21-09-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - बाप है गरीब-निवाज़, तुम गरीब बच्चे ही बाप से ज्ञान की मुट्ठी ले साहूकार बनते हो, बाप तुम्हें आप समान बनाते हैं''

प्रश्नः-

असुरों के विघ्न जो गाये हुए हैं वह इस रूद्र यज्ञ में कैसे पड़ते रहते हैं?

 

उत्तर:-

मनुष्य तो समझते हैं असुरों ने शायद यज्ञ में गोबर आदि का किचड़ा डाला होगा - परन्तु ऐसा नहीं है।

यहाँ जब किसी बच्चे को अहंकार आता है, कोई ग्रहचारी बैठती है तो जैसे किचड़ा बरसने लगता है, क्रोध में आकर मुख से जो फालतू बोल बोलते हैं, यही इस रूद्र यज्ञ में बहुत बड़ा विघ्न डालते हैं।

कई बच्चे संगदोष में आकर अपना खाना खराब कर देते हैं।

माया थप्पड़ मार इनसालवेन्ट बना देती है।

...full possibilities...

 

  • ओम् शान्ति।
  • याद में बैठे हो तो जैसे योग में बैठे हो।
  • हर एक जानते हैं कि हमको तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है।
  • यह है गुप्त मेहनत।
  • इसमें कोई बड़ाई की बात नहीं।
  • बाप कितना निरहंकारी रहते हैं, जिसमें प्रवेश करते हैं वह भी कितना निरहंकारी है।
  • प्रजापिता ब्रह्मा के कितने ढेर बच्चे हैं।
  • चलन कितनी साधारण है, जैसे घर में बड़ा बाबा चलते हैं।
  • निराकार के लिए भी कहा जाता है - निरहंकारी है।
  • गुप्त है ना।
  • इनको यह नहीं रहता कि हमारा शो हो।
  • भभके से सबको पता पड़े।
  • भभके से नाम तो होता है ना।
  • बाप कहते हैं यह सब रसम-रिवाज कलियुगी देह-अभिमानियों की है।
  • यहाँ तो शान्त में आते जाते हैं।
  • बाबा तो हमेशा कहते हैं स्टेशन पर भी कोई ना आवे।
  • कोई हंगामा नहीं।
  • बाप कहते हैं मुझे गुप्त ही रहने दो, इसमें ही मज़ा है।
  • बड़े भभके वालों को, बड़े आदमी को मारने में भी देरी नहीं करते।
  • बाबा तो है ऊंच ते ऊंच।
  • चलन गरीब से गरीब चलते हैं।
  • बाप गरीब-निवाज़ है ना।
  • गरीबों से ही मिलने आते हैं।
  • साहूकार लोग तो नामीग्रामी मनुष्यों से ही मिलते हैं।
  • इनको तो गरीब ही प्यारे लगते हैं।
  • गरीबों पर ही तरस पड़ता है।
  • तो बाप गरीबों पर तरस खाते हैं।
  • ज्ञान की मुट्ठी भर देते हैं तो तुम साहूकार बनो।
  • साहूकारों का ठहरना मुश्किल है।
  • दरकार ही नहीं है इस ज्ञान मार्ग में।
  • गवर्मेन्ट को तो धनवान लोग बहुत मदद करते हैं ना।
  • नामीग्रामी हैं ना।
  • वहाँ तो बहुत दान करने वालों का नाम अखबार में निकाला जाता है।
  • यहाँ गरीब दान करते हैं तो अखबार में डालना चाहिए।
  • चावल की मुट्ठी देकर फिर महल ले लेते हैं।
  • बाप गरीब-निवाज़ गाया हुआ है।
  • सबसे मिलते जुलते रहते हैं।
  • बड़ा आदमी मसाला बेचने वाले से मिलेगा नहीं।
  • यहाँ तो हैं ही गरीब।
  • उन्हों को ही साहूकार बनाना है।
  • बाप तो है गुप्त।
  • गरीब ही बाप से अपना वर्सा कल्प पहले मुआफिक ले लेंगे।
  • ड्रामा में नूँध ही है।
  • साहूकार तो बलि चढ़ न सकें।
  • हाँ इनको (शिवबाबा को) कोई वारिस बनाये तो कमाल कर दिखावे।
  • बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ साधारण तन में।
  • गाया हुआ है निराकार, निरहंकारी।
  • गाते भी हैं ना - गोदरी में करतार... देखो बाबा ठण्डी में गोदरी ले आकर बैठते हैं ना।
  • पतित-पावन बाप को कोई जानते नहीं है।
  • बाबा बैठकर समझाते हैं कि हे भारतवासी बच्चों - तुमको स्वर्ग का मालिक किसने बनाया?
  • लक्ष्मी-नारायण के चित्र भी यहाँ रखे हैं।
  • यहाँ तुम अविनाशी ज्ञान रत्न प्राप्त कर और दान करते हो।
  • तन-मन-धन सब समर्पण करते हो तो इसका एवज़ा मिलना चाहिए।
  • अज्ञान काल में भी बहुत दान करने वाले बड़े आदमियों पास जन्म लेते हैं।
  • यहाँ तुम बाप के आगे सरेन्डर करते हो तो पिछाड़ी में जो साहूकार बनते हैं, उनके पास जाकर जन्म लेते हैं।
  • फिर तुम वहाँ महल माडियाँ बनायेंगे।
  • दुनिया तो यही होगी।
  • वैकुण्ठ कोई छत में थोड़ेही रखा है।
  • पूछो - तुम्हारा बाप कहाँ गया?
  • कहेंगे काशीवास किया और मुक्ति को पाया अर्थात् स्वर्ग पधारा।
  • परन्तु अब तुम समझते हो मुक्ति जीवनमुक्ति किसको मिली नहीं है।
  • सब यहाँ ही आते जाते हैं।
  • कर्मो अनुसार एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं।
  • बाप कर्म-अकर्म-विकर्म की गति समझाते हैं।
  • रावण राज्य में जो भी कर्म मनुष्य करते हैं वह विकर्म बन जाते हैं।
  • बालिग अवस्था में ही हिसाब-किताब बनता है।
  • छोटे बच्चे का कुछ जमा नहीं होता है।
  • बच्चा बड़ा होता है तो उनके मॉ बाप काम कटारी पर चढ़ा देते हैं।
  • यह भी कर्म विकर्म हुआ।
  • वहाँ माया का राज्य ही नहीं।
  • यह एक भी मनुष्य जानते नहीं।
  • तुम बच्चों को बाप देही-अभिमानी बनना सिखलाते हैं।
  • और कोई सतसंग में ऐसे नहीं कहेंगे कि तुम्हारी आत्मा में सारा पार्ट बजाने की नूँध है।
  • आत्मा शरीर छोड़ दूसरा ले पार्ट बजाती है।
  • आत्मा ही कानों से सुनती है।
  • अब तुमको सेल्फ रियलाइजेशन कराया है।
  • हम आत्मा ही 84 जन्म लेते हैं।
  • आत्मा को अब निश्चय हुआ है देह-अभिमान खत्म।
  • पहला अवगुण ही यह है।
  • देह-अभिमान आने से ही और विकार चटकते हैं।
  • तो अब देही-अभिमानी बनना है।
  • बाबा हम आत्मायें बस आई कि आई।
  • 84 जन्म पूरे किये हैं।
  • ड्रामा अब पूरा हुआ।
  • अब हमको नया जन्म मिलेगा।
  • खुशी होनी चाहिए ना।
  • सर्प खल छोड़ता है फिर नई लेता है।
  • संन्यासी यह मिसाल दे नहीं सकते।
  • यहाँ तुम भी नई खाल लेने के पहले पुरानी छोड़ते हो।
  • फिर वहाँ हर जन्म में आपेही पुरानी खाल छोड़ नई ले लेते हो।
  • बच्चे समझते हैं कि अब हम यह पुरानी खाल छोड़ घर जायेंगे।
  • फिर स्वर्ग में समय पर पुराना शरीर छोड़ दूसरा लेते रहेंगे।
  • सर्प तो बहुत बार खाल उतारता है।
  • तुमको तो यहाँ प्रैक्टिस कराई जाती है।
  • यह 84 जन्मों की सड़ी हुई खाल है, इनको श्याम कहा जाता है।
  • चमड़ी (शरीर) काली तो आत्मा भी काली है।
  • सोना 24 कैरेट होता है तो जेवर भी ऐसे बनते हैं।
  • आगे खाद डालने का कायदा नहीं था।
  • सच्चा सोना चलता था।
  • यह गिन्नी आदि विलायत से निकली है।
  • विलायत में सच्ची मुहरें बनती नहीं, यहाँ ही सच्चे सोने की मुहरे थी।
  • अब तो सब मंहगा हो गया है।
  • सोने में खाद डालनी ही है।
  • तुम्हारे दिल में गुप्त खुशी है कि हम तो जाकर सोने के महल बनायेंगे।
  • जैसे यहाँ पत्थरों की दीवार है, वहाँ सोने की दीवार होगी।
  • हम पारसबुद्धि बनते हैं तो महल भी सोने के बनाते हैं।
  • पुराना सब खलास हो जायेगा।
  • इस ड्रामा को बड़ा युक्ति से समझना होता है।
  • नई दुनिया में सब कुछ नया होता है।
  • यह कितनी सहज बातें हैं।
  • अच्छा यह भी समझ में न आये तो बाप को बड़े प्यार से याद करो इसलिए यह सब महीन बातें बाबा ने देर से समझाई हैं।
  • शुरू में बहुत सहज तोतली बातें सुनाते थे।
  • ऐसे थोड़ेही कहेंगे कि बाबा ने यह सब पहले क्यों नहीं सुनाया कि आत्मा इतनी छोटी है।
  • ड्रामा अनुसार जो कुछ पास हुआ, कल्प पहले मुआफिक जैसे समझाया था - ऐसे समझा रहे हैं।
  • मनुष्य इस ड्रामा के बन्धन में बांधा हुआ है।
  • कल्प बाद ही फिर ऐसे समझा रहे हैं।
  • फिर भी ऐसे ही समझायेंगे।
  • बहुत बच्चे साधारण रूप देख मूँझते हैं, उल्टा बोलने लग पड़ते हैं।
  • अच्छे-अच्छे बच्चे उनको भी माया चमाट मार देती है।
  • समझते हैं - बस जो कुछ है निराकार ही है।
  • सो तो ठीक है ना।
  • निराकार नहीं होता तो हम तुम कैसे होते।
  • परन्तु निराकार को तो रथ जरूर चाहिए ना।
  • रथ बिगर क्या करेंगे, शिवबाबा क्या करेगा?
  • रथ में आये तब तो तुम उनसे मिलेंगे।
  • तुम्हीं से सुनूँ, तुम्ही से बैठूँ। तो रथ जरूर चाहिए ना।
  • अच्छा साकार बिगर निराकार को याद कर दिखाओ।
  • क्या तुमको ज्ञान प्रेरणा से मिलेगा?
  • फिर मेरे पास आये ही क्यों हो?
  • यह बाबा भी कहता है कि वर्सा तो शिवबाबा से लेना है।
  • शिवबाबा कहते हैं मैं इस साधारण तन में बैठ पढ़ाता हूँ।
  • पढ़ाई तो जरूर चाहिए ना।
  • बहुत अच्छे-अच्छे बच्चों का माथा ही फिर जाता है।
  • दो चार सेन्टर खोलते तो बस अहंकार आ जाता है।
  • फिर उल्टा बोलते रहते हैं।
  • फिर कभी बुद्धि में आ भी जाता है कि यह हमने ठीक नहीं कहा, फिर पश्चाताप करते हैं।
  • बाबा कहते हैं मैं साकार बिगर कैसे समझाऊंगा।
  • इसमें प्रेरणा की तो बात ही नहीं।
  • मैं टीचर के रूप में बैठता हूँ।
  • गरीबों पर माथा मारते हैं।
  • गरीबों को ही दान करना चाहिए।
  • कोई भी बात समझ में न आये तो बोलो अच्छा बाबा से पूछकर बतायेंगे क्योंकि ज्ञान की अभी बहुत मार्जिन है।
  • आगे चलकर समझते जायेंगे।
  • दिन-प्रतिदिन तुम नई-नई प्वाइंटस सुनते रहेंगे।
  • तुम बच्चों को तो बिल्कुल ही निरहंकारी बनकर रहना है।
  • अहंकार आने से ही फिर सारा किचड़ा बाहर निकल आता है।
  • किचड़े की जैसे वर्षा होती है।
  • कहते भी हैं रूद्र यज्ञ में असुरों का किचड़ा पड़ा - वह समझते हैं शायद गोबर आदि डालते होंगे।
  • सचमुच यह गोबर है।
  • फालतू बोलने लग पड़ते हैं।
  • क्रोध आदि करते यह जैसे गोबर डालते हैं।
  • चलते-चलते किसको ग्रहचारी बैठती है तो छटेले बन जाते हैं।
  • माया थप्पड़ मार एकदम इनसालवेंट बना देती है।
  • कमाई में ग्रहचारी होती है ना।
  • तब तो कहते हैं आश्चर्यवत सुनन्ती, संगदोष में आकर अपना खाना खराब कर देते हैं।
  • बाप कहते हैं बहुत खबरदार रहना है।
  • संग तारे, कुसंग बोरे... बाबा बिल्कुल मना कर देते हैं।
  • बड़े आदमी के दुश्मन बहुत बन पड़ते हैं।
  • यहाँ फिर विष का खाना न मिलने से कामेशु, क्रोधेशु बन पड़ते हैं।
  • बस हम इनको मारेंगे।
  • बाप तो कहते हैं - काम तो तुम्हारा दुश्मन है।

इस अन्तिम दौर में

अब एकान्तवासी बनने का अभ्यास करें

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ओमशान्ति

शिवबाबा याद है?

अब घर जाना है

  • तुम पावन देवी-देवता थे।
  • अभी कहते हो कि हम पतित दु:खी हैं।
  • बाबा कहते हैं - इस ज्ञान यज्ञ में असुरों के विघ्न बहुत पड़ेंगे।
  • शुरू से ही पड़ते आये हैं।
  • मुख्य है ही पवित्रता की बात।
  • तुम पुकारते भी हो कि हे पतित-पावन आओ।
  • तो अब आये हैं - पावन बनाते हैं।
  • फिर क्यों पतित बनने चाहते हो?
  • विकारों पर ही शुरू से झगड़ा चलता है।
  • बच्चियाँ भी कहती हैं - हमको तो बाप से वर्सा जरूर लेना है - कुछ भी हो जाए।
  • बाप क्या करेगा?
  • मारेगा ना।
  • लड़ाई में कितने मरते हैं।
  • तुमको बाप कोई मार नहीं डालेगा।
  • हाँ सहन जरूर करना पड़ता है, इसमें महावीरता चाहिए।
  • शिव शक्ति का गायन तुम्हारा ही है।
  • आदि देव को महावीर कहते हैं।
  • परन्तु अर्थ थोड़ेही समझते हैं।
  • अब तुम समझते हो कि माया पर जीत पाते हैं और दूसरों को मायाजीत बनाते हैं।
  • देलवाड़ा मन्दिर में जगत अम्बा भी बैठी है।
  • कोठरियों में बच्चियाँ भी बैठी हैं।
  • महावीर बच्चे सब ब्राह्मण ब्राह्मणियाँ ठहरे।
  • तुम्हारी बुद्धि में कितना राज़ है।
  • हूबहू तुम्हारा ही यादगार है।
  • लक्ष्मी-नारायण का मन्दिर भी यादगार है।
  • गांधी की बरसी मनाते हैं।
  • यह-यह किया, टैगोर ऐसा था, अच्छा काम करते थे।
  • कितनी बड़ी-बड़ी जीवन कहानियाँ लिखी हुई हैं।
  • कितने वाल्युम्स हैं।
  • यहाँ तुम्हारी बुद्धि ही बड़ा वाल्यूम है।
  • सारी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ तुम्हारी बुद्धि में है।
  • बुद्धि में ही ज्ञान की धारणा होती है।
  • किनकी बुद्धि विशाल है - किनकी कम है।
  • नम्बर हैं ना।
  • यह है नई नॉलेज, जो बाप के सिवाए कोई सुना नहीं सकते।
  • इस बाप पर बलि चढ़ने से तुमको स्वर्ग का मालिक बना देते हैं।
  • बेहद का बाप पतित दुनिया, पतित शरीर में आकर बच्चों के लिए कितनी मेहनत करते हैं।
  • तो जरूर बच्चों को बलि चढ़ना पड़े।
  • वह शिवबाबा तो है ही निराकार, दाता है ना।
  • कहते हैं शिवबाबा हम आपको पैसे भेज देते हैं, मकान बनाने के लिए।
  • मैं तो निराकार हूँ तो जरूर ब्रह्मा द्वारा ही बनाऊंगा।
  • डायरेक्शन देता हूँ - तुम्हारे लिए बनावें।
  • हम तो आये हैं थोड़े समय के लिए, फिर निर्वाणधाम चले जायेंगे।
  • कितना प्यार से बैठ समझाते हैं - कितनी सहज बात है, देह सहित देह के सब सम्बन्ध त्याग एक बाप को याद करो।
  • चाहे तो स्वराज्य पाओ, चाहे प्रजा पद पाओ।
  • तुम्हारे पुरूषार्थ पर है।
  • एक-एक राजा रानी के पास प्रजा कितनी लाखों के अन्दाज में आती है।
  • यह ज्ञान तो ढेर सुनेंगे।
  • आप समान बनाने की मेहनत करनी है।
  • पावन यहाँ बनना है।
  • तुम जानते हो पतित-पावन बाप आया हुआ है।
  • कल्प पहले मुआफिक हमको समझा रहे हैं।
  • बाबा ने राज्य दिलाया था - रावण ने छीन लिया है।
  • हार कैसे हुई है फिर जीतना कैसे है - यह भी बुद्धि में हैं।
  • बहुत बच्चे यह भी भूल जाते हैं।
  • माया नाक से पकड़ लेती है।
  • सेकेण्ड में जीवनमुक्ति पाते हैं फिर झट जीवनबंध भी हो जाते हैं।
  • देरी नहीं करते।
  • बाप कहते हैं बच्चे खबरदार रहो।
  • तुम रूप-बसन्त बन सदा मुख से रत्न ही निकालो।
  • किचड़ा सुनना भी नहीं चाहिए।
  • समझो हमारा यह दुश्मन है।
  • ज्ञान के सिवाए और सब बातें सुनना ईविल है।
  • ...अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुड़मार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।


  • 1) पहला अवगुण जो देह-अभिमान का है, उसे निकालकर पूरा-पूरा देही-अभिमानी बनना है।

    2) अविनाशी ज्ञान धन जो बाप से मिल रहा है, उसका दान करना है।

    बाप समान निरहंकारी बनना है।

    मुख से रत्न निकालने हैं। ईविल बातें नहीं सुननी है।



  • ( All Blessings of 2021-22)
  • रहम की भावना को इमर्ज कर दुख दर्द की दुनिया को परिवर्तन करने वाले मास्टर मर्सीफुल भव

    प्रकृति की हलचल में जब आत्मायें चिल्लाती हैं, मर्सी और रहम मांगती हैं तो अपने मर्सीफुल स्वरूप को इमर्ज कर उनकी पुकार सुनो।

    दुख दर्द की दुनिया को परिवर्तन करने के लिए स्वयं को सम्पन्न बनाओ।

    परिवर्तन की शुभ भावना को तीव्र करो।

    आपके सम्पन्न बनने से यह दुख की दुनिया सम्पन्न (समाप्त) हो जायेगी, इसलिए स्वयं प्रति, चाहे सर्व आत्माओं के प्रति रहम की भावना इमर्ज करो।

    जहाँ रहम होगा, वहाँ तेरा-मेरा की हलचल नहीं होगी।



  • (All Slogans of 2021-22)
    • ज्ञान और योग के दोनों पंख मजबूत हों तब उड़ती कला का अनुभव कर सकेंगे।