22-05-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 13.02.91 "बापदादा" मधुबन

विश्व परिवर्तन में तीव्रता लाने का साधन एकाग्रता की शक्ति एवं एकरस स्थिति


 


  • आज दूरदेशी बाप अपने दूरदेशी और देशी बच्चों को मिलन मुबारक देने आये हैं।
  • आप सभी भी दूरदेश से आये हैं।
  • बाप भी दूरदेश से आये हैं।
  • बच्चे बाप को मुबारक देने आये हैं और बाप बच्चों को पद्म गुणा मुबारक देते हैं।
  • मनाना अर्थात् समान बनाना।
  • दुनिया में सिर्फ मनाते हैं लेकिन बाप मनाते अर्थात् बनाते हैं।
  • सभी बच्चे, चाहे साकार रूप में सम्मुख हो, चाहे आकार रूप में सम्मुख हैं, सब बच्चे विश्व के कोने कोने में बाप की हीरे तुल्य जयन्ती मना रहे हैं।
  • बापदादा आकारी रूप में सम्मुख बच्चों को भी हीरे तुल्य जयन्ती की हीरे तुल्य पद्मापद्म मुबारक दे रहे हैं।
  • इस महान अवतरित होने की जयन्ती को आप सभी बच्चे मनाते स्वयं भी हीरे तुल्य बन गये हो।
  • इसको कहा जाता है मनाना अर्थात् बनाना।
  • हर एक बच्चे के मस्तक पर पदमापदम भाग्यवान बनने का सितारा चमक रहा है।
  • तो मनाते मनाते सदा के लिए भाग्यवान बन गये।
  • ऐसी अलौकिक जयन्ती सारे कल्प में कोई भी नहीं मनाते हैं।
  • चाहे महान आत्माओं की भी जयन्ती मनाते हैं, लेकिन वह महान आत्माएं मनाने वालों को महान बनाते नहीं हैं।
  • इस संगम पर ही आप बच्चे परमात्म जयन्ती मनाते महान बन जाते हो।
  • श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ आत्माएं बन जाते हो।
  • ऐसे हीरे तुल्य जीवन बनाते जो जन्म जन्मान्तर हीरे और रतनों से खेलते रहते।
  • आज का यादगार दिवस सिर्फ बाप का नहीं है लेकिन बच्चों का भी बर्थ डे है, क्योंकि जब बाप अवतरित होते हैं तो बाप के साथ ब्रह्मा दादा भी परिवर्तित आत्मा अवतरित होते हैं।
  • बाप और दादा दोनों का साथ-साथ अवतरण होता है।
  • सिवाए ब्राह्मणों के बापदादा स्थापना का यज्ञ रच नहीं सकते, इसलिए बापदादा और ब्राह्मण बच्चे साथ-साथ अवतरित होते हैं।
  • तो किसका जन्म दिन कहेंगे - आपका या बाप का?
  • आपका भी है ना!
  • तो आप बाप को मुबारक देते और बाप आपको मुबारक देते।
  • शिव जयन्ती अर्थात् परमात्म जयन्ती को महाशिवरात्रि क्यों कहते हैं?
  • सिर्फ शिव रात्रि नहीं कहते लेकिन महाशिवरात्रि कहते हैं क्योंकि इस अवतरित दिवस पर शिव बाप ब्रह्मा दादा और ब्राह्मणों ने महान संकल्प का व्रत लिया कि विश्व को पवित्रता के व्रत से महान श्रेष्ठ बनायेंगे।
  • विशेष आदि देव ब्रह्मा अपने निमित्त ब्राह्मण आदि बच्चों के साथ इस महान व्रत लेने के निमित्त बने, तो महान बनाने के व्रत लेने का दिव्य दिवस है, इसलिए महा शिवरात्रि कहा जाता है।
  • और आप ब्राह्मण बच्चों ने यह महान व्रत लिया इसके यादगार स्वरूप में आज तक भी भक्त लोग व्रत रखते हैं।
  • यह महान जयन्ती प्रतिज्ञा लेने की जयन्ती है।
  • एक तरफ प्रत्यक्ष होने की जयन्ती है, दूसरी तरफ प्रतिज्ञा लेने की जयन्ती है।
  • आदि समय में आप सभी जो भी निमित्त बने, आदि देव के साथ आदि रत्न निकले उन्हों की प्रतिज्ञा का प्रत्यक्ष फल आप सभी प्रत्यक्ष हुए। देखो कहाँ कहाँ कोनों में चले गये थे।
  • कितने कोने में चले गये लेकिन बाप ने मिट्टी में छिपे हुए अपने हीरे-तुल्य बच्चों को ढूँढ लिया ना।
  • अभी तो विश्व के कोने-कोने में आप होलीएस्ट और हाइएस्ट हीरे चमक रहे हो।
  • तो यह परमात्म जयन्ती के व्रत और प्रतिज्ञा का फल है।
  • आप सभी अब भी चारों ओर शिव बाप के झण्डे के आगे प्रतिज्ञा लेते हो ना।
  • तो यह आदि रसम की विधि अब तक आप भी करते रहते हो।
  • यह परमात्म जयन्ती जिसको शिव रात्रि भी कहते हैं।
  • रात्रि अर्थात् अंधकार।
  • अंधकार में जो व्यक्ति वा वस्तु जैसी होती है वैसी दिखाई नहीं देती है।
  • होते हुए भी दिखाई नहीं देती।
  • जब बाप अवतरित होते हैं तो आप भी जो आप हैं, जो हैं, जैसे हैं, न अपने आपको देख सकते थे, न बाप को देख वा जान सकते थे।
  • मैं आत्मा हूँ यह होते हुए भी ज्ञान व अनुभव के नेत्र द्वारा देख नहीं सकते थे।
  • नेत्र होते हुए भी अंधकार में थे।
  • नेत्र यथार्थ कार्य नहीं करते थे।
  • स्पष्ट दिखाई नहीं देता।
  • तो आप भी अंधकार में थे ना।
  • अपने को ही नहीं देख सकते थे, इसलिए बाप पहले इस अंधकार को मिटाते हैं।
  • तो शिवरात्रि अर्थात् अंधकार को मिटाए यथार्थ का प्रकाश प्रज्जवलित होना।
  • इसलिये शिवरात्रि कहकर मनाते हैं।
  • भक्ति मार्ग की विधियां भी आपकी यथार्थ विधियों का यादगार है।
  • एक तरफ भक्तों की विधि और दूसरे तरफ है बच्चों की सम्पूर्ण विधि।
  • दोनों ही देख बाप हर्षित होते हैं।
  • आप लोग भी हर्षित होते हो ना कि हमारे भक्त फॉलो करने में कितने होशियार हैं।
  • लास्ट जन्म तक भी अपनी भक्ति की विधियां निभाते आते हैं।
  • यह सब है बाप और आप बिन्दु रूप की कमाल।
  • शिव बाबा के साथ सालिग्राम भी साथ-साथ पूजे जाते हैं।
  • आप सभी बिन्दु स्वरूप के महत्व को जानते हो, इसलिए आज तक भक्तों में शिव अर्थात् बिन्दु स्वरूप का महत्व है।
  • वह सिर्फ बिन्दु रूप को जानते हैं, यथार्थ नहीं जानते हैं, अपने रूप से जानते हैं।
  • लेकिन आप बाप को सिर्फ बिन्दु रूप से नहीं लेकिन बिन्दु के साथ जो सर्व खजानों का सिन्धु है, तो बिन्दु के साथ सिन्धु रूप को भी जानते हो।
  • दोनों रूप से जाना है ना?
  • सिन्धु स्वरूप को जानते आप भी मास्टर सिन्धु बन गये।
  • आपमें कितने खजाने भरे हुए हैं - हिसाब लगा सकते हो!
  • अनगिनत, अथाह और अविनाशी खजाने हैं।
  • सभी मास्टर सिन्धु बने हो ना कि अब बनना है?
  • तपस्या वर्ष में क्या करेंगे?
  • तपस्या अर्थात् जो भी संकल्प करेंगे वह दृढ़ता से।
  • तपस्या अर्थात् एकाग्रता और दृढ़ता।
  • योगी जीवन में तो अभी भी हो। आप सब योगी जीवन वाले हो ना?
  • कि 8 घण्टा, 6 घण्टा या कुछ घण्टे योग लगाने वाले हो?
  • योगी जीवन तो है ही, फिर खास तपस्या वर्ष क्यों रखा है?
  • बापदादा सभी बच्चों को योगी जीवन वाले योगी आत्माओं के रूप में देखते हैं और हो भी योगी जीवन में।
  • और जीवन तो समाप्त हो गई।
  • भटकी हुई भोगी जीवन से थककर निराश होकर सोच समझकर योगी बने हो।
  • सोच समझकर बने हो या किसके कहने से बन गये हो।
  • अनुभव करके बने हो या सिर्फ अनुभव सुनकर बन गये हो?
  • अनुभवी बन करके योगी बने हो या सिर्फ सुना और देखा तो अच्छा लग गया?
  • सिर्फ देख करके सौदा किया है या सुनकर सौदा किया है?
  • कहाँ किसके धोखे में तो नहीं आये हो?
  • अच्छी तरह से देख लिया है?
  • अभी भी देख लो।
  • कोई जादू तो नहीं लग गया है?
  • तीनों आंखे खोल कर सौदा किया है?
  • क्योंकि बुद्धि भी आंख है।
  • यह दो आंखे और बुद्धि की आंख, तीनों खोल कर सौदा किया है।
  • सभी पक्के हैं?
  • सभी बच्चे मीठी-मीठी रुहरिहान करते हैं।
  • कहते हैं - बाबा हैं तो आपके ही, और कहाँ तो जायेंगे ही नहीं।
  • और ज्ञानी-योगी जीवन भी बहुत अच्छी लगती है लेकिन थोड़ा-थोड़ा किसी न किसी बात में सहन करना पड़ता है।
  • उस समय मन और बुद्धि हलचल में आ जाती है यह कब तक होगा, कैसे होगा...?
  • बीच-बीच में जो हलचल होती है - चाहे अपने से, चाहे सेवा से, चाहे साथियों से - यह हलचल निरन्तर में अन्तर ले आती है।
  • तो सहन शक्ति की परसेन्टेज थोड़ी कम हो जाती है।
  • हैं पक्के, लेकिन पक्के को भी कभी कभी ये बातें हिला देती हैं।
  • तो तपस्या वर्ष अर्थात् सर्व गुणों में, सर्व शक्तियों में, सर्व सम्बन्धों में, सर्व स्वभाव-संस्कार में 100 प्रतिशत पास होना।
  • अभी पास हो लेकिन फुल पास नहीं।
  • एक है पास, दूसरा है फुल पास और तीसरा है पास विद् ऑनर।
  • तो तपस्या वर्ष में अगर पास विद् ऑनर थोड़े बने तो फुल पास तो सब बन सकते हैं।
  • और फुल पास होने के लिए सबसे सहज साधन है जो भी कोई पेपर आते हैं और इस तपस्या वर्ष में भी पेपर आयेंगे।
  • ऐसे नहीं कि नहीं आयेंगे लेकिन पेपर समझकर पास करो।
  • बात को बात नहीं समझो, पेपर समझो।
  • पेपर के क्वेश्चन के विस्तार में नहीं जाते - यह क्यों आया, कैसे आया, किसने किया?
  • पास होने का सोचकर पेपर को पार करते हैं।
  • तो पेपर समझकर पास करो।
  • यह क्या हो गया, ऐसा होता है क्या, या अपनी कमजोरी में भी यह नहीं सोचो कि यह तो होता ही है।
  • अपने लिए सोचते हो - यह तो होता ही है, इतना तो होगा ही और दूसरों के लिए सोचते हो यह क्यों किया, क्या किया।
  • इन सब बातों को पेपर समझकर फुल पास होने का लक्ष्य रख करके पास करो।
  • पास होना है, पास करना है और बाप के पास रहना है तो फुल पास हो जायेंगे। समझा।
  • अभी मैजारिटी रिजल्ट में देखा जाता है कई बातों में तो अच्छी तरह से पास हो गये हैं।
  • सिर्फ अपने पुराने स्वभाव और संस्कार, जो कभी-कभी नये जीवन में इमर्ज हो जाते हैं।
  • अपने व दूसरों के स्वभाव-संस्कार भी टक्कर खाते हैं।
  • अपना कमजोर संस्कार दूसरे के संस्कार से टक्कर खाता है।
  • यह कमजोरी अभी विशेष लक्ष्य को पहुँचने में विघ्न डालती है।
  • फुल पास के बजाए पास मार्क दिला देती है।
  • न अपने स्वभाव-संस्कार को संकल्प व कर्म में लाओ, न दूसरों के स्वभाव व संस्कार से टक्कर खाओ।
  • दोनों में सहन शक्ति और समाने की शक्ति की आवश्यकता है।
  • यह फुल पास के समीप लाने नहीं देती और यही कारण है जो कहाँ अलबेलापन, कहाँ आलस्य आ जाता है।
  • तपस्या वर्ष में मन-बुद्धि को एकाग्र करना अर्थात् एक ही संकल्प में रहना है कि मुझे फुल पास होना ही है।
  • अगर मन-बुद्धि जरा भी विचलित हो तो दृढ़ता से फिर से उसको एकाग्र करो।
  • करना ही है, होना ही है।
  • यह सब जो भी कमजोरियां हैं उनको तपस्या की योग अग्नि में भस्म करो।
  • योग अग्नि प्रज्जवलित हो गई है?
  • लगन की अग्नि में अभी भी रहते हो लेकिन कभी कभी अग्नि थोड़ी सी परसेन्टेज में कम हो जाती है।
  • बुझती नहीं है, कम होती है।
  • तेज आग में जो भी चीज़ डालो तो या तो परिवर्तन या भस्म होगी।
  • परिवर्तन और भस्म करने, दोनों में तेज आग चाहिए।
  • योग अग्नि है।
  • लगन की अग्नि भी जगी हुई है लेकिन सदा ही तेज रहे।
  • कभी तेज, कभी कम नहीं।
  • जैसे यहाँ स्थूल अग्नि में भी अगर कोई चीज़ अच्छी बनाने चाहते हो और टाइम पर बनाने चाहते हो तो अग्नि को उसी रूप में रखेंगे जो चीज़ समय पर और अच्छी रीति तैयार हो जाए।
  • अगर बीच में आग बुझ जाये तो समय पर चीज़ तैयार हो सकेगी?
  • भल तैयार होगी परन्तु समय पर नहीं।
  • तो आपकी योग अग्नि भी बीच-बीच में ढीली हो जाती है तो सम्पन्न बनेंगे लेकिन लास्ट में बनेंगे।
  • लास्ट में सम्पन्न बनने वाले को फास्ट और फर्स्ट राज्य भाग्य का अधिकार नहीं मिल सकता।
  • आप सभी का लक्ष्य फर्स्ट जन्म में राज्य भाग्य करने का है या दूसरे-तीसरे जन्म में आयेंगे।
  • पहले जन्म में आना है ना?
  • तपस्या वर्ष अर्थात् फास्ट पुरुषार्थ कर फर्स्ट जन्म में फर्स्ट नम्बर आत्माओं के साथ राज्य में आना।
  • घर में साथ चलना है ना?
  • फिर राज्य में भी ब्रह्मा बाप के साथ आना है।
  • तो समझा तपस्या वर्ष क्यों रखा है?
  • एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाओ।
  • अभी भी न चाहते भी व्यर्थ चल जाता है।
  • व्यर्थ का तरफ कोई-कोई समय शुद्ध-श्रेष्ठ संकल्प से भारी हो जाता है।
  • तपस्या अर्थात् व्यर्थ संकल्प की समाप्ति क्योंकि यह समाप्ति ही सम्पूर्णता को लायेगी।
  • समाप्ति के बिना सम्पूर्णता नहीं आयेगी।
  • तो आज के दिन से तपस्या वर्ष आरम्भ कर रहे हो।
  • उमंग-उत्साह के लिए बापदादा मुबारक देते हैं।
  • चारों ही सब्जेक्ट में फुल पास होने की मार्क्स लेनी है।
  • ऐसे नहीं समझना कि मेरी तीन सब्जेक्ट तो ठीक है, सिर्फ एक में कमी है।
  • फुल पास हो जायेंगे?
  • नहीं, फिर भी पास की लिस्ट में आयेंगे।
  • फुल पास अर्थात् चारों सब्जेक्ट में फुल मार्क्स हो।
  • सदा हर आत्मा के प्रति कल्याण की भावना, चाहे वह आपकी स्थिति को हिलाने की भी कोशिश करे लेकिन अकल्याण करने वाले के ऊपर भी कल्याण की भावना, कल्याण की दृष्टि, कल्याण की वृत्ति, कल्याणमय कृति।
  • इसको कहा जाता है कल्याणकारी आत्मा।
  • शिव का अर्थ भी कल्याणकारी है ना?
  • तो शिव जयन्ती अर्थात् कल्याणकारी भावना।
  • कल्याण करने वाले के ऊपर कल्याण करना यह तो अज्ञानी भी करते हैं।
  • अच्छे के साथ अच्छा चलना यह तो सभी जानते हैं।
  • लेकिन अकल्याण के वृत्ति वाले को अपने कल्याण की वृत्ति से परिवर्तन करो या क्षमा करो।
  • परिवर्तन न भी कर सकते, क्षमा तो कर सकते हो ना!
  • मास्टर क्षमा के सागर तो हो ना!
  • तो आपकी क्षमा उस आत्मा के लिए शिक्षा हो जायेगी।
  • आजकल शिक्षा देने से कोई समझता, कोई नहीं समझता।
  • यह करो तो यह शिक्षा हो जायेगी।
  • क्षमा अर्थात् शुभ भावना की दुवाएं देना, सहयोग देना।
  • शिक्षा देने का समय अभी चला गया।
  • अभी स्नेह दो, सम्मान दो, क्षमा करो।
  • शुभ भावना रखो, शुभ कामना रखो - यही शिक्षा की विधि है।
  • वह विधि अब पुरानी हो गई।
  • तो नई विधि आती है ना?
  • तपस्या वर्ष में इस नई विधि से सर्व को और समीप लाओ।
  • सुनाया था ना कि दाने कुछ तैयार हो भी गये हैं लेकिन माला अभी तैयार नहीं है।
  • धागा भी है, दाने भी है लेकिन दाना दाने के समीप नहीं है इसलिए माला तैयार नहीं है।
  • अपनी रीति से दाना तैयार है लेकिन संगठन में, समीपता में तैयार नहीं है।
  • तो तपस्या वर्ष में बाप समान तो बनना ही है लेकिन दाना दाने के समीप भी आना है।
  • समझा।
  • बाकी योगी थे, योगी है, सदा योगी जीवन में ही रहना है।
  • ड्रामा की हर सीन को न्यारे-प्यारे बन देखते चलो।
  • ड्रामा की हर सीन प्यारी है।
  • दुनिया के लिए जो अप्यारी सीन है, वह आपके लिए प्यारी है।
  • जो भी होता है उसमें कोई राज़ भरा हुआ होता है।
  • राज़ को जानने से कभी किसी बात में, किसी दृश्य में नाराज नहीं होंगे।
  • राज़ को जानने वाले नाराज नहीं होते।
  • राज़ को न जानने वाले नाराज होते हैं।
  • डबल विदेशी भी इस बारी शिव जयन्ती मनाने टाइम पर पहुँच गये हैं। दृढ़ निश्चय रखा कि जाना ही है तो पहुँच गये ना?
  • जाये न जाये - यह सोचने वाले रह गये।
  • अभी तो यह कुछ भी नहीं है, अभी तो होना है।
  • अभी प्रकृति ने फुल फोर्स की हलचल शुरू नहीं की है।
  • करती है लेकिन फिर आप लोगों को देखकर थोड़ा ठण्डी हो जाती है।
  • वह भी डर जाती है कि मेरे मालिक तैयार नहीं हैं।
  • किसकी दासी बनें?
  • निर्भय हो ना?
  • डरने वाले तो नहीं हो ना?
  • लोग डरते हैं मरने से और आप तो है ही मरे हुए।
  • पुरानी दुनिया से मरे हुए हो ना?
  • नई दुनिया में जीते हो, पुरानी दुनिया से मरे हुए हो, तो मरे हुए को मरने से क्या डर लगेगा?
  • और ट्रस्टी हो ना?
  • अगर कोई भी मेरापन होगा तो माया बिल्ली म्याऊं म्याऊं करेगी।
  • मैं आऊं, मैं आऊं...।
  • आप तो हो ही ट्रस्टी।
  • शरीर भी मेरा नहीं।
  • लोगों को मरने का फिकर होता है या चीज़ों का या परिवार का फिक्र होता है।
  • आप तो हो ही ट्रस्टी।
  • न्यारे हो ना, कि थोड़ा-थोड़ा लगाव है?
  • बॉडी कॉन्सेसनेस है तो थोड़ा-थोड़ा लगाव है, इसलिए तपस्या अर्थात् ज्वाला स्वरूप, निर्भय। अच्छा।
  • दोनों मुरब्बी दादियां सुन रही हैं, देख रही हैं।
  • कुछ नवीनता देखनी चाहिए ना।
  • बापदादा ने पहले भी सुनाया कि एक है वाणी की सेवा, दूसरी है फरिश्ता मूर्त और शक्तिशाली स्नेहमयी दृष्टि की सेवा।
  • कुछ समय इन्हों को यह सेवा का पार्ट मिला हुआ है।
  • आदि से वाणी और कर्म की सेवा तो करती ही रही है।
  • इस विधि की सेवा का यह भी ड्रामा में है, अन्त में यही सेवा रह जायेगी।
  • यह पार्ट थोड़े समय के लिए इन्हों को मिला है।
  • फिर भी मुरब्बी बच्चे हैं ना।
  • इन्हों के हिसाब-किताब चुक्तू होने में भी सेवा है।
  • निमित्त हिसाब है लेकिन राज़ सेवा का है।
  • बेहद के खेल में यह भी एक वन्डरफुल खेल है।
  • दोनों का पार्ट भी नवीनता है।
  • यह जल्दी-जल्दी हिसाब-किताब चुक्तू कर सम्पन्नता और सम्पूर्णता के समीप जा रही हैं।
  • अकेले नहीं जायेंगे - यह कोई नहीं सोचो।
  • हर एक को चुक्तू तो करना ही है लेकिन कोई सिर्फ चुक्तू करता है, कोई चुक्तू करते भी सेवा करते हैं।
  • सारे विजयी बन गये ना?
  • सबकी दुवाओं की दवा भी सूली से कांटा कर देती है।
  • हिसाब-किताब के प्रभाव में नहीं आई।
  • दोनों ठीक हो गये हैं।
  • सिर्फ परहेज में है।
  • रेस्ट भी परहेज है।
  • जैसे खाने में परहेज होती है।
  • यह फिर चलने फिरने बोलने की परहेज है।
  • स्नेह क्या नहीं कर सकता है!
  • कहावत है - स्नेह पत्थर को पानी कर सकता है, तो यह बीमारी नहीं बदल सकता है?
  • बदल तो गई ना!
  • हार्ट की बीमारी बदल गई।
  • पत्थर से पानी तो हो गया ना!
  • तो यह आप सबका प्यार है।
  • बाकी अब सिर्फ पानी रह गया, पत्थर खत्म हो गया।
  • रेस्ट में रहने से दोनों के चेहरे चमक गये हैं।
  • परिवार का प्यार भी बहुत मदद देता है।


  • चारों ओर के सर्व विश्व कल्याण की श्रेष्ठ भावना रखने वाले, चारों ओर के ऐसे दृढ़ संकल्प करने वाले, तपस्या द्वारा स्वयं को, विश्व को परिवर्तन करने वाले, एकाग्रता की शक्ति से एकरस तीव्र स्थिति में रहने वाले, ऐसे तपस्वी आत्माओं को स्नेही आत्माओं को, सदा बाप के साथ रहने वाली आत्माओं को, सदा भिन्न-भिन्न विधि से सेवा में साथी रहने वाले बच्चों को महा-परमात्म जयन्ती की मुबारक और यादप्यार स्वीकार हो और साथ-साथ नमस्ते।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021-22)
    • समय और परिस्थिति प्रमाण अपनी श्रेष्ठ स्थिति बनाने वाले अष्ट शक्ति सम्पन्न भव
    • जो बच्चे अष्ट शक्तियों से सम्पन्न हैं वो हर कर्म में समय प्रमाण, परिस्थिति प्रमाण, हर शक्ति को कार्य में लगाते हैं।
    • उन्हें अष्ट शक्तियां इष्ट और अष्ट रत्न बना देती हैं।
    • ऐसे अष्ट शक्ति सम्पन्न आत्मायें जैसा समय, जैसी परिस्थिति वैसी स्थिति सहज बना लेती हैं।
    • उनके हर कदम में सफलता समाई रहती है।
    • कोई भी परिस्थिति उन्हें श्रेष्ठ स्थिति से नीचे नहीं उतार सकती।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
    • जो कर्म हम करेंगे हमें देख और करेंगे'' - यह स्लोगन सदा स्मृति में रहे तो कर्म श्रेष्ठ हो जायेंगे।