28-05-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

मीठे बच्चे - तुम्हारा प्यार आत्मा से होना चाहिए, चलते-फिरते अभ्यास करो, मैं आत्मा हूँ, आत्मा से बात करता हूँ, मुझे कोई बुरा काम नहीं करना है।''


 

प्रश्नः-

बाप द्वारा रचा हुआ यज्ञ जब तक चल रहा है तब तक ब्राह्मणों को बाप का कौन सा फरमान जरूर पालन करना है?

उत्तर:-

बाप का फरमान है - बच्चे जब तक यह रूद्र यज्ञ चल रहा है तब तक तुम्हें पवित्र जरूर रहना है।

तुम ब्रह्मा के बच्चे ब्रह्माकुमार कुमारी कभी विकार में नहीं जा सकते।

अगर कोई इस फरमान की अवज्ञा करते हैं तो बहुत कड़े दण्ड के भागी बन जाते हैं।

अगर किसी में क्रोध का भी भूत है तो वह ब्राह्मण नहीं।

ब्राह्मणों को देही-अभिमानी रहना है, कभी विकार के वशीभूत नहीं होना है।

 

गीत:- ओ दूर के मुसाफिर ...


  • ओम् शान्ति।
  • दूर के मुसाफिर को तुम ब्राह्मणों के बिगर कोई भी मनुष्य मात्र जानते नहीं हैं, बुलाते हैं हे परमधाम में निवास करने वाले परमपिता परमात्मा आओ।
  • पिता कहते हैं परन्तु बुद्धि में नहीं आता है कि पिता का रूप क्या है?
  • आत्मा क्या है?
  • भल समझते हैं आत्मा भ्रकुटी के बीच सितारे समान रहती है।
  • बस और कुछ नहीं जानते।
  • हमारी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है।
  • इन बातों का कुछ भी ज्ञान नहीं है।
  • आत्मा इस शरीर में कैसे प्रवेश करती है, यह भी नहीं जानते हैं।
  • जब अन्दर चुर-पुर होती है तब पता पड़ता है कि आत्मा ने प्रवेश किया।
  • फिर जब परमपिता परमात्मा कहते हैं तो यह भी आत्मा ही पिता कहती है।
  • आत्मा जानती है यह शरीर लौकिक पिता का है।
  • हमारा बाप तो वह निराकार है।
  • जरूर हमारा बाप भी हमारे जैसा बिन्दी स्वरूप होगा।
  • उनकी महिमा भी गाते हैं - मनुष्य सृष्टि का बीजरूप, ज्ञान सागर, पतित-पावन है।
  • परन्तु कितना बड़ा वा छोटा है, यह सबकी बुद्धि में नहीं बैठता है।
  • पहले तुम्हारी बुद्धि में भी नहीं था कि हमारी आत्मा क्या है।
  • भल परमात्मा को याद करते थे कि हे परमपिता... परन्तु कुछ भी जानते नहीं थे।
  • बाप तो निराकार है फिर वह पतित-पावन कैसे ठहरा।
  • क्या जादू लगाते हैं?
  • पतितों को पावन बनाने जरूर यहाँ आना पड़ता है।
  • जैसे हमारी आत्मा भी शरीर में रहती है वैसे बाप भी निराकार है उनको भी जरूर शरीर में आना पड़े, तब तो शिवरात्रि अथवा शिव जयन्ती मनाते हैं।
  • परन्तु वह पावन कैसे आकर बनाते हैं, यह कोई भी जानते नहीं हैं, इसलिए कह देते हैं सर्वव्यापी।
  • प्रदर्शनी में अथवा कहाँ भी भाषण आदि करने जाओ तो पहले-पहले बाप की ही पहचान देनी है, फिर आत्मा की।
  • आत्मा तो भ्रकुटी के बीच रहती है।
  • उसमें ही सारे संस्कार रहते हैं।
  • शरीर तो खलास हो जाता है।
  • जो कुछ करती है वह आत्मा ही करती है।
  • शरीर के आरगन्स आत्मा के आधार पर ही चलते हैं।
  • आत्मा रात को अशरीरी हो जाती है।
  • आत्मा ही कहती है आज मैंने आराम बहुत अच्छा किया है।
  • आज मुझे आराम नहीं आया।
  • मैं इस शरीर द्वारा यह धन्धा करता हूँ।
  • यह तुम बच्चों को आदत पड़ जानी चाहिए।
  • आत्मा ही सब कुछ करती है।
  • आत्मा शरीर से निकल जाती है तो उनको मुर्दा कहा जाता है।
  • कोई काम का नहीं रहता है।
  • आत्मा निकलने से शरीर में जैसे बांस हो जाती है।
  • शरीर को जाकर जलाते हैं।
  • तो तुम्हारा आत्मा के साथ ही प्यार है।
  • तुम बच्चों को यह शुद्ध अभिमान होना चाहिए कि मैं आत्मा हूँ।
  • पूरा आत्म-अभिमानी बनना है।
  • मेहनत सारी इसमें ही है।
  • मुझ आत्मा को इन आरगन्स द्वारा कोई भी बुरा काम नहीं करना चाहिए।
  • नहीं तो सजा खानी पड़ेगी।
  • भोगना भी तब भोगी जाती है जब आत्मा को शरीर है।
  • बिगर शरीर आत्मा दु:ख भोग न सके।
  • तो पहले आत्म-अभिमानी फिर परमात्म-अभिमानी बनना है।
  • मैं परमपिता परमात्मा की सन्तान हूँ।
  • कहते भी हैं कि परमात्मा ने हमको पैदा किया है।
  • वह रचयिता है परन्तु वह रचता कैसे है, कोई भी नहीं जानते हैं।
  • अभी तुम जानते हो कि परमपिता परमात्मा नई दुनिया की कैसे स्थापना करते हैं, पुरानी दुनिया में रहते हैं।
  • देखो कैसी युक्ति है।
  • उन्होंने तो प्रलय दिखा दी।
  • कहते हैं पीपल के पत्ते पर एक बालक आया फिर बालकी तो दिखाते नहीं।
  • इसको कहा जाता है अज्ञान।
  • कहते हैं भगवान ने शास्त्र बनाये।
  • व्यास भगवान तो हो न सके।
  • भगवान शास्त्र बैठ लिखते हैं क्या?
  • उनके लिए तो गाया हुआ है वह सब शास्त्रों का सार समझाते हैं।
  • बाकी इन वेद शास्त्र पढ़ने से कोई का कल्याण नहीं हो सकता।
  • समझो ब्रह्म ज्ञानी हैं। समझते हैं ब्रह्म में लीन हो जायेंगे।
  • ब्रह्म तो महतत्व है।
  • आत्मायें वहाँ रहती हैं।
  • यह न जानने कारण जो आता है सो बोलते रहते हैं और मनुष्य भी सत-सत करते रहते हैं।
  • बहुत ही हठयोग, प्राणायाम आदि करते हैं, तुम तो कर न सको।
  • तुम नाज़ुक कन्याओं, माताओं को क्या तकलीफ देंगे।
  • पहले तो मातायें राज विद्या भी नहीं पढ़ती थी।
  • थोड़ी सी भाषा सीखने के लिए स्कूल में भेजा जाता था।
  • बाकी नौकरी तो करनी नहीं है।
  • अभी तो माताओं को पढ़ना पड़ता है।
  • कमाई करने वाला न हो तो अपने पैरों पर खड़ी हो सके, भीख न लेनी पड़े।
  • नहीं तो कायदे अनुसार बच्चियों को घर का काम सिखाया जाता है।
  • अब तो बैरिस्टरी, डॉक्टरी आदि सीखती रहती हैं।
  • यहाँ तो तुमको और कुछ करना नहीं है, सिर्फ पहले-पहले कोई को भी बाप का परिचय देना है।
  • निराकार को तो सभी शिवबाबा कहते हैं, परन्तु उनका रूप क्या है।
  • कोई भी जानते नहीं हैं।
  • ब्रह्म तो तत्व है।
  • जैसे यह आकाश कितना बड़ा है।
  • अन्त नहीं पा सकते।
  • वैसे ब्रह्म तत्व का भी अन्त नहीं है।
  • उनके अंशमात्र में हम आत्मायें रहती हैं।
  • बाकी तो पोलार ही पोलार है।
  • सागर भी अथाह है, चलते जाओ।
  • पोलार का भी अन्त नहीं पा सकते।
  • कोशिश करते हैं ऊपर जाने की परन्तु जाते-जाते उनका सामान ही खुट जाता है।
  • वैसे ही महतत्व भी बहुत बड़ा है।
  • वहाँ जाकर कुछ ढूँढने की दरकार नहीं है।
  • वहाँ आत्माओं को यह विचार करने की भी दरकार नहीं।
  • ढूंढने से फायदा ही क्या होगा।
  • समझो स्टार्स में जाकर दुनिया ढूंढते हैं, परन्तु फायदा ही क्या है?
  • वहाँ कोई बाप को पाने का रास्ता नहीं है।
  • भगत भक्ति करते हैं भगवान को पाने के लिए।
  • तो उनको भगवान मिलता है।
  • वह मुक्ति जीवनमुक्ति देते हैं।
  • ढूँढना भगवान को होता है, न कि पोलार को।
  • जहाँ से कुछ मिलता नहीं।
  • कितना गवर्मेन्ट का खर्चा होता है।
  • यह भी आलमाइटी गवर्मेन्ट है।
  • पाण्डव और कौरव दोनों को ताज नहीं दिखाते हैं।
  • बाप आकर तुमको सब बातें समझाते हैं।
  • जबकि तुम इतनी सब नॉलेज पाते हो तो तुमको बहुत खुश रहना चाहिए।
  • तो हमको पढ़ाने वाला बेहद का बाप है।
  • तुम्हारी आत्मा कहती है हम पहले सो देवी देवता थे।
  • बहुत सुखी थे।
  • पुण्य आत्मा थे।
  • इस समय हम पाप आत्मा बन पड़े हैं क्योंकि यह रावण राज्य है।
  • यह रावण की मत पर हैं।
  • तुम हो ईश्वरीय मत पर।
  • रावण भी गुप्त है तो ईश्वर भी गुप्त है।
  • अभी ईश्वर तुमको मत दे रहे हैं।
  • रावण कैसे मत देते हैं?
  • रावण का कोई रूप तो है नहीं।
  • यह तो रूप धरते हैं।
  • रावण के तो सभी रूप हैं।
  • जानते हैं हमारी आत्मा में 5 विकार हैं।
  • हम आसुरी मत पर चल रहे हैं।
  • मेल फीमेल दोनों में 5 विकार हैं।
  • यह सब बातें मनुष्य की बुद्धि में तब बैठेंगी जब वह जानेंगे कि हमको पढ़ाने वाला निराकार परमपिता परमात्मा है।
  • परमात्मा निराकार है।
  • जब वह साकार में आवे तब तो हम ब्राह्मण बनें।
  • बाप भी रात को ही आता है।
  • शिवरात्रि सो ब्रह्मा की रात्रि हो गई।
  • ब्रह्मा द्वारा ही ब्राह्मण बनेंगे।
  • यज्ञ में ब्राह्मण जरूर चाहिए।
  • ब्राह्मणों को जब तक यज्ञ सम्भालना है तब तक पवित्र रहना है।
  • जिस्मानी ब्राह्मण भी जब यज्ञ रचते हैं तो विकार में नहीं जाते।
  • भल हैं विकारी, परन्तु यज्ञ रचने समय विकार में नहीं जायेंगे।
  • जैसे तीर्थो पर जाते हैं तो जब तक तीर्थो पर रहते हैं तो विकार में नहीं जाते हैं।
  • तुम ब्राह्मण भी यज्ञ में रहते हो फिर अगर कोई विकार में जाते हैं तो बड़े पाप आत्मा बन पड़ते हैं।
  • यज्ञ चल रहा है तो अन्त तक तुमको पवित्र रहना है।
  • ब्रह्मा के बच्चे ब्रह्माकुमार कुमारियाँ कब विकार में नहीं जा सकते।
  • बाप ने फरमान किया है तुम कब विकार में नहीं जाना।
  • नहीं तो बहुत दण्ड के भागी बन जायेंगे।
  • विकार में गया तो सत्यानाश हुई।
  • वह ब्रह्माकुमार कुमारी नहीं, परन्तु शूद्र मलेच्छ है।
  • बाबा हमेशा पूछते हैं तुमने पवित्र रहने की प्रतिज्ञा की है।
  • अगर बाप से प्रतिज्ञा कर ब्राह्मण बन फिर विकार में गये तो चण्डाल का जन्म पायेंगे।
  • यहाँ वेश्या जैसा गन्दा जन्म कोई होता नहीं।
  • यह है ही वैश्यालय।
  • दोनों एक दो को विष पिलाते हैं।
  • बाबा कहते हैं माया भल कितने भी संकल्प लावे परन्तु नंगन नहीं होना है।
  • कई तो जबरदस्ती भी नंगन करते हैं।
  • बच्चियों को ताकत कम रहती है - पवित्रता के साथ चलन भी बहुत अच्छी चाहिए।
  • चलन खराब है तो वह भी काम के नहीं।
  • लौकिक माँ बाप में विकार हैं तो बच्चे भी माँ बाप से ही सीखते हैं।
  • तुमको पारलौकिक बाप तो यह शिक्षा नहीं देते।
  • बाप तो देही-अभिमानी बनाते हैं।
  • कभी क्रोध नहीं करना।
  • उसी समय तुम ब्राह्मण नहीं चण्डाल हो क्योंकि क्रोध का भूत है।
  • भूत मनुष्य को दु:ख देते हैं।
  • बाप कहते हैं ब्राह्मण बनकर कोई शैतानी काम नहीं करना है।
  • विकार में जाने से यज्ञ को तुम अपवित्र बनाते हो, इसमें बड़ी खबरदारी रखनी है।
  • ब्राह्मण बनना कोई मासी का घर नहीं है।
  • यज्ञ में कोई गन्द नहीं करना है।
  • 5 विकारों में से कोई भी विकार न हो।
  • ऐसे नहीं क्रोध किया तो हर्जा नहीं।
  • यह भूत आया तो तुम ब्राह्मण नहीं।
  • कोई कहे यह तो मंजिल बहुत ऊंची है।
  • नहीं चल सकते हो तो जाकर गन्दे बनो।
  • इस ज्ञान में तो सदा पवित्र हर्षित रहना पड़े।
  • पतित-पावन बाप का बच्चा बनकर बाप को मदद देनी है।
  • कोई भी विकार नहीं होना चाहिए।
  • कोई तो आते ही फट से विकारों को छोड़ देते हैं।
  • समझना चाहिए हम रूद्र ज्ञान यज्ञ का ब्राह्मण हूँ।
  • हमारे से ऐसा कोई काम नहीं होना चाहिए जो दिल खाती रहे।
  • दिल रूपी दर्पण में देखना है कि हम लायक हैं?
  • भारत को पवित्र बनाने के हम निमित्त हैं तो योग में भी जरूर रहना है।
  • सन्यासी लोग सिर्फ पवित्र बनते हैं, बाप को तो जानते ही नहीं।
  • हठयोग आदि बहुत करते हैं।
  • पाते कुछ भी नहीं।
  • तुम जानते हो बाप आये हैं - शान्तिधाम में ले जाने लिए।
  • हम आत्मायें वहाँ की निवासी हैं।
  • हम सुखधाम में थे, अब दु:खधाम में हैं।
  • अभी है संगम... यह सिमरण चलता रहे तो भी सदा मुस्कराते रहे।
  • जैसे देखो यह अंगना बच्चा (बैंगलोर का) सदैव मुस्कराता रहता है।
  • बाबा कहने से ही खुशी में भरपूर हो जाता है।
  • इनको खुशी है हम बाबा के बच्चे हैं।
  • जो भी मिले उनको ज्ञान देते रहो।
  • हाँ कोई हँसी भी उड़ायेंगे क्योंकि नई बात है कोई भी नहीं जानते कि भगवान आकर पढ़ाते हैं।
  • कृष्ण तो कभी आकर पढ़ाते नहीं हैं।
    • अच्छा !
    • मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) रूद्र ज्ञान यज्ञ का ब्राह्मण बनकर ऐसा कोई काम नहीं करना है - जो दिल को खाता रहे।
  • कोई भी भूत के वशीभूत नहीं होना है।
  • 2) पतित-पावन बाप का पूरा मददगार बनने के लिए सदा पवित्र और हर्षित रहना है।
  • ज्ञान का सिमरण कर मुस्कराते रहना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021-22)
    • चित की प्रसन्नता द्वारा दुआओं के विमान में उड़ने वाले सन्तुष्टमणी भव
    • सन्तुष्टमणि उन्हें कहा जाता जो स्वयं से, सेवा से और सर्व से सन्तुष्ट हो।
    • तपस्या द्वारा सन्तुष्टता रूपी फल प्राप्त कर लेना - यही तपस्या की सिद्धि है।
    • सन्तुष्टमणि वह है जिसका चित सदा प्रसन्न हो।
    • प्रसन्नता अर्थात् दिल-दिमाग सदा आराम में हो, सुख चैन की स्थिति में हो।
    • ऐसी सन्तुष्टमणियां स्वयं को सर्व की दुआओं के विमान में उड़ता हुआ अनुभव करेंगी।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
    • सच्चे दिल से दाता, विधाता, वरदाता को राज़ी करने वाले ही रूहानी मौज में रहते हैं।