31-08-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
मीठे बच्चे - सवेरे-सवेरे उठ बाप को प्यार से याद करो तो पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बन जायेंगे''
प्रश्नः-
21 जन्मों के लिए मालामाल बनने का साधन क्या है?
उत्तर:-
अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करो तो मालामाल बन जायेंगे क्योंकि यह एक-एक ज्ञान रत्न लाखों रूपयों का है। जितना जो दान करेगा, बाप की याद में रहेगा उतना उसे खुशी का पारा चढ़ा रहेगा।
प्रश्नः-
अपने से कोई पाप कर्म न हो उसके लिए कौन सी परहेज चाहिए?
उत्तर:-
अन्न की बहुत परहेज चाहिए। पापात्मा का अन्न अन्दर जाने से उसका असर पड़ता है। हर एक के सरकमस्टांश देख बाप राय देते हैं।
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- ओम् शान्ति।
- कौन बैठे हैं, कौन आया?
- जीव आत्मायें जानती हैं कि हम सब आत्मायें इस समय पतित हैं।
- खास भारत आम सारी दुनिया।
- सब पुकारते हैं हे पतित-पावन।
- यह पतित दुनिया है।
- सभी आत्मायें पतित दु:खी, सांवरी हो गई हैं।
- पतित-पावन है बेहद का बाप, जिसको ज्ञान का सागर, सर्व का सद्गति दाता कहा जाता है।
- बच्चे बाप के सामने बैठे हैं।
- बच्चों को कहाँ से पहचान मिली?
- पतित-पावन बाप द्वारा।
- जब सतयुग था तब वहाँ राजा रानी तथा प्रजा सब पावन थे।
- सब गोल्डन एज में थे।
- तुम बच्चों को अब समझ है कि हम जीव की आत्मायें बैठी हैं।
- आत्मा शरीर के साथ है तो सुख अथवा दु:ख भोगना पड़ता है।
- आत्मा शरीर में नहीं है तो शरीर को कुछ पता नहीं पड़ता।
- आत्मा एक शरीर से निकल जाए दूसरे शरीर से कनेक्शन जोड़ती है तो वह चैतन्य हो जाता है।
- शरीर जड़ है।
- जड़ भी वृद्धि को पाता है।
- पहले 5 तत्वों का पुतला बनता है, उनमें आरगन्स आते हैं तब आत्मा उसमें प्रवेश करती है फिर चैतन्य बन जाता है।
- अभी तुम जीव आत्मायें बैठी हो, तुम्हारे सामने बाप बैठे हैं।
- वह भी परम सुप्रीम आत्मा है और एवर प्युअर (सदा पावन) है।
- अब बाप बच्चों को डायरेक्शन देते हैं - बच्चे तुम्हें भी बाप जैसा पावन बनना है।
- तुम आत्मायें अमर हो, तुम पहले शान्तिधाम में थी।
- तुम जानते हो हम आत्मायें शिवबाबा के पास आई हैं, जिसने यह साधारण शरीर धारण किया है।
- सिवाए परमपिता परमात्मा के और कोई हो नहीं सकता जो ऐसे बच्चों को बैठ डायरेक्शन दे।
- वह तो समझते हैं कि परमात्मा कब आता नहीं।
- वह नाम रूप से न्यारा है।
- तुम बच्चे जानते हो हम फिर से 5 हजार वर्ष बाद आकर मिले हैं।
- पहचाना है कि कैसे बाप हमको पावन बनाते हैं।
- आत्मा के पतित होने से शरीर भी पतित हुआ है।
- अब फिर पावन बनना है।
- हम आत्मायें मूलवतन में पावन थी।
- ऐसे ऐसे अपने से बातें करना है।
- विचार सागर मंथन करना है।
- अभी तुम आत्माओं को पहचान मिली है।
- हम आत्मायें निर्वाणधाम में थी फिर सतयुग में आते हो सुख का पार्ट बजाने।
- तुम हो आलराउन्डर इसलिए पहले-पहले तुमको ज्ञान मिला है।
- जानते हो शिवबाबा प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मणों की रचना रचते हैं।
- बाबा कहते हैं तुम जीव आत्माओं को शूद्र वर्ण से ब्राह्मण वर्ण में लाया है।
- शूद्र से अब तुम ब्राह्मण ब्रह्मा मुख वंशावली बने हो।
- क्यों?
- वर्सा लेने।
- ब्रह्मा मुखवंशावली सिर्फ संगम पर ही बनते हैं।
- तुम्हारे लिए ही संगम है।
- तुम आत्मा कहती हो हम पहले पावन थे, अब पतित बने हैं फिर सो पावन बनते हैं।
- हे पतित-पावन बाबा हमको फिर से आकर पतित से पावन बनाओ।
- ऐसे-ऐसे अपने से बातें करो।
- अभी आत्मा को खुराक मिली है।
- हम आत्मायें पावन थी तो मुक्तिधाम में रहती थी फिर स्वर्ग में आई, इतने जन्म लिए फिर नीचे गिरते गये फिर गोल्डन एज में जाना है।
- बाबा कहते हैं मैंने 5 हजार वर्ष पहले भी कहा था - मामेकम् याद करो।
- गृहस्थ व्यवहार धन्धे आदि में रहते सिर्फ अपने को आत्मा समझो, अब हमको पावन बनना है।
- घर जाना है।
- पावन दुनिया का मालिक बनना है।
- अब हम आइरन एज से गोल्डन एज में कैसे जायें, यह चिंता लगी रहे।
- बाबा तो सहज युक्ति बतलाते हैं कि मामेकम् याद करो तो तुम पावन बनेंगे।
- गीता में दो बारी यह महावाक्य हैं कि मनमनाभव।
- हे बच्चे देह-अभिमान छोड़ो।
- बाप को याद करो।
- वह है अथॉरिटी।
- तुमको सभी शास्त्रों का सार, सृष्टि के आदि मध्य अन्त का नॉलेज समझाया है।
- तुम जितना मुझे याद करेंगे उतना तुम्हारी आत्मा पवित्र होती जायेगी, और कोई उपाय नहीं।
- पत्थरबुद्धि को पारसबुद्धि बनना है।
- गंगा-स्नान से पावन नहीं बनेंगे।
- अगर बनते तो यहाँ होते ही नहीं।
- परन्तु आइरन एज में सबको आना ही है।
- तो पहले सवेरे-सवेरे इस ख्यालात में बैठना है।
- कहते हैं ना - राम सिमर प्रभात मोरे मन।
- आत्मा कहती है हे मेरी बुद्धि अब बाप को याद करो।
- बुद्धि का योग बाप से लगाना है।
- अब जितना जो लगायेंगे उतना पत्थर से पारसबुद्धि बनते जायेंगे। पारसबुद्धि बनाने वाला एक बाप ही है।
- कहते हैं कल्प-कल्प आकर संगम पर तुमको बनाता हूँ।
- सेकेण्ड की बात है ना।
- जैसे डाक्टर लोग ऐसी दवाईयां देते हैं जो फोड़ा अन्दर ही खत्म हो जाता है।
- बाप कहते हैं तुमको भी मुख से कुछ कहना नहीं है।
- हाथ पांव से भी कुछ करना नहीं है, सिर्फ बुद्धि से याद करना है।
- कल्प पहले भी तुमने याद किया था, जिससे विकर्म दग्ध हुए थे।
- ऐसे तुमको समझाया था, अब समझा रहा हूँ।
- अभी तुमको बाप की याद से पारसबुद्धि बनना है।
- बाप कहते हैं मैं तुम्हारा पतित-पावन बाप कल्प-कल्प के संगम पर आता हूँ श्रीमत देने।
- हे मेरे मीठे लाडले बच्चे, यह आत्मा सुनती है इन आरगन्स से।
- यह है ब्रह्मा मुख, गऊमुख कहते हैं ना।
- गऊ जानवर नहीं।
- यह गऊ माता ठहरी ना।
- इस गऊ मुख से सुनाते हैं।
- मन्दिरों में फिर वह गऊ मुख दे दिया है।
- उनके मुख से पानी बहता है।
- उसको समझते हैं गऊमुख।
- गंगा का जल समझते हैं।
- अभी तुम जानते हो यह ज्ञान बाप इन द्वारा देते हैं।
- यह गऊ माता हुई ना।
- यह है बड़ी माँ। इनकी कोई माता नहीं।
- साकार मम्मा की भी यह माता हुई ना।
- तुम सब मातायें गऊ हो।
- तुम्हारे मुख से यह ज्ञान वर्षा होती है।
- बाकी पानी की नदियां तो सब जगह होती हैं।
- वह गंगा पतित-पावनी हो नहीं सकती।
- गंगा पर भी मन्दिर है, जहाँ देवता की मूर्ति है।
- इन देवताओं में तो ज्ञान है नहीं।
- ज्ञान तुमको मिलता है, जिससे तुम देवता बनते हो।
- देवताओं को ज्ञानी नहीं कहेंगे।
- विष्णु को अलंकार देते हैं वास्तव में हैं तुम ब्राह्मणों के अलंकार।
- तुम बच्चों को यह स्वदर्शन चक्र फिराना है, इसमें हिंसा की कोई बात नहीं।
- यह सब ज्ञान की बातें हैं।
- ज्ञान का शंख बजाना है और चक्र को याद करना है।
- यह है स्वदर्शन चक्र, उन्होंने फिर चर्खा रख दिया है।
- कमल फूल समान पवित्र भी तुम्हें यहाँ बनना है।
- गदा भी ज्ञान की है, जिससे माया पर जीत पानी है।
- तो यह सब हैं तुम्हारे अलंकार।
- तुम बच्चे जानते हो यह है नर्क, स्वर्ग उस तरफ खड़ा है।
- हम संगम पर हैं।
- एक तरफ मैला पानी दूसरे तरफ अच्छा पानी है।
- उसका संगम होता है, जो जाकर देखते हैं।
- यह है ज्ञान-सागर परमपिता परमात्मा और तुम मैली नदियां हो।
- बाप बैठ आप समान पवित्र बनाते हैं।
- बाप को याद करो और स्वदर्शन चक्र फिराओ, इसमें कृपा आदि की कोई बात नहीं।
- टीचर को कभी कहेंगे क्या कि मास्टर जी कृपा करो तो हम ऊंच पद पायें।
- टीचर कहेंगे पढ़ो।
- बाप तो कहते हैं मैं तो सबको एक जैसा पढ़ाता हूँ।
- तुम कहते हो पतित-पावन आओ, आकर हमको पावन बनाओ।
- तुम इस ड्रामा के एक्टर हो और ड्रामा के आदि मध्य अन्त, क्रियेटर, डायरेक्टर का पता नहीं है।
- तुम तो पत्थरबुद्धि हो।
- अभी तुम बच्चे बाप को जानने से पारसबुद्धि बन जाते हो।
- बाप कहते हैं सवेरे सिर्फ आधा-पौना घण्टा बैठ यह विचार सागर मंथन करो।
- प्वाइंट्स तो तुमको बहुत सुनाते हैं।
- उन्होंने तो 18 अध्याय बैठ बनाये हैं।
- भक्ति मार्ग में फिर ड्रामा अनुसार यह शास्त्र आदि होंगे।
- अब तुम बच्चों को पुरूषार्थ करना है।
- अमृतवेले उठ अपने साथ बातें करनी हैं।
- अब हमको बाप को याद कर पावन बनना है।
- माला का दाना बनना है।
- बाबा की याद से पवित्र बनेंगे, जितना पवित्र बनते और बनाते जायेंगे उतना खुशी का पारा चढ़ता जायेगा।
- यह अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान औरों को देना है।
- साहूकार लोग दान पुण्य करते हैं ना।
- तुम हो अविनाशी ज्ञान रत्नों के दानी।
- एक-एक रत्न लाखों की वैल्यु का है।
- तुम जितना पवित्र बनते हो - 21 जन्म के लिए मालामाल हो जाते हो।
- तुम जब पारसबुद्धि थे तो सुख शान्ति सम्पत्ति सब थी।
- अभी पत्थरबुद्धि होने से सब खत्म हो गया है।
- अब बाप कहते हैं अपने को आत्मा निश्चय कर सवेरे उठने का अभ्यास डालो।
- समय अच्छा है।
- अन्धियारी रात में मनुष्य घोर पाप करते हैं।
- अभी तुमको पावन बनना है।
- तुम 100 परसेन्ट निर्विकारी थे।
- अभी आत्मा में खाद पड़ी है वह निकलेगी - योग भट्ठी से, योग अग्नि से।
- इस ज्ञान और योग की समझानी का विनाश नहीं होता है।
- थोड़ा सुनने से भी प्रजा में आ जायेंगे।
- बाप तो कहते हैं बच्चे पूरा वर्सा लो, कल्प पहले मुआफिक।
- वही राजा, वही प्रजा आदि बनेंगे।
- अज्ञानकाल में भी दान-पुण्य करते हैं तो राजाई घर में जाकर जन्म लेते हैं।
- कोई कर्मों अनुसार गरीब के घर में जन्म लेते हैं।
- बाप बैठ कर्म, विकर्म, अकर्म की गति समझाते हैं।
- सतयुग में कर्म अकर्म हो जाता है क्योंकि माया ही नहीं है।
- यह है रावण राज्य।
- वह है रामराज्य।
- अभी रावण राज्य का विनाश हो, सतयुग की स्थापना हो रही है।
- बाप तो बहुत अच्छी तरह से समझाते हैं।
- कन्याओं को अच्छी तरह से समझाना चाहिए, बंधन मुक्त हैं।
- कन्या की कमाई मात-पिता नहीं खाते हैं।
- माँ बाप कन्या को पूजते हैं।
- कन्या जब विकारी बन जाती है तो सबके आगे माथा टेकना पड़ता है।
- भल कन्या भी देवताओं के आगे माथा टेकती है क्योंकि जन्म तो पतित माँ बाप से लिया ना।
- देवतायें तो हैं ही पावन।
- अभी तुम समझते हो हम सो देवता थे।
- 84 जन्म ले फिर पतित बने हैं, उतरते आये हैं।
- अब हमको फिर श्रीमत पर चलना पड़े, तो फिर कोई पाप कर्म नहीं होंगे।
- पाप-आत्मा का अन्न अन्दर नहीं जायेगा।
- परहेज तो बताई जाती है ना, नहीं तो वह असर पड़ जाता है।
- परन्तु कहाँ-कहाँ सरकमस्टांश देखा जाता है।
- कर्मों का हिसाब-किताब है, अलग बनाने नहीं देते हैं।
- अच्छा बाप को याद करो, लाचारी है - बाबा को याद करके खाओ।
- भूलेंगे तो तुम्हारे पर उसका असर आ जायेगा।
- बाप को याद करने से नजदीक होते जायेंगे।
- अभी तो सम्मुख बैठे हो।
- बाप डायरेक्ट समझाते हैं, हे बच्चे, हे बच्चे कह बाप बात कर रहे हैं, तो बाप को याद करना है, फिर करो न करो तुम्हारी मर्जी।
- जो करेगा सो पायेगा जरूर।
- सीधी बात है।
यह तो समझ गये हो - यह हॉस्पिटल है।
- हेल्थ, वेल्थ की युनिवर्सिटी भी है।
- इसमें सिर्फ 3 पैर पृथ्वी का चाहिए। बस।
- बेहद का बाप देखो कैसे पढ़ाते हैं।
- कितना निरहंकारी बाप है।
- पतित शरीर, पतित दुनिया में बैठ तुम बच्चों से कितनी मेहनत कर रहे हैं।
- बच्चे फिर से तुम अपना वर्सा ले लो।
- हम साक्षी हो देख रहे हैं।
- कौन-कौन अच्छा पुरूषार्थ कर रहे हैं, इसमें सिर्फ 3 पैर पृथ्वी चाहिए।
- कलकत्ते में सेन्टर है, कितनों का कल्याण हो रहा है, जो आपस में मिलकर सेन्टर चलाते हैं उनको भी पद मिल जाता है।
- क्लास जितना कमरा हो, जिसमें सब क्लास सुन सकें। बस।
- हमको तो गोल्डन एज में जाना है।
- सिवाए याद के और कोई उपाय है नहीं।
- बाप कहते हैं बच्चे अपना और दूसरों का कल्याण करना है।
- तुम यह हॉस्पिटल खोलो।
- तुमको यहाँ बहुतों की आशीर्वाद मिलेगी।
- मनुष्य कालेज खोलते हैं औरों के लिए।
- खुद तो नहीं पढ़ते हैं तो उनको दूसरे जन्म में अच्छी विद्या मिल जाती है।
- बाप कहते हैं चाहे गरीब हो, चाहे साहूकार हो, तीन पैर पृथ्वी का प्रबन्ध हो, जिसमें बैठ ज्ञान और योग सिखलावें, पत्थर से पारस बनावें।
- कहते हैं बहन भाई बनाते हैं, विष का वर्सा छुड़ाते हैं।
- फिर दुनिया कैसे चलेगी।
- यह तो तुम बच्चे जानते हो कि वहाँ यह दुनिया कोई भोगबल की नहीं है।
- वहाँ तो योगबल से बच्चे पैदा होते हैं।
- अब तुम उस नये विश्व के मालिक बनते हो।
- ...अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुड़मार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सवेरे उठने का अभ्यास डालना है।
सवेरे-सवेरे उठ विचार सागर मंथन जरूर करना है।
आधा पौना घण्टा भी बैठकर अपने आपसे बातें करनी हैं।
बुद्धि को ज्ञान से भरपूर करना है।
2) बहुतों की आशीर्वाद लेने के लिए 3 पैर पृथ्वी पर कालेज वा हॉस्पिटल खोल देनी है।
बाप समान निरहंकारी बन सेवा करनी है।
- ( All Blessings of 2021-22)
चारों ही सबजेक्ट में हर रोज़ कोई न कोई नवीनता का अनुभव करने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव
ज्ञान में नवीनता का अर्थ है, समझदार बनकर चलना अर्थात् जो अपने में कमी है उसे खत्म करते जाना।
योग के प्रयोग में नवींनता अर्थात् उसकी परसेन्टेज़ को बढ़ाना।
ऐसे ही चारों सबजेक्ट में स्व की प्रगति में नवीनता, विधि में नवीनता, प्रयोग में नवीनता, सेवा में नवीनता, औरों को सहजयोगी बनाने वा परसेन्टेज बढ़ाने में नवी-नता का अनुभव करना माना तीव्र पुरूषार्थी बनना, इससे ही समीपता का अनुभव करेंगे।
- (All Slogans of 2021-22)
- प्योरिटी की अथॉरिटी ही सबसे बड़ी पर्सनैलिटी है।
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