20-05-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन



मीठे बच्चे - अपने इस जीवन को कौड़ी से हीरे जैसा बनाना है तो समय को सफल करो, अवगुणों को निकालो, खाने-पीने, सोने में समय बरबाद मत करो


प्रश्नः-

मनुष्यों ने किस एक शब्द से सबको भगवान का रूप समझ लिया है?

उत्तर:-

बाबा कहता इस समय मैं बहुरूपी हूँ, ऐसे नहीं यहाँ जब मुरली चलाता तो परमधाम खाली हो जाता है, मुझे तो इस समय बहुत काम करने पड़ते हैं, बहुत सर्विस चलती है।

बच्चों को, भक्तों को साक्षात्कार कराना पड़ता है।

इस समय मैं बहुरूपी हूँ, इसी एक शब्द से मनुष्यों ने कहा है यह सब भगवान के रूप हैं।

 

प्रश्नः-

बाप की किस श्रीमत को पालन करने वाले बच्चे सपूत हैं?

उत्तर:-

बाबा कहते बच्चे कभी भी डिस सर्विस न करो, टाइम बहुत वैल्युबुल है, इसे सोने में न गँवाओ।

कम से कम 8 घण्टा मेरे खातिर दो।

यह श्रीमत पालन करने वाले सपूत हैं।

 

गीत:- तूने रात गँवाई सोके...


  • ओम् शान्ति।
  • बच्चों को बाप समझा रहे हैं।
  • बच्चे जानते हैं - हम सब बच्चे हैं बाप के।
  • हमारे शरीर का बाप तो है ही शारीरिक लेकिन आत्मा जो अशरीरी है उसका बाप भी अशरीरी है।
  • बाप ने समझाया है बेहद के बाप से बेहद सुख का वर्सा मिलता है।
  • अभी शुरू होता है जो त्रेता अन्त तक चलता है।
  • तुम अभी पुरूषार्थ कर रहे हो, भविष्य 21 जन्मों की प्रालब्ध लिए।
  • फिर बाद में हद का शुरू होता है, बेहद का पूरा हो जाता है।
  • यह गुह्य बातें हैं ना।
  • जानते हैं आधाकल्प हम हद के बाप से वर्सा लेते और बेहद के बाप को याद करते आये हैं।
  • आत्मा के सम्बन्ध में सभी ब्रदर्स हैं।
  • वह है बाप।
  • कहते भी हैं हम आत्मायें भाई-भाई हैं फिर जब मनुष्य सृष्टि की रचना रची जाती है तो भाई बहन हो जाते हैं।
  • यह नई रचना है ना।
  • पीछे फिर परिवार बढ़ता है।
  • काका, चाचा, मामा सब पीछे होते हैं।
  • इस समय बाप रचना रच रहे हैं।
  • बच्चे और बच्चियाँ हैं, दूसरा कोई सम्बन्ध नहीं है।
  • अब तुम जीते जी भाई बहन बन जाते हो।
  • दूसरे कोई सम्बन्ध से तैलुक नहीं है।
  • अभी तुमको नया जन्म मिल गया है।
  • जानते हो हम अभी ईश्वरीय सन्तान हैं।
  • शिव वंशी ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हैं।
  • ब्रह्माकुमार कुमारियों का और कोई सम्बन्ध नहीं।
  • इस समय सारी दुनिया पतित है, इनको पावन बनाना पड़े।
  • कहते हैं बाबा हम आपके हैं।
  • बाप कहते हैं बच्चे भविष्य के लिए पुरूषार्थ करके अपना जीवन हीरे जैसा बनाना है।
  • सारा दिन सिर्फ खाना पीना, रात को सोना और बाप को याद न करना...इससे कोई हीरे जैसा जन्म नहीं मिलेगा।
  • बाप कहते हैं - शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते, गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनना है।
  • समझते हैं हम कौड़ी से हीरे जैसा अर्थात् मनुष्य से देवता बन रहे हैं।
  • मनुष्यों में तो बहुत अवगुण हैं।
  • देवताओं में गुण होते हैं तब तो मनुष्य देवताओं के आगे जाकर अपने अवगुण बताते हैं ना।
  • आप सर्वगुण सम्पन्न... हम पापी नींच हैं।
  • अब बाप कहते हैं अपने से आसुरी गुणों को निकाल ईश्वरीय दैवी गुण धारण करने हैं।
  • बाप तो है निराकार, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप।
  • वह सत है, चैतन्य है, ज्ञान का सागर है।
  • यह ज्ञान तो बुद्धि में बैठा हुआ है ना।
  • यह है नया ज्ञान।
  • कोई वेद शास्त्रों में यह ज्ञान नहीं है।
  • अभी जो तुम सुनते हो यह फिर प्राय: लोप हो जायेगा।
  • अभी तुम जानते हो हम आसुरी गुण वाले मनुष्य से दैवीगुण धारण कर बाप द्वारा देवता बन रहे हैं।
  • पापों का बोझा जो सिर पर है वह बाप की याद से हम भस्म करते हैं।
  • भक्ति मार्ग में तो यही सुनाते आये हैं कि पानी में स्नान करने से पाप भस्म हो जायेंगे।
  • परन्तु पानी से तो पावन बन नहीं सकते।
  • अगर ऐसा होता तो फिर पतित-पावन बाप को क्यों याद करते। कुछ भी समझते नहीं हैं।
  • समझदार और बेसमझ यह भी एक नाटक बना हुआ है।
  • अभी तुम कितने समझदार बन रहे हो।
  • सारे सृष्टि चक्र को जानते हो।
  • हिस्ट्री-जॉग्राफी को जानना यह भी समझ है ना।
  • अगर नहीं जानते हैं तो उनको बेसमझ कहेंगे ना।
  • अभी तुम बच्चे जानते हो।
  • बाबा ने अपना परिचय अपने बच्चों को दिया है कि मैं आया हूँ तुमको हीरे जैसा बनाने।
  • ऐसे नहीं यहाँ से सुनकर गये खाया पिया, जैसे आगे चलते थे .. वह तो कौड़ी जैसी लाइफ थी।
  • देवताओं की हीरे जैसी लाइफ है।
  • वह तो स्वर्ग में सुख भोगते थे।
  • चित्र भी हैं ना।
  • आगे तुम नहीं जानते थे कि हम ही सुखी थे, हम दु:खी हुए।
  • हमने 84 जन्म कैसे लिए - यह नहीं जानते थे।
  • अब मैं बताता हूँ।
  • अभी तुम औरों को भी समझाने लायक बने हो।
  • बाप समझदार बनाते हैं तो फिर औरों को समझानी देनी चाहिए।
  • ऐसे नहीं घर में जाने से फिर वही पुरानी चाल हो जाए।
  • शिक्षा पाकर फिर औरों को शिक्षा दो।
  • बाप का परिचय देने जाना पड़ता है।
  • बेहद का बाप तो सबका एक ही है।
  • सभी धर्म वाले उनको ही पुकारते हैं, हे परमपिता परमात्मा वा हे प्रभू।
  • ऐसे कोई नहीं होगा जो परमात्मा को याद नहीं करता होगा।
  • सभी धर्म वालों का बाप एक ही है।
  • एक को सभी याद करते हैं।
  • बाप से वर्सा पाने के सभी हकदार हैं।
  • वर्से पर भी समझाना पड़े।
  • बाप कौन सा वर्सा देते हैं?
  • मुक्ति और जीवनमुक्ति।
  • यहाँ तो सब जीवन बन्ध हैं।
  • बाप आकर सबको रावण के बन्धन से छुड़ाते हैं।
  • इस समय कोई भी जीवनमुक्त है नहीं क्योंकि रावण राज्य है।
  • देह-अभिमानी हैं।
  • देवतायें देही-अभिमानी होने से जानते हैं हम आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं।
  • सिर्फ परमात्मा को नहीं जानते हैं।
  • परमात्मा को जानें तो फिर सारे सृष्टि चक्र को जान जाएं।
  • त्रिकालदर्शी सिर्फ तुम ही हो।
  • ब्राह्मणों को ही बाप बैठ त्रिकालदर्शी बनाते हैं।
  • जब देवतायें भी त्रिकालदर्शी नहीं तो उनकी जो वंशावली आती है उनमें भी यह ज्ञान नहीं रहता, तो फिर दूसरों में यह कहाँ से आयेगा।
  • देने वाला भी एक ही है।
  • यह सहज राजयोग की नॉलेज और कोई को हो नहीं सकती।
  • देवी-देवता धर्म का शास्त्र भी तो होना चाहिए।
  • तो ड्रामा अनुसार उन्हों को फिर शास्त्र बनाने पड़ते हैं।
  • गीता भागवत आदि सब ऐसे ही फिर बनेंगे।
  • ग्रंथ भी ऐसे बनेंगे।
  • अभी ग्रंथ कितना बड़ा हो गया है।
  • नहीं तो इतना छोटा था - हाथ से लिखा हुआ था।
  • फिर वृद्धि में लाया है।
  • यह भी ऐसे है।
  • इनका अगर ग्रंथ बैठ बनाओ तो बहुत बड़ा हो जाए।
  • परन्तु फिर उनको शार्ट किया जाता है।
  • पिछाड़ी में बाप दो अक्षर कहते हैं - मनमनाभव।
  • मैं तुमको सब वेदों शास्त्रों का सार समझाता हूँ।
  • तो जरूर नाम तो लेना पड़ेगा ना।
  • फलाने शास्त्र में यह-यह है।
  • वह कोई धर्म का शास्त्र नहीं।
  • भारत का धर्म एक ही है।
  • बाकी वह किस धर्म के शास्त्र हैं, कब सिद्ध नहीं कर सकते।
  • भारत का शास्त्र है ही एक गीता।
  • गीता भी सर्व शास्त्र शिरोमणी गाई हुई है।
  • गीता की महिमा तुम एक्यूरेट जानते हो।
  • जिस गीता से बाप आकर भारत को स्वर्ग बनाते हैं।
  • भारत के शास्त्र को मान बहुत मिलता है।
  • परन्तु गीता का भगवान कौन था, उनको न जानने कारण झूठा कसम उठाते हैं।
  • अब उनको करेक्ट करो।
  • भगवान ने तो ऐसे कहा नहीं है कि मैं सर्वव्यापी हूँ।
  • बच्चे ने प्रश्न पूछा - शिवबाबा जब इधर आते हैं, मुरली चलाते हैं तो क्या परमधाम में भी हैं?
  • बाबा कहते हैं इस समय तो हमको बहुत काम करने पड़ते हैं।
  • बहुत सर्विस चलती है।
  • कितने बच्चों को, भक्तों आदि को भी साक्षात्कार कराता हूँ।
  • इस समय मैं बहुरूपी हूँ।
  • बहुरूपी अक्षर से भी मनुष्यों ने समझा है - सब रूप उनके हैं।
  • माया उल्टा लटका देती है, फिर बाप सुल्टा बनाते हैं।
  • तुम बच्चे अभी मुक्तिधाम में जाने का पुरूषार्थ करते हो।
  • तुम्हारी बुद्धि है मुक्तिधाम तरफ।
  • ऐसा कोई मनुष्य पुरूषार्थ करा न सके जो तुमको बाप करा रहे हैं।
  • अब अपना बुद्धियोग वहाँ लगाओ।
  • जीते जी इस शरीर को भूलते जाओ।
  • मनुष्य मरते हैं तो कहते हैं स्वर्ग पधारा फिर भी रोते रहते हैं।
  • बाप के जो सपूत बच्चे होंगे वही बाप के मददगार बन सर्विस करेंगे।
  • वह कभी डिससर्विस नहीं करेंगे।
  • अगर कोई डिससर्विस करते हैं तो गोया अपनी करते हैं।
  • बाबा कहते हैं मीठे बच्चे यह टाइम बहुत वैल्युबुल है।
  • भविष्य 21 जन्म के लिए तुम कमाई करते हो।
  • तुम जानते हो हमको विश्व की बादशाही मिलती है, कितनी भारी कमाई है तो उसमें लग जाना चाहिए।
  • बाप को याद करना है।
  • जैसे गवर्मेन्ट की सर्विस में 8 घण्टा रहते हैं।
  • बाबा भी कहते हैं मेरे खातिर 8 घण्टा दो।
  • रात को सोकर अपना समय बरबाद मत करो।
  • दिन रात कमाई करनी है।
  • यह तो बड़ी सहज सिर्फ बुद्धि की बात है।
  • मनुष्य जब धन्धे पर जाते हैं तो पहले मन्दिर के सामने हाथ जोड़कर फिर दुकान पर जाते हैं।
  • लौटते समय फिर भूल जाते हैं, घर याद आ जाता है।
  • वह भी अच्छा है।
  • परन्तु अर्थ कुछ भी नहीं जानते।
  • तुम बच्चों को कलकत्ते में तो बहुत अच्छी रीति समझाना चाहिए - काली माता का वहाँ बड़ा मान है।
  • बंगाली लोगों की रसम-रिवाज अपनी होती है।
  • ब्राह्मणों को मछली जरूर खिलाते हैं।
  • बड़े आदमी अपने तलाव बनाए फिर उसमें मछलियाँ पालते हैं तो ब्राह्मणों को भी वह खिलायेंगे।
  • अभी तुम पक्के वैष्णव बनते हो।
  • प्रैक्टिकल में तुम विष्णु की पुरी में चलते हो।
  • ऐसे नहीं कि वहाँ 4 भुजा वाले मनुष्य होंगे।
  • लक्ष्मी-नारायण को विष्णु कहा जाता है।
  • दो भुजा उनकी, दो उनकी।
  • तुम महा-लक्ष्मी की पूजा करते हो, वास्तव में विष्णु की करते हो।
  • दोनों हैं ना।
  • परन्तु इस समय महिमा माताओं की है।
  • जगत अम्बा का गायन है।
  • लक्ष्मी का भी नाम गाया हुआ है।
  • बाप आकर माताओं द्वारा सबको सद्गति देते हैं।
  • जगत अम्बा वही फिर राज राजेश्वरी बनती है।
  • माँ की पूजा होती है।
  • वास्तव में जगत अम्बा तो एक है ना।
  • जैसे शिव का एक लिंग बनाते हैं वैसे फिर छोटे-छोटे सालिग्राम भी बनाते हैं।
  • वैसे काली के भी छोटे मन्दिर बहुत हैं।
  • वह जैसे माँ की सन्तान हैं।
  • अभी बाप तुमको अपना बनाते हैं, इसको ही बलि चढ़ना कहा जाता है।
  • तुम बलि चढ़ते हो उन पर, इस ब्रह्मा पर नहीं।
  • तो बाप समझाते हैं - अभी टाइम वेस्ट नहीं करना चाहिए।
  • धन्धा आदि भल करो।
  • अगर पैसा काफी है खाने के लिए तो फिर जास्ती माथा क्यों मारते हो।
  • हाँ शिवबाबा के यज्ञ में देते हो तो जैसे विश्व की सेवा में लगाते हो।
  • बाबा कहेंगे सेन्टर्स बनाओ, जहाँ यह बच्चियाँ मनुष्य को देवता बनाने का रास्ता बतावें।
  • यह पढ़ाई कितनी फर्स्टक्लास है।
  • बहुतों का कल्याण हो जायेगा।
  • बाप कहते हैं लाख करोड़ कमाओ, परन्तु काम ऐसा करो जिससे भारत पावन बने, एवर हेल्दी बने।
  • तुम भविष्य के लिए अभी पूरा वर्सा लेते हो।
  • वहाँ गरीब तो कोई होते नहीं।
  • वहाँ भी अभी की प्रालब्ध भोगते हो तो इतनी धारणा करनी चाहिए।
  • तुम्हारा एक-एक पैसा हीरे समान है, इनसे भारत स्वर्ग बनता है।
  • बाकी जो बचेगा वह तो खत्म हो जायेगा।
  • जो कुछ पैसा बचे इस सर्विस में लगाओ।
  • यह बड़े ते बड़ी हॉस्पिटल है।
  • कई गरीब बच्चे कहते हैं हम 8 आना देते, मकान में ईट लगा दो।
  • हम जानते हैं यहाँ से मनुष्य एवरहेल्दी बनेंगे।
  • यहाँ तो ढेर आयेंगे।
  • क्यू ऐसी लगेगी जो कब नहीं देखी हो।
  • तो कितनी खुशी रहनी चाहिए, हम क्या से क्या बनते हैं।
  • हम शिवबाबा से बेहद का वर्सा लेते हैं।
  • बाप है निराकार ज्ञान का सागर।
  • वह इस रथ में प्रवेश करते हैं।
  • तो बच्चों को बहुत रहमदिल बनना चाहिए।
  • अपने पर भी और दूसरों पर भी रहम करना चाहिए।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) भारत को पावन बनाने की सेवा में अपना तन-मन-धन सफल करना है।
  • पैसे को हीरा समझ स्वर्ग बनाने की सेवा में लगाना है, व्यर्थ नहीं गँवाना है।
  • 2) भविष्य 21 जन्मों की प्रालब्ध बनाने के लिए दिन-रात कमाई जमा करनी है, समय बरबाद नहीं करना है।
  • शरीर को भूलने का पुरूषार्थ करना है।
  • वरदान:-
  • All Blessings of 2021-22
    • अकालतख्त सो दिलतख्तनशीन बन स्वराज्य के नशे में रहने वाले प्रकृतिजीत, मायाजीत भव
    • अकालतख्त नशीन आत्मा सदा रूहानी नशे में रहती है।
    • जैसे राजा बिना नशे के राज्य नहीं चला सकता, ऐसे आत्मा यदि स्वराज्य के नशे में नहीं तो कर्मेन्द्रियों रूपी प्रजा पर राज्य नहीं कर सकती इसलिए अकालतख्त नशीन सो दिलतख्तनशीन बनो और इसी रूहानी नशे में रहो तो कोई भी विघ्न वा समस्या आपके सामने आ नहीं सकती।
    • प्रकृति और माया भी वार नहीं कर सकती।
    • तो तख्तनशीन बनना अर्थात् सहज प्रकृतिजीत और मायाजीत बनना।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
    • संकल्पों की सिद्धि प्राप्त करनी है तो आत्म शक्ति की उड़ान भरते रहो।