20-08-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


"मीठे बच्चे - इस रूहानी पढ़ाई को कभी मिस नहीं करना, इस पढ़ाई से ही तुम्हें विश्व की बादशाही मिलेगी''

प्रश्नः-

कौन सा निश्चय पक्का हो तो पढ़ाई कभी भी मिस न करें?

उत्तर:-

अगर निश्चय हो कि हमें स्वयं भगवान टीचर रूप में पढ़ा रहे हैं।

इस पढ़ाई से ही हमें विश्व की बादशाही का वर्सा मिलेगा और ऊंच स्टेटस भी मिलेगा, बाप हमें साथ भी ले जायेंगे - तो पढ़ाई कभी मिस न करें।

निश्चय न होने कारण पढ़ाई पर ध्यान नहीं रहता, मिस कर देते हैं।

गीत:- हमारे तीर्थ न्यारे हैं...

...full possibilities...

  • ओम् शान्ति।
  • मीठे-मीठे बच्चे पास्ट के सतसंग और अभी के सतसंग के अनुभवी हैं।
  • पास्ट यानी इस सतसंग में आने के पहले बुद्धि में क्या रहता था और अब बुद्धि में क्या रहता है!
  • यह रात दिन का फ़र्क देखने में आता होगा।
  • उस सतसंगों में तो सिर्फ सुनते ही रहते हैं।
  • कोई आश दिल में नहीं रहती।
  • बस सतसंग में जाकर दो वचन शास्त्रों का सुनना होता है।
  • यहाँ तुम बच्चे बैठे हो।
  • बुद्धि में है कि हम आत्मायें बापदादा के सामने बैठी हैं और उनसे हम स्वर्ग का वर्सा लेने के लिए ज्ञान और योग सीख रहे हैं।
  • जैसे स्कूल में स्टूडेन्ट समझते हैं कि हम बैरिस्टर वा इंजीनियर बनेंगे।
  • कोई न कोई इम्तहान पास कर यह पद पायेंगे।
  • यह ख्याल आत्मा को आते हैं।
  • अभी हम पढ़कर फलाना बनेंगे।
  • सतसंग में कोई एम नहीं रहती है कि क्या प्राप्ति होगी।
  • करके कोई को आश होगी भी तो वह अल्पकाल के लिए।
  • साधू सन्तों से मांगेंगे कि कृपा करो, आशीर्वाद करो।
  • यह भक्ति वा सतसंग आदि करते, यहाँ तक आकर पहुँचे हैं।
  • अभी हम बाप के सामने बैठे हैं।
  • एक ही आश है - आत्मा को बाप से वर्सा लेने की।
  • उन सतसंगों में वर्सा लेने की बात नहीं रहती।
  • स्कूल अथवा कालेज में भी वर्सा पाने की बात नहीं रहती।
  • वह तो टीचर है पढ़ाने वाला।
  • वर्से की आश इस समय तुम बच्चे लगाकर बैठे हो।
  • बरोबर बाप परमधाम से आया हुआ है।
  • हमको फिर से सदा सुख का स्वराज्य देने।
  • यह बच्चों की बुद्धि में जरूर रहेगा ना।
  • फिर भी समझते हैं बाप के सन्मुख जाने से ज्ञान के अच्छे बाण लगेंगे क्योंकि वह सर्वशक्तिवान है।
  • बच्चे भी ज्ञान बाण मारने सीखते हैं, परन्तु नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार।
  • यहाँ ही डायरेक्ट सुनते हैं।
  • समझते हैं बाबा समझा रहे हैं और कोई सतसंग वा कालेज में ऐसे नहीं समझेंगे।
  • हम बेहद के बाप से बेहद का वर्सा ले रहे हैं।
  • हम इस सृष्टि चक्र को जान गये हैं।
  • उन सतसंगों में तो जन्म-जन्मान्तर जाते ही रहते हैं।
  • यहाँ है एक बार की बात।
  • भक्ति मार्ग में जो कुछ करते वह अब पूरा होता है।
  • उनमें कोई सार नहीं है।
  • तो भी अल्पकाल के लिए मनुष्य कितना माथा मारते हैं।
  • तुम बच्चों की बुद्धि में रहता है हमको बाबा पढ़ा रहे हैं।
  • बाबा ही बुद्धि में याद आयेगा और अपनी गॅवाई हुई राजधानी याद आ जायेगी।
  • अभी हम जितना पुरूषार्थ करेंगे, बाबा को याद करेंगे और ज्ञान की धारणा में रहेंगे।
  • औरों को भी ज्ञान की धारणा करायेंगे, उतना ऊंच पद पायेंगे।
  • यह तो हर एक की बुद्धि में है ना।
  • बाप इस प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा समझा रहे हैं, इनको दादा ही कहेंगे।
  • शिवबाबा इनमें प्रवेश होकर हमको पढ़ा रहे हैं।
  • तुम जानते हो पहले यह बातें हमारी बुद्धि में नहीं थी।
  • हम भी बहुत सतसंग आदि करते थे।
  • परन्तु यह ख्याल में भी नहीं था कि परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा आकर कब पढ़ाते हैं।
  • अभी बाप को और समय को जान गये हैं।
  • नई दुनिया स्वर्ग का स्वराज्य फिर से याद आता है।
  • अन्दर में खुशी रहती है।
  • बेहद का बाप जिसको भगवान कहते हैं, वह हमको पढ़ा रहे हैं।
  • बाबा पतित-पावन तो है ही फिर टीचर के रूप में बैठ हमको पढ़ाते हैं।
  • इस दुनिया में कोई भी इस ख्यालात में नहीं बैठे होंगे सिवाए तुम बच्चों के।
  • तुम बेहद बाप की याद में बैठे हो।
  • अन्दर में समझ है हम आत्मायें 84 जन्मों का पार्ट पूरा कर वापिस जाती हैं।
  • फिर स्वर्ग में जाने के लिए बाप हमको राजयोग की शिक्षा दे रहे हैं।
  • बच्चे जानते हैं यह राजयोग की शिक्षा दे स्वर्ग का महाराजा महारानी बनाने वाला बाप के सिवाए और कोई हो नहीं सकता, इम्पासिबुल है।
  • बाबा एक ही बार आकर पढ़ाते हैं, स्वर्ग का मालिक बनाने लिए।
  • बुद्धि में रहता है हम बच्चे बाप द्वारा बेहद सृष्टि का स्वराज्य लेने लिए पढ़ाई पढ़ रहे हैं।
  • एम-आब्जेक्ट की ताकत से ही पढ़ते हैं।
  • अभी तुम मीठे मीठे बच्चों की बुद्धि में है हम कहाँ बैठे हैं।
  • मनुष्यों के ख्यालात तो कहाँ न कहाँ चलते ही रहते हैं।
  • पढ़ाई के समय पढ़ने के, खेलने के समय खेलने के।
  • तुम जानते हो हम बेहद बाप के सन्मुख बैठे हैं।
  • आगे नहीं जानते थे।
  • कोई भी मनुष्य मात्र नहीं जानते हैं कि भगवान आकर राजयोग सिखलाते हैं।
  • अभी तुम बच्चों ने समझा है - जन्म-जन्मान्तर हम भक्ति करते आये हैं।
  • यह ज्ञान बाप के सिवाए कोई दे न सके, जब तक बाप न आये - विश्व के मालिकपने का वर्सा मिले कैसे।
  • न किसकी बुद्धि में यह आता है।
  • हम भगवान के बच्चे हैं, वह स्वर्ग का रचयिता है, फिर हम स्वर्ग में क्यों नहीं हैं।
  • नर्क में दु:खी क्यों हैं।
  • हे भगवान, हे पतित-पावन कहते हैं परन्तु यह बुद्धि में नहीं आता कि हम दु:खी क्यों हैं।
  • बाप बच्चों को दु:ख देते हैं क्या!
  • बाप सृष्टि रचते हैं बच्चों के लिए।
  • क्या दु:ख के लिए?
  • यह तो हो नहीं सकता।
  • अभी तुम बच्चे श्रीमत पर चलने वाले हो।
  • भल कहाँ भी दफ्तर वा धन्धे आदि में बैठे हो परन्तु बुद्धि में तो यह है ना कि हमको पढ़ाने वाला भगवान बाप है।
  • हमको रोज़ सवेरे क्लास में जाना होता है।
  • क्लास में जाने वालों को ही याद पड़ता होगा।
  • बाकी जो क्लास में ही नहीं आते तो वह पढ़ाई को और पढ़ाने वाले को समझ कैसे सकते हैं।
  • यह नई बातें हैं, जिसको तुम ही जानते हो।
  • बेहद का बाप जो नई दुनिया रचने वाला है, वह बैठ नई दुनिया के लिए हमारा जीवन हीरे जैसा बनाते हैं।
  • जब से माया का प्रवेश हुआ है, हम कौड़ी जैसा बनते आये हैं।
  • कलायें कम होती गई हैं।
  • माया ऐसे खाती आई है जो हमको कुछ भी पता नहीं पड़ा।
  • अभी बाप ने आकर बच्चों को जगाया है - अज्ञान नींद से।
  • वह नींद नहीं, अज्ञान नींद में सोये पड़े थे।
  • ज्ञान तो ज्ञान सागर ही देते हैं और कोई दे नहीं सकते।
  • एक ही हमारा बिलवेड मोस्ट बाप ज्ञान का सागर, पतित-पावन दे सकते हैं।
  • अब बच्चे जान गये हैं इस युक्ति से बाप हमको पावन बना रहे हैं।
  • पुकारते भी हैं हे पतित-पावन बाबा आओ।
  • परन्तु समझते नहीं हैं कि कैसे आकर पावन बनायेंगे सिर्फ पतित-पावन कहते रहने से तो पावन नहीं बन जायेंगे।
  • तुम जानते हो कि इस समय सब पतित भ्रष्टाचारी हैं, जो भ्रष्टाचार से पैदा होते हैं।
  • वह कर्तव्य भी ऐसा करेंगे।
  • यह बेहद का बाप बैठ समझाते हैं, तुम यहाँ सन्मुख बैठकर सुनते हो तो तुम्हारी बुद्धि का योग बाप के साथ रहता है।
  • फिर कुसंग तरफ जाते हैं, बहुतों से मिलते करते हैं, वातावरण सुनते हैं तो जो सन्मुख की अवस्था रहती है - वह अवस्था बदल जाती है।
  • यहाँ तो सन्मुख बैठे हैं।
  • स्वयं ज्ञान का सागर परमपिता परमात्मा बैठ ज्ञान का बाण मारते हैं, इसलिए मधुबन की महिमा है।
  • गाते भी हैं ना - मधुबन में मुरली बाजे।
  • मुरली तो बहुत स्थानों पर बजती है।
  • परन्तु यहाँ सन्मुख बैठकर समझाते हैं और बच्चों को सावधानी भी देते हैं, बच्चे खबरदार रहना।
  • कोई उल्टा सुल्टा संग नहीं करना।
  • लोग तुमको उल्टी बातें सुनाकर डराए इस पढ़ाई से ही छुड़ा देंगे।
  • संग तारे कुसंग बोरे।
  • यहाँ है सत बाप का संग।
  • तुम प्रतिज्ञा भी करते हो कि हम एक से ही सुनेंगे।
  • एक का ही फरमान मानेंगे।
  • तुम सबका बाप टीचर सतगुरू वो एक ही है।
  • वहाँ तो वह गुरू लोग सिर्फ शास्त्र ही सुनाते रहते।
  • नई बात कोई नहीं।
  • न बाप का परिचय ही दे सकते, न ज्ञान की बातें ही जानते।
  • सब नेती-नेती कहते आये।
  • हम रचता और रचना को नहीं जानते।
  • जब बाप आते हैं तब ही समझाते हैं।
  • उन कलियुगी गुरूओं में भी नम्बरवार हैं, कोई के तो लाखों फालोअर्स हैं।
  • तुम समझते हो हमारा सतगुरू तो एक ही है।
  • मरने आदि की तो बात ही नहीं।
  • यह शरीर तो शिवबाबा का है नहीं।
  • वह तो अशरीरी, अमर है।
  • हमारी आत्मा को भी अमरकथा सुनाए अमर बना रहे हैं।
  • अमरपुरी में ले जाते हैं, फिर सुखधाम में भेज देते हैं।
  • निर्वाणधाम है ही अमरपुरी।
  • अभी तुम्हारी बुद्धि में रहता है हम आत्मायें शरीर छोड़कर जायेंगी बाप के पास।
  • फिर जिसने जितना पुरूषार्थ किया होगा उस अनुसार पद पायेंगे।
  • क्लास ट्रांसफर होता है।
  • हमारी पढ़ाई का पद इस मृत्युलोक में नहीं मिलता है।
  • यह मृत्युलोक फिर अमरलोक बन जायेगा।
  • अब तुमको स्मृति आई है कि हमने सतयुग त्रेता में 21 जन्म राज्य किया, फिर द्वापर कलियुग में आये।
  • अब यह है हमारा अन्तिम जन्म।
  • फिर हम वापिस जायेंगे, वाया मुक्ति-धाम होकर फिर सुखधाम में आयेंगे।
  • बाप बच्चों को कितना रिफ्रेश करते हैं।
  • आत्मा समझती है कि हम 84 के चक्र में आते हैं।
  • परमात्मा कहते हैं मैं इस चक्र में नहीं आता हूँ।
  • मुझ में इस सृष्टि चक्र का ज्ञान है।
  • यह तुम जानते हो कि पतित-पावन बेहद का बाप है।
  • तो वह बेहद को ही पावन करने वाला होगा ना।
  • कोई मनुष्य बेहद का बाप हो न सके।
  • वह बेहद का बाप एक ही है।
  • तुम जानते हो हम आत्मायें वहाँ की रहने वाली हैं।
  • वहाँ से फिर शरीर में आते हैं।
  • पहले-पहले कौन आया पार्ट बजाने, यह तुम समझते हो।
  • हम आत्मायें निराकारी दुनिया से आई हैं पार्ट बजाने।
  • इस समय तुम बच्चों को नॉलेज मिली है।
  • कैसे नम्बरवार हर एक धर्म वाले अपने पार्ट अनुसार आते हैं, इसको अविनाशी ड्रामा कहा जाता है।
  • यह किसकी बुद्धि में नहीं है।
  • हम बेहद ड्रामा के एक्टर हैं।
  • न बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी को, न अपने जन्मों को ही जानते हैं।
  • बाबा तुमको कितना रिफ्रेश करते हैं, पुरूषार्थ अनुसार।
  • कोई तो बड़ी खुशी में रहते हैं।
  • बाबा हमको सत्य ज्ञान सुना रहे हैं और कोई मनुष्य मात्र यह ज्ञान दे नहीं सकते, इसलिए इसको अज्ञान अन्धेरा कहा जाता है।
  • अभी तुम जानते हो हम अज्ञान अन्धेरे में कैसे आये।
  • फिर ज्ञान सोझरे में कैसे जाना है।
  • यह भी नम्बरवार समझ सकते हैं।
  • घोर अन्धियारा और घोर सोझरा किसको कहा जाता है - यह अक्षर बेहद से लगता है।
  • आधाकल्प रात, आधाकल्प दिन।
  • वा समझो सांझ और सवेरा... यह बेहद की बात है।
  • बाबा आकर सभी शास्त्रों का सार समझाते हैं।
  • यह जो दान पुण्य करते हैं, शास्त्र पढ़ते हैं उससे तो अल्पकाल का सुख मिलता है।
  • बाप कहते हैं मैं इनसे नहीं मिलता हूँ, जो मैं विश्व का मालिक उन्हों को बनाऊं।
  • यह भी समझते हो कि सब विश्व के मालिक बन नहीं सकते।
  • मालिक वह बनते हैं जिन्हों को बाप पढ़ाते हैं।
  • वही राजयोग सीख रहे हैं।
  • सारी दुनिया तो राजयोग नहीं सीखती है।
  • कोटों में कोई ही पढ़ते हैं।
  • कई तो 5-6 वर्ष, 10 वर्ष राजयोग सीखते, फिर भी पढ़ाई छोड़ देते हैं।
  • बाप कहते हैं माया बहुत प्रबल है, बिल्कुल ही बेसमझ बना देती है।
  • फारकती दे देते हैं।
  • कहावत है ना - आश्चर्यवत बाप का बनन्ती, कथन्ती फिर फारकती देवन्ती।
  • बाप कहते हैं उनका भी दोष नहीं है।
  • यह माया तूफान में ले आती है।
  • ऐसी सजनियां जिनको श्रृंगार कर स्वर्ग की महारानी बनाते हैं, वह भी छोड़ देती हैं।
  • फिर भी बाप कहते हैं जिनसे सगाई की उनको याद करना है।
  • याद कोई फट से ठहरेगी नहीं।
  • आधाकल्प नाम रूप में फँसते आये हो।
  • अब अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो, बड़ा मुश्किल है।
  • सतयुग में तुम आत्म-अभिमानी बनते हो परन्तु परमात्मा को नहीं जानते हो।
  • परमात्मा को सिर्फ एक ही बार जानना होता है।
  • यहाँ तुम देह-अभिमानी आधाकल्प बन जाते हो।
  • यह भी नहीं समझते हो - आत्माओं को यह शरीर छोड़ दूसरा शरीर ले पार्ट बजाना है फिर रोने की दरकार नहीं।
  • जब बाप द्वारा सुखधाम का वर्सा मिल रहा है तो क्यों न पूरा अटेन्शन दें।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।


  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) एक बाप के ही फरमान पर चलना है, बाप से ही सुनना है।

    मनुष्यों की उल्टी बातें सुन उनके प्रभाव में नहीं आना है।

    उल्टा संग नहीं करना है।

    2) पढ़ाई और पढ़ाने वाले को सदा याद रखना है।

    सवेरे-सवेरे क्लास में जरूर आना है।



  • ( All Blessings of 2021-22)
  • साधनों को सहारा बनाने के बजाए निमित्त मात्र कार्य में लगाने वाले सदा साक्षीदृष्टा भव

    कई बच्चे चलते-चलते बीज को छोड़ टाल-टालियों में आकर्षित हो जाते हैं, कोई आत्मा को आधार बना लेते और कोई साधनों को, क्योंकि बीज का रूप-रंग शोभनिक नहीं होता और टाल-टालियों का रूप-रंग बड़ा शोभनिक होता है।

    माया बुद्धि को ऐसा परिवर्तन कर देती है जो झूठा सहारा ही सच्चा अनुभव होता है इसलिए अब साकार स्वरूप में बाप के साथ का और साक्षी-दृष्टा स्थिति का अनुभव बढ़ाओ, साधनों को सहारा नहीं बनाओ, उन्हें निमित्त-मात्र कार्य में लगाओ।



  • (All Slogans of 2021-22)
    • रूहानी शान में रहो तो अभिमान की फीलिंग नहीं आयेगी।