27-07-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


"मीठे बच्चे - तुम्हें अब आसुरी अवगुण निकाल ईश्वरीय गुण धारण करने हैं, बाप से अपना 21 जन्मों का स्वराज्य लेना है'' "

 

प्रश्नः-

बाप की कौन सी एक्ट चलती है जो तुम बच्चों की भी होनी चाहिए?

उत्तर:-

बाप की एक्ट है सभी को ज्ञान और योग सिखलाने की।

यही एक्ट तुम बच्चों को भी करनी है।

पतितों को पावन बनाना है।

तुम्हारा धन्धा ही है रूहानी सर्विस करना।

कोई-कोई बच्चे शरीर छोड़-कर जाते हैं फिर नया शरीर ले यही मेहनत करते हैं।

दिन-प्रतिदिन तुम्हारी सर्विस बढ़ती जायेगी।

गीत:- ओम् नमो शिवाए...

  • ओम् शान्ति।
  • यह गीत यहाँ शोभता है, क्योंकि यह ऊंचे ते ऊंचे शिवबाबा की महिमा है।
  • रूद्र बाबा नहीं, शिवबाबा।
  • शिव वा रूद्र बाबा सही है।
  • फिर भी शिवबाबा कहना अच्छा लगता है।
  • तुम भी शरीर ले बैठे हो।
  • बाप ब्रह्मा द्वारा समझा रहे हैं।
  • नहीं तो शिवबाबा बोल कैसे सके।
  • वह चैतन्य है, सत है, ज्ञान का सागर है।
  • जरूर ज्ञान ही सुनायेंगे।
  • अपना परिचय देना यह भी ज्ञान हुआ।
  • फिर रचना के आदि मध्य अन्त का ज्ञान अर्थात् समझानी देते हैं, इसको भी ज्ञान कहा जाता है।
  • किसको समझाना यह ज्ञान देना है।
  • सो भी ईश्वर के लिए समझाना ज्ञान है।
  • सो तो ईश्वर ही खुद परिचय देते हैं।
  • अंग्रेजी में कहते भी हैं फादर शोज़ सन।
  • बाप आकर अपना और सृष्टि के आदि मध्य अन्त का परिचय देते हैं।
  • ऋषि मुनि आदि सब कहते थे हम रचयिता और रचना को नहीं जानते हैं।
  • अभी बाप ने समझाया है तो समझा जाता है यह ज्ञान कोई दे नहीं सकते हैं।
  • जिस ज्ञान से मनुष्य ऊंच ते ऊंच पद पाते हैं।
  • जरूर ऊंच ते ऊंच पद है ही देवी देवताओं का।
  • अब तुम बच्चे जानते हो अखण्ड, अटल, पवित्रता, सुख-शान्ति-सम्पत्ति ही हमारा ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार है, जो फिर से ले रहे हैं।
  • ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार सुखधाम और आसुरी जन्म सिद्ध अधिकार यह दु:खधाम है।
  • रावण द्वारा हम पतित बनते हैं।
  • रावण से वर्सा मिलता ही है पतित बनने का।
  • फिर पतित से पावन एक परमात्मा राम ही बनाते हैं।
  • यह किसको पता नहीं है कि रावण आधाकल्प का पुराना दुश्मन है भारत का।
  • कहते हैं रामराज्य चाहिए अर्थात् यह रावण राज्य है।
  • परन्तु अपने को पतित अथवा रावण समझते नहीं हैं।
  • अब यह आसुरी सम्प्रदाय बदल दैवी सम्प्रदाय बन रही है।
  • तुम यहाँ आते ही हो आसुरी अवगुणों को निकाल ईश्वरीय गुण धारण करने।
  • ईश्वरीय गुण धारण कराने वाला बाप ही है।
  • तुम जानते हो अब हम आये हैं बेहद के बाप से अपना फिर से जन्म सिद्ध अधिकार 21 जन्मों का स्वराज्य लेने।
  • यहाँ बैठे ही हैं सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी स्वराज्य प्राप्त करने।
  • जो स्वराज्य तुम कल्प-कल्प प्राप्त करते आये हो।
  • गंवाते हो फिर पाते हो।
  • यह तो बुद्धि में रहना चाहिए ना।
  • अब हम बाप से वर्सा लेते हैं।
  • वर्सा लेने वाले बच्चों को बाप को याद करना पड़े ना।
  • यह तो बुद्धि में आना चाहिए - हम मात-पिता के सम्मुख बैठे हैं, वर्सा लेने के लिए।
  • वह ब्रह्मा मुख से हमको सुनाते हैं।
  • जो गोद लेते हैं वह जरूर ब्राह्मण कहलायेंगे।
  • यह ज्ञान यज्ञ है फिर यज्ञ कहो वा पाठशाला कहो, एक ही बात है।
  • जब रूद्र यज्ञ रचते हैं तो पाठशाला भी बना देते हैं।
  • एक तरफ वेद शास्त्र आदि, एक तरफ गीता, एक तरफ रामायण आदि रखते हैं।
  • जिनको रामायण सुनना है वह उनके तरफ जाकर सुने, जिसको गीता सुनना हो वह उनके पास जाकर सुने।
  • यह रूद्र ज्ञान यज्ञ है, जिसमें सब कुछ स्वाहा होना है।
  • सृष्टि का अन्त है तो सभी यज्ञों का भी अन्त है।
  • ज्ञान यज्ञ तो एक ही है।
  • बाकी जो अनेक प्रकार के यज्ञ हैं - वह हैं मैटेरियल यज्ञ।
  • जिसमें जौं-तिल आदि सामग्री पड़ती है।
  • यह है बेहद का यज्ञ इसमें यह सब स्वाहा हो जायेगा।
  • फिर से नई पैदाइस होती है।
  • वहाँ दु:ख देने वाली चीज़ कोई होती नहीं।
  • यहाँ तो कितना दु:ख है।
  • बीमारियां आदि कितनी वृद्धि को पा रही हैं।
  • भिन्न-भिन्न प्रकार के दु:ख रोग निकलते जाते हैं।
  • ड्रामा में यह सब नूंध है।
  • जैसे मनुष्य वैसे किसम-किसम के दु:ख निकलते जाते हैं।
  • इसको कहा ही जाता है दु:खधाम, शोक वाटिका।
  • मनुष्य दु:खी हैं क्योंकि रावण राज्य है।
  • रामराज्य में रावण होता ही नहीं।
  • आधाकल्प है सुखधाम, आधाकल्प है दु:खधाम।
  • राम निराकार परमपिता परमात्मा को कहते हैं।
  • एक है रूद्र माला निराकारी आत्माओं की और फिर विष्णु की माला बनती है साकारी।
  • वह तो राजाई की है।
  • फिर वहाँ नम्बरवार राज्य करते हैं।
  • यह तुम बच्चों को अच्छी रीति समझना और समझाना है।
  • जितना-जितना समय बीतता जायेगा उतना-उतना ज्ञान शार्ट होता जायेगा।
  • इतना शार्ट में समझाने के लिए बाबा युक्तियां रच रहे हैं।
  • विनाश के समय मनुष्यों को वैराग्य आयेगा।
  • फिर समझेंगे कि बरोबर यह वही महाभारी महाभारत की लड़ाई है।
  • जरूर निराकार भगवान भी होगा, कृष्ण तो हो नहीं सकता।
  • निराकार को ही सर्व का पतित-पावन, सर्व का सद्गति दाता कहा जाता है।
  • यह टाइटिल कोई को दे नहीं सकते।
  • बाबा ने यह भी समझाया है पवित्र देवतायें कभी अपवित्र दुनिया में पैर नहीं रख सकते।
  • तुम लक्ष्मी से धन माँगते हो परन्तु लक्ष्मी कहाँ से लायेगी?
  • यहाँ भी मम्मा, बाप से धन लेती है।
  • यहाँ सरस्वती साथ ब्रह्मा है।
  • वहाँ भी दोनों जरूर चाहिए।
  • निशानी चाहिए।
  • कहाँ से धन मिलता जरूर है, इसलिए महालक्ष्मी की पूजा होती है।
  • उनको 4 भुजायें देते हैं।
  • टांगे तो इतनी देते नहीं।
  • रावण को 10 मुख देते हैं।
  • टांगे तो नहीं देते हैं।
  • तो सिद्ध होता है, ऐसे मनुष्य होते नहीं हैं।
  • यह है समझाने के लिए।
  • जब कोई का पति मरता है तो उनकी आत्मा को इनवाइट किया जाता है, परन्तु आये कैसे?
  • ब्राह्मण के तन में आती है। बुलवाया जाता है।
  • यह रसम-रिवाज ड्रामा में नूँधी हुई है।
  • फिर जो होता है, वहाँ आत्मायें आती हैं।
  • आत्मा को बुलाकर उनको खिलाते हैं।
  • यहाँ बाप तो खुद आकर तुम बच्चों को खिलाते हैं।
  • तो अब तुम बच्चों का धन्धा ही यह सर्विस का हुआ।
  • शरीर छोड़कर फिर कहाँ जन्म ले फिर मेहनत करते हैं।
  • तुम्हारा है ही पतितों को पावन बनाने का धन्धा।
  • तुम आगे चल देखेंगे कैसे सर्विस बढ़ती है।
  • कल्प पहले भी ऐसे हुआ था, वही रील है।
  • तुम बच्चे जानते हो जो कुछ होता है कल्प पहले मुआफिक।
  • बाप भी ज्ञान और योग सिखलाने की वही एक्ट करते हैं, जो कल्प पहले की है।
  • इसमें ज़रा भी फ़र्क नहीं पड़ सकता है।
  • यह ड्रामा है ना। हम आत्मायें घर से आती हैं।
  • मनुष्य तन धारण कर पार्ट बजाती हैं।
  • 84 जन्मों को और ड्रामा के चक्र को पूरा समझाना है।
  • और कोई जानते नहीं हैं, हम खुद ही नहीं जानते थे।
  • तुमने ही कल्प पहले जाना था, अब फिर से जान रहे हो।
  • रचयिता और रचना के आदि मध्य अन्त का राज़ अब समझा है।
  • तुम्हारी बुद्धि में यह रहना है, ऊंच ते ऊंच बाप है, वही वर्सा देते हैं।
  • फिर है ब्रह्मा विष्णु शंकर।
  • ब्रह्मा द्वारा स्थापना होती है फिर वही पालना करते हैं, विष्णुपुरी के मालिक बन।
  • विष्णुपुरी कहो वा लक्ष्मी-नारायण की पुरी कहो, बात एक ही है।
  • तुम जानते हो हम सूर्यवंशी चन्द्रवंशी वर्सा बाप से ले रहे हैं, 21 जन्मों के लिए।
  • बाप कहते हैं बच्चे तुम हमारे थे, हमने तुमको भेजा पार्ट बजाने।
  • यह भी ड्रामा में नूँध है।
  • कोई कहा नहीं जाता है।
  • यह भी तुम समझते हो जो अच्छी रीति पुरुषार्थ करेंगे वह फिर नम्बरवार सुखधाम में आयेंगे।
  • तुम याद करते हो सुखधाम को।
  • जानते हो यह दु:खधाम है और कोई को पता नहीं है।
  • तुम बच्चों की बुद्धि में आता है कि यह दु:खधाम है।
  • तुम सुखधाम स्थापन करने वाले बाप से वर्सा पा रहे हो।
  • हम जीते जी उनके बने हैं।
  • राजा की गोद लेते हैं तो समझते हैं ना - हम उनके हैं।
  • पहले भी लौकिक फिर दूसरा भी लौकिक ही सम्बन्ध रहता है।
  • यहाँ अलौकिक फिर पारलौकिक हो जाता है।
  • तुम जानते हो अभी हम राम के बने हैं।
  • बाकी तो सब रावण कुल के हैं।
  • एक तरफ वह दूसरे तरफ हम हैं।
  • आत्मा समझती है बरोबर मैंने 84 जन्म पूरे किये हैं।
  • मैं आत्मा एक पुराना शरीर छोड़ दूसरा नया लेती हूँ।
  • पुरुषार्थ कर रहे हैं - ज्ञान सागर पतित-पावन सद्गति दाता बाप द्वारा।
  • वह इस ब्रह्मा द्वारा पढ़ाते हैं।
  • पढ़ती आत्मा है।
  • आत्मा में ही बैरिस्टरी आदि के संस्कार रहते हैं ना।
  • आत्मा बोलती है, आरगन्स द्वारा।
  • तुमको आत्म-अभिमानी बनने में बड़ी मेहनत लगती है।
  • बाप राय देते हैं - अमृतवेले का समय मशहूर है।
  • उसी समय अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते रहो तो तुम्हारी आत्मा पर जो कट लगी हुई है वह साफ हो जायेगी।
  • यहाँ तुम बाप की याद में बैठते हो और कोई तकलीफ की बात नहीं है।
  • जैसे बच्चा बाप को याद करता है, यह है बेहद का बाप।
  • वह आत्मा शरीर को याद करती है।
  • अब तुम आत्मा अपने बाप को याद करती हो।
  • बाप कहते हैं मैं बेहद का बाप हूँ तो जरूर बेहद का सुख दूँगा।
  • कल्प पहले दिया था।
  • बरोबर भारत विश्व का मालिक था।
  • दुश्मन आदि कोई नहीं था।
  • अभी तुम सुखधाम के मालिक बन रहे हो।
  • जो तुम स्वर्ग के लायक थे, अब नर्क के लायक बन पड़े हो, फिर स्वर्ग के लायक बनाने बाप आये हैं।
  • पहले निराकार शिव की जयन्ती होती फिर गीता जयन्ती होती है।
  • शिवबाबा जब आते हैं तब भगवानुवाच होता है।
  • तो गीता की भी जयन्ती हो जाती है।
  • बाप ने आकर जो सुनाया, उसकी फिर गीता बनी।
  • यह भी तुम बच्चे जानते हो कि रावण किसको कहा जाता है।
  • अब इस रावण राज्य का विनाश होना है।
  • मौत सामने खड़ा है।
  • कल्प पहले भी यह दुनिया बदली थी।
  • कितनी अच्छी रीति समझाया जाता है।
  • मेहनत है, घर गृहस्थ में रहते कमल फूल समान पवित्र रह फिर साथ में यह कोर्स उठाओ।
  • टीचर से पूछो।
  • कोर्स तो बड़ा सहज है।
  • घर में रहते मुझे याद कर रचना के आदि मध्य अन्त को जानो।
  • 7 रोज़ समझने वाले भी कोई निकलते हैं।
  • हर एक मनुष्य की रग देखी जाती है।
  • देखा जाता है इनकी लगन बहुत अच्छी है।
  • तड़फते हैं, हम बाबा का ज्ञान तो सम्मुख सुनें।
  • उनकी शक्ल वातावरण से समझ सकते हो।
  • रग को पूरा न समझने के कारण अच्छे-अच्छे भी चले जाते हैं।
  • कहते हैं 7 रोज़ टाइम नहीं है, क्या करें!
  • कोई कहते हैं दर्शन कराओ।
  • बोलो - पहले आकर समझो।
  • किसके पास आये हो?
  • परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है?
  • ब्रह्माकुमार कुमारी तो तुम भी ठहरे ना।
  • शिवबाबा के पोत्रे सो ब्रह्मा के बच्चे हो गये।
  • बाप स्वर्ग का रचयिता है।
  • तो जरूर वर्सा देता होगा।
  • राजयोग सिखलाता होगा।
  • समझाकर फिर लिखा लेना चाहिए।
  • एक दिन में भी कोई अच्छा समझ सकता है।
  • ऐसे तीखे निकलेंगे जो बहुत गैलप करेंगे।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।


  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) अमृतवेले उठ बाप को प्यार से याद कर आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत करनी है।

    याद के बल से विकारों की कट उतारनी है।

    2) घर गृहस्थ में रहते कमल फूल समान बनने का कोर्स उठाना है।

    हर एक की रग अथवा लगन देख-कर ज्ञान देना है।



  • ( All Blessings of 2021-22)
  • शिक्षक बनने के साथ रहमदिल की भावना द्वारा क्षमा करने वाले मास्टर मर्सीफुल भव

    सर्व की दुआये लेनी हैं तो शिक्षक बनने के साथ-साथ मास्टर मर्सीफुल बनो।

    रहमदिल बन क्षमा करो तो यह क्षमा करना ही शिक्षा देना हो जायेगा।

    सिर्फ शिक्षक नहीं बनना है, क्षमा करना है - इन संस्कारों से ही सबको दुआयें दे सकेंगे।

    अभी से दुआयें देने के संस्कार पक्के करो तो आपके जड़ चित्रों से भी दुआयें लेते रहेंगे, इसके लिए हर कदम श्रीमत प्रमाण चलते हुए दुआओं का खजाना भरपूर करो।



  • (All Slogans of 2021-22)
    • जिनकी झोली परमात्म दुआओं से भरपूर है उनके पास माया आ नहीं सकती।