15-09-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - इस दु:ख के घाट पर बैठ शान्तिधाम और सुखधाम को याद करो, इस दु:खधाम को भूल जाओ, यहाँ बुद्धि भटकनी नहीं चाहिए''
प्रश्नः-
तुम्हारे पुरूषार्थ का आधार क्या है?
उत्तर:-
निश्चय। तुम्हें निश्चय है - बाप नई दुनिया की सौगात लाये हैं, इस पुरानी दुनिया का विनाश होना ही है।
इस निश्चय से तुम पुरूषार्थ करते हो।
अगर निश्चय नहीं है तो सुधरेंगे नहीं।
आगे चल अखबारों द्वारा तुम्हारा मैसेज सबको मिलेगा, आवाज निकलेगा।
तुम्हारा निश्चय भी पक्का होता जायेगा।
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- ओम् शान्ति।
- टॉवर आफ साइलेन्स और टॉवर आफ सुख।
- तुम बच्चे यहाँ बैठे हो तो तुम्हारी बुद्धि घर में जानी चाहिए।
- वह है शान्ति का टॉवर।
- ऊंच ते ऊंच को टॉवर कहा जाता है।
- तुम शान्ति के टॉवर हो।
- घर में जाने के लिए तुम पुरुषार्थ कर रहे हो।
- कैसे जाते हो?
- जो टॉवर में रहने वाला बाप है, वह शिक्षा देते हैं कि मुझे याद करो तो शान्ति के टॉवर में आ जायेंगे।
- उसको घर भी कहा जाता है, शान्तिधाम भी कहा जाता है।
- यह बातें समझाई जाती हैं।
- अपने शान्तिधाम, सुखधाम की याद में रहो।
- नहीं रह सकते हो तो गोया जंगल के कांटे हो, इसलिए दु:ख भासता है।
- अपने को शान्तिधाम के निवासी समझो।
- अपने घर को याद करना है ना।
- भूलना नहीं है।
- घर है ही बाप का।
- यह है ही दु:ख का घाट।
- यहाँ बैठे भी जिनको बाहर की बातें याद आती हैं तो ऐसे नहीं कहेंगे कि इनको अपना घर याद है इसलिए बाप रोज़ शिक्षा देते रहते हैं - घड़ी-घड़ी शान्ति-धाम, सुखधाम को याद करो।
- गीता में भी बाप के महावाक्य हैं कि मुझे याद करो।
- भगवान क्या बनायेंगे?
- स्वर्ग का मालिक बनायेंगे और क्या!
- जब स्वर्ग का मालिक बनने बैठे हो तो घर के लिए, स्वर्ग के लिए जो बाप श्रीमत देते हैं - उस पर पूरा-पूरा चलना है।
- दुनिया में कितने ढेर के ढेर गुरू हैं।
- बाप ने समझाया है कि कोई भी धर्म स्थापक को गुरू नहीं कहा जाता है।
- वह तो सिर्फ धर्म स्थापन के लिए आते हैं।
- वापिस ले जाने थोड़ेही आते हैं।
- गुरू अर्थात् जो वापिस निर्वाणधाम, वानप्रस्थ में ले जाये।
- परन्तु एक भी गुरू वापिस ले जाने वाला है नहीं।
- एक भी निर्वाणधाम में जाते नहीं।
- वाणी से परे अर्थात् घर। वानप्रस्थ का अर्थ न गुरू लोग जानते, न फालोअर्स ही जानते।
- तो बच्चों को कितना समझाया जाता है।
- यह चित्र हैं सतयुग के और वह चित्र हैं त्रेता के।
- उन्हों को भगवान नहीं कहा जाता है।
- लक्ष्मी-नारायण को भी भगवान-भगवती नहीं कहा जाता।
- आदि सनातन है देवी-देवता धर्म।
- सिवाए देवी-देवताओं के कोई भी स्थाई पवित्र होते नहीं।
- 21 जन्म पवित्र सिर्फ एक ही धर्म रहता है।
- फिर धीरे-धीरे अवस्था कम होती जाती है।
- त्रेता में दो कला कम तो सुख भी कम हो जाता है।
- उसको कहा जाता है त्रेतायुग 14 कला।
- अभी तुमको बाप का परिचय है और सृष्टि चक्र का ज्ञान है।
- उसको ही तुम याद करते हो, परन्तु कइयों की बुद्धि कहाँ न कहाँ भटकती रहती है, याद नहीं करते हैं।
- अच्छा और कुछ भी न समझ सको तो आस्तिक बनकर बाप को तो बुद्धि में याद रखो।
- बाप और रचना के आदि-मध्य-अन्त को तो जानते हो ना।
- उस झाड़ का आदि-मध्य-अन्त नहीं कहा जाता है।
- इस झाड़ का आदि-मध्य-अन्त है क्योंकि मध्य में रावण राज्य शुरू हो जाता है।
- कांटा बनना शुरू होता है।
- बगीचा, जंगल बनना शुरू होता है।
- इस समय सारे झाड़ की जड़जड़ीभूत अवस्था हो गई है।
- सारा झाड़ सूखकर तमोप्रधान हो गया है।
- सारा सूखा हुआ झाड़ है, फिर कलम लगाना पड़े।
- इसका कलम लगता है, कलम न लगे तो प्रलय हो जाए।
- प्रलय अर्थात् सारी जलमई नहीं होती है।
- भारत रह जाता है - परन्तु जलमई नाम तो है ना।
- मीठे-मीठे बच्चे जानते हैं कि चारों ओर ही जलमई हो जाती है।
- भारत ही सिर्फ रहता है।
- जैसे बाढ़ आती है फिर उतरती भी है ना।
- कहते भी हैं बी.के. सारा दिन मौत ही मौत कहते रहते।
- बस मौत आने वाला है।
- तो समझते हैं कि यह तो अशुभ बोलते हैं।
- बोलो नहीं।
- हम कोई विनाश थोड़ेही कहते हैं।
- हम तो कहते हैं पवित्रता, सुख, शान्ति का धर्म स्थापन हो रहा है।
- विनाश न हो तो शान्ति कैसे हो - गुप्त वेष में शान्तिधाम, सुखधाम की स्थापना हो रही है।
- यह तो हम शुभ बोलते हैं।
- तुम भी कहते हो ना - हे पतित-पावन आओ, हमको पावन बनाकर ले चलो।
- तुम खुद कहते हो ना कि हमको ले चलो।
- हम भी शुभ बोलते हैं, तुम भी शुभ बोलते हो।
- तुम कहते हो हमको पावन बनाकर इस दु:खधाम की दुनिया से ले चलो शान्तिधाम में।
- यह तो शुभ बोलते हो ना।
- कहते हो आओ माना पतितों का विनाश करो, पावन की स्थापना करो।
- मांगते हो ना कि आकर विश्व में शान्ति स्थापन करो, शान्ति तो सतयुग में ही होती है।
- सो तो गुप्त वेष में विश्व में शान्ति स्थापन हो रही है।
- जब तक अर्थ नहीं समझाओ तब तक समझ न सकें।
- सिवाए बाप के मौत तो कोई दे न सके।
- बाप को कालों का काल कहा जाता है, सबको मौत देते हैं।
- कितने ढेर के ढेर को मौत देते हैं।
- सतयुग में कितने थोड़े मनुष्य हैं।
- बाकी सबको मौत मिल जाता है।
- बुलाते ही हो कि पावन दुनिया में ले चलो।
- तो पावन दुनिया जरूर नई ही होगी।
- यह थोड़ेही होगी।
- पुरानी दुनिया का भी अर्थ नहीं समझते।
- पावन दुनिया में बहुत थोड़े मनुष्य रहते हैं।
- शान्ति रहती है।
- यह बातें समझने और समझाने में कितना सहज है।
- परन्तु बुद्धि में बैठता ही नहीं क्योंकि समय ही नहीं है, बुद्धि में बैठने का।
- कहा भी जाता है ना कुम्भकरण की नींद में सब सोये पड़े हैं।
- यह नहीं जागेंगे।
- यह ड्रामा बड़ा विचित्र है।
- तो यह सारा चक्र बुद्धि में फिरना चाहिए।
- बाप आकर सारा ज्ञान देते हैं।
- उनको कहते ही हैं - नॉलेजफुल, ज्ञान का सागर।
- ज्ञान का सागर एक बाप ही है।
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तुम जानते हो पानी के सागर कितने हैं।
जितने नाम हैं उतने सागर हैं वा सागर एक ही है, यह तो अलग-अलग पार्टीशन कर नाम रख दिये हैं।
बाहर सागर तो एक ही है ना।
वास्कोडिगामा भी सारा चक्र लगाए फिर वहाँ ही आकर खड़ा हो गया।
तो सागर एक ही है।
बीच-बीच में टुकड़ा-टुकड़ा कर अलग-अलग बना दिया है।
धरनी भी सारी एक ही है।
परन्तु टुकड़ा-टुकड़ा हुई पड़ी है।
तुम्हारा राज्य होता है तो धरनी भी एक ही होती है।
राज्य भी एक होता है, नो टुकड़ा-टुकड़ा।
बाप आकर राज्य देते हैं।
सारे सागर पर, सारी धरनी पर, सारे आसमान पर तुम्हारा राज्य होता है।
मुक्ति में तो सब जायेंगे, बाकी जीवनमुक्ति में जाना कोई मासी का घर थोड़ेही है।
मुक्ति में जाना तो कॉमन है, सब वापिस लौटेंगे।
जहाँ से आये हैं फिर वहाँ जायेंगे जरूर।
बाकी नई दुनिया में सब थोड़ेही आयेंगे।
तुम्हारा ही राज्य है। कोई-कोई तो इतना देरी से आते हैं जो पुरानी दुनिया शुरू होने से थोड़ा ही पहले यानी 2-4 सौ वर्ष पहले आते हैं।
वह क्या हुआ?
जो अच्छी रीति नहीं पढ़ेंगे तो त्रेता में भी पिछाड़ी का थोड़ा समय रहेंगे।
16 कला तो कभी बन न सकें।
14 कला के भी पिछाड़ी में आयेंगे।
उनको सामने दु:ख की दुनिया देखने में आयेगी।
काँटों की दुनिया के नजदीक आ जायेंगे, वहाँ कोई यह मालूम नहीं पड़ता है।
सारी नॉलेज अभी है, जो बुद्धि में धारण करनी होती है।
इस समय मनुष्यों के पास पैसे देखो कितने होंगे।
कितने महल बनते रहते हैं।
कितनी ऊंची-ऊंची माड़ियाँ (मंजिलें) बनाते रहते, समझते हैं सतयुग से भी भारत अभी ऊंच है।
अभी ही 18-20 मंजिल बनाते रहते हैं, तो अन्त में कितनी मंजिल वाले बनायेंगे।
सतयुग त्रेता में तो यह माड़ियाँ (फ्लोर-मंजिल)होती नहीं।
द्वापर में भी नहीं होती।
यह तो कलियुग में जब आकर बहुत मनुष्य हो जाते हैं तो 2 मंजिल, 10 मंजिल बढ़ाते जाते हैं क्योंकि मनुष्य बढ़ते जाते हैं तो वह जायें कहाँ, धन्धाधोरी बहुत है।
तो बड़े-बड़े मकान भी बनाते रहते हैं - शोभा के लिए।
जंगल से मंगल होता जाता है।
कितने अच्छे-अच्छ मकान बनते रहते, जमीन लेते रहते हैं ना।
बाम्बे पहले क्या थी, 80-90 वर्ष में देखो क्या हो गई है।
पहले तो कितने थोड़े मनुष्य थे, अभी तो देखो कितने मनुष्य हो गये हैं।
समुद्र को सुखाया है।
अभी भी देखो समुद्र को कितना सुखाया है।
पानी जैसे कमती होता जाता है।
मनुष्य वृद्धि का पाते जाते तो पानी कहाँ से आयेगा।
पानी कम होता जाता, समुद्र हटता जाता।
धरती छोड़ता है तो मकान बना देते हैं, फिर पानी चढ़ जायेगा तो कराची वा बाम्बे का बहुत सा हिस्सा पानी में चला जायेगा।
तुम जानते हो और सब खण्ड खत्म हो जायेंगे, आफतें आने वाली हैं इसलिए बाप कहते हैं, जल्दी-जल्दी तैयार होते रहो।
जैसे शमशान में जब आग जलकर खत्म होती है तब लौटते हैं।
बाप भी विनाश के लिए आये है, तो आधे पर थोड़ेही जायेंगे।
आग लगकर जब पूरी होगी तब चले जायेंगे, फिर बैठकर क्या करेंगे।
आग बुझेगी नहीं, सब चले जायेंगे।
सबको साथ ले जायेंगे, होना तो जरूर है।
समझते तो सब हैं लेकिन समय का गपोड़ा बहुत बड़ा लगा दिया है। बच्चों को समझाना भी गीता पर है।
गीता एपीसोड है ना, जिसमें देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है।
वहाँ एक ही धर्म होगा, बाकी सब धर्म विनाश हो जाते हैं।
सिर्फ यह गीता ही है जो भगवान ने गाई है।
मनुष्यों ने भक्ति मार्ग के लिए बैठ शास्त्र बनाये हैं।
ऐसी-ऐसी प्वाइंट्स धारण कर फिर सुनानी चाहिए।
कहते हैं बाबा भूल जाते हैं, धारणा नहीं होती है।
बाबा कहते फिर क्या करें!
राजधानी स्थापन होती है, इसमें नम्बरवार तो सब चाहिए।
सबके ऊपर कृपा करने की ताकत हो तो बाप स्वर्ग का मालिक सबको बना दे, लेकिन नहीं।
यह तो बनने ही हैं - नम्बरवार।
यह कोई भी समझ सकते हैं कि भगवान आया हुआ है।
भगवान जरूर स्वर्ग की सौगात ले आयेंगे।
नई दुनिया स्थापन करने आते हैं तो जरूर संगम पर ही आयेंगे, नई दुनिया स्थापन करने।
तुम सुनते हो और निश्चय से पुरूषार्थ करते हो, जिनको निश्चय ही नहीं वह कब सुधरेंगे ही नहीं।
भल कितना भी माथा मारो।
तो बाबा के अवतरण का पैगाम सबको देना है।
मैसेज देना है।
आगे चल अखबारों में पड़ ही जायेगा।
जैसे तुम्हारा नाम बदनाम भी अखबारों द्वारा हुआ फिर नाम बाला भी अखबारों द्वारा ही होगा।
दुनिया तो बहुत बड़ी है - सब जगह तो तुम बच्चियाँ जा नहीं सकेंगी।
कितने शहर हैं, कितनी ढेर भाषायें हैं।
अखबारों द्वारा सब जगह आवाज पहुँच जाता है।
कोई भी आयेगा, कहेगा - हाँ, अखबारों द्वारा आवाज सुना है।
तो तुम्हारा नाम अखबारों द्वारा ही होगा।
ऐसा नहीं समझो कि सब तरफ तुमको जाना पड़ेगा।
फिर तो पता नहीं कितना समय लग जाये।
अखबारों द्वारा ही एक्यूरेट सुनेंगे।
तुम कहते भी हो कि बाप को याद करो तो पाप कट जायेंगे।
अखबारों में तो पड़ना ही है।
अब तुम्हारा नाम बाला होगा तो फिर बढ़ता जायेगा।
जैसे कल्प पहले पता पड़ा होगा, वैसे ही समय पर पड़ेगा।
सबको मैसेज मिलेगा।
युक्तियाँ चल रही हैं।
बहुत अखबार वाले डालेंगे।
किसको बुद्धि में बैठा और डाल देंगे।
सब धर्म वालों को मालूम पड़ जायेगा, तब तो कहेंगे अहो प्रभू तेरी लीला।
पिछाड़ी में बाप की याद सबको आयेगी परन्तु कुछ भी कर नहीं सकेंगे।
यह खेल है ना।
खेल को जान जायेंगे।
84 चक्र का खेल सब अखबारों में पड़ जायेगा।
जहाँ भी जाओ - अखबार जरूर निकलते हैं।
अखबार द्वारा सबको आवाज तो पहुँचता है ना।
तुम्हारी बातें तो सबसे ऊंच है ना।
विनाश का समय भी तो जरूर आना ही है ड्रामा प्लैन अनुसार।
जैसे कल्प पहले मालूम पड़ा होगा, अभी भी पड़ेगा।
धीरे-धीरे स्थापना होती है ना।
संगमयुग याद पड़े तो स्वर्ग भी याद पड़े।
स्वर्ग को याद करो और मनमनाभव, बाप को भी याद करो तो बेड़ा पार हो।
जब तक विनाश न हो, शान्ति कहाँ से आये।
विनाश का नाम ही कड़ा है।
मनुष्य सुनकर बहुत डरते हैं।
यह तो राइट बात है ना।
पतित दुनिया में अनेक दु:ख हैं, पावन दुनिया में अनेक सुख हैं।
बाप देखो सौगात कैसी लाते हैं।
...अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुड़मार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
1) पढ़ाई को अच्छी तरह पढ़कर ऊंच पद पाना है।
आफतें आने के पहले नई दुनिया के लिए तैयार होना है।
2) अपने को सुधारने के लिए निश्चयबुद्धि बनना है।
वाणी से परे वानप्रस्थ में जाना है इसलिए इस दु:खधाम को भूल शान्तिधाम और सुखधाम को याद करना है।
( All Blessings of 2021-22)
किसी भी परिस्थिति में फुलस्टॉप लगाकर दुआओं का अधिकार प्राप्त करने वाले महान आत्मा भव
महान आत्मा वो है जिसमें स्वयं को बदलने की शक्ति है और जो किसी भी परिस्थिति में फुलस्टॉप लगाने में स्वयं को पहले आफर करते हैं - “मुझे करना है, मुझे बदलना है'', ऐसी आफर करने वालों को तीन प्रकार की दुआयें मिलती हैं -
1-स्वयं को स्वयं की दुआयें अर्थात् खुशी मिलती है।
2-बाप द्वारा और
3- ब्राह्मण परिवार द्वारा, इसलिए अलबेलापन नहीं लाओ कि ये तो होता ही है, चलता ही है..।
फुलस्टॉप लगाकर अलबेलेपन को परिवर्तन कर अलर्ट बन जाओ।
(All Slogans of 2021-22)
- संकल्पों की एकाग्रता द्वारा ही श्रेष्ठ परिवर्तन में फास्ट गति आ सकती है।
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