10-05-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन



"मीठे बच्चे - बाप आये हैं - तुम्हें श्रेष्ठ मत देकर सदा के लिए सुखी, शान्त बनाने, उनकी मत पर चलो, रूहानी पढ़ाई पढ़ो और पढ़ाओ तो एवरहेल्दी वेल्दी बन जायेंगे''


 

प्रश्नः-

कौन सा चांस सारे कल्प में इस समय ही मिलता है, जो मिस नहीं करना है?

उत्तर:-

रूहानी सेवा करने का चांस, मनुष्य को देवता बनाने का चांस अभी ही मिलता है।

यह चांस मिस नहीं करना है।

रूहानी सर्विस में लग जाना है।

सर्विसएबुल बनना है।

खास कुमारियों को ईश्वरीय गवर्मेन्ट की सेवा करनी है।

मम्मा को पूरा-पूरा फालो करना है।

अगर कुमारियां बाप का बनकर जिस्मानी सर्विस ही करती रहें, कांटों को फूल बनाने की सर्विस नहीं करें तो यह भी जैसे बाप का डिसरिगार्ड है।

 

गीत:-इस पाप की दुनिया से.....


  • ओम् शान्ति।
  • सजनियों को किसने समझाया?
  • कहते हैं साजन आया सजनियों के लिए।
  • कितनी सजनियां हैं?
  • एक साजन को इतनी सजनियां.. वन्डर है ना!
  • मनुष्य तो कहते कृष्ण को 16108 सजनियां थीं, परन्तु नहीं।
  • शिवबाबा कहते हैं मुझे तो करोड़ों सजनियां हैं।
  • सब सजनियों को मैं अपने साथ स्वीट होम में ले जाऊंगा।
  • सजनियां भी समझती हैं हमको फिर से बाबा ले जाने आये हैं।
  • जीव आत्मा सजनी ठहरी।
  • दिल में है साजन आया है हमको श्रीमत दे श्रृंगार कराने के लिए।
  • मत तो हर एक को देते हैं।
  • पुरुष स्त्री को, बाप बच्चे को, साधू अपने शिष्य को, परन्तु इनकी मत तो सबसे न्यारी है, इसलिए इनको श्रीमत कहा जाता है, और सब हैं मनुष्य मत।
  • वह सब मत देते हैं अपने शरीर निर्वाह के लिए।
  • साधू सन्त आदि सबको तात लगी हुई है शरीर निर्वाह की।
  • सभी एक दो को धनवान बनने की मत देते रहते हैं।
  • सबसे अच्छी मत साधुओं, गुरूओं की मानी जाती है।
  • परन्तु वह भी अपने पेट के लिए कितना धन इकट्ठा करते हैं।
  • मुझे तो अपना शरीर नहीं है।
  • मैं अपने पेट के लिए कुछ नहीं करता हूँ।
  • तुमको भी अपने पेट का ही काम है कि हम महाराजा महारानी बनें।
  • सबको तात है पेट की।
  • फिर कोई ज्वार की रोटी खाते तो कोई अशोका होटल में खाते।
  • साधू लोग धन इक्ट्ठा कर बड़े मन्दिर आदि बनाते हैं।
  • शिवबाबा शरीर निर्वाह अर्थ तो कुछ करते नहीं हैं।
  • तुमको सब कुछ देते हैं - सदा सुखी बनाने के लिए।
  • तुम एवरहेल्दी, वेल्दी बनेंगे।
  • मैं तो एवरहेल्दी बनने का पुरुषार्थ नहीं करता हूँ।
  • मैं हूँ ही अशरीरी।
  • मैं आता ही हूँ तुम बच्चों को सदा सुखी बनाने के लिए।
  • शिव-बाबा तो है निराकार।
  • बाकी सबको पेट की लगी रहती है।
  • द्वापर में बड़े-बड़े संन्यासी, तत्व ज्ञानी, ब्रह्म ज्ञानी थे।
  • याद में रहते थे तो घर बैठे उनको सब कुछ मिल जाता था।
  • पेट तो सबको है, सबको भोजन चाहिए।
  • परन्तु योग में रहते हैं इसलिए उनको धक्का नहीं खाना पड़ता है।
  • अब बाप तुम बच्चों को युक्ति बतलाते हैं कि तुम सदा सुखी कैसे रह सकते हो।
  • बाबा अपनी मत देकर विश्व का मालिक बनाते हैं।
  • तुम चिरंजीवी रहो, अमर रहो।
  • सबसे अच्छी मत उनकी है।
  • मनुष्य तो बहुत मत देते हैं।
  • कोई इम्तहान पास कर बैरिस्टर बन जाते, परन्तु वह सब हैं अल्पकाल के लिए।
  • पुरूषार्थ करते हैं अपने और बाल बच्चों के पेट के लिए।
  • अब बाबा तुमको श्रीमत देते हैं हे बच्चे श्रीमत पर चल यह रूहानी पढ़ाई पढ़ो जो मनुष्य विश्व का मालिक बन जावें।
  • सबको बाप का परिचय दो तो बाप की याद में रहने से एवरहेल्दी, वेल्दी बन जायेंगे।
  • वह है अविनाशी सर्जन।
  • तुम बाप के बच्चे भी रूहानी सर्जन हो, इसमें कोई तकलीफ नहीं।
  • सिर्फ मुख से आत्माओं को श्रीमत दी जाती है।
  • सर्वोत्तम सेवा तुम बच्चों को करनी है।
  • ऐसी मत तुमको कोई दे न सके।
  • अब हम बाप के बच्चे बने हैं तो बाप का धन्धा करें या जिस्मानी धन्धा करें।
  • बाबा से हम अविनाशी ज्ञान रत्नों की झोली भरते हैं।
  • शिव के आगे कहते हैं भर दे झोली।
  • वह समझते हैं - 10-20 हजार मिल जायेंगे।
  • अगर मिल गये तो बस उन पर बलिहार जायेंगे, बहुत खातिरी करेंगे।
  • वह सब है भक्ति मार्ग।
  • अब सबको बाप का परिचय दो और बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी सुनाओ।
  • बहुत इज़ी है।
  • हद की हिस्ट्री-जॉग्राफी में तो बहुत बातें हैं।
  • यह बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी है कि बेहद का बाप कहाँ रहते हैं, कैसे आते हैं!
  • हम आत्माओं में कैसे 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है।
  • बस जास्ती कुछ नहीं समझाओ सिर्फ अल्फ और बे।
  • अहम् आत्मा बाप को याद करके विश्व का मालिक बन जायेंगी।
  • अभी पढ़ना और पढ़ाना है।
  • अल्फ माना अल्लाह, बे माना बादशाही।
  • अब सोचो यह धन्धा करें या जिस्मानी धन्धा कर 2-4 सौ कमायें!
  • बाबा कहते हैं अगर कोई होशियार बच्ची हो तो मैं उनके मित्र सम्बन्धियों को भी दे सकता हूँ, जिससे उनका भी शरीर निर्वाह चलता रहे।
  • परन्तु बच्ची अच्छी हो, सर्विसएबुल हो, अन्दर बाहर साफ हो, बोली की बड़ी मीठी हो।
  • वास्तव में कुमारी की कमाई माँ बाप खा नहीं सकते।
  • बाबा का बनकर फिर भी उस जिस्मानी सर्विस में ध्यान बहुत देना - यह तो डिसरिगार्ड हो गया।
  • बाप कहते हैं मनुष्य मात्र को हेविन का मालिक बनाओ।
  • बच्चे फिर जिस्मानी सर्विस में माथा मारें!
  • स्कूल खोलना तो गवर्मेन्ट का काम है।
  • अब बच्चियों को बुद्धि से काम लेना है।
  • कौन सी सर्विस करें - ईश्वरीय गवर्मेन्ट की या उस गवर्मेन्ट की?
  • जैसे यह बाबा जवाहरात का धन्धा करते थे फिर बड़े बाबा ने कहा यह अविनाशी ज्ञान रत्नों का धन्धा करना है, इससे तुम यह बनेंगे।
  • चतुर्भुज का भी साक्षात्कार करा दिया।
  • अब वह विश्व की बादशाही लेवें या यह करें।
  • सबसे अच्छा धन्धा यह है।
  • भल कमाई अच्छी थी परन्तु बाबा ने इसमें प्रवेश होकर मत दी कि अल्फ और बे को याद करो।
  • कितना सहज है।
  • छोटे बच्चे भी पढ़ सकते हैं।
  • शिवबाबा तो हर एक बच्चे को समझ सकते हैं।
  • यह भी सीख सकते हैं।
  • यह है बाहरयामी, शिवबाबा है अन्तर्यामी।
  • यह बाबा भी हर एक की शक्ल से, बोल से, एक्ट से सब कुछ समझ सकते हैं।
  • बच्चियों को रूहानी सर्विस का चांस एक ही बार मिलता है।
  • अब दिल में आना चाहिए हम मनुष्य को देवता बनायें या कांटो को कांटा बनायें?
  • सोचो क्या करना चाहिए?
  • निराकार भगवानुवाच - देह सहित देह के सब सम्बन्ध तोड़ो।
  • अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते रहो।
  • ब्रह्मा के तन से बाप ब्राह्मणों से ही बात करते हैं।
  • वह ब्राह्मण लोग भी कहते हैं - ब्राह्मण देवी देवताए नम:, वह कुख वंशावली, तुम हो मुख वंशावली।
  • बाबा को जरूर ब्रह्मा बच्चा चाहिए।
  • कुमारका बताओ बाबा को कितने बच्चे हैं?
  • कोई कहते 600 करोड़, कोई कहते एक ब्रह्मा .. भल तुम त्रिमूर्ति कहते हो परन्तु आक्यूपेशन तो अलग-अलग है ना।
  • विष्णु की नाभी से ब्रह्मा निकला।
  • ब्रह्मा की नाभी से विष्णु, तो एक हो गये।
  • विष्णु 84 जन्म लेते हैं वा ब्रह्मा - बात तो एक ही है।
  • बाकी रहा शंकर।
  • ऐसे तो नहीं शंकर सो शिव होता है।
  • नहीं, त्रिमूर्ति कहलाया जाता है।
  • परन्तु राइटियस बच्चे दो हुए।
  • यह सब ज्ञान की बातें हैं।
  • तो बच्चियों के लिए यह सर्विस करना अच्छा है या मैट्रिक आदि पढ़ना अच्छा है?
  • वहाँ तो अल्पकाल का सुख मिलेगा।
  • थोड़ी तनख्वाह मिलेगी।
  • यहाँ तो तुम भविष्य 21 जन्मों के लिए मालामाल हो सकते हो।
  • तो क्या करना चाहिए?
  • कन्या तो निर्बन्धन है।
  • अधर कन्या से कुवांरी कन्या तीखी जा सकती है क्योंकि पवित्र है।
  • मम्मा भी कुमारी थी ना।
  • पैसे की तो बात ही नहीं।
  • कितनी तीखी गई तो फालो करना चाहिए खास कन्याओं को।
  • कांटो को फूल बनायें।
  • ईश्वरीय पढ़ाई का चांस लें या उस पढ़ाई का?
  • कन्याओं का सेमीनार करना चाहिए।
  • माताओं को तो पति आदि याद पड़ता है।
  • संन्यासियों को भी याद बहुत पड़ता रहता है।
  • कन्याओं को तो सीढ़ी चढ़नी नहीं चाहिए।
  • संग का रंग बहुत लग जाता है।
  • कोई बड़े आदमी का बच्चा देखा दिल लग गई, शादी हो गई। खेल खत्म।
  • सेन्टर से सुनकर बाहर जाते हैं तो खेल खत्म हो जाता है।
  • यह है मधुबन।
  • यहाँ ऐसे भी बहुत आते हैं, कहते हैं हम जाकर सेन्टर खोलेंगे।
  • बाहर जाकर गुम हो जाते हैं।
  • यहाँ ज्ञान का गर्भ धारण करते, बाहर जाने से नशा गुम हो जाता है।
  • माया आपोजीशन बहुत करती है।
  • माया भी कहती है वाह!
  • इसने बाबा को भी पहचाना है फिर भी बाबा को याद नहीं करते तो हम भी घूंसा मारेंगी।
  • ऐसे नहीं कहो कि बाबा आप माया से कहो हमको घूंसा न मारे।
  • युद्ध का मैदान है ना।
  • एक तरफ है रावण की सेना, दूसरे तरफ है राम की सेना।
  • बहादुर बन राम की तरफ जाना चाहिए।
  • आसुरी सम्प्रदाय को ही दैवी सम्प्रदाय बनाने का धन्धा करना है।
  • जिस्मानी विद्या तुम जिनको पढ़ायेंगे, जब तक वह पढ़कर बड़े हो तब तक विनाश भी सामने आ जायेगा।
  • आसार भी तुम देख रहे हो।
  • बाबा ने समझाया है दोनों क्रिश्चियन भाई-भाई आपस में मिल जाएं तो लड़ाई हो न सके।
  • परन्तु भावी ऐसी नहीं है।
  • उन्हों को समझ में ही नहीं आता है।
  • अब तुम बच्चे योगबल से राजधानी स्थापन कर रहे हो।
  • यह है शिव शक्ति सेना।
  • जो शिवबाबा से भारत का प्राचीन ज्ञान और योग सीख कर भारत को हीरे जैसा बनाते हो।
  • बाप कल्प के बाद ही आकर पतितों को पावन बनाते हैं।
  • तुम सब रावण की जेल में हो।
  • शोक वाटिका में हो, सब दु:खी हो।
  • फिर राम आकर सबको छुड़ाए अशोक वाटिका स्वर्ग में ले जाते हैं।
  • श्रीमत कहती है - कांटों को फूल, मनुष्य को देवता बनाओ।
  • तुम मास्टर दु:ख हर्ता सुख कर्ता हो।
  • यही धन्धा करना चाहिए।
  • श्रीमत पर चलने से ही तुम श्रेष्ठ बनेंगे, बाप तो राय देते हैं।
  • अब बाप कहते हैं अर्जी हमारी मर्जी आपकी।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) सर्विसएबुल बनने के लिए अन्दर बाहर साफ बनना है।
  • मुख से बहुत मीठे बोल बोलने हैं।
  • देह सहित देह के सब सम्बन्धों से बुद्धियोग हटाना है।
  • संग से अपनी सम्भाल करनी है।
  • 2) बाप समान मास्टर दु:ख हर्ता सुख कर्ता बनना है।
  • रूहानी सेवा कर सच्ची कमाई करनी है।
  • रूहानी बाप की मत पर रूहानी सोशल वर्कर बनना है।
  • वरदान:-
  • All Blessings of 2021-22
    • “मैं और मेरा बाबा'' इस विधि द्वारा जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव करने वाले सहजयोगी भव
    • ब्राह्मण बनना अर्थात् देह, सम्बन्ध और साधनों के बन्धन से मुक्त होना।
    • देह के सम्बन्धियों का देह के नाते से सम्बन्ध नहीं लेकिन आत्मिक सम्बन्ध है।
    • यदि कोई किसी के वश, परवश हो जाते हैं तो बन्धन है, लेकिन ब्राह्मण अर्थात् जीवनमुक्त।
    • जब तक कर्मेन्द्रियों का आधार है तब तक कर्म तो करना ही है लेकिन कर्मबन्धन नहीं, कर्म-सम्बन्ध है।
    • ऐसा जो मुक्त है वो सदा सफलतामूर्त है।
    • इसका सहज साधन है - मैं और मेरा बाबा।
    • यही याद सहजयोगी, सफलतामूर्त और बन्धनमुक्त बना देती है।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
    • मैं और मेरेपन की अलाए (खाद) को समाप्त करना ही रीयल गोल्ड बनना है।
    • मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य
    • यह जो मनुष्य गीत गाते हैं ओ गीता के भगवान अपना वचन निभाने आ जाओ।
    • अब वो स्वयं गीता का भगवान अपना कल्प पहले वाला वचन पालन करने के लिये आये हैं और कहते हैं हे बच्चे, जब भारत पर अति धर्म ग्लानि होती है तब मैं इसी समय अपना अन्जाम पालन करने (वायदा निभाने) के लिये अवश्य आता हूँ।
    • अब मेरे आने का यह मतलब नहीं कि मैं कोई युगे युगे आता हूँ।
    • सभी युगों में तो कोई धर्म ग्लानि नहीं होती, धर्म ग्लानि होती ही है कलियुग में, तो परमात्मा कलियुग के अन्त समय में आता है।
    • और कलियुग फिर कल्प कल्प आता है, तो जरूर वह कल्प-कल्प आता है।
    • कल्प में फिर चार युग हैं, उसको ही कल्प कहते हैं।
    • आधाकल्प सतयुग त्रेता में सतोगुण सतोप्रधान है, वहाँ परमात्मा के आने की कोई जरुरत नहीं और द्वापर युग से तो फिर दूसरे धर्मों की शुरुआत है, उस समय भी अति धर्म ग्लानि नहीं है, इससे सिद्ध है कि परमात्मा तीनों युगों में तो आता ही नहीं है, बाकी रहा कलियुग, उसके अन्त में अति धर्म ग्लानि होती है।
    • उसी समय परमात्मा आए अधर्म विनाश कर सत् धर्म की स्थापना करते हैं।
    • अगर द्वापर में आया होता तो फिर द्वापर के बाद सतयुग होना चाहिए फिर कलियुग क्यों?
    • ऐसे तो नहीं कहेंगे परमात्मा ने घोर कलियुग की स्थापना की, अब यह तो बात नहीं हो सकती इसलिए परमात्मा कहते हैं मैं एक हूँ और एक ही बार आए अधर्म अथवा कलियुग का विनाश कर सतयुग की स्थापना करता हूँ तो मेरे आने का समय संगमयुग है। अच्छा - ओम् शान्ति।