21-04-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन



"मीठे बच्चे - बाप की याद में रहना - यह बहुत मीठी मिठाई है, जो दूसरों को भी बांटते रहो अर्थात् अल्फ और बे का परिचय देते रहो''


 

प्रश्नः-

स्थाई याद में रहने की सहज विधि क्या है?

उत्तर:-

स्थाई याद में रहना है तो देह सहित जो भी सम्बन्ध हैं उन सबको भूलो।

चलते-फिरते, उठते बैठते याद में रहने का अभ्यास करो।

अगर योग में बैठते लालबत्ती भी याद आई तो योग टूट जायेगा।

स्थाई याद रह नहीं सकेगी।

जो कहते कोई खास बैठकर योग कराये, उनका योग भी लग नहीं सकता।

 

गीत:-रात के राही...


  • ओम् शान्ति।
  • अभी यह हुई योग की बात क्योंकि अभी है रात।
  • रात कहा जाता है कलियुग को, दिन कहा जाता है सतयुग को।
  • तुम अभी कलियुग रूपी रात से सतयुगी दिन में जाते हो इसलिए रात को भूल दिन को याद करो।
  • नर्क से बुद्धि को हटाना है।
  • बुद्धि कहती है बरोबर यह नर्क है और किसी की बुद्धि नहीं कहती।
  • बुद्धि है आत्मा में।
  • आत्मा अब जान गई है कि बाबा आया है रात से दिन में ले जाने।
  • बाप कहते हैं हे आत्मायें तुमको जाना है स्वर्ग में।
  • परन्तु पहले शान्तिधाम में जाकर फिर स्वर्ग में आना है।
  • गोया तुम योगी हो, पहले घर के, पीछे राजधानी के।
  • अब मृत्युलोक अर्थात् रात पूरी होनी है।
  • अब जाना है दिन में इसको ईश्वरीय योग कहा जाता है।
  • ईश्वर निराकार हमको योग सिखलाते हैं अथवा हम आत्माओं की सगाई कराते हैं।
  • यह है रूहानी योग, वह है जिस्मानी।
  • तुम बच्चों को एक जगह बैठ योग नहीं लगाना है।
  • वह तो मनुष्य जैसे खुद बैठते हैं वैसे सबको बैठक सिखाते हैं।
  • यहाँ तुमको बैठक नहीं सिखाई जाती है।
  • हाँ सभा में कायदेसिर बैठना है।
  • बाकी योग में तो कैसे भी बैठें, चलते फिरते सोते भी लग सकता है।
  • आर्टिस्ट योग में रह चित्र बना सकते हैं।
  • शिवबाबा, जिनसे योग लगाते हैं, उनका चित्र बनाते हैं।
  • जानते हैं यह हमारा बाबा निराकारी दुनिया परमधाम में रहते हैं।
  • हम भी वहाँ के रहवासी हैं।
  • हम आत्माओं को जाना है, यह बुद्धि में चलते-फिरते रहना चाहिए।
  • ऐसे नहीं कि मुझे तपस्या में बिठाओ, योग कराओ - यह कहना भी रांग है।
  • बुद्धू ऐसे कहेंगे।
  • बच्चे लौकिक बाप को खास बैठकर याद करते हैं क्या?
  • बाबा-बाबा करते ही रहते हैं, कभी भूलते हीं नहीं हैं।
  • छोटे बच्चे और ही जास्ती याद करते हैं।
  • मुख चलता ही रहता है।
  • यहाँ पारलौकिक बाप क्यों भूल जाता है?
  • बुद्धियोग क्यों टूट पड़ता है?
  • मुख से बाबा-बाबा कहना भी नहीं है।
  • आत्मा जानती है बाबा को याद करना है।
  • अगर खास बैठने की आदत है तो योग सिद्ध न हो सके।
  • यह ईश्वरीय योग तुमको स्वयं ईश्वर सिखला रहे हैं।
  • योगेश्वर कहते हो ना।
  • तुमको ईश्वर ने योग सिखाया है कि मुझ बाप को याद करो।
  • ऐसे नहीं जब मुझे दीदी योग में बैठाती है तो मजा आता है।
  • उनका योग कब स्थाई नहीं रह सकेगा।
  • समझो हार्टफेल की तकलीफ हो जाती है तो उस समय कोई योग में बिठायेगा क्या?
  • यह तो बुद्धि से याद करना है।
  • मनुष्य जो भी योग सिखलाते हैं वह है रांग।
  • योगी कोई भी इस दुनिया में है नहीं।
  • यूँ तो किसको भी याद करो तो वह भी योग हुआ।
  • आम अच्छा लगता है तो उनसे योग लग जाता है, लालबत्ती अच्छी लगती है तो वह याद आयेगी तो उनसे भी योग हुआ।
  • परन्तु यहाँ तो देह सहित देह के जो भी सम्बन्ध हैं उन सबको भूल मुझ एक के साथ योग लगाओ तब तुम्हारा कल्याण होगा और तुम विकर्माजीत बन जायेंगे।
  • बाप ही आकर सद्गति का रास्ता बताते हैं।
  • बाप के बिगर कोई भी सद्गति दे न सके।
  • बाकी सब हैं दुर्गति का रास्ता बताने वाले।
  • स्वर्ग कहा जाता है सद्गति को और मुक्तिधाम, जहाँ हम आत्मायें रहती हैं वह है घर।
  • इस समय सभी को दुर्गति में पहुँचाने वाली है - मनुष्य मत।
  • निराकार बाप आकर सद्गति देते हैं फिर आधाकल्प हम सद्गति में रहते हैं।
  • वहाँ भगवान से मिलने वा मुक्ति जीवनमुक्ति पाने लिए दर-दर भटकते नहीं हैं।
  • जब रावण राज्य शुरू होता है तब दर-दर ढूँढना शुरू करते हैं क्योंकि हम गिरने लग पड़ते हैं।
  • भक्ति को भी शुरू होना ही है।
  • तुम जानते हो अभी हम शरीर को छोड़ फिर शिवालय में जायेंगे।
  • सतयुग है बेहद का शिवालय।
  • इस समय है वैश्यालय।
  • यह बातें याद करनी पड़ती हैं।
  • शिवबाबा को याद नहीं करेंगे तो वो योगी नहीं, भोगी ठहरा।
  • तुम किसको सुनने के लिए कहते हो तो कहते हैं हम दो वचन सुनेंगे।
  • अब दो वचन तो बहुत नामीग्रामी हैं।
  • मनमनाभव, मध्याजीभव।
  • मुझे याद करो और वर्से को याद करो।
  • इन दो वचनों से ही जीवनमुक्ति मिलती है।
  • बाप कहते हैं मुझे याद करो तो निरोगी बनेंगे और चक्र को याद करेंगे तो धनवान बनेंगे।
  • दो वचन से तुम एवरहेल्दी और एवरवेल्दी बन जाते हो।
  • अगर राइट बात है तो उस पर चलना पड़े, नहीं तो समझते हैं बुद्धू है।
  • अल्फ और बे - यह हैं दो वचन।
  • अल्फ अल्लाह, बे हुई रचना।
  • बाबा है अल्फ, बे है बादशाही।
  • तुम्हारे में कोई को बादशाही मिलती है और कोई प्रजा में जाते हैं।
  • तुम बच्चों को पोतामेल रखना चाहिए कि सारे दिन में कितना समय बाप को और वर्से को याद किया।
  • यह श्रीमत बाप ही देते हैं।
  • आत्माओं को बाप सिखलाते हैं।
  • मनुष्य धन के लिए कितना माथा मारते हैं। धन तो ब्रह्मा के पास बहुत था।
  • जब देखा कि अल्फ से बादशाही मिलती है तो धन क्या करेंगे?
  • क्यों न सब कुछ अल्फ के हवाले कर बादशाही लेंवे।
  • बाबा ने इस पर एक गीत भी बनाया... अल्फ को अल्लाह मिला... बे को मिली बादशाही... उसी समय बुद्धि में आया हमको तो विष्णु चतुर्भुज बनना है, हम इस धन को क्या करेंगे।
  • बस बाबा ने बुद्धि का ताला खोल दिया।
  • यह (साकार) बाबा तो धन कमाने में बिजी था, जब राजाई मिलती है तो गदाई का काम क्यों करें।
  • फिर बाबा भूख तो नहीं मरा।
  • बाबा के पास जो आते हैं - उनकी बहुत अच्छी पालना होती है।
  • घर में भूख मरते होंगे।
  • यहाँ तो जो श्रीमत पर चलते हैं उनको बाबा भी बहुत अच्छी मदद करते हैं।
  • बाबा कहते हैं सबको रास्ता बताओ कि बेहद के बाप को याद करो और चक्र की नॉलेज को याद करो तो तुम्हारा बेड़ा पार हो जायेगा।
  • खिवैया आया है बेड़ा पार करने।
  • तब तो गाते हैं पतित-पावन, खिवैया परन्तु याद किसको करना है, यह किसको भी मालूम नहीं है क्योंकि सर्वव्यापी कह दिया है।
  • एक ही शिव के चित्र को कहते हैं भगवान।
  • फिर लक्ष्मी-नारायण या ब्रह्मा विष्णु शंकर को भगवान क्यों कहते हैं।
  • अगर सब ही बाप बन जायें तो वर्सा कौन देगा।
  • सर्वव्यापी कहने से तो न देने वाला रहा, न लेने वाला रहा।
  • लिखा हुआ है ब्रह्मा द्वारा स्थापना।
  • ऊपर में शिव खड़ा है।
  • शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा देवता बनाते हैं तो ब्रह्मा भी देवता बनेंगे।
  • यह काम एक बाप का ही है।
  • उनकी ही महिमा है, एको ओंकार... अकालमूर्त, आत्मा अकालमूर्त होती है।
  • उनको काल नहीं खाते, तो बाप भी अकालमूर्त है।
  • शरीर तो सबके खत्म हो जाते हैं।
  • आत्मा को कभी काल खाता नहीं है।
  • वहाँ अकाले मृत्यु कब होता नहीं है।
  • समझते हैं हमको एक शरीर छोड़ दूसरा लेना है।
  • स्वर्ग में है तो जरूर पुनर्जन्म भी स्वर्ग में ही होगा।
  • यहाँ तो सब नर्कवासी हैं।
  • कहते हैं फलाना स्वर्ग पधारा, तो जरूर पहले नर्क में था।
  • इतनी सहज बात भी समझते नहीं हैं।
  • सन्यासी भी नहीं जानते हैं।
  • वो तो ज्योति ज्योत समाया कह देते हैं।
  • भारतवासी भगत भगवान को याद करते हैं।
  • गृहस्थी भगत हैं क्योंकि भक्ति प्रवृत्ति मार्ग वालों के लिए होती हैं।
  • वह तो हैं तत्व ज्ञानी।
  • समझते हैं हम तत्व से योग लगाकर लीन हो जायेंगे।
  • वह तो आत्मा को भी विनाशी मानते हैं।
  • सत्य कब बोल नहीं सकते।
  • सत्य है एक परमात्मा।
  • तुमको अभी सत्य का संग है तो बाकी सब झूठ हुए।
  • कलियुग में सत बोलने वाला कोई मनुष्य होता ही नहीं।
  • रचयिता और रचना के बारे में कोई भी सत नहीं बोलता।
  • बाप कहते हैं अभी मैं तुमको सभी शास्त्रों का सार बतलाता हूँ।
  • मुख्य जो गीता है उनमें भी परमात्मा के बदले मनुष्य का नाम डाल दिया है, जबकि कृष्ण इस समय सांवरा है।
  • अब कृष्ण का भी ऐसा चित्र बनायें जो मनुष्य समझें।
  • डबल शेड देवें।
  • एक तरफ सांवरे का शेड, दूसरे तरफ गोरे का शेड फिर उन पर समझाया जाए कि काम चिता पर बैठने से काला बन जाते हैं।
  • फिर ज्ञान चिता पर बैठने से गोरा बन जाते हैं।
  • निवृत्ति और प्रवृत्ति दोनों ही मार्ग दिखाना है।
  • आइरन एज फिर गोल्डन एज बनती है।
  • गोल्डन के बाद फिर सिल्वर, कॉपर होती है।
  • आत्मा कहती है पहले मैं काम चिता पर थी, अब मैं ज्ञान चिता पर बैठी हूँ।
  • अब तुम बच्चे जानते हो हम पतित से परिस्तानी बन रहे हैं।
  • योग में रह तुम कोई भी चीज़ बनाओ तो कभी खराब नहीं होगी।
  • बुद्धि ठीक रहने से मदद मिलती है।
  • लेकिन है मुश्किल।
  • बाबा कहते हैं हम भी भूल जाते हैं।
  • बहुत तिरकन बाजी है।
  • बड़ा अच्छा अभ्यास चाहिए।
  • स्थाई याद ठहर नहीं सकती है।
  • चलते फिरते याद में रहने का अभ्यास करना है।
  • याद तो कहाँ भी कर सकते हो, याद से बल मिलता है।
  • इस समय सच्चा योग कोई भी जानते ही नहीं है।
  • बाप के सिवाए जो भी योग लगाना सिखलाते हैं, वह रांग है।
  • भगवान ने जब योग सिखलाया तो स्वर्ग बन गया।
  • मनुष्यों ने जब योग सिखलाया तो स्वर्ग से नर्क बन गया।
  • कोई भी उल्टी चलन थोड़ी चलते हैं तो बुद्धि का ताला बन्द हो जाता है।
  • 10-15 मिनट भी याद में नहीं रह सकते।
  • नहीं तो बुढ़ियों के लिए, बच्चों के लिए, बीमारों के लिए भी बहुत सहज है।
  • बहुत अच्छी मिठाई है।
  • भल गूँगा बहेरा हो, वह भी इशारों से समझ सकते हैं।
  • बाप को याद करो तो यह वर्सा मिलेगा।
  • कोई भी आये तो बोलो हम आपको रास्ता बताते हैं।
  • बेहद के बाप स्वर्ग के रचयिता से स्वर्ग के सदा सुख का वर्सा कैसे मिलता है।
  • यह छोटी-छोटी चिटकियां पर्चे बांटते रहना चाहिए।
  • दिल में बहुत उमंग रहना चाहिए।
  • कोई भी धर्म वाला आये तो हम ऐसे समझायें।
  • बाप कहते हैं यह देह के सब धर्म छोड़ मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे।
  • तुम मेरे पास चले आयेंगे।
  • पहले-पहले यह निश्चय करो फिर दूसरी बात, तब तक आगे बढ़ना ही नहीं है।
  • अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो।
  • बस यह है सबसे फर्स्ट-क्लास बात।
  • सिर्फ दो अक्षर हैं अल्फ और बे, बाप और वर्सा।

  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) अपना सब कुछ अल्फ के हवाले कर बे बादशाही लेनी है।
  • पोतामेल रखना है कि बाप और वर्से की कितना समय याद रही।
  • 2) कोई भी उल्टी चलन नहीं चलनी है।
  • स्थाई याद में रहने का अभ्यास करना है।
  • वरदान:-
  • All Blessings of 2021-22
    • सर्व शक्तियों द्वारा हर कम्पलेन को समाप्त कर कम्पलीट बनने वाले शक्तिशाली आत्मा भव
    • अन्दर में अगर कोई भी कमी है तो उसके कारण को समझकर निवारण करो क्योंकि माया का नियम है कि जो कमजोरी आपमें होगी, उसी कमजोरी के द्वारा वह आपको मायाजीत बनने नहीं देगी।
    • माया उसी कमजोरी का लाभ लेगी और अन्त समय में भी वही कमजोरी धोखा देगी।
    • इसलिए सर्व शक्तियों का स्टॉक जमा कर, शक्तिशाली आत्मा बनो और योग के प्रयोग द्वारा हर कम्पलेन को समाप्त कर कम्पलीट बन जाओ।
    • यही स्लोगन याद रहे -“अब नहीं तो कब नहीं''।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
    • शान्ति और धैर्यता की शक्ति से विघ्नों को समाप्त करने वाले ही विघ्न-विनाशक हैं।
    • मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य -
    • “अपना असली लक्ष्य क्या है?''
    • पहले पहले यह जानना जरुरी है कि अपना असली लक्ष्य क्या है? वो भी अच्छी तरह से बुद्धि में धारण करना है तब ही पूर्ण रीति से उस लक्ष्य में उपस्थित हो सकेंगे। अपना असली लक्ष्य हैं - मैं आत्मा उस परमात्मा की संतान हूँ। असुल में कर्मातीत हूँ फिर अपने आपको भूलने से कर्मबन्धन में आ गई, अब फिर से वो याद आने से, इस ईश्वरीय योग में रहने से अपने किये हुए विकर्म विनाश कर रहे हैं। तो अपना लक्ष्य हुआ मैं आत्मा परमात्मा की संतान हूँ। बाकी कोई अपने को हम सो देवता समझ उस लक्ष्य में स्थित रहेंगे तो फिर जो परमात्मा की शक्ति है वो मिल नहीं सकेगी। और न फिर तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे अब यह तो अपने को फुल ज्ञान है, मैं आत्मा परमात्मा की संतान कर्मातीत हो भविष्य में जाकर जीवन-मुक्त देवी देवता पद पायेंगे, इस लक्ष्य में रहने से वह ताकत मिल जाती है। अब यह जो मनुष्य चाहते हैं हमको सुख शान्ति पवित्रता चाहिए, वो भी जब पूर्ण योग होगा तब ही प्राप्ति होगी। बाकी देवता पद तो अपनी भविष्य प्रालब्ध है, अपना पुरुषार्थ अलग है और अपनी प्रालब्ध भी अलग है। तो यह लक्ष्य भी अलग है, अपने को इस लक्ष्य में नहीं रहना है कि मैं पवित्र आत्मा आखरीन परमात्मा बन जाऊंगी, नहीं। परन्तु हमको परमात्मा के साथ योग लगाए पवित्र आत्मा बनना है, बाकी आत्मा को कोई परमात्मा नहीं बनना है। अच्छा-ओम् शान्ति।