10-09-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - आपस में मिलकर इस कलियुगी दुनिया से दु:ख के छप्पर को उठाना है, बाप को याद करने का पुण्य करना है'

 

प्रश्नः-

ज्ञान की अविनाशी प्रालब्ध होते हुए भी कई बच्चों के पुण्य का खाता जमा होने के बजाए खत्म क्यों हो जाता है?

उत्तर:-

क्योंकि पुण्य करते-करते बीच में पाप कर लेते।

ज्ञानी तू आत्मा कहलाते हुए संगदोष में आकर कोई पाप किया तो उस पाप के कारण किये हुए पुण्य खत्म हो जाते हैं।

2- बाप का बनकर काम विकार की चोट खाई, बाप का हाथ छोड़ा तो वह पहले से भी अधिक पाप आत्मा बन जाते।

उसे कुल-कलंकित कहा जाता है।

वह बहुत कड़ी सज़ा के भागी बन जाते हैं।

सतगुरू की निंदा कराने के कारण उन्हें ठौर मिल नहीं सकता।

...full possibilities...

  • ओम् शान्ति।
  • रूहानी बाप रूहानी बच्चों के साथ रूह-रिहान कर रहे हैं।
  • यह तो आत्मा जानती है कि एक ही हमारा बेहद का बाप है, वह तो बच्चे समझ गये हैं।
  • मंजिल है - मुक्ति जीवनमुक्ति की।
  • मुक्ति के लिए याद की यात्रा जरूरी है और जीवनमुक्ति के लिए रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानना जरूरी है।
  • अब है दोनों ही सहज।
  • सृष्टि का, 84 जन्मों का चक्र फिरता रहता है।
  • यह तुम बच्चों की बुद्धि में रहना चाहिए।
  • अब हमारा 84 जन्मों का चक्र पूरा होता है।
  • अब हमें जाना है वापिस घर।
  • अब वापिस तो कोई जा नहीं सकते क्योंकि पाप आत्मा हैं।
  • पाप आत्मायें मुक्ति-जीवनमुक्ति में जा नहीं सकती।
  • ऐसे-ऐसे विचार करने होते हैं।
  • जो करेगा सो पायेगा और खुशी में रहेगा तथा दूसरों को भी खुशी में लायेगा।
  • तुम बच्चों को कृपा व मेहर करनी है - सबको रास्ता बताने की।
  • समझाना है - तुम्हारी आत्मा सतोप्रधान से अब तमोप्रधान बन गई है - इसलिए वापिस जा नहीं सकती।
  • पुकारते भी हैं हे पतित-पावन, बच्चे जानते हैं कि अभी पुरूषोत्तम संगमयुग है।
  • यह भी किसको अच्छी रीति याद रहता है, किसको याद नहीं रहता है।
  • घड़ी-घड़ी भूल जाता है।
  • परन्तु तुमको अगर संगमयुग याद रहे तो भी खुशी का पारा चढ़ा रहे।
  • बाप टीचर याद रहे तो भी खुशी का पारा चढ़ा रहे।
  • किसको बड़ा रोला (विघ्न) बीच में पड़ता, किसको थोड़ा पड़ता।
  • पड़ता तो जरूर है।
  • कई ऊपर जाकर फिर नीचे आ जाते हैं।
  • कोई की अवस्था अच्छी होती है तो दिल पर चढ़ जाते हैं, फिर नीचे गिरते हैं तो की कमाई चट हो जाती है।
  • जैसे दुनिया में कितना दान-पुण्य करते हैं इसलिए कि पुण्य आत्मा बनें।
  • फिर अगर पुण्य करते-करते पाप कर्म करने लग पड़ते तो पाप आत्मा बन पड़ते हैं।
  • तुम्हारा पुण्य है ही बाप को याद करने में।
  • याद से ही तुम्हारी आत्मा पुण्य आत्मा बनती है।
  • तो अगर बाप को ही भूल जायें, दूसरे का संग लग जाए तो बहुत पाप करने से जो कुछ पुण्य किया वह भी खत्म हो जाता है।
  • समझो आज दान पुण्य करते हैं, सेन्टर खोलते हैं कल फिर बेमुख हो जाते हैं तो पहले से भी जास्ती गिर जाते हैं क्योंकि पाप करते हैं ना।
  • तो वह खाता जमा के बदले ना हो जाता है।
  • पहले बहुत अच्छी सर्विस करते थे, बात मत पूछो फिर एकदम गिर जाते हैं।
  • शादी कर लेते हैं।
  • पहले से भी जास्ती खराब हो जाते हैं।
  • पाप करने से फिर वह पाप का बोझा चढ़ता जाता है।
  • जमा और ना की जैसे मुरादी (कमाई) सम्भाली जाती है ना।
  • परन्तु इन बातों को भी कोई समझने वाला ही समझे।
  • पाप भी कोई हल्का, कोई बड़ा होता है।
  • काम का सबसे कड़ा, क्रोध सेकेण्ड, लोभ उनसे कम, मोह उनसे कम।
  • नम्बरवार होते हैं।
  • काम की चोट खाने से फायदे के बदले नुकसान हो जाता है क्योंकि सतगुरू की निंदा कराई तो ठौर पा न सकें।
  • वह दिल से उतर जायेंगे।
  • बाप का बनकर बाप को छोड़ देते हैं फिर उसके कर्म पर भी होता है।
  • कारण क्या?
  • चल न सका।
  • अक्सर करके काम की चोट जास्ती लगती है।
  • यही मुख्य दुश्मन है।
  • कब सुना - क्रोध की एफीजी जलाई। नहीं।
  • कामी की बनाते हैं।
  • रावण ठहरा ना।
  • बाप कहते हैं काम पर जीत पाने से जगत-जीत बनेंगे।
  • बिल्कुल हरा बैठे हैं, तो जीत के बदले हार हो जाती है।
  • बाप को बुलाते हैं हे पतित-पावन आओ, काम से बहुत पीड़ित होते हैं।
  • फिर कहते हैं बाबा काला मुँह कर दिया।
  • बाबा कहेंगे तुम तो कुल कलंकित हो।
  • क्रोध वा मोह के लिए ऐसे नहीं कहेंगे।
  • सारा मदार है काम पर।
  • बुलाते हैं हे पतित-पावन आओ।
  • बाप आया है फिर भी पतित बनते रहे तो बाप क्या कहेंगे।
  • साधू सन्त आदि सब कोई पुकारते हैं हे पतित-पावन आओ।
  • अर्थ कोई नहीं समझते हैं।
  • कोई मानते हैं कि हाँ आने वाला है जो नई दुनिया स्थापन करेंगे।
  • परन्तु टाइम बहुत लम्बा दे देने से घोर अन्धियारे में गिर पड़े हैं।
  • ज्ञान और अज्ञान है ना।
  • बाप समझाते हैं भक्ति में तुम जिसकी पूजा करते हो उसे जानते नहीं तो वह भक्ति किस काम की।
  • न जानने के कारण जो कुछ करते वह निष्फल हो जाता है।
  • मनुष्य समझते हैं दान-पुण्य करने से फल मिलता है।
  • परन्तु वह है अल्पकाल के लिए, काग विष्टा के समान सुख।
  • संन्यासी भी कहते हैं यह दुनिया में जो सुख मिलता है वह काग विष्टा समान है, बाकी सब दु:ख ही दु:ख है।
  • बाप कहते हैं मामेकम् याद करो तो तुम्हारे सब दु:ख दूर हो जायेंगे।
  • विचार करो कि हम कितना याद करते हैं।
  • जो पुराना हिसाब खत्म भी हो और नया जमा भी हो।
  • कितना कोई जमा करते हैं, इसमें धन आदि की बात नहीं है।
  • यह तो है कि पाप कैसे मिटे?
  • मूल बात है ही पवित्र बनने की।
  • ऐसे भी नहीं समझो कि बाबा को लिखकर देने से कोई जन्म-जन्मान्तर का खत्म हो जायेगा।
  • पापों का बोझा जन्म-जन्मान्तर का बहुत है।
  • वह सब नहीं कटते हैं।
  • इस जन्म में जो किये हैं, उसकी हल्काई हो जाती है।
  • बाकी तो मेहनत बहुत करनी पड़े।
  • जितना याद में रहेंगे उतना पापों का बोझा हल्का होता जायेगा।
  • कोई बच्चे बहुत मेहनत करते हैं, लाखों को रास्ता बताते हैं।
  • 84 जन्म का चक्र समझाते हैं।
  • जन्मों के हिसाब को तुम जानते हो।
  • विचार करो कितना योगबल है, हमारा जन्म कब होगा?
  • सतयुग आदि में हो सकेगा?
  • जो बहुत पुरूषार्थ करेंगे वही सतयुग आदि में जन्म ले सकेंगे।
  • वह कोई छिपा थोड़ेही रहेगा।
  • ऐसे मत समझो कि सभी कोई सतयुग में आयेंगे।
  • कोई तो पिछाड़ी में आकर थोड़ा बहुत ले लेते हैं।
  • जो जास्ती कमाई करते हैं वह जल्दी आते हैं।
  • कम कमाई करते तो देरी से आते हैं इसलिए बाप को तो बहुत याद करना चाहिए और है भी बहुत सहज।
  • जो अच्छी रीति याद करेंगे उनको खुशी रहेगी।
  • हम जल्दी नई दुनिया में आयेंगे।
  • राजा बनना है तो प्रजा भी तो बनानी है ना।
  • प्रजा ही नहीं बनायेंगे तो राजा कैसे बनेंगे।
  • कोई सेन्टर खोलते हैं।
  • उनकी कमाई भी बहुत होती है।
  • फायदा होता है तो 2-3 सेन्टर भी खोलते हैं।
  • सेन्टर तो बाबा भी खोलते रहते हैं।
  • जो करते हैं उनका हिसाब उसमें आ जाता है।
  • मिलकर तुम सब दु:ख का छप्पर उठाते हो ना!
  • सबका कंधा मिलता है ना।
  • तो हिसाब सबको मिलता है।
  • जितना मेहनत करते हैं, उतना ऊंच पद मिलेगा।
  • उनको खुशी भी बहुत होगी।
  • देखा जाता है - कितनों का उद्धार किया।
  • सर्विस बहुत अच्छी करते रहते।
  • जैसे मिसाल देते हैं मम्मा का।
  • मम्मा ने बहुत अच्छी सर्विस की तो उनका कितना कल्याण हो गया।
  • मूल बात है सर्विस करने की।
  • योग की भी सर्विस है ना।
  • डायरेक्शन मिलते रहते हैं।
  • कैसे याद करना है।
  • यह बिन्दी का राज़ भी बाबा ने अब समझाया है।
  • अब आगे चल और भी सुनाते रहेंगे।
  • दिन-प्रतिदिन उन्नति होती जायेगी।
  • प्वाइंट्स निकलती रहती हैं, बहुत डिफीकल्ट भी नहीं है।
  • सहज भी नहीं है।
  • जो सर्विस में तत्पर हैं, वह झट प्वाइंट को पकड़ लेते हैं।
  • जो सर्विस में नहीं रहते उनकी बुद्धि में कुछ भी नहीं बैठता।
  • बिन्दी-बिन्दी कहते रहते परन्तु कैसे बिन्दी को याद करें, कैसे बिन्दी को देखें, है बहुत सहज बात।
  • कोई बिन्दी को सामने रख थोड़ेही याद करना है।
  • यह तो समझने की बात है।
  • आत्मा कितनी छोटी बिन्दी है।
  • आत्मा का नाम, रूप, देश, काल कोई बता नहीं सकेगा।
  • परमात्मा के लिए पूछते हैं - उनका नाम रूप देश काल क्या है?
  • बेसमझ मनुष्य न आत्मा को जानते, न परमात्मा को जानते हैं।
  • यहाँ भी हैं जो पूरी रीति नहीं जानते हैं सिर्फ बाबा-बाबा कहते रहते।
  • नॉलेज कहाँ सीखते हैं।
  • कुछ भी सर्विस करते नहीं।
  • खाते रहते हैं।
  • जैसे संन्यासियों के पास भी अवधूत होते हैं, जो करते कुछ भी नहीं, खाते रहते हैं।
  • बाकी संन्यास धारण किया है, विकार से छूट गये वह भी कम बात नहीं।
  • बाबा समझाते हैं तुम पवित्र थे, अभी अपवित्र बन गये हो।
  • तुमने ही 84 जन्मों का चक्र लगाया है।
  • इन बातों को भी मनुष्य समझ नहीं सकते।
  • भक्ति बिल्कुल अलग है, ज्ञान बिल्कुल ही अलग बात है।
  • रात-दिन का फर्क है।
  • तुम जानते हो हमको पुरूषार्थ से लक्ष्मी-नारायण जैसा बनना है तो श्रीमत पर पूरा चलना है।
  • मेहनत तो है।
  • बाकी यह बीमारी आदि तो चलती रहेगी।
  • यह निशानी अन्त तक दिखाई देगी।
  • फिर गुम हो जाती है, फिर कोई दु:ख नहीं रहेगा।
  • बाप को कहते ही हैं दु:ख हर्ता, सुख कर्ता, हे लिबरेटर रहम करो तो फिर सब दु:ख से छूट जाते हैं।
  • दु:ख में ही मनुष्य बहुत सिमरण करते हैं।
  • हे प्रभू, हे राम, दु:ख के टाइम सब कहेंगे - भगवान को याद करो।
  • परन्तु भगवान कौन है - यह कोई नहीं जानते।
  • सिर्फ कहेंगे गॉड फादर को याद करो।
  • खुदा को याद करो।
  • तुम तो अच्छी रीति जानते हो वह हमारा बाप है।
  • बाप ही सिखलाते हैं अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो।
  • भक्ति मार्ग में ऐसे कहेंगे क्या कि अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। नहीं।
  • कितने प्रकार की अथाह भक्ति है।
  • ज्ञान एक ही है।
  • समझते हैं भक्ति से भगवान मिलेगा।
  • भक्ति कब से शुरू होती है, कौन जास्ती भक्ति करता है?
  • यह किसको पता नहीं है।
  • क्या अजुन 40 हजार वर्ष भक्ति ही करते रहेंगे?
  • कहाँ तक भक्ति करेंगे?
  • अभी तुम जानते हो इतना समय भक्ति चलती है, इतना समय ज्ञान चलता है।
  • भक्तों को पता नहीं चलता है, उन्हों को समझाने के लिए ही इतनी प्रदर्शनी आदि करते हैं।
  • प्रदर्शनी में भी कोटों में कोई निकलते हैं।
  • आगे चल करके और निकलेंगे।
  • यहाँ भी कितने ढेर आते हैं।
  • तुम कितने थोड़े हो जो सच्चे ब्राह्मण पवित्र रहते हो, जो रेग्युलर हो वह आवे।
  • परन्तु यह भी हिसाब निकाल न सकें कि सच्चे ब्राह्मण कितने हैं?
  • बहुत झूठे भी हैं।
  • ब्राह्मणों का काम ही है कथा सुनाना।
  • बाबा भी कथा सुनाते रहते हैं ना।
  • तुमको भी कथा सुनानी है।
  • यथा बाप तथा बच्चे।
  • बच्चों का काम ही है गीता सुनाना।
  • परन्तु सब कहाँ सुनाते हैं।
  • तुम जानते हो ज्ञान की पुस्तक एक ही गीता है।
  • वह है सर्वशास्त्रमई शिरोमणी, उसमें सब आ गया।
  • माई बाप है गीता।
  • बाप ही आकर सबकी सद्गति करते हैं।
  • यह भी लिख सकते हो कि शिवबाबा की जयन्ति ही हीरे-तुल्य है।
  • बाकी सबकी जयन्तियाँ कौड़ी तुल्य हैं।
  • बाप को तो सब याद करते हैं।
  • कलियुगी मनुष्य सतयुगी देवताओं की पूजा करते हैं।
  • उन्हों को ऐसा बनाने वाला कौन है?
  • एक बाप।
  • परन्तु यह भी समझा वह सकेंगे जो अच्छी रीति समझते हैं।
  • कायदेमुज़ीब कोई समझाते नहीं।
  • बाबा कहते हैं हमारे कई बच्चे कन्स्ट्रक्शन के साथ डिस्ट्रक्शन भी करने वाले हैं।
  • महारथी, घोड़ेसवार, प्यादे सब हैं ना।
  • तो प्यादे क्या करेंगे?
  • पढ़े लिखे के आगे भरी ढोयेंगे।
  • बाकी जो न भरी ढोयेंगे, न पढ़ेंगे, पढ़ायेंगे उनको क्या कहेंगे? ऊंट पक्षी।
  • ...अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुड़मार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।


  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) बाप बिन्दी है, इस बात को यथार्थ समझकर बाप को याद करना है।

    बिन्दी-बिन्दी कहकर मूँझना नहीं है।

    सर्विस पर तत्पर रहना है।

    2) सच्ची गीता सुननी और सुनानी है।

    सच्चा ब्राह्मण बनने के लिए पवित्र रहना है।

    रेगुलर पढ़ाई जरूर करनी है।



  • ( All Blessings of 2021-22)
  • सदा खुशी की खुराक खाने वाले और खुशी बांटने वाले, खुशनसीब बेफिक्र भव

    ब्राह्मण जीवन की खुराक खुशी है।

    जो सदा खुशी की खुराक खाने वाले और खुशी बांटने वाले हैं वही खुशनसीब हैं।

    उनके दिल से यही निकलता कि मेरे जैसा खुशनसीब और कोई नहीं।

    भले सागर की लहरें भी डुबोने आ जाएं तो भी फिक्र नहीं क्योंकि जो योगयुक्त हैं वह सदा ही सेफ हैं इसलिए सारे कल्प में इस समय ही आप बेफिक्र जीवन का अनुभव करते हो।

    सतयुग में भी बेफिक्र होंगे लेकिन ज्ञान नहीं होगा।



  • (All Slogans of 2021-22)
    • सहज पुरूषार्थी बनना है तो सर्व की दुआओं से स्वयं को भरपूर करो।