29-06-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


"मीठे बच्चे - तुम्हें किसी से भी जास्ती डिबेट नहीं करनी है, सिर्फ बाप का परिचय सबको दो''

 

प्रश्नः-

बेहद के बाप को मातेले बच्चे भी हैं तो सौतेले भी हैं, मातेले कौन?

उत्तर:-

जो बाप की श्रीमत पर चलते हैं, पवित्रता की पक्की राखी बांधी हुई है।

निश्चय है कि हम बेहद का वर्सा लेकर ही रहेंगे।

ऐसे निश्चय बुद्धि बच्चे मातेले बच्चे हैं।

और जो मनमत पर चलते, कभी निश्चय, कभी संशय, प्रतिज्ञा करके भी तोड़ देते हैं वह हैं सौतेले।

सपूत बच्चों का काम है बाप की हर बात मानना।

बाप पहली मत देते हैं मीठे बच्चे, अब प्रतिज्ञा की सच्ची राखी बांधो, विकारी वृत्ति को समाप्त करो।

 

गीत:-जाग सजनियां जाग..


  • ओम् शान्ति।
  • बच्चों ने गीत का अर्थ तो समझ लिया।
  • नई सृष्टि, नया युग और पुरानी सृष्टि, पुराना युग।
  • पुरानी सृष्टि के बाद आती है नई सृष्टि।
  • नई सृष्टि की रचना परमपिता परमात्मा ही करते हैं फिर उसको ईश्वर कहो वा प्रभु कहो।
  • उनका नाम भी जरूर कहना पड़े।
  • सिर्फ प्रभू कहने से योग किससे लगायें, किसको याद करें?
  • मनुष्य तो कहते उसको नाम रूप देश काल है नहीं।
  • अरे उनका शिव नाम तो भारत में बाला है, जिसकी शिवरात्रि मनाई जाती है, उनको बाप कहा जाता है।
  • जब बाप का परिचय हो तब बाप से बुद्धियोग लगे।
  • किसी से जास्ती डिबेट करना भी फालतू है।
  • पहले-पहले बेहद के बाप का परिचय देना है।
  • वह मनुष्य सृष्टि कैसे, कब और कौन सी रचते हैं।
  • लौकिक बाप तो सतयुग से लेकर कलियुग के अन्त तक मिलता ही रहता है।
  • परन्तु याद फिर भी पारलौकिक बाप को किया जाता है।
  • वह है परमधाम में रहने वाला पिता।
  • परमधाम कभी स्वर्ग को नहीं समझना।
  • सतयुग तो यहाँ का धाम है।
  • परमधाम है वह जहाँ परमपिता परमात्मा और आत्मायें निवास करती हैं।
  • अब जबकि सभी आत्माओं का बाप स्वर्ग का रचयिता है तो फिर बच्चों को स्वर्ग की राजाई क्यों नहीं है?
  • हाँ, स्वर्ग की बादशाही कोई समय थी जरूर।
  • नई दुनिया नया युग था।
  • अभी पुरानी दुनिया, पुराना युग है।
  • बाप ने तो स्वर्ग रचा, अब नर्क बन गया है।
  • नर्क किसने बनाया और कब बनाया?
  • माया रावण ने नर्क बनाया?
  • भारतवासियों को तो यह ज्ञान देना बहुत सहज है क्योंकि भारतवासी ही रावण को जलाते हैं, सिर्फ अर्थ नहीं समझते हैं।
  • भगत सब भगवान को याद करते हैं।
  • परन्तु उनका पता न होने के कारण कह देते कि वह सर्वव्यापी है।
  • नाम रूप से न्यारा है, बेअन्त है।
  • उनका अन्त नहीं पाया जाता है इसलिए सभी मनुष्य मात्र नाउम्मींद और ठण्डे हो गये हैं।
  • ठण्डे भी होना ही है।
  • तो उनके आने का, स्वर्ग रचने का टाइम भी हो।
  • अब बाप कहते हैं कि मैं फिर से आया हूँ।
  • भक्तों को भगवान से फल तो जरूर मिलता है।
  • भगवान को यहाँ ही आकर फल देना है क्योंकि सब पतित हैं।
  • वहाँ तो पतित जा न सकें इसलिए मुझे ही आना पड़े।
  • मेरा आह्वान करते हैं।
  • भक्तों को चाहिए भगवान।
  • अब भगवान से क्या मिलेगा?
  • मुक्ति जीवन मुक्ति।
  • सबको नहीं देंगे, जो मेहनत करेंगे उन्हों को देंगे।
  • इतनी करोड़ आत्मायें वर्सा पायेंगी क्या?
  • जब कोई आवे तो बोलो बाप है स्वर्ग का रचयिता, हम अनुभवी हैं।
  • हम अभी भगवान को ढूँढ़ नहीं सकते।
  • उनको तो अपने टाइम पर आना है।
  • हमने भी पहले बहुत तलाश की, परन्तु मिला नहीं।
  • जप-तप, तीर्थ आदि किये, बहुत ढूँढा परन्तु मिला नहीं।
  • उनको तो अपने समय पर परमधाम से आना है।
  • आदि सनातन देवी-देवताओं को 84 जन्म भी लेना पड़े।
  • 5 वर्ण भी मशहूर हैं।
  • अभी है शूद्र वर्ण, उनके बाद ब्राह्मण वर्ण।
  • वर्णों पर भी अच्छी रीति समझाना है।
  • विराट रूप में भी वर्ण होते हैं।
  • ब्राह्मणों का भी वर्ण है, उन्हों को पता नहीं है।
  • तो पहले-पहले परिचय देना है कि बाप है स्वर्ग का रचयिता और हम हैं ब्रह्माकुमार कुमारियां।
  • बाप आकर ब्राह्मण रचे तब तो हम देवता बनें।
  • प्रजापिता ब्रह्मा नाम है।
  • तो ब्रह्मा मुख द्वारा ब्राह्मण रचते हैं।
  • ब्रह्मा का बाप है शिवबाबा।
  • गोया यह ईश्वर का कुल है।
  • जैसे कृपलानी कुल, वासवानी कुल होता है, वैसे इस समय तुम्हारा है ईश्वरीय कुल।
  • तुम हो उनकी औलाद, जो सच्चे ब्राह्मण हैं, जिन्होंने पवित्रता की प्रतिज्ञा की है।
  • भल बच्चे तो सभी हैं परन्तु उनमें भी कोई मातेले हैं, कोई सौतेले हैं।
  • मातेले जो हैं उन्हों को तो पवित्रता की राखी बांधी हुई है।
  • राखी बंधन का भी त्योहार है ना, सब इस संगमयुग की बातें हैं, दशहरा भी संगम-युग का है।
  • विनाश के बाद फट से दीवाली आती है, सबकी ज्योत जग जाती है।
  • कलियुग में सबकी ज्योत बुझी हुई है।
  • अब बाप को खिवैया बागवान भी कहते हैं।
  • ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को खिवैया वा बागवान नहीं कहेंगे।
  • बाप आकर अपने बगीचे में अपने बच्चों को देखते हैं।
  • उनमें कोई गुलाब है, कोई चम्पा, कोई लिली फ्लावर हैं।
  • हर एक में ज्ञान की खुशबू है।
  • तुम अब कांटे से फूल बन रहे हो।
  • यह है कांटों का जंगल।
  • कितना झगड़ा, मारामारी आदि है क्योंकि सब नास्तिक हैं, निधनके हैं।
  • धनी है नहीं, जो उन्हों को मत दे और धनी का बनावे।
  • धनी को कोई जानते नहीं।
  • तो धनी को जरूर आना पड़े ना।
  • तो बाप आकर धनका बनाते हैं।
  • मनुष्य चाहते भी हैं कि एक धर्म, एक राज्य हो, पवित्रता भी हो।
  • सतयुग में एक धर्म था ना।
  • अब तो दु:खधाम है।
  • अब तुम ब्राह्मण वर्ण में ट्रांसफर हुए हो फिर देवता वर्ण में जायेंगे। फिर इस पतित सृष्टि पर आयेंगे नहीं।
  • भारत है सबसे ऊंच खण्ड।
  • अगर गीता को खण्डन नहीं करते तो यह भारत कौन कहलावे।
  • शिव के मन्दिर में जाते हैं ना।
  • वह है बेहद के बाप का मन्दिर क्योंकि बाप ही सद्गति दाता है।
  • निधणको (अनाथों) को आकर धनका बनाते हैं।
  • यह बातें बाप के सिवाए और कोई समझा न सके।
  • और वह सब हैं भक्ति सिखलाने वाले।
  • वहाँ तो ज्ञान की बात है नहीं।
  • ज्ञान सागर सद्गति दाता एक ही है।
  • मनुष्य कब सद्गति के लिए गुरू बन न सकें।
  • ऐसे तो कोई हुनर सिखलाने वाले को गुरू कह देते हैं।
  • परन्तु वह गुरू सारी सृष्टि की सद्गति कर नहीं सकते।
  • भल कहते हैं कि हमको साधू आदि से शान्ति मिलती है, परन्तु अल्पकाल के लिए।
  • फिर संन्यासी कहते हैं कि स्वर्ग का सुख तो काग-विष्टा के समान है।
  • फिर संन्यासियों द्वारा जो शान्ति मिली, वह भी काग-विष्टा के समान ही होगी।
  • मुक्ति तो देते नहीं हैं ना।
  • मुक्ति-जीवनमुक्ति दाता तो एक बाप ही है।
  • श्रीकृष्ण से सभी का बहुत प्यार है, परन्तु उसको पूरा जानते नहीं हैं।
  • अब बाप समझाते हैं कि सतयुग में कृष्णपुरी थी, अब तो कंसपुरी हो गई है।
  • अब बाप आकर फिर कृष्णपुरी बनाते हैं।
  • फिर आधाकल्प के बाद रावण राज्य नर्क बन जाता है।
  • आधाकल्प है सुख, आधाकल्प है दु:ख।
  • सुख का समय जास्ती है, परन्तु सुख-दु:ख का खेल तो चलता रहता है।
  • इसको सृष्टि चक्र कहा जाता है वा हार जीत का खेल कहा जाता है।
  • संन्यासी समझते हैं कि हम मोक्ष को पा लेंगे।
  • परन्तु मोक्ष को कोई पा नहीं सकते।
  • इस राज़ को कोई जानता नहीं है।
  • मुक्ति और जीवनमुक्ति बाप के सिवाए कोई दे न सके।
  • तुम अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हो ना!
  • यहाँ तो देखो दु:ख ही दु:ख है।
  • अब हम बाप की मदद से स्वर्ग बना रहे हैं, फिर हम ही मालिक बन राज्य करेंगे और बाकी सबको मुक्तिधाम में भेज देंगे।
  • वह फिर अपने समय पर आयेंगे।
  • जब वह भी उतरेंगे तो पहले सुख में आयेंगे फिर दु:ख में।
  • भक्ति मार्ग में जप तप माला आदि फेरते हैं ना।
  • कहते भी हैं कि एक को याद करना चाहिए।
  • इसमें देह-अभिमान को छोड़ना पड़े, परन्तु कोई छोड़ता नहीं है।
  • बाप कहते हैं कि अब सभी को वापिस जाना है।
  • बाप बच्चों से ही बात करते हैं।
  • बच्चों में भी कोई सौतेले हैं, तो कोई मातेले हैं।
  • सौतेले वह हैं जो पवित्रता की राखी नहीं बांधते हैं।
  • मातेले को तो निश्चय है कि हम तो वर्सा लेकर ही छोड़ेंगे।
  • बाकी कोई-कोई तो फेल होते हैं।
  • कच्चे पक्के नम्बरवार तो होते हैं।
  • पक्के जो होंगे वह स्त्री, बच्चों आदि सबको लेकर आयेंगे, आप समान बनायेंगे।
  • हंस-बगुले तो इकट्ठे रह न सकें।
  • बड़ी जिम्मेवारी है बाप के ऊपर।
  • सबको पवित्र बनाना - यह बाप का काम है इसलिए बाप कहते हैं दोनों पहिया एक साथ चलो।
  • स्त्री और पति साथ-साथ चलते तो गाड़ी ठीक चलती है।
  • चलो हम दोनों पवित्रता का हथियाला बाँधते हैं।
  • अब हम पवित्र बन बाप से वर्सा जरूर लेंगे।
  • ब्रह्मा के बच्चे बने तो भाई-बहिन हो गये।
  • फिर क्रिमिनल एसाल्ट हो न सके।
  • विकार में तो जा न सकें।
  • यह ईश्वरीय ला कहता है।
  • अभी बाप कहते हैं कि विष पीने पिलाने की वृत्ति तोड़ देनी है।
  • हम एक दो को ज्ञान अमृत पिलायेंगे।
  • हम भी बाप से स्वर्ग का वर्सा लेंगे।
  • सपूत बच्चों का काम है बाप का कहना मानना।
  • जो नहीं मानते वह कपूत ही ठहरे।
  • कपूत बच्चों को वर्सा देने में बाप जरूर आनाकानी करेंगे।
  • तुम ब्राह्मण देवता बनने वाले हो, तो तुम्हें अपनी स्त्री को भी ज्ञान अमृत पिलाना चाहिए।
  • जैसे छोटे बच्चों को नाक पकड़कर दवाई पिलाई जाती है।
  • स्त्री को कहो कि तुम मानती हो कि यह पति तुम्हारा गुरू ईश्वर है?
  • तो जरूर हम तुम्हारी सद्गति करेंगे ना!
  • पुरुष तो झट स्त्री को आप समान बना सकता है।
  • स्त्री, पुरुष को जल्दी नहीं बना सकेगी, इसलिए अबलाओं पर बहुत अत्याचार होते हैं।
  • बच्चियों को बहुत मार खानी पड़ती है।
  • तुम्हारी रक्षा गवर्मेन्ट भी कर नहीं सकेगी।
  • वह कहेगी कि हम तो कुछ नहीं कर सकते।
  • बाप तो कहेंगे बच्चे श्रीमत पर चलो तो तुम स्वर्ग के मालिक बनेंगे।
  • अगर कपूत बने तो वर्सा गंवा देंगे।
  • वहाँ लौकिक बाप से बच्चे हद का वर्सा लेते हैं और यहाँ सपूत बच्चे बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेते हैं।
  • इसको कहा जाता है दु:खधाम।
  • यहाँ तो तुमको सोना भी नहीं पहनना है क्योंकि इस समय तुम बेगर हो।
  • दूसरे जन्म में तुमको एकदम सोने के महल मिलते हैं।
  • रतन जड़ित महल होंगे।
  • तुम जानते हो कि हम अब बाप से 21 जन्म का वर्सा ले रहे हैं।
  • भक्ति मार्ग में मैं सिर्फ भावना का फल देता हूँ।
  • वह तो जानते नहीं कि श्रीकृष्ण की आत्मा कहाँ हैं।
  • गुरू नानक की आत्मा कहाँ है।
  • तुम जानते हो - अब वो सब पुनर्जन्म लेते-लेते तमोप्रधान बन गये हैं।
  • वह भी सृष्टि चक्र के अन्दर ही हैं, सबको तमोप्रधान बनना ही है।
  • अन्त में बाप आकर फिर सभी को वापिस ले जाते हैं।


  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) अब पवित्रता का हथियाला बांधना है।
  • देह-अभिमान को छोड़ विकारी वृत्तियों को चेंज करना है।
  • 2) बाप की श्रीमत पर चल सपूत बच्चा बनना है।
  • ज्ञान अमृत पीना और पिलाना है।
  • स्वयं में ज्ञान की खुशबू धारण कर खूशबूदार फूल बनना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021-22)
    • यथार्थ याद और सेवा के डबल लाक द्वारा निर्विघ्न रहने वाले फीलिंगप्रूफ भव
    • माया के आने के जो भी दरवाजे हैं उन्हें याद और सेवा का डबल लॉक लगाओ।
    • यदि याद में रहते और सेवा करते भी माया आती है तो जरूर याद अथवा सेवा में कोई कमी है।
    • यथार्थ सेवा वह है जिसमें कोई भी स्वार्थ न हो।
    • अगर नि:स्वार्थ सेवा नहीं तो लॉक ढीला है और याद भी शक्तिशाली चाहिए।
    • ऐसा डबल लाक हो तो निर्विघ्न बन जायेंगे।
    • फिर क्यों, क्या की व्यर्थ फीलिंग से परे फीलिंग प्रूफ आत्मा रहेंगे।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
    • स्नेह और शक्ति का बैलेन्स ही सफलता की अनुभूति कराता है।
    • मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य
    • वास्तव में ज्ञान प्राप्त करना तो एक ही सेकेण्ड का काम है परन्तु अगर मनुष्य एक सेकेण्ड में समझ जाएं तो उनके लिये एक ही सेकेण्ड लगता है सिर्फ अपने स्वधर्म को जान जावें कि मैं असुल में शान्त स्वरूप आत्मा हूँ और परमात्मा की संतान हूँ। अब यह समझना तो एक सेकण्ड की बात है परन्तु इसमें निश्चय करने में कोई हठयोग, कोई जप तप कोई भी प्रकार का साधन करना, कोई जरुरत नहीं है बस, सिर्फ ओरीज्नल अपने रूप को पकड़ो। बाकी हम जो इतना पुरुषार्थ कर रहे हैं वो किसके लिये? अब इस पर समझाया जाता है, हम जो इतना पुरुषार्थ कर रहे हैं वो सिर्फ इतनी बात पर ही कर रहे हैं। जैसे अपनी प्रैक्टिकल जीवन को बनाना है, तो अपने इस बॉडीकान्सेस से पूरा निकलना है। असुल में सोल कॉन्सेस रूप में स्थित होने वा इन दैवीगुणों को धारण करने में मेहनत अवश्य लगती है। इसमें हम हर समय, हर कदम पर सावधान रहते हैं, अब जितना हम माया से सावधान रहेंगे तो भल कितनी भी घटनायें सामने आयेंगी मगर हमारा सामना नहीं कर सकेगी। माया सामना तब करती है जब हम अपने आपको विस्मृत करते हैं, अब यह जो इतनी मार्जिन है सिर्फ प्रैक्टिकल लाइफ बनाने की। बाकी ज्ञान तो सेकण्ड की बात है। अच्छा - ओम् शान्ति।