28-07-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


"मीठे बच्चे - तुम्हें पढ़ाई में कभी थकना नहीं है, अथक बनना है, अथक बनना अर्थात् कर्मातीत अवस्था को पाना'' "

 

प्रश्नः-

तुम बच्चों ने अभी कौन सी प्रतिज्ञा की है और क्यों?

उत्तर:-

बतुमने प्रतिज्ञा की है कि किसको भी दु:ख नहीं देंगे।

सबको सुख का रास्ता बतायेंगे।

प्रश्नः-

किन बच्चों की पालना यज्ञ से होती है?

उत्तर:-

जो अपने को ट्रस्टी समझते हैं अर्थात् पूरा दिल से सब कुछ सरेन्डर करते हैं।

वह रहते भी गृहस्थ व्यवहार में हैं, धन्धा भी करते हैं लेकिन ट्रस्टी हैं।

तो जैसे शिवबाबा के खजाने से खाते हैं।

गीत:- तुम्हीं हो माता...

  • ओम् शान्ति।
  • बच्चों को बाप मिला है और अब अनुभव से कहते हैं कि बरोबर काँटे से फूल और कोई बना नहीं सकते।
  • भारत दैवी फूलों का परिस्तान था।
  • अभी काँटों का जंगल है।
  • तुम बच्चे अभी जो सुनते हो वह महावाक्य सुनते हो, यह सुनाने वाला ऊंच ते ऊंच बाप है ना।
  • उनकी हर एक बात महान है।
  • महान सुख का सागर है।
  • महान ज्ञान का सागर है।
  • महान शान्ति का सागर है।
  • बच्चे अच्छी रीति समझ चुके हैं, आगे हर बात में काँटे थे।
  • हर कर्मेन्द्रियों से एक दो को दु:ख ही देते थे।
  • अब हम खुद ही कर्मेन्द्रियों से किसको दु:ख न देने की प्रतिज्ञा करते हैं।
  • जैसे बाप दु:ख हर्ता सुख कर्ता है वैसे बच्चों को भी बनना है।
  • कोई को भी दु:ख नहीं देना है, हर एक को सुखधाम का ही रास्ता बताना है।
  • यह सब ब्रह्माकुमार कुमारियाँ किसकी मत पर चलते हैं?
  • श्रीमत पर।
  • ब्रह्मा की मत गाई हुई है।
  • यूँ तो सभी को कह देते हैं - गुरू ब्रह्मा, गुरू विष्णु, परन्तु गुरू को फिर भगवान नहीं कहा जाता।
  • उन्हों को देवता कहा जाता है।
  • मात-पिता भी उनको नहीं कह सकते।
  • बाबा ने समझाया है लौकिक मात-पिता से तो अल्प-काल सुख का वर्सा मिलता है।
  • वह मिलते हुए भी फिर पारलौकिक मात-पिता को याद करते हैं।
  • ब्रह्मा विष्णु शंकर को तो नहीं याद करेंगे।
  • उनको मात-पिता नहीं कहेंगे।
  • वे तो सूक्ष्मवतन वासी हैं ना।
  • उनको ब्रह्मा देवताए नम:, विष्णु देवताए नम: कहते हैं।
  • इतने सब बच्चे किसको मात-पिता कह न सकें।
  • स्वर्ग में लक्ष्मी नारायण को भी सब मात-पिता नहीं कह सकते।
  • यह पारलौकिक मात-पिता के लिए गाते हैं।
  • तुम मात-पिता हम बालक तेरे... बहुत करके आशीर्वाद, कृपा बहुत मांगते हैं।
  • अभी तुम बच्चे जानते हो बेहद का बाप कैसे आशीर्वाद अथवा कृपा करते हैं।
  • ऐसे तो नहीं कहते हैं आयुश्वान भव, चिरन्जीवी भव।
  • बाप तो आकर सहज राजयोग और ज्ञान की शिक्षा देते हैं।
  • आशीर्वाद वा कृपा भक्ति मार्ग में ढेर देते हैं एक दो को।
  • अच्छी दृष्टि रखना, दया दृष्टि रखना सो तो परमपिता परमात्मा के सिवाए कोई रख न सके।
  • ऐसे नहीं कोई देखने से देवता बन जाते हैं।
  • नहीं, यहाँ तो यह पाठशाला है।
  • पाठशाला में पढ़ना होता है।
  • अभी तुम जानते हो वही निराकार इस साकार तन में आये हैं।
  • मम्मा, बाबा, दादा यह कुटुम्ब हुआ ना, ईश्वरीय परिवार।
  • इतनी बड़ी पाठशाला थोड़ा शहर से दूर होनी चाहिए।
  • यहाँ भी देखो शहर से कितना दूर हैं।
  • कितना सन्नाटा लगा हुआ है क्योंकि हमें चाहिए ही शान्ति।
  • हमको जाना है शान्तिधाम।
  • शान्तिधाम किसको कहा जाता है, यह अब तुम समझते हो।
  • आत्मा तो है ही शान्त स्वरूप।
  • मन को शान्ति चाहिए, ऐसे नहीं कह सकते।
  • आत्मा में ही मन-बुद्धि है ना।
  • आत्मा शरीर अलग-अलग है।
  • नाक, कान आदि को शान्ति नहीं चाहिए।
  • शान्ति चाहिए आत्मा को।
  • आत्मा में ही सारा पार्ट भरा हुआ है, वह इमर्ज तब होता है जब शरीर मिले।
  • आत्मा में ही सारा खेल भरा हुआ है।
  • इतनी छोटी सी आत्मा में कितना पार्ट है।
  • शरीर मिलने से ही वह पार्ट बजायेगी।
  • यह भी अभी तुम जानते हो।
  • बरोबर देवी-देवता धर्म वाली आत्मा में ही 84 जन्मों का पार्ट है।
  • यह अभी तुम जानते हो, सतयुग में नहीं जानेंगे।
  • इस समय ही गाया जाता है हीरे जैसा जन्म अमोलक.. क्योंकि तुम अभी ईश्वरीय औलाद बने हो।
  • मम्मा बाबा कहते हो ना।
  • अज्ञानकाल में जो गाते थे - तुम मात पिता.. यह किसकी महिमा है।
  • यह भी नहीं जानते थे।
  • तुम प्रैक्टिकल में अभी सुख घनेरे का वर्सा ले रहे हो।
  • अभी समझते हो कि जन्म-जन्मान्तर शास्त्र पढ़ते भी नीचे ही उतरते आये।
  • यह भी ड्रामा में नूँध है।
  • भक्ति करनी ही है, न भक्ति बदलनी है, न ज्ञान बदलना है।
  • भक्ति की बड़ी सामग्री है।
  • वेद शास्त्र अथाह हैं।
  • लिस्ट निकालो तो बड़ी लिस्ट हो जायेगी।
  • सारी दुनिया में क्या-क्या कर रहे हैं।
  • कितने मेले मलाखड़े आदि होते हैं।
  • अब बाप कहते हैं बच्चे आधाकल्प भक्ति करते-करते थक गये हो।
  • इस पढ़ाई में तो थकने की बात ही नहीं, इसमें तो और ही खुशी होती है क्योंकि यहाँ है कमाई।
  • कमाई में कभी उबासी वा झुटके नहीं आने चाहिए।
  • धारणा कच्ची है, नॉलेज की वैल्यु का पता नहीं है तो सुस्ती आती है।
  • बाप की याद में बैठने से भी बहुत कमाई होती है।
  • इसमें थकना नहीं है।
  • विवेक कहता है तुमको अथक जरूर बनना है।
  • पुरुषार्थ करते अथक अर्थात् कर्मातीत अवस्था को पाना है।
  • अब जो पुरुषार्थ करेंगे।
  • माला कितनी छोटी है।
  • प्रजा तो बहुत बनती है।
  • बाप तो पुरुषार्थ कराते रहते हैं।
  • कहते हैं फालो फादर मदर।
  • बच्चे तो ढेर हैं ना।
  • प्रजापिता ब्रह्मा के भी एडाप्टेड बच्चे हैं ना।
  • शिवबाबा के एडाप्टेड बच्चे नहीं कहेंगे।
  • शिवबाबा के बच्चे अर्थात् आत्मायें तो हो ही।
  • अज्ञानकाल में भी शिवबाबा कहते रहते हैं।
  • परन्तु शिवबाबा कौन है?
  • उनका क्या पार्ट है?
  • यह कोई भी नहीं जानते हैं।
  • शिवबाबा कहते हैं मेरा भी ड्रामा में पार्ट नूँधा हुआ है।
  • ऐसे नहीं जो चाहूँ सो करूँ।
  • हमारा भी जो पार्ट होगा वही चलेगा ना।
  • इसमें कृपा वा आशीर्वाद माँगने की बात ही नहीं है।
  • बाप जानते हैं कि बच्चों की पालना कैसे करनी है - ज्ञान और योग से।
  • तुम्हारी पालना है ही ज्ञान और योग की।
  • मुझे कहते ही हैं बाबा क्योंकि रचयिता ठहरा ना।
  • तो जरूर बाबा कहेंगे।
  • लौकिक माँ बाप होते हुए भी पारलौकिक बाप को याद करते हैं।
  • अभी तुम जानते हो पारलौकिक मात-पिता ऐसे हुए हैं।
  • हमको राजयोग सिखा रहे हैं।
  • हाँ, शरीर निर्वाह तो सबको करना ही है।
  • परहेज के लिए यह समझाया जाता है।
  • अपवित्र कोई वस्तु नहीं खानी है।
  • बाकी घर में तो रहना ही है।
  • सरेन्डर हो गया ना।
  • बाबा यह सब कुछ आपका है।
  • बाबा का सब कुछ समझकर चलते हैं तो वह जो खाते हैं सो यज्ञ का ही है।
  • हम ट्रस्टी हैं।
  • हम यज्ञ का खाते हैं, वो तो सतोगुणी ही है।
  • अगर अर्पणमय नहीं हैं, अपने को ट्रस्टी नहीं समझते तो फिर वह यज्ञ का नहीं हुआ।
  • पहले तो अपने को ट्रस्टी समझना है।
  • मनुष्य कहते भी हैं कि ईश्वर ही सबको देने वाला है।
  • देवताओं की पूजा करते हैं।
  • समझते हैं उन्हों द्वारा मिलता है।
  • गुरू से मिलता है, ऐसे भी समझते हैं।
  • परन्तु देने वाला सबको एक ही बाप है।
  • सबका दाता एक है।
  • भक्ति मार्ग में हर एक ईश्वर के पास ही इनश्योर करते हैं।
  • समझते हैं दूसरे जन्म में मिलेगा।
  • तुम भी सब कुछ बाबा के पास इनश्योर करते हो।
  • यह शिक्षा मिलती है, दूसरे जन्म के लिए।
  • अच्छे कर्मो का फल मिलता है।
  • ईश्वर अर्पणम् करते हैं।
  • ईश्वर को अर्पण अर्थात् इनश्योर करते हैं।
  • वह है इनडायरेक्ट और यह है डायरेक्ट।
  • वह परमपिता परमात्मा को जानते नहीं तो सब कुछ अर्पण नहीं कर सकते।
  • यहाँ तो सब कुछ अर्पण करते हैं।
  • बाप कहते हैं अपने को ट्रस्टी समझो।
  • तुम जो खाते हो वह समझो हम शिवबाबा के यज्ञ से खाते हैं।
  • सम्भाल भी करनी होती है।
  • कोई तमोगुणी भोग लगा न सके।
  • मन्दिर में भी शुद्ध भोग लगता है।
  • वह वैष्णव ही रहते हैं।
  • विकारी तो सभी हैं।
  • निर्विकारी श्रेष्ठ शरीर यहाँ आये कहाँ से?
  • लक्ष्मी-नारायण के श्रेष्ठ शरीर हैं ना।
  • भ्रष्टाचारी विकारी को कहा जाता है।
  • अभी तुम बच्चे समझते हो हम मात-पिता के सम्मुख बैठे हैं, जिनको आधाकल्प पुकारा है।
  • आधाकल्प भक्ति करने वाले ही यहाँ आयेंगे।
  • बहुत तीखी भक्ति करते हैं।
  • तुम बच्चों को फिर तीखा ज्ञान उठाना है।
  • थोड़े में ही राज़ी नहीं होना है।
  • कितनी प्वाइंट्स दी जाती हैं समझाने के लिए।
  • बुढ़ियाँ तो इतना समझ न सकें।
  • उनको फिर बाबा कहते हैं तुम किसको सिर्फ यह समझाओ कि पारलौकिक बाप का परिचय है तो उस बाप को याद करो।
  • तुम भक्त हो, वह भगवान है।
  • भगवानुवाच - तुम मेरे को याद करो तो तुम मेरे मुक्तिधाम में आ जायेंगे।
  • कृष्ण कहेंगे - मेरे वैकुण्ठधाम में आ जायेंगे।
  • पहले तो निर्वाणधाम में जाना है, तो जरूर निराकारी बाप को याद करना पड़े।
  • कृष्ण भी देहधारी हो गया, उनको याद करना गोया 5 तत्वों के विनाशी शरीर को याद करना।
  • यह तो भक्ति मार्ग हो गया।
  • अब तुम बच्चे जान गये हो कि भक्ति का कितना विस्तार है।
  • सेकेण्ड में इस ज्ञान से स्वर्ग का वर्सा मिल जाता है।
  • दिन के बाद रात और रात के बाद दिन।
  • भक्ति है रात।
  • ठोकरें खाते हैं ना इसलिए नाम ही रखा है अन्धियारी रात।
  • जानते भी हैं ब्रह्मा का दिन, ब्रह्मा की रात।
  • विष्णु के लिए क्यों नहीं कहते।
  • यह ज्ञान अभी मिलता ही तुम ब्राह्मणों को है, इसलिए ब्रह्मा के लिए गाया हुआ है।
  • ब्रह्मा ही दिन और रात को जानते हैं।
  • ब्रह्मा जानते हैं अब रात पूरी हुई, दिन होना है।
  • ब्राह्मणों का दिन और रात।
  • यह समझने की बात है ना।
  • विष्णु ऐसे नहीं कहेंगे हमारी रात और दिन।
  • तुम कह सकते हो - इस ज्ञान से ही हम इतनी ऊंची प्रालब्ध पाते हैं, फिर यह ज्ञान गुम हो जाता है।
  • ड्रामा में यह शास्त्र आदि भी नूँधे हुए हैं।
  • फिर वही शास्त्र बनेंगे, जिसके लिए कहते हैं परम्परा से चले आते हैं।
  • ऐसे नहीं कि धरती से शास्त्र निकल आयेंगे।
  • बाप आकर सत्य बतलाते हैं।
  • यह भक्ति मार्ग की सामग्री फिर से वही निकलेगी।
  • बूढ़ी माताओं को यह भी याद करा दो - ऊंचे ते ऊंच है शिवबाबा जो परमधाम में रहते हैं।
  • जहाँ आत्मायें रहती हैं, वह है ऊंचा ठाँव मूलवतन फिर सूक्ष्मवतन में है ब्रह्मा विष्णु शंकर।
  • फिर स्थूल वतन में आओ तो पहले लक्ष्मी-नारायण का राज्य है, जो नई रचना बाप रच रहे हैं, पतितों को पावन बना रहे हैं।
  • कहते भी हैं पतित-पावन आओ तो जरूर सारी सृष्टि पतितों की है उनको आकर पावन बनाते हैं।
  • जो मेहनत करेंगे वही पावन दुनिया में आयेंगे।
  • मूल बात है अपने बाप और घर को याद करना।
  • सबको यही कहो हे आत्मायें अब घर जाना है, तुम आत्माओं को ले जाना है।
  • शरीर तो सबके खत्म हो जायेंगे।
  • आत्मा के नाते सब भाई-भाई हैं।
  • ब्रदर्स हैं फिर शरीर के नाते भाई-बहन हैं।
  • बहुत मीठी-मीठी बातें हैं।
  • तुम यहाँ हॉस्टल में बैठे हो।
  • तुम यहाँ के रहवासी हो।
  • हॉस्टल में इसलिए रखते हैं कि बाहर का खराब संग न लगे।
  • यहाँ तुमको निर्विकारियों का संग है।
  • अच्छा - आज तो ब्रह्मा भोजन है।
  • शिवबाबा तो खाते नहीं हैं।
  • वह तो अभोक्ता है।
  • देवताओं को ब्राह्मणों का भोजन अच्छा लगता है क्योंकि इस ब्राह्मणों के भोजन से देवता बनते हैं।
  • तो ब्राह्मणों के भोजन का कितना महत्व है।
  • उनका बहुत असर पड़ता है।
  • तुम्हें पक्के योगियों का भोजन मिले तो बुद्धि बहुत अच्छी हो जाए।
  • सारा दिन शिवबाबा की याद में रहकर कोई स्वदर्शन चक्र फिराते भोजन बनाये, ऐसे योगी चाहिए।
  • पवित्र तो बहुत होते हैं।
  • विधवा माता अथवा कुमारियाँ भी पवित्र होती हैं।
  • परन्तु योगिन भी हो।
  • योगिन के हाथ का बनाया हुआ भोजन मिले तो तुम्हारी बहुत उन्नति हो जाए।
  • 5-7 ऐसे योगी बच्चे हों जो याद मे रहकर भोजन बनायें, इससे तुम्हारी अवस्था बहुत अच्छी हो जायेगी।
  • योग में बहुत मदद मिलेगी।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।


  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) मात पिता को फालो करते हुए ज्ञान-योग से सबकी पालना करनी है।

    उसी पालना में रहना है।

    ज्ञान योग में तीखा जाना है।

    2) पवित्र और योगिन के हाथ का भोजन खाना है।

    बुद्धि को शुद्ध बनाने के लिए भोजन की बहुत परहेज रखनी है।



  • ( All Blessings of 2021-22)
  • स्व परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन के निमित्त बनने वाले सर्व खजानों के मालिक भव

    आपका स्लोगन है “बदला न लो बदलकर दिखाओ''।

    स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन।

    कई बच्चे सोचते हैं यह ठीक हो तो मैं ठीक हो जाऊं, यह सिस्टम ठीक हो तो मैं ठीक रहूँ।

    क्रोध करने वाले को शीतल कर दो तो मैं शीतल हो जाऊं, इस खिटखिट करने वाले को किनारे कर दो तो सेन्टर ठीक हो जाए, यह सोचना ही रांग है।

    पहले स्व को बदलो तो विश्व बदल जायेगा।

    इसके लिए सर्व खजानों के मालिक बन समय प्रमाण खजानों को कार्य में लगाओ।



  • (All Slogans of 2021-22)
    • सर्व शक्तियों की लाइट सदा साथ रहे तो माया दूर से ही भाग जायेगी।