20-04-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन



"मीठे बच्चे - जो खुशी खुद को मिली है, वह सबको देनी है, तुम्हें सुख-शान्ति बांटने का धन्धा करना है''


 

प्रश्नः-

तुम बच्चों को इस बेहद ड्रामा की हर सीन बहुत ही पसन्द है - क्यों?

उत्तर:-

क्योंकि स्वयं क्रियेटर को यह ड्रामा पसन्द है।

जब क्रियेटर को पसन्द है तो बच्चों को भी अवश्य पसन्द होगा।

तुम किसी बात में भी नाराज़ नहीं हो सकते।

तुम जानते हो यह दु:ख-सुख का नाटक बहुत सुन्दर बना हुआ है।

इसमें हार-जीत का खेल चलता रहता है, इसे खराब कह नहीं सकते।

दिन भी अच्छा तो रात भी अच्छी... इस ड्रामा में जो भी पार्ट मिला हुआ है, उसे खुशी से बजाने वाले बहुत मजे में रहते हैं।

इस बेहद नाटक की नॉलेज का सिमरण करने वाले सदा हर्षित रहते हैं।

बुद्धि भरपूर रहती है।

 

गीत:-हमारे तीर्थ न्यारे हैं...


  • ओम् शान्ति।
  • वास्तव में स्कूल में कोई गीत नहीं गाये जाते हैं।
  • यह पाठशाला है।
  • फिर भी यहाँ गीत क्यों गाये जाते हैं?
  • सतयुग में तो यह गीत नहीं गाये जाते हैं।
  • अभी हम लोग बैठे हैं संगम पर इसलिए भक्ति और गीतों आदि को लेकर उसका अर्थ समझाते हैं, मनुष्य तो अर्थ समझते नहीं।
  • हम अभी न यहाँ हैं, न वहाँ हैं।
  • बीच में बैठे हैं, तो इनका थोड़ा आधार लेते हैं।
  • बच्चों को ज्ञान और भक्ति का राज़ तो समझाया गया है।
  • इस समय तुम ज्ञान सुन रहे हो, भविष्य के लिए।
  • भविष्य के लिए पुरुषार्थ कर कोई प्रालब्ध बनावे, ऐसा कोई मनुष्य नहीं है।
  • तुम पुरुषार्थ करते हो - भविष्य नई दुनिया के लिए।
  • मनुष्य दान पुण्य आदि करते हैं दूसरे जन्म के लिए।
  • वह है भक्ति, यह है ज्ञान, कोई कहते भी हैं ज्ञान, भक्ति और वैराग्य।
  • संन्यासियों का है हद का वैराग्य।
  • तुम्हारा है बेहद का वैराग्य।
  • वो लोग घरबार से वैराग्य दिलाते हैं, दुनिया से नहीं।
  • वह यह जानते ही नहीं कि तमोप्रधान जड़जड़ीभूत सृष्टि है, इनका विनाश होना है क्योंकि कल्प की आयु बड़ी लम्बी बना दी है।
  • अब बाप बैठ समझाते हैं, बुद्धि भी कहती है यह बात तो बिल्कुल ही ठीक है।
  • मुख्य बात है पवित्रता की, जिसके लिए वह घरबार छोड़ते हैं।
  • तुम सारी पुरानी दुनिया को बुद्धि से भूल जाते हो।
  • पवित्र बनते हो, पवित्र दुनिया में जाने के लिए।
  • तुम्हारी यात्रा है बुद्धि की।
  • कर्मेन्द्रियों से कहाँ जाना नहीं है, तुम्हारा शारीरिक कुछ भी नहीं चलता।
  • अभी हम रूहानी बाप के पास जाते हैं, वह जिस्मानी यात्रायें तो अनेक हैं।
  • कब कहाँ जायेंगे, कब कहाँ।
  • तुम्हारी बुद्धि एक तरफ ही है।
  • इसको अव्यभिचारी भक्ति कहें तो भी हो सकता है।
  • तुम एक को याद करते हो।
  • उन सबकी भक्ति है व्यभिचारी।
  • अनेकों को याद करते हैं।
  • तुम्हारी है अव्यभिचारी रूहानी यात्रा, जिसमें हम जा रहे हैं वापिस अपने घर।
  • वो लोग निर्वाणधाम को घर भी नहीं समझेंगे।
  • कहते हैं पार निर्वाण गया।
  • तुम जानते हो वहाँ हम आत्मायें बाबा के साथ रहती हैं।
  • अभी बाबा हमको लेने के लिए आये हैं।
  • वह समझते हैं हम सब ईश्वर के रूप हैं।
  • कितने शास्त्र आदि पढ़ते हैं, यहाँ तुमको वह कुछ भी नहीं सिखाया जाता है।
  • तुमको तो इन कर्म-कान्ड का भी संन्यास कराया जाता है।
  • यह सब भक्ति के कर्मकान्ड हैं।
  • जैसे प्रभू की गति मत न्यारी है।
  • पहले-पहले तुमको अल्फ सिखाते हैं।
  • बाप खुद ही दलाल बनकर आते हैं।
  • गाते भी हैं, परन्तु समझते नहीं हैं।
  • तुमको कोई भक्ति से घृणा नहीं है।
  • कोई से भी घृणा नहीं आती है, जबकि जानते हैं कि ड्रामा बना हुआ है।
  • हाँ समझाते जरूर हैं कि इस पुरानी छी-छी दुनिया को छोड़ना है, वापिस जाना है।
  • जब भक्ति में थे तो भक्ति से प्यार था।
  • गीत आदि सुनने से मौज आती थी।
  • अब समझते हैं वह तो कोई काम के नहीं थे।
  • सुनने में कोई हर्जा नहीं है परन्तु जानते हैं, यह भी भक्ति की एक्ट है।
  • हमारा अब उनसे बुद्धियोग टूट ज्ञान से जुट गया है।
  • ज्ञान और भक्ति दोनों को तुम जानते हो।
  • मनुष्यों को जब तक ज्ञान न मिले तो भक्ति को ही बहुत अच्छा समझते हैं।
  • हम जन्म-जन्मान्तर भक्ति करते आये।
  • भक्ति से स्नेह बढ़ गया।
  • अब हमारी बुद्धि में है - यह दु:ख सुख, हार जीत का बना हुआ ड्रामा है।
  • तो उन पर रहम आता है, क्यों न उन्हों को भी रचयिता और रचना का ज्ञान मिल जाये, तो बाबा का वर्सा पा सकें।
  • जो खुशी अपने को मिली है वह दूसरों को देनी चाहिए।
  • सिन्धवृति (विदेश में बिजनेस करने जाने वाले) जब देखते हैं फलानी जगह धन्धा अच्छा चलता है, तो अपने मित्र सम्बन्धियों को भी राय देते हैं कि फलानी जगह चलो, वहाँ कमाई बहुत अच्छी होगी।
  • तुम जानते हो कि इस रावण राज्य में दु:ख ही दु:ख है।
  • मनुष्यों को यह मालूम नहीं है कि ज्ञान क्या चीज़ है।
  • साधू-सन्त भी नहीं जानते कि इस ज्ञान से स्वराज्य मिलता है।
  • पूछते हैं इस ज्ञान से क्या प्राप्ति होती है?
  • तो लिखा जाता है शान्ति और सुख दोनों मिलते हैं, सो भी अविनाशी।
  • किसको सुख-शान्ति का धन्धा हाथ आ जाता है तो फिर उसमें ही लग पड़ते हैं।
  • हाँ जिस्मानी सर्विस भी कुछ समय के लिए करनी पड़ती है।
  • सतसंग का टाइम भी सुबह और शाम को होता है।
  • माताओं को घर का बंधन रहता है तो उन्हों के लिए फिर दिन का टाइम रखा जाता है।
  • सुबह का टाइम सबसे अच्छा है, फ्रेश माइन्ड होता है।
  • जो सुनते हो उनको फिर धारण कर उगारना है।
  • दुनिया में यह किसको मालूम नहीं कि निराकार परमात्मा भी पढ़ाने आते हैं।
  • भगवानुवाच - तुमको राजयोग सिखलाकर नर से नारायण बनाता हूँ।
  • यह योग बड़ा नामीग्रामी है।
  • मनुष्य विनाशी धन का दान पुण्य करते हैं तो राजाई घर में अच्छा जन्म लेते हैं।
  • यहाँ तो तुम 21 जन्म का वर्सा पा रहे हो।
  • तुम सब कुछ दान करते हो 21 जन्म के लिए।
  • फिर कोई भी पद पाने के लिए पुरूषार्थ नहीं करना पड़ेगा।
  • पद फिक्स हो जाता है।
  • अभी तुम अपना वर्सा बाप से ले रहे हो इसलिए बाबा कहते हैं अच्छी तरह पढ़ो तो जन्म-जन्मान्तर राजा बनो।
  • पहला जन्म मिलेगा ही ऊंच।
  • प्रजा को भी ऊंच मिलता है।
  • राजाई में दास दासियाँ आदि सब चाहिए।
  • जितना पढ़ेंगे, महादानी बनेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे।
  • बाबा भी महादानी है।
  • सबको साहूकार बना देते हैं।
  • सुख और शान्ति का वर्सा देते हैं।
  • पहले-पहले सुख में ही आते हैं, सभी सुखी रहते थे क्योंकि पहला समय सतोप्रधान फिर रजो फिर तमो में आते हैं।
  • उनका पार्ट अपना और हमारा पार्ट अपना।
  • जो इस धर्म के हैं, उनका ही सैपलिंग लगता है।
  • तुम जब सम्पूर्ण बन जायेंगे तो झट जान जायेंगे कि यह हमारे धर्म का है वा नहीं है।
  • तुम बच्चे सबको समझाते हो कि बाप नई दुनिया रचते हैं तो भारत को ही वर्सा मिला था, फिर गुम हो गया।
  • ड्रामा अनुसार वर्सा लेना भी है तो गँवाना भी है।
  • यह चक्र चलता रहता है। इस समय हमने वर्सा गँवाया है, अब फिर से ले रहे हैं।
  • लक्ष्मी-नारायण के राज्य का किसको भी पता नहीं है, इसलिए पूछा जाता है कि लक्ष्मी-नारायण को यह राज्य कब और कैसे मिला?
  • जैसे उन्हों ने कृष्ण को आगे रख लक्ष्मी-नारायण को गुम कर दिया है और हम फिर लक्ष्मी-नारायण को आगे रख कृष्ण को गुम कर देते हैं।
  • लक्ष्मी-नारायण तो हैं ही सतयुग के, नारायण वाच तो हो न सके।
  • बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ संगम पर।
  • लक्ष्मी-नारायण ने जरूर आगे जन्म में संगम पर ही राज्य लिया है।
  • लक्ष्मी-नारायण ही 84 जन्म भोग अब अन्तिम जन्म में हैं।
  • लक्ष्मी-नारायण को भी राज्य देने वाला जरूर कोई होगा ना।
  • तो भगवान ने ही दिया।
  • इस समय तुम बिल्कुल ही बेगर हो फिर प्रिन्स बन जाते हो।
  • प्रिन्स का तो जरूर राजा महाराजा के पास जन्म होगा।
  • अभी तक भी कोई अच्छे-अच्छे राजायें हैं, जिनका प्रजा पर बहुत प्यार रहता है।
  • अभी तुम जानते हो हम राजयोग सीख रहे हैं, जिससे हम राज्य-भाग्य पाते हैं।
  • हमको यह निश्चय है, क्योंकि यह अनादि ड्रामा है।
  • हार जीत का खेल है।
  • जो होता है वह ठीक, क्या क्रियेटर को ड्रामा पसन्द नहीं होगा!
  • जरूर पसन्द होगा।
  • तो क्रियेटर के बच्चों को भी पसन्द होगा।
  • हम घृणा कोई से नहीं कर सकते।
  • यह तो समझते हैं कि भक्ति का भी ड्रामा में पार्ट है।
  • ड्रामा सारा अच्छा है।
  • बुरा ड्रामा क्यों कहेंगे!
  • ड्रामा का राज़ बुद्धि में है, जो तुमको समझाते हैं।
  • अभी भक्ति का पार्ट पूरा होता है।
  • अब पुरुषार्थ कर बाप से वर्सा लेना है।
  • बाप कहते हैं यह सब आसुरी सम्प्रदाय हैं, इसमें घृणा की तो बात ही नहीं।
  • ईश्वरीय सम्प्रदाय और आसुरी सम्प्रदाय का तो खेल है।
  • वह कोई अपने को दु:खी समझते थोडेही है।
  • भक्ति करते रहते हैं और समझते हैं एक दिन भगवान आकर भक्ति का फल देगा।
  • घर बैठे कोई न कोई रूप में भगवान आकर मिलेगा; और संन्यासी लोग समझते हैं हम आपेही चले जायेंगे निर्वाणधाम।
  • अपने पुरुषार्थ से तत्व के साथ योग लगाते हैं और समझते हैं हम लीन हो जायेंगे।
  • दुनिया में अनेक मत हैं, बाबा आकर एक मत बनाते हैं।
  • समझाते हैं यह ड्रामा अनादि बना हुआ है, बहुत ही सुन्दर नाटक बना हुआ है।
  • ड्रामा में दु:ख सुख का पार्ट नूँधा हुआ है, जिसे देख बहुत खुशी होती है।
  • यह बेहद का खेल बड़ा फाइन बना हुआ है।
  • सो तो सबको पसन्द ही आना चाहिए।
  • दिन भी अच्छा तो रात भी अच्छी।
  • खेल है ना।
  • जानते हैं अब रात पूरी होनी है।
  • हमको दिन में जाकर ऊंच पद पाना है।
  • नाराज़ क्या होंगे, ड्रामा में जो पार्ट मिला है, वह तो बजाना ही है।
  • बहुत अच्छा ड्रामा है, इसको खराब कह नहीं सकते।
  • यह खेल कब बन्द होता ही नहीं है, बहुत फर्स्टक्लास खेल है।
  • इनको जानने से बुद्धि भरपूर हो गई है।
  • जैसे बाप नॉलेजफुल है वैसे बच्चे भी नॉलेजफुल हैं।
  • कितना समय सुख, कितना समय दु:ख पाना है, यह भी तुम सब कुछ जान गये हो तब तो कहते हैं वाह प्रभु तेरी लीला।
  • प्रभु की रचना जरूर अच्छी ही होगी।
  • उसको खराब कौन कहेगा।
  • ड्रामा में जो पार्ट मिला हुआ है वो तो बजाना ही है।
  • यह खेल कभी बन्द होना ही नहीं है, इनको जानने से मजा ही मजा आता है।
  • भक्ति में सतयुगी राजाई का पता भी नहीं है।
  • सतयुगी राजाई में फिर भक्ति का पता ही नहीं रहता है।
  • भक्ति में भी कितने सुन्दर गीत गाते हैं हे प्रभु तेरी लीला विचित्र है।
  • यह तुम बच्चे ही समझ सकते हो और कोई इस लीला को जानते ही नहीं।
  • बाबा से हमको कितना वर्सा मिलता है।
  • सारा दिन बुद्धि में ख्याल चलना चाहिए, कैसा वन्डरफुल खेल है।
  • वन्डरफुल इसकी समझानी है।
  • बाप की लीला कितनी अच्छी है।
  • तुम इस बेहद के नाटक को जानते हो, फिर जो पद मिलता है उनको भी देख हर्षित होते हो, मनुष्य नाटक देख खुश होते हैं ना।
  • वह वैरायटी नाटक होते हैं, यह एक ही नाटक है।
  • इस नाटक को जानने से हम विश्व के मालिक बन जाते हैं।
  • कितनी वन्डरफुल बात है।
  • बाप द्वारा तुमने ही जाना है।
  • इन बातों में रमण करना पड़ता है।
  • गृहस्थ व्यवहार में रहते 2-3 घण्टा निकाल, वह नाटक देखकर आते हैं।
  • वह भी किससे पूछा जाता है क्या?
  • बुद्धि में बैठ जाता है।
  • वैसे यह भी बेहद का नाटक है, यह क्यों भूलना चाहिए!
  • इस चक्र की स्मृति तो बिल्कुल ही सहज है, इसको और कोई नहीं जानते हैं।
  • तुम बुद्धि से जानते हो और फिर दिव्य दृष्टि से देखते भी हो।
  • आगे चल और भी बहुत ही सीन सीनरियाँ देखेंगे।

  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) बाप समान महादानी बनना है।
  • सबको सुख-शान्ति का वर्सा देना है।
  • ज्ञान को धारण कर फिर उगारना है।
  • 2) बेहद नाटक को देख सदा हर्षित रहना है।
  • प्रभू की लीला और यह ड्रामा कितना विचित्र है - इसका सिमरण कर मजे में रहना है।
  • वरदान:-
  • All Blessings of 2021-22
    • पुरूषार्थ के साथ योग के प्रयोग की विधि द्वारा वृत्तियों को परिवर्तन करने वाले सदा विजयी भव
    • पुरूषार्थ धरनी बनाता है, वह भी जरूरी है लेकिन पुरूषार्थ के साथ-साथ योग के प्रयोग से सबकी वृत्तियों को परिवर्तन करो तो सफलता समीप दिखाई देगी।
    • दृढ़ निश्चय और योग के प्रयोग द्वारा किसी की भी बुद्धि को परिवर्तन कर सकते हो।
    • सेवाओं में जब भी कोई हलचल हुई है तो उसमें विजय योग के प्रयोग से ही मिली है, इसलिए पुरूषार्थ से धरनी बनाओ लेकिन बीज को प्रत्यक्ष करने के लिए योग का प्रयोग करो तब विजयी भव का वरदान प्राप्त होगा।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
    • सेवा द्वारा पुण्य की पूंजी जमा करने वाले ही पुण्यात्मा हैं।