07-05-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - अब बाप समान देही-अभिमानी बनो, बाप की यही चाहना है कि बच्चे मेरे समान बन मेरे साथ घर में चलें''
प्रश्नः-
तुम बच्चे किस बात का वन्डर देखते बाप की शुक्रिया गाते हो?
उत्तर:-
तुम वन्डर देखते बाबा कैसे अपनी फ़र्ज-अदाई निभा रहे हैं। अपने बच्चों को राजयोग सिखलाए लायक बना रहे हैं। तुम बच्चे अन्दर ही अन्दर ऐसे मीठे बाबा की शुक्रिया गाते हो। बाबा कहते यह शुक्रिया शब्द भी भक्ति मार्ग का है। बच्चों का तो अधिकार होता है, इसमें शुक्रिया की भी क्या बात। ड्रामा अनुसार बाप को वर्सा देना ही है।
गीत:-जिसका साथी है भगवान.....
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- ओम् शान्ति।
- यह गीत है बच्चों के लिए।
- जिसका साथी सर्व शक्तिमान् परमपिता परमात्मा है, उनको माया की ऑधी वा तूफान क्या कर सकता है।
- वह ऑधी नहीं, माया के तूफान आत्मा की ज्योति को बुझा देते हैं।
- अब जगाने वाला साथी मिला है, तो माया क्या कर सकती है।
- नाम ही रखा जाता है महावीर, माया रावण पर विजय पाने वाले।
- कैसे विजय पानी है?
- सो तो बच्चे सामने बैठे हैं।
- बापदादा बैठे हैं।
- दादे और बाप को पिता और पितामह कहते हैं।
- तो हो गये बापदादा।
- बच्चे जानते हैं कि रूहानी बाप हमारे सामने बैठे हैं।
- रूहानी बाप रूहों से ही बात करेंगे।
- आत्मा ही आरगन्स द्वारा सुनती है, बोलती है।
- तुम बच्चों को देह-अभिमानी होने की आदत पड़ गई है।
- आधा कल्प देह-अभिमान में रहते हो।
- एक शरीर छोड़ दूसरा शरीर लिया।
- शरीर पर नाम पड़ता है, कोई कहेगा मैं परमानंद हूँ, कोई का नाम क्या, कोई का क्या.....बाबा कहते हैं मैं सदैव देही-अभिमानी हूँ।
- मुझे कभी देह नहीं मिलती तो मुझे कभी देह-अभिमान नहीं हो सकता।
- यह देह तो इस दादा की है।
- मैं सदैव देही-अभिमानी हूँ।
- तुम बच्चों को भी आप समान बनाने चाहता हूँ क्योंकि अब तुमको मेरे पास आना है।
- देह-अभिमान छोड़ना है।
- टाइम लगता है।
- बहुत समय से देह-अभिमान में रहने का अभ्यास पड़ा हुआ है।
- अभी बाप कहते हैं इस देह को भी छोड़ो, मेरे समान बनो क्योंकि तुमको मेरा गेस्ट बनना है।
- मेरे पास वापिस आना है, इसलिए कहता हूँ कि पहले अपने को आत्मा निश्चय करो।
- यह मैं आत्माओं से ही बोलता हूँ।
- ुम बाप को याद करो तो वह दृष्टि खत्म हो जाये।
- मेहनत हैं इसमें।
- हम आत्माओं की सर्विस कर रहे हैं।
- आत्मा सुनती है आरगन्स द्वारा, मैं आत्मा तुमको बाबा का सन्देश दे रहा हूँ।
- आत्मा तो न अपने को मेल, न फीमेल कहेगी।
- मेल फीमेल शरीर से नाम पड़ता है।
- वह तो है ही परम आत्मा।
- बाप कहते हैं हे आत्मायें सुनती हो?
- आत्मा कहती है हाँ सुनती हूँ।
- तुम अपने बाप को जानते हो, वह सभी आत्माओं का बाप है।
- जैसे तुम आत्मा हो वैसे ही मैं तुम्हारा बाप हूँ, जिसको परमपिता परमात्मा कहा जाता है, उनको अपना शरीर नहीं है।
- ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को अपना आकार है।
- आत्मा को आत्मा ही कहेंगे।
- मेरा नाम तो शिव है।
- शरीर पर तो बहुत नाम पड़ते हैं।
- मैं शरीर नहीं लेता हूँ, इसलिए मेरा कोई शारीरिक नाम नहीं है।
- तुम सालिग्राम हो।
- तुम आत्माओं को कहते हैं कि हे आत्मायें सुनती हो?
- यह तुमको अब प्रैक्टिस करनी पड़े, देही-अभिमानी हो रहने की।
- आत्मायें सुनती और बोलती हैं इन आरगन्स द्वारा, बाप बैठ आत्माओं को समझाते हैं।
- आत्मा बेसमझ हो गई है क्योंकि बाप को भूल गई है।
- ऐसे नहीं कि शिव भी परमात्मा है, कृष्ण भी परमात्मा है।
- वह तो कहते पत्थर-ठिक्कर सब परमात्मा हैं।
- सारी सृष्टि में उल्टा ज्ञान फैला हुआ है।
- बहुत तो समझते भी हैं कि हम भगवान बाप के बच्चे हैं।
- लेकिन मैजारिटी सर्वव्यापी कहने वाले निकलेंगे।
- इस दुबन से सबको निकालना है।
- सारी दुनिया है एक तरफ, बाप है दूसरे तरफ।
- बाप की महिमा गाई हुई है।
- अहो प्रभू तेरी लीला... अहो मेरी मत जिससे गति अथवा सद्गति मिलती है।
- सद्गति दाता तो एक ही है।
- मनुष्य गति सद्गति के लिए कितना माथा मारते हैं।
- यह एक ही सतगुरू है जो मुक्ति, जीवन मुक्ति दोनों ही देते हैं।
- बाप कहते हैं इन साधू सन्त आदि सबकी सद्गति करने के लिए मुझे आना पड़ता है।
- सबकी सद्गति करने वाला मैं एक ही हूँ।
- आत्माओं से बात करता हूँ।
- मैं तुम्हारा बाप हूँ और कोई यह कह न सके कि तुम सभी आत्मायें मेरी सन्तान हो।
- वह तो कह देते कि ईश्वर सर्वव्यापी है।
- तो फिर ऐसे कभी कह न सकें।
- यह तो खुद बाप कहते हैं कि मैं आया हूँ - भक्तों को भक्ति का फल देने।
- गायन भी है - भक्तों का रखवाला भगवान एक है।
- सभी भक्त हैं, तो जरूर भगवान अलग चीज़ है।
- भगत ही अगर भगवान हों तो उन्हें भगवान को याद करने की दरकार नहीं।
- अपनी-अपनी भाषा में परमात्मा को कोई क्या कहते, कोई क्या। लेकिन यथार्थ नाम है ही शिव।
- कोई किसकी ग्लानि करते हैं वा डिफेम करते हैं तो उन पर केस करते हैं।
- परन्तु यह है ड्रामा, इसमें कोई की बात नहीं चल सकती।
- बाप जानते हैं कि तुम दु:खी हुए हो फिर भी यह होगा।
- गीता शास्त्र आदि फिर भी वही निकलेंगे।
- परन्तु सिर्फ गीता आदि पढ़ने से तो कोई समझ न सके।
- यहाँ तो समर्थ चाहिए।
- शास्त्र सुनाने वाले किसके लिए कहें कि मेरे साथ योग लगाने से हे बच्चे तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे, यह कह न सकें।
- वे तो सिर्फ गीता पुस्तक पढ़कर सुनाते हैं।
- अभी तुम अनुभवी हो, जानते हो कि हम 84 के चक्र में कैसे आते हैं।
- ड्रामा में हर एक बात अपने समय पर होती है।
- यह बाप बच्चों से, आत्माओं से बात करते हैं कि तुम भी ऐसे सीखो कि हम आत्मा से बात करते हैं, हमारी आत्मा इस मुख से बोलती है।
- तुम्हारी आत्मा इन कानों से सुनती है।
- मैं बाप का पैगाम देता हूँ, मैं आत्मा हूँ।
- यह समझाना कितना सहज है।
- तुम्हारी आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है।
- आत्मा ने 84 जन्म पूरे किये हैं।
- अब बाप कहते हैं अगर परमात्मा सर्वव्यापी होता तो जीव परमात्मा कहो ना।
- जीव आत्मा क्यों कहते हो?
- यह आत्मा से बात करते हैं।
- मेरे भाई, आत्मायें समझती हो कि मैं बाप का सन्देश सुनाता हूँ - 5 हजार वर्ष पहले वाला।
- बाप कहते हैं मुझे याद करो।
- यह दु:खधाम है।
- सतयुग है सुख-धाम।
- हे आत्मायें तुम सुखधाम में थी ना।
- तुमने 84 का चक्र लगाया है।
- सतोप्रधान से सतो, रजो तमो में जरूर आना है।
- अब फिर चलो वापिस श्रीकृष्णपुरी में।
- चलकर क्या बनने चाहते हो?
- महाराजा महारानी बनेंगे वा दास-दासी?
- ऐसे-ऐसे आत्माओं से बात करनी चाहिए।
- उमंग होना चाहिए।
- ऐसे नहीं कि मैं परमात्मा हूँ।
- परमात्मा तो है ही ज्ञान का सागर।
- वह कभी अज्ञान का सागर बनता नहीं।
- ज्ञान और अज्ञान के सागर हम बनते हैं।
- बाप से ज्ञान लेकर मास्टर सागर बनते हैं, वास्तव में सागर एक ही बाप है।
- बाकी सब नदियां हैं।
- फर्क है ना।
- आत्मा को समझाया तब जाता है, जबकि आत्मा बेसमझ है।
- स्वर्ग में थोड़ेही किसको समझाते हैं।
- यहाँ सब बेसमझ पतित और दु:खी हैं।
- गरीब लोग ही यह ज्ञान आराम से बैठ सुनेंगे।
- साहूकारों को तो अपना नशा रहता है।
- उन्हों में तो कोई बिरला निकलेगा।
- जनक राजा ने सब दे दिया ना। यहाँ सब जनक हैं।
- जीवन-मुक्ति के लिए ज्ञान ले रहे हैं।
- तो यह पक्का करना पड़े कि हम आत्मा हैं।
- बाबा हम आपकी कितनी शुक्रिया मानें।
- ड्रामा अनुसार आपको वर्सा तो देना ही है।
- हमको आपका बच्चा बनना ही है, इसमें शुक्रिया क्या करें।
- हमको आपका वारिस तो बनना ही है, इसमें शुक्रिया की क्या बात है।
- बाप खुद आकर समझाए लायक बनाते हैं, भक्ति मार्ग में महिमा करते हैं शुक्रिया शब्द निकल पड़ता है।
- बाप को तो अपनी फ़र्ज-अदाई करनी ही है।
- आकर फिर से स्वर्ग में चलने का रास्ता बताते हैं।
- ड्रामा अनुसार बाबा को आकर राजयोग सिखलाना है, वर्सा देना है।
- फिर जो जितना पुरुषार्थ करेंगे, उस अनुसार स्वर्ग में जायेंगे।
- ऐसे नहीं कि बाबा भेज देंगे।
- ऑटोमेटिकली जितना पुरूषार्थ करेंगे उस अनुसार स्वर्ग में आ जायेंगे।
- बाकी इसमें शुक्रिया की कोई बात है नहीं।
- अब हम वन्डर खाते हैं कि बाबा ने क्या खेल दिखाया है।
- आगे तो हम जानते नहीं थे, अब जाना है।
- क्या बाबा हम फिर ये ज्ञान भूल जायेंगे?
- हाँ बच्चे, हमारी और तुम्हारी बुद्धि से ज्ञान प्राय:लोप हो जायेगा।
- फिर समय पर इमर्ज होगा, जब ज्ञान देने का समय होगा।
- अभी तो हम निर्वाणधाम चले जायेंगे।
- फिर भक्ति मार्ग में मैं पार्ट बजाता हूँ।
- आत्मा में ऑटोमेटिकली वह संस्कार आ जाते हैं।
- मैं कल्प के बाद भी इस ही शरीर में आऊंगा, यह बुद्धि में रहता है।
- परन्तु फिर भी तुमको तो देही-अभिमानी रहना है।
- नहीं तो देह-अभिमानी बन पड़ते हैं।
- मुख्य बात तो यह है।
- बाप और वर्से को याद करो।
- कल्प-कल्प तुम वर्सा पाते हो, पुरूषार्थ अनुसार।
- कितना सहज कर समझाते हैं।
- बाकी इस मंजिल पर चलने में गुप्त मेहनत है।
- आत्मा पहले-पहले आती है तो पुण्य आत्मा सतोप्रधान है फिर उसको पाप आत्मा, तमोप्रधान जरूर बनना है।
- अब फिर तुमको तमोप्रधान से सतोप्रधान जरूर बनना है।
- बाप ने पैगाम दिया है कि मुझे याद करो।
- सारी रचना को बाप से वर्सा मिल रहा है।
- सबका सद्गति दाता है ना।
- सब पर दया करने वाला है अर्थात् सर्व पर रहम करने वाला है।
- सतयुग में कोई दु:ख नहीं होगा।
- बाकी सब आत्मायें शान्तिधाम में जाकर रहती हैं।
- तुम बच्चे जान गये हो कि अभी कयामत का समय हुआ है।
- दु:ख का हिसाब-किताब चुक्तू करना है - योगबल से।
- फिर ज्ञान और योगबल से हमको भविष्य सुख के लिए खाता भी जमा करना है।
- जितना जमा करेंगे उतना सुख पायेंगे और दु:ख का खाता चुक्तू होता जायेगा।
- अभी हम कल्प के संगम पर आकर दु:ख का चौपड़ा चुक्तू करते हैं और दूसरी तरफ जमा करते हैं।
- यह व्यापार है ना।
- बाबा ज्ञान रत्न दे गुणवान बना देते हैं।
- फिर जितना जो धारण कर सके।
- एक-एक रत्न लाखों की मिलकियत है, जिससे तुम भविष्य में सदा सुखी रहेंगे।
- यह है दु:खधाम, वह है सुखधाम।
- संन्यासी यह नहीं जानते कि स्वर्ग में सदा सुख ही सुख है।
- एक ही बाप है जो गीता द्वारा भारत को इतना ऊंच बनाते हैं।
- वह लोग कितना शास्त्र आदि सुनाते हैं।
- लेकिन दुनिया को तो पुराना बनना ही है।
- देवतायें पहले नई सृष्टि में रामराज्य में थे।
- अभी देवतायें हैं नहीं।
- कहाँ गये?
- तब 84 जन्म किसने भोगे?
- और किसके भी 84 जन्म का हिसाब निकल न सके।
- 84 जन्म जरूर देवता धर्म वाले ही लेते हैं।
- मनुष्य तो समझते कि लक्ष्मी-नारायण आदि भगवान थे।
- जिधर देखो तू ही तू है।
- अच्छा भला सर्वव्यापी के ज्ञान से भी सुखी हो जाते हैं क्या?
- यह सर्वव्यापी का ज्ञान तो चलता आया है, फिर भी भारत तो कंगाल, नर्क बन गया है।
- भक्ति का फल तो देना ही है भगवान को।
- संन्यासी जो खुद ही साधना करते रहते वह फल क्या देंगे?
- मनुष्य सद्गति दाता तो हैं नहीं।
- जो जो इस धर्म के होंगे वह निकल आयेंगे।
- ऐसे तो बहुत संन्यासी धर्म में भी कनवर्ट हुए हैं, वह भी आयेंगे।
- यह सब समझने की बातें हैं।
- बाबा समझाते हैं - यह प्रैक्टिस रखनी है कि मैं आत्मा हूँ।
- आत्मा के आधार पर ही शरीर खड़ा है।
- शरीर तो विनाशी है, आत्मा अविनाशी है।
- पार्ट सारा इस छोटी आत्मा में है।
- कितना वन्डर है।
- साइन्स वाले भी समझ न सकें।
- यह इमार्टल, इम्पैरिशबुल पार्ट इतनी छोटी आत्मा में है।
- आत्मा भी अविनाशी है, तो पार्ट भी अविनाशी है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) कल्प के संगम पर योग बल से दु:ख का चौपड़ा (हिसाब-किताब) चुक्तू करना है।
नया जमा करना है।
ज्ञान रत्नों को धारण कर गुणवान बनना है।
2) मैं आत्मा हूँ, आत्मा भाई से बात करता हूँ, शरीर विनाशी है।
मैं अपने भाई आत्मा को सन्देश सुना रहा हूँ, ऐसी प्रैक्टिस करनी है।
वरदान:-
All Blessings of 2021-22
- शुभ भावना और श्रेष्ठ भाव द्वारा सर्व के प्रिय बन विजय माला में पिरोने वाले विजयी भव
- कोई किसी भी भाव से बोले वा चले लेकिन आप सदा हर एक के प्रति शुभ भाव, श्रेष्ठ भाव धारण करो, इसमें विजयी बनो तो माला में पिरोने के अधिकारी बन जायेंगे, क्योंकि सर्व के प्रिय बनने का साधन ही है सम्बन्ध-सम्पर्क में हर एक के प्रति श्रेष्ठ भाव धारण करना।
- ऐसे श्रेष्ठ भाव वाला सदा सभी को सुख देगा, सुख लेगा।
- यह भी सेवा है तथा शुभ भावना मन्सा सेवा का श्रेष्ठ साधन है।
- तो ऐसी सेवा करने वाले विजयी माला के मणके बन जाते हैं।
स्लोगन:-
(All Slogans of 2021-22)
- कर्म में योग का अनुभव करना ही कर्मयोगी बनना है।
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