04-05-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन



"मीठे बच्चे - श्रीमत पर पवित्र बनो तो धर्मराज की सज़ाओं से छूट जायेंगे, हीरे जैसा बनना है तो ज्ञान अमृत पियो, विष को छोड़ो''


प्रश्नः-

सतयुगी पद का सारा मदार किस बात पर है?

उत्तर:-

पवित्रता पर।

तुम्हें याद में रह पवित्र जरूर बनना है।

पवित्र बनने से ही सद्गति होगी।

जो पवित्र नहीं बनते वे सजा खाकर अपने धर्म में चले जाते हैं।

तुम भल घर में रहो परन्तु किसी देहधारी को याद नहीं करो, पवित्र रहो तो ऊंच पद मिल जायेगा।

 

गीत:-तुम्हें पाके हमने जहान पा लिया है.....


  • ओम् शान्ति।
  • शिव भगवानुवाच और कोई को भी भगवान नहीं कहा जाता, एक निराकार परमपिता परमात्मा को ही शिवबाबा कहा जाता है।
  • वह है सभी आत्माओं का बाप।
  • पहले-पहले यह निश्चय होना चाहिए - हम शिवबाबा के बच्चे जरूर हैं।
  • दु:ख के समय कहते हैं परमात्मा सहायता करो, रहम करो।
  • यह भी नहीं जानते हैं कि हमारी आत्मा परमात्मा को याद करती है।
  • अहम् आत्मा का बाप वह है।
  • इस समय सारी दुनिया है पतित आत्माओं की।
  • गाते हैं हम पापी नीच हैं, आप सम्पूर्ण निर्विकारी हैं।
  • परन्तु फिर भी अपने को समझते नहीं हैं।
  • बाप समझाते हैं कि जब तुम कहते हो भगवान बाप एक है तो तुम सब आपस में भाई-भाई हो गये।
  • फिर शरीर के नाते सब भाई बहिन ठहरे।
  • शिवबाबा के बच्चे फिर प्रजापिता ब्रह्मा के भी बच्चे ठहरे।
  • यह तुम्हारा बेहद का बाप, टीचर, गुरू है।
  • यह कहते हैं मैं तुमको पतित नहीं बनाता हूँ।
  • मैं तो आया हूँ पावन बनाने।
  • अगर मेरी मत पर चलेंगे तो।
  • यहाँ तो सब मनुष्य रावण मत पर हैं।
  • सबमें 5 विकार हैं।
  • बाप कहते हैं बच्चे अब निर्विकारी बनो, श्रीमत पर चलो।
  • परन्तु विकारों को छोड़ते ही नहीं हैं।
  • तो स्वर्ग के मालिक बनते नहीं।
  • सब अजामिल जैसे पापी बन गये हैं।
  • रावण सम्प्रदाय हैं, यह शोक वाटिका है, कितना दु:खी हैं।
  • बाप आकर फिर रामराज्य बनाते हैं।
  • तो तुम बच्चे जानते हो कि यह सच्चा-सच्चा युद्ध का मैदान है।
  • गीता में भगवान कहते हैं काम महाशत्रु है, उन पर जीत पहनो।
  • सो तो पहनते नहीं हैं।
  • अभी बाप बैठ समझाते हैं।
  • तुम्हारी आत्मा इन आरगन्स द्वारा सुनती है फिर सुनाती है, एक्ट आत्मा करती है।
  • हम आत्मा हैं शरीर धारण कर पार्ट बजाते हैं।
  • परन्तु मनुष्य आत्म-अभिमानी के बदले देह-अभिमानी बन पड़े हैं।
  • अब बाप कहते हैं देही-अभिमानी बनो।
  • सतयुग में आत्म-अभिमानी रहते हैं।
  • परमात्मा को नहीं जानते हैं।
  • यहाँ तुम देह-अभिमानी हो और परमात्मा को भी नहीं जानते हो इसलिए तुम्हारी ऐसी दुर्गति हो गई है।
  • दुर्गति को भी समझते नहीं।
  • जिनके पास धन बहुत है वह तो समझते हैं हम स्वर्ग में बैठे हैं।
  • बाप कहते हैं यह सब गरीब बन जाते हैं क्योंकि विनाश होना है।
  • विनाश होना तो अच्छा है ना।
  • हम फिर मुक्तिधाम में चले जायेंगे, इसमें तो खुश होना चाहिए।
  • तुम मरने के लिए तैयारी कर रहे हो।
  • मनुष्य तो मरने से डरते हैं।
  • बाप तुमको वैकुण्ठ ले चलने के लिए लायक बना रहे हैं।
  • पतित तो पतित दुनिया में ही जन्म लेते रहते हैं।
  • स्वर्गवासी कोई भी नहीं होते।
  • मूल बात बाप कहते हैं पवित्र बनो।
  • पवित्र बनने बिगर पवित्र दुनिया में चल नहीं सकेंगे।
  • पवित्रता पर ही अबलाओं पर मार पड़ती है।
  • विष को अमृत समझते हैं।
  • बाप कहते हैं ज्ञान अमृत से तुमको हीरे जैसा बनाता हूँ, फिर तुम विष खाकर कौड़ी जैसे क्यों बनते हो।
  • आधाकल्प तुमने विष खाया अब मेरी आज्ञा मानो।
  • नहीं तो धर्मराज के डण्डे खाने पड़ेंगे।
  • लौकिक बाप भी कहते हैं बच्चे ऐसा काम नहीं करो जो कुल का नाम बदनाम हो।
  • बेहद का बाप कहते हैं श्रीमत पर चलो।
  • पवित्र बनो।
  • अगर काम चिता पर बैठे तो तुम्हारा मुँह काला तो है और ही काला हो जायेगा।
  • अभी तुमको ज्ञान चिता पर बिठाए गोरा बनाते हैं।
  • काम चिता पर बैठने से स्वर्ग का मुंह भी नहीं देख सकेंगे इसलिए बाप कहते हैं अब श्रीमत पर चलो।
  • बाप तो बच्चों से ही बात करेंगे ना।
  • बच्चे ही जानते हैं - बाप हमको स्वर्ग का वर्सा देने आये हैं। कलियुग अब पूरा होना है।
  • जो बाप की श्रीमत पर चलेंगे उनकी ही सद्गति होगी।
  • पवित्र नहीं बनेंगे तो सजा खाकर अपने धर्म में चले जायेंगे।
  • भारतवासी ही स्वर्गवासी थे।
  • अब पतित बन पड़े हैं।
  • स्वर्ग का पता ही नहीं है।
  • तो बाप कहते हैं तुम मेरी श्रीमत पर न चल औरों की मत पर चल विकार में गये तो मरे, फिर भल पिछाड़ी में स्वर्ग में आयेंगे परन्तु पद बहुत हल्का पायेंगे।
  • अभी जो साहूकार हैं वह गरीब बन जाते हैं।
  • जो यहाँ गरीब हैं वह साहूकार बनेंगे।
  • बाप गरीब-निवाज़ है।
  • सारा मदार पवित्रता पर है।
  • बाप के साथ योग लगाने से तुम पावन बनेंगे।
  • बाप बच्चों को समझाते हैं मैं तुमको राजयोग सिखाता हूँ।
  • मैं घरबार नहीं छुड़ाता हूँ।
  • भल घर में रहो परन्तु विकार में मत जाओ और कोई भी देहधारी को याद नहीं करो।
  • इस समय सब पतित हैं।
  • सतयुग में पावन देवता थे।
  • इस समय वह भी पतित बन पड़े हैं।
  • पुनर्जन्म लेते-लेते अब अन्तिम जन्म हो गया है।
  • तुम सब पार्वतियां हो, तुमको अब अमरनाथ बाप अमरकथा सुना रहे हैं, अमरपुरी का मालिक बनाने।
  • तो अब अमरनाथ बाप को याद करो।
  • याद से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे।
  • बाकी शिव, शंकर वा पार्वती कोई पहाड़ों पर नहीं बैठे हैं।
  • यह सब भक्ति मार्ग के धक्के हैं।
  • आधाकल्प बहुत धक्के खाये हैं, अब बाबा कहते हैं मैं तुमको स्वर्ग में ले जाऊंगा।
  • सतयुग में सुख ही सुख है।
  • न धक्के खाते, न गिरते।
  • मुख्य बात है ही पवित्र रहने की।
  • यहाँ जब बहुत अत्याचार करते हैं तो पाप का घड़ा भर जाता है और विनाश होता है।
  • अब एक जन्म पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया के मालिक बन जायेंगे।
  • अब जो श्रीमत पर चले।
  • अगर कल्प पहले श्रीमत पर नहीं चले हैं तो अभी भी नहीं चलेंगे, न पद पायेंगे।
  • एक बाप के तुम बच्चे हो।
  • तुम तो आपस में भाई-बहिन हो गये।
  • परन्तु बाप का बनकर अगर गिरे तो और भी रसातल में चले जायेंगे और ही पाप आत्मा बन जायेंगे।
  • यह है ईश्वरीय गवर्मेन्ट।
  • अगर मेरी मत पर पवित्र नहीं बनें तो धर्मराज द्वारा बहुत कड़ी सजा खानी पड़ेगी।
  • जन्म-जन्मान्तर के जो पाप किए हैं उन सबकी सजा खाकर हिसाब-किताब चुक्तू करना होगा।
  • या तो योगबल से विकर्मों को भस्म करना होगा या तो बहुत कड़ी सजा खानी पड़ेगी।
  • कितने ढेर ब्रह्माकुमार और कुमारियां हैं, सब पवित्र रहते हैं, भारत को स्वर्ग बनाते हैं।
  • तुम हो शिव शक्ति पाण्डव सेना, गोप गोपियां, इसमें दोनों आ जाते हैं।
  • भगवान तुमको पढ़ाते हैं।
  • लक्ष्मी-नारायण को भगवती भगवान कहते हैं।
  • उन्हों को जरूर भगवान ने ही वर्सा दिया होगा।
  • भगवान ही आकर तुमको देवता बनाते हैं।
  • सतयुग में यथा राजा रानी तथा प्रजा रहते हैं।
  • सब श्रेष्ठाचारी थे, अब रावण राज्य है।
  • अगर रामराज्य में चलना है तो पवित्र बनो और राम की मत पर चलो।
  • रावण की मत से तो तुम्हारी दुर्गति होती है।
  • गाया हुआ भी है किनकी दबी रहेगी धूल में.... सोना आदि जमीन में, दीवारों में छिपाते हैं।
  • अचानक मरेंगे तो सब कुछ वहाँ ही रह जायेगा।
  • विनाश तो होना ही है।
  • अर्थ क्वेक आदि जब होती है तो चोर लोग भी बहुत निकल पड़ते हैं।
  • अब धनी बाप आया है, तुमको अपना बनाकर विश्व का मालिक बनाने।
  • आजकल वानप्रस्थ अवस्था में भी विकार बिगर रह नहीं सकते, बिल्कुल ही तमोप्रधान हो गये हैं।
  • बाप को पहचानते ही नहीं।
  • बाप कहते हैं मैं पवित्र बनाने आया हूँ।
  • अगर विकार में जायेंगे तो बड़ी कड़ी सजा खानी पड़ेगी।
  • मैं पवित्र बनाए पवित्र दुनिया स्थापन करने आया हूँ।
  • तुम फिर पतित बन विघ्न डालते हो!
  • स्वर्ग की रचना करने में बाधा डालते हो, तो बहुत कड़ी सजा खानी पड़ेगी।
  • मैं आया हूँ तुमको स्वर्गवासी बनाने के लिए।
  • अगर विकार नहीं छोड़गे तो धर्मराज द्वारा बहुत मारे जायेंगे।
  • बहुत त्राहि-त्राहि करनी पड़ेगी।
  • यह इन्द्र सभा है।
  • कहानी है ना - वहाँ ज्ञान परियाँ थीं, किसी पतित को ले आई तो उनका वायब्रेशन आता था।
  • यहाँ सभा में किसी पतित को नहीं बिठाया जाता है।
  • पवित्रता की प्रतिज्ञा करने बिगर बिठाया नहीं जाता, नहीं तो फिर ले आने वाले पर भी दोष पड़ जाता है।
  • बाप तो जानते हैं फिर भी ले आते हैं तो शिक्षा दी जाती है।
  • शिवबाबा को याद करने से आत्मा शुद्ध हो जाती है।
  • वायुमण्डल में साइलेन्स हो जाती है।
  • बाप ही बैठ परिचय देते हैं कि मैं तुम्हारा बाप हूँ।
  • 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक तुमको मनुष्य से देवता बनाने आया हूँ।
  • बेहद के बाप से बेहद सुख का वर्सा लेना है।

  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) योग बल द्वारा विकर्मो के सब हिसाब-किताब चुक्तू कर आत्मा को शुद्ध और वायुमण्डल को शान्त बनाना है।
  • 2) बाप की श्रीमत पर सम्पूर्ण पावन बनने की प्रतिज्ञा करनी है।
  • विकारों के वश होकर स्वर्ग की रचना में विघ्न रूप नहीं बनना है।
  • वरदान:-
  • All Blessings of 2021-22
    • मन-बुद्धि की स्वच्छता द्वारा यथार्थ निर्णय करने वाले सफलता सम्पन्न भव
    • किसी भी कार्य में सफलता तब प्राप्त होती है जब समय पर बुद्धि यथार्थ निर्णय देती है।
    • लेकिन निर्णय शक्ति काम तब करती है जब मन-बुद्धि स्वच्छ हो, कोई भी किचड़ा न हो।
    • इसलिए योग अग्नि द्वारा किचड़े को खत्म कर बुद्धि को स्वच्छ बनाओ।
    • किसी भी प्रकार की कमजोरी - यह गन्दगी है।
    • जरा सा व्यर्थ संकल्प भी किचड़ा है, जब यह किचड़ा समाप्त हो तब बेफिक्र रहेंगे और स्वच्छ बुद्धि होने से हर कार्य में सफलता प्राप्त होगी।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
    • सदा श्रेष्ठ और शुद्ध संकल्प इमर्ज रहें तो व्यर्थ स्वत: मर्ज हो जायेंगे।
    • मातेश्वरी जी के मधुर महावाक्य
    • इस कलियुगी संसार को असार संसार क्यों कहते हैं? क्योंकि इस दुनिया में कोई सार नहीं है माना कोई भी वस्तु में वह ताकत अथवा सुख, शान्ति, पवित्रता नहीं है। इस सृष्टि पर कोई समय सुख शान्ति पवित्रता थी, अभी वह नहीं है क्योंकि अभी हर एक में 5 भूतों की प्रवेशता है इसलिए ही इस सृष्टि को भय का सागर अथवा कर्मबन्धन का सागर कहते हैं, इसमें हर एक दु:खी हो परमात्मा को पुकार रहे हैं, परमात्मा हमको भव सागर से पार करो, इससे सिद्ध है कि जरुर कोई अभय अर्थात् निर्भयता का भी संसार है जिसमें चलना चाहते हैं इसलिए इस संसार को पाप का सागर कहते हैं, जिससे पार कर पुण्य आत्मा वाली दुनिया में चलना चाहते हैं। तो दुनियायें दो हैं, एक सतयुगी सार वाली दुनिया, दूसरी है कलियुगी असार की दुनिया। दोनों दुनियायें इस सृष्टि पर होती हैं। मनुष्य कहते हैं हे प्रभु हमें इस भव सागर से उस पार ले चलो, उस पार का मतलब क्या है? लोग समझते हैं उस पार का मतलब है जन्म मरण के चक्र में न आना अर्थात् मुक्त हो जाना। अब यह तो हुआ मनुष्यों का कहना परन्तु परमात्मा कहते हैं बच्चों, सचमुच जहाँ सुख शान्ति है, दु:ख अशान्ति से दूर है, उस दुनिया में मैं तुमको ले चलता हूँ। जब तुम सुख चाहते हो तो जरूर वो इस जीवन में होना चाहिए। अब वो तो सतयुगी वैकुण्ठ के देवताओं की दुनिया थी, जहाँ सर्वदा सुखी जीवन थी, उन देवताओं को अमर कहते थे। अब अमर का भी कोई अर्थ नहीं है, ऐसे तो नहीं देवताओं की आयु इतनी बड़ी थी जो कभी मरते नहीं थे, अब यह कहना उन्हों का रांग है क्योंकि ऐसे है नहीं। उनकी आयु कोई सतयुग त्रेता तक नहीं चलती है, परन्तु देवी देवताओं के जन्म सतयुग त्रेता में बहुत हुए हैं, 21 जन्म तो उन्होंने अच्छा राज्य चलाया है और फिर 63 जन्म द्वापर से कलियुग के अन्त तक टोटल उन्हों के जन्म चढ़ती कला वाले 21 हुए और उतरती कला वाले 63 हुए, टोटल मनुष्य 84 जन्म लेते हैं। बाकी यह जो मनुष्य समझते हैं कि मनुष्य 84 लाख योनियां भोगते हैं, यह कहना भूल है। अगर मनुष्य अपनी योनी में सुख दु:ख दोनों पार्ट भोग सकते हैं तो फिर जानवर योनी में भोगने की जरुरत ही क्या है। बाकी टोटल सृष्टि पर जानवर पशु, पंछी आदि 84 लाख योनियां हो सकती हैं क्योंकि अनेक किस्म की पैदाइस है। लेकिन मनुष्य, मनुष्य योनी में ही अपना पाप पुण्य भोग रहे हैं और जानवर अपनी योनियों में भोग रहे हैं। न मनुष्य जानवर की योनी लेता और न जानवर मनुष्य योनी में आता है। मनुष्य को अपनी योनी में ही भोगना भोगनी पड़ती है, इसलिए उसे मनुष्य जीवन में ही सुख, दु:ख की महसूसता होती है। ऐसे ही जानवर को भी अपनी योनी में सुख दु:ख भोगना है। मगर उन्हों में यह बुद्धि नहीं कि यह भोगना किस कर्म से हुई है? उन्हों की भोगना को भी मनुष्य फील करता है क्योंकि मनुष्य है बुद्धिवान, बाकी ऐसे नहीं मनुष्य कोई 84 लाख योनियां भोगते हैं। यह तो मनुष्यों को डराने के लिये कह देते हैं, कि अगर गलत कर्म करोगे तो पशु योनि में जन्म मिलेगा। हम भी अभी इस संगम समय पर अपनी जीवन को पलटाए पापात्मा से पुण्यात्मा बन रहे हैं। अच्छा - ओम् शान्ति।