22-09-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - जितना समय मिले सच्ची कमाई करो, चलते फिरते कर्म करते बाप की याद में रहना ही सच्ची कमाई का आधार है, इसमें कोई तकलीफ नहीं''

 

प्रश्नः-

जिन बच्चों में ज्ञान की पराकाष्ठा होगी, उनकी निशानी सुनाओ?

उत्तर:-

जिनमें ज्ञान की पराकाष्ठा होगी उनकी सब कर्मेन्द्रियाँ शीतल हो जायेंगी। चंचलता समाप्त हो जायेगी। अवस्था एकरस हो जायेगी। मैनर्स सुधरते जायेंगे।

प्रश्नः-

शिवबाबा की याद बुद्धि में यथार्थ नहीं है तो रिजल्ट क्या होगी?

 

उत्तर:-

कोई न कोई विकर्म जरूर होगा। बुद्धि इतना भी काम नहीं करेगी कि हमारे द्वारा कोई विकर्म हो रहा है। बाप का फरमान न मानने के कारण धोखा खाते रहेंगे।

गीत:- आखिर वह दिन आया आज...

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  • ओम् शान्ति।
  • बच्चों को खातिरी हो गई है कि बेहद का बाप आया हुआ है।
  • श्रीकृष्ण को बेहद का बाप नहीं कहेंगे।
  • यह गीत तो यहाँ के नाटक वालों ने बनाये हुए हैं।
  • महाराजाधिराज श्रीकृष्ण के लिए कहते हैं।
  • बाप कहते हैं मैं तो नहीं बनता हूँ, तुम बच्चों को बनाता हूँ।
  • तो इन गीतों से भी कुछ न कुछ अच्छा अर्थ निकलता है।
  • बेहद का बाप गरीब निवाज़ जरूर है, जिस भारत को साहूकार बनाते हैं वह भारत अब गरीब बन गया है।
  • भारत में ही उनका जन्म होता है और कहीं उनका जन्म गाया हुआ नहीं है।
  • भले पूजा करते हैं, कोई भी नेशन में यह चित्र हैं परन्तु जन्म तो यहाँ होता है ना।
  • जैसे क्राइस्ट का जन्म और कोई जगह है परन्तु चित्र तो यहाँ भी हैं ना।
  • तो भारत को गॉड फादर का बर्थ प्लेस कहेंगे।
  • मनुष्य तो कुछ समझते नहीं।
  • वह तो ईश्वर को सर्वव्यापी कह देते हैं।
  • आगे तुमको भी पता नहीं था।
  • अभी जानते हो कि भारत पतित-पावन परमपिता परमात्मा का बर्थप्लेस है।
  • मनुष्य तो समझते हैं कि परमात्मा तो जन्म-मरण से न्यारा है।
  • हाँ, मरण से बेशक न्यारा है क्योंकि उनका अपना शरीर तो है नहीं।
  • बाकी जन्म तो होता है ना।
  • बाप कहते हैं मैं आया हूँ, मेरा दिव्य जन्म है और मनुष्य तो गर्भ में प्रवेश कर फिर छोटे से बड़े बनते हैं।
  • मैं ऐसा नहीं बनता हूँ।
  • हाँ, कृष्ण माँ के गर्भ में जाते हैं।
  • छोटे से बड़ा बनते हैं।
  • हर एक आत्मा अपनी माँ के गर्भ में प्रवेश कर जन्म लेती है।
  • यह मनुष्य मात्र की बात है।
  • मनुष्य ही कंगाल, मनुष्य ही सिरताज बनते हैं।
  • भारत सतयुग आदि में डबल सिरताज था।
  • पवित्रता की निशानी रहती है।
  • पवित्रता का ताज और रतन जड़ित ताज था ना।
  • पवित्रता गुम हो जाने के बाद सिर्फ एक ताज रहता है।
  • विश्व का मालिक थे फिर पुनर्जन्म लेते-लेते एक ताज गुम हो गया।
  • फिर सिंगल ताज वाले बने।
  • यह ज्ञान की बातें हैं।
  • पूज्य से पुजारी बनने के कारण एक ताज गुम हो जाता है।
  • राजायें पतित होते आये हैं और जो पावन राजायें सूर्यवंशी चन्द्रवंशी पास्ट हो गये हैं, उनके चित्रों की पूजा करते आये हैं।
  • जो पवित्र पूज्य थे वही फिर पुजारी बने हैं।
  • उनको ही 84 जन्म भोगने पड़ते हैं।
  • जो भारत कल पूज्य था सो अब पुजारी बना है।
  • फिर पुजारी गरीब से पूज्य साहूकार बनना है।
  • अब तो कितना गरीब है।
  • कहाँ हेविन के महल थे, मन्दिर के ऊपर भी कितने हीरे जवाहरात जड़े हुए थे।
  • तो वे अपना महल तो और ही अच्छा बनाते होंगे ना।
  • अभी तो कितना गरीब है।
  • गरीब से साहूकार अभी तुम फिर बनते हो।
  • पुरूषार्थ तुम बच्चों को करना है।
  • युक्तियाँ रोज़ बतलाते हैं।
  • जितना टाइम फुर्सत मिले यह याद की कमाई करनी है।
  • ऐसे बहुत काम होते हैं जिनमें बुद्धि नहीं लगानी होती है।
  • कोई-कोई में बुद्धि लगानी पड़ती है।
  • तो जब फुर्सत मिलती है, घूमने फिरने जाते हो तो बाप की याद में रहो।
  • यह कमाई बहुत करनी है।
  • यह है सच्ची कमाई।
  • बाकी तो वह है अल्पकाल के लिए झूठी कमाई।
  • यह शिक्षा तुम बच्चों को अभी ही मिलती है।
  • तुम जानते हो कि हमको बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेना है, इसमें कोई भी तकलीफ नहीं है।
  • घरबार भी नहीं छुड़ाते हैं।
  • सिर्फ कहते हैं बच्चे विकार में नहीं जाना है।
  • इस पर ही अक्सर करके झगड़ा चलता है।
  • और सतसंगों में ऐसे झगड़े थोड़ेही होते हैं।
  • वहाँ तो जो सुनाया वह सत-सत कहकर चले जाते हैं।
  • झगड़ा यहाँ होता है।
  • इस रूद्र ज्ञान यज्ञ में असुरों के विघ्न जरूर पड़ेंगे।
  • अबलाओं पर अत्याचार होते हैं।
  • जैसे द्रोपदी को भी दिखाते हैं - पुकारा है कि बाबा हमें यह नंगन करते हैं, इनसे बचाओ।
  • बाप की तो शिक्षा है कि कभी भी नंगन नहीं होना है।
  • जब एकरस अवस्था हो जाए तब यह कर्मेन्द्रियां शीतल हों, तब तक कोई न कोई चंचलता चलती रहेगी।
  • जब तक ज्ञान की पराकाष्ठा हो - बुद्धि में यह ख्याल रहे कि हमको कम्पेनियन हो रहना है।
  • विलायत में बहुत बूढ़े वानप्रस्थी होते हैं।
  • समझते हैं पिछाड़ी में कौन मालिक बनेंगे, बाल बच्चे तो हैं नहीं, इसलिए पिछाड़ी में कम्पेनियन बना लेते हैं।
  • फिर भी कुछ उनको देकर चले जाते हैं।
  • तुम लोग तो अखबारें पढ़ते नहीं हो, अखबारों में समाचार बहुत आते हैं।
  • तुम बच्चों को कोई वह पढ़ना नहीं है।
  • बाप तो कहते हैं कि कुछ भी नहीं पढ़े हो तो अच्छा है।
  • जो कुछ भी पढ़े हो वह भूल जाओ।
  • हमको बाप ऐसा पढ़ाते हैं जो हम सच्ची कमाई कर विश्व के मालिक बन जाते हैं।
  • बाप कहते हैं हियर नो ईविल, सी नो ईविल... यह तुम्हारे लिए है। अभी तुम बच्चे मन्दिर लायक बन रहे हो।
  • तुमको ज्ञान सागर बाप मिला है तो उनका ही सुनना पड़े।
  • दूसरे की तुमको क्या सुनने की दरकार है।
  • मनुष्य टीचर के पास, गुरू के पास जाते हैं तो गुरू कभी ऐसे कहते हैं क्या कि काम विकार में नहीं जाओ।
  • वह तो पावन बनने की शिक्षा देते नहीं।
  • कोई को वैराग्य आता है तो वह घरबार छोड़ भाग जाते हैं।
  • बाप जो शिवाचार्य है वह ज्ञान का कलष तुम माताओं के सिर पर रखते हैं।
  • बाकी इस पतित दुनिया में लक्ष्मी कहाँ से आई।
  • लक्ष्मी-नारायण तो सतयुग में होते हैं।
  • अभी शिवबाबा इन द्वारा बैठ समझाते हैं।
  • शिवाचार्य वाच ब्रह्मा मुख से - तुम बरोबर स्वर्ग के द्वार खोलते हो तो जरूर तुम ही मालिक बनेंगे।
  • स्वर्ग का द्वार खोलते हो गोया स्वर्गवासी बनने का पुरूषार्थ करते हो।
  • तुम्हारा पुरूषार्थ ही है नर्कवासी मनुष्य को स्वर्गवासी बनाना।
  • बाप भी यह सेवा करते हैं ना - पतित से पावन बनाना, तुम्हारा भी यही धन्धा है, जो बाप का धन्धा है।
  • आत्माओं को स्वर्गवासी बनाओ।
  • स्वर्ग की चाहना तो सब रखते हैं ना।
  • कोई मरता है तो कहते हैं फलाना स्वर्ग पधारा।
  • उनसे पूछना चाहिए कि जब वह स्वर्ग में गया तो फिर नर्क में बुलाकर ब्राह्मण आदि क्यों खिलाते हो।
  • फिर तो यह अज्ञान अन्धियारा हुआ।
  • तुम यहाँ से सूक्ष्मवतन में ले जाकर खिलाते हो क्योंकि तुम जानते हो यह पवित्र भोजन है।
  • वह जो मर जाते हैं उनको पवित्र भोजन थोड़ेही मिलता होगा।
  • लिखते हैं बाबा फलाने का भोग लगाओ - तो उनको पवित्र भोजन मिले।
  • गाया हुआ है देवतायें भी ब्रह्मा भोजन को पसन्द करते हैं।
  • बरोबर तुम्हारी महफिल सूक्ष्मवतन में लगती है।
  • ऐसे नहीं कि ध्यान कोई अच्छा है।
  • नहीं, योग को ध्यान नहीं कहा जाता और ध्यान को योग नहीं कहा जाता।
  • बाप कहते हैं मेरे साथ बुद्धियोग लगाओ तो विकर्म विनाश होंगे।
  • वैकुण्ठ में जाकर रास-विलास करते हैं, वह कोई कमाई नहीं है।
  • मुरली तो सुन नहीं सकते।
  • यह भोग आदि तो एक रसम-रिवाज है ड्रामानुसार।
  • मनुष्यों की रसम-रिवाज और संगमयुगी ब्राह्मणों की रसम-रिवाज में रात-दिन का फर्क है।
  • यहाँ से जाकर सूक्ष्मवतन में खिलाते हैं।
  • इन बातों को जब तक नये समझें नहीं तब तक संशय उठता है।
  • हम कहेंगे ड्रामा अनुसार इसकी तकदीर में नहीं है तो संशय पड़ा और चला गया।
  • फिकर की बात नहीं, इनकी तकदीर में नहीं था।
  • पहली बात भूल जाते हैं कि हमको बाप से वर्सा लेना है।
  • कोई बात में संशयबुद्धि बन पड़ते हैं।
  • अरे हमारा काम है वर्से से।
  • हम पढ़ाई फिर क्यों छोड़े।
  • मुरली तो सुनना है ना।
  • निराकार बाप तुमको डायरेक्शन कैसे सुनायेंगे, उनको मुख जरूर चाहिए।
  • ब्रह्मा मुख से अथवा ब्रह्माकुमार कुमारियों से सुनना है।
  • कोई बाहर में दूर चले जाते हैं।
  • मुरली भी नहीं मिल सकती है तो बाप कहते हैं कोई हर्जा नहीं है।
  • तुम याद में रहो और स्वदर्शन चक्र फिराते रहो।
  • यह बाप की श्रीमत मिली हुई है।
  • कहाँ भी हो, तुम लड़ाई के मैदान में हो।
  • बाप मिलेट्री वालों को भी समझाते हैं कि तुमको वह सर्विस तो करनी है, यह तो तुम्हारा धन्धा है।
  • शहर की सम्भाल करना है।
  • तुम पघार खाते हो, एग्रीमेंट की हुई है तो सम्भाल भी करनी है।
  • बुद्धि में लक्ष्य तो बैठा हुआ है।
  • बेहद का बाप स्वर्ग का रचयिता है, वह कहते हैं बच्चे तुम मेरी याद में रहो तो विकर्म विनाश होंगे।
  • शिवबाबा की याद में रहकर खाओ तो कोई ऐसी चीज़ होगी वह पवित्र हो जायेगी।
  • जितना हो सके परहेज भी रखनी है।
  • लाचारी हालत में बाबा को याद करके खाओ।
  • इसमें ही मेहनत है।
  • ज्ञान को युद्ध नहीं कहा जाता, याद में ही युद्ध होती है।
  • याद से ही विकर्म विनाश होंगे।
  • माया का थप्पड़ नहीं लगेगा।
  • देह-अभिमानी नहीं बनेंगे।
  • तुम अपने को आत्मा समझो।
  • तुम शरीर को याद करते रहते हो, आत्मा को भूल गये हो इसलिए पूछा जाता है - आत्मा का बाप कौन है, उनको जानते हो?
  • उनका नाम रूप देश काल लिखो।
  • उनमें भी वैरायटी लिखते हैं।
  • कोई लिखते आत्मा का बाप हनूमान है, कोई क्या लिखते, कितना अज्ञान है।
  • तो फिर समझाया जाता है - आत्मा तो है निराकार। तुम्हारा गुरू तो साकार है।
  • निराकार का बाप साकार कैसे होगा।
  • समझाने की प्रैक्टिस पर सारा मदार है और साथ में मैनर्स भी अच्छे चाहिए।
  • बहुत अच्छे-अच्छे बोलने वाले हैं।
  • दूसरे को तीर अच्छा लग जाता है।
  • खुद में मैनर्स न होने कारण उन्नति होती नहीं।
  • याद बहुत अच्छी चाहिए।
  • कोई तो ज्ञान बहुत अच्छा सुनाते हैं, योग कुछ भी नहीं।
  • ऐसे नहीं कि योग बिगर ज्ञान की धारणा नहीं हो सकती है।
  • धारणा तो हो जाती है।
  • समझो किसको हिस्ट्री-जॉग्राफी सुनाते हैं, वह तो झट बुद्धि में बैठ जायेगा।
  • बाबा की याद का कुछ भी बुद्धि में नहीं होगा।
  • मास-मदिरा भी खाते होंगे।
  • यह तो एक कहानी है, वह याद पड़ना तो सहज है।
  • हिस्ट्री-जॉग्राफी बुद्धि में आ जाती है।
  • याद की बात ही नहीं।
  • पवित्रता की भी बात नहीं।
  • ऐसे भी बहुत हैं।
  • शिवबाबा को याद नहीं करते तो विकर्म विनाश होते नहीं।
  • और ही जास्ती विकर्म करते रहते हैं।
  • इतना भी बुद्धि काम नहीं करती कि यह विकर्म है।
  • फरमान न मानना, यह तो बड़ा पाप है।
  • शिवबाबा का फरमान है ना - यह करो।
  • उनका फरमान नहीं मानेंगे तो बड़ा धोखा खायेंगे।
  • बाकी हिस्ट्री-जॉग्राफी सुनाना तो बड़ा सहज है।
  • बाबा ने समझाया है तुम स्कूलों में भी जाकर समझा सकते हो।
  • यह तुम हद की हिस्ट्री-जॉग्राफी पढ़ते हो।
  • बेहद की तो तुम पढ़ते नहीं हो।
  • लक्ष्मी-नारायण का राज्य बताओ कहाँ गया?
  • सूर्यवंशी, चन्द्रंवशी डिनायस्टी जो चली वह फिर कहाँ गई?
  • उन्हों का राज्य किसने छीना?
  • किसने चढ़ाई की?
  • तुम बच्चे ही जानते हो कि यह चक्र कैसे फिरता है।
  • यह किसको भी समझाओ तो 7 रोज़ में बुद्धि में आ जायेगा।
  • परन्तु मैनर्स नहीं।
  • ऐसे नहीं कि विकार में जाने से हिस्ट्री-जॉग्राफी को भूल जायेंगे।
  • सारी बात योग की मुख्य है।
  • योग में ही माया धोखा देती है।
  • तुमको सर्वगुण सम्पन्न... यहाँ ही बनना है।
  • कई प्रतिज्ञा करके भी फिर ठहर नहीं सकते हैं।
  • माया बड़ी प्रबल है ना।
  • बाप को पूरा याद नहीं करते है तो विकर्म विनाश नहीं होते हैं और ही डबल विकर्म करते रहते हैं।
  • उनको पता भी नहीं पड़ता और कहने से भी समझ नहीं सकते।
  • तुम बच्चे जानते हो कि बाप गरीब निवाज़, रहमदिल है।
  • हम बच्चों को खास और सबको आम समझाते रहते हैं।
  • इनपर्टीक्युलर (खास) हम सुखधाम में जाते हैं।
  • इनजनरल (आम) मुक्तिधाम में जाते हैं।
  • सतयुग में बरोबर इन लक्ष्मी-नारायण का ही राज्य था - फिर चन्द्रवंशी, उनके बाद इस्लामी, बौद्धी आदि आये हैं तो वह आदि सनातन धर्म गुम हो गया है।
  • बड का झाड़ कलकत्ते में जाकर देखो, फाउन्डेशन है नहीं, सारा झाड़ खड़ा है।
  • यह भी ऐसे है।
  • अब फिर से स्थापना हो रही है।
  • ...अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुड़मार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।


  • 1) किसी भी बात में संशय उठाकर पढ़ाई नहीं छोड़नी है।

    बाप और वर्से को याद करना है।

    2) एक बाप से ही सुनना है, बाकी जो पढ़ा है वह सब भूल जाना है।

    हियर नो ईविल, सी नो ईविल, टॉक नो ईविल...।



  • ( All Blessings of 2021-22)
  • बाप की छत्रछाया के नीचे रह माया की छाया से बचने वाले सदा खुश और बेफिक्र भव

    माया की छाया से बचने का साधन है-बाप की छत्रछाया।

    छत्रछाया में रहना अर्थात् खुश रहना। सब फिक्र बाप को दे दिया।

    जिनकी खुशी गुम होती है, कमजोर हो जाते हैं उन पर माया की छाया का प्रभाव पड़ ही जाता है क्योंकि कमजोरी माया का आह्वान करती है।

    अगर स्वप्न में भी माया की छाया पड़ गई तो परेशान होते रहेंगे, युद्ध करनी पड़ेगी इसलिए सदा बाप की छत्रछाया में रहो। याद ही छत्रछाया है।



  • (All Slogans of 2021-22)
    • जिनका मुरली से प्यार है वही मास्टर मुरलीधर हैं।