19-08-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - अभी तुम्हें सारे विश्व के आदि-मध्य-अन्त की रोशनी मिली है, तुम ज्ञान को बुद्धि में रख सदा हर्षित रहो''
प्रश्नः-
अभी तुम बच्चों की बहुत जबरदस्त तकदीर बन रही है - कौन सी और कैसे?
उत्तर:-
अभी तुम श्रीमत पर चल 21 जन्मों के लिए बाप से बेहद का वर्सा ले रहे हो।
श्रीमत पर तुम्हारी सब मनोकाम-नायें पूरी हो रही हैं, यह तुम्हारी जबरदस्त तकदीर है।
तुम 84 जन्म लेने वाले बच्चे ही चक्र लगाकर अभी ब्राह्मण बने हो फिर देवता बनेंगे।
ऊंची तकदीर तब बनती है जब बुद्धियोग बल और ज्ञान बल से माया रावण पर जीत पाते हो।
तुम्हारी बुद्धि में है कि हम बाप के पास आये हैं अपनी तकदीर बनाने अर्थात् लक्ष्मी-नारायण पद पाने।
गीत:- तकदीर जगाकर आई हूँ....
|
अब अष्टमी क्यों कहा है?
शास्त्रों का भी जो सार है वह तुमको समझाया जाता है।
चित्रों में भी दिखाते हैं विष्णु की नाभी से ब्रह्मा निकला।
ऐसे नहीं विष्णु बैठ ब्रह्मा द्वारा शास्त्रों का सार समझाते हैं।
नहीं, परमपिता परमात्मा शिव परमधाम से आकर ब्रह्मा तन का आधार ले तुमको यह राज़ समझाते हैं।
मनुष्य इतनी मेहनत करते हैं भक्ति करते हैं, मिलता कुछ भी नहीं है इसलिए भगवान कहते हैं - जब भक्ति पूरी होती है तब फिर मैं आता हूँ क्योंकि तुम्हारी पूरी दुर्गति हो जाती है।
सतयुग त्रेता में तो तुम अपना राज्य-भाग्य पाते हो।
सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी फिर तुम गिरते जाते हो।
यह सब बुद्धि में याद रखना है।
तुम बच्चों को अब सारे विश्व के आदि मध्य अन्त की रोशनी मिली है और कोई की बुद्धि में यह रोशनी नहीं है।
तुम जानते हो सबसे ऊपर है शिवबाबा।
पीछे सूक्ष्मवतन में ब्रह्मा, विष्णु, शंकर, स्थूल वतन में है यह मनुष्य सृष्टि।
मनुष्य सृष्टि में भी पहले-पहले जगत-अम्बा, जगतपिता नाम गाया हुआ है।
सूक्ष्मवतन में सिर्फ ब्रह्मा ही दिखाते हैं।
उनको कहेंगे ब्रह्मा देवताए नम:, विष्णु देवताए नम:।
यहाँ जो यह ब्रह्मा सरस्वती हैं, यह कौन हैं?
ब्रह्मा की बहुत महिमा है।
ब्रह्मा की बेटी तो तुम भी हो।
प्रजापिता तो जरूर यहाँ होगा।
सूक्ष्मवतन में तो नहीं होगा।
बाप को प्रजापिता द्वारा ही ज्ञान देना है।
विष्णु को वा शंकर को ज्ञान सागर नहीं कहा जाता है।
बाप को तो श्री श्री कहा जाता है।
वह है श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ, ऊंच ते ऊंच भगवान।
वह फिर रचना रचते हैं श्री राधे, श्रीकृष्ण, वह स्वयंवर बाद बनते हैं महाराजा श्री नारायण और महारानी श्री लक्ष्मी।
सतयुग में उन्हों का राज्य चलता है।
त्रेता में है राम सीता का राज्य।
स्वर्ग सतयुग को कहा जाता है फिर दो कला कम हो जाती हैं।
16 कला से 14 कला में आ गये फिर द्वापर से भक्ति मार्ग शुरू होता है।
अभी बाप कहते हैं - तुम बच्चों को मैं सद्गति में ले जाता हूँ।
भारत पावन था फिर पतित किसने बनाया?
रावण ने, इसलिए मुझे ही कल्प-कल्प आना पड़ता है।
पतितों को आकर पावन बनाना पड़ता है।
तुम यहाँ आये हो - तकदीर बनाने अर्थात् विश्व का मालिक बनने।
बाप समझाते हैं यह बुद्धि में रखो - तुम ही सो देवी-देवता थे, अब ब्राह्मण बने हो फिर देवता बनेंगे।
यह बाजोली है।
पहले-पहले है चोटी, उसके ऊपर में है शिवबाबा फिर यह ब्राह्मणों की रचना रची, एडाप्ट किया।
जैसे बाप बच्चों का पिता है वह हुए हद के पिता, यह है बेहद का।
प्रजापिता ब्रह्मा को ग्रेट ग्रेट ग्रैन्ड फादर कहा जाता है।
इस संगम पर उनकी महिमा है जबकि शिवबाबा आकर एडाप्ट करते हैं - ब्रह्मा-सरस्वती और तुम बच्चों को।
अभी फिर तुमको पावन बना रहे हैं।
तुम जानते हो हम बाप से फिर से वर्सा लेने आये हैं।
कल्प-कल्प लेते आये हैं।
फिर जब रावण राज्य शुरू होता है तो गिरना शुरू होता है अर्थात् पावन से पतित बनते हैं।
अब सारी सृष्टि में रावण राज्य है, सब दु:खी हैं, शोकवाटिका में हैं।
सतयुग में तो दु:ख की बात ही नहीं होती।
आज है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी।
कहते हैं देवकी को आठवां नम्बर बच्चा श्रीकृष्ण पैदा हुआ।
अब आठवां नम्बर कृष्ण जन्म लेगा क्या?
कृष्ण का जन्म तो होता है सतयुग में, वह वैकुण्ठ का फर्स्ट प्रिन्स है, उन्हें फिर द्वापर में ले गये हैं।
तो यह गपोड़ा हुआ ना!
अब तुम बच्चे जानते हो कि अभी वह आत्मा अन्तिम जन्म में पढ़ रही है।
सतयुग में कृष्ण के माँ बाप को 8 बच्चे तो होते नहीं हैं।
यह शास्त्र भी ड्रामा अनुसार सब पहले से ही बने हुए हैं।
अब बाप सभी शास्त्रों का सार समझाते हैं।
भगवानुवाच - तुमको यह ज्ञान सुनाते हैं।
इसमें गीत वा श्लोक आदि की बात नहीं।
यह तो पढ़ाई है।
बाकी यह शास्त्र आदि सब भक्ति मार्ग की सामग्री हैं।
भक्ति शुरू होने से ही पहले-पहले शिवबाबा का सोमनाथ मन्दिर बनाते हैं।
पहले-पहले होती है शिव-बाबा की अव्यभिचारी भक्ति, और यह है शिवबाबा का अव्यभिचारी ज्ञान, जिससे तुम पावन बनते हो।
भक्ति के बाद वैराग्य गाया जाता है।
तुमको इस सारी पुरानी सृष्टि से वैराग्य है।
पुरानी सृष्टि जरूर विनाश हो तब फिर नई स्थापन हो।
यह वही महाभारत लड़ाई है, जो कल्प पहले भी हुई थी।
मूसल आदि नेचुरल कैलेमिटीज जो हुई थी वह फिर होनी है।
देवतायें कभी पतित दुनिया पर पैर नहीं रखते हैं।
महालक्ष्मी का आवाह्न करते हैं।
हर वर्ष उनसे धन मांगते हैं।
लक्ष्मी-नारायण दोनों इकट्ठे हैं।
महालक्ष्मी को 4 भुजा दिखाते हैं।
दीपमाला पर उनकी पूजा करते हैं।
हर वर्ष भारतवासी भीख मांगते हैं।
यह हैं विष्णु के दो रूप।
मनुष्य इन बातों को कोई जानते नहीं।
इस समय है प्रजापिता आदि देव और जगत अम्बा आदि देवी।
अभी श्रीमत पर तुम्हारी सब मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।
21 जन्मों के लिए तुम राज्य-भाग्य लेते हो।
यह ब्रह्मा है साकारी पिता और शिवबाबा है निराकारी पिता।
वर्सा तुमको उनसे मिलना है।
वह है स्वर्ग का रचयिता, तुम 21 जन्मों के लिए वर्सा पा रहे हो।
कितनी जबरदस्त तकदीर है।
यह भी जानते हो - आयेंगे यहाँ वही जिन्होंने 84 जन्मों का चक्र लगाया है, वही आकर ब्राह्मण बनेंगे, ब्राह्मण ही फिर देवता बनेंगे।
अभी तुम बच्चे किसकी जयन्ती मनायेंगे?
तुमको लक्ष्मी-नारायण की मनानी पड़ेगी, ज्ञान सहित।
वह छोटेपन में हैं राधे-कृष्ण, तो दोनों की मनानी पड़े।
सिर्फ कृष्ण की क्यों?
वो तो कृष्ण को द्वापर में ले गये हैं।
राधे और कृष्ण तो दोनों अलग-अलग घर के हैं।
फिर मिलते हैं तो दोनों की इकट्ठी मनानी चाहिए।
नहीं तो समझते नहीं हैं कि कृष्ण का जन्म कब हुआ?
तुम अब समझते हो कृष्ण का जन्म सतयुग आदि में हुआ था।
राधे का भी सतयुग आदि में कहेंगे।
करके 2-4 वर्ष का अन्तर होगा।
तुम्हारे लिए सबसे सर्वोत्तम तो है शिव जयन्ती।
बस मेरा तो एक शिवबाबा, दूसरा न कोई।
तुम अब देवता बन रहे हो।
लक्ष्मी-नारायण, राम-सीता बन रहे हो।
यह भी समझाया है - राम-सीता को क्षत्रिय, चन्द्रवंशी क्यों कहा जाता है!
जो नापास होते हैं वह चन्द्रवंशी घराने में आते हैं।
यह है माया के साथ युद्ध।
रावण पर विजय प्राप्त करते हो इस युद्ध के मैदान में।
बाकी पाण्डवों कौरवों की लड़ाई है नहीं।
तुमको माया पर जीत पानी है।
बाप आत्माओं को कहते हैं मामेकम् याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और माया पर जीत हो जायेगी।
बुद्धियोग बल और ज्ञानबल से माया पर विजय प्राप्त करनी है।
भारत का प्राचीन योगबल मशहूर है, जिससे तुम रावण पर जीत पाकर राज्य लेते हो।
बड़े ते बड़ी तकदीर है ना।
मुख्य बात है बेहद बाप को और 21 जन्म सदा सुख के वर्से को याद करना है।
सेकेण्ड में स्वर्ग की बादशाही।
जब तक बाप की पहचान बुद्धि में नहीं बैठी है तब तक समझ नहीं सकेंगे।
यहाँ कोई साधू सन्त आदि नहीं हैं।
न कोई गीता वा शास्त्र आदि सुनाते हैं।
जैसे साधू लोग सुनाते हैं।
गांधी भी गीता सुनाते थे और फिर गाते थे पतित-पावन सीताराम।
अब गीता तो भगवान ने गाई।
अगर गीता का भगवान कृष्ण था तो फिर राम-सीता को क्यों याद करते थे?
वास्तव में सीतायें तुम हो, राम है निराकार भगवान।
सभी भगत हैं, पुकारते हैं हे राम, हे भगवान आप आकर हम सीताओं को पावन बनाओ फिर रघुपति राघो राजाराम कह देते हैं!
सुनी सुनाई बात को पकड़ लिया है।
फिर गंगा को पतित-पावनी क्यों कहते हैं!
भक्ति मार्ग में बहुत वहाँ जाते हैं।
वर्ष-वर्ष मेला लगता है।
वहाँ जाकर बैठते हैं।
तुम बैठे हो ज्ञान सागर के पास।
वह फिर पानी में जाकर स्नान करके आते हैं।
पावन तो बनते नहीं, पतित ही बनते आये हैं।
तुम तो अभी ज्ञान मार्ग में हो।
तुम अभी वहाँ नहीं जायेंगे।
सच्चा-सच्चा संगम यह है, जबकि आत्मायें परमात्मा अलग रहे बहुकाल।
परमपिता परमात्मा से बहुत समय से कौन बिछुड़ते हैं?
वही जो पहले-पहले सतयुग में थे, तो जरूर उनसे ही पहले भगवान मिलेंगे, पहले वही आयेंगे।
यहाँ जरूर पढ़ना पड़े।
जो स्कूल में ही नहीं आयेंगे तो वह क्या सुनेंगे।
गुह्य-गुह्य प्वाइंट्स कैसे समझेंगे।
कोई कहते हैं फुर्सत नहीं।
बाप कहते हैं - यह है सच्ची कमाई, वह है झूठी।
तुम तो पदमपति बनते हो।
बाकी इस समय यह तो झूठी साहूकारी है।
भल कितने भी लखपति, करोड़पति हैं।
गवर्मेन्ट भी उनसे कर्जा लेती है।
परन्तु है तो सब झूठी माया...झूठा सब संसार।
बाप बैठ समझाते हैं बच्चे तुमको कितना साहूकार बनाता हूँ।
अभी रावण ने तुमको कितना दु:खी बना दिया है।
अब उन पर जीत पानी है।
लड़ाई की कोई बात नहीं।
लड़ाई से विश्व का मालिक नहीं बन सकते।
तुम योगबल से विश्व का मालिक बनते हो।
योग सिखलाते हैं बाप, इनकी आत्मा भी सीखती है।
बाप इनमें प्रवेश हो तुमको ज्ञान सुनाते हैं।
कहते हैं मैं तो जन्म-मरण रहित हूँ।
बाप बेहद का बाप है।
तो बेहद का राज़ समझाते हैं कि तुमसे माया ने क्या-क्या करवाया है।
तुम 5 भूतों के वश होते गये हो, क्या हाल हो गया है।
तुम कितने धनवान थे।
भक्ति मार्ग में फालतू खर्चा करते-करते अब तुम्हारी क्या हालत हो गई है!
अब भक्ति के बाद भगवान आकर स्वर्ग की बादशाही देते हैं, इसलिए सद्गति करने बाप को ही आना पड़ता है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) पदमापदमपति बनने के लिए सच्ची कमाई करनी है।
पढ़ाई में समय का बहाना नहीं देना है।
ऐसे नहीं पढ़ाई के लिए फुर्सत नहीं।
रोज़ पढ़ना जरूर है।
2) एक बाप की अव्यभिचारी याद में रह आत्मा को सतोप्रधान बनाना है।
मेरा तो एक शिवबाबा, दूसरा न कोई.. यही पाठ पक्का करना है।
( All Blessings of 2021-22)
सदा एक बाप के स्नेह में समाये हुए सर्व प्राप्तियों में सम्पन्न और सन्तुष्ट भव
जो बच्चे सदा एक बाप के स्नेह में समाये हुए हैं -बाप उनसे जुदा नहीं और वे बाप से जुदा नहीं।
हर समय बाप के स्नेह के रिटर्न में सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न और सन्तुष्ट रहते हैं इसलिए उन्हें और किसी भी प्रकार का सहारा आकर्षित नहीं कर सकता।
स्नेह में समाई हुई आत्मायें सदा सर्व प्राप्ति सम्पन्न होने के कारण सहज ही “एक बाप दूसरा न कोई'' इस अनुभूति में रहती हैं।
समाई हुई आत्माओं के लिए एक बाप ही संसार है।
(All Slogans of 2021-22)
- हद के मान-शान के पीछे दौड़ लगाने के बजाए स्वमान में रहना ही श्रेष्ठ शान है।
|