • हाँ कोई बी.के. बनना मासी का घर नहीं है।
  • समझाया जाता है कि गृहस्थ व्यवहार में रहते अपने को शिवबाबा का बच्चा समझो।
  • तुम शिवबाबा के पोत्रे भी हो तो बच्चे भी हो।
  • अज्ञानकाल में ऐसे नहीं कहेंगे कि मैं दादे का पौत्रा भी हूँ।
  • बच्चा भी हूँ।
  • तुम बच्चे दादे के हो शिववंशी।
  • फिर शिवबाबा एडाप्ट कर बी.के. बनाते हैं।
  • वह निराकार हो गया, वह साकार हो गया।
  • निराकार बाप के तुम बच्चे हो।
  • फिर कहते हैं - ब्रह्मा द्वारा मैं तुमको एडाप्ट करता हूँ।
  • तो ब्रह्मा के बच्चे होने के कारण तुम मेरे पोत्रे हो।
  • तुमको वर्सा शिव बाबा से मिलता है।
  • बाकी धर्म शास्त्र उसको कहा जाता है जिससे धर्म स्थापन होता है।
  • वेदों से कौन सा धर्म स्थापन हुआ?
  • कुछ भी नहीं।
  • महाभारत भी धर्म शास्त्र नहीं है।
  • बाइबिल धर्म शास्त्र है।
  • गीता से तो देवता धर्म स्थापन हुआ।
  • बाकी भागवत, रामायण में तो दन्त कथायें लिख दी हैं।
  • वह तो धर्म शास्त्र नहीं हैं।
  • मूल बात है कि आत्मा को समझना है।
  • वह फिर कहते कि आत्मा निर्लेप है तो उल्टा हो गया ना।
  • वास्तव में आत्मा ही शरीर द्वारा खाती है, वासना लेती है।
  • दु:ख-सुख आत्मा ही फील करती है ना।
  • महात्मा, पाप आत्मा कहा जाता है।
  • फिर आत्मा सो परमात्मा कह दिया तो रांग हो गया।
  • सेन्टर पर आने वाले कई बच्चों को यह भी पता नहीं है कि आत्मा क्या चीज़ है।
  • तुम खुद कहते हो आत्मा स्टार है।
  • उनमें ही सारा पार्ट भरा हुआ है।
  • आत्मा अति सूक्ष्म है।
  • आत्मा को कब देख नहीं सकते हो।
  • हाँ बाबा दिव्य दृष्टि से साक्षात्कार करा सकते हैं।
  • साक्षात्कार किया फिर गुम हो जायेगा।
  • फिर भी तुमको बुद्धि से निश्चय तो करना पड़ेगा ना कि हम आत्मा अति सूक्ष्म हैं।
  • जैसे विवेकानंद का मिसाल सुनाते हैं कि उनको ज्योति का साक्षात्कार हुआ।
  • देखा ज्योति उनसे निकल कर मेरे में समाई।
  • परन्तु यह तो साक्षात्कार हुआ।
  • बाकी समाने की तो बात ही नहीं है।
  • आत्मा का साक्षात्कार हुआ तो क्या।
  • आत्मा तो तुम हो ही।
  • कितनी फालतू महिमा लिख दी है।
  • साक्षात्कार हुआ अच्छा उससे प्रालब्ध क्या है?
  • कुछ भी नहीं, मिसला तुमको चतुर्भुज का साक्षात्कार हो, तो क्या तुम लक्ष्मी-नारायण बन जायेंगे क्या?
  • एम-आबजेक्ट का यह सिर्फ साक्षात्कार हुआ।
  • बाप का भी क्या साक्षात्कार होगा।
  • जैसे आत्मा स्टार है वैसे वह भी स्टार है।
  • दिखाते हैं अर्जुन ने कहा कि हजारों सूर्य से जास्ती तेज है, हम सहन नहीं कर सकते।
  • बस करो, बस करो।
  • अब ऐसा तो कुछ भी है नहीं।
  • आगे तो बहुतों को साक्षात्कार होता था, जो सुना हुआ था, वह साक्षात्कार हो जाता है।
  • समझते हैं हमारी मनोकामना पूरी हुई।
  • परन्तु इसमें तो कुछ भी फायदा नहीं है।
  • बाप कहते हैं मैं राजयोग सिखाकर, पतित से पावन बनाने आया हूँ।
  • ऐसे नहीं मुर्दे में श्वॉस डाल दूँगा।
  • बीमारी है तो जाओ डॉक्टर के पास।
  • हम तो आये हैं पावन बनाने।
  • पावन बनो तो पावन दुनिया में चलेंगे।
  • जरूर पतित दुनिया का विनाश होगा तब तो पावन दुनिया स्थापन होगी।
  • महाभारत लड़ाई के बाद क्या हुआ, कुछ भी रिजल्ट दिखाते नही हैं।
  • तुम बच्चों को अभी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं।
  • यह नॉलेज किसकी बुद्धि में है नहीं।
  • आत्मा का ही ज्ञान नहीं है
  • । बाबा से आकर पूछते हैं आत्मा क्या है!
  • बाबा को याद कैसे करें?
  • बाबा वन्डर खाते हैं - सर्विस करने वाले बच्चों में भी आत्मा, परमात्मा का ज्ञान नहीं है तो औरों को क्या सुनाते होंगे।
  • हाँ, मुरली सुनाते रहते हैं।
  • टीचर्स भी नम्बरवार होती हैं इसलिए मुख्य जो ब्राह्मणियाँ हैं, उनको मुकरर किया जाता है कि क्लास में चक्कर लगायें, एक-एक से पूछे कि आत्मा का रूप क्या है?
  • परमात्मा का रूप क्या है?
  • सुपरवाइज़ करनी चाहिए।
  • जब तक अपने को आत्मा समझ बाप को याद न करें तो विकर्म विनाश भी हो न सकें।
  • मनुष्य बिल्कुल पत्थरबुद्धि हैं, उन्हें पारसबुद्धि बनाने में मेहनत लगती है।
  • देलवाड़ा मन्दिर में देखो आदि देव का काला चित्र है।
  • फिर ऊपर में स्वर्ग की सीन बनाई है।
  • मन्दिर बनाने वाले तो करोड़पति हैं, जानते कुछ भी नहीं।
  • महावीर कहते हैं परन्तु अर्थ कुछ भी नहीं समझते।
  • जगत अम्बा महारानी बनती है ना।
  • आदि देव की बेटी सरस्वती है।
  • मन्दिर तो अनेक बनाये हैं।
  • ट्रस्टी लोग खुद भी जानते नहीं।
  • पुजारी भी कहेंगे हम तो सम्भालने लिए बैठे हैं।
  • मन्दिर फलाने ने बनाया है, हम क्या जानें।
  • मनुष्य आते हैं माथा टेक कर चले जाते हैं।
  • अब तुमको कितनी रोशनी मिली है।
  • यह पढ़ाई है - मनुष्य से देवता बनने की।
  • मनुष्य गीता भवन बनाते हैं परन्तु गीता किसने रची - यह किसको पता ही नहीं है।
  • बड़े-बड़े करोड़पति, बड़े-बड़े मन्दिर बनाते हैं।
  • जानते कुछ भी नहीं।
  • बाप आकर सारे ड्रामा का राज़ तुमको समझाते हैं।
  • अच्छा और कुछ नहीं समझते हो तो सिर्फ शिवबाबा को याद करते रहो।
  • यह भी अच्छा।
  • बाप को याद करते हैं ना।
  • शिवबाबा है ही आत्माओं का बाप।
  • मरने समय शिवबाबा के सिवाए और कुछ भी याद न आये तो भी स्वर्ग में जायेंगे।
  • कोई कम बात थोड़ेही है।
  • पहले-पहले तो अपने को आत्मा निश्चय करना है।
  • वह है फिर परमपिता परमात्मा।
  • नाम उनका शिव है।
  • आत्मा भी बिन्दी रूप है।
  • परमात्मा भी बिन्दी है।
  • जैसे आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट है, परमात्मा का भी पार्ट है - पतितों को पावन बनाने का।
  • भक्ति में मैं सर्व की मनोकामनायें पूर्ण करता हूँ।
  • दिव्य दृष्टि की चाबी बाप के हाथ में है।
  • यह भी ड्रामा में पार्ट बना हुआ है।
  • नौधा भक्ति से साक्षात्कार होना ही है।
  • अशुद्ध कामनायें शैतान (रावण) पूरी करता है।
  • यह जो रिद्धि सिद्धि आदि सीखते हैं वह मेरा काम नहीं है, जिससे मनुष्य किसको दु:ख देवे।
  • वह कामनायें मैं पूरी नहीं करता हूँ।
  • अभी सब बच्चे पुरूषार्थी हैं।
  • 16 कला कोई बना नहीं है।
  • जब तक विनाश हो तब तक पुरूषार्थ चलना ही है।
  • किसकी भी ताकत नहीं जो कहे कि 16 कला सम्पूर्ण बन गये हैं।
  • बन ही नहीं सकते।
  • वह अवस्था होगी अन्त में।
  • भल कोई रात दिन उठकर बैठ जाये, परन्तु बन नहीं सकेगा।
  • इस समय कोई कर्मातीत बन जाये तो शरीर छोड़ना पड़े।
  • सूक्ष्मवतन में जाकर बैठना पड़े।
  • मूलवतन में तो जा न सके।
  • पहले ब्राइडग्रूम जाये तब तो ब्राइडस जायेंगी।
  • उनसे पहले कैसे जा सकते।
  • बुद्धि भी कितनी दूरादेशी चाहिए।
  • ...अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुड़मार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।


  • 1) साक्षात्कार आदि की आश न रख निश्चयबुद्धि बन पुरूषार्थ करना है।

    पहले-पहले निश्चय करना है कि मैं अति सूक्ष्म आत्मा हूँ।

    2) बीमारी आदि में बाप की याद में रहना है।

    यह भी कर्मभोग है।

    याद से ही आत्मा पावन बनेगी।

    पावन बनकर पावन दुनिया में चलना है।



  • ( All Blessings of 2021-22)
  • ज्ञान और योग के बल द्वारा माया की शक्ति पर विजय प्राप्त करने वाले मायाजीत, जगतजीत भव

    दुनिया में साइन्स का भी बल है, राज्य का भी बल है और भक्ति का भी बल है लेकिन आपके पास है ज्ञान बल और योग बल।

    यह सबसे श्रेष्ठ बल है। यह योगबल माया पर सदा के लिए विजयी बनाता है।

    इस बल के आगे माया की शक्ति कुछ भी नहीं है।

    मायाजीत आत्मायें कभी स्वप्न में भी हार नहीं खा सकती, उनके स्वप्न भी शक्तिशाली होंगे।

    तो सदा यह स्मृति रहे कि हम योगबल वाली आत्मायें सदा विजयी हैं और विजयी रहेंगे।



  • (All Slogans of 2021-22)
    • कर्म करते कर्म के बन्धनों से मुक्त रहना ही फरिश्ता बनना है।