19-09-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - तुम फिर से राजयोग सीख रहे हो, तुम्हें भगवान फिर से पढ़ाते हैं, तुम राजाई के लिए यह पढ़ाई पढ़ रहे हो, अपनी एम-आब्जेक्ट सदा याद रखो''
प्रश्नः-
अभी तुम बच्चे कौन सी तैयारी बहुत खुशी से कर रहे हो?
उत्तर:-
तुम अपना यह पुराना शरीर छोड़ बाप के पास जाने की तैयारी बहुत खुशी-खुशी से कर रहे हो।
एक बाप की ही याद में शरीर छूटे, घुटका न खाना पड़े - ऐसी प्रैक्टिस यहाँ ही करनी है।
तुम्हारी अभी स्टूडेन्ट लाइफ बेपरवाह लाइफ है, इसलिए घुटका प्रूफ बनना है।
गीत:- रात के राही...
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- ओम् शान्ति।
- रूहानी बच्चे पढ़ रहे हैं।
- स्टूडेन्ट जब पढ़ते हैं तो यह जानते हैं कि हम क्या पढ़ते हैं।
- पढ़ाने वाले को भी जानते हैं और एम-आब्जेक्ट उद्देश्य और प्राप्ति क्या है, वह भी अच्छी तरह से जानते हैं।
- अभी तुम सब जानते हो कि हम मनुष्य से देवता बन रहे हैं।
- इस समय हम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण बने हैं।
- तुम क्या पढ़ते हो?
- राजयोग।
- यह भी जानते हो हम फिर से राजयोग सीख रहे हैं और पढ़ने वाले कभी ऐसे नहीं कहेंगे कि हम फिर से पढ़ रहे हैं।
- यहाँ तुम बच्चों को निश्चय है कि हम फिर से राजयोग सीख रहे हैं।
- जो 5 हजार वर्ष पहले भी सीखा था।
- यह ज्ञान सिर्फ तुम्हारे ही पास है।
- भगवान फिर से आकर पढ़ाते हैं।
- यह कोई कम बात थोड़ेही है।
- यह भी बच्चों को पता है कि भगवान एक है और भगत अनेक हैं।
- इससे सिद्ध होता है - बाप एक और बच्चे अनेक होते हैं।
- बाप को क्रियेटर तो सब मानेंगे।
- रचना को रचता द्वारा वर्सा मिलता है।
- रात को प्रश्न पूछा था ना - बाप को कैसे पहचाना जाए?
- बाप खुद कहते हैं हमने तुमको बच्चा बनाया है तब तो सामने बैठे हो।
- हम तुमको फिर से मनुष्य से देवता बना रहा हूँ, राजयोग सिखा रहा हूँ - जिससे तुम सो लक्ष्मी-नारायण बनेंगे।
- एम-आब्जेक्ट बुद्धि में रहनी चाहिए ना।
- तुम्हारी बुद्धि में है लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तो एक ही राज्य था।
- सारे विश्व पर राज्य था।
- तो तुम बच्चों को चित्रों पर बैठ समझाना है।
- हम क्या पढ़ रहे हैं।
- यह है एम-आब्जेक्ट, स्कूल में बच्चे पढ़ते हैं तो मात-पिता भी जानते हैं क्या पढ़ रहा है।
- यहाँ तुम फिर से राजाई के लिए पढ़ रहे हो।
- तो तुमको मित्र सम्बन्धियों को भी बतलाना पड़े।
- हम इस गीता पाठशाला में राजयोग सीखते हैं, जिससे हम राजाओं का राजा बनेंगे।
- इस पाठशाला में बूढ़े जवान बच्चे सब पढ़ते हैं।
- यह वन्डर है ना।
- पाठशाला में तो ऐसा होता नहीं इसलिए इसको सतसंग भी कहा जाता है।
- सतसंग में तो सब जाते हैं।
- परन्तु वह ऐसे नहीं कहेंगे कि हम राजयोग सीखने जाते हैं।
- उनको कोई भगवान तो नहीं पढ़ाते हैं।
- तुमको तो भगवान खुद पढ़ा रहे हैं।
- यह चित्र तो घर-घर में होना चाहिए।
- माता-पिता, मित्र सम्बन्धी जो भी आयें उनको समझाना है कि हम यह पढ़ रहे हैं।
- यह पढ़ाई तो बहुत सहज है।
- नाम ही है सहज ज्ञान, सहज राजयोग।
- राजा जनक को भी सेकण्ड में ज्ञान मिला और जीवनमुक्त हुआ।
- मनुष्य भी कहते हैं हमको जनक मिसल ज्ञान चाहिए, जो हम गृहस्थ में रहते पा सकें।
- यह तो बहुत ऊंच पढ़ाई है।
- मनुष्य से देवता बनना है।
- देवताओं की महिमा कितनी ऊंची है, सर्वगुण सम्पन्न... यह है मृत्युलोक।
- वह है अमरलोक।
- पतित दुनिया आसुरी, पावन दुनिया है दैवी दुनिया।
- पावन दुनिया में जाने लिए पवित्र बनना है।
- लक्ष्मी-नारायण पावन थे ना।
- अभी तो वह हैं नहीं।
- यह तो पतित राज्य है फिर से पावन बनना है।
- लक्ष्मी-नारायण का चित्र बहुत अच्छा है।
- लक्ष्मी-नारायण में सभी का प्यार रहता है, तब तो बड़े-बड़े आलीशान मन्दिर बनाते हैं।
- श्रीकृष्ण का तो छोटा-छोटा मन्दिर बनाते हैं।
- जैसे बच्चों का होता है उनको यह पता ही नहीं कि राधे-कृष्ण ही लक्ष्मी-नारायण बनते हैं।
- तुम समझा सकते हो कि आज से 5 हजार वर्ष पहले इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य भारत में था और कोई के चित्र हैं नहीं।
- सूर्यवंशी डिनायस्टी मशहूर है।
- लक्ष्मी-नारायण और सीता-राम की डिनायस्टी थी फिर द्वापर कलियुग होता है।
- अभी कलियुग का अन्त है।
- हम फिर से वही राजयोग सीख रहे हैं।
- पाँच हजार वर्ष पहले राजयोग सीख राजाई प्राप्त की थी।
- बरोबर वह सम्पूर्ण निर्विकारी थे।
- अभी पतित दुनिया है इसलिए परमपिता परमात्मा को आना होता है।
- गाते भी हैं पतित-पावन आओ, वह तो निराकार ठहरा ना।
- श्रीकृष्ण तो प्रिन्स है सतयुग का।
- वह कैसे आकर पावन बनायेंगे।
- तो समझाना पड़े कि साकार को भगवान नहीं कहेंगे।
- दूसरे धर्म वाले परमात्मा को निराकार मानते हैं।
- वही लिबरेटर, गाइड, ब्लिसफुल, गॉड फादर, सर्व का दु:ख हर्ता सुख कर्ता है।
- बाप जब दु:ख हरते हैं तो सुख भी देते होंगे ना।
- तुम मित्र सम्बन्धियों आदि को समझा सकते हो।
- वहाँ तो वेद शास्त्र अनेक मनुष्य सुनाते हैं।
- यहाँ तो सब सुनते ही एक से हैं।
- बाप कहते हैं तुम मेरे से ही सुनो।
- भगवानुवाच - जरूर किस तन में आयेगा ना।
- गाया हुआ है ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण रचे।
- हम ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हैं - 5 हजार वर्ष पहले भी संगम पर ब्रह्मा मुख कमल से ब्राह्मण रचे गये, जो ब्राह्मण फिर देवता बने थे।
- अभी हम शूद्र से ब्राह्मण बन फिर देवता बनेंगे।
- हम फिर से राजयोग सीख रहे हैं।
- कल्प पहले भी सीखे थे।
- समझेंगे यह तो बड़े निश्चय से बोलते हैं। भगवानुवाच - मैं तुमको फिर से राजाओं का राजा बनाता हूँ।
- अक्षर तो बरोबर गीता में हैं।
- राजयोग से हमने राजाई पाई फिर द्वापर में रावणराज्य शुरू हुआ।
- अभी रावण राज्य पूरा होता है, हम फिर से राजयोग सीख रहे हैं, और पाठशालाओं में ऐसे नहीं कहते हैं कि हम फिर से पढ़ रहे हैं।
- यह तो बच्चों की ही बुद्धि में है।
- कहते हैं कि मैं फिर से राजयोग सिखाने आया हूँ।
- उस समय महाभारत लड़ाई लगी थी।
- पाण्डव गीता सुनते थे।
- तुम हो रूहानी पण्डे।
- हे रूहानी बच्चे अथवा रूहानी पण्डे थक मत जाना।
- बाप कहते हैं ना -गीता जरूर भगवान ही सुनायेंगे ना।
- है भी भगवानुवाच।
- तुम जानते हो हम स्वर्ग के सुख पाने के लिए राजयोग सीख रहे हैं।
- भगवान है ही निराकार।
- शिव जयन्ति मनाते हैं तो जरूर जन्म लेकर कुछ किया होगा ना।
- वर्सा दिया होगा।
- बरोबर सतयुग में सूर्यवंशी देवता थे।
- डिनायस्टी में तो बहुत होते हैं ना।
- जैसे एडवर्ड दी फर्स्ट, सेकेण्ड, थर्ड... उन्हों की भी डिनायस्टी चलती है।
- यह भी ऐसे है।
- तुम बच्चे चित्रों पर अच्छी रीति समझा सकते हो।
- यह (ब्रह्मा) कहते हैं - मैं थोड़ेही भगवान हूँ।
- बनाने वाला तो दूसरा होगा ना।
- मैं कहाँ से सीखा?
- अगर हमारा मनुष्य गुरू होता तो गुरू से लाखों करोड़ों सीखने वाले चाहिए।
- सिर्फ यही सीखा क्या? और सब चेले कहाँ गये?
- यहाँ तो है ही भगवानुवाच।
- उसने यह राज़ समझाया है।
- यह चित्र कैसे बैठ निकलवाये हैं।
- लक्ष्मी-नारायण बचपन में राधे-कृष्ण थे।
- गीता का भगवान कहते हैं - मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुग पर आता हूँ।
- प्रलय की तो बात ही नहीं।
- तुम भी कहते हो हम फिर से देवता बन रहे हैं।
- शिव जयन्ति भी गाई जाती है।
- लाखों वर्ष तो नहीं हुए।
- बाप बैठ समझाते हैं इन शास्त्रों आदि में कोई सार नहीं है, यह पढ़ते-पढ़ते तुम्हारी कला उतरती गई है।
- अभी तो कोई कला नहीं रही है।
- बाप कहते हैं भक्ति से कोई भी मेरे से मिल नहीं सकता।
- मुझे आना ही पड़ता है।
- तुम कहते हो भगवान किस न किस रूप में आयेगा।
- श्रीकृष्ण तो है ही सतयुग का प्रिन्स।
- शिव तो है निराकार।
- वह जरूर किसमें आया होगा।
- पतित-पावन है तो जरूर कलियुग के अन्त में आया होगा।
- श्रीकृष्ण को द्वापर में ले गये हैं, यह तो शोभता नहीं।
- बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ संगम पर।
- इस बूट (ब्रह्मा) में मैं फिट होता हूँ।
- ड्रामा में कोई चेन्ज नहीं हो सकती।
- रोला कितना कर दिया है इसलिए प्रश्न पूछा जाता है - गीता का भगवान कौन?
- यह बड़ी जरूरी बात है।
- इसी में सारा रोला है।
- नर्क को पलटने और स्वर्ग बनाने वाला कौन?
- बाप ही कर सकते हैं।
- लक्ष्मी-नारायण कितने एक्टिव थे।
- बाप कहते हैं सिर्फ मुझे याद करो तो इस योग अग्नि से विकर्म विनाश हो जायेंगे।
- सब तो नहीं समझेंगे।
- कोई को अच्छा लगता है परन्तु पवित्र रहने की हिम्मत नहीं रखते हैं।
- अभी देवी-देवता धर्म का सैपलिंग लग रहा है।
- जो कल्प पहले ब्राह्मण बने होंगे, वही बनेंगे।
- यह कलम बाप के सिवाए कोई लगा नहीं सकता।
- देवता धर्म वालों को शूद्र से ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण जरूर बनना पड़ेगा।
- नहीं तो देवता कैसे बनेंगे।
- विराट रूप पर समझाना होता है।
- चोटी के ऊपर शिव भी दिखाते हैं।
- उन्होंने शिव को और ब्राह्मण वर्ण को उड़ा दिया है।
- बाकी देवता, क्षत्रिय... दिखा दिये हैं।
- विराट रूप दिखाते भी विष्णु के रूप में हैं।
- यह नॉलेज समझने की है।
- मनुष्य कैसे 84 जन्मों का चक्र लगाते हैं, और कोई यह नॉलेज नहीं जानते हैं।
- बाप कहते हैं यह नॉलेज ही प्राय:लोप हो जाती है, परम्परा चल न सके।
- स्वदर्शन चक्र देवताओं को नहीं है।
- यह तुमको है।
- परन्तु तुम तो सम्पूर्ण बने नहीं हो।
- तो निशानी देवताओं को दे दी है।
- स्वदर्शन चक्र फिराते, कमल पुष्प समान बनते, शंखध्वनि करते तुम देवता बन जायेंगे।
- शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी स्थापन कर रहे हैं।
- यह बातें कोई की बुद्धि में नहीं हैं।
- भगवान पढ़ाते हैं, हम विश्व के मालिक बनते हैं तो कितना न हर्षित होना चाहिए।
- स्टूडेन्ट लाइफ इज़ दी बेस्ट।
- पढ़ाई की लाइफ बेपरवाह अच्छी रहती है।
- पीछे तो जाल में फँस जाते हैं।
- कितने दु:ख की जाल है।
- सतयुग में कोई बात नहीं।
- खुशी-खुशी से शरीर छोड़ते हैं।
- घुट-घुट कर मरना रावणराज्य में होता है।
- तुम खुशी से तैयारी कर रहे हो कि हम कब बाबा के पास जायें, बैठे ही इसलिए हैं।
- पुराना शरीर छोड़ जायें। फिर 21 जन्म घुटका खाने की बात नहीं।
- इस जन्म में घुटका बिल्कुल नहीं खाना है, पतित से पावन बन रहे हैं।
- बहुत खुशी में रहना है।
- अच्छा यहाँ से सूक्ष्मवतन में जाते हैं, वह भी अच्छा है।
- फरिश्ता तो बनना है।
- आधाकल्प तो घुटका खाते आये हैं।
- अब बाबा के पास जायें।
- खुशी से तैयारी कर रहे हैं।
- घुटका प्रूफ यहाँ बनना है।
- ऐसे संन्यासी भी बहुत होते हैं जो बैठे-बैठे शरीर छोड़ देते हैं।
- सन्नाटा हो जाता है।
- समझते हैं हम ब्रह्म में लीन हो जायेंगे।
- जाते तो कोई नहीं - जब तक बाप न आये।
- शिवबाबा का भण्डारा भरपूर है।
- कहते हैं ना - जिस भण्डारे से खाया, वह भण्डारा भरपूर काल कंटक दूर... यहाँ तो अकाले मृत्यु होती रहती है।
- पतित-पावन शिवबाबा के भण्डारे में जो आता है वह पावन बन जाता है, इसलिए इसको ब्रह्मा भोजन कहा जाता है।
- इनकी बड़ी महिमा है।
- योग भी बड़ा अच्छा चाहिए।
- योग में रह भोजन बनाओ और खाओ तो तुम्हारी बहुत अच्छी उन्नति होगी।
- उस भोजन में बहुत ताकत आ जाती है।
- योग में रह तुम भोजन खाओ तो बहुत ताकत मिलेगी और तन्दरूस्त भी रहेंगे।
- बाबा खुद कहते हैं कि हम बाबा की याद में बैठे जैसेकि हम और बाबा खाते हैं, परन्तु फिर भी भूल जाता हूँ।
- एक बाप की याद में ही शरीर छूटे, कोई घुटका नहीं आये, ऐसी प्रैक्टिस करनी चाहिए।
- बाबा की याद में रहने से एक तो शान्ति रहेगी और हेल्दी बनेंगे।
- भोजन पवित्र हो जायेगा।
- अन्त का गायन है अतीन्द्रिय सुख गोप-गोपियों से पूछो।
- झाड़ में समझानी बहुत अच्छी है।
- त्रिमूर्ति और गोला भी जरूरी है।
- दिन-प्रतिदिन तुम्हारा नाम बहुत बाला होता जायेगा।
...अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुड़मार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
1) सदा तन्दरूस्त रहने के लिए याद में रहकर भोजन बनाना वा खाना है।
भोजन करते समय स्मृति रहे - हम बाबा के साथ खा रहे हैं तो भोजन में ताकत भर जायेगी।
2) देवता बनने के लिए शंखध्वनि करनी है।
स्वदर्शन चक्र फिराते रहना है।
कमल फूल समान पवित्र जीवन बनाना है।
( All Blessings of 2021-22)
ब्राह्मण जन्म की विशेषता को नेचरल नेचर बनाने वाले सहज पुरूषार्थी भव
जैसे किसी का जन्म राज परिवार में हो, तो बार-बार स्मृति में लाते हैं कि मैं राजकुमार या राजकुमारी हूँ, चाहे कर्म रूचि के कारण साधारण भी हो लेकिन अपने जन्म की विशेषता को नहीं भूलते।
ऐसे ब्राह्मण जन्म ही विशेष जन्म है, तो जन्म भी श्रेष्ठ, धर्म भी श्रेष्ठ और कर्म भी श्रेष्ठ है।
इसी श्रेष्ठता अर्थात् विशेषता की जीवन स्मृति में नेचरल रहे तो सहज पुरूषार्थी बन जायेंगे।
विशेष जीवन वाली आत्मायें कभी साधारण कर्म नहीं कर सकती।
(All Slogans of 2021-22)
- डबल लाइट रहना है तो विघ्न-विनाशक बनो।
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