05-09-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

मीठे बच्चे - ज्ञान सागर बाप से तुम बच्चों को जो अविनाशी ज्ञान रत्न मिलते हैं, उन ज्ञान रत्नों का दान करने की रेस करनी है''

 

प्रश्नः-

माला में नम्बर आगे वा पीछे होने का मुख्य कारण क्या है?

उत्तर:-

श्रीमत की पालना।

जो श्रीमत को अच्छी तरह पालन करते वह नम्बर आगे आ जाते हैं और जो आज अच्छी पालना करते, कल देह-अभिमान वश श्रीमत में मनमत मिक्स कर देते वह नम्बर पीछे चले जाते।

कायदे अनुसार श्रीमत पर चलने वाले बच्चे पीछे आते भी आगे नम्बर ले सकते हैं।

गीत:- रात के राही.....

...full possibilities...

  • ओम् शान्ति।
  • बापदादा दोनों कहते हैं ओम् शान्ति।
  • दोनों का स्वधर्म शान्त है।
  • हम बच्चों के अन्दर से भी निकलना चाहिए ओम् अर्थात् अहम् आत्मा का स्वधर्म है शान्त।
  • अभी हम जाते हैं शान्तिधाम में।
  • पहले-पहले हमको बाबा शान्तिधाम में ले जायेंगे।
  • पहले-पहले कौन जायेंगे?
  • जितना जो याद में रहेंगे, वह जैसे कि दौड़ी पहनते हैं।
  • अभी तुम आत्म-अभिमानी बनते हो।
  • उसमें बहुत मेहनत लगती है।
  • आधाकल्प से तुमको रावण ने देह-अभिमानी बनाया है।
  • अभी बेहद का बाप परमपिता परमात्मा हमको देही-अभिमानी बना रहे हैं और अपने घर का रास्ता बता रहे हैं।
  • जो घर का मालिक है, वही बता रहे हैं।
  • दूसरा कोई भी मनुष्य रास्ता बता न सके।
  • कायदा नहीं है।
  • एक ही बाप आकर बतलाते हैं, उनका नाम है दु:ख हर्ता, दु:ख से लिबरेट करने वाला।
  • जिसकी महिमा भी भक्ति मार्ग में गाते आते हैं।
  • ऐसे नहीं सतयुग में आत्मा ऐसे कहती है कि हमको बाप ने दु:ख से छुड़ा करके सुखधाम में भेजा है, नहीं।
  • यह ज्ञान अभी तुमको मैं समझाता हूँ।
  • यह ज्ञान का पार्ट अभी ही चलता है।
  • फिर यह पार्ट ही पूरा हो जाता है।
  • फिर प्रालब्ध शुरू हो जाती है।
  • पतित से पावन बनाने का पार्ट एक ही बाप का है, जो कल्प-कल्प पार्ट बजाते हैं।
  • तुम जानते हो हम आधाकल्प पावन थे।
  • फिर रावण राज्य में आकर नीचे उतरते आते हैं।
  • कला कमती होती जाती है।
  • भारत में ही देवतायें 16 कला सम्पूर्ण, सर्वगुण सम्पन्न थे।
  • फिर उन्हों को पुनर्जन्म लेते-लेते नीचे जरूर आना है।
  • कला कमती होनी ही है।
  • परन्तु यह वहाँ मालूम नहीं रहता है।
  • यह सारा ज्ञान अभी तुम्हारी बुद्धि में है।
  • पावन देवी-देवतायें पतित कैसे बनते हैं, आओ तो 84 जन्मों की कथा सुनायें।
  • 84 के चक्र की यह सत्य कथा है।
  • वह तो झूठी कथा सुनाते हैं।
  • चक्र की आयु लम्बी चौड़ी बता देते हैं।
  • यह 84 के चक्र की कथा सुनने से तुम चक्रवर्ती राजा रानी पद पाते हो।
  • यह गुह्य बातें संन्यासी आदि नहीं जानते।
  • उनका धर्म ही अलग है।
  • पहले माँ बाप पास जन्म लेते हैं तो मन्दिर आदि में जाकर पूजा करते हैं।
  • फिर जब वैराग्य आता है तो घरबार छोड़ चले जाते हैं।
  • बाप कहते हैं पूज्य सो पुजारी भी तुम्हारे लिए ही है।
  • गाया भी जाता है ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण निकले तो जरूर एडाप्ट हुए होंगे।
  • यह बाबा भी पहले पतित था फिर पावन बनते हैं।
  • तुम ब्राह्मण बन फिर पावन देवी-देवता बनने के लिए पुरूषार्थ करते हो।
  • लक्ष्मी-नारायण के राज्य को स्वर्ग कहा जाता है।
  • वहाँ है ही अद्वैत धर्म, अद्वैत देवता, तो ताली बज नहीं सकती।
  • वहाँ माया ही नहीं।
  • इस देवी-देवता धर्म की महिमा गाई जाती है, सर्वगुण सम्पन्न...... जब तुम कहाँ लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जाते हो तो बोलो यह सत्य नारायण है ना।
  • इनको सत्य क्यों कहते हैं?
  • क्योंकि आजकल तो झूठ बहुत है।
  • बहुतों के नाम लक्ष्मी-नारायण, राधे-कृष्ण आदि हैं।
  • कोई-कोई के तो डबल नाम भी है।
  • मद्रास के तरफ बहुत अच्छे-अच्छे नाम बहुतों के हैं।
  • भगत वत्सलम् आदि..... अब वह तो भगवान ही होगा।
  • मनुष्य कैसे हो सकते हैं।
  • अभी तुम बच्चों की बुद्धि में है - आत्माओं का परमपिता परमात्मा सामने बैठा है।
  • बाबा की तरफ तुम देखते रहेंगे तो समझेंगे पतित-पावन मोस्ट बिलवेड बाबा है।
  • आत्मा कहती है निराकार बाबा हम आत्माओं से बात कर रहे हैं, निराकार परमपिता परमात्मा आकर आत्माओं को पढ़ाते हैं।
  • यह कोई शास्त्र में नहीं है।
  • समझो कोई कहते हैं श्रीकृष्ण के तन में परमपिता परमात्मा प्रवेश करते हैं।
  • परन्तु श्रीकृष्ण का तो वह रूप सतयुग में था।
  • उस नाम रूप में तो श्रीकृष्ण आ न सके।
  • श्रीकृष्ण का तुम चित्र देखते हो, वह भी एक्यूरेट नहीं है।
  • बच्चे दिव्य दृष्टि में देखते हैं, उसका तो फोटो निकाल न सके।
  • बाकी यह मशहूर है - श्रीकृष्ण गोरा सतयुग का पहला प्रिन्स था, जो फिर विश्व के महाराजा महारानी बनते हैं।
  • लक्ष्मी-नारायण से ही राज्य शुरू होता है।
  • राजाई से संवत शुरू होता है ना।
  • सतयुग का पहला संवत है विकर्माजीत संवत।
  • भल पहले जब श्रीकृष्ण जन्मता है, उस समय भी कोई न कोई थोड़े बहुत रहते हैं, जिनको वापिस जाना है।
  • पतित से पावन बनने का यह संगमयुग है ना।
  • जब पूरा पावन बन जाते हैं तो फिर लक्ष्मी-नारायण का राज्य, नया संवत शुरू हो जाता है, जिनको विष्णुपुरी कहते हैं।
  • विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण से पालना होती है।
  • अभी तुम वह बनने का पुरूषार्थ करते हो।
  • तुम कहेंगे हम 5 हजार वर्ष बाद पुरूषार्थ करते हैं बाप से वर्सा लेने।
  • पुरूषार्थ अच्छी रीति करना है।

  • टीचर को मालूम तो रहता है ना कि स्टूडेन्ट कहाँ तक पास होंगे।
  • तुम बच्चे भी जानते हो कि हमारी एकरस अवस्था कहाँ तक बनती जाती है?
  • कहाँ तक हम बाप से अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान ले और फिर दान देते रहते हैं?
  • यह अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान और कोई भी नहीं कर सकता है।
  • ज्ञान सागर बाप से यह तुमको ज्ञान रत्न मिलते हैं।
  • वह जिस्मानी हीरे मोती नहीं हैं।
  • तो तुम बच्चों को फिर अविनाशी ज्ञान रत्नों का दानी भी बनना है।
  • अपने को देखना चाहिए हम कितना दान करते हैं?
  • मम्मा-बाबा कितना दान करते हैं।
  • हमारे में जो अच्छे ते अच्छी बहनें हैं, कितना अच्छा दान करती हैं!
  • रेस चल रही है ना।
  • फाइनल पास तो हुए भी नहीं हैं।
  • कहेंगे प्रेजेन्ट समय यह-यह तीखे हैं।
  • आगे जो माला बनाते थे और अभी जो माला बनायें तो बहुत फ़र्क पड़ जाये।
  • 4-5 नम्बर वाले दाने जो थे वह भी मर गये।
  • कई जिनको आगे नम्बर में रखते थे वह अब नीचे नम्बर में पहुँच गये हैं।
  • नये-नये ऊपर आ गये हैं।
  • बाबा तो सब जानते हैं ना इसलिए कहा जाता है गुड़ जाने गुड़ की गोथरी जाने।
  • बाबा बतलाते भी रहते हैं।
  • आगे तुम्हारी अवस्था अच्छी थी, अब नम्बर नीचे चला गया है क्योंकि कायदे अनुसार श्रीमत पर नहीं चलते हो।
  • अपनी मत पर चलते हो।
  • कोई भी पूछ सकते हैं कि बाबा इस समय अगर हमारा शरीर छूट जाए तो क्या गति को पायेंगे?
  • गीता में कुछ यह अक्षर हैं।
  • आटे में नमक मिसल है ना।
  • सब पुकारते रहते हैं - बाबा हमको रावण राज्य से छुड़ाओ, दु:ख हरो।
  • सच्चा-सच्चा हरिद्वार यह हुआ ना।
  • दु:ख हर्ता, परमपिता परमात्मा को ही हरी कहा जाता है, न कि श्रीकृष्ण को।
  • परमपिता परमात्मा ही दु:ख हर्ता, सुख कर्ता है।
  • तुम सुखधाम के मालिक बनते हो ना।
  • योगबल से तुम विश्व के मालिक बनते हो।
  • उन्हों का है बाहुबल, शारीरिक बल, जो बुद्धि से बाम्ब्स निकाले हैं।
  • यहाँ सेना आदि की तो कोई बात नहीं।
  • दुनिया में यह किसको पता ही नहीं कि योगबल से कैसे विश्व की बादशाही मिलती है।
  • बाप ही आकर यह योग सिखलाते हैं।
  • बाप कहते हैं मामेकम् याद करो।
  • मैं ज्ञान सागर हूँ।
  • महिमा गाते हैं ना - ज्ञान का सागर, सुख का सागर, पवित्रता का सागर, ऐसे कभी नहीं कहेंगे - योग का सागर।
  • नहीं, योग का सागर कहना रांग हो जाए।
  • बाप ज्ञान का सागर, पतित-पावन है।
  • जरूर ज्ञान की ही वर्षा करते होंगे।
  • पहली बात बाप कहते हैं- मामेकम् याद करो और किसको भी याद करना अज्ञान है।
  • सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान बाप ही सुनाते हैं।
  • योग के लिए भी शिक्षा देते हैं।
  • और सब योग के लिए उल्टी शिक्षा देंगे।
  • उनको जिस्मानी योग कहा जाता है, शरीर को ठीक रखने के लिए।
  • यह है रूहानी योग।
  • यह राजयोग की बात कहाँ भी है नहीं।
  • सिवाए बाप के और कोई राजयोग सिखला न सके।
  • जानते ही नहीं।
  • तुम यह राजयोग सीखते-सीखते चले जायेंगे, जाकर राज्य करेंगे।
  • राजयोग के कोई चित्र थोड़ेही हैं।
  • तुम यह बनाते हो समझाने के लिए।
  • सो भी कोई देखने से तो समझ न सकें।
  • समझाना पड़े - यह ब्रह्मा राजयोग सीखकर जाए नारायण बनते हैं।
  • यह बाजू में चित्र हैं।
  • यह सब बातें धारण करना बुद्धि की बात है।
  • इसमें टीचर क्या करेंगे?
  • टीचर बुद्धि को कुछ कर नहीं सकते।
  • कोई कहते हमारी बुद्धि को खोलो।
  • बाबा क्या करे?
  • तुम याद करते रहो और पूरा पढ़ो तो बुद्धि पूरा खुलेगी।
  • बच्चों को पूरा सिखलाया जाता है।
  • बाबा कहो, मम्मा कहो तो जरूर कहेगा तब तो सीखेगा ना।
  • बिगर कहे सीखेगा कैसे?
  • इसलिए बच्चों का मुख खुलवाया जाता है।
  • मेहनत करनी है।
  • बाप का परिचय देना है।
  • वह है ऊंचे ते ऊंचा भगवान, सबका रचयिता।
  • उनसे सबको स्वर्ग का वर्सा मिलता है।
  • फिर रावण राज्य में वर्सा गंवाते-गंवाते नर्क बन जाता है।
  • देवतायें पावन थे, फिर पतित बने।
  • फिर पतित-पावन बाप आया है, कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और कोई उपाय है नहीं।
  • योग अग्नि से ही विकारों रूपी खाद निकलेगी।
  • याद करते-करते तुम पावन बन गले का हार बन जायेंगे।
  • घड़ी-घड़ी बोलने की प्रैक्टिस करो सिर्फ कहना थोड़ेही है - बाबा मुख खुलता नहीं है।
  • श्रीमत पर चल जितना याद करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे।
  • श्रीमत पर नहीं चलेंगे तो ताला बन्द हो जायेगा।
  • तीर लगेगा नहीं।
  • खुशी का पारा चढ़ेगा नहीं।
  • अपनी मत पर चलेंगे तो बाबा कहेंगे यह तो रावण मत पर हैं।
  • बहुत देह-अभिमानी बच्चे हैं जो मुरली भी नहीं पढ़ते हैं।
  • जो मुरली ही नहीं पढ़ते वह क्या ज्ञान देंगे।
  • अनेक प्रकार की नई-नई प्वाइंट्स निकलती रहती हैं।
  • देही-अभिमानी बनने का पुरूषार्थ करना है।

  • इस पुरानी देह को भी छोड़ देना है।
  • यह तो मरा हुआ चोला है।
  • ऐसे-ऐसे अपने से बातें करते रहना है।
  • कोई की सर्विस छिप नहीं सकती।
  • कोई खामी है तो वह भी छिपती नहीं है।
  • माया बड़ी शैतान है।
  • अनेक प्रकार के उल्टे काम कराती रहती है।
  • कोई भूल हो जाए तो फौरन बाप से क्षमा मांगनी चाहिए।
  • अन्दर बाहर बहुत साफ होना चाहिए।
  • बहुतों में देह-अभिमान बहुत रहता है।
  • बाबा ने समझाया है - कभी कोई से भी सर्विस नहीं लो।
  • अपने हाथ से भोजन आदि बनाओ।
  • रूहानी-जिस्मानी दोनों सर्विस करनी है।
  • बाबा की याद में रह किसको दृष्टि देंगे तो भी बहुत मदद मिलेगी।
  • बाबा खुद प्रवेश कर सर्विस में बहुत मदद करते हैं।
  • वह समझते हैं हमने किया, अहंकार झट आ जाता है।
  • यह नहीं समझते कि बाबा ने करवाया।
  • बाबा प्रवेश होकर सर्विस करवा सकते हैं, फिर तो और ही डबल फोर्स हो गया।
  • किसको लिफ्ट मिली, जाकर ऊंच सर्विस करने लग पड़े तो खुश होना चाहिए ना।
  • इसमें ईर्ष्या की क्या बात है?
  • कभी भी परचिंतन नहीं करना चाहिए।

  • यहाँ की बातें वहाँ सुनायेंगे।
  • भल कोई ने कुछ कहा भी फिर भी दूसरे को सुनाकर नुकसान क्यों करना चाहिए।
  • ऐसे तो बहुत झूठी बातें भी बनाते हैं - फलानी तो ऐसी है, यह है।
  • ऐसी झूठी बातें कभी नहीं सुनना।
  • कोई उल्टी-सुल्टी बात बोले तो सुनी अनसुनी कर देना चाहिए।
  • किसके दिल को खराब नहीं करना चाहिए।
  • ...अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुड़मार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।


  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) बाप से अन्दर बाहर साफ रहना है।

    कोई भी भूल हो जाए तो फौरन क्षमा मांगना है।

    रूहानी जिस्मानी दोनों प्रकार की सेवा करनी है।

    2) कभी भी ईर्ष्या के कारण एक दो का परचिंतन नहीं करना है।

    कोई किसी के प्रति उल्टी सुल्टी बातें सुनाये तो सुनी अनसुनी कर देना है।

    वर्णन करके किसी की दिल खराब नहीं करना है।



  • ( All Blessings of 2021-22)
  • फ्राकदिल बन दु:खी अशान्त आत्माओं को खुशी का दान देने वाले मास्टर रहमदिल भव

    वर्तमान समय लोगों को और सब कुछ मिल सकता है लेकिन सच्ची खुशी नहीं मिल सकती।

    इसलिए ऐसे समय पर दु:खी अशान्त आत्माओं को खुशी की अनुभूति करा दो तो वे दिल से दुआयें देंगी।

    आप दाता के बच्चे हो तो फ्राकदिली से खुशी का खजाना बांटो, रहमदिल के गुण को इमर्ज करो।

    कभी भी यह नहीं सोचो कि यह तो सुनने वाले ही नहीं हैं।

    भल कोई आपोजीशन भी करे तो भी आपको रहम की भावना नहीं छोड़नी है।

    रहम भावना, शुभ भावना फल अवश्य देती है।



  • (All Slogans of 2021-22)
    • ज्ञान योग की पालना ही रूहानी पालना है - इस पालना से शक्तिशाली बनो और बनाओ।