01-05-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 13.12.90 "बापदादा" मधुबन

तपस्या का फाउण्डेशन बेहद का वैराग्य

 


  • आज बापदादा सर्व स्नेही बच्चों को स्नेह के पुष्प अर्पित करते हुए देख रहे हैं।
  • देश विदेश के सर्व बच्चों के दिल से स्नेह के पुष्पों की वर्षा बापदादा देख रहे हैं।
  • सभी बच्चों के मन का एक ही साज़ अथवा गीत सुन रहे हैं।
  • एक ही गीत है - “मेरा बाबा''।
  • चारों ओर मिलन मनाने की शुभ-आशाओं के दीप जगमगा रहे हैं।
  • यह दिव्य दृश्य सारे कल्प में सिवाए बापदादा और बच्चों के कोई देख नहीं सकता।
  • यह अनोखे स्नेह के पुष्प यहाँ इस पुरानी दुनिया के कोहनूर हीरे से भी अमूल्य हैं।
  • यह दिल के गीत सिवाए बच्चों के और कोई गा नहीं सकता।
  • ऐसी दीपमाला कोई मना नहीं सकता।
  • बापदादा के सामने सर्व बच्चे इमर्ज हैं।
  • इस स्थूल स्थान में सभी बैठ नहीं सकते।
  • लेकिन बापदादा का दिलतख्त अति विशाल है इसलिए सभी को इमर्ज रूप में देख रहे हैं।
  • सभी की यादप्यार और स्नेह भरे अधिकार के उल्हने भी सुन रहे हैं और साथ-साथ हर एक बच्चे को रिटर्न में पदमगुणा ज्यादा यादप्यार दे रहे हैं।
  • बच्चे अधिकार से कहते - हम सब साकार स्वरूप में मिलन मनाएं।
  • बाप भी चाहते, बच्चे भी चाहते।
  • फिर भी समय प्रमाण ब्रह्मा बाप अव्यक्त फरिश्ते रूप में साकार स्वरूप से अनेक गुणा तीव्रगति से सेवा करते हुए बच्चों को अपने समान बना रहे हैं।
  • न सिर्फ एक दो वर्ष, लेकिन अनेक वर्ष अव्यक्त मिलन, अव्यक्त रूप में सेवा का अनुभव कराया और करा भी रहे हैं।
  • तो ब्रह्मा बाप ने अव्यक्त होते भी व्यक्त में क्यों पार्ट बजाया?
  • समान बनाने के लिए।
  • ब्रह्मा बाप अव्यक्त से व्यक्त में आये, तो बच्चों को रिटर्न में क्या करना है?
  • व्यक्त से अव्यक्त बनना है।
  • समय प्रमाण अव्यक्त मिलन, अव्यक्त रूप से सेवा अभी अति आवश्यक है।
  • इसलिए समय प्रति समय बापदादा अव्यक्त मिलन की अनुभूति का इशारा देते रहते हैं।
  • इसके लिए तपस्या वर्ष भी मना रहे हो ना।
  • बापदादा को हर्ष है कि मैजारिटी बच्चों को उमंग-उत्साह अच्छा है।
  • मैनारिटी ऐसा सोचते हैं कि प्रोग्राम प्रमाण करना ही है।
  • एक है प्रोग्राम से करना और दूसरा है दिल के उमंग-उत्साह से करना।
  • हर एक अपने से पूछे - मैं किसमें हूँ?
  • समय की परिस्थितियों के प्रमाण, स्व की उन्नति के प्रमाण, तीव्र गति की सेवा के प्रमाण, बापदादा के स्नेह के रिटर्न देने के प्रमाण तपस्या अति आवश्यक है।
  • प्यार करना अति सहज है और सब करते हैं - यह भी बाप जानते हैं लेकिन रिटर्न स्वरूप में बापदादा समान बनना है।
  • इस समय बापदादा यह देखने चाहते हैं।
  • इसमें कोई में कोई निकलता है।
  • चाहना सभी की है लेकिन चाहने वाले और करने वाले - इसमें संख्या का अन्तर है क्योंकि तपस्या का सदा और सहज फाउन्डेशन है - बेहद का वैराग्य।
  • बेहद का वैराग्य अर्थात् चारों ओर के किनारे छोड़ देना क्योंकि किनारे को सहारा बना दिया है।
  • समय प्रमाण प्यारे बने और समय प्रमाण श्रीमत पर निमित्त बनी हुई आत्माओं के इशारे प्रमाण सेकेण्ड में बुद्धि प्यारे से फिर न्यारी बन जाये, वह नहीं होती।
  • जितना जल्दी प्यारे बनते हो, उतने न्यारे नहीं बनते हो।
  • प्यारे बनने में होशियार हैं, न्यारे बनने में सोचते हैं, हिम्मत चाहिए।
  • न्यारा बनना ही किनारा छोड़ना है और किनारा छोड़ना ही बेहद की वैराग्य वृत्ति है।
  • किनारों को सहारा बनाए पकड़ना आता है लेकिन छोड़ने में क्या करते हो?
  • लम्बा क्वेश्चन मार्क लगा देते हो।
  • सेवा का इन्चार्ज बनना बहुत अच्छा आता है लेकिन इन्चार्ज के साथ-साथ स्वयं की और औरों की बैटरी चार्ज करने में मुश्किल लगता है इसलिए वर्तमान समय तपस्या द्वारा वैराग्य वृत्ति की अति आवश्यकता है।
  • तपस्या की सफलता का विशेष आधार वा सहज साधन है - एक शब्द का पाठ पक्का करो।
  • दो-तीन लिखना मुश्किल होता है।
  • एक लिखना बहुत सहज है।
  • तपस्या अर्थात् एक का बनना।
  • जिसको बापदादा एकनामी कहते हैं।
  • तपस्या अर्थात् मन-बुद्धि को एकाग्र करना, तपस्या अर्थात् एकान्त-प्रिय रहना, तपस्या अर्थात् स्थिति को एकरस रखना, तपस्या अर्थात् सर्व प्राप्त खजानों को व्यर्थ से बचाना अर्थात् इकॉनामी से चलना।
  • तो एक का पाठ पक्का हुआ ना - एक का पाठ मुश्किल है वा सहज है?
  • है तो सहज, लेकिन - ऐसी भाषा तो नहीं बोलेंगे ना।
  • बहुत-बहुत भाग्यवान हो।
  • अनेक प्रकार की मेहनत से छूट गये।
  • दुनिया वालों को समय करायेगा और समय पर मजबूरी से करेंगे।
  • बच्चों को बाप समय के पहले तैयार करते हैं और बाप की मोहब्बत से करते हो।
  • अगर मोहब्बत से नहीं किया वा थोड़ा किया तो क्या होगा?
  • मजबूरी से करना ही पड़ेगा।
  • बेहद का वैराग्य धारण करना ही होगा लेकिन मजबूरी से करने का फल नहीं मिलता।
  • मोहब्बत का प्रत्यक्षफल भविष्य फल बनता है और मजबूरी वालों को कहाँ से क्रॉस करना पड़ेगा!
  • क्रॉस करना भी क्रॉस में चढ़ने के समान है।
  • तो क्या पसन्द है?
  • मोहब्बत से करेंगे।
  • बापदादा कभी किनारों की लिस्ट सुनायेंगे।
  • ऐसे तो जानने में होशियार हो।
  • रिवाइज़ करायेंगे क्योंकि बापदादा तो बच्चों की हर रोज़ की दिनचर्या जब चाहे तब देख सकते हैं।
  • एक एक के देखने का सारा दिन धन्धा नहीं करते।
  • साकार ब्रह्मा बाप को देखा उनकी नज़र स्वत: ही कहाँ पड़ती थी।
  • चाहे आपका पत्र हो, चाहे पोतामेल हो, चाहे कोई चाल-चलन हो, चाहे कोई आठ पेज का पत्र हो लेकिन बाप की नज़र कहाँ पड़ती?
  • जहाँ डायरेक्शन देना होगा, जहाँ आवश्यकता होगी।
  • बापदादा देखते भी सब हैं, लेकिन नहीं भी देखते हैं।
  • जानते भी हैं, नहीं भी जानते।
  • जो आवश्यक नहीं - वह न देखते हैं, न जानते हैं।
  • खेल तो बहुत अच्छे देखते हैं, वह फिर कभी सुनायेंगे। अच्छा।
  • तपस्या करना, बेहद की वैराग्य वृत्ति में रहना सहज है ना।
  • किनारों को छोड़ना मुश्किल है?
  • लेकिन बनना भी आपको ही है।
  • कल्प-कल्प की प्राप्ति के अधिकारी बने हो और अवश्य बनेंगे। अच्छा।
  • इस वर्ष कल्प पहले वाले अनेक कल्पों के पुराने और इस कल्प के नये बच्चों को चांस मिला है।
  • तो चांस मिलने की खुशी है ना?
  • मैजारिटी नये हैं, टीचर्स पुरानी हैं।
  • तो टीचर क्या करेंगी?
  • वैराग्य वृत्ति धारण करेंगी ना?
  • किनारा छोड़ेंगी?
  • कि उस समय कहेंगी कि करने तो चाहते हैं लेकिन कैसे करें?
  • करके दिखलाने वाले हो कि सुनाने वाले हो?
  • जो भी चारों ओर के बच्चे आये हुए हैं सब बच्चों को बापदादा साकार रूप में देखने से हर्षित हो रहे हैं।
  • हिम्मत रखी है और मदद बाप की सदा है ही, इसलिए सदैव हिम्मत से मदद के अधिकार को अनुभव करते सहज उड़ते चलो।
  • बाप मदद देते हैं लेकिन लेने वाले लेवे।
  • दाता देता है लेकिन लेने वाले यथा शक्ति बन जाते हैं।
  • तो यथा शक्ति नहीं बनना।
  • सदा सर्वशक्तिवान बनना।
  • तो पीछे आने वाले भी आगे नम्बर ले लेंगे। समझा।
  • सर्वशक्तियों के अधिकार को पूरा प्राप्त करो। अच्छा।
  • दादियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात -
  • अष्ट शक्तिधारी, इष्ट और अष्ट हो ना।
  • अष्ट की निशानी क्या है, जानते हो?
  • हर कर्म में समय प्रमाण, परिस्थिति प्रमाण, हर शक्ति कर्म में लाने वाले।
  • अष्ट शक्तियां इष्ट भी बना देती हैं और अष्ट भी बना देती हैं।
  • अष्ट शक्ति धारी हो इसलिए आठ भुजायें दिखाते हैं।
  • विशेष आठ शक्तियां हैं।
  • वैसे हैं तो बहुत, लेकिन आठ में मैजारिटी आ जाती है।
  • विशेष शक्तियों को समय पर कार्य में लाना है।
  • जैसा समय, जैसी परिस्थिति वैसी स्थिति हो, इसको कहते हैं अष्ट वा इष्ट।
  • तो ऐसा ग्रुप तैयार है ना?
  • विदेश में कितने तैयार हैं?
  • अष्ट में आने वाले हैं ना? अच्छा।
  • (सवेरे ब्रह्म मुहूर्त के समय सन्तरी दादी ने शरीर छोड़ा - 13-12-90)
  • अच्छा है, जाना तो सबको ही है।
  • एवररेडी हो या याद आयेगा - मेरा सेन्टर, अभी जिज्ञासुओं का क्या होगा?
  • मेरा-मेरा तो याद नहीं आयेगा ना?
  • जाना तो सबको है लेकिन हर एक के हिसाब अपने-अपने हैं।
  • हिसाब-किताब चुक्तु करने के बिना कोई जा नहीं सकता, इसलिए सबने खुशी से छुट्टी दी।
  • सबको अच्छा लगा ना।
  • ऐसा जाना अच्छा है ना।
  • तो आप भी एवररेडी हो जाना। अच्छा।
  • पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात
  • 1. दिल्ली और पंजाब दोनों ही सेवा के आदि स्थान हैं। स्थापना के स्थान सदा ही महत्वपूर्वक देखे जाते हैं, गाये जाते हैं।
  • जैसे सेवा में आदि स्थान है, वैसे स्थिति में आदि रत्न हो?
  • स्थान के साथ-साथ स्थिति की भी महिमा है ना।
  • आदि रत्न अर्थात् हर श्रीमत को जीवन में लाने की आदि करने वाले।
  • सिर्फ सुनने-सुनाने वाले नहीं, करने वाले क्योंकि सुनने-सुनाने वाले तो अनेक हैं लेकिन करने वाले कोटों में कोई हैं।
  • तो यह नशा रहता है कि हम कोटो में कोई हैं?
  • यह रूहानी नशा, माया के नशों से छुड़ा देता है।
  • यह रूहानी नशा सेफ्टी का साधन है।
  • कोई भी माया का नशा - पहनने का, खाने का, देखने का अपनी तरफ आकर्षित नहीं कर सकता।
  • ऐसे नशे में रहते हो या माया थोड़ा-थोड़ा आकर्षित करती है?
  • अभी समझदार बन गये हो ना।
  • माया की भी समझ है।
  • समझदार कभी धोखा नहीं खाते।
  • अगर समझदार कभी धोखा खा ले तो उसको सभी क्या कहेंगे?
  • समझदार और धोखा खा लिया!
  • धोखा खाना अर्थात् दु:ख का आह्वान करना।
  • जब धोखा खाते हो तो उससे दु:ख मिलता है ना।
  • तो दु:ख को कोई लेना चाहता है क्या?
  • इसलिए सदा आदि रत्न हैं अर्थात् हर श्रीमत की आदि अपने जीवन में करने वाले।
  • ऐसे हो?
  • या देखते हो - पहले दूसरा करे, फिर हम करेंगे?
  • यह नहीं करते तो हम कैसे करेंगे!
  • करने में पहले मैं।
  • दूसरा बदले, फिर मैं बदलूँ... यह भी बदले तो मैं बदलूँ... नहीं, जो करेगा वो पायेगा, और कितना पायेंगे?
  • एक का पदमगुणा।
  • तो करने में मजा है ना।
  • एक करो और पदम पाओ।
  • इसमें तो प्राप्ति ही प्राप्ति है, इसलिए प्रैक्टिकल श्रीमत को लाने में पहले मैं।
  • माया के वश होने में पहले मैं नहीं, लेकिन इस पुरुषार्थ में पहले मैं - तभी सफलता हर कदम में अनुभव करेंगे।
  • सफलता हुई पड़ी है।
  • सिर्फ थोड़ा सा रास्ता बदली कर देते हो, बदली करने से मंज़िल दूर हो जाती है, समय लगता है।
  • अगर कोई रांग रास्ते पर चला जायेगा तो मंज़िल दूर हो जायेगी ना।
  • तो ऐसे नहीं करना।
  • मंज़िल सामने खड़ी है, सफलता हुई पड़ी है।
  • जब कभी मेहनत करनी पड़ती है तो मोहब्बत का पलड़ा हल्का होता है।
  • अगर मोहब्बत हो तो मेहनत कभी नहीं कर सकते क्योंकि बाप अनेक भुजाओं सहित आपकी मदद करेगा।
  • वो अपनी भुजाओं से सेकेण्ड में कार्य सफल कर देगा।
  • पुरुषार्थ में सदा उड़ते रहेंगे।
  • पंजाब वाले उड़ते हो या डरते हो?
  • पक्के अनुभवी हो गये हो?
  • कोई डरने वाले हो?
  • क्या होगा, कैसे होगा..! नहीं।
  • उन्हों को भी शान्ति का दान देने वाले हो।
  • कोई भी आये शान्ति लेकर जाये, खाली हाथ नहीं जाये।
  • चाहे ज्ञान नहीं दो लेकिन शान्ति के वायब्रेशन भी शान्त कर देते हैं। अच्छा।
  • 2- चारों तरफ से आई हुई श्रेष्ठ आत्माएं सभी ब्राह्मण हो, न कि राजस्थानी, न महाराष्ट्रीय, न मध्य प्रदेश... सब एक हो। इस समय सभी मधुबन निवासी हो।
  • ब्राह्मणों का ओरीज्नल स्थान मधुबन है।
  • सेवा के लिए भिन्न-भिन्न एरिया में गये हुए हो।
  • यदि एक ही स्थान पर बैठ जाओ तो चारों ओर की सेवा कैसे होगी?
  • इसलिए सेवा अर्थ भिन्न-भिन्न स्थानों पर गये हो।
  • चाहे लौकिक में बिजनेसमेन हो या गवर्नमेन्ट सर्वेन्ट हो, या फैक्टरी में काम करने वाले हो.... लेकिन ओरीजनल आक्यूपेशन ईश्वरीय सेवाधारी हो।
  • माताएं भी घर में रहते ईश्वरीय सेवा पर हैं।
  • ज्ञान चाहे कोई सुने या न सुने, शुभ-भावना, शुभ-कामना के वायब्रेशन से भी बदलते हैं।
  • सिर्फ वाणी की सेवा ही सेवा नहीं है, शुभ-भावना रखना भी सेवा है।
  • तो दोनों ही सेवाएं करना आती हैं ना?
  • कोई आपको गाली भी दे तो भी आप शुभ-भावना, शुभ-कामना नहीं छोड़ो।
  • ब्राह्मणों का काम है - कुछ न कुछ देना।
  • तो यह शुभ-भावना, शुभ-कामना रखना भी शिक्षा देना है।
  • सभी वाणी से नहीं बदलते हैं।
  • कैसा भी हो लेकिन कुछ न कुछ अंचली जरूर दो।
  • चाहे पक्का रावण ही क्यों न हो।
  • कई माताएं कहती है ना - हमारे सम्बन्धी पक्के रावण हैं, बदलने वाले नहीं हैं, ऐसी आत्माओं को भी अपने खजाने से, शुभ-भावना, शुभ-कामना की अंचली जरूर दो।
  • कोई गाली देता है तो भी उनके मुख से क्या निकलता है?
  • यह ब्रह्मा कुमारियां हैं... तो ब्रह्मा बाप को तो याद करते हैं, चाहे गाली भी देते लेकिन ब्रह्मा तो कहते हैं।
  • फिर भी बाप का नाम तो लेते हैं ना।
  • चाहे जाने व न जाने, आप फिर भी उनको अंचली दो।
  • ऐसी अंचली देते हो या जो नहीं सुनता है उसको छोड़ देते हो?
  • छोड़ना नहीं, नहीं तो पीछे आपके कान पकड़ेंगे, उल्हना देंगे - हम तो बेसमझ थे, आपने क्यों नहीं दिया।
  • तो कान पकड़ेंगे ना।
  • आप देते जाओ, कोई ले या न ले।
  • बापदादा रोज़ इतना खजाना बच्चों को देते हैं।
  • कोई पूरा लेते हैं, कोई यथा शक्ति लेते हैं।
  • फिर बापदादा कभी कहते हैं - मैं नहीं दूँगा?
  • क्यों नहीं लेते हो?
  • तो ब्राह्मणों का कर्तव्य है देना।
  • दाता के बच्चे हो ना।
  • वो अच्छा कहे, फिर आप दो तो यह लेवता हुए।
  • लेवता कभी दाता के बच्चे हो नहीं सकते, देवता नहीं बन सकते।
  • आप देवता बनने वाले हो ना?
  • देवताई चोला तैयार है ना?
  • या अभी सिलाई हो रहा है, धुलाई हो रहा है या सिर्फ प्रेस रह गई है?
  • देवताई चोला सामने दिखाई देना चाहिए।
  • आज फरिश्ता, कल देवता।
  • कितनी बार देवता बने हो?
  • तो सदैव अपने को दाता के बच्चे और देवता बनने वाले हैं - यही याद रखो।
  • दाता के बच्चे लेकर नहीं देते।
  • मान मिले, रिगार्ड दे तो दूँ - ऐसा नहीं।
  • सदा दाता के बच्चे देने वाले।
  • ऐसा नशा सदा रहता है ना।
  • या कभी कम होता है, कभी ज्यादा?
  • अभी माया को विदाई नहीं दी है?
  • धीरे-धीरे नहीं देना - इतना समय नहीं है।
  • एक तो आये देरी से हो और फिर धीरे धीरे पुरुषार्थ करेंगे तो पहुँच नहीं सकेंगे।
  • निश्चय हुआ, नशा चढ़ा और उड़ो।
  • अभी उड़ती कला का समय है।
  • उड़ना फास्ट होता है ना।
  • आप लकी हो - उड़ने के टाइम पर आये हो।
  • तो सदैव अपने को ऐसा ही अनुभव करो कि हम बहुत बड़े भाग्यवान हैं।
  • ऐसा भाग्य फिर सारे कल्प में नहीं मिल सकता।
  • तो दाता के बच्चे बनो, लेने का संकल्प भी न हो।
  • पैसे दे, कपड़ा दे, खाना दे।
  • दाता के बच्चे को सब स्वत: ही प्राप्त होता है।
  • मांगने वालों को नहीं मिलता है।
  • दाता बनो तो आपेही मिलता रहेगा।

    • अच्छा।
    • चारों ओर के सर्वस्नेही आत्माएं, सदा बाप के प्यार का रिटर्न देने वाले, अनन्य आत्माएं, सदा तपस्वी मूर्त स्थिति में स्थित रहने वाले, बाप की समीप आत्माएं, सदा बाप के समान बनने के लक्ष्य को लक्षण रूप में लाने वाले, ऐसे देश-विदेश के सर्व बच्चों को दिलाराम बाप की दिल व जान, सिक व प्रेम से यादप्यार और नमस्ते।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021-22)
    • यथार्थ याद द्वारा सर्व शक्ति सम्पन्न बनने वाले सदा शस्त्रधारी, कर्मयोगी भव
    • यथार्थ याद का अर्थ है सर्व शक्तियों से सदा सम्पन्न रहना।
    • परिस्थिति रूपी दुश्मन आये और शस्त्र काम में नहीं आये तो शस्त्रधारी नहीं कहा जायेगा।
    • हर कर्म में याद हो तब सफलता होगी।
    • जैसे कर्म के बिना एक सेकण्ड भी नहीं रह सकते, वैसे कोई भी कर्म योग के बिना नहीं कर सकते, इसलिए कर्म-योगी, शस्त्रधारी बनो और समय पर सर्व शक्तियों को आर्डर प्रमाण यूज़ करो - तब कहेंगे यथार्थ योगी।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
  • जिनके संकल्प और कर्म महान हैं वही मास्टर सर्वशक्तिमान् हैं।