19-05-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन



"मीठे बच्चे - इस समय इस भारत को श्रीमत की दरकार है, श्रीमत से ही कौड़ी जैसा भारत हीरे जैसा बनेगा, सबकी गति सद्गति होगी''


 

प्रश्नः-

सर्वशक्तिवान बाप में कौन सी शक्ति है, जो मनुष्यों में नहीं?

उत्तर:-

रावण को मारने की शक्ति एक सर्वशक्तिमान् बाप में है, मनुष्यों में नहीं।

राम की शक्ति के सिवाए यह रावण मर नहीं सकता।

बाप जब आते हैं तब तुम बच्चों को ऐसी शक्ति देते हैं जिससे तुम भी रावण पर जीत पा लेते हो।

 

  • ओम् शान्ति। मीठे बच्चे जानते हैं यह होलीहंसों की सभा है, यहाँ सब ब्राह्मण बैठे हैं।
  • पवित्र को ब्राह्मण कहा जाता है, अपवित्र को शूद्र वर्ण का कहेंगे।
  • जो पुरूषार्थी हैं उन्हों को हाफ कास्ट कहेंगे, न इधर के, न उधर के।
  • एक पांव उस पार जाने वाली नांव में, एक पांव इस पार वाली नांव में होगा तो चीर जायेंगे इसलिए निर्णय करना चाहिए - किस तरफ जावें?
  • अगर कोई असुर बैठे होंगे तो विघ्न डालेंगे।
  • यह कौन समझाते हैं? शिवबाबा।
  • शिव के लिए ही बाबा अक्षर मुख से निकलता है।
  • शिवबाबा ही झोली भरने वाला है।
  • बाप से जरूर वर्सा मिलेगा।
  • शिव के कितने अथाह मन्दिर है, वह भी है निराकार, विश्व का रचयिता।
  • विश्व में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, तो जरूर बाप से वर्सा मिला होगा।
  • अभी तुम शूद्र से ब्राह्मण बने हो, शूद्र हैं पत्थरबुद्धि, लक्ष्मी-नारायण तो पारसबुद्धि थे ना।
  • माया से बुद्धि मारी जाती है।
  • माया का नाम भारत में मशहूर है।
  • इस समय माया रावण का राज्य है अर्थात् रावण सम्प्रदाय हैं इसलिए रावण को मारते हैं, परन्तु मरता नहीं।
  • राम की शक्ति के सिवाए रावण पर जीत पा नहीं सकते।
  • सर्वशक्तिमान् से ही शक्ति मिल सकती है।
  • वह तो है एक परमपिता परमात्मा।
  • उनका न सूक्ष्म शरीर है, न स्थूल - यह भी किसकी बुद्धि में नहीं आता कि वह निराकार फिर भारत में कैसे आया।
  • आत्मा आरगन्स के बिगर तो कर्म कर नहीं सकती।
  • कुछ भी समझते नहीं, इसलिए पत्थरबुद्धि कहा जाता है।
  • बाप बैठ समझाते हैं भगवान है ऊंच ते उंच।
  • उनकी सबसे ऊंच मत है।
  • नहीं तो भगवान का सिमरण क्यों करते हैं।
  • उनकी मत सिमरते हैं।
  • जरूर भगवान के आने का भी ड्रामा में पार्ट है।
  • मनुष्य समझते नहीं।
  • बहुत लोग कहते हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले गीता सुनाई गई थी।
  • परन्तु यह तो बताओ वह गीता किस नेशन को, किस युग में सुनाई गई और किसने सुनाई?
  • एक ही शास्त्र में कृष्ण भगवानुवाच लिखा हुआ है फिर रूद्र ज्ञान यज्ञ भी कहते हैं।
  • रूद्र तो शिवबाबा को कहा जाता है।
  • कृष्ण को कभी बाप नहीं कहेंगे।
  • शिवबाबा कहा जाता है।
  • शिवबाबा ही नॉलेजफुल, ब्लिसफुल है तब तो भक्त लोग पुकारते हैं।
  • समझते हैं भक्ति करने के बाद भगवान मिलेगा।
  • अच्छा भक्ति कब शुरू होती, भगवान कब मिलता?
  • पाप आत्माओं की दुनिया से पुण्य आत्माओं की दुनिया में कब जाना होता, यह कोई नहीं जानते।
  • तुम भी शूद्र वर्ण के थे।
  • अब तुम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण कहलाते हो।
  • ब्राह्मण किसने बनाया?
  • शिवबाबा ने।
  • यह है रचयिता।
  • ब्राह्मण वर्ण है सबसे ऊंच।
  • ब्राह्मणों की चोटी भी है क्योंकि साकार में है ना।
  • परन्तु उन्हों को बनाने वाला निराकार है।
  • वह परमपिता परम आत्मा माना परमात्मा, यह अक्षर पक्का याद कर लो।
  • ड्रामा अनुसार जब सृष्टि तमोप्रधान बन जाती है तब मुझे आना पड़ता है।
  • मैं भी ड्रामा के बन्धन में बंधा हुआ हूँ।
  • तुमको पतित से पावन बनाए सुख-शान्ति का वर्सा आकर देता हूँ।
  • बाकी सबको शान्ति का वर्सा मिल जाता है।
  • बरोबर सतयुग त्रेता नई दुनिया थी, जो राम ने स्थापन की।
  • राम से भी शिवबाबा अक्षर ठीक है।
  • शिवबाबा अक्षर सबके मुख पर है।
  • तो बाबा नई दुनिया का रचयिता है, वह आकर वर्सा देते हैं।
  • गीता ब्राह्मणों को ही सुनानी है।
  • जब शूद्र से ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण बनें तब उनको गीता सुनाई।
  • ब्राह्मणों का ज्ञान का तीसरा नेत्र खोला इसलिए कहते हैं ज्ञान अंजन सतगुरू दिया, अज्ञान अन्धेर विनाश।
  • बच्चे कहते हैं बाबा नर्क जैसी दुनिया से अब स्वर्ग में ले चलो।
  • यह है शिव भगवानुवाच, शिवाचार्य वाच।
  • शिवाचार्य (शिवबाबा) बेहद का संन्यास सिखलाते हैं।
  • शंकराचार्य का है हद का संन्यास।
  • बेहद का बाप कहते हैं पुरानी दुनिया को भूलो।
  • अब तुमको सदा सुख की दुनिया में चलना है।
  • कृष्णपुरी और कंसपुरी कहते हैं ना।
  • कृष्णपुरी सतयुग को, कंसपुरी कलियुग को कहा जाता है।
  • दोनों इकट्ठे हो न सके।
  • सतयुग में फिर कंस कहाँ से आया?
  • बुद्धि से काम लेना चाहिए ना।
  • अब बाप खुद आया है स्वर्ग का अथाह सुख देने।
  • बाबा कहते हैं इस अन्तिम जन्म में जो पढ़े वह पढ़े, फिर तो राजाई स्थापन हो जाती है।
  • बाप ही आकर शूद्र से ब्राह्मण सो देवता बनाते हैं।
  • वो लोग हिन्दू को क्रिश्चियन या बौद्धी बनायेंगे।
  • परन्तु यह कभी सुना कि शूद्र वर्ण को ब्राह्मण वर्ण बनाया!
  • यह तो शिवबाबा का ही काम है।
  • वो ही ब्राह्मणों को फिर देवता बनाते हैं।
  • हरेक अपने से पूछे कि हम पहले किस धर्म में और किस वर्ण के थे?
  • गुरू कौन था?
  • शास्त्र कौन सा पढ़ते थे?
  • गुरू से क्या मंत्र मिला?
  • फिर कब से शिवबाबा ने ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण वर्ण में लाया?
  • यह हर एक से लिखाना चाहिए।
  • अब तुम बच्चों को तो बाप कहते हैं मुझे याद करो।
  • माया रावण ने तुम्हारी क्या दुर्दशा कर दी।
  • अब तुम बने हो ब्राह्मण सम्प्रदाय, फिर दैवी सम्प्रदाय बनना है।
  • तुम्हें निराकार परमपिता परमात्मा ने कनवर्ट किया है।
  • बच्चों को हर एक से लिखाना चाहिए कि किस धर्म के थे, किसको पूजते थे?
  • गुरू किया है या नहीं?
  • फिर ब्राह्मण वर्ण में कौन ले आया?
  • यह बाबा भी लिखेंगे कि हम हिन्दू धर्म के कहलाते थे।
  • गुरू बहुत किये।
  • शास्त्र बहुत पढ़े।
  • सिक्ख धर्म वाले कहेंगे हम सिक्ख धर्म के हैं।
  • सिर्फ भारतवासियों को अपने देवी-देवता धर्म का पता नहीं है।
  • ऐसे नहीं कि सिक्ख धर्म वाले अपने को देवता कहलायेंगे।
  • हर एक अपने को अपने धर्म वाला ही कहलायेंगे।
  • अब बाप कहते हैं जो शिव के भक्त वा शिव की रचना देवी देवताओं के भक्त होंगे उन्हों को सुनाना है।
  • वे अच्छी रीति सुनेंगे।
  • सतयुग त्रेता में बरोबर सूयवंशी चन्द्रवंशी थे, जिन्हों के चित्र भी हैं।
  • इंगलिश में डिटीज्म कहा जाता है।
  • अभी बाबा देवी-देवता धर्म की स्थापना कर रहे हैं।
  • अब तुम ब्राह्मण वर्ण से देवता वर्ण वाले बन रहे हो।
  • भारतवासी ही आपेही पूज्य आपेही पुजारी बनते हैं।
  • सतयुग में पूज्य थे... बाबा कहते मैं तो एवर पूज्य हूँ।
  • अभी तुम यहाँ आये हो राजयोग सीखने।
  • भविष्य 21 जन्मों के लिए शिवबाबा से वर्सा लेने।
  • तो फालो करना चाहिए।
  • जब तक तुम ब्रह्मा वंशी नहीं बनेंगे तो ब्राह्मण कैसे कहलायेंगे?
  • अच्छा।आज भोग है।
  • ब्राह्मणों को खिलाने की भी रसम पड़ी हुई है।
  • बाकी ज्ञान का इससे तैलुक नहीं है।
  • यहाँ तो है ज्ञान सागर और ज्ञान गंगाओं का मिलन।
  • वहाँ फिर देवताओं और तुम ब्राह्मणों का मेला लगता है, इसमें मूंझने की बात नहीं।
  • बाप कहते हैं देह सहित देह के सब सम्बन्धों से ममत्व मिटाते जाओ।
  • मुझ एक को याद करो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी।
  • मैं प्रतिज्ञा करता हूँ तुमको स्वर्ग में भेज दूंगा।
  • रोज़ क्लास में पूछो - शिवबाबा के साथ प्रतिज्ञा करेंगे!
  • शिवबाबा कहते हैं मेरी मत पर चलो।
  • बाप की श्रीमत नामीग्रामी है।
  • श्रीमत अर्थात् श्रेष्ठ मत।
  • ब्रह्मा की मत भी गाई जाती है।
  • ब्रह्मा से भी ब्रह्मा का बाप शिव-बाबा ऊंच है ना।
  • जब भोजन पर बैठते हो तो भी शिवबाबा को याद करो।
  • मोस्ट बिलवेड बाप है।
  • जैसेकि उनके साथ हम भोजन पा रहे हैं।
  • इस याद से बहुत ताकत आयेगी।
  • परन्तु बच्चे घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं।
  • भारत को अब शिवबाबा के श्रीमत की दरकार है, क्योंकि बाप ही सर्व का सद्गति दाता, पतित-पावन है ना।
  • बाप और वर्से को याद करना है।
  • माया विघ्न भी अनेक प्रकार के डालेगी, उनसे डरना नहीं है।
  • ज्ञान तो बहुत सहज है।
  • बाकी योग में रहना, एक से बुद्धियोग जोड़ना, इसमें ही मेहनत है।
  • और जगह भटकने से तो एक शिवबाबा को याद करना अच्छा है ना।
  • गीता पढ़ने की भी बात नहीं।
  • जबकि बाप खुद आये हैं।
  • बाकी सब शास्त्र हुए बाल बच्चे, उनसे वर्सा मिल न सके।
  • बेहद का वर्सा एक ही बेहद के बाप से मिलता है।
  • अच्छा! बापदादा तो बच्चों के सामने बैठा है।
  • बाप कहते हैं मैं तुम्हारा बाप ब्रह्मा द्वारा मम्मा का, दादा का, बच्चों का सबका यादप्यार देता हूँ।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) मोस्ट बिलवेड बाप को साथ में रख भोजन खाना है।
  • एक बाप से ही बुद्धियोग जोड़ना है।
  • एक की श्रीमत पर चलना है।
  • 2) बुद्धि से बेहद की पुरानी दुनिया को भूलना है, इसका ही संन्यास करना है।
  • वरदान:-
  • All Blessings of 2021-22
    • देह, देह के सम्बन्ध और पदार्थो के बन्धन से मुक्त रहने वाले जीवनमुक्त फरिश्ता भव
    • फरिश्ता अर्थात् पुरानी दुनिया और पुरानी देह से लगाव का रिश्ता नहीं।
    • देह से आत्मा का रिश्ता तो है लेकिन लगाव का संबंध नहीं।
    • कर्मेन्द्रियों से कर्म के सबंध में आना अलग बात है लेकिन कर्मबन्धन में नहीं आना।
    • फरिश्ता अर्थात् कर्म करते भी कर्म के बन्धन से मुक्त।
    • न देह का बन्धन, न देह के संबंध का बन्धन, न देह के पदार्थो का बन्धन - ऐसे बन्धन मुक्त रहने वाले ही जीवनमुक्त फरिश्ता हैं।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
    • स्थूल सम्पत्ति से भी अधिक मूल्यवान है - रूहानी स्नेह की सम्पत्ति।
    • मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य
    • बदनसीबी और खुशनसीबी
    • अब इन दोनों शब्दों का मदार किस पर चलता है? यह तो हम जानते हैं कि खुशनसीब बनाने वाला परमात्मा है, तो बदनसीब बनाने वाला खुद ही मनुष्य है। जब मनुष्य सर्वदा सुखी है तो उन्हों की अच्छी किस्मत कहते हैं और जब मनुष्य अपने को दु:खी समझते हैं तो वो अपने को बदनसीब समझते हैं। हम ऐसे नहीं कहेंगे कि बदनसीबी वा खुशनसीबी कोई परमात्मा द्वारा मिलती है, नहीं। तकदीर को बिगाड़ना वा बनाना, यह सब कर्मों के ऊपर ही मदार है। यह सब मनुष्यों के संस्कारों के ऊपर ही है। फिर जैसे पाप और पुण्य का संस्कार भरता है वैसे तकदीर बनती है परन्तु मनुष्य इस राज़ न जानने के कारण परमात्मा के ऊपर दोष रखते हैं। अब देखो, मनुष्य अपने को सुखी रखने के लिये कितने माया के तरीके निकालते हैं फिर उस ही माया से कोई अपने को सुखी समझते हैं और कोई फिर उस ही माया का संन्यास कर माया को छोड़ने से अपने को सुखी समझते हैं। मतलब तो कई प्रकार के प्रयत्न करते हैं परन्तु इतने तरीके करते भी रिजल्ट दु:ख के तरफ जा रही है। जब सृष्टि पर भारी दु:ख होता है तब उसी समय स्वयं परमात्मा आए गुप्त रूप में अपने ईश्वरीय योग पॉवर से दैवी सृष्टि की स्थापना कराए सभी मनुष्य आत्माओं को खुशकिस्मत बनाते हैं। 2) मनुष्य गाते हैं - तुम मात पिता हम बालक तेरे, तुम्हरी कृपा से सुख घनेरे... अब यह महिमा किसके लिये गाई हुई है? अवश्य परमात्मा के लिये गायन है क्योंकि परमात्मा खुद माता पिता रूप में आए इस सृष्टि को अपार सुख देता है। परमात्मा ने जरूर कभी तो सुख की सृष्टि बनाई है तभी तो उनको माता पिता कहकर बुलाते हैं। परन्तु मनुष्यों को यह पता ही नहीं कि सुख क्या चीज़ है? जब इस सृष्टि पर अपार सुख थे तब शान्ति भी थी, परन्तु अब वो सुख नहीं हैं। अब मनुष्य के अन्दर यह चाहना उठती है कि वो सुख हमें चाहिए, फिर कोई धन पदार्थ मांगते हैं, कोई बच्चे मांगते हैं, कोई तो फिर ऐसे भी मांगते हैं कि हम पतिव्रता नारी बनें, जब तक मेरा पति जिंदा है, हम दुहागिन (विधवा) न बनें। तो चाहना तो सुख की ही रहती है ना। तो परमात्मा भी कोई समय उन्हों की आश अवश्य पूर्ण करेंगे। सतयुग के समय जब सृष्टि पर स्वर्ग है तो वहाँ सदा सुख है, जहाँ स्त्री कभी दुहागिन नहीं बनती। तो वो आश सतयुग में पूर्ण होती है जहाँ अपार सुख है। बाकी तो इस समय है ही कलियुग। इस समय तो मनुष्य दु:ख ही दु:ख भोगते हैं। दु:खी मनुष्य फिर कह देते हैं कि प्रभु का भाना मीठा करके भोगना है। परन्तु वह कभी किसको दु:ख नहीं दे सकते। वह हमारे सारे कर्मों का खाता चुक्तू कराते हैं तब ही हम कहते हैं तुम मात पिता हम बालक तेरे...। अच्छा। ओम् शान्ति।