07-09-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - बाप की शिक्षाओं को धारण कर तुम्हें गुणवान फूल बनना है, तुम्हें ज्ञान की रोशनी मिली है, इसलिए सदा हर्षित रहना है

 

प्रश्नः-

तुम बच्चों की कौन सी गुह्य रमणीक बातें हैं जो मनुष्य सुनकर मूँझते हैं?

उत्तर:-

तुम कहते हो - अभी हम ब्राह्मण कुल भूषण स्वदर्शन चक्रधारी हैं।

हम ज्ञान की शंखध्वनि करने वाले हैं।

हम त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी हैं।

यह देवताओं को जो अलंकार देते हैं, वह सब हमारे हैं।

यह बातें सुनकर मनुष्य मूंझते हैं। 2-तुम कहते हो - बाप मुख से जो नॉलेज देते हैं - यह शंखध्वनि है।

इससे हम मनुष्य से देवता बनते हैं।

इसी को ही मुरली कहा जाता है। काठ की मुरली नहीं है।

यह भी बहुत गुह्य रमणीक बातें हैं, जिसे समझने में मनुष्यों को मुश्किल लगता है।

गीत:- यही बहार है दुनिया को भूल जाने की...

...full possibilities...

  • ओम् शान्ति।
  • मीठे-मीठे ईश्वरीय सन्तान जानते हैं कि हमारे लिए सबसे ऊंची बहार की यह मौसम है।
  • बहारी मौसम में फूल आदि सब खिल जाते हैं।
  • यह है बेहद के बहार की मौसम।
  • तुम पर ज्ञान की बरसात होती है।
  • तो सूखे कांटे से तुम फूल बन जाते हो।
  • यह भी तुम ही जानो, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार।
  • कोई तो बहुत खुशी में रहते हैं कि हम इस ज्ञान वर्सा से कांटे से फूल बनते हैं।
  • झाड जब एकदम सूख जाता है तो एक भी पत्ता नहीं रहता है।
  • हर वर्ष यह हाल होता है फिर बरसात में पत्ते भी सुन्दर, फूल भी बड़े सुन्दर हो जाते हैं।
  • तो यह ज्ञान बरसात की बहारी मौसम फर्स्टक्लास है।
  • अब यह है कांटों की दुनिया।
  • झाड कहता है - मैं कांटों का झाड बन गया हूँ फिर ज्ञान बरसात से फूलों का झाड बनता हूँ।
  • तुम एक-एक चैतन्य झाड हो ना।
  • अभी तुमको ज्ञान की रोशनी मिली है, जिससे तुम ऊंच पद पाते हो।
  • तुम क्या से क्या बनते हो।
  • तुम जानते हो अभी हम अपवित्र से पवित्र बनते हैं।
  • विष्णु भी युगल रूप है ना।
  • साक्षात्कार जोड़ी रूप का होता है।
  • विष्णु को 4 भुजायें दिखाते हैं ना।
  • परन्तु उनको ज्ञान तो कुछ भी है नहीं।
  • दो रूप मिलकर डांस करते हैं।
  • बाप समझाते हैं - दीवाली होती है तो महालक्ष्मी आती है।
  • तुम दोनों को बुलाते हो।
  • आगे लक्ष्मी पीछे नारायण होता है।
  • लक्ष्मी दो भुजा वाली होती है।
  • महालक्ष्मी 4 भुजा वाली होती है।
  • परन्तु यह बातें अभी तुम जानते हो - आगे बिल्कुल ही नहीं जानते थे।
  • एकदम कांटे थे सो अब फूल बन रहे हैं।
  • ग्रंथ में भी कहा है - मनुष्य से देवता किये,...देवतायें होते हैं सतयुग में।
  • वह हैं दैवीगुणों वाले।
  • इस समय के मनुष्य हैं आसुरी गुण वाले, तुम हो ईश्वरीय गुण वाले।
  • ईश्वर बैठ हमको गुणवान बनाते हैं।
  • बाबा की शिक्षा से हम सर्वगुण सम्पन्न... बनते हैं।
  • भारत की महिमा है अर्थात् भारत में रहने वालों की बड़ी महिमा गाते हैं।
  • परन्तु उनको यह पता नहीं कि उन्हों को ऐसा बनाने वाला कौन है?
  • बड़े-बड़े मन्दिर बनाते हैं परन्तु उनके आक्यूपेशन का पता नहीं है।
  • तुमको तो बहुत रोशनी मिली है।
  • तुमको बहुत हर्षित रहना है।
  • वहाँ भी 21 जन्मों के लिए हर्षित रहेंगे।
  • तुम जानते हो हम 21 जन्मों का पद लेने के लिए पढ़ाई पढ़ते हैं।
  • कमाई नॉलेज से होती है।
  • गॉड फादरली स्टूडेन्ट लाइफ है।
  • सूर्यवंशी घराने के मालिक बनते हैं।
  • गोया स्वर्ग के मालिक बनते हैं।
  • पावन दुनिया में भी सब एक जैसा पद तो नहीं लेते।
  • सिर्फ एक लक्ष्मी-नारायण तो राज्य नहीं करते हैं ना।
  • यह भी किसको पता नहीं है, सिर्फ डिनायस्टी होगी और राजाई भी होगी।
  • सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी थे।
  • शिवबाबा ने नई दुनिया स्थापन की है।
  • दुनिया वालों की बुद्धि में तो अन्धियारा है।
  • तुम्हारे पास तो रोशनी है।
  • पतित दुनिया और पावन दुनिया है।
  • पावन दुनिया में भी नम्बरवार मर्तबे हैं।
  • प्रजा में भी होंगे। वहाँ तो सबको सुख ही सुख है।
  • हर एक की अपनी-अपनी राजाई, जमीदारी आदि होती है।
  • पतित दुनिया में सब पतित हैं परन्तु उनमें भी नम्बरवार हैं।
  • जैसे सतयुग में ऊंच ते ऊंच डिनायस्टी है लक्ष्मी-नारायण की।
  • राधे-कृष्ण प्रिन्स प्रिन्सेज स्वयंवर बाद लक्ष्मी-नारायण बने हैं।
  • लक्ष्मी-नारायण की डिनायस्टी कहेंगे।
  • राधे-कृष्ण की डिनायस्टी नहीं कहेंगे।
  • राजाओं का नाम लिया जाता है।
  • थोड़ी सी भी बात कोई नहीं जानते।
  • तुम सब जानते हो सो भी नम्बरवार, राजधानी में तो नम्बरवार पद होते हैं ना।
  • कहाँ सूर्यवंशी राजाई फिर कहाँ प्रजा में भी चण्डाल आदि जाकर बनते हैं।
  • पतित दुनिया में भी नम्बरवार होते हैं।
  • अब बाप तुमको कर्म-अकर्म-विकर्म की गति समझा रहे हैं।
  • बाप कहते हैं बच्चे श्रीमत पर चलो।
  • बहुत बच्चे हैं जिनको बाबा ने कभी देखा भी नहीं है।
  • आपस में बहुत अच्छी सर्विस कर रहे हैं।
  • बाप का परिचय देते रहते हैं।
  • सिवाए ब्राह्मणी मुकरर किये बिना भी सेन्टर चला रहे हैं।
  • सन्मुख मिले भी नहीं है - फिर भी सर्विस कर आप समान बना रहे हैं।
  • सम्मुख रहने वाले इतनी सर्विस नहीं करते।
  • रूहानी यात्रा सिखाना है ना।
  • तुम हो रूहानी पण्डे।
  • तुम भी रास्ता बताते हो।
  • हे आत्मायें बाप को याद करो।
  • कहते भी हैं आत्मायें परमात्मा अलग रहे बहुकाल...वह भी हिसाब है ना।
  • बहुतकाल सिद्ध करके बताते हो ना।
  • तुम ही सबसे जास्ती बहुकाल से बिछुड़े हुए हो।
  • सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी घराने के थे फिर पुनर्जन्म के चक्र में आते 84 जन्म लगे हैं।
  • सो भी सबके 84 जन्म नहीं हो सकते।
  • इस ज्ञान की रिमझिम में तुम बच्चे रहते हो।
  • यह है तुम्हारी स्टूडेन्ट लाइफ।
  • कोई गृहस्थ व्यवहार सम्भालते हुए फिर दूसरा कोर्स भी उठाते हैं।
  • यहाँ तो सिर्फ पवित्रता की बात है।
  • बाप और वर्से को याद करना है और पढ़ना भी है।
  • पवित्र जरूर बनना पड़े।
  • कहते भी हैं शेरनी का दूध सोने के बर्तन में ही ठहर सकता है।
  • बाप भी कहते हैं पवित्रता के बिगर धारणा नहीं हो सकती इसलिए बाबा कहते हैं इस काम महाशत्रु को जीतो।
  • तुम पवित्र बनो।
  • मेरे को पहचानो तब तो मैं बुद्धि का ताला खोलूँ।
  • जब तक पवित्र ब्राह्मण कुल भूषण नहीं बनेंगे तो धारणा भी नहीं होगी।
  • तुम ब्राह्मण कुल भूषण स्वदर्शन चक्रधारी हो और कोई समझ न सके।
  • मनुष्य समझते हैं कि स्वदर्शन चक्रधारी तो देवतायें हैं, यह फिर कौन निकले हैं जो कहते हैं हम ब्राह्मण कुल भूषण स्वदर्शन चक्रधारी हैं।
  • इन बातों को तुम बच्चे ही समझते हो।
  • यह बड़ी गुह्य रमणीक बातें हैं।
  • नॉलेज की शंखध्वनि तुम करते हो।
  • देवतायें तो नहीं करते।
  • वह तो शिवबाबा की शंखध्वनि सुनकर देवता बनते हैं।
  • शिवबाबा तो है नॉलेजफुल।
  • परन्तु उनको शंख कैसे देंगे।
  • नॉलेज तो जरूर किसी के मुख से देंगे ना।
  • उनको ही मुरली कहा जाता है।
  • बाकी कोई काठ की मुरली नहीं है।
  • बरोबर ज्ञान की मुरली बज रही है।
  • मनुष्य तो समझते हैं यह पूजा, भक्ति आदि परम्परा से चली आती है।
  • परन्तु परम्परा से कोई चीज़ चल न सके।
  • कहते भी हैं यह रक्षाबंधन आदि परम्परा से चले आते हैं।
  • अच्छा परम्परा से कब से?
  • यह तो बताओ।
  • क्या परमात्मा ने पतित दुनिया रची?
  • तब उनको पतित-पावन क्यों कहते हो।
  • पढ़ाई की बातें रोज़ बुद्धि में आनी चाहिए।
  • मुख खोलने की प्रैक्टिस करनी चाहिए।
  • तुम तो बहुतों को समझा सकते हो।
  • अपनी उन्नति के लिए प्रबन्ध रचना है।
  • जैसे बाबा सबको रास्ता बताते हैं।
  • हमको फिर औरों को रास्ता बताना है, तब तो बाप से वर्सा पायेंगे।
  • बाकी धमपा मचाने से वर्सा पा नहीं सकेंगे।
  • बाप को बहुत रहम आता है, कितना समझाते हैं परन्तु तकदीर में नहीं है।
  • कितने रत्न मिलते हैं।
  • रत्नों का भी विस्तार बहुत होता है ना।
  • रत्नों में भी फ़र्क बहुत होता है।
  • कोई की कीमत लाख रूपया होती तो कोई की फिर एक रूपया होती।
  • यह भी अविनाशी ज्ञान रत्न हैं जो धारण कर और कराते हैं तो कितना ऊंच पद पाते हैं।
  • बच्चों के मुख से सदैव रत्न ही निकलने चाहिए।
  • बुद्धि समझती है परन्तु मुख से नहीं बोलेंगे तो उसकी वैल्यु क्या होगी।
  • जो मेहनत करेंगे, आप समान बनायेंगे तो फल भी बहुत मिलेगा।
  • यह सर्विस करना और सिखलाना भी कम सर्विस है क्या?
  • तुम्हारी बुद्धि में अब रोशनी आ गई है।
  • सबसे बड़ा साहूकार कौन है?
  • तो 10-12 नाम ले लेते हैं।
  • तुम भी जानते हो इस ड्रामा में मुख्य कौन-कौन हैं।
  • परमपिता परमात्मा शिव क्रियेटर, डायरेक्टर, प्रिंसीपल एक्टर है।
  • ऊंच ते ऊंच है शिवबाबा फिर है सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन वासी।
  • यह सब बातें तुम अभी जानते हो।
  • लाखों वर्ष कल्प की आयु नहीं है।
  • कल्प की आयु ही 5 हजार वर्ष है।
  • मनुष्य मात्र तो कितने घोर अन्धियारे में हैं।
  • तुम अब अज्ञान अन्धेरे से निकल कितनी रोशनी में आये हो।
  • कोई तो रोशनी में आये हैं, कोई फिर अन्धियारे में ही पड़े हैं।
  • इसमें है सारी बुद्धि की बात।
  • कोई तो विशाल बुद्धि झट समझ जाते हैं।
  • आत्मा तो है ही स्टार मिसल।
  • भ्रकुटी के बीच में बड़ी चीज़ तो ठहर भी न सके।
  • जरूर ऐसी चीज़ है - जो इन आंखों से देखने में नहीं आती।
  • बड़ी चीज़ हो तो दिखाई दे।
  • आत्मा तो अति सूक्ष्म है, बिन्दी मिसल।
  • यह है गुह्य ते गुह्य बातें।
  • शुरू में अखण्ड ज्योति तत्व कहते थे।
  • शुरू में स्टार कहें तो समझ न सको।
  • सारी नॉलेज एक ही दिन में थोड़ेही दे देंगे।
  • दिन प्रतिदिन गुह्य बातें बाप सुनाते हैं।
  • ज्ञान सागर से अथाह धन मिलता है।
  • जब तक जीना है तब तक ज्ञान अमृत पीते रहना है।
  • पानी की बात नहीं है।
  • ज्ञान सागर से ज्ञान गंगायें निकलती हैं।
  • वह तो पानी का सागर है कहते हैं गंगा अनादि है।
  • यह स्नान आदि चला आता है।
  • तुम देखते थे - बच्चियाँ ध्यान में जाती थी तो गंगा, जमुना नदी में जाकर रास विलास करती थी।
  • यहाँ तो डर लगता है कि डूब न जायें।
  • वहाँ तो डूबने आदि की बात ही नहीं रहती।
  • कभी एक्सीडेंट हो नहीं सकता।
  • तो यही बहार है जबकि तुम कौड़ी से हीरा अथवा पतित से पावन बनते हो।
  • पावन दुनिया बनेगी तो जरूर पतित दुनिया का विनाश होगा।
  • महाभारत में तो पूरा दिखाया नहीं है।
  • दिखाते हैं पाण्डव पहाड़ों पर जाकर गल मरे, साथ में कुत्ता ले गये।
  • क्या पाण्डव कुत्तों को भी पालते हैं क्या?
  • तुम तो कुत्ता पालते नहीं हो।
  • कुत्ते का मान कितना रखा है।
  • बहुत लोग कुत्ता पालते हैं।
  • बाप तुम बच्चों को समझाते हैं कि तुम बच्चों को बहुत हर्षित रहना है।
  • तुम्हारे पर नित्य ज्ञान वर्षा हो रही है।
  • तुम जानते हो कि बाबा कैसे आते हैं।
  • ज्ञान वर्षा करते हैं और भारत में ही आते हैं इसलिए भारत की बड़ी महिमा है।
  • भारत ही अविनाशी खण्ड है।
  • भारत ही अविनाशी बाप का बर्थ प्लेस है, जो शिवबाबा सभी को पावन बनाने वाला है और कोई जानते नहीं है।
  • वह तो कह देते परमात्मा नाम रूप से न्यारा है, सर्वव्यापी है।
  • कितनी बातें बता दी हैं।
  • बाप कहते हैं मैं आता हूँ, मुझे ब्राह्मण जरूर रचने हैं।
  • कहते भी हैं कि हम ब्रह्मा की औलाद हैं तब तो ब्राह्मण कहलाते हैं।
  • परन्तु यह बातें भूल गये हैं।
  • शिवबाबा ने क्या आकर किया!
  • कैसे ब्रह्मा मुख वंशावली बनाया!
  • तुम अब जानते हो - शिवबाबा आये हैं।
  • वह है रचयिता तो जरूर नई दुनिया ही रची होगी।
  • किसको भी पता नहीं है।
  • न जानने के कारण गालियाँ देते रहते हैं इसलिए बाप कहते हैं यदा यदाहि... यह किसने कहा?
  • श्रीकृष्ण ने तो नहीं कहा।
  • श्रीकृष्ण की आत्मा को भी अब मालूम पड़ा है कि हम 84 जन्म लेते हैं।
  • तुम जो पहले पास हो ट्रांसफर होते हो - वही पहले जन्म लेते हो।
  • तुम्हारी बुद्धि में कितनी रोशनी है।
  • आपरेशन करते हैं तो एक आंख निकाल दूसरी आंख डाल देते हैं, जिससे रोशनी आ जाती है।
  • कोई का डिफेक्ट रह भी जाता है।
  • तुम आत्माओं के ज्ञान चक्षु खत्म हो गये हैं - वह देने के लिए बाबा आया है। तुम्हारे ज्ञान चक्षु खुल रहे हैं।
  • तीसरा नेत्र ज्ञान का है।
  • जो अब तीसरा नेत्र फिर देवताओं को दे दिया है।
  • अलंकार चक्र आदि भी विष्णु को दे दिया है।
  • वास्तव में तीसरा नेत्र तुम ब्राह्मणों का है।
  • तुम ही हो सर्वोत्तम ब्राह्मण कुल भूषण।
  • दैवीकुल और आसुरी कुल है।
  • वर्ण कहो, कुल कहो - बात एक ही है, ज्ञान एक ही है।
  • कितनी अच्छी बातें हैं, जो कोई भी शास्त्रों में नहीं हैं।
  • तुम अब त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री, स्वदर्शन चक्रधारी बने हो।
  • कमल पुष्प समान पवित्र रहने का पुरूषार्थ करने वाले हो।
  • तुम जानते हो - किसकी आंख अच्छी खुली है, किसकी खुलती जाती है।
  • आखरीन सेंट परसेंट खुल ही जायेगी।
  • मुख से ज्ञान रत्न निकलते रहेंगे तब तो रूप-बसन्त कहलायेंगे।
  • अब तुम मेहनत करो।
  • पुरूषार्थ करना चाहिए, जितना हो सके - ज्ञान में बड़ा हर्षितमुख, गम्भीर, विशालबुद्धि बन सुख महसूस करते रहना है।
  • स्वर्ग का वर्सा मिल रहा है और क्या चाहिए!
  • कितनी खुशी मनानी चाहिए।
  • ...अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुड़मार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।


  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) सदा ज्ञान की रिमझिम में रहना है।

    रूहानी पण्डा बन सबको रास्ता बताना है।

    मुख से ज्ञान रत्न ही निकालने हैं।

    बहुतों के कल्याण की युक्तियां रचनी हैं।

    2) ज्ञान मनन कर सदा हर्षित मुख, गम्भीर और विशालबुद्धि बन सुख का अनुभव करना और कराना है।



  • ( All Blessings of 2021-22)
  • धन कमाते अथवा सम्बन्धों को निभाते हुए दु:खों से मुक्त रहने वाले नष्टोमोहा, ट्रस्टी भव

    लौकिक संबंधों के बीच में रहते संबंध निभाना अलग चीज़ है और उनके तरफ आकर्षित होना अलग चीज़ है।

    ट्रस्टी होकर धन कमाना अलग चीज है, लगाव से कमाना, मोह से कमाना अलग चीज़ है।

    नष्टोमोहा वा ट्रस्टी की निशानी है - दु:ख और अशान्ति का नाम निशान न हो।

    कभी कमाने में धन नीचे ऊपर हो जाए वा सम्बन्ध निभाने में कोई बीमार हो जाए, तो भी दु:ख की लहर न आये।

    सदा बेफिक्र बादशाह।



  • (All Slogans of 2021-22)
    • रहमदिल उसे कहा जाता जो निर्बल को हिम्मत और बल देता रहे।