23-09-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - बाप द्वारा तुम्हें राइट पथ (सच्चा रास्ता) मिला है, इसलिए कोई भी उल्टे कर्म वा विकर्म नहीं करने हैं''

 

प्रश्नः-

इस समय मनुष्य जो भी संकल्प करते हैं, वह विकल्प ही बनता है - क्यों?

 

उत्तर:-

क्योंकि बुद्धि में राइट और रांग की समझ नहीं है।

माया ने बुद्धि को ताला लगा दिया है।

बाप जब तक न आये, सत्य पहचान न दे तब तक हर संकल्प, विकल्प ही होता है।

माया के राज्य में भल भगवान को याद करने का संकल्प करते हैं परन्तु यथार्थ पहचानते नहीं हैं इसलिए वह भी रांग हो जाता है।

यह सब समझने की बहुत महीन बातें हैं।

गीत:- ओम् नमो शिवाए...

...full possibilities...

 

  • ओम् शान्ति।
  • मीठे-मीठे बच्चों ने गीत सुना।
  • गीत का अर्थ यथार्थ बुद्धि में आया।
  • वह जो गाते हैं उनका अर्थ नहीं जानते।
  • तुम प्रैक्टिकल अर्थ भी जानते हो और पुरूषार्थ भी कर रहे हो, बाप द्वारा क्योंकि अब सम्मुख सहायक है।
  • सहायक बनते तब हैं जब भारी भीड़ आती है।
  • तुम बच्चे जानते हो गुप्त रीति सहायक है - सब मनुष्य मात्र का।
  • बल्कि जो भी इस पुरानी दुनिया में हैं, अनेक प्रकार की योनियाँ भी हैं ना।
  • अनेक प्रकार के जानवर हैं।
  • सतयुग में तो कोई अशुद्ध चीज़ जानवर आदि नहीं होंगे।
  • यह ड्रामा बना हुआ है।
  • साहूकार के पास मकान, फर्नीचर आदि जरूर ऊंचे होंगे।
  • गरीब के पास क्या होगा।
  • यह तुम समझते हो ना।
  • अभी भी पुरानी दुनिया रावणराज्य है, तो जीव जन्तु नाग बलाए सब नुकसान करने वाले हैं।
  • जैसे मनुष्य तमोप्रधान वैसे इनकी सामग्री भी तमोप्रधान।
  • भल यहाँ कितने भी बड़े-बड़े मकान 40 मंजिल के भी बनाते तो भी स्वर्ग के आगे तो कुछ भी नहीं हैं।
  • यह अब बनते हैं विनाश के लिए।
  • तुम बच्चे जानते हो बाबा आया हुआ है।
  • पहले नम्बर में बाबा आत्मा और परमात्मा का भेद समझाते हैं।
  • मनुष्य न तो आत्मा को और न परमात्मा को ही जानते हैं।
  • तुम बच्चों ने जान लिया है - आत्मा और परमात्मा का रूप क्या है?
  • मन्दिरों में पूजा होती है - बनारस में बड़ा लिंग रखा हुआ है।
  • उनकी सब पूजा करते हैं।
  • कहते भी हैं कि आत्मा स्टार भृकुटी के बीच रहती है।
  • अब भृकुटी के बीच बड़ी चीज़ हो तो ट्युमर हो जाए।
  • यह समझने की बातें हैं।
  • परमात्मा भी स्टार है, परन्तु तुम भूल जाते हो।
  • जब शिवबाबा को याद करते हो तो बुद्धि में यह आना चाहिए कि बाबा स्टार है, उनमें सारा ज्ञान है।
  • वह सत है, चैतन्य है।
  • उनमें ही बुद्धि भी है।
  • मन अलग चीज़ है, बुद्धि अलग चीज़ है।
  • मन को तूफान आते हैं।
  • सतयुग में कोई तूफान आदि आते नहीं हैं।
  • यहाँ संकल्प-विकल्प चलते हैं।
  • इस समय जो भी मनुष्य संकल्प उठाते हैं वह विकल्प बनता है।
  • इन बातों को अच्छी रीति समझना है।
  • वह हो गई सहज बात।
  • सुखधाम, शान्तिधाम को याद करो।
  • यह फिर सूक्ष्म समझानी दी जाती है।
  • आत्मा इतनी जो सूक्ष्म है वह सत है, चैतन्य है।
  • आत्मा जब गर्भ में प्रवेश करती है तब ही चुरपुर होती है।
  • यूँ तो 5 तत्वों में भी कुछ चैतन्यता है तब तो बढ़ते हैं, परन्तु उनमें मन-बुद्धि नहीं है।
  • उन चीज़ों में संकल्प आदि की बात नहीं।
  • गर्भ में पिण्ड बढ़ता है।
  • जैसे झाड़ बढ़ता है वैसे पिण्ड बढ़ता है, परन्तु उनमें ज्ञान नहीं।
  • ज्ञान, भक्ति मनुष्यों के लिए है।
  • भक्ति आत्मा करती है और ज्ञान भी आत्मा लेती है।
  • आत्मा में ही मन-बुद्धि है, पहले मन में अच्छा वा बुरा संकल्प आता है फिर बुद्धि सोचती है - करूँ वा नहीं करूँ।
  • जब तक बाप नहीं आते हैं तब तक आत्मा जो संकल्प करती है वह विकल्प ही बनता है।
  • भल भगवान को याद करते हैं परन्तु राइट है वा रांग है, यह भी समझते नहीं हैं।
  • ब्रह्म तो भगवान है नहीं।
  • मनुष्य को संकल्प उठता है कि भगवान को याद करें।
  • बुद्धि कहती है यह राइट है, परन्तु बुद्धि का ताला बन्द है क्योंकि माया का राज्य है।
  • भक्ति जो करते हैं वह रांग करते हैं।
  • कृष्ण की भक्ति करते हैं, पहचान कुछ भी नहीं।
  • जो कुछ करते हैं अनराइटियस।
  • अब बाप द्वारा बुद्धि को अक्ल मिली है।
  • रांग काम करने लिए मना है।
  • कर्मेन्द्रियों से विकर्म करना मना है।
  • बुद्धि कहती है ईश्वर सर्वव्यापी नहीं है।
  • अब बुद्धि को राइट पथ मिला है।
  • तुमको हर बात की सही समझ मिली है।
  • आगे जो कुछ करते थे वह रांग ही करते थे, भक्ति भी अनराइटियस करते थे।
  • शिव की भक्ति करते हैं, बड़ा लिंग बनाते हैं, परन्तु इतना बड़ा शिवबाबा थोड़ेही है।
  • अब तुम्हारी बुद्धि का ताला खुला है तब समझते हो सब अन-राइटियस है।
  • है ही झूठी दुनिया।
  • सतयुग है सच्ची दुनिया।
  • उसकी स्थापना किसने की?
  • ट्रूथ एक बाप को ही कहा जाता है।
  • वह जो सुनाते हैं, सब सत।
  • सच बोलते हैं सचखण्ड स्थापन करते हैं।
  • यह डीटेल की बड़ी महीन बातें हैं।
  • कोई भी यह समझ न सके।
  • बहुत महीनता में जाना पड़ता है।
  • बाप कहते हैं, धारणा नहीं होती है तो बाप और वर्से को याद करो।
  • दु:खधाम को भूल जाओ।
  • मनुष्य नया मकान बनाते हैं तो बुद्धियोग पुराने मकान से निकल नये में लग जाता है।
  • समझते हैं कि पुराना तो खत्म हो ही जायेगा।
  • यह फिर है बेहद की बात।
  • देह सहित जो कुछ है - सब छोड़ना है।
  • यह देह भी तो वापिस नहीं जानी है।
  • आत्मा को ही बाप के पास वापिस जाना है।
  • बाप कहते हैं मुझे याद करो।
  • मैं जो हूँ, जैसा हूँ।
  • तुम्हारी आत्मा में भी कैसे पार्ट भरा हुआ है।
  • 84 जन्मों का पार्ट, कितनी छोटी सी आत्मा में भरा हुआ है।
  • 84 लाख जन्मों का पार्ट तो इम्पासिबुल हो जाए।
  • अभी तुम्हारी बुद्धि का ताला बाप ने खोला है तो समझते हो वह सब रांग है।
  • इतनी छोटी सी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट है, बाप राइट बात बताते हैं।
  • बाप बच्चों से ही बात करते हैं।
  • नॉलेजफुल है ना।
  • कहते हैं यह आई.सी.एस. पढ़ा हुआ है।
  • आत्मा ही पढ़ती है, इन आरगन्स द्वारा।
  • भल बहुत धनवान बड़ा आदमी बनते हैं फिर भी रोगी, बीमार तो होते हैं ना।
  • ऐसे नहीं कि बड़े आदमियों की आयु भी बड़ी होती है।
  • बड़े आदमी जितना पाप करते हैं उतना गरीब नहीं करते हैं।
  • इस दुनिया में तो पाप ही पाप होते हैं।
  • यह है ही पाप आत्माओं की दुनिया।
  • हर बात में पाप ही करते हैं।
  • ब्राह्मण खिलाते हैं, यह भी पतित को खिलाते हैं ना।
  • पतित को खिलाने से कोई पुण्य थोड़ेही होगा।
  • अभी तुम रीयल्टी में पावन बनते हो।
  • संन्यासी भल पावन बनते हैं परन्तु वह कोई पावन दुनिया में तो जाने वाले नहीं हैं, फिर भी पुनर्जन्म तो पतित दुनिया में ही लेंगे।
  • तुम थोड़ेही पतित दुनिया में जन्म लेंगे।
  • वह समझते हैं कि दुनिया की आयु अजुन बहुत बड़ी है।
  • जब तक विनाश हो तब तक पुनर्जन्म तो लेना ही पड़े ना।
  • छूट नहीं सकते।
  • तुम्हारा यह अन्तिम जन्म है।
  • तुम जानते हो कि हम पवित्र दुनिया में जाने वाले हैं।
  • बाप बैठ समझाते हैं - बच्चे तुम पवित्र प्रवृत्ति मार्ग में थे तो देवता थे, फिर इतने पुनर्जन्म लेते आये हो।
  • तुम अपने पुनर्जन्म को नहीं जानते हो।
  • यह कोई एक को थोड़ेही पढ़ाया जाता है।
  • अनेक पढ़ते हैं।
  • बाप ब्राह्मण बच्चों से ही बात करते हैं।
  • शूद्र इन बातों को समझेंगे नहीं।
  • पहले सात रोज समझाकर ब्राह्मण बनाओ, जो समझें हम शिववंशी ब्रह्माकुमार-कुमारी हैं।
  • इस पढ़ाई से तुम नई दुनिया के मालिक बनते हो।
  • यह है ब्रह्मा मुख वंशावली।
  • प्रजापिता ब्रह्मा के सब बच्चे हैं।
  • उनको ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर कहा जाता है।
  • ब्रह्मा को हमेशा बड़ा बूढ़ा दिखाते हैं।
  • जैसे क्राइस्ट है, क्रिश्चियन लोग पुनर्जन्म तो लेते आते हैं।
  • ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड क्राइस्ट।
  • परन्तु वह शिवबाबा तो निराकार है, उनको सिर्फ फादर कहेंगे।
  • वह है ही निराकार।
  • उनको गॉड फादर कहते हैं।
  • उनका कोई फादर नहीं, गुरू भी नहीं क्योंकि वह सतगुरू है तब वे गुरू लोग कौन हैं।
  • वह जिस्मानी यात्रा करते हैं, हम रूहानी यात्रा करते हैं।
  • यहाँ कोई मरते हैं, कहेंगे स्वर्ग पधारा।
  • तो यह झूठ बोला ना।
  • आते तो फिर भी यहाँ ही हैं।
  • कोई कहते फलाना ज्योति-ज्योत समाया।
  • अच्छा बड़े-बड़े साधू सन्त मर जाते हैं, अगर वह ज्योति ज्योत जाकर समाया फिर उनकी बरसी क्यों मनाते हो?
  • ज्योति में समाया वह तो बड़ा अच्छा हुआ फिर बरसी मनाना, उनको खिलाना, पिलाना यह तो फिर झूठा हुआ ना।
  • वैकुण्ठवासी हो गया फिर उनको नर्क का भोजन खिलाते हो।
  • इसको कहा जाता है - अनराइटियस।
  • जो कुछ करते हैं उल्टा ही करते हैं।
  • मनुष्यों की बुद्धि को बिल्कुल ताला लगा हुआ है।
  • बाप कहते हैं मैं आकर ताला खोलता हूँ।
  • माया ताला लगा देती है।
  • कहते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है।
  • समझते हैं यह ज्ञान परम्परा से चला आता है।
  • इन बिचारों को कुछ भी पता नहीं है।
  • ज्ञान और भक्ति।
  • ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात - दोनों इक्वल होता है ना।
  • फिर सतयुग दिन की इतनी बड़ी आयु और रात को इतना छोटा क्यों कर दिया है।
  • ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात दोनों इक्वल होने चाहिए ना।
  • यह बेहद की बात है।
  • बाप आकर सब बातें समझाते हैं।
  • बाप को ही ज्ञान रत्नों का सागर कहा जाता है।
  • एक-एक रत्न की वैल्यु लाखों रूपया है।
  • बाप बच्चों को समझाते हैं - कल की बात है।
  • तुमको समझाकर राज्य-भाग्य देकर गया था।
  • तुमने राज्य किया अब गँवा दिया है।
  • कल तुमको राजाई थी, आज है नहीं, फिर लो।
  • आज और कल की बात है।
  • भारत कल स्वर्ग था।
  • भारत में ही शिव जयन्ती मनाते हैं, जरूर शिवबाबा आया होगा।
  • अब फिर से आया है।
  • तुमको राज्य भाग्य दे रहे हैं।
  • अब तुम कौड़ी से हीरे जैसा बने हो।
  • तुम एक्टर्स ने बेहद के ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को जाना है अर्थात् त्रिकालदर्शी बने हो।
  • बाप कहते हैं कि मीठे-मीठे बच्चे मुझ बाप को याद करो।
  • भूलो नहीं।
  • मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाने आया हूँ।
  • तुम नर्क के मालिक बनाने वालों को भूलते नहीं हो और मुझ बाप को भूल जाते हो?
  • माया जरूर भुलायेगी।
  • परन्तु तुम कोशिश करो याद में रहने की।
  • आत्मा को बाप ज्ञान देते हैं।
  • आत्मा का काम है बाप से वर्सा लेना।
  • देह-अभिमान छोड़ना है।
  • तुम बच्चों को पुरूषार्थ कराने वाला एक बाप है।
  • यह पाठशाला है, इसमें दर्शन करने की बात नहीं रहती।
  • प्रिन्सीपाल का दर्शन करना होता है क्या?
  • यह तो समझने की बात है।
  • यह राजयोग की पाठशाला है, आकर समझो।
  • पहले-पहले समझानी देनी है एक बाप की, तब तक आगे बढ़ना ही नहीं है।
  • बाप की समझानी दे फिर लिखवा लेना चाहिए।
  • निश्चय बैठ जाए कि शिवबाबा से बेहद का वर्सा मिलता है तो ऐसे बाप से मिलने बिगर रह न सकें।
  • त्रिमूर्ति शिव कहा जाता है।
  • ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को रचने वाला शिव।
  • प्रजापिता जरूर ब्रह्मा को ही कहेंगे।
  • विष्णु वा शंकर को नहीं कहेंगे।
  • प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी की स्थापना होती है।
  • जगत पिता और यह जगत अम्बा फिर लक्ष्मी-नारायण जाकर बनते हैं।
  • उनके बच्चे वारिस बनते हैं।
  • बाकी त्रिमूर्ति ब्रह्मा का तो अर्थ ही नहीं निकलता।
  • इनमें बाप ने प्रवेश किया है, इनकी आत्मा को बाप पवित्र बनाते हैं।
  • ...अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुड़मार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।


  • 1) बाप ने बुद्धि का ताला खोला है इसलिए कर्मेन्द्रियों से कोई भी रांग कर्म नहीं करना है।

    ध्यान रखना है कोई भी संकल्प, विकल्प का रूप न ले ले।

    2) अब वापिस घर चलना है इसलिए इस देह को भी भूलना है।

    दु:खधाम से बुद्धियोग निकाल बाप और वर्से को याद करना है।



  • ( All Blessings of 2021-22)
  • व्यर्थ की अपवित्रता को समाप्त कर सम्पूर्ण स्वच्छ बनने वाले होलीहंस भव

    होलीहंस की विशेषता है - सदा ज्ञान रत्न चुगना और निर्णय शक्ति द्वारा दूध पानी को अलग करना अर्थात् व्यर्थ और समर्थ का निर्णय करना।

    होलीहंस अर्थात् सदा स्वच्छ।

    स्वच्छता अर्थात् पवित्रता, कभी भी मैलेपन का असर न हो।

    व्यर्थ की अपवित्रता भी नहीं, अगर व्यर्थ भी है तो सम्पूर्ण स्वच्छ नहीं कहेंगे।

    हर समय बुद्धि में ज्ञान रत्न चलते रहें, ज्ञान का मनन चलता रहे तो व्यर्थ नहीं चलेगा।

    इसको कहा जाता है रत्न चुगना।



  • (All Slogans of 2021-22)
    • नाँव और खिवैया मजबूत हो तो तूफान भी तोहफा बन जाते हैं।